अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-अमेरिका रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:भारत-अमेरिका रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी, नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी कार्य योजना मंच मेन्स के लिये:भारत-अमेरिका संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री और अमेरिका की ऊर्जा मंत्री के बीच नई दिल्ली में भारत-अमेरिका रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी (Strategic Clean Energy Partnership- SCEP) पर मंत्रिस्तरीय बैठक आयोजित की गई।
- बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत बनाने में द्विपक्षीय स्वच्छ ऊर्जा संबद्धता और SCEP की उपलब्धियों, स्वच्छ ऊर्जा नवाचार के अवसरों के सृजन, जलवायु परिवर्तन से निपटने तथा रोज़गार के अवसरों का सृजन करने को रेखांकित करते हुए द्विपक्षीय स्वच्छ ऊर्जा भागीदारी के बढ़ते महत्त्व का संज्ञान लिया।
प्रमुख बिंदु:
- महत्त्वाकांक्षी और गतिशील SCEP अधिदेश की समीक्षा:
- दोनों पक्षों ने स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, बैटरी भंडारण और स्वैपिंग प्रौद्योगिकियों, गैस हाइड्रेट्स, उन्नत जैव ईंधन तथा हाइड्रोजन एवं इलेक्ट्रोलाइज़र उत्पादन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।
- साथ ही स्वच्छ ऊर्जा कार्य क्षेत्रों की विस्तृत शृंखला में सहयोग को गहन और मज़बूत बनाने वाले महत्त्वाकांक्षी एवं गतिशील SCEP अधिदेश की समीक्षा की।
- प्रतिबद्धताएँ:
- स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का समर्थन करने के लिये भारत में नेट ज़ीरो गाँव (Net zero village) के विकास की दिशा में कार्य करने पर सहमति व्यक्त की गई।
- स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का समर्थन करने के लिये सार्वजनिक-निजी ऊर्जा भंडारण कार्य बल की स्थापना।
- सार्वजनिक-निजी हाइड्रोजन टास्क फोर्स के माध्यम से हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की तैनाती।
- महत्त्वाकांक्षी स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये प्रमुख प्रौद्योगिकियों के विकास में तेज़ी लाने हेतु US-इंडिया न्यू एंड इमर्जिंग रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नोलॉजीज़ एक्शन प्लेटफॉर्म (RETAP) लॉन्च किया गया ।
- वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की पुष्टि:
- इस गठबंधन का उद्देश्य परिवहन क्षेत्र सहित सहयोग को सुविधाजनक बनाना और टिकाऊ जैव ईंधन के उपयोग को तेज़ करना है।
- ब्राज़ील, भारत और अमेरिका अन्य देशों के समान अग्रणी जैव ईंधन उत्पादक एवं उपभोक्ता हैं।
- गठबंधन स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय बायोफ्यूचर प्लेटफॉर्म, मिशन इनोवेशन बायोएनर्जी पहल और ग्लोबल बायोएनर्जी पार्टनरशिप (GBEP) के सहयोग से काम करेगा।
- इस गठबंधन का उद्देश्य परिवहन क्षेत्र सहित सहयोग को सुविधाजनक बनाना और टिकाऊ जैव ईंधन के उपयोग को तेज़ करना है।
- साउथ एशिया ग्रुप फॉर एनर्जी (SAGE):
- दोनों पक्षों ने अनुसंधान, विश्लेषण और क्षमता निर्माण गतिविधियों का समर्थन करने के लिये भारतीय एजेंसियों तथा अमेरिकी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं के बीच जुड़ाव को गहरा करने हेतु SAGE लॉन्च किया, जैसे कि कम कार्बन प्रौद्योगिकियों के जीवन चक्र मूल्यांकन में मॉडलिंग क्षमता का निर्माण एवं निर्माण क्षेत्र में ऊर्जा खपत पर विश्लेषण।
- अन्य चिंताएँ:
- उभरते ईंधन और प्रौद्योगिकी स्तंभ के अंतर्गत एक प्रक्रिया के रूप में कार्बन कैप्चर, उपयोग एवं भंडारण को जोड़ना।
- यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID)) का कई भारतीय संगठनों जैसे भारतीय रेलवे, NTPC ग्रीन नेशनल स्किल्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, स्किल्स काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स और फोरम ऑफ रेगुलेटर्स के साथ सहयोग।
रणनीतिक स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी:
- SCEP को वर्ष 2021 में आयोजित जलवायु पर नेताओं के शिखर सम्मेलन में दोनों देशों द्वारा घोषित अमेरिका-भारत जलवायु और स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा-2030 साझेदारी के तहत लॉन्च किया गया था।
- SCEP प्रक्रियाओं और अंतिम उपयोग में विद्युतीकरण तथा डीकार्बोनाइज़ेशन पर अधिक बल देने के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा तथा नवाचार को आगे बढ़ाने के साथ उभरती हुई स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का विस्तार करना; हार्ड-टू-डीकार्बोनाइज़ सेक्टर्स के लिये समाधान ढूँढना और इसके लिये तकनीकी समाधान प्रस्तुत करना।
- SCEP को वर्ष 2018 में रणनीतिक ऊर्जा साझेदारी के रूप में स्थापित किया गया था तथा इसने ऊर्जा सहयोग हेतु विगत अंतर-सरकारी अनुबंध अमेरिका-भारत ऊर्जा संवाद की जगह ली थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों का क्या महत्त्व है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट के बीच संबंधों में खटास उत्पन्न होने का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसा स्थान की खोज करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019) |
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-श्रीलंका संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत-श्रीलंका संबंध, तमिल राष्ट्रीय गठबंधन, श्रीलंकाई तमिल, वर्ष 1987 का भारत-श्रीलंका समझौता, बौद्ध धर्म, हिंद महासागर मेन्स के लिये:भारत-श्रीलंका संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रीलंका में तमिल पार्टियों के सबसे बड़े संसदीय समूह तमिल नेशनल एलायंस (TNA) ने पुलिस शक्तियों के बिना श्रीलंकाई संविधान में 13वें संशोधन को लागू करने के श्रीलंकाई राष्ट्रपति के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
- श्रीलंकाई राष्ट्रपति की निर्धारित भारत यात्रा से पहले TNA द्वारा यह अस्वीकृति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत ने निरंतर इस कानून के "पूर्ण कार्यान्वयन" पर बल दिया है जो आत्मनिर्णय हेतु श्रीलंकाई तमिलों की ऐतिहासिक मांग को संबोधित करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
पृष्ठभूमि:
- परिचय:
- वर्ष 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद 13वाँ संशोधन अधिनियमित किया गया था और यह प्रांतों को शक्ति हस्तांतरण की एकमात्र विधायी गारंटी है।
- भारत-श्रीलंका समझौता 1987 पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे ताकि श्रीलंका के जातीय संघर्ष को हल किया जा सके। यह संघर्ष सशस्त्र बलों तथा लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के बीच गृह युद्ध में बदल गया था। इस संगठन ने तमिलों के आत्मनिर्णय के लिये संघर्ष का नेतृत्व किया और एक अलग राज्य की मांग की।
- 13वाँ संशोधन, जिसके परिणामस्वरूप प्रांतीय परिषदों का गठन हुआ, के माध्यम से देश के सभी नौ प्रांतों को स्व-शासन में सक्षम बनाने के लिये एक शक्ति-साझाकरण संरचना सुनिश्चित की गई जिसमें बहुसंख्यक सिंहली भाषी क्षेत्र भी शामिल थे।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, आवास, भूमि और पुलिस जैसे विषय प्रांतीय प्रशासनों को सौंप दिये गए, लेकिन वित्तीय शक्तियों पर प्रतिबंध तथा राष्ट्रपति को दी गई अधिभावी शक्तियों के कारण प्रांतीय प्रशासन अधिक प्रगति नहीं कर पाया।
- हालाँकि श्रीलंका में लगातार सरकारों ने प्रांतों को भूमि और पुलिस अधिकार प्रदान करने से इनकार किया है, जिससे 14 वर्ष पूर्व समाप्त हुए गृह युद्ध के बाद भी मुद्दे अनसुलझे रह गए हैं।
- वर्ष 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते के बाद 13वाँ संशोधन अधिनियमित किया गया था और यह प्रांतों को शक्ति हस्तांतरण की एकमात्र विधायी गारंटी है।
- राष्ट्रपति का प्रस्ताव तथा TNA की प्रतिक्रिया:
- श्रीलंकाई राष्ट्रपति द्वारा सत्य की खोज, शांति स्थापित करने, जवाबदेही, विकास और तमिल राजनीतिक दलों के साथ सत्ता साझा करने के अपने देश के लक्ष्यों का वर्णन करते हुए एक विस्तृत प्रस्ताव पेश किया गया है।
- इस प्रस्ताव में पुलिस शक्तियों को छोड़कर 13वें संशोधन को लागू करना तथा विभिन्न विधेयकों के माध्यम से प्रांतीय परिषदों को सशक्त बनाना शामिल था।
- हालाँकि TNA ने प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया, इसे "खोखला वादा" कहा, इसमें सत्ता को वास्तविक रूप से हस्तांतरित करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का हवाला दिया गया, क्योंकि प्रांतीय परिषदें चुनाव न होने से पाँच वर्ष से निष्क्रिय हैं।
- तमिल नेशनल पीपुल्स फ्रंट और नागरिक समाज के नेताओं ने भारतीय प्रधानमंत्री के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की और एकात्मक संविधान के अंतर्गत 13वें संशोधन की सीमाओं को लेकर संघीय समाधान का आग्रह किया।
- श्रीलंकाई राष्ट्रपति द्वारा सत्य की खोज, शांति स्थापित करने, जवाबदेही, विकास और तमिल राजनीतिक दलों के साथ सत्ता साझा करने के अपने देश के लक्ष्यों का वर्णन करते हुए एक विस्तृत प्रस्ताव पेश किया गया है।
श्रीलंका के साथ भारत का संबंध:
- परिचय:
- भारत और श्रीलंका हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित दो दक्षिण एशियाई देश हैं। भौगोलिक दृष्टि से श्रीलंका भारत के दक्षिणी तट पर स्थित है, जो पाक जलडमरूमध्य द्वारा अलग किया गया है।
- इस निकटता ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- हिंद महासागर व्यापार और सैन्य अभियानों के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण जलमार्ग है तथा प्रमुख शिपिंग लेन के क्रॉस रोड पर श्रीलंका का स्थान इसे भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण नियंत्रण बिंदु बनाता है।
- संबंध:
- ऐतिहासिक संबंध: भारत और श्रीलंका के बीच प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों का एक वृहद् इतिहास रहा है।
- दोनों देशों के बीच मज़बूत सांस्कृतिक संबंध हैं, श्रीलंका के कई निवासी अपनी विरासत भारत से जोड़ते हैं। बौद्ध धर्म, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई, श्रीलंका में भी एक महत्त्वपूर्ण धर्म है।
- आर्थिक संबंध: अमेरिका और ब्रिटेन के बाद भारत श्रीलंका का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। श्रीलंका अपने 60% से अधिक के निर्यात हेतु भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौते का लाभ उठाता है। भारत श्रीलंका में एक प्रमुख निवेशक भी है।
- वर्ष 2005 से 2019 तक भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) लगभग 1.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- रक्षा: भारत और श्रीलंका संयुक्त सैन्य (मित्र शक्ति) तथा नौसेना अभ्यास (SLINEX) आयोजित करते हैं।
- समूहों में भागीदारी: श्रीलंका बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) तथा SAARC जैसे समूहों का भी सदस्य है जिसमें भारत अग्रणी भूमिका निभाता है।
- ऐतिहासिक संबंध: भारत और श्रीलंका के बीच प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंधों का एक वृहद् इतिहास रहा है।
- भारत-श्रीलंका के बीच मुद्दे:
- मछुआरों की हत्या: श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या दोनों देशों के बीच एक पुराना मुद्दा है।
- वर्ष 2019 और 2020 में कुल 284 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया तथा कुल 53 भारतीय नौकाओं को श्रीलंकाई अधिकारियों ने ज़ब्त कर लिया।
- चीन का प्रभाव: श्रीलंका में चीन की तेज़ी से बढ़ती आर्थिक उपस्थिति (परिणामस्वरूप राजनीतिक दबदबा) भारत-श्रीलंका संबंधों में तनाव पैदा कर रही है।
- चीन पहले से ही श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक है, वर्ष 2010-2019 के दौरान चीन का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में 23.6% हिस्सा था, जबकि भारत का हिस्सा 10.4% था।
- मछुआरों की हत्या: श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या दोनों देशों के बीच एक पुराना मुद्दा है।
आगे की राह
- तमिल राष्ट्रीय गठबंधन द्वारा राष्ट्रपति के प्रस्ताव को अस्वीकार करना और तमिल राजनीतिक दलों तथा नागरिक समाज के सदस्यों के बीच बढ़ती चिंताएँ 13वें संशोधन को लागू करने एवं श्रीलंका में सत्ता हस्तांतरित करने में चुनौतियों को रेखांकित करती हैं।
- राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की जल्द ही होने वाली भारत यात्रा को देखते हुए भारत का "पूर्ण कार्यान्वयन" पर ज़ोर और संघीय समाधान की इच्छा काफी महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009) (a) बांग्लादेश उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत-श्रीलंका के संबंधों के संदर्भ में विवेचना कीजिये कि किस प्रकार आतंरिक (देशीय) कारक विदेश नीति को प्रभावित करते हैं। (2013) प्रश्न. 'भारत श्रीलंका का बरसों पुराना मित्र है।' पूर्ववर्ती कथन के आलोक में श्रीलंका के वर्तमान संकट में भारत की भूमिका की विवेचना कीजिये। (2022) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान, एक्ट ईस्ट पॉलिसी मेन्स के लिये:सामान्य हित और चिंता के क्षेत्रीय मुद्दों को संबोधित करने में EAS की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के विदेश मंत्री ने 13वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लिया। इस मौके पर वे चीन के शीर्ष राजनयिक के साथ चर्चा में शामिल हुए।
- उन्होंने वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control- LAC) पर लंबित मुद्दों पर चर्चा की, जिसमें शांति के महत्त्व और सैनिकों की वापसी पर ज़ोर दिया गया।
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन:
- परिचय:
- EAS की स्थापना वर्ष 2005 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) के नेतृत्व वाली पहल के रूप में की गई थी।
- EAS हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एकमात्र नेतृत्व वाला मंच है जो रणनीतिक महत्त्व के राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर चर्चा करने हेतु सभी प्रमुख भागीदारों को एक साथ लाता है।
- EAS स्पष्टता, समावेशिता, अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रति सम्मान, आसियान केंद्रीयता और प्रेरक शक्ति के रूप में आसियान की भूमिका के सिद्धांतों पर काम करता है।
- पूर्वी एशिया समूह का विचार पहली बार वर्ष 1991 में तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद द्वारा प्रस्तावित किया गया था।
- पहला शिखर सम्मेलन 14 दिसंबर, 2005 को कुआलालंपुर, मलेशिया में आयोजित किया गया था।
- सदस्य:
- EAS में 18 सदस्य शामिल हैं: 10 आसियान देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्याँमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम) तथा आठ संवाद भागीदार (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका)।
- EAS बैठकें और प्रक्रियाएँ:
- EAS आमतौर पर हर वर्ष की चौथी तिमाही में आसियान नेताओं की बैठकों के साथ आयोजित किया जाता है।
- EAS नेताओं के शिखर सम्मेलन को विभिन्न मंत्रिस्तरीय और वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकों, जैसे- विदेश मंत्रियों की बैठक, आर्थिक मंत्रियों की बैठक, रक्षा मंत्रियों की बैठक एवं शिक्षा मंत्रियों की बैठक का समर्थन प्राप्त है।
- EAS में सहयोग के छह प्राथमिकता वाले क्षेत्र हैं: पर्यावरण और ऊर्जा; शिक्षा; वित्त; वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दे तथा महामारी रोग; प्राकृतिक आपदा प्रबंधन एवं आसियान कनेक्टिविटी।
- EAS में सामान्य हित और चिंता के अन्य विषयों को भी शामिल किया गया है, जैसे- व्यापार एवं निवेश, क्षेत्रीय वास्तुकला, समुद्री सुरक्षा, अप्रसार, आतंकवाद का विरोध तथा साइबर सुरक्षा।
- भारत और पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन:
- वर्ष 2005 से भारत EAS का संस्थापक सदस्य है तथा इसकी सभी बैठकों एवं गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता रहा है।
- भारत EAS को अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के विस्तार तथा आसियान और अन्य क्षेत्रीय देशों के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच के रूप में देखता है।
- नवंबर 2019 में बैंकॉक में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में भारत ने हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) का अनावरण किया था जिसका उद्देश्य एक सुरक्षित एवं स्थिर समुद्री कार्यक्षेत्र बनाने के लिये साझेदारी करना है।
- भारत ने आपदा प्रबंधन, नवीकरणीय ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, कनेक्टिविटी, समुद्री सुरक्षा तथा आतंकवाद विरोधी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में EAS सहयोग में योगदान दिया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत निम्नलिखित में से किसका/किनका सदस्य है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
प्रोजेक्ट चीता और रेडियो कॉलर संक्रमण
प्रिलिम्स के लिये:चीता पुन: वापसी योजना, कूनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP), गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य मेन्स के लिये:भारत में चीता स्थानांतरण से संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मध्य प्रदेश स्थित कुनो वन्यजीव अभयारण्य में चीता पुन: वापसी परियोजना के तहत उपयोग किये जाने वाले रेडियो कॉलर के कारण चीतों की गर्दन पर घाव और सेप्टीसीमिया (बैक्टीरिया द्वारा रक्त का संक्रमण) के मामले देखे गए।
- इस स्थिति को देखते हुए भारत और अफ्रीका में कॉलर की प्रथाओं से सुपरिचित विशेषज्ञ काफी चिंतित हैं।
रेडियो कॉलर:
- परिचय:
- रेडियो कॉलर का उपयोग जंगली पशुओं पर नज़र बनाए रखने और अनुवीक्षण के लिये किया जाता है।
- यह छोटे रेडियो ट्रांसमीटर लगा कॉलर होता है।
- यह कॉलर पशुओं के व्यवहार, प्रवासन और जनसंख्या की गतिशीलता संबंधी डेटा प्रदान करने में काफी सहायता करता है।
- अतिरिक्त जानकारी के लिये इनमें GPS अथवा एक्सेलेरोमीटर का भी उपयोग किया जा सकता है।
- कॉलर का डिज़ाइन इस प्रकार किया गया है कि वे पशुओं के लिये उपयोग में हल्के और आरामदायक हों।
- ऐसे में किसी भी प्रकार के चोट अथवा संक्रमण जैसे संभावित जोखिमों और चुनौतियों पर विचार किया जाने की आवश्यकता है।
- रेडियो कॉलर से संबंधित चुनौतियाँ:
- गर्दन के घाव और सेप्टीसीमिया:
- कूनो अभयारण्य में दो चीतों की रेडियो कॉलर से गर्दन पर घाव के कारण होने वाले संदिग्ध सेप्टीसीमिया की वजह से मौत हुई है।
- ओबन, एल्टन और फ्रेडी सहित और भी चीतों में इसी प्रकार की चोट/जख्म देखे गए हैं।
- इन असफलताओं ने चीता पुनः वापसी परियोजना में रेडियो कॉलर के उपयोग के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- कूनो अभयारण्य में दो चीतों की रेडियो कॉलर से गर्दन पर घाव के कारण होने वाले संदिग्ध सेप्टीसीमिया की वजह से मौत हुई है।
- लंबे समय तक कॉलर के उपयोग से जुड़ी समस्याएँ:
- लंबे समय तक शरीर पर कुछ पहनने या बाँधे रखने से उसके गलत प्रभाव हो सकते है, जैसे कि घड़ी पहनने वालों और पालतू कुत्तों पर किये गए अध्ययनों में देखा गया है।
- घड़ी पहनने वालों की कलाई पर स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus Aureus) बैक्टीरिया की उपस्थिति अधिक थी, जिससे सेप्सिस या मृत्यु हो सकती है।
- कॉलर पहनने वाले कुत्तों में एक्यूट मोइस्ट डर्मेटाइटिस (Acute Moist Dermatitis) या हॉट स्पॉट्स विकसित हो सकते हैं, जो कि टिक्स या पिस्सू के कारण बढ़ जाते हैं।
- टाइट-फिटिंग कॉलर बेडसोर के समान दबाव परिगलन (Pressure Necrosis) और गर्दन के चारों ओर तेज़ी से बाल झड़ने का कारण बन सकते हैं।
- वज़न संबंधी विचार:
- विश्व स्तर पर सामान्य दिशा-निर्देश के अनुसार, रेडियो कॉलर का वज़न पशु के शरीर के वज़न से 3% से कम रखना होता है।
- जंगली बिल्लियों के लिये आधुनिक कॉलर का वज़न आमतौर पर लगभग 400 ग्राम होता है, जो 20 किलोग्राम से 60 किलोग्राम वज़न वाले चीतों के लिये उपयुक्त है।
- हालाँकि चीतों को कॉलर पहनाना उनकी छोटी गर्दन के कारण चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर छोटे पशुओं के लिये।
- कॉलर से होने वाले जख्मों के प्रति संवेदनशीलता:
- चीतों की शीतकालीन खाल, जो बाघों या तेंदुओं की तुलना में अधिक मोटी और रोएँदार होती है, अधिक नमी बनाए रख सकती है तथा सूखने में अधिक समय लेती है।
- वर्ष 2020 के एक अध्ययन में पशुओं की बेहतर शारीरिक क्षमता (Athleticism) पर विचार न करने के लिये कॉलर वज़न नियम की आलोचना की गई थी, जिससे पता चला कि रेडियो कॉलर के कारण लगने वाला बल उनकी गतिविधियों के दौरान गर्दन (Collar) के वज़न से अधिक हो सकता है।
- उदाहरण के लिये रेडियो कॉलर द्वारा लगाया गया बल आमतौर पर शेर की गर्दन के वज़न का पाँच गुना और चीते की गर्दन के वज़न का 18 गुना तक पाया गया।
- भारतीय बाघों और तेंदुओं की तुलना में अफ्रीकी चीते स्थानीय रोगजनकों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं, संभवतः प्रतिरक्षा और पर्यावरणीय स्थितियों में अंतर के कारण।
- मानसून की स्थितियों के प्रति अनुकूलन का अभाव:
- बारिश के बीच शुष्क त्वचा के कारण अफ्रीकी परिस्थितियों में कॉलर के नीचे जीवाणु संक्रमण को आमतौर पर रिपोर्ट नहीं किया जाता है।
- ऐतिहासिक समय में भारत में मानसून के दौरान चीतों को कॉलर नहीं पहनाया जाता था और हो सकता है कि उन्होंने स्थानीय जलवायु के अनुसार अलग तरह से अनुकूलन किया हो।
- पुनः वापसी परियोजना हेतु निहितार्थ:
- गर्दन की चोटों के लिये चीतों को ट्रैक करना, स्थिर करना और उनका आकलन करना चुनौतियों तथा संभावित देरी का कारण बनता है।
- अगले मानसून के लिये स्पष्ट रोडमैप की अनुपस्थिति चीतों की री-कॉलरिंग और उनके कल्याण के विषय पर सवाल उठाती है।
- गर्दन के घाव और सेप्टीसीमिया:
भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना:
- परिचय:
- भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना औपचारिक रूप से 17 सितंबर, 2022 को प्रारंभ हुई, जिसका उद्देश्य चीतों की आबादी को बहाल करना था, जिन्हें वर्ष 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
- इस परियोजना में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का स्थानांतरण शामिल है।
- पुनः वापसी प्रक्रिया:
- 20 रेडियो-कॉलर वाले चीतों को दक्षिण अफ्रीका (12 चीते) और नामीबिया (8 चीते) से कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया।
- मार्च 2023 में भारत ने नामीबिया से स्थानांतरित आठ चीतों में से एक ने 4 शावकों के जन्म दिया।
- चीतों को एक क्वारंटाइन अवधि से गुज़रना पड़ा और फिर उन्हें बड़े अनुकूलन बाड़ों में स्थानांतरित कर दिया गया।
- वर्तमान में 11 चीते स्वतंत्र अवस्था में हैं और एक शावक सहित 5 चीते क्वारंटाइन बाड़ों में हैं।
- समर्पित निगरानी दल स्वतंत्र रूप से घूमने वाले चीतों की चौबीसों घंटे निगरानी सुनिश्चित करते हैं।
- 20 रेडियो-कॉलर वाले चीतों को दक्षिण अफ्रीका (12 चीते) और नामीबिया (8 चीते) से कुनो नेशनल पार्क में स्थानांतरित किया गया।
- मृत्यु-दर:
- कूनो नेशनल पार्क में प्राकृतिक कारणों से 8 चीतों की मौत हो गई, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि मौतें प्राकृतिक थीं तथा ये रेडियो कॉलर जैसे अन्य कारकों से संबंधित नहीं थीं।
- परियोजना कार्यान्वयन एवं चुनौतियाँ:
- इस परियोजना को NTCA द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के साथ नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित किया गया है।
- इस परियोजना की चुनौतियों में पुनः स्थापित चीता आबादी की निगरानी, सुरक्षा और प्रबंधन शामिल है।
- संरक्षण के प्रयास और उपाय:
- चीते की मौत के कारणों की जाँच के लिये अंतर्राष्ट्रीय चीता विशेषज्ञों तथा दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के पशु चिकित्सकों के साथ परामर्श जारी है।
- स्वतंत्र राष्ट्रीय विशेषज्ञ निगरानी प्रोटोकॉल, सुरक्षा स्थिति, प्रबंधकीय दिशा-निर्देश, पशु चिकित्सा सुविधाओं, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण की समीक्षा कर रहे हैं।
- चीता अनुसंधान केंद्र स्थापित करने, कुनो राष्ट्रीय उद्यान के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत वन क्षेत्रों का विस्तार करने, अतिरिक्त फ्रंटलाइन कर्मचारी प्रदान करने, चीता संरक्षण बल स्थापित करने तथा गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में चीतों के लिये दूसरा आवास स्थल बनाने के प्रयास चल रहे हैं।
- सरकार पुनः स्थापित चीता आबादी के संरक्षण तथा इसकी दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)
उपर्युक्त में से कौन-से भारत में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं? (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
निर्जलीकरण-सहिष्णु पादपों की प्रजातियाँ
प्रिलिम्स के लिये:पश्चिमी घाट की प्रजातियाँ, जलयोजन, उष्णकटिबंधीय रॉक आउटक्रॉप्स मेन्स के लिये:शुष्कन-सहिष्णु संवहनी पादपों की प्रजातियों का जलवायु सहिष्णु कृषि को बढ़ावा देने और बड़े पैमाने पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में उपयोग |
चर्चा में क्यों?
हालिया नए अध्ययन में कृषि और संरक्षण में संभावित अनुप्रयोगों के साथ भारत के पश्चिमी घाट में 62 शुष्कन-सहिष्णु संवहनी (Desiccation-tolerant vascular: DT) की प्रजातियों की खोज की गई है। पादपों की ये प्रजातियाँ कठोर जलवायवीय वातावरण का सामना करने में सक्षम हैं।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, अगरकर रिसर्च इंस्टीट्यूट (ARI) पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में पश्चिमी घाट में 62 शुष्कन-सहिष्णु प्रजातियों की पहचान की गई है, यह संख्या पहले की ज्ञात नौ प्रजातियों की तुलना में कहीं अधिक है।
निर्जलीकरण/शुष्कन-सहिष्णु पौधे:
- शुष्कन-सहिष्णु संवहनी पौधे अपने वानस्पतिक ऊतकों की शुष्कता को सहन करने में सक्षम पौधे हैं। ये सामान्यतः उष्णकटिबंधीय रॉक आउटक्रॉप्स में पाए जाते हैं।
- ये पौधे उच्च निर्जलीकरण (जल सामग्री 95% तक नष्ट होने पर भी) की स्थिति में जीवित रह सकते हैं।
- पादपों में निर्जलीकरण तब होता है जब एक पौधे द्वारा ग्रहण अथवा अवशोषित जल की मात्रा किसी भी रूप में निष्काषित जल की तुलना में कम होती है।
- आबादी:
- अध्ययन के अनुसार, इन प्रजातियों की वैश्विक संख्या 300 से 1,500 के बीच है।
- खोजी गई 62 प्रजातियों में से 16 प्रजातियाँ मूल रूप से भारत में पाई जाती हैं और 12 प्रजातियाँ पश्चिमी घाट के बाहरी क्षेत्रों तक ही सीमित हैं।
- अध्ययन के अनुसार, इन प्रजातियों की वैश्विक संख्या 300 से 1,500 के बीच है।
- पाए जाने वाले क्षेत्र:
- ये पौधे उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण दोनों क्षेत्रों में पाए जा सकते हैं।
- इन्हें पुनर्जीवित करने में जलापूर्ति का काफी योगदान होता है और ये अक्सर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में चट्टानी इलाकों में पाए जाते हैं।
- वैश्विक तापन को देखते हुए यह महत्त्वपूर्ण है कि कुछ प्रजातियाँ उच्च तापमान पर भी पनप सकें।
- कठोर वातावरण में पादपों के लिये जलयोजन और शुष्कन प्रतिरोध दो व्यापक रूप से अध्ययन किये गए तंत्र हैं।
- पादपों के ऊतक हाइड्रेटेड रहने पर 30% से अधिक पानी की मात्रा बनाए रख सकते हैं।
- भारतीय शुष्कन सहिष्णु पौधे मुख्य रूप से वन, चट्टानों तथा आंशिक रूप से छायादार पेड़ के तनों के समीप पाए जाते हैं। फेरिक्रेट्स (तलछटी चट्टान की एक कठोर, कटाव-प्रतिरोधी परत) और बेसाल्टिक पठार (ज्वालामुखीय गतिविधि द्वारा निर्मित पठार) पसंदीदा स्थान प्रतीत होते हैं।
- ग्लाइफोक्लोआ गोएन्सिस, ग्लाइफोक्लोआ रत्नागिरिका और ग्लाइफोक्लोआ सैंटापौई केवल फेरिक्रेट्स (तलछटी चट्टान की एक कठोर, कटाव-प्रतिरोधी परत) पर पाए गए थे, जबकि बाकी प्रजातियाँ फेरिक्रेट्स और बेसाल्टिक (ज्वालामुखीय गतिविधि द्वारा निर्मित पठार) दोनों पठारों में पाई जाती हैं।
- इसकी प्रमुख प्रजाति ग्लाइफोक्लोआ थी जिसकी अधिकांश वार्षिक प्रजातियाँ पठारों पर पाई जाती थीं।
- विशेषता:
- शुष्कन-सहिष्णु (DT) प्रजाति में रंग भिन्नता और रूपात्मक विशेषताएँ दिखाई देती हैं।
- ट्रिपोगोन प्रजातियाँ (Tripogon Species) शुष्क परिस्थितियों में भूरे और हाइड्रेटेड स्थितियों में हरे रंग में बदल जाती हैं।
- ओरोपेटियम थोमेयम (Oropetium thomaeum) में हाइड्रेटेड चरण में पत्तियाँ हरे से गहरे बैंगनी या नारंगी रंग में बदल जाती हैं तथा शुष्क चरण में भूरे से लेकर काली तक हो जाती है।
- फर्न (फ्रोंड्स ) ने अनेक प्रकार की विशेषताएँ प्रदर्शित की हैं जिनमें कोस्टा की ओर अंदर की ओर मुड़ना, शुष्क मौसम की शुरुआत में और संक्षिप्त शुष्क अवधि के दौरान बीजाणुओं को उजागर करना शामिल है।
- हालाँकि ये सभी प्रजातियों के मामले में सच नहीं है। सी लैनुगिनोसस (C Lanuginosus) के मामले में पत्तियाँ क्लोरोफिलस (Chlorophyllous) भाग को ढकने के लिये अंदर की ओर मुड़ जाती हैं या सिकुड़ जाती हैं जिससे शुष्कन चरण के दौरान सूर्य के सीधे प्रकाश के संपर्क से बचा जा सकता है।
- शुष्कन-सहिष्णु (DT) प्रजाति में रंग भिन्नता और रूपात्मक विशेषताएँ दिखाई देती हैं।
- महत्त्व:
- जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने हेतु उच्च तापमान सहिष्णु फसलों की किस्म विकसित करने के लिये शुष्कन-प्रतिरोधी संवहनी पादपों के जीन का उपयोग किया जा सकता है।
- शुष्कन-सहिष्णु (DT) संवहनी पादपों की खोज का कृषि उपयोग है विशेष रूप से उन स्थानों पर जहाँ सिचाई के लिये जल की कमी है।
- जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने तथा व्यापक स्तर पर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु उच्च तापमान सहनशील फसलों की किस्म विकसित करने के लिये इन पादपों के जीन का उपयोग किया जा सकता है।
- जलवायु अनुकूलन को बढ़ावा देने हेतु उच्च तापमान सहिष्णु फसलों की किस्म विकसित करने के लिये शुष्कन-प्रतिरोधी संवहनी पादपों के जीन का उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भूगोल
भारत में आकाशीय बिजली
प्रिलिम्स के लिये:राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष, आकाशीय बिजली, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, प्राकृतिक आपदा, ग्लोबल वार्मिंग, शहरी ताप द्वीप प्रभाव, निर्वनीकरण मेन्स के लिये:भारत में बिजली गिरने का वर्तमान परिदृश्य, बिजली गिरने की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे कारक |
चर्चा में क्यों?
आकाशीय बिजली/तड़ित (Lightning) भारत में चिंता का विषय रही है, जिससे प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में मौतें होती हैं। बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से आकाशीय बिजली गिरने को प्राकृतिक आपदा घोषित करने की मांग उठने पर केंद्र सरकार ने सतर्क रुख अपनाया है।
- यदि मंज़ूरी मिल जाती है, तो पीड़ित राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund- SDRF) से मुआवज़े के हकदार होंगे, जिसमें 75% का योगदान केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
नोट:
वर्तमान में चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीटों का हमला, ठंढ और शीत लहर को आपदा माना जाता है जो SDRF के अंतर्गत आते हैं। इसमें अभी तक आकाशीय बिजली शामिल नहीं है।
भारत में आकाशीय बिजली गिरने का वर्तमान परिदृश्य:
- परिचय:
- आकाशीय बिजली एक शक्तिशाली और दृश्यमान विद्युत घटना है जो तब घटित होती है जब बादलों के अंदर एवं बादलों तथा ज़मीन के बीच विद्युत आवेश का निर्माण होता है।
- इस विद्युत ऊर्जा के निर्वहन के परिणामस्वरूप प्रकाश की एक अत्यधिक तेज़ चमक और हवा का तेज़ी से विस्तार होता है, जिससे बिजली के साथ होने वाली विशिष्ट गड़गड़ाहट की आवाज़ पैदा होती है।
- क्लाउड टू ग्राउंड (Cloud to Ground) बिजली हानिकारक होती है क्योंकि उच्च विद्युत वोल्टेज और करंट के कारण लोगों को नुकसान हो सकता है।
- भारत विश्व में आकाशीय बिजली गिरने की पूर्व चेतावनी प्रणाली वाले पाँच देशों में से एक है।
- यह प्रणाली आकाशीय बिजली गिरने से पाँच दिन पहले से लेकर तीन घंटे पहले तक का पूर्वानुमान प्रदान करती है।
- आकाशीय बिजली एक शक्तिशाली और दृश्यमान विद्युत घटना है जो तब घटित होती है जब बादलों के अंदर एवं बादलों तथा ज़मीन के बीच विद्युत आवेश का निर्माण होता है।
- बिजली गिरने से होने वाली मौतें: सांख्यिकी और रुझान:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा: वर्ष 2021 में आकाशीय बिजली गिरने से 2,880 मौतें हुईं, जिसमें "फोर्स ऑफ नेचर" के कारण हुई सभी आकस्मिक मौतों के 40% आँकड़े शामिल हैं।
- यह प्रवृत्ति अन्य प्राकृतिक घटनाओं की तुलना में आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मृत्यु में वृद्धि का संकेत देती है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) डेटा: वर्ष 2021 में आकाशीय बिजली गिरने से 2,880 मौतें हुईं, जिसमें "फोर्स ऑफ नेचर" के कारण हुई सभी आकस्मिक मौतों के 40% आँकड़े शामिल हैं।
- भारत में भौगोलिक वितरण:
- पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिसा तथा बिहार में आकाशीय बिजली की आवृत्ति सबसे अधिक है।
- हालाँकि मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और ओडिसा जैसे मध्य भारतीय राज्यों में आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतों की संख्या अधिक है।
- बिहार आकाशीय बिजली गिरने के मामले में सबसे संवेदनशील राज्यों में से एक है, जहाँ हर वर्ष इसके कारण बड़ी संख्या में मौतें होती हैं।
- वर्ष 2023 में 6 जुलाई तक बिहार में आकाशीय बिजली गिरने से 107 मौतें दर्ज की गईं।
- पूर्वोत्तर राज्यों और पश्चिम बंगाल, सिक्किम, झारखंड, ओडिसा तथा बिहार में आकाशीय बिजली की आवृत्ति सबसे अधिक है।
- आकाशीय बिजली के संदर्भ में केंद्र सरकार का दृष्टिकोण:
- केंद्र सरकार आकाशीय बिजली को प्राकृतिक आपदा घोषित करने का विरोध करती है। सरकार का मानना है कि जानकारी और जागरूकता आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतों को प्रभावी ढंग से रोकने में सहायता कर सकती है।
आकाशीय बिजली गिरने की बढ़ती प्रवृत्ति के पीछे संभावित कारक:
- जलवायु परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन संभावित रूप से वायुमंडलीय स्थितियों को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आँधी और आकाशीय बिजली की गतिविधि में वृद्धि हो सकती है।
- जैसे-जैसे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, नमी के वितरण, अस्थिरता और संवहनी प्रक्रियाओं में परिवर्तन हो सकता है जो अधिक बार आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं को बढ़ावा दे सकता है।
- कालबैसाखी एक स्थानीय तूफान की घटना है जो आकाशीय बिजली के साथ घटित होती है, यह आमतौर पर भारतीय उपमहाद्वीप में प्री-मॉनसून सीज़न के दौरान देखी जाती है।
- शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों का विस्तार "शहरी ताप द्वीप प्रभाव" के रूप में जाना जाता है।
- बढ़ती मानवीय गतिविधियों, ऊर्जा खपत और अभेद्य सतहों के कारण शहर आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक गर्म होते हैं।
- इन स्थानीय ताप द्वीपों के कारण अधिक गरज के साथ वर्षा हो सकती है और परिणामस्वरूप, आकाशीय बिजली गिरने की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है।
- भूमि उपयोग परिवर्तन: निर्वनीकरण, कृषि पद्धतियों में परिवर्तन और प्राकृतिक परिदृश्य में परिवर्तन स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियों को बाधित कर सकते हैं।
- इस तरह के परिवर्तन तूफानों के विकास में योगदान दे सकते हैं और परिणामस्वरूप आकाशीय बिजली गिरने की अधिक घटनाएँ हो सकती हैं।
- प्रदूषण और एयरोसोल: एयरोसोल और पार्टिकुलेट मैटर सहित वायु प्रदूषण, तूफानों के भीतर बादल निर्माण और विद्युत गतिविधि को प्रभावित कर सकता है।
- मानवजनित उत्सर्जन तूफान की आवृत्ति और तीव्रता को प्रभावित कर सकता है, जिससे संभवतः आकाशीय बिज़ली गिरने की अधिक संभावना हो सकती है।
आगे की राह
- शैक्षणिक अभियान: आकाशीय बिजली से सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये व्यापक शैक्षिक अभियान चलाना।
- विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को आकाशीय बिजली गिरने के खतरों और सुरक्षित रहने के लिये बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- आकाशीय बिजली भविष्य1वाणी तथा चेतावनी प्रणाली: आकाशीय बिजली एवं तूफान की उन्नत सूचना प्रदान करने के लिये आकाशीय बिजली की भविष्यवाणी और चेतावनी प्रणाली को विकसित एवं कार्यान्वित करना। इससे लोगों को आवश्यक सावधानी बरतने और समय पर आश्रय लेने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
- आकाशीय बिजली प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा: विशेष रूप से स्कूलों, अस्पतालों और सार्वजनिक भवनों जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आकाशीय बिजली प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के निर्माण को प्रोत्साहित करना।
- इसमें ऊँची संरचनाओं, इमारतों एवं घरों पर आकाशीय बिजली की छड़ें स्थापित करना शामिल हो सकता है ताकि आकाशीय बिजली को ज़मीन तक पहुँचने के लिये एक सुरक्षित मार्ग प्रदान किया जा सके, जिससे प्रत्यक्ष रूप से होने वाली हानि के जोखिम को कम किया जा सके।
- इसके अतिरिक्त विद्युत उपकरणों और उपकरणों के लिये सर्ज प्रोटेक्टर्स का उपयोग करना। आकाशीय बिजली गिरने से विद्युत की वृद्धि हो सकती है जो संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक्स को हानि पहुँचा सकती है। सर्ज प्रोटेक्टर अतिरिक्त वोल्टेज को डायवर्ट कर सकते हैं और उपकरण की सुरक्षा कर सकते हैं।
- प्रथम उत्तरदाताओं के लिये प्रशिक्षण: स्थानीय आपातकालीन सेवाओं और प्रथम उत्तरदाताओं को आकाशीय बिजली से संबंधित घटनाओं से निपटने के तरीके के बारे में प्रशिक्षित करने के साथ उन्हें आवश्यक उपकरण भी प्रदान करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. तूफान के दौरान आसमान में गड़गड़ाहट उत्पन्न होती है:
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |