- फ़िल्टर करें :
- भूगोल
- इतिहास
- संस्कृति
- भारतीय समाज
-
प्रश्न :
मुस्लिम समाज-सुधार आंदोलन के संदर्भ में वहाबी आंदोलन और अलीगढ़ आंदोलन की भूमिका एवं उपलब्धियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
07 Dec, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
उत्तर की रूपरेखा-
- वहाबी और अलीगढ़ आंदोलनों का संक्षिप्त परिचय दें।
- दोनों आंदोलनों की विशेषताओं को बताएँ।
- दोनों आंदोलनों की नकारात्मक पहलुओं की चर्चा कर आलोचना करें।
स्वतंत्रता से पूर्व भारत में विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में चेतना का विकास हुआ। मुस्लिम समाज में इसके लिये वहाबी, अहमदिया और अलीगढ़ जैसे सुधारवादी आंदोलनों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। वहाबी आंदोलन के प्रणेता शाह वलीउल्लाह थे। बाद में सैयद अहमद बरेलवी ने वलीउल्लाह के विचारों को आगे बढ़ाया। अलीगढ़ आंदोलन की शुरुआत सर सैयद अहमद खां ने की थी।
वहाबी आंदोलन पुनर्जागरणवादी आंदोलन था। इसमें मुस्लिमों के रीति-रिवाज़ों और अन्य धार्मिक प्रभावों की निंदा की गई तथा हिन्दुस्तान को दारुल-हर्ब (काफिरों का देश) से दारुल-इस्लाम में बदलने की अपील की गई। उन्होंने इस्लाम में वैयक्तिक अंतश्चेतना और इस्लाम के प्रमुख न्याय शास्त्रों में सामंजस्य स्थापित करने पर बल दिया।
दूसरी ओर अलीगढ़ आंदोलन ने धार्मिक रीति-रिवाज़ों के अंधानुकरण की प्रवृत्ति पर रोक लगाईं। इस आंदोलन के माध्यम से कुरान की शिक्षाओं की व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से करने की अपील की गई। सरकारी सहयोग और संरक्षण से मुसलमानों में शिक्षा का प्रसार कर रोज़गार में वृद्धि पर ज़ोर दिया गया, ताकि मुस्लिम समाज की दशा में सुधार हो सके।
उपर्युक्त सुधारवादी कदमों के बावज़ूद दोनों आंदोंलनों ने कुछ मामलों में राष्ट्रीय एकता और स्वतंत्रता आंदोलन को ठेस भी पहुँचाई। वहाबियों के दारुल-इस्लाम स्थापित करने की प्रवृत्ति ने अन्य संप्रदाय के भावनाओं को बाधित किया। सर सैयद अहमद खां जो प्रारंभ में हिंदू और मुलसमान को भारत की दो आँखें मानते थे, कालांतर में अंग्रेज़ों के फूट डालो और राज करो की नीति के समर्थक बन गए। दोनों का मानना था कि मुसलमान हिंदुओं के अधीन हैं तथा हिंदुओं के अधीन रहकर मुस्लिमों का कभी विकास नहीं हो सकता। कुछ ऐसे ही अन्य नकारात्मक पहलुओं के कारण आंदोलन कुछ सकारात्मक पहलुओं को प्राप्त करने में भी असफल रहे।
To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.
Print