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भारतीय राजनीति

चुनावी बॉण्ड

  • 27 Mar 2021
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों द्वारा चुनावी बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त धन के अतिवादी या हिंसक विरोध प्रदर्शन संबंधी फंडिंग में दुरुपयोग की संभावना व्यक्त की है।

  • न्यायालय ने सरकार से यह भी पूछा कि क्या राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त इस धन के प्रयोग पर कोई ‘नियंत्रण’ नहीं है।

चुनावी बॉण्ड

  • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को दान देने हेतु एक वित्तीय साधन है।
  • चुनावी बॉण्ड बिना किसी अधिकतम सीमा के 1,000 रुपए, 10,000 रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में जारी किये जाते हैं।
  • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और भुनाने (Encash) के लिये अधिकृत बैंक है, ये बॉण्ड जारी करने की तारीख से पंद्रह दिनों तक वैध रहते हैं।
  • यह बॉण्ड एक पंजीकृत राजनीतिक पार्टी के निर्दिष्ट खाते में प्रतिदेय होता है।
  • बॉण्ड किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है) द्वारा जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक दस दिनों की अवधि हेतु खरीद के लिये उपलब्ध होते हैं, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया गया है।
    • एक व्यक्ति या तो अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
    • बॉण्ड पर दाता के नाम का उल्लेख नहीं किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • पृष्ठभूमि: चुनावी बॉण्ड योजना गलत तरीके से की जाने वाली फंडिंग का नियंत्रण करती है, क्योंकि यह चेक और डिजिटल लेन-देन पर ज़ोर देती है, हालाँकि इस योजना के कई प्रमुख प्रावधान इसे अत्यधिक विवादास्पद बनाते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय में उठाया गया चुनावी बॉण्ड के दुरुपयोग का मुद्दा:

  • अनामिकता: इस व्यवस्था के तहत न तो फंड देने वाले के नाम की घोषणा की जाती है और न ही फंड लेने वाले के नाम की।
  • असममित रूप से अपारदर्शी: चूँकि चुनावी बॉण्ड केवल SBI के माध्यम से ही खरीदे जाते हैं, इसलिये सरकार इनके संबंध में जानकारी रखती है।
    • जानकारी की यह विषमता सत्तारूढ़ राजनीतिक पार्टी के पक्ष में होती है।
  • काले धन का माध्यम: कॉर्पोरेट द्वारा की गई फंडिंग पर 7.5% की कैप का उन्मूलन, राजनीतिक योगदान करने वाले व्यक्ति की पहचान की आवश्यकता को निराधार करना और इस प्रावधान को समाप्त करना कि एक निगम को कम-से-कम तीन वर्ष पुराना होना चाहिये, इस योजना के उद्देश्य को अच्छी तरह से रेखांकित नहीं करता है।
    • चुनाव आयोग ने दानदाताओं के नामों को उजागर न करने और घाटे में चल रही कंपनियाँ जो कि केवल शेल कंपनियाँ हैं, को बॉण्ड खरीदने की अनुमति देने पर चिंता जताई थी।

सरकार का पक्ष:

  • चुनावी बॉण्ड हेतु योग्यता: केवल वे राजनीतिक दल ही चुनावी बॉण्ड प्राप्त करने के योग्य हैं जो जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29 (A) के तहत पंजीकृत हैं और जिन्होंने बीते आम चुनाव में कम-से-कम 1% मत प्राप्त किया है।
  • काले धन को राजनीति से दूर रखना: पारंपरिक व्यवस्था के तहत जो भी चुनावी चंदा मिलता था वह मुख्यतः नकद दिया जाता था, जिसे काले धन की संभावना काफी बढ़ जाती थी। परंतु चूँकि वर्तमान प्रणाली के तहत चुनावी बॉण्ड केवल चेक या ई-भुगतान के ज़रिये ही खरीदा जा सकता है, इसलिये काले धन संबंधी चिंता खत्म हो जाती है।
    • KYC मानकों का भी अनुसरण किया जाता है।
  • भारत निर्वाचन आयोग का समर्थन: भारत निर्वाचन आयोग इन बॉण्डों के विरोध में नहीं था, उसने इसके अनामिकता संबंधी पहलू के बारे में चिंता जताई थी।
    • इसने न्यायालय से कहा कि यह योजना नकद वित्तपोषण की पुरानी प्रणाली की तुलना में एक कदम आगे है।

आगे की राह:

  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता के क्षरण को रोकने के लिये साहसिक सुधारों के साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
  • संपूर्ण शासन तंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने के लिये मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना ज़रूरी है।
  • मतदाता, जागरूकता अभियानों की मांग करके पर्याप्त बदलाव लाने में मदद कर सकते हैं। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन्हें रिश्वत देते हैं, तो लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ेगा।

स्रोत- द हिंदू

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