अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची
प्रीलिम्स के लियेअमूर्त सांस्कृतिक विरासत, यूनेस्को मेन्स के लियेविश्व धरोहर के संरक्षण में यूनेस्को की भूमिका, यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में होने के निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) ने अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage-ICH) की राष्ट्रीय सूची लॉन्च की है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि भारत में अनोखी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) परंपराओं का भंडार है, जिनमें से 13 को यूनेस्को (UNESCO) द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में भी मान्यता दी है।
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) की राष्ट्रीय सूची का उद्देश्य भारतीय अमूर्त विरासत में निहित भारतीय संस्कृति की विविधता को नई पहचान प्रदान करना है।
- इस राष्ट्रीय सूची का उद्देश्य राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के विभिन्न राज्यों में मौजूद अमूर्त सांस्कृतिक विरासत तत्त्वों के संबंध में जागरूकता बढ़ाना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
- उल्लेखनीय है कि यह पहल संस्कृति मंत्रालय के विज़न 2024 (Vision 2024) का एक हिस्सा भी है।
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये यूनेस्को के वर्ष 2003 के कन्वेंशन (Convention) का अनुसरण करते हुए संस्कृति मंत्रालय ने इस सूची को अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को प्रकट करने वाले पाँच व्यापक डोमेन में वर्गीकृत किया है-
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के एक वाहक के रूप में भाषा सहित मौखिक परंपराएँ और अभिव्यक्ति;
- प्रदर्शन कला;
- सामाजिक प्रथाएँ, अनुष्ठान और उत्सव;
- प्रकृति एवं ब्रह्मांड के विषय में ज्ञान तथा अभ्यास;
- पारंपरिक शिल्प कौशल।
- अब तक इस राष्ट्रीय सूची में 100 से अधिक अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (ICH) परंपराओं और तत्त्वों को शामिल किया गया है, इसमें भारत की 13 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें भी शामिल हैं जिन्हें यूनेस्को (UNESCO) ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप मान्यता दी है।
- संस्कृति मंत्रालय द्वारा इस राष्ट्रीय सूची को समय के साथ अपडेट किया जाएगा।
अमूर्त संस्कृति?
- अमूर्त संस्कृति किसी समुदाय, राष्ट्र आदि की वह निधि है जो सदियों से उस समुदाय या राष्ट्र के अवचेतन को अभिभूत करते हुए निरंतर समृद्ध होती रहती है।
- अमूर्त सांस्कृतिक समय के साथ अपनी समकालीन पीढि़यों की विशेषताओं को अपने में आत्मसात करते हुए मौजूदा पीढ़ी के लिये विरासत के रूप में उपलब्ध होती है।
- अमूर्त संस्कृति समाज की मानसिक चेतना का प्रतिबिंब है, जो कला, क्रिया या किसी अन्य रूप में अभिव्यक्त होती है।
- उदाहरणस्वरूप, योग इसी अभिव्यक्ति का एक रूप है। भारत में योग एक दर्शन भी है और जीवन पद्धति भी। यह विभिन्न शारीरिक क्रियाओं द्वारा व्यक्ति की भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।
यूनेस्को (UNESCO) और भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
- यूनेस्को की स्थापना वर्ष 1945 में स्थायी शांति बनाए रखने के रूप में "मानव जाति की बौद्धिक और नैतिक एकजुटता" को विकसित करने के लिये की गई थी।
- यूनेस्को सांस्कृतिक और प्राकृतिक महत्त्व के स्थलों को आधिकारिक तौर पर विश्व धरोहर की मान्यता प्रदान करती है।
- ध्यातव्य है कि ये स्थल ऐतिहासिक और पर्यावरण के लिहाज़ से भी महत्त्वपूर्ण होते हैं।
- भारत में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कुल 38 मूर्त विरासत धरोहर स्थल (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं और 13 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें हैं।
- यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल हैं (1) वैदिक जप की परंपरा (3) रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन (3) कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर (4) राममन, गढ़वाल हिमालय के धार्मिक त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान, भारत (5) मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक (6) कालबेलिया लोक गीत और राजस्थान के नृत्य (7) छऊ नृत्य (8) लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ (9) मणिपुर का संकीर्तन, पारंपरिक गायन, नगाडे और नृत्य (10) पंजाब के ठठेरों द्वारा बनाए जाने वाले पीतल और तांबे के बर्तन (11) योग (12) नवरोज़, नोवरूज़, नोवरोज़, नाउरोज़, नौरोज़, नौरेज़, नूरुज़, नोवरूज़, नवरूज़, नेवरूज़, नोवरूज़ (13) कुंभ मेला।
स्रोत: पी.आई.बी
गोदावरी वैली एरिया और COVID-19
प्रीलिम्स के लियेगोदावरी नदी घाटी, गोदावरी नदी, पोलावरम सिंचाई परियोजना मेन्स के लियेआदिवासी आबादी से संबंधित मुद्दे, सिंचाई परियोजना और उनसे जुड़े कुछ संवेदनशील विषय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गोदावरी नदी घाटी क्षेत्र में निवास करने वाली आदिवासी आबादी के बीच COVID-19 परीक्षण करने के लिये आंध्र प्रदेश सरकार को निर्देश देने के लिये सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है।
प्रमुख बिंदु
- याचिका में कहा गया है कि गोदावरी नदी घाटी क्षेत्र, जहाँ आदिवासी आबादी निवास कर रही हैं, पोलावरम सिंचाई परियोजना (Polavaram Irrigation Project) वाले क्षेत्र के समीप है।
- गोदावरी नदी घाटी क्षेत्र आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तक विस्तारित है।
- आंध्र प्रदेश में गोदावरी नदी पर पोलावरम सिंचाई परियोजना के निर्माण के लिये COVID-19 महामारी के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के आदेश का स्पष्ट रूप से उल्लंघन किया गया है।
- अभी भी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक परियोजना स्थल पर बिना सैनिटाइज़र और मास्क के काम कर रहे हैं। समस्या यह है कि ये श्रमिक आदिवासी आबादी के करीब निवास करते है।
- आदिवासी लोगों, जो घने जंगलों और नदी घाटी के अन्य अनुसूचित क्षेत्रों में रहते हैं, के बीच जागरूकता की कमी ने उनके बीच COVID-19 संक्रमण के खतरे को और अधिक गंभीर बना दिया है।
- कोंडा रेडिस (Konda reddis), कोयस (Koyas) और कोलम (Kolam) गोदावरी घाटी में रहने वाली लोकप्रिय जनजातियाँ हैं। कोंडा रेड्डी और कोलम विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTG) का हिस्सा हैं।
विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह
(Particularly Vulnerable Tribal Groups- PVTGs)
- PVTGs (पूर्व में आदिम जनजातीय समूह/PTG के रूप में वर्गीकृत) भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला वर्गीकरण है जो विशेष रूप से निम्न विकास सूचकांकों वाले कुछ समुदायों की स्थितियों में सुधार को सक्षम करने के उद्देश्य से सृजित किया गया है।
- इसका सृजन ढेबर आयोग की रिपोर्ट (1960) के आधार पर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जनजातियों के विकास दर में असमानता थी।
- ऐसे समूह की प्रमुख विशेषताओं में आदिम-कृषि प्रणाली का प्रचलन, शिकार और खाद्य संग्रहण का अभ्यास, शून्य या नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि, अन्य जनजातीय समूहों की तुलना में साक्षरता का अत्यंत निम्न स्तर आदि शामिल हैं।
- 1000 से कम व्यक्तियों की आबादी वाले PVTGs हैं: बिरजिया (झारखंड), सेंटीनलीज़, ग्रेट अंडमानी, ओंगे, शोम्पेन (अंडमान, निकोबार), बिरहोर (छतीसगढ़, झारखंड), असुर (बिहार, झारखंड), मनकीडिया (ओडिशा), चोलानैक्कन (केरल), सावर (बिहार), राजी (उत्तराखंड), सौरिया पहाड़िया (बिहार, झारखंड), कोरवा (बिहार, झारखंड), टोडा (कर्नाटक), कोटा (तमिलनाडु)।
गोदावरी नदी
- यह सबसे बड़ी प्रायद्वीपीय नदी है। यह महाराष्ट्र के नासिक ज़िले में पश्चिम घाट की ढालों से निकलती है।
- इसकी लंबाई लगभग 1,500 कि.मी. है। यह बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। प्रायद्वीपीय नदियों में इसका अपवाह तंत्र सबसे बड़ा है। इसकी द्रोणी महाराष्ट्र (नदी द्रोणी का 50 प्रतिशत भाग), मध्य प्रदेश, उड़ीसा तथा आंध्र प्रदेश में स्थित है।
- गोदावरी में अनेक सहायक नदियाँ मिलती हैं, जैसे- पूर्णा, वर्धा, प्राणहिता, मंजरा, वेनगंगा तथा पेनगंगा। इनमें से अंतिम तीनों सहायक नदियाँ बहुत बड़ी हैं। बड़े आकार और विस्तार के कारण इसे ‘दक्षिण गंगा’ के नाम से भी जाना जाता है।
स्रोत: द हिंदू
STPI परिसर से संचालित IT कंपनियों को किराये पर छूट
प्रीलिम्स के लियेभारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क मेन्स के लियेभारतीय सेवा क्षेत्र पर COVID-19 के प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने देश में ‘भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क’ (Software Technology Parks of India- STPI) परिसर में चल रही सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology- IT) से जुड़ी हुई छोटी कंपनियों को चार माह के भवन किराये में छूट देने की घोषणा की है।
मुख्य बिंदु:
- सरकार की इस घोषणा के अनुसार, भारत के विभिन्न शहरों में STPI परिसर में संचालित होने वाली IT क्षेत्र की कंपनियों को 1 मार्च, 2020 से लेकर 31 जून, 2020 तक कोई किराया नहीं देना होगा।
- ध्यातव्य है कि इस पहल के तहत लाभ प्राप्त करने वाली कंपनियों में अधिकांश ‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम’ (Micro, Small and Medium Enterprises- MSME) या स्टार्टअप (Startup) हैं।
- इस पहल के तहत सरकार द्वारा IT कंपनियों को चार महीनों के किराये में दी गई छूट की कुल अनुमानित लागत लगभग 5 करोड़ रुपए है।
छूट का लाभ:
- सरकार की इस पहल से देशभर के 60 STPI सेंटरों से संचालित होने वाली लगभग 200 IT, MSME कंपनियों को लाभ होगा।
- IT क्षेत्र की कंपनियां भारतीय सेवा क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, हाल ही में जारी एक आँकड़े के अनुसार, COVID-19 की महामारी और इसके प्रसार को रोकने के लिये देश में लागू लॉकडाउन के कारण भारतीय सेवा क्षेत्र के मार्च 2020 के व्यापार में गिरावट देखने को मिली थी।
- ‘केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ (Ministry of Electronics and Information Technology- MeitY) के अनुसार, सरकार के इस प्रयास का उद्देश्य IT क्षेत्र के लगभग 3000 कर्मचारियों के हितों की रक्षा करना है, जो सीधे तौर पर इन MSMEs और स्टार्टअप कंपनियों से जुड़े हुए हैं।
- भारत में स्थापित IT कंपनियों के स्थानीय व्यापार के साथ इन कंपनियों के लिये पश्चिमी देश एक बड़ा बाज़ार उपलब्ध कराते हैं परंतु वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में लागू लॉकडाउन का प्रभाव इन कंपनियों के व्यापार पर पड़ा है, जिससे कंपनियाँ इस दबाव को कम करने के लिये कर्मचारियों की छंटनी करने को विवश हुई थी।
- सरकार की इस पहल से IT कंपनियों के दबाव में कमी के साथ सरकार के समर्थन से औद्योगिक क्षेत्र के मनोबल में वृद्धि होगी।
‘भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क’
(Software Technology Parks of India- STPI):
- ‘भारतीय सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क’ की स्थापना वर्ष 1991 में ‘केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ के तहत एक स्वायत्त संस्था के रूप में की गई थी।
- STPI का मुख्य उद्देश्य देश में सॉफ्टवेयर के निर्यात को बढ़ावा देना है।
- STPI के तहत सॉफ्टवेयर निर्यात से जुड़ी कंपनियों को वैधानिक सेवाएँ डेटा संचार सेवाएँ, इंक्यूबेशन सुविधाएँ (Incubation Facilities), प्रशिक्षण और मूल्यवर्द्धित सेवाओं आदि की सुविधा प्रदान की जाती हैं।
- भारत में ‘लघु और माध्यम उद्यमों’ (Small and Medium Enterprises- SME) तथा स्टार्टअप के विकास के साथ सॉफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र की वृद्धि में STPI का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है।
- वर्तमान में STPI के तहत 5000 से अधिक IT कंपनियों का पंजीकरण किया गया है।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 में STPI के तहत पंजीकृत IT/ITES कंपनियों का कुल निर्यात वित्तीय वर्ष 2017-18 के 3,75,988 करोड़ रुपए से बढ़कर 4,21,103 करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
- STPI का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
- वर्तमान में देश में STPI के कुल 60 केंद्र/उप-केंद्र सक्रिय हैं जिनमें से 51 केंद्र टियर (Tier)-II और टियर (Tier)-III के शहरों में स्थित हैं।
स्रोत: द हिंदू
COVID-19 और जल संकट
प्रीलिम्स के लियेजल प्रतिबल, COVID-19 मेन्स के लियेजल संकट, COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय’ (Ministry of Health and Family Welfare- MoHFW) ने देश में COVID-19 के प्रसार पर नियंत्रण के लिये लागू लॉकडाउन के दौरान स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता और इसके प्रबंधन को सुनिश्चित करने हेतु राज्य सरकारों के लिये आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
मुख्य बिंदु:
- सरकार के अनुसार, साबुन से नियमित रूप से हाथ धोने को कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का सबसे प्रभावी उपाय माना गया है।
- इस बात को ध्यान में रखते हुए MoHFW ने देश के सभी के लिये स्वच्छ और पीने योग्य जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर बल दिया है।
आवश्यक दिशा-निर्देश:
- केंद्र सरकार ने राज्यों के ‘जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग’ (Public Health Engineering Departments) और अन्य संबंधित बोर्डों तथा निगमों को स्वच्छ पेयजल के संकट से जूझ रहे क्षेत्रों में जल की आपूर्ति बढ़ाने के प्रयासों को प्राथमिकता देने को कहा है।
- केंद्र सरकार ने इस दौरान अधिकारियों को समाज के कमज़ोर वर्ग के लोगों जैसे- राहत शिविरों, क्वारंटीन सेंटरों (Quarantine Centers), अस्पतालों, वृद्धाश्रमों, झुग्गी-बस्तियों में रह रहे लोगों का विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया है।
- राज्य सरकारों को इसके लिये आवश्यक रसायनों जैसे- क्लोरीन टैबलेट, ब्लीचिंग पाउडर, सोडियम हाइपोक्लोराइट घोल और फिटकरी (Alum) आदि की उपलब्धता का आकलन करने की सलाह दी गई है। (इन उत्पादों को ‘अति आवश्यक वस्तु अधिनियम , 1955’ के तहत अति आवश्यक वस्तुओं की सूची में रखा गया है।)
- इस दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ (Social Distancing) के नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित करने हेतु सार्वजनिक जल आपूर्ति स्रोतों (नल, टैंकर आदि) पर लोगों की संख्या बढ़ने की स्थिति में जल आपूर्ति के समय में वृद्धि करने के निर्देश दिये गए हैं।
- साथ ही राज्य सरकारों को ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्ट किट भेजकर जल संसाधनों की नियमित जाँच करने और 24 घंटे जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाने के निर्देश दिये गए हैं।
चुनौतियाँ:
- हालाँकि हाथों की स्वच्छता या हाथों को नियमित रूप से साफ रखने को कोरोनावायरस से बचने का एक प्रभावी तरीका माना गया है परंतु सभी के लिये स्वच्छ जल का उपलब्ध न होना पिछले कई वर्षों से देश के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- वर्ष 2017 में ‘केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय’ (वर्ष 2019 में ‘केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय’ में विलय से पूर्व) द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों के अनुसार, देश में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2001 (1820 घनमीटर) से घटकर वर्ष 2011 में 1545 घनमीटर तक पहुँच गई थी।
- आँकड़ों के अनुसार, प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल की उपलब्धता वर्ष 2025 तक घटकर 1341 घनमीटर और वर्ष 2050 तक 1140 घनमीटर तक पहुँच सकती है।
- सरकार के अनुसार, वर्षा में उच्च अस्थाई और क्षेत्रीय भिन्नताओं के कारण देश के कई हिस्सों में जल की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से बहुत नीचे है और ऐसे क्षेत्रों को जल प्रतिबल या जल संकट के क्षेत्रों के रूप में रखा जा सकता है।
- जल प्रतिबल (Water Stressed): ऐसे क्षेत्र जहाँ वार्षिक रूप से प्रतिव्यक्ति जल की औसत उपलब्धता 1700 घनमीटर से कम हो।
- पानी की कमी (Water Scarce): ऐसे क्षेत्र जहाँ वार्षिक रूप से प्रतिव्यक्ति जल की औसत उपलब्धता 1000 घनमीटर से कम हो।
- जल और स्वच्छता पर काम करने वाली संस्था ‘वाटरऐड’ (WaterAid) द्वारा जारी वर्ष 2018 की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को विश्व में शीर्ष उन 10 देशों की सूची में रखा गया था जिनमें लोगों के घरों के नजदीक स्वच्छ जल की उपलब्धता सबसे कम है।
- रिपोर्ट के अनुसार, भारत के संदर्भ में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 16.3 करोड़ बताई गई थी, जिनके घरों के नजदीक स्वच्छ जल उपलब्ध नहीं हो पाता।
जल संकट के कारण:
- भारत के वर्तमान जल संकट के प्राकृतिक कारणों में पिछले कुछ वर्षों में अनियमित और कम वर्ष का होना, सूखा और जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव प्रमुख हैं।
- मानवीय गतिविधियों के कारण प्राकृतिक जल स्रोतों के प्रदूषण।
- साथ ही कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्रों में उत्पादन में वृद्धि के लिये जल के अनियंत्रित दोहन ने जल संकट में कई गुना वृद्धि की है।
जल प्रबंधन और भारतीय संविधान :
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-246 के तहत राज्यों तथा केंद्र के उत्तरदायित्त्वों को तीन सूचियों में विभाजित किया गया है।
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
- भारतीय संविधान में जल को राज्य सूची में 17वीं प्रविष्टि के रूप में शामिल किया गया है, इसके अनुसार, जल, अर्थात् जल आपूर्ति, सिंचाई और नहरें, जल निकासी और तटबंध, जल संग्रहण और जल शक्ति, जो कि सूची-I (संघ सूची) की प्रविष्टि 56 के प्रावधानों के अधीन है।
आगे की राह:
- वर्तमान में COVID-19 से सबसे अधिक खतरा आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग को है, इस समूह के लोग प्रायः घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ सबके लिये स्वच्छ जल की उपलब्धता बहुत कठिन है।
- ऐसे में क्षेत्रीय प्रशासन द्वारा प्रत्येक परिवार तक स्वच्छ जल की आपूर्ति को सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- स्वयं सहायता समूहों एवं अन्य हितधारकों के सहयोग से अति आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के साथ COVID-19 के बारे में जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिये, जिससे इस बीमारी से संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें चिकित्सीय सहायता उपलब्ध कराई जा सके।
- जल का अनियंत्रित दोहन और प्रदूषण वर्तमान जल संकट का सबसे प्रमुख कारण हैं अतः स्वच्छ जल की आपूर्ति को सुनिश्चित करने हेतु इस पर नियंत्रण करना बहुत ही आवश्यक है।
- प्राकृतिक जल संरक्षण और जल के पुनर्प्रयोग (Water Recycling) को बढ़ावा देकर जल संकट के दबाव को कम किया जा सकता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के नियमों में सख्ती
प्रीलिम्स के लियेप्रत्यक्ष विदेशी निवेश, COVID-19 मेन्स के लियेप्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर भारत की नीति, COVID-19 से उत्पन्न हुई चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई चुनौतियों को देखते हुए भारत सरकार ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी कंपनियों में भारत की थल सीमा (Land Border) से जुड़े पड़ोसी देशों से ‘प्रत्यक्ष विदेशी निवेश’ (Foreign Direct Investment- FDI) के लिये सरकार की अनुमति को अनिवार्य कर दिया है।
मुख्य बिंदु:
- उद्योग संवर्द्धन और आतंरिक व्यापार विभाग द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, ऐसे सभी विदेशी निवेश के लिये सरकार की अनुमति की आवश्यकता होगी जिनमें निवेश करने वाली संस्थाएँ या निवेश से लाभ प्राप्त करने वाला व्यक्ति भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों से हो।
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हालाँकि इस परिवर्तन के बाद भी अन्य विदेशी संस्थाएँ या नागरिक (इस परिवर्तन के तहत चिन्हित देशों के अतिरिक्त) FDI नियमों के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों/गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में पहले की तरह निवेश कर सकेंगे।
- वर्तमान में भारत 7 देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, चीन, भूटान, बांग्लादेश और म्यांमार से थल सीमाएँ साझा करता है।
- इसके अतिरिक्त वर्तमान संशोधन के बाद पाकिस्तान का कोई नागरिक या संस्थान रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और FDI नियमों के तहत प्रतिबंधित क्षेत्रों/गतिविधियों के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में सरकार की अनुमति के बाद ही निवेश कर सकेगा।
विदेशी निवेश पर सख्ती के कारण:
- केंद्र सरकार द्वारा यह निर्णय COVID-19 के कारण उत्पन्न हुए आर्थिक दबाव के बीच भारतीय कंपनियों के ‘अवसरवादी अधिग्रहण’ (Opportunistic Takeovers/Acquisitions) को रोकने के लिये लिया गया है।
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हाल ही में हाऊसिंग फाइनेंस कंपनी एचडीएफसी लिमिटेड (HDFC Ltd.) ने जानकारी दी थी कि वर्तमान में कंपनी में चीन के केंद्रीय बैंक ‘पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना’ (People’s Bank of China) की हिस्सेदारी बढ़कर 1.1% तक पहुँच गई।
- भारत की कंपनियों में चीनी निजी क्षेत्र द्वारा निवेश में वृद्धि भारतीय नियामकों के लिये एक बड़ी चुनौती बन गई है, क्योंकि चीनी सरकार के नियंत्रण की कंपनियों और निजी क्षेत्र में अंतर कर पाना बहुत कठिन है।
- चीनी निजी क्षेत्र की कई कंपनियाँ चीनी सरकार की योजनाओं और सेंसरशिप (Censorship) जैसे प्रयासों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
भारत में चीनी निवेश:
- हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014 तक भारतीय कंपनियों में कुछ चीनी निवेश मात्र 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जिसमें से अधिकांश चीन की सरकारी कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure) क्षेत्र में किया गया निवेश था।
- वर्ष 2017 तक यह निवेश पाँच गुना से अधिक की वृद्धि के साथ 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और मार्च, 2020 में भारतीय कंपनियों में चीनी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं का निवेश बढ़कर 26 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था।
- वर्ष 2017 शंघाई की ‘फोसुन’ (Fosun) नामक कंपनी द्वारा हैदराबाद स्थित ‘ग्लैंड फार्मा’ (Gland Farma) में 1.09 मिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश के साथ कंपनी में उसकी हिस्सेदारी बढ़कर 74% हो गई।
- पिछले कुछ वर्षों में चीन की निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भारत बाज़ार में दूरसंचार, पेट्रोकेमिकल, सॉफ्टवेयर और आईटी (IT) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में निवेश में वृद्धि की है।
- पिछले कुछ वर्षों में भारत के मोबाइल उद्योग में चीन की पहुँच बढ़ी है और भारतीय ऊर्जा क्षेत्र की 4 में से 3 कंपनियाँ चीनी उत्पादों पर निर्भर हैं।
- फरवरी 2020 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन की कई बड़ी कंपनियों जैसे-अलीबाबा (Alibaba) और टेंसेंट (Tencent) ने कम-से-कम 92 भारतीय स्टार्टअप में निवेश कर रखा है।
- इनमें से अधिकांश निवेश निजी क्षेत्र द्वारा किये गए छोटे निवेश (अधिकांश लगभग 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर) हैं, जिससे यह निवेश तात्कालिक संदेह से बचे रहते हैं।
लाभ:
- इस परिवर्तन के बाद विभिन्न क्षेत्रों में होने वाले विदेशी निवेश की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।
- केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद वर्तमान में COVID-19 से प्रभावित भारतीय कंपनियों में चीनी हस्तक्षेप की वृद्धि को नियंत्रित किया जा सकेगा।
हानि और चुनौतियाँ:
- ‘व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन’ (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत विश्व में सबसे अधिक विदेशी निवेश प्राप्त करने वाले शीर्ष के 10 देशों में शामिल था।
- नियमों में सख्ती के कारण निश्चित ही भारत में होने वाले विदेशी निवेश में कमी आएगी और इसका सबसे अधिक प्रभाव तकनीकी और इंटरनेट से जुड़ी कंपनियों पर होगा।
- विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में निवेश करने वाली बड़ी संख्या उन कंपनियों की भी है जो अमेरिका या हॉन्गकॉन्ग जैसे देशों में पंजीकृत हैं।
- वेंचर कैपिटल फंड (Venture Capital Fund) और कुछ अन्य निवेशों के मामलों में अंतिम लाभार्थियों की राष्ट्रीयता की पहचान करना एक बड़ी चुनौती होगी।
स्त्रोत: द हिंदू
पुणे में अस्थायी राशन कार्ड की व्यवस्था
प्रीलिम्स के लियेअस्थायी राशन कार्ड, COVID-19 मेन्स के लियेमहामारी और आपदा का गरीब वर्ग पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
पुणे ज़िला परिषद (Pune Zilla Parishad) ने ज़िले में 80,000 से अधिक गैर-दस्तावेज़ी (Undocumented) लोगों को अस्थायी ‘राशन कार्ड’ प्रदान करने का निर्णय लिया है, ताकि वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System-PDS) के तहत खाद्यान्न प्राप्त कर सकें।
प्रमुख बिंदु
- पुणे ज़िला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के अनुसार, क्षेत्र विशिष्ट में 80000 से अधिक लोग ऐसे हैं जो आवश्यक दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हैं, इसके अलावा कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनका पास किसी अन्य राज्य का ‘राशन कार्ड’ है।
- ज़िला परिषद ने ऐसे लोगों के लिये इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के साथ खाता खोलने हेतु आधार-आधारित प्रमाणीकरण (Aadhaar-Based Authentication) का उपयोग करने की योजना बनाई है।
- पुणे ज़िला परिषद के अनुसार, लाभार्थियों की पहचान करने का कार्य प्रत्येक गाँव के पुलिस पाटिल (Police Patil) को दिया गया है, जो कि गाँव में आने वाले बाहरी लोगों का रिकॉर्ड रखता है।
- पुणे ज़िला परिषद की इस योजना के केवल यह सत्यापित किया जाएगा कि लाभार्थी इस योजना का पात्र है अथवा नहीं, यदि वह पात्र होता है तभी उसे अस्थायी राशन कार्ड प्रदान किया जाएगा।
- लोगों को एक स्थान पर एकत्रित होने से रोकने के लिये ज़िला परिषद राशन की होम डिलीवरी करने की भी योजना बना रही है। अनुमान के अनुसार, इस योजना के तहत लगभग 120 टन अनाज वितरित किया जाएगा।
- पुणे ज़िला परिषद की यह योजना शरद भोजन योजना (Sharad Bhojan Yojana) के दायरे और पहुँच को बढ़ाएगी, जिसके तहत पुणे ज़िले में लोगों को रियायती दरों पर पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जाता है।
लाभ
- उल्लेखनीय है कि महामारी के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में लोगों को सरकारी लाभ पहुँचाने में मदद करने के लिये यह अपनी तरह का पहला नवाचार है।
- यह योजना ग्राम पंचायत स्तर पर अनाज की होम डिलीवरी को भी सक्षम करेगी और इस योजना से आदिम जनजातियों और ट्रांसजेंडर समुदाय से संबंधित व्यक्तियों को भी लाभ मिल सकेगा, जो प्रायः इस प्रकार के लाभों के दायरे से बाहर रह जाते हैं।
- कई राज्यों के लिये लॉकडाउन में फँसे प्रवासियों को PDS अनाज समेत अन्य लाभ प्रदान करना बड़ी चुनौती बन गया है, मुख्य तौर पर उन लोगों के संबंध में जो आवश्यक दस्तावेज़ प्रदान करने में असमर्थ हैं।
- ध्यातव्य है कि नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी सहित भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने सुझाव दिया था कि PDS के माध्यम से राशन की सुविधा आम लोगों तक पहुँचाने के लिये सरकार को ‘अस्थायी राशन कार्ड‘ की व्यवस्था करनी चाहिये जिससे लोगों को इस मुश्किल दौर में राहत प्रदान की जा सके।
लॉकडाउन और खाद्य संकट
- कोरोनावायरस से संबंधित चिंताएँ देश में प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, देश में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 17000 के पार पहुँच गई है और इस वायरस के कारण कुल 559 लोगों की मृत्यु हो गई है।
- कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिये केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन के दूसरे चरण की घोषणा की है, जिसके कारण देश भर में लगभग सभी प्रकार की गतिविधियाँ पूरी तरह से रुक गई हैं, जिसके कारण दैनिक मज़दूर और देश के गरीब वर्ग के लिये अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करना भी चुनौती बन गया है।
- भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग कोरोनावायरस और इसके कारण लागू किये गए लॉकडाउन से काफी अधिक प्रभावित हुआ है और उसे एक जून के भोजन के लिये भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
- इस संबंध में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इस वर्ग के अधिकांश लोगों के पास सरकार द्वारा किये गए उपायों का लाभ प्राप्त करने हेतु आवश्यक दस्तावेज़ भी नहीं, जिसके कारण वे लाभ प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।
आगे की राह
- मौजूदा समय एक गंभीर संकट का समय है और ऐसे समय में आवश्यक है कि एक साथ मिलकर इस महामारी से लड़ने का प्रयास किया जाए और इस संबंध में देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे नवाचारों को सराहा जाए।
- पुणे ज़िला परिषद द्वारा लागू की गई योजना सराहनीय है, उचित होगा यदि परिषद द्वारा किये जा रहे प्रयासों का यथासंभव अध्ययन किया जाए और इसे आवश्यक परिवर्तन के साथ देशव्यापी स्तर पर लागू करने की व्यवस्था की जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार
प्रीलिम्स के लिये:दीर्घकालिक रेपो परिचालन, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी, भारतीय रिज़र्व बैंक, नाबार्ड, भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक मेन्स के लिये:गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की वित्तीय स्थिति में सुधार हेतु किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (Micro-Finance Institutions-MFIs) की वित्तीय स्थिति सुधारने हेतु कई उपायों की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
- RBI लक्षित दीर्घकालिक रेपो परिचालन (Targeted Long Term Repo Operation- TLTRO 2.0) के तहत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (Micro-Finance Institutions-MFIs) को नकदी उपलब्ध कराएगा।
- TLTRO 2.0 के तहत बैंकों को 50 हजार करोड़ रुपए दिये जाएंगे जिसमें 23 अप्रैल 2020 को TLTRO 2.0 के लिये 25 हजार करोड़ रुपए की पहली बोली लगाई जाएगी।
- TLTRO 2.0 के तहत बैंक RBI से 4.4% की दर पर उधार लेंगे।
- बैंक RBI से जितनी राशि उधार लेंगे, उसमें से कम-से-कम 50% राशि छोटे एवं मध्यम आकर की NBFC और MFI को देनी होगी। जो इस प्रकार है:
- 10% राशि को MFI की प्रतिभूतियों या योजनाओं में निवेश करना होगा।
- 15% राशि को 500 करोड़ रुपए या उससे कम परिसंपत्ति वाली NBFC की प्रतिभूतियों या योजनाओं में निवेश करना होगा।
- 25% राशि को 500-5000 करोड़ रुपए परिसंपत्ति के आकार वाली NBFC में निवेश करना होगा।
- RBI के अनुसार TLTRO 2.0 के तहत बैंक जो पैसा उधार लेंगे उसे NBFC के ग्रेड बाॅन्ड (Grade Bonds), वाणिज्यिक पत्रों (Commercial Paper) और गैर-परिवर्तनीय ऋणपत्र (Non-Convertible Debentures) में निवेश करना होगा।
- RBI ने देश के तीन बड़े वित्तीय संस्थानों, मसलन- राष्ट्रीय आवास बैंक (National Housing Bank- NHB), नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India- SIDBI) के लिये 50 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त संसाधन जुटाने की भी व्यवस्था की है।
- इसमें से 25 हजार करोड़ रुपए की राशि NABARD को उपलब्ध कराई जाएगी, जो क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक व ग्रामीणों क्षेत्रो में फंड उपलब्ध कराने वाले दूसरे वित्तीय संस्थानों को ज्यादा कर्ज देगा।
- 15 हजार करोड़ रुपए की राशि SIDBI को दी जाएगी, जो मझोले व छोटे उधमियों को कर्ज वितरित करेगा।
- 10 हजार करोड़ रुपए की राशि NHB को दी जाएगी, जो आवासीय क्षेत्रों में कर्ज देगा।
अन्य बिंदु:
- हाल ही में RBI ने तरलता समायोजन सुविधा के तहत अतिरिक्त तरलता से बैंकों को हतोत्साहित करने के लिये रिवर्स रेपो दर को 25 आधार अंकों से घटाकर 3.75% कर दिया।
- 13 अप्रैल तक बैंकों द्वारा रिवर्स रेपो दर के तहत 6.9 ट्रिलियन रुपए जमा कराए गए थे।
दीर्घकालिक रेपो परिचालन
(Long Term Repo Operation- LTRO)
- LTRO एक ऐसा उपकरण है जिसके तहत केंद्रीय बैंक प्रचलित रेपो दर पर बैंकों को 1-3 वर्ष की अवधि के लिये 1 लाख करोड़ रुपए तक का ऋण प्रदान करता है तथा कोलेटरल के रूप में सरकारी प्रतिभूतियों को लंबी अवधि के लिये स्वीकार करता है।
- RBI तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF) और सीमांत स्थायी सुविधा (Marginal Standing Facility- MSF) के माध्यम से बैंकों को उनकी तत्काल ज़रूरतों हेतु 1 से 28 दिनों के लिये ऋण मुहैया कराता है, जबकि LTRO के माध्यम से RBI द्वारा रेपो रेट पर ही उनको 1 से 3 वर्ष के लिये ऋण उपलब्ध कराया जाएगा।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी
(Non-Banking Financial Companies-NBFCs):
- गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत होती है और जिसका प्रमुख कार्य उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना होता है।
स्रोत: द हिंदू
कर्नाटक में अंगूर की कृषि और COVID- 19
प्रीलिम्स के लिये:वर्ष 2019 के प्रमुख GI टैग, बंगलौर ब्लू मेन्स के लिये:भौगोलिक संकेतक का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
‘COVID- 19’ महामारी के कारण कर्नाटक राज्य में जूस तथा शराब बनाने वाली इकाइयों के बंद हो जाने के कारण लगभग 3,500 टन फलों की अभी तक कटाई/हार्वेस्टिंग नहीं की गई है।
मुख्य बिंदु:
- किसान जिनको पिछले वर्ष अंगूर की कृषि से आय हुई थी, उन्हें इस वर्ष भी अच्छी आय की उम्मीद थी लेकिन उनकी उम्मीदें COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण धूमिल हो गईं।
- बंगलूरु ब्लू किस्म, ज़्यादातर जूस और शराब/स्प्रिट बनाने के काम आती है।
बंगलौर ब्लू (Bangalore Blue):
- प्रसिद्ध बंगलौर ब्लू/नीले अंगूर की किस्म है जो मुख्यत: कर्नाटक की राजधानी बंगलूरु के आस-पास उगाई जाती है।
- बंगलौर ब्लू की कृषि मुख्यत: बंगलूरु के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों के अलावा चिकबल्लापुर (Chickballapur) और कोलार ज़िलों के लगभग 4,500 हेक्टेयर में 150 वर्षों से की जा रही है।
- भौगोलिक रूप से विशिष्ट फसल किस्म होने के कारण बागवानी विभाग ने इस स्थानिक किस्म के लिये ‘भौगोलिक संकेतक’ (Geographical Indications- GI) की मांग के बाद वर्ष 2013 में GI टैग प्रदान किया गया।
- राज्य सरकार ने शराब नीति 2012 के तहत बंगलौर ब्लू से बनी शराब को फोर्टिफाइड शराब के रूप में मान्यता दी है।
- फोर्टीफाइड वाइन (Fortified Wine):
- यह फ्रूट वाइन से अलग होती है क्योंकि इसमें फलों से निकली शराब में अतिरिक्त स्प्रिट मिलाई जाती है।
भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication):
- GI टैग का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।
GI टैग की वैधता:
- एक GI टैग एक दशक के लिये वैध होता है, जिसके बाद इसे अगले 10 वर्षों के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।
भारत में GI टैग को मंज़ूरी:
- भारत में GI टैग को ‘भौगोलिक संकेतक (माल पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम’ (Geographical Indication of Goods (Registration and Protection) Act) द्वारा नियंत्रित किया जाता है,जो वर्ष 1999 में अस्तित्त्व में आया।
2019 के प्रमुख GI टैग
- 'पालनी पंचतीर्थम' (Palani Panchamirtham), तमिलनाडु:
- एक प्रकार का 'प्रसादम' या मंदिरों में दिया जाने वाला धार्मिक प्रसाद है।
- तावलोहपुआन (Tawlhlohpuan), मिजोरम:
- एक उत्तम गुणवत्ता की कपड़ा बुनाई प्रणाली।
- मिज़ो पुंची (Mizo Puanchei)- मिज़ोरम:
- एक प्रकार की शॉल, जिसका कपड़ा सबसे रंगीन माना जाता है।
- तिरूर (Tirur) पान, केरल:
- औषधीय तथा सांस्कृतिक उपयोग
2019 के अन्य GI टैग:
GI टैग का नाम |
संबंधित राज्य |
उड़ीसा रसगुल्ला |
उड़ीसा |
कंधमाल हल्दी (कृषि) |
उड़ीसा |
कोडाइकनाल मलाई पूंडु (कृषि) |
तमिलनाडु |
पांडूम (हैंडीक्राफ्ट) |
मिज़ोरम |
नागोतेरह (हैंडीक्राफ्ट) |
मिज़ोरम |
हमाराम (हैंडीक्राफ्ट) |
मिज़ोरम |
गुलबर्गा तूर (कृषि |
कर्नाटक |
आयरिश व्हिस्की (विनिर्माण) |
आयरलैंड |
खोला मिर्च (कृषि) |
गोवा |
मिशमी टेक्सटाइल (हैंडीक्राफ्ट) |
अरुणाचल प्रदेश |
डिंडीगुल ताला (विनिर्माण) |
तमिलनाडु |
कंडांगी साड़ी (हैंडीक्राफ्ट) |
तमिलनाडु |
श्रीविल्लिपुत्तुर पलकोवा (खाद्य वस्तु) |
तमिलनाडु |
काजी नेमू (कृषि) |
असम |
GI टैग और ट्रिप्स समझौता:
- ‘भौगोलिक संकेतक’ को ‘बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं’ (Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
- विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization-WTO) के सदस्य के रूप में भारत ने ‘भौगोलिक संकेतक (माल और पंजीकरण) अधिनियम, 1999’ को लागू किया है जो 15 सितंबर, 2003 से प्रभावी हो गया है।
GI टैग का महत्त्व:
- बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे कॉपीराइट, पेटेंट, ट्रेडमार्क आदि के समान ही भौगोलिक संकेतक टैग धारकों को भी समान अधिकार तथा सुरक्षा प्रदान की जाती है।
- यह संकेत प्राप्त होने पर उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता सुनिश्चित होती है।
- GI टैग प्रदान करना किसी विशिष्ट उत्पाद के उत्पादक को संरक्षण प्रदान करता है जो कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में उनके मूल्यों को निर्धारित करने में सहायता करता है।
स्रोत: द हिंदू
गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता
प्रीलिम्स के लिये:ब्लेज़र, गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता मेन्स के लिये:गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों:
हाल ही में भारतीय तारा भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics-IIA) के शोधकर्त्ताओं ने विभिन्न प्रकार के ब्लेज़र (Blazars) पर ‘गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता’ (Gamma-ray Flux Variability) का अध्ययन किया है।
प्रमुख बिंदु:
- यह शोध कार्य ‘जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिज़िक्स’ (Journal Astronomy and Astrophysics) में प्रकाशित हुआ है।
- शोधकर्त्ताओं द्वारा ‘गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता’ (100 MeV से 300 GeV) की विभिन्न विशेषताओं का यह अध्ययन ब्लैक होल के करीब होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी प्रदान करेगा।
- ध्यातव्य है कि ‘गामा-किरण फ्लक्स परिवर्तनशीलता’ के बारे में अब तक ज्यादा खोज नहीं की गई है।
- उल्लेखनीय है कि अधिकांश आकाशगंगाओं के केंद्र में एक विशाल ब्लैक होल (Black Hole) होता है जिसका द्रव्यमान लाखों या अरबों सूर्य के बराबर होता है।
- इस विशाल ब्लैक होल के चारों ओर गैस, धूल और तारकीय मलबे (Stellar Debris) जमा होते हैं।
- मलबों के ब्लैक होल में गिरते ही इनकी गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा (Gravitational Energy) सक्रिय गैलक्टिक नाभिक (Active Galactic Nuclei-AGN) के रूप में प्रकाश में परिवर्तित हो जाती है।
- AGN के लगभग 15% भाग अवेशित कणों को उत्सर्जित करते हैं। इन कणों को जेट कहते हैं।
- ब्लेज़र (Blazars) दरअसल एक AGN ही होते हैं जिनके जेट पर्यवेक्षक के संरेखिय होते है।
- इन उत्सर्जित कणों की गति लगभग प्रकाश की गति (लगभग 3300,000 किमी. प्रति सेकंड) के बराबर होती है।
- भारतीय तारा भौतिकी संस्थान के शोधकर्त्ता फ्लक्स के आयाम (Amplitude) और समय (Time) से संबंधित विभिन्न विशेषताओं को चिह्नित कर विभिन्न प्रकार के ब्लेज़र के बीच आयाम और समय में समानता/अंतर की खोज कर रहे हैं।
अध्ययन के लाभ
- ‘गामा-किरणों के उद्गम स्थल को चिह्नित कर पाना’ उच्च ऊर्जा खगोल भौतिकी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। यह विचार शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए इस अध्ययन के पीछे महत्त्वपूर्ण प्रेरक शक्ति है।
- इस अध्ययन से प्राप्त परिणाम ब्लेज़र में उच्च ऊर्जा गामा-रे उद्गम स्थल खोजने की समस्या में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करेगा। इस प्रकार यह ब्लेज़र पर ज्ञान की वृद्धि के लिये प्रासंगिक होगा।
- गामा किरण बैंड के इस अध्ययन से उच्च ऊर्जा उत्सर्जन वाली जगह और उच्च ऊर्जा उत्सर्जन प्रक्रिया का पता लगाने में मदद प्राप्त हो सकती है।
ब्लेज़र (Blazars):
- ब्लेज़र ब्रह्मांड में सबसे चमकदार और ऊर्जावान वस्तु है। वर्ष 1990 में एक अध्ययन में यह पाया गया कि इनसे गामा-किरणें उत्सर्जित होती हैं।
- गौरतलब है कि वर्ष 2008 में अमेरिका द्वारा प्रक्षेपित ‘फर्मी गामा-किरण स्पेस टेलीस्कोप’ (Fermi Gamma-ray Space Telescope) एक निश्चित समय सीमा में ब्लेज़र की ‘प्रवाह परिवर्तनशीलता विशेषताओं’ की जाँँच करने में सक्षम है।
गामा-किरण बैंड (Gamma-ray Band):
- गामा-किरण बैंड विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम (Bands Of The Electromagnetic Spectrum) के बैंड में से एक है।
भारतीय तारा भौतिकी संस्थान
(Indian Institute of Astrophysics-IIA):
- भारतीय तारा भौतिकी संस्थान ‘विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग’ के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
- यह संस्थान खगोलशास्त्र, तारा भौतिकी एवं संबंधित भौतिकी में अनुसंधान के लिये समर्पित एक प्रमुख संस्थान है।
- इसका मुख्यालय बंगलूरु में है।
स्रोत: पीआईबी
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 अप्रैल, 2020
COVID-19 टीके के परीक्षण हेतु उच्च-स्तरीय कार्यबल
केंद्र सरकार ने टीकों और दवाओं के परीक्षण के लिये एक उच्च-स्तरीय कार्यबल का गठन किया है। इस कार्यबल में नीति आयोग, रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation-DRDO), भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) के सदस्य शामिल हैं। इस कार्यबल का प्रमुख उद्देश्य टीके के लिये विकास प्रक्रिया निर्मित करना है। यह कार्यबल राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की एक सूची तैयार करेगा जो टीके के विकास पर कार्य कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में कोरोनावायरस (COVID-19) की वैक्सीन का विकास करने के लिये दुनिया भर में 70 परीक्षण किये जा रहे हैं। इनमें से 5 मानव परीक्षण के स्तर पर पहुँच गए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार द्वारा अभी देश में केवल निवारक उपायों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है और सरकार वैक्सीन के विकास पर काफी कम उपाय कर रही है। ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस से संबंधित चिंताएँ भारत समेत दुनिया के सभी देशों में प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 17000 के पार पहुँच गई है और इस वायरस के कारण कुल 559 लोगों की मृत्यु हो गई है।
कीटाणुनाशक रसायन का छिड़काव हानिकारक
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, किसी व्यक्ति या समूह पर कीटाणुनाशक रसायन का छिड़काव करना शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक हो सकता है। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी कहा है कि COVID-19 के उपचार की प्रक्रिया में किसी भी परिस्थिति में लोगों पर कीटाणुनाशक दवा का छिड़काव करने की सिफारिश नहीं की गई है। उल्लेखनीय है कि मंत्रालय से सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे कीटाणुनाशकों को लोगों को संक्रमण मुक्त करने हेतु उपयोग करने के संबंध में जानकारी मांगी थी, जिसके जवाब में मंत्रालय ने कहा कि सोडियम हाइपोक्लोराइट के छिडकाव से नाक, गले में जलन और सांस की तकलीफ जैसी समस्याएँ हो सकती है तथा फेफड़ों में भी परेशानी हो सकती है। विदित है कि रसायनिक कीटाणुनाशक हानिकारक कीटाणुओं को समाप्त करते हैं, इनका उपयोग सफाई करने और ऐसी जगहों तथा सतहों को संक्रमणमुक्त करने के लिये किया जाता है, जिनके बारे में संदेह हो कि उन्हें कोरोनावायरस से ग्रस्त व्यक्ति ने बार-बार छूआ है।
नासा का ‘कमर्शियल क्रू प्रोग्राम’
हाल ही में नासा (NASA) ने घोषणा की है कि वह 27 मई, 2020 को अंतरिक्ष यात्रियों की एक उड़ान लॉन्च करेगा। नासा के अनुसार, इस मिशन में फाल्कन-9 (Falcon 9) रॉकेट का उपयोग किया जाएगा। इस मिशन के द्वारा अंतरिक्ष यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर प्रवास के लिये भेजा जाएगा। इस मिशन को एलन मस्क की स्पेस कंपनी ‘स्पेस एक्स’ (SpaceX) द्वारा लॉन्च किया जाएगा। अंतरिक्ष यात्री बॉब बेकन और डोग्लास हर्ले स्पेस एक्स (SpaceX) के फाल्कन-9 रॉकेट (Falcon 9) से ISS के लिये उड़ान भरेंगे। बॉब बेकन को वर्ष 2000 में नासा द्वारा एस्ट्रोनॉट (Astronaut) के तौर पर चुना गया था और वो अब तक दो अंतरिक्ष उड़ानों पर जा चुके हैं। इनके अतिरिक्त डोग्लास हर्ले को भी वर्ष 2000 में ही एस्ट्रोनॉट के तौर पर चुना गया था और वो भी अब तक दो बार अंतरिक्ष उड़ानें भर चुके हैं। अंतरिक्ष यात्रियों को अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) भेजने वाले नासा के मिशन को ‘कमर्शियल क्रू प्रोग्राम’ नाम दिया गया है। इस मिशन को अमेरिकी सरकार द्वारा वित्त पोषित किया गया है।
विदेशी नागरिकों की वीज़ा अवधि में बढ़ोतरी
हाल ही में गृह मंत्रालय ने कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण लागू किये गए लॉकडाउन के प्रभावस्वरूप भारत में फँसे सभी विदेशी नागरिकों के सामान्य और ई-वीज़ा की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया है। केंद्र सरकार के अनुसार, वीज़ा अवधि के विस्तार के लिये किसी से कोई फीस भी नहीं ली जाएगी। सरकार के अनुसार, राजनयिकों और संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों के अतिरिक्त उन सभी विदेशी नागरिकों का वीज़ा तीन मई तक निलंबित रहेगा जिन्हें इस अवधि में भारत आना था। ध्यातव्य है कि भारत समेत दुनिया के सभी देशों में कोरोनावायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण दुनिया के लगभग सभी देशों ने लॉकडाउन लागू कर दिया है, भारत में भी लॉकडाउन का दूसरा चरण लागू किया गया है। देशव्यापी स्तर पर लागू किये गए लॉकडाउन के कारण भारत में लॉकडाउन के पहले से मौजूद विदेशी लोग यहीं फँस गए हैं, ऐसी स्थिति में उन लोगों को संक्रमण से बचाना और उनकी वीज़ा अवधि को बढ़ाना सरकार के लिये अनिवार्य हो जाता है।