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डेली न्यूज़

  • 20 Jul, 2022
  • 33 min read
भारतीय राजनीति

भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992, अनुच्छेद 29, अनुच्छेद 30, अनुच्छेद 350 (B)।

मेन्स के लिये:

भारत में अल्पसंख्यकों का निर्धारण और संबंधित संवैधानिक प्रावधान, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि धार्मिक और भाषायी समुदायों की अल्पसंख्यक स्थिति "राज्य-निर्भर" है।

संबंधित याचिका:

  • याचिका में शिकायत की गई है कि लद्दाख, मिज़ोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्यों में यहूदी, वहाबी तथा हिंदू धर्म के अनुयायी वास्तविक अल्पसंख्यक हैं।
  • हालाँकि वे राज्य स्तर पर 'अल्पसंख्यक' की पहचान न होने के कारण अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना एवं उनका प्रशासन नहीं कर सकते हैं।
  • यहांँ हिंदू जैसे धार्मिक समुदाय सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप से गैर-प्रमुख और कई राज्यों में संख्या में न्यून हैं।

निर्णय:

  • भारत का प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी राज्य में अल्पसंख्यक हो सकता है।
  • एक मराठी अपने गृह राज्य महाराष्ट्र के बाहर अल्पसंख्यक हो सकता है।
  • इसी तरह एक कन्नड़ भाषी व्यक्ति कर्नाटक के अलावा अन्य राज्यों में अल्पसंख्यक हो सकता है।
  • कोर्ट ने संकेत दिया कि एक धार्मिक या भाषायी समुदाय जो किसी विशेष राज्य में अल्पसंख्यक है, संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत अपने स्वयं के शैक्षणिक संस्थानों को संचालित करने के अधिकार का दावा कर सकता है।

भारत सरकार द्वारा अधिसूचित अल्पसंख्यक:

  • वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (C) के तहत अधिसूचित समुदायों को ही अल्पसंख्यक माना जाता है।
    • टीएमए पाई मामले में सर्वोच्च न्यायलय के 11 न्यायाधीशों की बेंच के फैसले, जिसने स्पष्ट रूप से निर्धारित किया कि भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यकों की पहचान राष्ट्रीय स्तर के बज़ाय राज्य स्तर पर की जानी चाहिये, के बावजूद राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (एनसीएम) अधिनियम, 1992 की धारा 2 (C) ने अल्पसंख्यकों को अधिसूचित करने के लिये केंद्र को "बेलगाम शक्ति" दी।
  • NCM अधिनियम, 1992 के अधिनियमन के साथ ही वर्ष 1992 में MC वैधानिक निकाय बन गया, जिसका नाम बदलकर NCM कर दिया गया।
  • वर्ष 1993 में पहला सांविधिक राष्ट्रीय आयोग स्थापित किया गया था और पाँच धार्मिक समुदाय अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध तथा पारसी को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था।
  • वर्ष 2014 में जैनियों को भी अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।

अल्पसंख्यकों हेतु संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 29:
    • यह प्रावधान करता है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी एक अलग भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे संरक्षित करने का अधिकार होगा।
    • यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषायी अल्पसंख्यकों दोनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों के वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 30:
    • सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार होगा।
    • अनुच्छेद 30 के तहत सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों (धार्मिक या भाषायी) तक ही सीमित है और नागरिकों के किसी भी वर्ग (अनुच्छेद 29 के तहत) तक नहीं है।
  • अनुच्छेद 350(B):
    • 7वें संवैधानिक (संशोधन) अधिनियम, 1956 ने इस अनुच्छेद को सम्मिलित किया जो भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है।
    • इस विशेष अधिकारी का कर्तव्य होगा कि वह संविधान के तहत भाषायी अल्पसंख्यकों हेतु प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच करे।

प्रश्न. भारत में यदि किसी धार्मिक संप्रदाय/समुदाय को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाता है, तो वह किस विशेष लाभ का हकदार है? (2011)

  1. यह विशिष्ट शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन कर सकता है।
  2. भारत का राष्ट्रपति स्वतः ही लोकसभा के लिये किसी समुदाय के एक प्रतिनिधि को नामित करता है।
  3. इसे प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ मिल सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल  2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

  • वर्तमान में मुस्लिम, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी को भारत सरकार द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है। ये समुदाय भारत के संविधान के साथ-साथ विभिन्न अन्य विधायी और प्रशासनिक उपायों के हकदार हैं।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के शिक्षा संस्थानों की स्थापना करने और उनके प्रशासन के अधिकार का समर्थन करता है। अत: कथन 1 सही है।
  • भारत के राष्ट्रपति द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय के किसी सदस्य को लोकसभा के लिये स्वतः मनोनीत करने का कोई प्रावधान नहीं है। यह प्रावधान पहले संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत एंग्लो-इंडियन समुदाय के सदस्यों के लिये उपलब्ध था। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • धार्मिक अल्पसंख्यक प्रधानमंत्री के 15 सूत्री कार्यक्रम का लाभ उठा सकते हैं। शिक्षा, कौशल विकास, रोज़गार और सांप्रदायिक संघर्षों की रोकथाम जैसे क्षेत्रों में अल्पसंख्यकों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 2005 में यह कार्यक्रम शुरू किया गया था। अत: कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: द हिंदू


इन्फोग्राफिक्स

द्रोपदी मुर्मू

president


भारतीय इतिहास

वैदिक युग में पाइथागोरस ज्यामिति

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्राचीन इतिहास, वैदिक युग, वेद प्रणाली

मेन्स के लिये:

वेद प्रणाली का महत्त्व , वैदिक युग का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 पर एक ‘स्थिति पत्र’ (Position Paper) में पाइथागोरस प्रमेय को "फर्जी समाचार" के रूप में वर्णित किया गया है।

  • इसने बौधायन सुल्बसूत्र नामक पाठ का उल्लेख किया है, जिसमें विशिष्ट श्लोक प्रमेय को संदर्भित करता है।

पाइथागोरस:

  • परिचय:
    • साक्ष्य के आधार पर यूनानी दार्शनिक की मौजूदगी लगभग 570-490 ईसा पूर्व में मानी जाती है।
    • माना जाता है कि उनके चारों ओर रहस्यमयी तत्त्व मौजूद थे क्योकि उन्होंने इटली में रहस्यात्मक या गुप्त प्रकृति के स्कूल/समाज की स्थापना की।
    • उनकी गणितीय उपलब्धियों के बारे में अपेक्षाकृत कम जानकारी है, क्योंकि वर्तमान में उनके लेखन के बारे में कुछ भी उपलब्ध नहीं है।
  • पाइथागोरस प्रमेय:
    • पाइथागोरस प्रमेय एक समकोण त्रिभुज की तीन भुजाओं को जोड़ने वाले संबंध का वर्णन करता है (जिसमें एक कोण 90° का होता है)।
    • a2 + b2 = c2
    • यदि एक समकोण त्रिभुज की कोई दो भुजाएँ ज्ञात हैं, तो प्रमेय आपको तीसरी भुजा की गणना करने में मदद करता है।

वैदिक भारतीय गणितज्ञ के स्रोत:

  • सुल्बसूत्रों में पाइथागोरस के संदर्भ बताया गया है, जो वैदिक भारतीयों द्वारा किये गए अग्नि अनुष्ठानों (यजनों) से संबंधित ग्रंथ हैं।
    • इनमें से सबसे पुराना बौधायन शुल्बसूत्र है।
  • बौधायन शुल्बसूत्र का काल अनिश्चित है। इसका अनुमान भाषायी और अन्य दूसरे ऐतिहासिक विचारों के आधार पर लगाया गया है।
    • वर्तमान साहित्य में बौधायन शुल्बसूत्र का काल लगभग 800 ईसा पूर्व माना जाता है।
  • बौधायन शुल्बसूत्र में एक तथ्य है जिसे पाइथागोरस प्रमेय कहा जाता है (इसे एक ज्यामितीय तथ्य के रूप में जाना जाता था, न कि 'प्रमेय' के रूप में)।
  • यज्ञ अनुष्ठानों में विभिन्न आकारों में अनुष्ठानों और अग्निवेदियों का निर्माण शामिल था जैसे कि समद्विबाहु त्रिभुज, सममित ट्रेपेज़िया और आयत।
    • शुल्बसूत्र इन वेदियों के निर्धारित आकार के निर्माण की दिशा में उठाए गए कदमों का वर्णन करते हैं।

समीकरण का ज्ञान:

Pythagoras-theorem

  • प्राचीनतम प्रमाण पुरानी बेबीलोनियन सभ्यता (1900-1600 ईसा पूर्व) के हैं।
    • उन्होंने इसे विकर्ण नियम के रूप में संदर्भित किया।
  • इस संबंध में सबसे पहला प्रमाण शुल्बसूत्रों के बाद के काल में मिलता है।
  • प्रमेय का सबसे पुराना स्वयंसिद्ध प्रमाण लगभग 300 ईसा पूर्व के यूक्लिड के तत्त्वों में निहित है।

वेद

  • वेद शब्द ज्ञान का प्रतीक है और यह ग्रंथ वास्तव में मानव जाति को पृथ्वी पर और उसके बाहर अपने पूरे जीवन का संचालन करने के लिये ज्ञान प्रदान करने के बारे में हैं।
  • चार प्रमुख वेद हैं:
    • ऋग्वेद:
      • यह चारों में सबसे पुराना विद्यमान वेद है।
      • इसमें सांसारिक समृद्धि और प्राकृतिक सुंदरता पर ध्यान दिया गया है।
      • वेद 10 पुस्तकों में व्यवस्थित है जिन्हें मंडल के नाम से जाना जाता है।
      • ऋग्वेद में वर्णित प्रमुख देवता:
        • भगवान इंद्र, अग्नि, वरुण, रुद्र, आदित्य आदि।
    • यजुर्वेद:
      • यजु नाम त्याग का प्रतीक है।
      • यह विभिन्न प्रकार के यज्ञों के संस्कारों और मंत्रों पर केंद्रित है।
      • इसके दो प्रमुख संशोधन (संहिताएँ) हैं:
      • शुक्ल यजुर्वेद जिसे वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है।
      • कृष्ण यजुर्वेद जिसे तैत्तिरीय संहिता भी कहा जाता है।
    • सामवेद:
      • इसका नाम समन (गान) के नाम पर रखा गया है।
      • यह गीत-संगीत प्रधान है।
      • इसे मंत्रों की पुस्तक भी कहा जाता है।
    • अथर्ववेद:
      • इसे ब्रह्मवेद के रूप में भी जाना जाता है
      • इसकी रचना‘अथर्बन' तथा 'आंगिरस' ऋषियों द्वारा की गई है। इसीलिये इसे‘अथर्वांगिरस वेद'भी कहा जाता है।
      • यह मानव समाज में शांति और समृद्धि लाने पर केंद्रित है।
      • इसके दो प्रमुख संशोधन (शाखा) हैं:
        • पैप्पलाद
        • शौनकीय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सीआईआई एक्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव में भारत-अफ्रीका

प्रिलिम्स के लिये:

सीआईआई EBC, इंडिया अफ्रीका ट्रेड

मेन्स के लिये:

भारत-अफ्रीका संबंध और समझौते, भारतीय अर्थव्यवस्था में अफ्रीका का महत्त्व, अफ्रीका में चीन की उपस्थिति, भारत-अफ्रीका संबंधों का इतिहास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-अफ्रीका विकास साझेदारी (नई दिल्ली, भारत) पर 17वें भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) के एक्ज़िम बैंक कॉन्क्लेव (EBC) में भारत ने अफ्रीका के साथ व्यापार और निवेश समझौते की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

  • इससे पहले भारतीय उपराष्ट्रपति ने सेनेगल का दौरा किया और सांस्कृतिक आदान-प्रदान, युवा मामलों में सहयोग तथा वीज़ा मुक्त शासन के लिये तीन समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये।

भारत-अफ्रीका विकास साझेदारी पर CII EBC:

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2005 में विदेश मंत्रालय और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से लॉन्च किया गया था।
    • इसे "भारत-अफ्रीका विकास साझेदारी पर CII EXIM बैंक कॉन्क्लेव" नाम दिया गया था, जो "परियोजना साझेदारी" पर पहले के प्रमुख समझौते का विस्तार करता है।
  • महत्त्व:
    • कॉन्क्लेव ने न केवल कई नई सीमा पार साझेदारी को जड़ें जमाने के लिये आधार तैयार किया है, बल्कि मौजूदा सहयोगी व्यवस्थाओं का महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन भी किया है जिसके आधार पर भविष्य की अफ्रीका भागीदारी हेतु एक नया रोडमैप तैयार किया जाएगा।
    • इसने भारत सरकार, एक्ज़िम बैंक और उद्योग के नीतिगत संवादों को आकार दिया है।
    • इसने भारतीय निर्यातकों को अफ्रीकी देशों तक पहुँचने के लिये प्रोत्साहित किया है।
    • इसने 4430 से अधिक परियोजनाओं पर चर्चा हेतु एक मंच प्रदान किया है।
    • इसने उन कंपनियों को प्रोत्साहित किया है जो भारत सरकार की ऋण व्यवस्था से परे व्यवसाय के अवसरों को तलाश रही है।
    • इसने भारतीय कंपनियों द्वारा व्यावसायिक प्रयासों का समर्थन करने के लिये प्रतिस्पर्द्धी ऋण सुविधाओं के साथ अफ्रीकी क्षेत्र में अन्य वित्तीय संस्थानों के साथ बातचीत की सुविधा प्रदान की है।

भारत-अफ्रीका संबंधों के प्रमुख क्षेत्र:

  • भारत नई तकनीकों की पेशकश करने में सक्षम होगा जो अफ्रीका के युवाओं के लिये व्यापार, वाणिज्य, निवेश और अवसरों का विस्तार करने में मदद करेंगी।
  • अफ्रीका के साथ भारत की विकास साझेदारी ऐसी शर्तों पर होगी और अफ्रीका के लिये सुविधाजनक होंगी, जो इसकी क्षमता को बढ़ाएगी तथा इसके भविष्य को बाधित नहीं करेगी।
  • अफ्रीका के विकास का समर्थन करने, शिक्षा, स्वास्थ्य का विस्तार करने, डिजिटल साक्षरता बढ़ाने और गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांँचे के लिये डिजिटल क्रांति के साथ भारत के अनुभव का उपयोग किया जा सकता है।
  • भारत के स्टार्टअप और डिजिटल नवाचार जैसे यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), डिजिटल वाणिज्य के लिये ओपन नेटवर्क (ONDC) आदि अफ्रीका को अत्यधिक लाभ पहुंँचा सकते हैं।

अफ्रीका-भारत संबंध:

  • उच्च स्तरीय दौरे:
    • पिछले आठ वर्षों के दौरान भारत से 36 उच्च स्तरीय यात्राओं और अफ्रीका से 100 से अधिक समान यात्राओं को रिकॉर्ड करते हुए महाद्वीप के साथ जुड़ाव बढ़ा है।
  • ऋण और सहायता:
    • भारत ने अफ्रीका को 12.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का रियायती ऋण दिया है।
    • इसके अलावा भारत ने 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुदान सहायता प्रदान की है।
  • परियोजनाएंँ:
    • भारत ने अब तक 197 परियोजनाएंँ पूरी कर ली हैं, 65 वर्तमान में निष्पादन के अधीन हैं और 81 पूर्व-निष्पादन चरण में हैं।
    • गाम्बिया में भारत ने नेशनल असेंबली भवन का निर्माण किया है और जल आपूर्ति, कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण में परियोजनाएंँ शुरू की हैं।
    • जाम्बिया में भारत एक महत्त्वपूर्ण जल-विद्युत परियोजना, स्वास्थ्य केंद्रों के निर्माण और वाहनों की आपूर्ति में शामिल है।
    • मॉरीशस में हाल की उल्लेखनीय परियोजनाओं में मेट्रो एक्सप्रेस, नया सर्वोच्च न्यायालय और सामाजिक आवास शामिल हैं।
    • नामीबिया में आईटी में एक नया उत्कृष्टता केंद्र अभी चालू हुआ है।
    • जबकि दक्षिण सूडान में भारत प्रशिक्षण और शिक्षा पर ध्यान दे रहा है।
  • कोविड-19 सहायता:
    • 32 अफ्रीकी देशों को भारत से 150 टन चिकित्सा सहायता प्रदान की गई।
      • उनमें से कई ने भारत से सीधे या अन्यथा प्राप्त 'मेड इन इंडिया' टीकों का भी उपयोग किया।
      • अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत ने ट्रिप्स छूट सहित टीकों के लिये न्यायसंगत और सस्ती पहुंँच हेतु दबाव बनाने के लिये मिलकर काम किया है।
  • मानव संसाधन:
    • भारत ने 2015 में भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (आईएएफएस)-III के दौरान 50,000 छात्रवृत्तियों की घोषणा की थी, जिसमें से 32,000 से अधिक छात्रवृत्ति स्लॉट का पहले ही उपयोग किया जा चुका है।
    • भागीदारों को उच्च गुणवत्ता वाली आभासी शिक्षा और चिकित्सा सेवाएंँ प्रदान करने के लिये, ई-विद्या भारती तथा ई-आरोग्य भारती नेटवर्क को क्रमश: टेली-एजुकेशन एवं टेली-मेडिसिन के लिये वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया था।
    • भारत ने अफ्रीकी देशों को IT केंद्रों, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पार्कों और उद्यमिता विकास केंद्रों (EDC) की स्थापना के माध्यम से डिजिटल परिवर्तन को बढ़ावा देने में मदद की है।
  • राहत एवं सहायता:
    • वर्ष 2019 में चक्रवात इदाई द्वारा प्रभावित मोजाम्बिक की सहायता के लिये ऑपरेशन सहायता, जनवरी 2020 में मेडागास्कर में बाढ़ पीड़ितों को राहत प्रदान करने के लिये ऑपरेशन वनीला, वाकाशियो जहाज़ की ग्राउंडिंग के कारण तेल रिसाव को रोकने में मॉरीशस को सहायता।
  • ऊर्जा:
  • व्यापार एवं अर्थव्यवस्था:
    • वर्ष 2021-22 में अफ्रीका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार पिछले वर्ष के 56 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 89.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है।
    • वर्ष 1996-2021 तक 73.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संचयी निवेश के साथ भारत अफ्रीका में निवेश करने वाले शीर्ष पाँच निवेशकों में शामिल है।
    • शुल्क मुक्त टैरिफ वरीयता (DFTP) योजना, जो भारत की कुल टैरिफ लाइनों के 98.2% तक शुल्क मुक्त पहुँच प्रदान करती है, के माध्यम से भारत ने अफ्रीकी देशों के लिये अपना बाज़ार खोल दिया है।
    • अब तक 33 LDC अफ्रीकी देश इस योजना के तहत लाभ पाने के हकदार हैं।

भारत-अफ्रीका संबंधों की संभावनाएँ:

  • खाद्य सुरक्षा के मुद्दे का समाधान:
    • कृषि और खाद्य सुरक्षा भी दोनों देशों के संबंधों को गहरा करने का एक आधार हो सकता है।
    • अफ्रीका के पास विश्व की कुल कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन वैश्विक कृषि-उत्पादन में इसकी हिस्सेदारी बहुत कम है।
    • भारत ने कृषि क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर ली है, जो कि कई कृषि उपजों का शीर्ष उत्पादक है।
  • नव-उपनिवेशवाद का सामना:
    • चीन, अफ्रीका में सक्रिय रूप से ‘चेकबुक एंड डोनेशन’ कूटनीति का उपयोग कर रहा है।
      • हालाँकि चीनी निवेश को नव-औपनिवेशिक प्रकृति के रूप में देखा जाता है;  क्योंकि यह धन, राजनीतिक प्रभाव, विशाल बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं और संसाधनों के  दोहन पर केंद्रित है।
      • दूसरी ओर, भारत का दृष्टिकोण स्थानीय क्षमताओं के निर्माण और अफ्रीकी देशों के साथ समान भागीदारी पर केंद्रित है, न कि केवल संबंधित अफ्रीकी अभिजात वर्ग के साथ।
  • वैश्विक प्रतिद्वंद्विता को रोकना:
    • हाल के वर्षों में विश्व के कई अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं ने ऊर्जा, खनन, बुनियादी ढाॅंचे और कनेक्टिविटी सहित बढ़ते आर्थिक अवसरों की दृष्टि से अफ्रीकी देशों के साथ अपने संपर्क को मज़बूत किया है।

आगे की राह

  • खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा:
  • सामरिक अभिसरण को सक्षम करना:
    • एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर के माध्यम से अफ्रीका के विकास के लिये साझेदारी बनाने में भारत और जापान दोनों के साझा हित हैं।
      • इस संदर्भ में भारत वैश्विक राजनीति के रणनीतिक मानचित्र पर अफ्रीका के विकास के लिये अपनी वैश्विक स्थिति का लाभ उठा सकता है।
  • अन्य:
    • उच्च शिक्षा या कौशल विकास, मज़बूत वित्तीय साझेदारी का निर्माण या कृषि और खाद्य प्रसंस्करण में मूल्य शृंखला को मज़बूत करना, ये सभी भारत एवं अफ्रीका के बीच सहयोग के महत्त्वपूर्ण क्षेत्र होे सकते हैं।
    • जैसे-जैसे अफ्रीका में वैश्विक जुड़ाव बढ़ता है, भारत और अफ्रीका को यह सुनिश्चित करना होगा कि अफ्रीका प्रतिद्वंद्वी महत्त्वाकांक्षाओं में न बदल जाए।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय राजनीति

भारतीय नागरिकता का त्याग

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिकता, प्रवासी भारतीय, वैश्विक प्रवासन समीक्षा।

मेन्स के लिये:

भारतीय नागरिकता का त्याग।

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय ने कहा कि वर्ष 2021 में 1.6 लाख से अधिक भारतीयों ने अपनी भारतीय नागरिकता त्याग दी

  • वर्ष 2020 के कोविड-काल में अपनी भारतीय नागरिकता छोड़ने वाले लोगों की संख्या 85,256  थी और वर्ष 2019 में यह संख्या 1.44 लाख थी।

Indian-Citizenship

नागरिकता :

  • सवैधानिक प्रावधान:
    • नागरिकता को संविधान के तहत ‘संघ सूची में सूचीबद्ध किया गया है और इस प्रकार यह संसद के अनन्य अधिकार क्षेत्र में है।
    • संविधान 'नागरिक' शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन नागरिकता के लिये पात्र व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) में दिया गया है।
  • भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण:
    • वर्ष 1955 का नागरिकता अधिनियम, नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीकों का उल्लेख करता है, जिसमें जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र का समावेश शामिल है।
  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019:
    • अधिनियम में वर्ष 2015 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदू, सिख, बौद्धों, जैन, पारसियों तथा ईसाइयों के लिये नागरिकता में तेज़ी लाने हेतु कानून में संशोधन किया गया।
    • भारतीय नागरिकता के लिये आवेदन करने से पहले उनके लिये कम-से-कम 11 वर्ष तक भारत में रहने की आवश्यकता को घटाकर पाँच वर्ष कर दिया गया है।

लोगों द्वारा नागरिकता त्यागने का कारण: 

  • सामान्य कारण:
    • लोग बेहतर रोज़गार और आवास की स्थिति के लिये अपने देशों से प्रवास कर जाते हैं तथा कुछ जलवायु परिवर्तन या देश में  प्रतिकूल राजनीतिक परिस्थितियों के कारण प्रवास कर जाते हैं।
    • ग्लोबल वेल्थ माइग्रेशन रिव्यू, 2020 के अनुसार:
      • दुनिया भर में उच्च निवल मूल्य वाले व्यक्ति, जो जन्म के समय प्राप्त नागरिकता का त्याग करते हैं, अपराध दर बढ़ने या देश में व्यावसायिक अवसरों की कमी के कारण ऐसा कर सकते हैं।
      • अन्य कारणों में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा, जलवायु एवं प्रदूषण जैसे- जीवनशैली कारक, करों सहित वित्तीय चिंताएँ, परिवारों के लिये बेहतर स्वास्थ्य देखभाल और बच्चों के लिये शैक्षिक अवसर और दमनकारी शासन से बचने के लिये प्रवास करना शामिल है।
  • भारत:
    • नई पीढ़ी में दूसरे देशों के पासपोर्ट रखने वाले भारतीयों में से कुछ विदेश में बसे पुराने भारतीय परिवार के साथ रहने का विकल्प चुन रहे हैं। कुछ हाई-प्रोफाइल मामलों में भारत छोड़ने वाले लोग कानून से भाग रहे हैं या कथित अपराधों के लिये कानूनी कार्रवाई से डरते हैं।
      • आज़ादी के बाद का प्रवासी समुदाय नौकरियों और उच्च शिक्षा के लिये भारत से बाहर जा रहा है, लेकिन आज़ादी से पहले का प्रवासी आंदोलन पूरी तरह से अलग था, जिसमें जबरन और संविदा श्रम देखा गया था।
    • चूँकि भारत दोहरी नागरिकता प्रदान नहीं करता है, इसलिये किसी को दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त करने के लिये अपनी भारतीय नागरिकता का त्याग करना पड़ता है।
    • जिन देशों में भारतीय लंबे समय से प्रवास कर रहे हैं या जहाँ लोगों के परिवार या दोस्त हैं, उनके लिये अधिक स्वचालित विकल्प होंगे, जैसे कि आसान कागज़ी कार्रवाई और अधिक स्वागत योग्य सामाजिक एवं जातीय वातावरण।

भारत में नागरिकता छोड़ने के तरीके:

  • स्वैच्छिक त्याग:
    • यदि कोई भारतीय नागरिक जो पूर्ण आयु और क्षमता का हो, अपनी इच्छा से भारत की नागरिकता त्याग सकता है।
    • जब कोई व्यक्ति अपनी नागरिकता छोड़ देता है, तो उस व्यक्ति का प्रत्येक नाबालिग बच्चा भी भारतीय नागरिकता खो देता है। हालाँकि जब ऐसा बच्चा 18 वर्ष की आयु प्राप्त करता है, तो वह भारतीय नागरिकता फिर से प्राप्त कर सकता है।
  • समाप्ति द्वारा:
    • भारत का संविधान एकल नागरिकता प्रदान करता है। इसका मतलब है कि एक भारतीय व्यक्ति एक समय में केवल एक ही देश का नागरिक हो सकता है।
    • यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता लेता है तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप समाप्त हो जाती है। हालाँकि यह प्रावधान तब लागू नहीं होता जब भारत युद्ध में व्यस्त हो।
  • सरकार द्वारा वंचित:
    • भारत सरकार किसी भारतीय नागरिक की नागरिकता समाप्त कर सकती है यदि;
      • नागरिकों ने संविधान का अपमान किया है।
      • धोखे से नागरिकता प्राप्त की है।
      • नागरिक ने युद्ध के दौरान दुश्मन के साथ अवैध रूप से व्यापार या संचार किया है।
      • पंजीकरण या देशीयकरण के 5 साल के भीतर किसी भी देश में एक नागरिक को 2 साल के कारावास की सज़ा सुनाई गई हो।
      • नागरिक 7 वर्षों से लगातार भारत से बाहर रह रहा हो।

स्रोत: द हिंदू


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