डेली न्यूज़ (20 Jul, 2020)



कतर प्रतिबंध और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय

प्रीलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO)

मेन्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के हालिया निर्णय का कतर और अन्य देशों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of justice-ICJ) ने बहरीन, सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की एक अपील को खारिज़ कर दिया है, जिसमें चारों देशों द्वारा कतर (Qatar) पर अधिरोपित प्रतिबंधों की वैधता पर निर्णय देने के अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organization- ICAO) के अधिकार को चुनौती दी गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने स्पष्ट तौर पर कहा कि अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) को इस मामले की सुनवाई करने का पूरा अधिकार है।
  • ध्यातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के इस निर्णय को कतर और उसके विमानन उद्योग के लिये काफी बड़ी जीत माना जा रहा है।

क्या है विवाद?

  • उल्लेखनीय है कि इस पूरे विवाद की शुरुआत वर्ष 2017 में हुई जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने 5 जून, 2017 को कतर के साथ अपने सभी प्रकार के आर्थिक और राजनयिक संबंध समाप्त करते हुए समुद्री और हवाई मार्गों पर प्रतिबंध लगा दिये।
    • साथ ही इन देशों ने कतर के नागरिकों को भी देश को छोड़ने के लिये 14 दिन का समय दिया गया और उन्होने अपने नागरिकों पर भी कतर की यात्रा या निवास करने संबंधी प्रतिबंध लगा दिये।
  • उपरोक्त तीन देशों का अनुसरण करते हुए मिस्र ने भी कतर के साथ अपने राजनयिक संबंध समाप्त कर दिये, किंतु मिस्र ने कतर में रह रहे अपने 180,000 नागरिकों पर प्रतिबंध नहीं लगाए।
  • ध्यातव्य है कि कतर केवल सऊदी अरब के साथ ही भू-सीमा साझा करता है और इन प्रतिबंधों के बाद इस भू-सीमा को भी बंद कर दिया, साथ ही कतर के जहाज़ों पर इन देशों के बंदरगाहों में डॉकिंग पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया।

प्रतिबंधों का कारण

  • कतर के साथ अपने राजनयिक और आर्थिक संबंध समाप्त करने वाले चारों देशों ने दावा किया कि कतर क्षेत्र विशिष्ट में ‘आतंकवाद’ समर्थक के रूप में कार्य कर रहा है।
    • साथ ही इन देशों ने दावा किया कि कतर ने इनके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है।
  • हालाँकि कतर ने इस्लामी चरमपंथ का समर्थन करने से स्पष्ट तौर पर इनकार कर दिया है और चारों देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों की व्यापक आलोचना की।
    • कतर ने चारों देशों द्वारा की गई कार्रवाई के संबंध में कहा कि इसका कोई भी ‘वैध औचित्य नहीं’ है।
  • इससे पूर्व इन देशों के बीच वर्ष 2014 में तब राजनयिक तनाव पैदा हुआ था, जब सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और बहरीन ने यह दावा करते हुए कतर से अपने राजनयिकों को वापस बुला दिया था कि कतर सशस्त्र समूहों का समर्थन कर रहा है।
    • हालाँकि उस समय न तो सऊदी अरब ने कतर के साथ अपनी सीमा को बंद किया था और न ही कतर के निवासियों को देश से बाहर किया गया था।

वित्तीय प्रभाव

  • आँकड़ों के अनुसार, प्रतिबंधों के समय कतर अधिकांशतः अपने नागरिकों की बुनियादी ज़रूरतों के लिये भू और समुद्री आयात पर निर्भर करता है और इसका लगभग 40 प्रतिशत खाद्य सऊदी अरब के साथ भूमि सीमा के माध्यम से आता था।
    • हालाँकि इन प्रतिबंधों के कुछ समय पश्चात् ही तुर्की और ईरान ने कतर को बुनियादी वस्तुओं की पूर्ति करना शुरू कर दिया था।
  • चारों देशों के इन प्रतिबंधों का सबसे अधिक प्रभाव कतर की राष्ट्रीय विमानन कंपनी कतर एयरवेज़ (Qatar Airways) पर देखने को मिला, जिसे इन प्रतिबंधों के बाद कुल 18 क्षेत्रीय शहर के लिये उड़ानों को रद्द करना पड़ा और कई उड़ानों के मार्ग बदलने पड़े।

चारों देशों की मांग

  • कतर पर प्रतिबंध अधिरोपित करने वाले चारों देशों ने संबंधों को बहाल करने के लिये मांगों की एक 13 सूत्रीय सूची जारी की।
  • इस सूची में अल-जज़ीरा जैसे समाचार वेबसाइटों को बंद करना, मुस्लिम ब्रदरहुड (Muslim Brotherhood) जैसे कट्टरपंथी इस्लामी समूहों के साथ अपने संबंधों को समाप्त करना, शिया-बहुसंख्यक ईरान के साथ संबंधों को कम करना और अपने देश में तैनात तुर्की सैनिकों को हटाना शामिल है।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में विवाद

  • कतर ने, यह आरोप लगाते हुए कि नागरिक उड्डयन पर वर्ष 1944 के कन्वेंशन में दिये गए उसके अधिकारों का उल्लंघन किया गया, इसी कन्वेंशन के तहत बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के समक्ष इस मुद्दे को प्रस्तुत किया।
  • अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के समक्ष सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों ने तर्क दिया कि विवाद को निपटाने का अधिकार केवल अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के पास है क्योंकि यह मामला सिर्फ विमानन से संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें आतंकवाद जैसे कई विषय भी शामिल हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने सऊदी और उसके सहयोगी देशों के विरुद्ध फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि संगठन को इस मामले पर सुनवाई करने का अधिकार है।
  • जिसके बाद चारों देश इस मामले को ICJ के समक्ष ले गए और हाल ही में ICJ ने अपना निर्णय सुनाते हुए अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) के निर्णय को सही ठहराया है।
  • चूँकि अब यह तय हो गया है कि इस मामले की सुनवाई का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) को है, इसलिये अब अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) जल्द ही कतर पर लगे प्रतिबंधों को लेकर अपना निर्णय सुनाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राजस्थान में अपूर्ण शिक्षा दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 

मेन्स के लिये:

प्रारंभिक शिक्षा के संदर्भ में राजस्थान सरकार दिशा-निर्देश तथा इस पर प्रतिक्रिया, किस प्रकार ये दिशा-निर्देश शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करते हैं?

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights-NCPCR) ने राजस्थान सरकार द्वारा प्रारंभिक शिक्षा पर जारी नए दिशा-निर्देशों के लिये राज्य सरकार की आलोचना की है। आयोग के अनुसार, ये नए दिशा-निर्देश शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009 का उल्लंघन करते हैं तथा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के बच्चों को नर्सरी कक्षाओं में निःशुल्क शिक्षा के अधिकार से वंचित करते हैं।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • राजस्थान के स्कूली शिक्षा विभाग ने दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा है कि RTE अधिनियम, 2009 के तहत 2020-21 के शैक्षणिक वर्ष के लिये निजी स्कूलों में केवल कक्षा 1 या उससे ऊपर के बच्चों को प्रवेश कराया जाएगा, जिसमें प्री-स्कूलर्स (नर्सरी के बच्चे) शामिल नहीं हैं।
  • नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, प्रवेश की आयु "5 वर्ष या उससे अधिक, लेकिन 31 मार्च 2020 तक 7 वर्ष से कम" है।

नियमों का उल्लंघन:

  • ये दिशा-निर्देश RTE अधिनियम, 2009 का उल्लंघन करते हैं, जिसमें कहा गया है कि निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटें वंचित वर्ग के बच्चों के लिये आरक्षित होनी चाहिये।
  • ये दिशा-निर्देश केवल 7 साल से कम उम्र के बच्चों को विद्यालय में प्रवेश करने की अनुमति देते हैं लेकिन RTE अधिनियम में प्रवेश के लिये "छह से चौदह वर्ष की आयु के बच्चे" का प्रावधान शामिल है।

NCPCR’s की प्रतिक्रिया

  • NCPC ने RTE अधिनियम के आलोक में नए दिशा-निर्देशों की फिर से जाँच करने और आवश्यक परिवर्तन करने की सिफारिश की है ताकि नए नियमों के चलते बच्चों की शिक्षा को कोई नुकसान न होने पाए।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग

National Commission for Protection of Child Rights – NCPCR

  • राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की स्थापना संसद के एक अधिनियम बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के अंतर्गत मार्च 2007 में की गई थी।
  • यह महिला और बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।

अधिदेश

  • आयोग का अधिदेश यह सुनिश्चित करना है कि समस्त विधियाँ, नीतियाँ कार्यक्रम तथा प्रशासनिक तंत्र बाल अधिकारों के संदर्श के अनुरूप हों, जैसा कि भारत के संविधान तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय (कन्वेशन) में प्रतिपादित किया गया है।
  • बालक को 0 से 18 वर्ष के आयु वर्ग में शामिल व्यक्ति के रूप में पारिभाषित किया गया है। 
  • यह आयोग राष्ट्रीय नीतियों एवं कार्यक्रमों में निहित अधिकारों पर आधारित दृष्टिकोण की परिकल्पना करता है तथा इसके अंतर्गत प्रत्येक क्षेत्र की विशिष्टताओं एवं मज़बूतियों को ध्यान में रखते हुए राज्य, ज़िला और खण्ड स्तरों पर पारिभाषित प्रतिक्रियाओं को भी शामिल किया गया है। 

आयोग के कार्य

  • बाल अधिकारों के संरक्षण के लिये उस समय मौजूद कानून के तहत बचाव की स्थिति संबंधी जाँच और समीक्षा करना तथा इनके प्रभावी कार्यान्वयन के उपायों की सिफारिश करना।
  • इन रक्षात्मक उपायों की कार्यशैली पर प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य अंतरालों पर केंद्र सरकार के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करना जिन्हें आयोग द्वारा उपयुक्त पाया जाए।
  • उक्त मामलों में बाल अधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना और कार्यवाही के संबंध में सिफारिश करना।
  • उन सभी कारकों की जाँच करना जो आंतकवाद, साम्प्रदायिक हिंसा, दंगों, प्राकृतिक आपदाओं, घरेलू हिंसा, एचआईवी/एड्स, अनैतिक व्यापार, दुर्व्यवहार, यंत्रणा और शोषण, अश्लील चित्रण तथा वेश्यावृत्ति से प्रभावित बाल अधिकारों का लाभ उठाने का निषेध करते हैं तथा उपयुक्त सुधारात्मक उपायों की सिफारिश करना।
  • अन्य अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और साधनों का अध्ययन करना तथा मौजूदा नीतियों, कार्यक्रमों एवं बाल अधिकारों पर अन्य गतिविधियों की आवधिक समीक्षा करना तथा बच्चों के सर्वोत्तम हित में इनके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सिफारिशें करना।
  • किशोर संरक्षण गृह या निवास के अन्य किसी स्थान, बच्चों के लिये बनाए गए संस्थान का निरीक्षण करना या निरीक्षण करवाना, ऐसे संस्थान जो केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी अन्य प्राधिकरण के अधीन हैं (इनमें किसी सामाजिक संगठन द्वारा चलाए जाने वाले संस्थान भी शामिल है, जहाँ बच्चों को इलाज, सुधार या संरक्षण के प्रयोजन से रखा या रोका जाता है) तथा इनके संबंध में आवश्यक सुधारात्मक कार्रवाई करना।
  • इस संबंध में प्राप्त शिकायतों की जाँच करना और निम्नलिखित मुद्दों से संबंधित मामलों की स्वप्रेरणा से जानकरी लेना:
    • बाल अधिकारों से वंचित रखना और उल्लंघन।
    • बच्चों के संरक्षण और विकास के लिये बनाए गए कानूनों का कार्यान्वयन नहीं करना।
    • नीति निर्णयों, दिशा-निर्देशों या कठिनाई के शमन पर लक्षित अनुदेशों का गैर-अनुपालन और बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना।

शिक्षा का अधिकार 

(Right to Education)

संवैधानिक पृष्ठभूमि:

  • भारतीय संविधान का भाग IV, राज्य नीति (DSDP) के निर्देशक सिद्धांतों के अनुच्छेद 45 और अनुच्छेद 39 (f) में राज्य द्वारा वित्त पोषित और समान एवं सुलभ शिक्षा का प्रावधान है।
  • शिक्षा के अधिकार पर पहला आधिकारिक दस्तावेज़ 1990 में राममूर्ति समिति की रिपोर्ट में पेश किया गया था।
  • उन्नीकृष्णन जेपी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य, 1993 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि शिक्षा अनुच्छेद 21 से मौलिक अधिकार है।
  • इसी संबंध में तापस मजूमदार समिति (1999) की स्थापना की गई, जिसमें अनुच्छेद 21-A के सम्मिलन को शामिल किया गया।
  • 2002 में 86वें संविधान संशोधन अधिनियम के द्वारा शिक्षा के अधिकार को संविधान के भाग III में एक मौलिक अधिकार प्रदान किया गया।
    • अनुच्छेद 21-A में शिक्षा के अधिकार को 6-14 साल के बच्चों के लिये एक मौलिक अधिकार बनाया गया है।
    • इसने शिक्षा का अधिकार विधेयक 2008 के लिये अनुवर्ती कानून प्रदान किया जिसने 2009 में अधिनियम का रूप धारण दिया।

RTE अधिनियम, 2009 की विशेषताएँ:

  • 2 दिसंबर, 2002 को संविधान में 86वाँ संशोधन किया गया और इसके अनुच्छेद 21ए के तहत शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है।
  • इस मूल अधिकार के क्रियान्वयन हेतु वर्ष 2009 में भारत सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक युगांतकारी कदम उठाते हुए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम (the Right of Children to Free and Compulsory Education Act) पारित किया।
  • इसके तहत 6-14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे के लिये शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में अंगीकृत किया गया।
  • शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत 25 फीसदी सीटें वंचित वर्ग के बच्चों के लिये आरक्षित करना एक अनिवार्य शर्त है, इनमें शामिल हैं:
    • अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs)
    • सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग
    • निःशक्तजन

बच्चों से संबंधित प्रावधान:

  • यह गैर-प्रवेश दिये गए बच्‍चे को उचित आयु कक्षा में प्रवेश किये जाने का प्रावधान करता है।
  • इसमें ‘नो डिटेंशन पॉलिसी’ का भी एक खंड शामिल था, जिसे बच्चों के नि: शुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019 के तहत हटा दिया गया।
  • यह बच्चे को बाल-सुलभ और बाल-केंद्रित शिक्षा की प्रणाली के माध्यम से भय, आघात और चिंता से मुक्त बनाने पर केंद्रित है।

अध्यापकों से संबंधित प्रावधान:

  • यह स्थानीय प्राधिकरण, राज्य विधानसभा और संसदीय चुनावों, आपदा राहत कार्यों तथा जनगणना के अलावा गैर-शैक्षणिक कार्यों के लिये शिक्षकों की तैनाती पर प्रतिबंध लगाने को भी निषिद्ध करता है।
  • यह शिक्षकों की नियुक्ति के लिये अपेक्षित प्रविष्टि और शैक्षणिक योग्यता का प्रावधान करता है।
  • यह केंद्र और राज्य सरकारों के बीच वित्तीय एवं अन्य ज़िम्मेदारियों को साझा करने के बारे में भी चर्चा करता है।
  • यह निम्नलिखित मानदंडों और मानकों से संबंधित है:
    • शिष्य-शिक्षक अनुपात (Pupil-Teacher Ratios-PTR)
    • स्कूलों के भवन एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं हेतु उच्च स्तरीय व्यवस्थाएँ करना
    • शिक्षकों एवं स्कूल के अन्य कर्मचारियों के लिये काम के घंटे तय करना 

यह निम्नलिखित को निषिद्ध करता है:

  • शारीरिक दंड और मानसिक उत्पीड़न।
  • बच्चों के प्रवेश के लिये स्क्रीनिंग प्रक्रिया।
  • प्रति व्यक्ति शुल्क (Capitation fee)।
  • शिक्षकों द्वारा निजी ट्यूशन।
  • बिना मान्यता के स्कूलों का संचालन।

आगे की राह:

RTE अधिनियम के लागू होने के बाद दस साल से अधिक का समय बीत गया है, लेकिन अभी भी इस अधिनियम को अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये एक लंबा रास्ता तय करना है। एक अनुकूल वातावरण का निर्माण और संसाधनों की आपूर्ति देशवासियों के साथ-साथ पूरे देश के लिये एक बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त करेगी।

स्रोत: द हिंदू


‘समाधान से विकास’

प्रीलिम्स के लिये 

वाह्य विकास शुल्क, अवसंरचनात्मक विकास शुल्क 

मेन्स के लिये 

‘समाधान से विकास’ योजना की आवश्यकता व महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने वाह्य विकास शुल्क (External Development Charges-EDC) और अवसंरचनात्मक विकास शुल्क (Infrastructural Development Charges-IDC) की लंबित देयताओं की एकमुश्त वसूली के लिये  'समाधान से विकास' नामक  योजना शुरू की है।

प्रमुख बिंदु 

  • इस योजना को केंद्रीय योजना विवाद से विश्वास’ के तर्ज़ पर विकसित किया गया है। 
  • इस योजना के समान ही वर्ष 2018 में वाह्य विकास शुल्क पुनर्निर्धारण नीति प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया गया था। 
  • हरियाणा में सैकड़ों रियल एस्टेट निर्माताओं को राज्य सरकार को वाह्य विकास शुल्क व अवसंरचनात्मक विकास शुल्क के रूप में लगभग 10,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना शेष है। 

वाह्य विकास शुल्क

  • यह शुल्क भवन निर्माताओं द्वारा विकसित सड़कें, पानी और बिजली की आपूर्ति, भू-निर्माण, जल निकासी, सीवेज सिस्टम के रखरखाव और अपशिष्ट प्रबंधन सहित विकसित परियोजनाओं की परिधि के भीतर नागरिक सुविधाओं के रखरखाव के लिये विकास प्राधिकरणों को भुगतान किया जाता है।
  • वाह्य विकास शुल्क का निर्धारण विकास प्राधिकरणों के अधिकारियों द्वारा किया जाता है।

अवसंरचनात्मक विकास शुल्क

  • यह भवन निर्माताओं द्वारा राज्य में प्रमुख बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं के विकास के लिये भुगतान किये जाने वाले शुल्क हैं। जिसमें राजमार्ग, पुल सहित परिवहन नेटवर्क का निर्माण शामिल है। 

हरियाणा में विधिक प्रावधान 

  • हरियाणा विकास और शहरी क्षेत्रों के नियमन (Haryana Development and Regulation of Urban Areas Rules), 1976 के अनुसार, एक लाइसेंसधारी भवन निर्माता को वाह्य विकास शुल्क का भुगतान तय मानदंडों के आधार पर करना होगा। 
  • यदि भवन निर्माता वाह्य विकास शुल्क/ अवसंरचनात्मक विकास शुल्क जमा नहीं करता है और न ही वाह्य विकास शुल्क पुनर्निर्धारण नीति का लाभ उठाता है, तो नगर एवं ग्राम नियोजन विकास विभाग द्वारा एक कारण बताओ नोटिस (show cause notice) जारी किया जाता है, जिसमें ऐसे डिफॉल्टरों को EDC/IDC का भुगतान न करने पर बैंक गारंटी को रद्द करने की चेतावनी दी जाती है। 
  • भवन खरीदारों के हितों को सुरक्षित रखने और भविष्य में किसी भी कदाचार व् धोखाधड़ी से निपटने के लिये परियोजना के प्रारंभ होने की तारीख से 90 दिनों के भीतर भवन निर्माताओं को 15 प्रतिशत की बैंक गारंटी का दावा प्रस्तुत करना पड़ता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन

प्रीलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद  

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार 

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र संघ की 75 वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘संयुक्त राष्ट्र ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ (UN Draft Declaration) के पूरा होने की उम्मीद है, परंतु इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार प्रक्रिया के धीमे होने की संभावना भी है। 

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर पर हस्ताक्षर करने की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर ‘यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन’ पर हस्ताक्षर किये जाने थे लेकिन घोषणा में देरी हुई क्योंकि सभी सदस्य देश अभी तक किसी  एक समझौते तक नहीं पहुंच सके।
  • संयुक्त राष्ट्र यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन, संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांतों के पुनर्मूल्यांकन का एक शक्तिशाली उपकरण है। 
  • 75 वर्ष पूर्व द्वितीय विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में ‘नवीन विश्व व्यवस्था’ (New World Order) की दिशा में 24 अक्तूबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी।

यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन:

  • यूएन ड्राफ्ट डिक्लेरेशन में 12 ऐसी प्रतिबद्धताओं को निर्धारित किया गया है;
    • हम किसी को पीछे नहीं छोड़ेंगे; 
    • हम अपने ग्रह की रक्षा करेंगे; 
    • हम शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये कार्य करेंगे; 
    • हम अंतर्राष्ट्रीय नियमों और मानदंडों का पालन करेंगे; 
    • हम महिलाओं और लड़कियों को केंद्र में रखेंगे;
    • हम विश्वास पैदा करेंगे; 
    • हम सभी के लाभ के लिये नवीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग को बढ़ावा देंगे;
    • हम संयुक्त राष्ट्र को आवश्यक सुधार करेंगे; 
    • हम वित्तपोषण सुनिश्चित करेंगे; 
    • हम साझेदारी को बढ़ावा देंगे; 
    • हम युवाओं को सुनेंगे तथा उनके साथ कार्य करेंगे; 
    • हम भविष्य में अधिक तैयार रहेंगे।

संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार:

  • संयुक्त राष्ट्र संघ मसौदे के माध्यम के संयुक्त राष्ट्र के तीन प्रमुख अंगों के सुधार की मांग की जा रही है: 
    • सुरक्षा परिषद (Security Council) 
    • महासभा (General Assembly) 
    • आर्थिक और सामाजिक परिषद (Economic and Social Council)।

महासभा द्वारा सुधारों को पहल:

  • वर्ष 1992 का प्रस्ताव:
    • वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में एक प्रस्ताव को स्वीकृत किया गया। प्रस्ताव में तीन मुख्य शिकायतें उल्लिखित है:
    • सुरक्षा परिषद् अब राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रतिनिधितत्त्व नहीं करती।
    • इसके निर्णयों पर पश्चिमी मूल्यों और हितों का प्रभाव होता है। 
    • सुरक्षा परिषद् में समान प्रतिनिधित्त्व का अभाव है।
  • वर्ष 2005 का संकल्प:
    • सितंबर, 2005 में महासभा द्वारा एक संकल्प के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र संघ की सैन्य शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के प्रति मज़बूत इच्छा व्यक्त की गई । 
    • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह संकल्प इराक युद्ध (वर्ष 2003) के दौरान संयुक्त राष्ट्र द्वरा लिये गए एकतरफा निर्णयों की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग के बाद अपनाया गया था।
  • वर्ष 2008 का प्रस्ताव:
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सितंबर 2008 को होने वाली अपनी पूर्ण बैठक (Plenary Meeting) में विगत प्रस्तावों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्य  संख्या में वृद्धि के सवाल पर अंतर-सरकारी वार्ता को आगे बढ़ाने का निर्णय किया गया। 

सुधारों की आवश्यकता:

  • अपर्याप्त प्रतिनिधितत्त्व:
    • संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख निकायों जैसे सुरक्षा परिषद आदि में विकासशील या उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का पर्याप्त प्रतिनिधित्त्व नहीं है। विकासशील देशों में केवल चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है।
  • सदस्यों की संख्या में वृद्धि:
    • संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की संख्या में इसकी स्थापना के बाद से लगातार विस्तार देखने को मिला है तथा यह वर्तमान में 193 तक बढ़ गई है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार नहीं किया गया है।
  • एक तरफा सैन्य-अभियान:
    • संयुक्त राष्ट्र संघ के सैन्य मिशनों में पश्चिमी देशों का प्रभुत्त्व देखने को मिलता है, अत: इस संबंध में अधिक लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाए जाने की आवश्यकता है। 

भारत सरकार की नवीन पहल:

  • हाल ही में भारत वर्ष 2021-22 के लिये ‘सुरक्षा परिषद का गैर-स्थायी सदस्य’ चुना गया है। इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की दिशा में एक प्रमुख कदम के रूप में देखा जा रहा है।  
  • हाल ही में 'संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद' (United Nations Economic and Social Council- ECOSOC) की ‘उच्च-स्तरीय आभासी बैठक’ में भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘पोस्ट COVID-19 पीरियड’ में बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस आभासी बैठक की थीम; ‘COVID-19 के बाद बहुपक्षवाद: 75वीं वर्षगांठ पर हमें किस तरह के संयुक्त राष्ट्र की ज़रूरत है’ ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सुधारों पर केंद्रित थी।

निष्कर्ष:

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार पर बहस काफी समय से चल रही है किंतु अभी भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और स्थायी सदस्यों के बीच आम सहमति का न होना चिंता का विषय है। कथनों को मूर्त रूप देने और संयुक्त राष्ट्र की बहुसंख्यक सदस्यता की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उचित निर्णय लेने का यह उपयुक्त समय है।

स्रोत: द हिंदू


NATGRID और NCRB के मध्य समझौता ज्ञापन

प्रीलिम्स के लिये:

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो

मेन्स के लिये:

NATGRID का महत्त्व एवं चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड’ (National Intelligence Grid- NATGRID) ने ‘FIR’ तथा चोरी के वाहनों से संबंधित केंद्रीकृत ऑनलाइन डेटाबेस तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ (NCRB) के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है। 

प्रमुख बिंदु

CCTNS क्या है?

  • अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (Crime & Criminals Tracking Network and Systems-CCTNS) वर्ष 2009 मे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान के तहत स्थापित एक मिशन मोड प्रोजेक्ट है।
  • CCTNS का उद्देश्य ई-गवर्नेंस के सिद्धांतों को अपनाते हुए एक व्यापक और एकीकृत प्रणाली का निर्माण करना है। इसके माध्यम से पुलिस सेवाओं की दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये अपराधियों एवं अपराधों की एक राष्ट्रव्यापी आधारभूत नेटवर्क संरचना तैयार की जाएगी।
  • सभी राज्य पुलिस स्टेशनों को ‘अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और सिस्टम’ (CCTNS) में FIR संबंधी जानकारी दर्ज करना अनिवार्य होगा।
  • इस समझौते के माध्यम से NATGRID संदिग्ध व्यक्ति के विवरण के बारे में जानकारी जैसे- पिता का नाम, टेलीफोन नंबर और अन्य विवरण प्राप्त करने में सक्षम होगा।
  •  NATGRID खुफिया और जाँच एजेंसियों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा।

नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड (National Intelligence Grid- NATGRID)

  • NATGRID आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिये एक कार्यक्रम है। यह किसी संदिग्ध व्यक्ति के आव्रजन (प्रवेश और निकास), बैंकिंग और टेलीफोन विवरण से संबंधित डेटाबेस तक पहुँचने के लिये सुरक्षा तथा खुफिया एजेंसियों हेतु वन-स्टॉप गंतव्य होगा। 
  • गौरतलब है कि सुरक्षा तथा खुफिया एजेंसियाँ संदिग्ध व्यक्ति से संबंधित जानकारी एक सुरक्षित प्लेटफॉर्म से प्राप्त करने में सक्षम होंगी। 
  • इस कार्यक्रम को 31 दिसंबर, 2020 तक क्रियान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 
  • भारत में 26/11 के आतंकवादी हमले के दौरान सूचनाओं के संग्रहण के अभाव की बात सामने आई। 
  • इस हमले का मास्टरमाइंड डेविड हेडली वर्ष 2006 से 2009 के बीच हमले की योजनाओं को मूर्तरूप प्रदान करने हेतु कई बार भारत आया लेकिन उसके आवागमन की किसी भी सूचना का विश्लेषण नहीं किया जा सका।
  • यह संदिग्ध आतंकवादियों को ट्रैक करने और आतंकवादी हमलों को रोकने में विभिन्न खुफिया एवं प्रवर्तन एजेंसियों की सहायता करेगा। 
  • NATGRID द्वारा बिग डेटा और एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का उपयोग करते हुए डेटा का बड़ी मात्रा में अध्ययन एवं विश्लेषण किया जाएगा। 
  • NATGRID द्वारा प्राप्त सूचनाओं के माध्यम से कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ संदिग्ध गतिविधियों की जाँच करने में सक्षम होंगी। 

वर्तमान स्थिति

  • वर्तमान समय में, सुरक्षा एजेंसियाँ किसी एयरलाइन या टेलीफोन कंपनी से संदिग्ध व्यक्ति से संबंधित सूचना प्राप्त करने हेतु सीधे इन कंपनियों से संपर्क करती हैं। ये सूचनाएँ अंतर्राष्ट्रीय सर्वरों जैसे- गूगल (Google) आदि के माध्यम से साझा की जाती हैं। 
  • NATGRID यह सुनिश्चित करेगा कि इस तरह की जानकारी एक सुरक्षित मंच के माध्यम से साझा की जाए ताकि सूचनाओं की गोपनीयता सुनिश्चित की जा सके।

स्रोत: द हिंदू


ब्लैकरॉक एंड्रॉइड मैलवेयर

प्रीलिम्स के लिये

ब्लैकरॉक तथा इससे संबंधित अन्य सभी मैलवेयर 

मेन्स के लिये

भारत की आंतरिक सुरक्षा में साइबर हमलों की चुनौती 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में थ्रेटफैब्रिक (ThreatFabric) नामक एक निजी कंपनी ने एंड्रॉइड फोन उपयोगकर्त्ताओं के लिये ब्लैकरॉक (BlackRock) नाम के एक नए एंड्रॉइड मैलवेयर से संबंधित चेतावनी जारी की है, जो कि मोबाइल फोन उपयोगकर्त्ताओं की संवेदनशील जानकारी चुराने में सक्षम है।

प्रमुख बिंदु

  • इस मैलवेयर को लेकर जारी सूचना के अनुसार, यह अमेज़न, फेसबुक, जी-मेल (Gmail) और टिंडर (Tinder) समेत लगभग 377 स्मार्टफोन एप्लिकेशन से पासवर्ड और क्रेडिट कार्ड संबंधी संवेदनशील जानकारी प्राप्त करने में सक्षम है। 
  • चूँकि उपरोक्त सभी स्मार्टफोन एप्लिकेशन आम उपयोगकर्त्ताओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं, इसलिये साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ इस मैलवेयर से उत्पन्न खतरे को काफी गंभीर मान रहे हैं। 

ब्लैकरॉक एंड्रॉइड मैलवेयर 

  • साइबर विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लैकरॉक एंड्रॉइड मैलवेयर कोई नया मैलवेयर नहीं है, बल्कि यह ‘ज़ेरेस मैलवेयर (Xeres Malware) के लीक हुए सोर्स कोड (Source Code) पर आधारित है। 
  • ब्लैकरॉक और अन्य एंड्रॉइड बैंकिंग मैलवेयर के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि ये पहले से मौजूद सभी मैलवेयरों की तुलना में अधिक एप्स को लक्षित कर सकता है। 
  • ध्यातव्य है कि यह मैलवेयर किसी नए एप्लीकेशन को डाउनलोड करते समय ही उसी के साथ हमारे फोन में प्रवेश करता हैं।

ब्लैकरॉक एंड्रॉइड मैलवेयर का इतिहास

  • दरअसल सबसे पहले वर्ष 2016 के अंत में लोकीबॉट (LokiBot) नाम से एक मैलवेयर सामने आया था, कुछ समय पश्चात् जब मैलवेयर के निर्माता को विभिन्न मंचों पर प्रतिबंधित कर दिया गया तो उसने इस मैलवेयर के सोर्स कोड (Source Code) को लीक कर दिया।
  • वर्ष 2018 के शुरुआती माह में मिस्ट्रीबॉट (MysteryBot) मैलवेयर को सक्रिय होते हुए देखा गया, यद्यपि यह लोकीबॉट मैलवेयर पर ही आधारित था, किंतु इसे नए एंड्रॉइड संस्करणों (Android Versions) पर कार्य करने के लिये अपग्रेड किया गया था, साथ ही इसमें व्यक्तिगत जानकारी चोरी करने के लिये नई तकनीकों का भी इस्तेमाल किया गया था।
  • वर्ष 2018 की दूसरी तिमाही में मिस्ट्रीबॉट मैलवेयर के उत्तराधिकारी के रूप में पैरासाइट (Parasite) नाम से एक नया मैलवेयर सामने आया, जिसमें कुछ नए फीचर शामिल थे।
  • मई 2019 में एक्सरेस (Xeres) नाम से एक नया मैलवेयर आया, जो कि प्रत्यक्ष रूप से पैरासाइट मैलवेयर पर और अप्रत्यक्ष रूप से लोकीबॉट मैलवेयर पर आधारित थे, जब साइबर सुरक्षा से संबंधी विभिन्न मंचों पर यह मैलवेयर असफल रहा तो इसके निर्माता ने भी इसके सोर्स कोड (Source Code) को सार्वजनिक कर दिया।
  • अंततः एक्सरेस मैलवेयर के सोर्स कोड का प्रयोग करते हुए ब्लैकरॉक नाम का मैलवेयर बनाया गया, इस मैलवेयर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह सोशल मीडिया एप्स जैसे- फेसबुक तथा जी-मेल और नेटवर्किंग एप्स जैसे- टिंडर आदि को लक्षित करता है।

कैसे कार्य करता है यह मैलवेयर?

  • ब्लैकरॉक मैलवेयर भी अधिकांश एंड्रॉइड मैलवेयर की तरह ही कार्य करता है, एक बार फोन में इनस्टॉल (Install) होने के पश्चात् यह लक्षित एप की निगरानी करता है और जब उपयोगकर्त्ता लॉगिन अथवा क्रेडिट कार्ड संबंधी संवेदनशील जानकारी का प्रयोग करता है, तो यह मैलवेयर इस संवेदनशील जानकारी को अपने सर्वर के पास भेज देता है। 
  • यह मैलवेयर किसी भी एंड्रॉइड फोन के ‘एक्सेसिबिलिटी फीचर’ (Accessibility Feature) का उपयोग करता है।
  • जब मैलवेयर पहली बार एंड्राइड फोन पर लॉन्च किया जाता है, तो यह स्वयं ही एप्स की सूची से अपने आइकन (Icon) छिपा लेता है, जिसके कारण फोन उपयोगकर्त्ता के लिये यह अदृश्य हो जाता है और एक आम उपयोगकर्त्ता के लिये इसे पहचानना लगभग असंभव हो जाता है।
  • साइबर विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लैकरॉक मैलवेयर केवल ऑनलाइन बैंकिंग एप्स तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य श्रेणियों से संबंधित एप्स जैसे- व्यवसाय, कम्युनिकेशन, मनोरंजन, संगीत और समाचार एवं पत्रिका आदि को भी लक्षित कर सकता है।

क्या होता है मैलवेयर?

  • मैलवेयर, किसी कंप्यूटर को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से निर्मित किया जाने वाला एक प्रकार का सॉफ्टवेयर होता है, जो कंप्यूटर से संवेदनशील जानकारी चुरा सकता है और धीरे-धीरे कंप्यूटर को धीमा कर सकता है।
  • इस प्रकार के कंप्यूटर सॉफ्टवेयर का निर्माण ही किसी कंप्यूटर उपकरणों को नुकसान पहुँचाने और संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी चुराने के उद्देश्य से किया जाता है।
  • आमतौर पर मैलवेयर का निर्माण हैकर के समूहों द्वारा किया जाता है, जो कि अधिकांशतः इसका प्रयोग अधिक-से-अधिक पैसा कमाने के लिये करते हैं। इस कार्य के लिये वे या तो स्वयं मैलवेयर को अन्य कंप्यूटरों तक फैला सकते हैं अथवा वे इसे डार्क वेब (Dark Web) पर बेंच सकते हैं।
  • हालाँकि यह ज़रूरी नहीं है कि मैलवेयर का निर्माण सदैव नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से ही किया जाए, कभी-अभी साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ, सुरक्षा संबंधी परीक्षण करने के लिये भी मैलवेयर का निर्माण करते हैं, जिसे कार्य पूरा होने के पश्चात् नष्ट कर दिया जाता है।

बचाव संबंधी उपाय

  • यह नया मैलवेयर इतना शक्तिशाली है कि यह एंटी-वायरस एप्लीकेशन को भी असफल कर सकता है। साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों के अनुसार, मैलवेयर इनस्टॉल होने के पश्चात् यदि फोन उपयोगकर्त्ता किसी एंटी-वायरस सॉफ्टवेयर का प्रयोग करता है तो यह मैलवेयर उसे वापस होम स्क्रीन (Home Screen) पर रीडायरेक्ट कर देगा अर्थात उसे वापस होम स्क्रीन पर पहुँचा देगा।
  • आवश्यक है कि किसी भी एप को विश्वसनीय स्रोतों जैसे गूगल प्ले स्टोर (Google Play Store) आदि से ही डाउनलोड किया जाए, अथवा इस कार्य के लिये कंपनी की आधिकारिक वेबसाइट का प्रयोग किया जाए।
  • इसके अलावा एक मज़बूत पासवर्ड का प्रयोग किया जाए, स्पैम और फिशिंग आदि से सावधानी बरती जाए और किसी भी एप्लीकेशन को अनुमति देने से पूर्व उसके संबंध में जानकारी प्राप्त की जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


ट्रेनों की वास्तविक समय निगरानी के लिये रणनीति

प्रीलिम्स के लिये:

ट्रेनों की निगरानी प्रणाली, निर्भया फंड 

मेन्स के लिये

ट्रेनों की निगरानी प्रणाली का प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

रेल मंत्रालय द्वारा ट्रेनों की ‘वास्तविक समय की निगरानी’ (Surveillance) के लिये एक प्रबंधन रणनीति तैयार की जा रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह रणनीति एक उच्च-स्तरीय समिति द्वारा यात्री कोचों में लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर तैयार की जा रही है। 
  • भारतीय रेलवे द्वारा स्टेशनों और ट्रेनों की ‘वीडियो निगरानी प्रणाली’ (Video Surveillance System) की दिशा में मार्च 2021 तक 7,000 कोचों में निगरानी कैमरे लगाने की योजना है।
  • कोच में वीडियो निगरानी प्रणाली के लिये एक ‘मानक संचालन प्रक्रिया’ (Standard Operating Procedure- SOP) को अपनाया जाएगा। 
    • SOP में डेटा की अपलोडिंग, रिटेंशन और रिट्रीवल से संबंधित विवरण को शामिल किया जाएगा। 
    • सुरक्षा कर्मियों और रेलवे अधिकारियों द्वारा आवश्यकता के अनुसार प्रतिक्रिया की जाएगी।

वर्तमान निगरानी क्षमता:

  • वर्तमान में भारतीय रेलवे द्वारा 6,049 स्टेशनों पर ‘वीडियो निगरानी प्रणाली’ स्थापित की जा रही है, जिसमें उत्तर रेलवे के 725 स्टेशन तथा दक्षिण रेलवे के 573 स्टेशन शामिल है।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि प्रीमियम, मेल, एक्सप्रेस एवं उपनगरीय ट्रेनों के कोचों में सीसीटीवी कैमरे लगाने का कार्य पहले ही पूर्ण किया जा चुका है।

सरकार द्वारा किये गए अन्य प्रयास:

  • वर्ष 2013 में केंद्र सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा के लिये ‘निर्भया फंड’ का गठन किया गया था। शुरुआत में इसके तहत तत्कालीन वित्त मंत्री  ने 1000 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की थी। 
  • स्टेशनों और ट्रेनों के ‘लेडीज़ कोच’ में निगरानी बढ़ाने के लिये सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिये  निर्भया फंड का प्रयोग किया जा सकता है।

मद्रास उच्च न्यायालय का आदेश:

  • अगस्त 2019 में मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै बेंच ने दक्षिणी रेलवे की निगरानी प्रणाली के सर्वेक्षण के लिये विशेषज्ञों की एक टीम के गठन तथा महिलाओं, बच्चों और बुजुर्ग यात्रियों की सुरक्षा के लिये ट्रेन के डिब्बों में सीसीटीवी लगाने का निर्देश दिये थे।

 निगरानी प्रणाली का महत्त्व: 

  • वीडियो निगरानी प्रणाली को अपनाने से रेलवे स्टेशनों एवं ट्रेनों में हिंसक घटनाओं एवं अपराधों को रोकने में मदद मिलेगी तथा रेलवे परिसर में महिलाओं और बच्चों की पर्याप्त सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 जुलाई, 2020

प्लाज़्मा दान अभियान

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने दिल्ली स्थित एम्स (AIIMS) अस्पताल में ‘प्लाज़्मा दान अभियान’ की शुरुआत की है। इस अभियान की सह-आयोजक दिल्ली पुलिस है और इस दौरान दिल्ली पुलिस के COVID-19 से स्वस्थ हुए 26 पुलिसकर्मियों ने अपनी स्वेच्छा से प्लाज़्मा दान भी किया। गौरतलब है कि इस दौरान दिल्ली पुलिस का आभार व्यक्त करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि देश भर में COVID-19 महामारी के प्रसार रोकने को रोकने में सभी पुलिसकर्मियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। ध्यातव्य है कि दिल्ली में इस महामारी से लड़ते हुए 12 से अधिक पुलिसकर्मियों की मृत्यु हो गई है। गौरतलब है कि COVID-19 से ठीक हुए रोगियों से प्राप्त प्लाज़्मा कोरोना वायरस (COVID-19) के लिये सुरक्षात्मक एंटीबॉडी होती है। जब इसे संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कराया जाता है तब यह COVID-19 के रोगियों में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न कर सकता है। इसके संभावित लाभ को ध्यान में रखते हुए, प्लाज़्मा थैरेपी उन रोगियों को प्रदान की जाती है जो पारंपरिक उपचार से ठीक नहीं हो पा रहे हैं। कोई भी व्यक्ति जो COVID-19 से ठीक हो चुका है, और उपचार या होम आइसोलेशन के बाद 28 दिन पूरा कर चुका है, वह अपने रक्त प्लाज़्मा को दान कर सकता है। ध्यातव्य है कि प्लाज़्मा दान की प्रक्रिया 1-3 घंटे में पूरी हो जाती है और उसी दिन प्लाज़्मा को एकत्रित किया जा सकता है।

सी. एस. शेषाद्रि

हाल ही में प्रख्यात गणितज्ञ सी. एस. शेषाद्रि (C.S. Seshadri) का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। इस अवसर पर शोक व्यक्त करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा कि ‘‘प्रोफेसर सी. एस. शेषाद्रि के निधन से हमने एक महान बुद्धिजीवी को खो दिया है, जिन्होंने गणित में शानदार कार्य किये।’ सी. एस. शेषाद्रि का जन्म 29 फरवरी, 1932 को तमिलनाडु के कांचीपुरम में हुआ था। वर्ष 1953 में गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने वर्ष 1958 में पीएचडी (PhD) की डिग्री हासिल की, जिसके बाद उन्होंने एक शिक्षक के तौर पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) से अपने कैरियर की शुरुआत की। वर्ष 1984 में वे चेन्नई में इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज़ (Institute of Mathematical Sciences) में शामिल हो गए, जिसके बाद वर्ष 1989 में उन्हें SPIC साइंस फाउंडेशन के तहत ‘स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स’ शुरू करने का अवसर मिला, जो कि आगे चलकर चेन्नई गणित संस्थान (CMI) के रूप में विकसित हुआ है। CMI एक ऐसे अनूठे संस्थान के रूप में उभरा जो स्नातक स्तर की शिक्षा को अनुसंधान के साथ एकीकृत करने का प्रयास रहा है। प्रो. शेषाद्रि को बीजीय ज्यामिति (Algebraic Geometry) में उनके कार्य के लिये काफी सराहना मिली और उन्हें विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया।  उन्हें वर्ष 1988 में रॉयल सोसाइटी का फेलो चुना गया और वर्ष 2009 में पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया था।

‘मेडिकैब’ (MediCAB)

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास (IIT-M) द्वारा समर्थित एक स्टार्ट-अप ने ‘मेडिकैब’ (MediCAB) नाम से एक पोर्टेबल अस्पताल इकाई विकसित की है जिसे चार लोगों द्वारा मात्र दो घंटे के भीतर कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। ‘मेडिकैब’ (MediCAB) को हाल ही में केरल के वायनाड ज़िले में लॉन्च किया गया है, जहाँ इसका प्रयोग COVID-19 से संक्रमित रोगियों के इलाज हेतु किया जाएगा। ‘मेडिकैब’ (MediCAB) में कुल चार प्रकार के ज़ोन बने हुए हैं, इसमें एक डॉक्टर का कमरा, एक आइसोलेशन रूम, एक मेडिकल रूम और एक दो-बेड वाला ICU शामिल हैं। यह पोर्टेबल अस्पताल इकाई परिवहन की दृष्टि से भी काफी किफायती है और इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है। यह पोर्टेबल अस्पताल इकाई मौजूदा समय में महामारी से लड़ने में काफी मददगार साबित हो सकती है, साथ ही यह आने वाले समय में भारत की चिकित्सा अवसंरचना को मज़बूत करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि मौजूदा COVID-19 महामारी ने भारत समेत विश्व के विभिन्न देशों में आवश्यक चिकित्सा अवसंरचना की कमी को उजागर किया है और देश में आम लोगों को बुनियादी चिकित्सीय सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही है, ऐसे में आवश्यक है कि इस चुनौती से निपटने के लिये नवीनतम तकनीक पर ज़ोर दिया जाए।

तापमान में कमी के साथ COVID-19 के मामलों में भी वृद्धि 

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- भुवनेश्वर (IIT-Bhubaneswar) और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान-भुवनेश्वर (AIIMS-Bhubaneswar) द्वारा किये गए संयुक्त शोध के अनुसार, सर्दियों के दौरान तापमान में गिरावट कोरोना वायरस (COVID-19) के प्रसार में लाभदायक साबित हो सकती है। दोनों संस्थानों द्वारा किये गए शोध के अनुसार, सतह पर हवा का तापमान COVID-19 महामारी और इसके प्रसार से काफी निकटता से संबंधित है। शोध में सामने आया है कि कम तापमान और उच्च आर्द्रता वायरस के प्रसार में लाभदायक हैं, जबकि तापमान में वृद्धि से COVID-19 के मामलों में कमी देखने को मिलती है। गौरतलब है कि इस शोध के दौरान मुख्य तौर पर शोधकर्त्ताओं ने राष्ट्रीय स्तर पर COVID-19 और तापमान, सापेक्षिक आर्द्रता तथा सौर विकिरण जैसे पर्यावरणीय कारकों के बीच संबंधों का निरीक्षण करने का प्रयास किया था। इस शोध से स्पष्ट है कि मानसून के बाद सर्दियों में तापमान में कमी आने के साथ ही स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और नीति निर्माताओं के लिये नियंत्रण उपायों को लागू करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा।