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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दक्षिण एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव

  • 11 Jan 2021
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

चीन ने दक्षिण एशिया के देशों के साथ कोविड-19 से लड़ने और अपने आर्थिक एजेंडा को समन्वित करने तथा क्षेत्र में बीजिंग के आउटरीच में एक नए दृष्टिकोण को दर्शाने के उद्देश्य से एशियाई देशों के साथ तीसरा बहुपक्षीय संवाद वर्चुअल तौर पर आयोजित किया।

South-Asia

प्रमुख बिंदु

भाग लेने वाले देश:

  • इस बैठक में भारत, भूटान और मालदीव को छोड़कर क्षेत्र के सभी देशों ने हिस्सा लिया। इस बैठक का उद्देश्य "महामारी विरोधी सहयोग और गरीबी में कमी लाने हेतु सहयोग" था।
  • बैठक में वे सभी पाँच देश पाकिस्तान, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश शामिल थे जिन्होंने इसके पूर्व के संवादों में भी भाग लिया है।
  • पाकिस्तान और नेपाल ने तीनों संवादों में भाग लिया।

अन्य प्लेटफॉर्मों के माध्यम से जुड़ाव:

  • पहले अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान के साथ जुलाई में हुई चतुर्भुज वार्ता में चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने का प्रस्ताव रखा, साथ ही नेपाल के साथ एक आर्थिक गलियारे जिसे ट्रांस-हिमालयी बहु-आयामी कनेक्टिविटी नेटवर्क कहा जाता है, की योजना को आगे बढ़ाने पर भी बात की।

चीन द्वारा दक्षिण एशिया में सहयोग बढ़ाने के लिये अन्य पहलें:

  • अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट के चाइना ग्लोबल इन्वेस्टमेंट ट्रैकर के अनुसार, चीन ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका की अर्थव्यवस्थाओं के साथ लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया है।
  •  चीन अब मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है।

अफगानिस्तान:

  • बीजिंग, त्रिपक्षीय चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों के संवाद का एक हिस्सा था जो अफगानिस्तान के घरेलू राजनीतिक सामंजस्य को सुविधाजनक बनाने, क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने और क्षेत्रीय विकास में सुधार पर केंद्रित है।
  • त्रिपक्षीय चर्चा में "बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI)" और "CPEC को अफगानिस्तान तक बढ़ाकर कनेक्टिविटी बढ़ाने" पर भी सहमति व्यक्त की गई।

बांग्लादेश:

  • चीन और बांग्लादेश ने रक्षा सहयोग को विशेषकर “रक्षा उद्योग व व्यापार, प्रशिक्षण, उपकरण तथा प्रौद्योगिकी” के क्षेत्रों को और मज़बूत करने का संकल्प लिया।
  • चीन जो कि बांग्लादेश की सेना का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता भी है, ने वर्ष 2008 से वर्ष 2018 तक 71.8% हथियार मुहैया कराए हैं।

भूटान

  • चीन के साथ इसका कोई राजनयिक संबंध नहीं है।

मालदीव:

  • चीन का ध्यान मालदीव के विकास की आड़ में BRI के माध्यम से लाभ उठाने पर केंद्रित है ताकि वह  मालदीव के विकास के साथ-साथ यहाँ चीनी प्रभाव को बढ़ा सके और भारत के समक्ष चुनौती उत्पन्न कर सके।  

नेपाल:

  • चीनी राष्ट्रपति द्वारा वर्ष 2019 में नेपाल की यात्रा की गई थी।
  • 23 वर्षों में किसी चीनी  राष्ट्रपति  की यह पहली यात्रा थी।
  • दोनों देशों ने नेपाल में इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण में तेज़ी लाने और उनके बीच कनेक्टिविटी में सुधार के लिये समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
  • दोनों देशों ने चीन-नेपाल सीमा पार रेलवे की व्यवहार्यता का अध्ययन शुरू करने की भी घोषणा की है।

श्रीलंका:

  • चीन का ऋण चुकाने के लिये श्रीलंका ने हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर चीन को सौंप दिया। 
  • हंबनटोटा भौगोलिक रूप से हिंद महासागर क्षेत्र में स्थित है, जो बीजिंग के स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स को टक्कर देता है।

भारत के लिये चिंता:

सुरक्षा चिंताएँ:

  • पाकिस्तान और चीन के बीच बढ़ता सहयोग।
  • नेपाल और चीन के बीच बढ़ती साँठगाँठ।
  • दक्षिण एशियाई देशों द्वारा चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को स्वीकृति।

दक्षिण एशिया में नेतृत्व की भूमिका:

  • दक्षिण एशिया में चीनी उपस्थिति लगातार बढ़ रही है और यह देशों द्वारा चीन के ध्वज  वाहक के रूप में स्वीकृति को दर्शाता है, जिसे भारत अपने लिये चाहता है।

आर्थिक चिंताएँ:

  • पिछले एक दशक में चीन ने भारत को कई दक्षिण एशियाई देशों के प्रमुख व्यापारिक भागीदार के रूप में प्रतिस्थापित किया है। उदाहरण के लिये वर्ष 2008 में चीन के मुकाबले मालदीव के साथ भारत के व्यापार का हिस्सा 3.4 गुना था। लेकिन वर्ष 2018 तक मालदीव के साथ चीन का कुल व्यापार भारत से थोड़ा अधिक था।
  • बांग्लादेश के साथ चीन का व्यापार भारत की तुलना में लगभग दोगुना है। नेपाल और श्रीलंका के साथ चीन का व्यापार अभी भी भारत के व्यापार की तुलना में कम है किंतु यह अंतर लगातार कम होता जा रहा है।

 आगे की राह:

  • भारत के पास चीन की तरह आर्थिक क्षमता नहीं है। इसलिये भारत को इन देशों के विकास के लिये चीन के साथ सहयोग करना चाहिये ताकि दक्षिण एशिया का विकास हो सके।
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के विस्तार की योजनाओं की भी कड़ी निंदा की जानी चाहिये।
  • भारत को उन दक्षिण एशियाई देशों में निवेश करना चाहिये जहाँ चीन कमज़ोर पड़ता है और और इन देशों में भारत का प्रभाव बढ़ाना चाहिये ।
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