इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत का पशुधन क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR), पशुधन क्षेत्र, पशुपालन, आर्थिक सर्वेक्षण-2021, सकल मूल्यवर्द्धित, दुग्ध उत्पाद, LSD, ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण। मेन्स के लिये:भारत के पशुधन क्षेत्र की स्थिति, भारत में पशुधन से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) द्वारा पशु नस्ल पंजीकरण प्रमाणपत्र वितरण समारोह का आयोजन किया गया।
- इस अवसर पर केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने अपने संबोधन में कृषि एवं पशुपालन क्षेत्र को समृद्ध बनाने हेतु भारत में बड़ी संख्या में स्वदेशी पशुधन नस्लों की पहचान करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
भारत में पशुधन क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- पशुपालन ऐतिहासिक रूप से भारत में कृषि का एक अभिन्न अंग रहा है और वर्तमान में भी प्रासंगिक है क्योंकि समाज का एक बड़ा वर्ग सक्रिय रूप से कृषि कार्य में संलग्न एवं इस पर निर्भर है।
- भारत पशुधन जैवविविधता में समृद्ध है और इसने विभिन्न जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल कई विशिष्ट नस्लों को विकसित किया है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में पशुधन का योगदान:
- भारत का पशुधन क्षेत्र वर्ष 2014-15 से 2020-21 (स्थिर कीमतों पर) के दौरान 7.9% की CAGR दर से बढ़ा और कुल कृषि GVA (स्थिर कीमतों पर) में इसका योगदान वर्ष 2014-15 के 24.3% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1% हो गया।
- पशुधन न केवल आर्थिक रूप से लाभप्रद और परिवारों के लिये भोजन एवं आय का एक विश्वसनीय स्रोत है, बल्कि यह ग्रामीण परिवारों को रोज़गार भी प्रदान करता है, जो फसल के खराब होने की स्थिति में बीमा के रूप में कार्य करता है। साथ ही एक किसान के स्वामित्त्व वाले पशुधन की संख्या समुदाय के बीच उसकी सामाजिक स्थिति को भी निर्धारित करती है।
- भारत में दुग्ध (Dairy) सबसे बड़ा एकल कृषि उत्पाद है। इसका राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में 5% का योगदान है और यह 80 मिलियन डेयरी किसानों को रोज़गार प्रदान करता है।
- मान्यता प्राप्त स्वदेशी पशुधन प्रजातियाँ:
- हाल ही में ICAR ने पशुधन प्रजातियों की 10 नई नस्लों को पंजीकृत किया है। इससे जनवरी 2023 तक देशी नस्लों की कुल संख्या 212 हो गई है।
- स्वदेशी पशुधन प्रजातियों की 10 नई नस्लें निम्नलिखित हैं:
- कथानी मवेशी (महाराष्ट्र), सांचोरी मवेशी (राजस्थान) और मासिलम मवेशी (मेघालय)।
- पूर्णाथाड़ी भैंस (महाराष्ट्र)।
- सोजत बकरी (राजस्थान), करौली बकरी (राजस्थान) और गुजरी बकरी (राजस्थान)।
- बाँदा सुअर (झारखंड), मणिपुरी काला सुअर (मणिपुर) और वाक चंबिल सुअर (मेघालय)।
- भारत में पशुधन से संबंधित मुद्दे:
- पारदर्शिता की कमी:
- देश के लगभग आधे पशुधन अभी भी वर्गीकृत नहीं हैं। इसके अलावा भारतीय पशुधन उत्पाद बाज़ार ज़्यादातर अविकसित, अनिश्चित, पारदर्शिता की कमी और अनौपचारिक बाज़ार मध्यस्थों के प्रभुत्त्व वाले हैं।
- पशुओं में बीमारी में वृद्धि:
- पशुओं में संचारी रोगों में वृद्धि हुई है। हाल ही में भारत के विभिन्न राज्यों में मवेशियों में गाँठदार त्वचा रोग (Lumpy Skin Disease- LSD) के अनेक मामले देखे गए हैं।
- सेवाओं के विस्तार का अभाव:
- हालाँकि फसल उत्पादन और उत्पादकता में वृद्धि हेतु सेवाओं के विस्तार को व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त है, लेकिन पशुधन के विस्तार पर कभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया एवं यह भारत में पशुधन क्षेत्र की कम उत्पादकता के प्रमुख कारणों में से एक रहा है।
- पारदर्शिता की कमी:
पशुधन क्षेत्र से संबंधित सरकारी योजनाएँ:
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF): इस योजना के तहत केंद्र सरकार उधारकर्त्ता को 3% की ब्याज सहायता और कुल उधार के 25% तक क्रेडिट गारंटी प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM): इस योजना को वर्ष 2021-22 से 2025-26 के लिये पुनर्गठित किया गया है।
- यह योजना उद्यमिता विकास और चारा विकास सहित मुर्गी पालन, भेड़, बकरी और सुअर पालन में नस्ल सुधार पर केंद्रित है।
- पशुधन स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण (LH&DC) योजना: यह टीकाकरण द्वारा आर्थिक और ज़ूनोटिक महत्त्व के पशुओं में रोगों की रोकथाम, नियंत्रण तथा इस दिशा में राज्य/केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों के प्रयासों को बल प्रदान करने हेतु कार्यान्वित की जा रही है।
- राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NADCP): इसे खुरपका और मुँहपका रोग एवं ब्रूसेलोसिस के खिलाफ मवेशियों, भैंस, भेड़, बकरी और सुअर की आबादी तथा ब्रुसेलोसिस के खिलाफ 4-8 माह के मादा गोजातीय बछड़ों का पूरी तरह से टीकाकरण करने हेतु लागू किया जा रहा है।
भारत अपने पशुधन क्षेत्र को कैसे बढ़ा सकता है?
- नई नस्लों का पंजीकरण: राज्य विश्वविद्यालयों, पशुपालन विभागों, गैर-सरकारी संगठनों और अन्य के सहयोग से देश में सभी पशु आनुवंशिक संसाधनों का दस्तावेज़ीकरण करने का ICAR का मिशन इस दिशा में एक अच्छा कदम है।
- इसके अलावा कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग (DARE) ने इन स्वदेशी नस्लों पर संप्रभुता का दावा करने हेतु वर्ष 2019 से राजपत्र में सभी पंजीकृत नस्लों को अधिसूचित करना शुरू कर दिया है।
- पशु चिकित्सा एम्बुलेंस सेवा और अनिवार्य पशुधन टीकाकरण: घायल पशुओं को तत्काल प्राथमिक उपचार प्रदान करने के लिये पशु चिकित्सालयों में एम्बुलेंस सेवाओं का विस्तार किया जाना चाहिये।
- इसके अलावा पशुधन प्राथमिक टीकाकरण अनिवार्य किया जाना चाहिये और समयबद्ध तरीके से नियमित पशु चिकित्सा निगरानी की जानी चाहिये।
- ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण: एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण सुनिश्चित करने हेतु लोगों, पशु-पौधों तथा उनके साझा पर्यावरण के मध्य अंतर्संबंध को समझने, अनुसंधान को प्रोत्साहित करने तथा मानव स्वास्थ्य को लेकर कई स्तरों पर ज्ञान साझा करने की आवश्यकता है। पौधे, मिट्टी, पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र स्वास्थ्य स्थिरता तथा ज़ूनोटिक(zoonotic) रोगों से निपटने में भी मदद कर सकते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012) (a) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती उत्तर: (c) |
स्रोत: पी.आई.बी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
चैटबाॅट
प्रिलिम्स के लिये:चैटबॉट, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग। मेन्स के लिये:आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित नैतिक मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
माइक्रोसॉफ्ट के बिंग सर्च इंजन के नए संस्करण में अब एक चैटबॉट शामिल है जो स्पष्ट भाषा में प्रश्नों का उत्तर दे सकता है। हालाँकि कुछ मामलों में इसके द्वारा उत्पन्न उत्तर गलत, भ्रामक तथा विचित्र हैं।
- ऐसा माना जा रहा है चैटबॉट ने अपने परिवेश के प्रति संवेदनशीलता अथवा जागरूकता विकसित कर ली है, और यह चिंता का विषय है
चैटबाॅट:
- चैटबॉट्स कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जिन्हें आमतौर पर टेक्स्ट आधारित इंटरफेस जैसे- मैसेजिंग एप या वेबससाइट्स के माध्यम से मानव उपयोगकर्त्ताओं के साथ बातचीत का अनुकरण करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- वे प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (Natural Language Processing- NLP) और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम के उपयोग के माध्यम से उपयोगकर्त्ता इनपुट को समझकर मानव संचार प्रक्रिया की नकल करते हैं।
- ग्राहक सेवा में सुधार और दोहराव वाले कार्यों को स्वचालित करने के लिये खुदरा व्यापार, स्वास्थ्य देखभाल, वित्त और मनोरंजन सहित विभिन्न प्रकार के उद्योगों में उनका उपयोग किया जाता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित चैटबॉट सूचना को कैसे संसाधित करते हैं?
- कुछ चैटबॉट एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा संचालित होते हैं जिसे तंत्रिका नेटवर्क कहा जाता है।
- तंत्रिका नेटवर्क एक प्रकार का मशीन लर्निंग एल्गोरिदम है जो मानव मस्तिष्क की संरचना और कार्य से प्रेरित गणितीय मॉडल का उपयोग करता है।
- इसमें इंटरकनेक्टेड नोड्स या कृत्रिम न्यूरॉन्स होते हैं, जो जानकारी को संसाधित करते हैं तथा बार-बार एक्सपोज़र के माध्यम से डेटा में पैटर्न को पहचानना सीखते हैं।
- जैसा कि तंत्रिका नेटवर्क बड़ी मात्रा में डेटा का विश्लेषण करता है, यह परिणामों की भविष्यवाणी करने या वस्तुओं को वर्गीकृत करने में अपनी सटीकता में सुधार के लिये अपने मापदंडों को समायोजित कर सकता है।
- शोधकर्त्ताओं ने ‘लार्ज लैंग्वेज मॉडल’ नामक तंत्रिका नेटवर्क का निर्माण शुरू किया जो बड़ी मात्रा में डिजिटल टेक्स्ट, जैसे- किताबें, ऑनलाइन लेख और चैट लॉग से सीखते हैं। उदाहरण: माइक्रोसॉफ्ट का कोपायलट (Copilot) एवं Open AI का ChatGPT।
चैटबॉट्स से संबंधित मुद्दे:
- अशुद्धि: यदि चैटबॉट उपयोगकर्त्ता के इरादे या उसके प्रश्न के संदर्भ को नहीं समझते हैं तो वे गलत या अधूरी जानकारी प्रदान कर सकते हैं। इससे निराशा तथा खराब उपयोगकर्त्ता अनुभव मिल सकता है।
- सुरक्षा और गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: चैटबॉट उपयोगकर्त्ताओं से संवेदनशील जानकारी एकत्र कर सकते हैं, जैसे- व्यक्तिगत विवरण या क्रेडिट कार्ड की जानकारी, जो डेटा उल्लंघन या अन्य सुरक्षा खतरों के प्रति संवेदनशील हो सकती है।
- नैतिक विचार: चैटबॉट पूर्वाग्रह या भेदभाव को कायम रख सकते हैं यदि उन्हें समावेशिता (Inclusivity) और विविधता को ध्यान में रखकर डिज़ाइन नहीं किया गया हो।
- इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में चैटबॉट्स के उपयोग को लेकर चिंताएँ हैं, जहाँ गलत या भ्रामक जानकारी के कारण मरीज़ को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
आगे की राह
- नैतिकता और समावेशिता: चैटबॉट्स को नैतिक विचारों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया जाना चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे पूर्वाग्रह या भेदभाव युक्त न हों।
- इसके अतिरिक्त चैटबॉट को सभी उपयोगकर्त्ताओं को शामिल करने के लिये डिज़ाइन किया जाना चाहिये, चाहे उनकी पृष्ठभूमि या क्षमता कुछ भी हो।
- सहयोग: मनुष्यों और चैटबॉट्स के मध्य सहयोग चैटबॉट प्रतिक्रियाओं की सटीकता तथा प्रभावशीलता में सुधार करने में मदद कर सकता है, साथ ही उपयोगकर्त्ताओं को अधिक मानवीय अनुभव प्रदान कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमता (Artificial Intelligence) निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
G-secs यानी सरकारी प्रतिभूतियों को ऋण देने और लेने का मसौदा मानदंड
प्रिलिम्स के लिये:सरकारी प्रतिभूति ऋण दिशा-निर्देश- 2023, रेपो लेन-देन, राजकोषीय घाटा, खुला बाज़ार संचालन। मेन्स के लिये:G-secs यानी सरकारी प्रतिभूतियों को ऋण देने और लेने का मसौदा मानदंड। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय रिज़र्व बैंक (सरकारी प्रतिभूति ऋण) निर्देश- 2023 का मसौदा जारी किया।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने सरकारी प्रतिभूतियों (G-sec) में प्रतिभूति ऋण देने और लेने की शुरुआत का प्रस्ताव किया है, जिसका उद्देश्य निवेशकों को निष्क्रिय प्रतिभूतियों को सक्रिय करने तथा पोर्टफोलियो रिटर्न बढ़ाने के लिये एक अवसर प्रदान करके प्रतिभूति ऋण बाज़ार में व्यापक भागीदारी की सुविधा प्रदान करना है।
मसौदा मानदंड:
- सरकारी प्रतिभूति ऋण (GSL) लेन-देन न्यूनतम एक दिन और अधिकतम 90 दिनों की अवधि के लिये किये जाएंगे।
- ट्रेज़री बिलों को छोड़कर केंद्र सरकार द्वारा जारी सरकारी प्रतिभूतियाँ GSL लेन-देन के तहत ऋण देने/लेने के लिये पात्र होंगी।
- केंद्र सरकार (ट्रेज़री बिल सहित) और राज्य सरकारों द्वारा जारी सरकारी प्रतिभूतियाँ GSL लेन-देन के तहत संपार्श्विक के रूप में पात्र होंगी।
- सरकारी प्रतिभूतियों और रिज़र्व बैंक द्वारा अनुमोदित किसी भी अन्य इकाई में रेपो लेन-देन करने के लिये पात्र इकाई प्रतिभूतियों के ऋणदाता के रूप में GSL लेन-देन में भाग ले सकेगी।
सरकारी प्रतिभूतियाँ:
- परिचय:
- सरकारी प्रतिभूति (G-Sec) केंद्र सरकार या राज्य सरकारों द्वारा जारी एक व्यापार योग्य लिखत (Instrument) है।
- G-Sec एक प्रकार का ऋण साधन है जो सरकार द्वारा अपने राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण हेतु जनता से पैसा उधार लेने के लिये जारी किया जाता है।
- ऋण लेख एक वित्तीय साधन है जो जारीकर्त्ता द्वारा निर्दिष्ट तिथि पर धारक को एक निश्चित राशि, जिसे मूलधन या अंकित मूल्य के रूप में जाना जाता है, का भुगतान करने के लिये संविदात्मक दायित्त्व का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- यह सरकार के ऋण दायित्त्व को स्वीकार करता है। ऐसी प्रतिभूतियाँ अल्पावधि (आमतौर पर एक वर्ष से कम की मूल परिपक्वता अवधि के साथ वर्तमान में तीन अवधियों में जारी की जाती हैं, अर्थात् 91 दिन, 182 दिन और 364 दिन) या दीर्घ अवधि (आमतौर पर सरकारी बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ) एक वर्ष या उससे अधिक की मूल परिपक्वता अवधि वाली ट्रेज़री बिल कहलाती हैं।
- भारत में केंद्र सरकार ट्रेज़री बिल और बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ दोनों जारी करती है, जबकि राज्य सरकारें केवल बॉण्ड या दिनांकित प्रतिभूतियाँ जारी करती हैं, जिन्हें राज्य विकास ऋण (SDLs) कहा जाता है।
- G-Secs में व्यावहारिक रूप से डिफॉल्ट का कोई जोखिम नहीं होता है, इसलिये जोखिम मुक्त गिल्ट-एज इंस्ट्रूमेंट कहलाते हैं।
- गिल्ट-एज सिक्योरिटीज़ उच्च-श्रेणी के निवेश बॉण्ड हैं जो सरकारों और बड़े निगमों द्वारा धन उधार लेने के साधन के रूप में पेश किये जाते हैं।
G-Secs के प्रकार:
- ट्रेज़री बिल (T-बिल):
- ट्रेज़री बिल ज़ीरो कूपन सिक्योरिटीज़ हैं और कोई ब्याज नहीं देते हैं। उन्हें छूट पर जारी किया जाता है और परिपक्वता पर अंकित मूल्य पर भुनाया जाता है।
- नकद प्रबंधन बिल (CMBs):
- वर्ष 2010 में भारत सरकार ने RBI के परामर्श से भारत सरकार के नकदी प्रवाह में अस्थायी असंतुलन के समाधान के लिये CMBs के रूप में जाना जाने वाला एक नया अल्पकालिक साधन पेश किया। CMBs में सामान्यतः T-बिल के समान विशेषताएँ होती हैं किंतु यह 91 दिनों से कम की परिपक्वता अवधि के लिये जारी किया जाता है।
- डेटेड जी-सेक:
- डेटेड जी-सेक वे प्रतिभूतियाँ हैं जिनका एक निश्चित या फ्लोटिंग कूपन (ब्याज दर) होता है, जिसका भुगतान अंकित मूल्य के साथ अर्द्धवार्षिक आधार पर किया जाता है। डेटेड/ दिनांकित प्रतिभूतियों की अवधि सामान्यतः 5 वर्ष से 40 वर्ष तक होती है।
- राज्य विकास ऋण (State Development Loans- SDL):
- राज्य सरकारें बाज़ार से भी ऋण प्राप्त कर सकती हैं, जिन्हें SDL कहा जाता है। SDLदिनांकित प्रतिभूतियाँ हैं जो केंद्र सरकार द्वारा जारी दिनांकित प्रतिभूतियों हेतु आयोजित नीलामी के समान एक नियमित नीलामी के माध्यम से जारी की जाती हैं।
- जारी करने का तंत्र:
- RBI धन की आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के हेतु जी-सेक की बिक्री या खरीद के लिये खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations- OMO) आयोजित करता है।
- RBI द्वारा सिस्टम से तरलता को हटाने हेतु जी-सेक की बिक्री की जाती है और सिस्टम में तरलता बढ़ाने के लिये जी-सेक को वापस खरीदा जाता है।
- बैंकों को उधार देना जारी रखने की अनुमति देते हुए मुद्रास्फीति को संतुलित करने हेतु इन कार्यों को अक्सर दैनिक आधार पर किया जाता है।
- RBI वाणिज्यिक बैंकों के माध्यम से खुला बाज़ार परिचालन (OMO) आयोजित करता है और जनता के साथ सीधे व्यवहार नहीं करता है।
- RBI सिस्टम में रुपए की मात्रा और कीमत को समायोजित करने हेतु रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात तथा वैधानिक तरलता अनुपात जैसे अन्य मौद्रिक नीति उपकरणों के साथ OMO का उपयोग करता है।
- RBI धन की आपूर्ति की स्थिति को समायोजित करने के हेतु जी-सेक की बिक्री या खरीद के लिये खुला बाज़ार परिचालन (Open Market Operations- OMO) आयोजित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 'खुला बाज़ार प्रचालन’ किसे निर्दिष्ट करता है? (2013) (a) अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना उत्तर: (c) प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से गैर-वित्तीय ऋण में शामिल है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d)
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |
स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स
जैव विविधता और पर्यावरण
जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन
प्रिलिम्स के लिये:जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री ध्वनि प्रदूषण, तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ), लंदन कन्वेंशन (1972) मेन्स के लिये:समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, समुद्री ध्वनि प्रदूषण और संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
"भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा उत्पन्न जल के भीतर ध्वनि के स्तर को मापना" शीर्षक वाले एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय जल में जहाज़ों द्वारा जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन (UNE) का बढ़ना समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहा है।
- गोवा तट रेखा से लगभग 30 समुद्री मील की दूरी पर एक हाइड्रोफोन स्वायत्त प्रणाली तैनात कर परिवेशी शोर के स्तर का मापन किया गया था।
अध्ययन की मुख्य विशेषताएँ:
- UNE स्तर में वृद्धि:
- भारतीय जल में UNE का ध्वनि दबाव स्तर एक माइक्रोपास्कल (dB re 1µ Pa) के सापेक्ष 102-115 डेसिबल है।
- वैज्ञानिक जल के भीतर ध्वनि हेतु संदर्भ दबाव के रूप में 1μPa का उपयोग करने पर सहमत हुए हैं।
- पूर्वी तट का स्तर पश्चिम की तुलना में थोड़ा अधिक है। लगभग 20 dB re 1µPa के मान में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
- भारतीय जल में UNE का ध्वनि दबाव स्तर एक माइक्रोपास्कल (dB re 1µ Pa) के सापेक्ष 102-115 डेसिबल है।
- कारक:
- निरंतर नौपरिवहन गतिविधियों को वैश्विक महासागर शोर स्तर में वृद्धि के लिये एक प्रमुख योगदानकर्त्ता के रूप में पहचाना जाता है।
- बॉटलनोज़ डॉल्फिन, मैनेटीज़, पायलट व्हेल, सील और स्पर्म व्हेल जैसे स्तनधारियों के जीवन के लिये जल के भीतर ध्वनि उत्सर्जन खतरा उत्पन्न कर रहा है।
- विभिन्न प्रकार के समुद्री स्तनपायी व्यवहारों के लिय ध्वनि, ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है जैसे- समागम, अंतःक्रिया, भोजन, सामूहिक सामंजस्य और आहार।
- प्रभाव:
- जहाज़ों का अंतःजल शोर और मशीनरी कंपन स्तरों की आवृत्ति 500 हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति रेंज में समुद्री प्रजातियों की संचार आवृत्तियों को प्रभावित करती हैं।
- इसे मास्किंग कहा जाता है, जिससे समुद्री प्रजातियों का उथले क्षेत्रों में प्रवास में परिवर्तन हो सकता है, साथ ही इन प्रजातियों का गहरे जल में वापस जाना भी मुश्किल हो सकता है।
- हालाँकि दीर्घ अवधि में जहाज़ों से निकलने वाली ध्वनि उन्हें प्रभावित करती है और इसके परिणामस्वरूप आंतरिक क्षति, सुनने की क्षमता में कमी, व्यावहारिक प्रतिक्रियाओं में बदलाव, मास्किंग और तनाव उत्पन्न होता है।
- जहाज़ों का अंतःजल शोर और मशीनरी कंपन स्तरों की आवृत्ति 500 हर्ट्ज़ से कम आवृत्ति रेंज में समुद्री प्रजातियों की संचार आवृत्तियों को प्रभावित करती हैं।
समुद्री ध्वनि प्रदूषण:
- समुद्री ध्वनि प्रदूषण समुद्र के वातावरण में अत्यधिक या हानिकारक ध्वनि है। यह कई प्रकार की मानवीय गतिविधियों के कारण होता है, जैसे- शिपिंग, सैन्य सोनार, तेल और गैस की खोज, नौका विहार तथा जेट स्कीइंग जैसी मनोरंजक गतिविधियाँ।
- यह समुद्री जीवन पर कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसमें व्हेल, डॉल्फिन और पोरपोइज़ जैसे समुद्री स्तनधारियों के संचार, नेविगेशन एवं शिकार व्यवहार में हस्तक्षेप करना शामिल है। यह इन समुद्री जीवों की सुनने और अन्य शारीरिक क्षमता को भी नुकसान पहुँचा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप चोट या मृत्यु हो सकती है।
समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा हेतु पहल:
- वैश्विक:
- भूमि आधारित गतिविधियों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा हेतु वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम (Global Programme of Action- GPA):
- GPA एकमात्र वैश्विक अंतर-सरकारी तंत्र है जो सीधे स्थलीय, मीठे जल, तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के बीच संपर्क को बढ़ावा देता है।
- MARPOL अभिसमय (1973): यह परिचालन या आकस्मिक कारणों से जहाज़ों द्वारा उत्पन्न समुद्री पर्यावरण प्रदूषण को कवर करता है।
- यह तेल, हानिकारक तरल पदार्थों, पैक किये गए हानिकारक पदार्थों, जहाज़ों से उत्पन्न सीवेज़ और कचरे आदि के कारण समुद्री प्रदूषण के विभिन्न रूपों को सूचीबद्ध करता है।
- लंदन अभिसमय (1972):
- इसका उद्देश्य समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों के प्रभावी नियंत्रण को बढ़ावा देना तथा कचरे एवं अन्य पदार्थों को डंप करके समुद्री प्रदूषण को रोकने हेतु सभी व्यावहारिक कदम उठाना है।
- भूमि आधारित गतिविधियों से समुद्री पर्यावरण की सुरक्षा हेतु वैश्विक कार्रवाई कार्यक्रम (Global Programme of Action- GPA):
- भारतीय पहल:
- भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (1972): यह कई समुद्री जानवरों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है। भारत में तटीय क्षेत्रों को कवर करते हुए कुल 31 प्रमुख समुद्री संरक्षित क्षेत्र हैं जिन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ): CRZ अधिसूचना (वर्ष 1991 एवं बाद के संस्करण) संवेदनशील तटीय पारिस्थितिक तंत्र में विकासात्मक गतिविधियों तथा कचरे के निपटान पर रोक लगाती है।
- सेंटर फॉर मरीन लिविंग रिसोर्सेज़ एंड इकोलॉजी (CMLRE): CMLRE, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) का एक संलग्न कार्यालय पारिस्थितिकी तंत्र निगरानी और मॉडलिंग गतिविधियों के माध्यम से समुद्री जीवित संसाधनों के लिये प्रबंधन रणनीतियों के विकास हेतु अनिवार्य है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजनीति
दल-बदल में स्पीकर की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:दल-बदल विरोधी कानून, 10वीं अनुसूची, अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन, 1985 में 52वाँ संशोधन, 91वाँ संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2003, न्यायिक समीक्षा। मेन्स के लिये:दल-बदल हेतु आधार, दल-बदल में अध्यक्ष की भूमिका। |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने 15 फरवरी, 2023 को महाराष्ट्र संकट 2022 से संबंधित एक मामले और क्या स्वयं निष्कासन के नोटिस का सामना कर रहा स्पीकर/अध्यक्ष अपनी विधानसभा में विधायकों को अयोग्य घोषित कर सकता है, पर सुनवाई करते हुए कहा कि अयोग्यता पर फैसला लेने हेतु स्पीकर को पहला अधिकार होना चाहिये।
- इससे पहले वर्ष 2016 में नबाम रेबिया मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि निष्कासन के नोटिस का सामना करने वाला अध्यक्ष या उपाध्यक्ष विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही तय नहीं कर सकता है।
अध्यक्ष की भूमिका पर वाद-विवाद:
- पिछले तीन वर्षों से लोकसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन संविधान की 10वीं अनुसूची में वर्णित अध्यक्ष की भूमिका की समीक्षा कर रहा है, जो सांसदों और विधायकों की अयोग्यता से संबंधित है।
- चर्चाओं का मुख्य केंद्रबिंदु इस मामले में विधानसभा स्पीकर की गरिमा को सुरक्षित करना है। कई पीठासीन अधिकारियों ने विचार व्यक्त किया है कि उसकी भूमिका सीमित होनी चाहिये और दल-बदल के मामलों को तय करने हेतु अन्य तंत्र विकसित किया जाना चाहिये।
- एक प्रस्ताव पर चर्चा की जा रही है कि अयोग्यता के मुद्दे को संबंधित राजनीतिक दलों पर छोड़ दिया जाए क्योंकि वे विधायकों को टिकट देते हैं।
- वर्ष 2021 में देहरादून में अध्यक्षों के सम्मेलन के दौरान कई प्रतिभागियों ने अपनी चिंताओं को व्यक्त किया और उन कमियों की ओर इशारा किया जो अक्सर अध्यक्ष की भूमिका को प्रभावित करती हैं।
भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची:
- परिचय:
- भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची, जिसे दलबदल विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।
- यह वर्ष 1967 के आम चुनावों के बाद दल-बदलने वाले विधायकों द्वारा कई राज्य सरकारों को गिराने की प्रतिक्रिया थी।
- यह दल-बदल के आधार पर संसद (सांसदों) और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है।
- भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची, जिसे दलबदल विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया था।
- अपवाद:
- यह सांसद/विधायकों के एक समूह को दल-बदल हेतु दंडित किये बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने (यानी विलय) की अनुमति देता है।
- और यह दल बदलने वाले विधायकों को प्रोत्साहित करने या स्वीकार करने के लिये राजनीतिक दलों को दंडित नहीं करता है।
- वर्ष 1985 के अधिनियम के अनुसार, किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों में से एक-तिहाई द्वारा 'दलबदल' को 'विलय' माना जाता था।
- 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 ने इसे बदल दिया और अब किसी दल के कम- से-कम दो-तिहाई सदस्यों को "विलय" के पक्ष में होना चाहिये ताकि कानून की नज़र में इसकी वैधता हो।
- यह सांसद/विधायकों के एक समूह को दल-बदल हेतु दंडित किये बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने (यानी विलय) की अनुमति देता है।
- विवेकाधिकार:
- दल-बदल के आधार पर अयोग्यता के प्रश्नों पर निर्णय सदन के सभापति या अध्यक्ष द्वारा लिया जाता है, जो 'न्यायिक समीक्षा' के अधीन है।
- हालाँकि कानून कोई समय-सीमा प्रदान नहीं करता है जिसके भीतर पीठासीन अधिकारी को दल-बदल मामले का फैसला करना होता है।
- दल-बदल का आधार:
- यदि कोई निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है।
- यदि वह अपने राजनीतिक दल द्वारा जारी किसी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता/करती है या मतदान से दूर रहता/रहती है।
- यदि कोई स्वतंत्र रूप से निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
- यदि कोई नामित सदस्य छह माह की समाप्ति के बाद किसी राजनीतिक दल में शामिल होता है।
निष्कर्ष:
दल-बदल के मामलों में अध्यक्ष की भूमिका सरकार और लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थिरता एवं अखंडता सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि अध्यक्ष को ऐसे मामलों पर निर्णय लेते समय निष्पक्ष तरीके से कार्य करना होता है तथा निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों व संविधान के प्रावधानों द्वारा निर्देशित होना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत के संविधान की निम्नलिखित में से किस अनुसूची में दल-बदल विरोधी प्रावधान हैं? (2014) (a) दूसरी अनुसूची उत्तर: (d) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
भारतीय इतिहास
युद्ध स्मारक 1857 के विद्रोह की कहानी बताता है
प्रिलिम्स के लिये:1857 का विद्रोह, विद्रोह के नेता, कारण। मेन्स के लिये:विद्रोह के कारण और प्रभाव, सामूहिक भागीदारी की सीमा। |
चर्चा में क्यों?
1857 के विद्रोह के दौरान ब्रिटिश पक्ष से लड़ने वालों को सम्मानित करने के लिये वर्ष 1863 में युद्ध स्मारक (नई दिल्ली) बनाया गया था, लेकिन आज़ादी के 25 साल बाद इसे उन भारतीयों की याद में फिर से समर्पित किया गया, जिन्होंने अंग्रेज़ों से लड़ते हुए अपनी जान गँवाई थी।
- स्मारक में अष्टकोणीय टॉवर के सभी किनारों पर धनुषाकार संगमरमर-समर्थित खाँचे के साथ एक सामान्य गॉथिक डिज़ाइन है।
1857 का विद्रोह:
- वर्ष 1857-59 का भारतीय विद्रोह गवर्नर जनरल कैनिंग के शासन के दौरान भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के खिलाफ एक व्यापक लेकिन असफल विद्रोह था।
- यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के सिपाहियों के विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, तथा इसने अंततः जनता की भागीदारी भी हासिल की।
- विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है: सिपाही विद्रोह (ब्रिटिश इतिहासकारों द्वारा), भारतीय विद्रोह, महान विद्रोह (भारतीय इतिहासकारों द्वारा), 1857 का विद्रोह, भारतीय विद्रोह और स्वतंत्रता का पहला युद्ध (विनायक दामोदर सावरकर द्वारा)।
कारण:
- तात्कालिक कारण:
- चर्बी वाले कारतूस: 1857 का विद्रोह नई एनफील्ड राइफलों के उपयोग से शुरू हुआ था, जिनके कारतूसों को गाय और सुअर की चर्बी के साथ चिकना किया जाता था, जिससे हिंदू और मुस्लिम सिपाहियों ने उनका उपयोग करने से इनकार कर दिया था।
- शिकायतों का दमन: मंगल पांडे द्वारा बैरकपुर में कारतूस का उपयोग करने से इनकार करना और बाद में फाँसी, इसी तरह के इनकार के लिये मेरठ में 85 सैनिकों को कारावास देना, उन घटनाओं में से थे जिन्होंने भारत में 1857 के विद्रोह को जन्म दिया था।
- राजनीतिक कारण:
- व्यपगत का सिद्धांत: विद्रोह के राजनीतिक कारण व्यपगत के सिद्धांत और प्रत्यक्ष विलय के माध्यम से विस्तार की ब्रिटिश नीति थी।
- सतारा, नागपुर, झांसी, जैतपुर, संबलपुर, उदयपुर और अवध के विलय सहित भारतीय शासकों तथा प्रमुखों की संख्या को घटाने एवं विलय ने विस्तार की नीति के खिलाफ असंतोष को बढ़ा दिया। इससे अभिजात वर्ग के हज़ारों लोग, अधिकारी, अनुचर और सैनिक बेरोज़गार हो गए।
- व्यपगत का सिद्धांत: विद्रोह के राजनीतिक कारण व्यपगत के सिद्धांत और प्रत्यक्ष विलय के माध्यम से विस्तार की ब्रिटिश नीति थी।
- सामाजिक और धार्मिक कारण:
- पश्चिमी सभ्यता का प्रसार: भारत में तेज़ी से फैलती पश्चिमी सभ्यता पूरे देश के लिये चिंता का विषय थी।
- 1850 में एक अधिनियम द्वारा वंशानुक्रम के हिंदू कानून को बदल दिया गया, जिससे एक हिंदू को अपनी पैतृक संपत्तियों को विरासत में प्राप्त करने के लिये ईसाई धर्म में परिवर्तित होना पड़ता था, इसे भारतीयों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के प्रयास के रूप में देखा गया।
- यहाँ तक कि रेलवे और टेलीग्राफ की शुरुआत को भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता था।
- रूढ़िवाद को चुनौती: सती और कन्या भ्रूण हत्या जैसी प्रथाओं का उन्मूलन, पश्चिमी शिक्षा की शुरुआत और विधवा पुनर्विवाह को वैध बनाने वाले कानून को स्थापित सामाजिक संरचना के लिये खतरा माना गया।
- पश्चिमी सभ्यता का प्रसार: भारत में तेज़ी से फैलती पश्चिमी सभ्यता पूरे देश के लिये चिंता का विषय थी।
- आर्थिक कारण:
- भारी कर: किसान और ज़मींदार दोनों भूमि पर भारी करों और राजस्व संग्रह के कड़े तरीकों से नाराज़ थे जिससे अक्सर पुश्तैनी भूमि का नुकसान होता था।
- सिपाहियों की शिकायतें: बड़ी संख्या में सिपाही कृषक वर्ग से थे और गाँवों में उनके पारिवारिक संबंध थे, इसलिये किसानों की शिकायतों ने भी उन्हें प्रभावित किया।
- स्थानीय उद्योग और हस्तशिल्प का पतन: इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति के बाद भारत में ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का आगमन हुआ, जिसने उद्योगों, विशेष रूप से भारत के कपड़ा उद्योग और हस्तशिल्प को समाप्त कर दिया।
- सैन्य कारण:
- असमान पारिश्रमिक: भारत में 87% से अधिक ब्रिटिश सैनिक भारतीय थे, लेकिन उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से कमतर माना जाता था और यूरोपीय समकक्षों की तुलना में कम भुगतान किया जाता था।
- सुदूर क्षेत्रों में पोस्टिंग: उन्हें अपने घरों से दूर और समुद्र पार के क्षेत्रों में सेवा करना आवश्यक था। कई लोगों ने समुद्र पार करने को जातिगत नुकसान के रूप में देखा।
विद्रोह के नेता:
विद्रोह का स्थान |
भारतीय नेता |
ब्रिटिश अधिकारी जिन्होंने विद्रोह को दबा दिया |
दिल्ली |
बहादुर शाह द्वितीय |
जॉन निकोलसन |
लखनऊ |
बेगम हजरत महल |
हेनरी लॉरेंस |
कानपुर |
नाना साहेब |
सर कॉलिन कैम्पबेल |
झांसी एवं ग्वालियर |
लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे |
जनरल ह्यूरोज़ |
बरेली |
खान बहादुर खान |
सर कॉलिन कैम्पबेल |
इलाहाबाद और बनारस |
मौलवी लियाकत अली |
कर्नल ओनसेल |
बिहार |
कुंवर सिंह |
विलियम टेलर |
अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:
- 1857 का विद्रोह एक वर्ष से अधिक समय तक चला। इसे 1858 के मध्य तक दमनात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से दबा दिया गया था।
- 8 जुलाई, 1858 को मेरठ में विद्रोह के चौदह माह बाद लॉर्ड कैनिंग द्वारा शांति की घोषणा की गई थी।
विद्रोह के विफल होने का कारण:
- सीमित विद्रोह: हालाँकि विद्रोह काफी व्यापक था, किंतु देश का एक बड़ा हिस्सा इससे अप्रभावित रहा।
- दक्षिणी प्रांत और बड़ी रियासतें, हैदराबाद, मैसूर, त्रावणकोर और कश्मीर, साथ ही राजपूताना के छोटे राज्य विद्रोह में शामिल नहीं हुए।
- प्रभावी नेतृत्व की कमी: विद्रोहियों के पास एक प्रभावी नेता का अभाव था। यद्यपि नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के रूप में वीर नेता थे, तथापि वे आंदोलन को प्रभावी समन्वित नेतृत्त्व प्रदान नहीं कर सके।
- सीमित संसाधन: विद्रोहियों के पास पुरुष और धन जैसे संसाधनों की कमी थी। दूसरी ओर, अंग्रेज़ों को भारत में पुरुष, धन और हथियारों की निरंतर आपूर्ति होती रही।
- मध्य वर्ग की कोई भागीदारी नहीं: अंग्रेज़ी शिक्षित मध्यम वर्ग, बंगाल के अमीर व्यापारियों एवं ज़मींदारों ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेज़ो की मदद की।
विद्रोह के प्रभाव:
- ब्रिटिश क्राउन का प्रत्यक्ष शासन: भारत सरकार अधिनियम, 1858 द्वारा भारत में कंपनी शासन को समाप्त कर दिया और इसे ब्रिटिश क्राउन के प्रत्यक्ष शासन के तहत लाया गया।
- देश के शासन और प्रशासन को संभालने के लिये भारत में कार्यालय बनाया गया था।
- धार्मिक सहिष्णुता: भारत के रीति-रिवाज़ों और परंपराओं पर उचित ध्यान देने का वादा किया गया था। धार्मिक सुधारों के मामले में ब्रिटिश समर्थन पीछे हट गया।
- प्रशासनिक परिवर्तन: गवर्नर जनरल के कार्यालय को वायसराय द्वारा प्रतिस्थापित किया गया।
- भारतीय शासकों के अधिकारों को मान्यता दी गई।
- व्यपगत का सिद्धांत समाप्त कर दिया गया।
- कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र को गोद लेने का अधिकार स्वीकार किया गया।
- सैन्य पुनर्गठन: भारतीय सैनिकों के अनुपात में ब्रिटिश अधिकारियों में वृद्धि हुई लेकिन शस्त्रागार अंग्रेज़ों के हाथ में रहा।
निष्कर्ष:
1857 का विद्रोह ब्रिटिश भारत में एक उल्लेखनीय घटना थी। अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा करने में विफल होने के बावजूद इसने भारतीय राष्ट्रवाद की नींव रखी और समाज के विभिन्न वर्गों को संगठित करने में योगदान किया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा (1858) का उद्देश्य क्या था? (2014)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न. भारत के इतिहास के संदर्भ में "उलगुलान" अथवा महान उपद्रव निम्नलिखित में से किस घटना का विवरण था? (2020) (a) 1857 का विद्रोह उत्तर: (d) व्याख्या:
प्रश्न. यह स्पष्ट कीजिये कि 1857 का विप्लव किस प्रकार औपनिवेशिक भारत के प्रति ब्रिटिश नीतियों के विकासक्रम में एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक मोड़ है। (मुख्य परीक्षा, 2016) प्रश्न. आयु, लिंग और धर्म के बंधनों से मुक्त होकर भारतीय महिलाएँ भारत के स्वाधीनता संग्राम में अग्रणी बनी रहीं विवेचना कीजिये । (मुख्य परीक्षा, 2013) |