गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक [Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill], 2021 पारित किया। इस विधेयक को मार्च 2020 में लोकसभा में पारित किया गया था।
- विधेयक का उद्देश्य गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 में संशोधन करना है।
प्रमुख बिंदु
गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता:
- अधिनियम के तहत गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में एक विवाहित महिला द्वारा 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त किया जा सकता है। यह विधेयक अविवाहित महिलाओं को भी गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।
गर्भ की समाप्ति के लिये चिकित्सकों से राय लेना आवश्यक:
- गर्भधारण से 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता होगी।
- गर्भावधि/गर्भकाल का आशय गर्भधारण के समय से जन्म तक भ्रूण के विकास काल से है।
- गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक होगी।
- भ्रूण से संबंधित गंभीर असामान्यता के मामले में 24 सप्ताह के बाद गर्भ की समाप्ति के लिये राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना आवश्यक होगा।
मेडिकल बोर्ड:
- प्रत्येक राज्य सरकार को एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना आवश्यक होगा।
- इस मेडिकल बोर्ड में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:
- स्त्री रोग विशेषज्ञ
- बाल रोग विशेषज्ञ
- रेडियोलॉजिस्ट या सोनोलॉजिस्ट और
- राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अन्य कोई सदस्य।
विशेष श्रेणियों के लिये अधिकतम गर्भावधि सीमा
- इस विधेयक में महिलाओं की विशेष श्रेणियों के लिये गर्भकाल/गर्भावधि की सीमा को 20 से 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है, विशेष श्रेणी को MTP नियमों में संशोधन के तहत परिभाषित किया जाएगा और इसमें दुष्कर्म तथा अनाचार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य कमज़ोर महिलाओं (जैसे दिव्यांग महिलाएँ और नाबालिग) आदि को शामिल किया जाएगा।
गोपनीयता:
- गर्भ को समाप्त करने वाली किसी महिला का नाम और अन्य विवरण, कानून में अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर, किसी के भी समक्ष प्रकट नहीं किया जाएगा।
नोट
- वर्ष 1971 से पूर्व भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312 के तहत गर्भपात को अपराध के रूप में जाना जाता था, इसे जान-बूझकर किये जाने वाले 'गर्भपात’ के रूप में परिभाषित किया गया था।
लाभ
विसंगति के मामले में गर्भावस्था की समाप्ति:
- प्रायः कई मामलों में भ्रूण की असामान्यताओं का पता 20वें सप्ताह के बाद लगता है, जिसके कारण वांछित गर्भावस्था, अवांछित गर्भावस्था में बदल जाती है।
विशेष श्रेणी की महिलाओं की सहायता:
- यह विधेयक दुष्कर्म पीड़ितों, बीमार एवं कम आयु की महिलाओं के अवांछित गर्भ को कानूनी रूप से समाप्त करने में मदद करेगा।
अविवाहित महिलाओं के लिये सहायक:
- यह विधेयक अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होता है और इस प्रकार 1971 के अधिनियम की प्रतिगामी धाराओं में से एक के संबंध में राहत प्रदान करता है। इसमें कहा गया था कि "एकल महिला गर्भपात के लिये गर्भनिरोधक की विफलता का हवाला नहीं दे सकती है"।
- अविवाहित महिलाओं को गर्भ के चिकित्सकीय समापन की अनुमति देने और गर्भपात की मांग करने वाले व्यक्ति की गोपनीयता बनाए रखने का प्रावधान महिलाओं को प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) प्रदान करेगा।
चुनौतियाँ
भ्रूण की व्यवहार्यता:
- भ्रूण की 'व्यवहार्यता' (Viability of the Foetus) हमेशा से गर्भपात को नियंत्रित करने वाली वैधता का एक प्रमुख पहलू रही है।
- व्यवहार्यता का तात्पर्य उस अवधि से है जिसमें भ्रूण, गर्भाशय से बाहर जीवित रहने में सक्षम होता है।
- जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी में सुधार होगा अवसंरचना के अपग्रेडेशन और चिकित्सा सुविधा प्रदान करने वाले कुशल पेशेवरों की मदद से इस व्यवहार्यता में प्राकृतिक रूप से सुधार होगा।
- वर्तमान में व्यवहार्यता की स्थिति आमतौर पर लगभग सात महीने (28 सप्ताह) पर शुरू होती है, लेकिन यह इससे पूर्व यहाँ तक कि 24 सप्ताह में भी शुरू हो सकती है।
- इस प्रकार गर्भ के देर से समापन के समय ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है कि भ्रूण ने व्यवहार्यता की स्थिति प्राप्त कर ली हो।
बालकों को वरीयता:
- परिवार में पुत्र को वरीयता दिये जाने के कारण लिंग निर्धारण केंद्रों का व्यापार अवैध होने के बावजूद चलता रहता है। ऐसे में गर्भपात कानून को और अधिक उदार बनाए जाने से इस प्रकार के मामलों में वृद्धि हो सकती है।
विकल्पों में परिवर्तन
- वर्तमान विधेयक में व्यक्तिगत पसंद, परिस्थितियों में अचानक परिवर्तन (साथी से अलग होने या मृत्यु के कारण) तथा घरेलू हिंसा जैसे घटकों पर विचार नहीं किया गया है।
चिकित्सा बोर्ड
- वर्तमान में स्वास्थ्य देखभाल हेतु आवंटित बजट में देश भर में एक बोर्ड का गठन करना आर्थिक और व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।
- राज्य के दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिये बोर्ड तक पहुँच पाना भी चिंता का विषय है।
- अनुरोधों/याचिकाओं का जवाब देने के लिये कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
- बोर्ड महिला को गर्भ के समापन की अनुमति देने से पहले विभिन्न प्रकार के परीक्षण कराएगा जो कि निजता के अधिकार और सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन है।
आगे की राह
- यद्यपि गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक, 2021 सही दिशा में उठाया गया एक कदम है फिर भी गर्भपात को सुविधाजनक बनाने के लिये सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि देश भर के स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में नैदानिक प्रक्रियाओं से संबंधित सभी मानदंडों और मानकीकृत प्रोटोकॉल का पालन किया जाए।
- इसके साथ ही मानव अधिकारों, ठोस वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्रौद्योगिकी में उन्नति के अनुरूप गर्भपात के मामले पर फैसला लिया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
एमएमडीआर संशोधन विधेयक, 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कोयला और खान मंत्री ने लोकसभा में खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2021 पेश किया।
- इस विधेयक द्वारा खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 जो कि भारत में खनन क्षेत्र को नियंत्रित करता है, में संशोधन किया गया है।
प्रमुख बिंदु
प्रस्तावित परिवर्तन:
- खनिजों के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना:
- वर्ष 1957 का एक्ट केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह नीलामी प्रक्रिया के ज़रिये किसी खान (कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिज को छोड़कर) को लीज़ पर देते समय उसे किसी खास अंतिम उपयोग के लिये (जैसे- लौह अयस्क की खान को स्टील प्लांट के लिये रिज़र्व करना) रिज़र्व कर सकती है। ऐसी खानों को कैप्टिव खान (Captive Mine) कहा जाता है।
- नया विधेयक प्रावधान करता है कि कोई भी खान किसी खास अंतिम उपयोग के लिये आरक्षित नहीं होगी।
- कैप्टिव खानों द्वारा खनिजों की बिक्री:
- इस बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिव खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी ज़रूरत को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
- केंद्र सरकार अधिसूचना के ज़रिये इस सीमा में वृद्धि कर सकती है।
- पट्टेदार को खुले बाज़ार में बेचे गए खनिजों के लिये अतिरिक्त शुल्क चुकाना होगा।
- इस बिल में प्रावधान किया गया है कि कैप्टिव खानें (परमाणु खनिजों को छोड़कर) अपनी ज़रूरत को पूरा करने के बाद अपने वार्षिक उत्पादन का 50% हिस्सा खुले बाज़ार में बेच सकती हैं।
- कुछ मामलों में केंद्र सरकार द्वारा नीलामी:
- यह विधेयक केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि वह राज्य सरकार की सलाह से नीलामी प्रक्रिया के पूरे होने की एक समय-सीमा निर्दिष्ट करे।
- यदि राज्य सरकार इस निर्दिष्ट अवधि में नीलामी प्रक्रिया को पूरा नहीं कर पाती है तो केंद्र सरकार यह नीलामी कर सकती है।
- वैधानिक मंज़ूरियों का हस्तांतरण:
- यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंज़ूरियाँ नए पट्टेदार की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
- नए पट्टेदार को खानों की लीज़ दो वर्ष की अवधि के लिये दी जाती है। इन दो वर्षों के दौरान नए पट्टेदार को नई मंज़ूरियाँ हासिल करनी होती हैं।
- यह प्रावधान करता है कि हस्तांतरित मंज़ूरियाँ नए पट्टेदार की पूरी लीज़ अवधि के दौरान वैध रहेंगी।
- लीज़ अवधि खत्म होने वाली खानों का आवंटन:
- विधेयक में कहा गया है कि जिन खानों की लीज़ की अवधि खत्म हो गई है, उन खानों को कुछ मामलों में सरकारी कंपनियों को आवंटित किया जा सकता है।
- यह प्रावधान तब लागू होगा, जब नई लीज़ देने के लिये नीलामी प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है या नीलामी के एक साल के अंदर ही नई लीज़ अवधि खत्म हो गई है।
- राज्य सरकार ऐसी खान को अधिकतम 10 वर्ष के लिये या जब तक नए पट्टेदार का चयन नहीं हो जाता, तब तक के लिये (इनमें से जो भी पहले हो) सरकारी कंपनी को दे सकती है।
- सरकारी कंपनियों की लीज़ अवधि बढ़ाना:
- इस अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार सरकारी कंपनियों की खनन लीज़ की अवधि निर्धारित करेगी और सरकारी कंपनियों की लीज़ की अवधि अतिरिक्त राशि चुकाने पर बढ़ाई जा सकती है।
- खनन लीज़ अवधि खत्म होने की शर्तें:
- यदि पट्टेदार लीज़ मिलने के दो वर्ष के भीतर खनन कार्य शुरू नहीं कर पाता है।
- यदि दो वर्षों तक उसका खनन का काम बंद रहता है।
- अगर पट्टेदार के पुनः आवेदन करने के बाद राज्य सरकार ने उसे छूट दे दी है तो इस अवधि के खत्म होने के बाद उसकी लीज़ खत्म नहीं होगी।
- इस विधेयक में कहा गया है कि लीज़ की अवधि खत्म होने के बाद राज्य सरकार सिर्फ एक बार और एक वर्ष तक के लिये इसकी अवधि बढ़ा सकती है।
- नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट:
- यह अधिनियम नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट (Non-Exclusive Reconnaissance Permit- कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिये) का प्रावधान करता है।
- रिकोनिसेंस का अर्थ है, कुछ सर्वेक्षणों के ज़रिये खनिजों का शुरुआती पूर्वेक्षण (Prospecting)। यह विधेयक इस परमिट के प्रावधान को हटाता है।
- यह अधिनियम नॉन-एक्सक्लूसिव रिकोनिसेंस परमिट (Non-Exclusive Reconnaissance Permit- कोयला, लिग्नाइट और परमाणु खनिजों के अतिरिक्त दूसरे खनिजों के लिये) का प्रावधान करता है।
महत्त्व:
- पारदर्शिता:
- इस अधिनियम से नीलामी प्रक्रिया में अधिक पारदर्शिता आएगी क्योंकि ऐसी धारणा है कि राज्य सरकारें कुछ मामलों में उनके पसंदीदा बोलीदाताओं को प्राथमिकता देती हैं तथा उन्हें लीज़ नहीं मिलने पर नीलामी प्रक्रिया रद्द करने का प्रयास करती हैं।
- उत्पादन बढ़ाना:
- खनिकों (Miner) के लिये लचीलेपन में वृद्धि के कारण कैप्टिव खानों से अधिक-से-अधिक उत्पादन करने की अनुमति मिलेगी क्योंकि वे अब अपनी आवश्यकता से अधिक उत्पादन को बेचने में सक्षम होंगे।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस:
- यह ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (Ease of Doing Business) को बढ़ाएगा, प्रक्रिया का सरलीकरण करेगा और उन सभी प्रभावित पक्षों को लाभान्वित करेगा जहाँ खनिज मौजूद हैं।
- यह परियोजनाओं के कार्यान्वयन की प्रक्रिया को भी तेज़ कर देगा।
- कुशल ऊर्जा बाज़ार:
- यह एक कुशल ऊर्जा बाज़ार का निर्माण करेगा और कोयला आयात को कम करके अधिक प्रतिस्पर्द्धा लाएगा।
- उच्च-स्तरीय प्रौद्योगिकी तक पहुँच:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
संपत्ति क्षति वसूली विधेयक- हरियाणा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा ‘हरियाणा लोक व्यवस्था में विघ्न के दौरान संपत्ति क्षति वसूली विधेयक, 2021’ ( Haraya Recovery of Damages to Property During Disturbance to Public Order Bill, 2021) पारित किया गया है।
- इसी प्रकार का एक विधेयक उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भी ‘उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम , 2020 (Uttar Pradesh Recovery of Damages to Public and Private Property Act, 2020) के नाम से पारित किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
विधेयक के बारे में:
- नुकसान की वसूली: यह विधेयक किसी जनसमूह, चाहे वह कानूनी हो अथवा गैर-कानूनी, द्वारा लोक व्यवस्था में उत्पन्न विघ्न के दौरान किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किये गए संपत्ति के नुकसान की वसूली का प्रावधान करता है, इसमें दंगे और हिंसक गतिविधियाँ शामिल हैं।
- पीड़ितों को मुआवज़ा: यह पीड़ितों के लिये मुआवज़ा भी सुनिश्चित करता है।
- विस्तृत दायरा: नुकसान की वसूली केवल उन लोगों से नहीं की जाएगी जो हिंसा में लिप्त थे, बल्कि उन लोगों से भी की जाएगी जो विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व या आयोजन करते हैं , योजना में शामिल होते हैं और जो विद्रोहियों को प्रोत्साहित करते हैं।
- दावा अधिकरण स्थापित करना: विधेयक में देयता या क्षतिपूर्ति का निर्धारण, आकलन और क्षतिपूर्ति का दावा करने हेतु दावा अधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है।
- संपत्ति की कुर्की/ज़ब्ती: किसी भी व्यक्ति जिसके खिलाफ हर्ज़ाना राशि का भुगतान करने हेतु दावा अधिकरण में अपील की गई है, उसकी संपत्ति या बैंक खाते को सील करने की शक्ति प्रदान की गई है।
- अधिकरण के खिलाफ अपील: पीड़ित व्यक्ति दावा अधिकरण के निर्णयों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
- हर्ज़ाने को लेकर दावे से संबंधित कोई भी प्रश्न सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं होगा।
सरकार का रुख:
- सरकार की ज़िम्मेदारी: राज्य की संपत्ति की सुरक्षा करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है, चाहे वह संपत्ति निजी हो या सरकारी।
- अधिकारों और उत्तरदायित्व के मध्य संतुलन: लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्ण तरीके से बोलने और विरोध प्रकट करने का अधिकार है, लेकिन संपत्ति को नुकसान पहुंँचाने का अधिकार किसी को भी नहीं है।
- निवारण: हिंसक गतिविधियों को अंज़ाम देने और इसका आयोजन करने वालो के या इस प्रकार की गतिविधियों को रोकने हेतु सरकार के पास एक कानूनी ढांँचा होना चाहिये।
आलोचना:
- सर्वोच न्यायालय के दिशा-निर्देशों के विरुद्ध: दावा न्यायाधिकरण की संरचना सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों का उल्लंघन करती है।
- वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने 19 प्रमुख न्यायिक न्यायाधिकरणों की नियुक्तियों में परिवर्तन करने वाले वित्त अधिनियम, 2017 को निरस्त कर दिया था क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था।
- मौलिक अधिकारों के विरुद्ध: विधेयक संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 21 में निहित मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- अनिश्चित एवं अस्पष्ट: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यापक दिशा-निर्देश जारी किये गए हैं परंतु कई पहलुओं जैसे- अपराधियों की पहचान करना, नुकसान की वसूली हेतु योजना को क्रियान्वित करना तथा दिशा-निर्देशों को न मानने पर दंड का प्रावधान आदि को सही ढंग से स्पष्ट नहीं किया गया है।
भारत में कानूनी प्रावधान:
- भारत में नुकसान की वसूली हेतु कोई केंद्रीय कानून नहीं है। वर्तमान में दंगाइयों के खिलाफ कार्यवाही करने हेतु सार्वजनिक संपत्ति नुकसान रोकथाम अधिनियम, 1984 में भी सीमित प्रावधान है, जिसमें दोषियों हेतु कारावास और जुर्माने का प्रावधान तो किया गया है, लेकिन नुकसान की वसूली हेतु कोई प्रावधान नहीं किया गया है।
- संपत्ति के नुकसान की भरपाई हेतु कानून होने के बावज़ूद देश में विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारपीट, तोड़फोड़ की घटनाएंँ आम हैं।
- वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने इस मुद्दे पर संज्ञान लिया तथा इस कानून में बदलाव हेतु न्यायमूर्ति के.टी. थॉमस और वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन की अध्यक्षता में दो समितियों का गठन किया गया।
- वर्ष 2009 में सर्वोच्च न्यायालय ने दोनों विशेषज्ञ समितियों की सिफारिशों के आधार पर दिशा-निर्देश जारी किये।
- कानून की तरह दिशा-निर्देशों का भी सीमित प्रभाव पड़ा है। कोशी जैकब बनाम भारत संघ 2017 मामले में अदालत ने दोहराया कि कानून को अद्यतन किये जाने की आवश्यकता है।
विरोध का अधिकार बनाम नुकसान की वसूली:
मौलिक अधिकार बनाम आदेश:
- जहाँ एक ओर आंदोलनकारी विरोध करने के अपने मौलिक अधिकार का तर्क देते हैं, वहीं कई बार आंदोलन से प्रभावित लोगों की दुर्दशा और सामान्य गतिविधि को जारी रखने के उनके अधिकार को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत में सार्वजनिक विरोध का इतिहास महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा और अहिंसक विरोध, जो कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम के अभिन्न अंग थे, से वैधता प्राप्त है।
- कई पाबंदियों के बावजूद विरोध की यह विरासत वर्षों तक जारी रही और देश के कई क्षेत्रों में लोगों के जीवन का हिस्सा बन गई।
- वास्तव में आंदोलन और विरोध हमारी संस्कृति में इस कदर समाए हुए हैं कि हम अक्सर इन्हें एक ही मान लेते हैं।
वैश्विक उदाहरण:
- अमेरिका में यातायात को अवरुद्ध करने, महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचाने या बाधित करने वाले प्रदर्शनकारियों हेतु राज्य-वार कानून बनाए गए हैं तथा प्रदर्शन के दौरान हुए नुकसान की लागत वसूलने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अधिकृत किया गया है।
सुझाव:
- प्रदर्शन के आयोजक को स्पष्ट घोषणा करनी चाहिये कि उसके अनुयायियों द्वारा सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुँचाया जाएगा और यदि इस घोषणा पर अमल नहीं किया जाता है, तो इस प्रकार के नुकसान के हर्ज़ाने के लिये उसे वित्तीय रूप से उत्तरदायी माना जाएगा।
- फेशियल रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी और डेटाबेस पुलिस को हिंसा न करने वाले व्यक्ति की पहचान करने में मददगार हो साबित हो सकते हैं, इनका प्रयोग साक्ष्यों के तौर पर न्यायालय में भी किया जा सकता है।
- गोपनीयता कानूनों के तहत सर्विलांस कैमरों द्वारा प्रदर्शनकारियों तथा पहली पंक्ति में शामिल नेताओं की निगरानी की जा सकती है।
लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984
- इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है। अधिनियम के प्रावधान को भारतीय दंड संहिता में भी शामिल किया जा सकता है।
- इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
- कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण में किया जाता है।
- तेल प्रतिष्ठान।
- खान या कारखाना।
- सीवेज स्थल।
- लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।
थॉमस समिति:
- के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की। न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
- दायित्व की स्थिति में बदलाव से संबंधित यह सिद्धांत, यौन अपराधों तथा इस तरह के अन्य अपराधों पर लागू होता है।
- सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
- न्यायालय द्वारा इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया।
नरीमन समिति :
- इस समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
- सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने को कहा।
स्रोत: द हिंदू
स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन को ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड’ (Stop TB Partnership Board) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
- वह जुलाई 2021 से आगामी तीन वर्ष के कार्यकाल तक ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड’ के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेंगे।
प्रमुख बिंदु:
स्टॉप टीबी पार्टनरशिप बोर्ड के विषय में:
- इसकी स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी और यह सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में तपेदिक को समाप्त करने हेतु आज्ञापित है।
- मार्च 1998 में लंदन में आयोजित ‘तपेदिक महामारी पर तदर्थ समिति’ (Ad Hoc Committee on the Tuberculosis Epidemic) के प्रथम सत्र की बैठक के बाद इस संगठन की परिकल्पना की गई थी।
- अपनी स्थापना के प्रथम वर्ष में ही एम्स्टर्डम घोषणा (Amsterdam Declaration) के माध्यम से स्टॉप टीबी पार्टनरशिप ने टीबी से सर्वाधिक प्रभावित 20 देशों के मंत्रिस्तरीय प्रतिनिधिमंडलों से सहयोगात्मक कार्रवाई का आह्वान किया।
- वर्ष 2019 में इसने टीबी समाप्ति के लिये अद्यतन वैश्विक योजना “Global Plan to End TB 2018-2022” लॉन्च की।
- ‘स्टॉप टीबी पार्टनरशिप’ द्वारा प्रतिवर्ष ऐसे व्यक्तियों और/या संगठनों को कोचोन पुरस्कार (Kochon Prize) प्रदान किया जाता है, जिन्होंने टीबी का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- कोरिया गणराज्य में पंजीकृत एक गैर-लाभकारी फाउंडेशन, कोचोन फाउंडेशन द्वारा दिये जाने वाले इस पुरस्कार के तहत 65,000 अमेरिकी डॉलर की राशि प्रदान की जाती है।
- इसका सचिवालय स्विट्ज़रलैंड, जिनेवा में स्थित है।
टीबी से अत्यधिक प्रभावित देश:
- वर्ष 2019 में टीबी के कुल नए मामलों में से 87% मामले उन 30 देशों से थे जो टीबी से उच्च रूप से प्रभावित हैं।
- टीबी के कुल नए मामलों में से दो-तिहाई मामलों के लिये केवल आठ देश उत्तरदायी हैं। WHO की वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट (Global Tuberculosis Report) के अनुसार, टीबी के सर्वाधिक मामले भारत में पाए गए हैं, इसके बाद क्रमशः इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका का स्थान है।
भारतीय परिदृश्य:
- अनुमानित 2.64 मिलियन टीबी रोगियों के साथ भारत विश्व स्तर पर टीबी से सर्वाधिक प्रभावित देश है।
- हाल ही में स्टॉप टीबी पार्टनरशिप और मेडिसिन सेंस फ्रंटियर्स/डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (MSF) की ‘स्टेप अप फॉर टीबी’ रिपोर्ट ने दवा प्रतिरोधी टीबी के उपचार हेतु नई दवाओं के बारे में भारत के रूढ़िवादी दृष्टिकोण को उजागर किया है, जो रोगियों (जिसमें बच्चे भी शामिल हैं) के जीवन को खतरे में डालते हैं।
भारत द्वारा उठाए गए कदम:
- भारत ने वर्ष 2025 तक देश में टीबी के उन्मूलन हेतु प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- जो कि वैश्विक समय-सीमा वर्ष 2030 से पाँच वर्ष पूर्व है।
- टीबी उन्मूलन हेतु राष्ट्रीय रणनीति योजना 2017-2025:
- यह योजना वर्ष 2025 तक भारत में टीबी के नियंत्रण और उन्मूलन के लिये शुरू की गई है, जो चार रणनीतिक स्तंभों (DTPB) पर आधारित है। ये चार स्तंभ हैं:
- पता लगाना (Detect),
- उपचार करना (Treat),
- रोकथाम (Prevent) और
- निर्माण (Build)
- टीबी हारेगा देश जीतेगा अभियान, निक्षय पोषण योजना इत्यादि।
- यह योजना वर्ष 2025 तक भारत में टीबी के नियंत्रण और उन्मूलन के लिये शुरू की गई है, जो चार रणनीतिक स्तंभों (DTPB) पर आधारित है। ये चार स्तंभ हैं:
वैश्विक प्रयास:
- WHO की एंड टीबी स्ट्रेटेजी।
- प्रत्येक वर्ष 24 मार्च को विश्व तपेदिक दिवस/विश्व क्षय रोग दिवस मनाया जाता है जिसका उद्देश्य लोगों के स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था टीबी के प्रभाव को रेखांकित करना है।
क्षय रोग/तपेदिक
- टीबी या क्षय रोग बैक्टीरिया (माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस) के कारण होता है जो फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करता है।
- संचार: टीबी एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खाँसी, छींकने या थूकने के दौरान हवा के माध्यम से या फिर संक्रमित सतह को छूने से फैलता है।
- लक्षण: इस रोग से पीड़ित व्यक्ति में बलगम और खून के साथ खाँसी, सीने में दर्द, कमज़ोरी, वज़न कम होना तथा बुखार इत्यादि लक्षण देखे जाते हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के मुख्यमंत्री द्वारा पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (Eastern Rajasthan Canal Project- ERCP) को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने की मांग की गई है।
- इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिलने का मुख्य लाभ यह होगा कि परियोजना को पूर्ण करने हेतु 90% राशि केंद्र सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी।
- ERCP की अनुमानित लागत लगभग 40,000 करोड़ रुपए है।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- राज्य जल संसाधन विभाग के अनुसार, राजस्थान का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 342.52 लाख हेक्टेयर है जो संपूर्ण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 10.4% है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत का सबसे बड़ा राज्य है। देश में उपलब्ध कुल सतही जल की 1.16% और भूजल की 1.72% मात्रा यहाँ पाई जाती है।
- राज्य जल निकायों में केवल चंबल नदी के बेसिन में अधिशेष जल की उपलब्धता है परंतु इसके जल का सीधे तौर पर उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि कोटा बैराज के आस-पास का क्षेत्र मगरमच्छ अभयारण्य के रूप में संरक्षित है।
- ERCP का उद्देश्य मोड़दार संरचनाओं की सहायता से अंतर-बेसिन जल अंतरण चैनलों को जोड़ने तथा मुख्य फीडर चैनलों को जल आपूर्ति हेतु वाटर चैनलों का एक नेटवर्क तैयार करना है जो राज्य की 41.13% आबादी के साथ राजस्थान के 23.67% क्षेत्र को कवर करेगा।
पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के बारे में:
- ERCP का उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान में बहने वाली चंबल नदी और उसकी सहायक नदियों (कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध) में वर्षा ऋतु के दौरान उपलब्ध अधिशेष जल का उपयोग राज्य के उन दक्षिण-पूर्वी ज़िलों में करना है जहाँ पीने के पानी और सिंचाई हेतु जल का अभाव है।
- ERCP को वर्ष 2051 तक पूरा किये जाने की योजना है जिसमें दक्षिणी एवं दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में मानव तथा पशुधन हेतु पीने के पानी तथा औद्योगिक गतिविधियों हेतु पानी की आवश्यकताओं को पूरा किया जाना है।
- इसमें राजस्थान के 13 ज़िलों में पीने का पानी और 26 विभिन्न बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं के माध्यम से 2.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है।
- 13 ज़िलों में झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर शामिल हैं।
लाभ:
- महत्त्वपूर्ण भू-क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होगी।
- इससे राज्य के ग्रामीण इलाकों में भूजल तालिका (Ground Water Table) में सुधार होगा।
- यह लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को सकारात्मक रूप से परिवर्तित करेगा।
- यह परियोजना विशेष रूप से दिल्ली मुंबई औद्योगिक गलियारे (Delhi Mumbai Industrial Corridor- DMIC) पर ज़ोर देते हुए इस बात की परिकल्पना करती है कि इससे स्थायी जल स्रोतों को बढ़ावा मिलेगा जो क्षेत्र में उद्योगों को विकसित करने में मदद करेंगे।
- इसके परिणामस्वरूप राज्य में निवेश और राजस्व में वृद्धि होगी।
चंबल नदी
- यह भारत की सबसे कम प्रदूषित नदियों में से एक है।
- इसका उद्गम स्थल विंध्य पर्वत (इंदौर, मध्य प्रदेश) के उत्तरी ढलान पर स्थित सिंगार चौरी (Singar Chouri) चोटी है। यहाँ से यह लगभग 346 किमी. तक मध्य प्रदेश में उत्तर दिशा की ओर बहती हुई राजस्थान में प्रवेश करती है। राजस्थान में इस नदी की कुल लंबाई 225 किमी. है जो इस राज्य के उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है।
- उत्तर प्रदेश में इस नदी की कुल लंबाई लगभग 32 किमी. है जो इटावा में यमुना नदी में मिल जाती है।
- यह एक वर्षा आधारित नदी है, जिसका बेसिन विंध्य पर्वत शृंखलाओं और अरावली से घिरा हुआ है। चंबल और उसकी सहायक नदियाँ उत्तर-पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में बहती हैं।
- राजस्थान में हाडौती/हाड़ौती का पठार (Hadauti Plateau) चंबल नदी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र मेवाड़ मैदान के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
- सहायक नदियाँ: बनास, काली सिंध, क्षिप्रा, पार्वती आदि।
- चंबल नदी की मुख्य बिजली परियोजनाएँ/बाँध: गांधी सागर बाँध, राणा प्रताप सागर बाँध, जवाहर सागर बाँध और कोटा बैराज।
- राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (National Chambal Sanctuary) उत्तर भारत में ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ घड़ियाल, रेड क्राउन्ड रूफ कछुए (Red-Crowned Roof Turtle) और लुप्तप्राय गंगा डॉल्फिन (राष्ट्रीय जलीय पशु) के संरक्षण के लिये चंबल नदी बेसिन के क्षेत्र में 5,400 वर्ग किमी. में फैला त्रिकोणीय राज्य (राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश) संरक्षित क्षेत्र है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वाहन स्क्रैपिंग नीति
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय सड़क और परिवहन मंत्री ने लोकसभा में वाहन स्क्रैपिंग नीति (Vehicle Scrapping Policy) की घोषणा की।
- इस नीति को केंद्रीय बजट 2021-22 में पहली बार घोषित किया गया था।
- इस नीति के अंतर्गत 20 साल से अधिक पुराने 51 लाख और 15 साल से अधिक पुराने 34 लाख हल्के मोटर व्हीकल्स (LMV) को शामिल किया गया है।
- भारत एक ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) आधारित टोल संग्रह प्रणाली को भी लागू करेगा और एक साल के अंदर सभी टोल बूथों को बंद कर दिया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
उद्देश्य:
- पुराने और खराब वाहनों को कम कर इनसे होने वाले वायु प्रदूषकों को कम करना, सड़क और वाहनों की सुरक्षा में सुधार करना।
प्रावधान:
- फिटनेस टेस्ट:
- पुनः पंजीकरण कराने से पूर्व 15 वर्ष से अधिक पुराने वाणिज्यिक वाहनों और 20 वर्ष से अधिक पुराने निजी वाहनों को एक फिटनेस टेस्ट पास करना होगा।
- पुराने वाहनों का परीक्षण स्वचालित फिटनेस केंद्र में किया जाएगा, यहाँ वाहनों का फिटनेस टेस्ट अंतर्राष्ट्रीय मानकों पर किया जाएगा।
- इन फिटनेस केंद्रों में वाहनों का उत्सर्जन परीक्षण, ब्रेकिंग सिस्टम, सुरक्षा घटकों आदि का परीक्षण किया जाएगा और इस टेस्ट में विफल रहने वाले वाहनों को हटा (Scrap) दिया जाएगा।
- मंत्रालय ने पंजीकरण प्रक्रिया के लिये स्क्रैपिंग सुविधाओं हेतु नियम भी जारी किये हैं।
- रोड टैक्स से छूट
- राज्य सरकारों को सलाह दी जाती है कि वे निजी वाहनों के लिये 25% तक और व्यावसायिक वाहनों हेतु 15% तक रोड-टैक्स में छूट प्रदान करें ताकि पुराने वाहनों के मालिकों को पुराने तथा अनफिट वाहनों को हटाने के लिये प्रोत्साहित किया जा सके।
- वाहन में छूट:
- वाहन निर्माताओं द्वारा 'स्क्रैपिंग सर्टिफिकेट' दिखाने वालों को नई गाड़ी लेने पर 5% की छूट दी जाएगी, साथ ही नए वाहन के पंजीकरण शुल्क में भी छूट दी जाएगी।
- हतोत्साहित करना:
- 15 वर्ष या इससे पुराने वाहनों के पुनः पंजीकरण शुल्क को बढ़ाकर ऐसे वाहनों के प्रयोग को हतोत्साहित किया जाएगा।
महत्त्व:
- स्क्रैप यार्ड का निर्माण:
- यह देश में अधिक स्क्रैप यार्ड बनाने और पुराने वाहनों के कचरे से प्रभावी रूप से निपटने में मदद करेगा।
- रोज़गार:
- नए फिटनेस सेंटरों से लगभग 35 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा और 10,000 करोड़ रुपए का निवेश प्राप्त होगा।
- राजस्व में सुधार:
- यह भारी और मध्यम वाणिज्यिक वाहनों जो कि IL&FS संकट (Infrastructure Leasing & Financial Services) और कोविड-19 महामारी से उत्पन्न स्थितियों के कारण आर्थिक मंदी में थे, की बिक्री को बढ़ावा देगा।
- इस नीति से सरकारी खजाने को वस्तु और सेवा कर (GST) के माध्यम से लगभग 30,000 से 40,000 करोड़ रुपए प्राप्त होने की उम्मीद है।
- कीमतों में कमी:
- पुराने वाहनों से प्राप्त धातु और प्लास्टिक के पुनर्चक्रण से ऑटो कंपोनेंट (Auto Component) की कीमतें काफी हद तक कम हो जाएगी।
- स्क्रैप सामग्री सस्ती होने से वाहन निर्माताओं की उत्पादन लागत कम हो जाएगी।
- प्रदूषण में कमी:
- यह ईंधन दक्षता में सुधार और प्रदूषण को कम करने में मदद करेगा।
- नए वाहनों की तुलना में पुराने वाहन पर्यावरण को 10 से 12 गुना अधिक प्रदूषित करते हैं। एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में 15 वर्ष से अधिक पुराने लगभग 17 लाख मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहन मौजूद हैं।
- यह ईंधन दक्षता में सुधार और प्रदूषण को कम करने में मदद करेगा।
वाहन प्रदूषण को रोकने के लिये अन्य पहलें:
- गो इलेक्ट्रिक अभियान।
- फेम इंडिया स्कीम फेज II।
- दिल्ली के लिये इलेक्ट्रिक वाहन नीति, 2020।
- हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित बस और कार परियोजना।
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन, 2020।