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डार्क वेब: साइबर अपराध की काली दुनिया

  • 18 Feb 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

इंटरनेट के सदुपयोग और दुरुपयोग की बहस में डार्क वेब हमेशा से चर्चा का बिंदु रहा है। पिछले दिनों जब हैकरों ने कुछ वेबसाइटों के डेटा हैक कर लिये तब यह पुनः चर्चा में आ गया।

क्या है डार्क नेट?

  • इंटरनेट पर ऐसी कई वेबसाइटें हैं जो आमतौर पर प्रयोग किये जाने वाले गूगल, बिंग जैसे सर्च इंजनों और सामान्य ब्राउज़िंग के दायरे से परे होती हैं। इन्हें डार्क नेट या डीप नेट कहा जाता है।
  • सामान्य वेबसाइटों के विपरीत यह एक ऐसा नेटवर्क होता है जिस तक लोगों के चुनिंदा समूहों की पहुँच होती है और इस नेटवर्क तक विशिष्ट ऑथराइज़ेशन प्रक्रिया, सॉफ्टवेयर और कन्फिग्यूरेशन के माध्यम से ही पहुँचा जा सकता है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 देश में सभी प्रकार के प्रचलित साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिये वैधानिक रूपरेखा प्रदान करता है। ऐसे अपराधों के नोटिस में आने पर कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ इस कानून के अनुसार ही उचित कार्रवाइयाँ करती हैं।
  • एक्सेस (Access) के संदर्भ में इंटरनेट को निम्नलिखित तीन भागों में बाँटा जाता है-

1. सरफेस वेब (Surface Web)

  • यह इंटरनेट का वह भाग है जिसका आमतौर पर हम दिन-प्रतिदिन के कार्यों में प्रयोग करते हैं।
  • जैसे गूगल या याहू पर कुछ भी सर्च करते हैं तो हमें सर्च रिज़ल्ट्स प्राप्त होते हैं और इसके लिये किसी विशिष्ट अनुमति की आवश्यकता नहीं होती।
  • ऐसी वेबसाइटों की सर्च इंजनों द्वारा इंडेक्सिंग की जाती है। इसलिये इन तक सर्च इंजनों के माध्यम से पहुँचा जा सकता है।

2. डीप वेब (Deep Web)

  • इन तक केवल सर्च इंजन के सर्च परिणामों की सहायता से नहीं पहुँचा जा सकता।
  • डीप वेब के किसी डॉक्यूमेंट तक पहुँचने के लिये उसके URL एड्रेस पर जाकर लॉग-इन करना होगा, जिसके लिये पासवर्ड और यूज़र नेम का प्रयोग करना होगा।
  • जैसे-जीमेल अकाउंट, ब्लॉगिंग वेबसाइट, सरकारी प्रकाशन, अकादमिक डेटाबेस, वैज्ञानिक अनुसंधान आदि ऐसी ही वेबसाइट्स होती हैं जो अपने प्रकृति में वैधानिक हैं किंतु इन तक पहुँच के लिये एडमिन की अनुमति की आवश्यकता होती है।

3. डार्क वेब (Dark Web)

  • डार्क वेब अथवा डार्क नेट इंटरनेट का वह भाग है जिसे आमतौर पर प्रयुक्त किये जाने वाले सर्च इंजन से एक्सेस नहीं किया जा सकता।
  • इसका इस्तेमाल मानव तस्करी, मादक पदार्थों की खरीद और बिक्री, हथियारों की तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों में किया जाता है।
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार, 2015 से 2017 की अवधि में विभिन्न दवा कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा चार मामले दर्ज किये गए थे जिनमें नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों की बिक्री तथा खरीद के लिये ‘डार्क नेट’ का इस्तेमाल किया गया था।
  • डार्क वेब की साइट्स को टॉर एन्क्रिप्शन टूल की सहायता से छुपा दिया जाता है जिससे इन तक सामान्य सर्च इंजन से नहीं पहुँचा जा सकता।
  • इन तक पहुँच के लिये एक विशेष ब्राउज़र टॉर (TOR) का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिये ‘द ऑनियन राउटर’ (The Onion Router) शब्द का भी प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें एकल असुरक्षित सर्वर के विपरीत नोड्स के एक नेटवर्क का उपयोग करते हुए परत-दर-परत डेटा का एन्क्रिप्शन होता है। जिससे इसके प्रयोगकर्त्ताओं की गोपनीयता बनी रहती है।

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  • समग्र इंटरनेट का 96% भाग डार्क वेब से निर्मित है, जबकि सतही वेब केवल 4% है।
  • सिल्क रोड मार्केटप्लेस नामक वेबसाइट डार्क नेटवर्क का एक प्रसिद्ध उदाहरण है जिस पर हथियारों सहित विभिन्न प्रकार की अवैध वस्तुओं की खरीद और बिक्री की जाती थी।

स्रोत : पी.आई.बी. एवं द हिंदू

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