भारतीय राजनीति
विधायी सदन के अध्यक्ष के अधिकारों की समीक्षा
- 22 Jan 2020
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प्रीलिम्स के लिये10वीं अनुसूची व 52वां संविधान संशोधन मेन्स के लियेदल- बदल विरोधी कानून की आवश्यकता तथा प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद से दल-बदल विरोधी कानून (Anti-Defection Law) के अंतर्गत संसद तथा विधानसभा सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी लोकसभा और विधानसभा अध्यक्षों को प्राप्त अनन्य शक्ति की समीक्षा करने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक व्यवस्था देते हुए कहा कि संसद को विचार करना होगा कि क्या किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर निर्णय करने का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष को अर्द्धन्यायिक प्राधिकारी के रूप में दिया जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार लोकसभा और विधानसभा अध्यक्ष राजनीतिक दल से संबंधित होते हैं, ऐसे में ये सदस्यों की अयोग्यता का निर्णय करते समय राजनीतिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो सकते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विचार व्यक्त किया है कि किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार लोकसभा या विधानसभा अध्यक्ष की बजाय संसदीय ट्रिब्यूनल को देने के लिये संविधान संशोधन पर संसद को गंभीरता से विचार करना चाहिये।
- न्यायालय का विचार है कि इस ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश के द्वारा की जा सकती है।
- न्यायालय ने कहा कि संसद किसी और वैकल्पिक व्यवस्था पर भी विचार कर सकती है जिसमें निष्पक्ष और तेज गति से निर्णय लिये जा सकें।
क्या है दल- बदल विरोधी कानून
- 52वें संविधान संशोधन,1985 द्वारा भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची में 'दल बदल विरोधी कानून' (Anti-Defection Law) की व्यवस्था की गई है।
- दल- बदल विरोधी कानून की रूपरेखा राजनीतिक दल- बदल के दोषों, दुष्प्रभावों तथा पद के प्रलोभन अथवा भौतिक पदार्थों के प्रलोभन पर रोक लगाने के लिये की गई है।
- इसका उद्देश्य भारतीय संसदीय लोकतंत्र को मज़बूती प्रदान करना तथा अनैतिक दल- बदल पर रोक लगाना है।
अयोग्य घोषित करने का आधार
- यदि किसी राजनीतिक दल का सदस्य स्वेच्छा से उस राजनीतिक दल की सदस्यता त्याग देता है।
- यदि वह उस सदन में अपने राजनीतिक दल के निर्देशों के विपरीत मत देता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है तथा राजनीतिक दल से उसने पंद्रह दिन के भीतर क्षमादान न पाया हो।
- यदि कोई निर्दलीय सदस्य किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
- यदि किसी सदन का नामनिर्देशित सदस्य उस सदन में अपना स्थान ग्रहण करने के छह माह बाद किसी राजनीतिक दल की सदस्यता ग्रहण कर लेता है।
अपवाद
- यदि कोई सदस्य पीठासीन अधिकारी के रूप में चुना जाता है तो वह अपने राजनीतिक दल से त्यागपत्र दे सकता है और अपने कार्यकाल के बाद फिर से राजनीतिक दल में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा। उसे यह उन्मुक्ति पद की मर्यादा और निष्पक्षता के लिये दी गई है।
- दल-बदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।
लाभ
- यह कानून सदन के सदस्यों की दल- बदल की प्रवृत्ति पर रोक लगाकर राजनीतिक संस्था में उच्च स्थिरता प्रदान करता है।
- यह राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार को कम करता है तथा अनियमित निर्वाचनों पर होने वाले अप्रगतिशील खर्च को कम करता है।
- यह कानून विद्यमान राजनीतिक दलों को एक संवैधानिक पहचान देता है।
आलोचना
- यह असहमति तथा दल- बदल के बीच अंतर को स्पष्ट नही कर पाया। इसने विधायिका की असहमति के अधिकार तथा सदविवेक की स्वतंत्रता में अवरोध उत्पन्न किया।
- इस कानून ने दल के अनुशासन के नाम पर दल के स्वामित्व तथा अनुमति की कठोरता को आगे बढ़ाया।
- इसने छोटे स्तर पर होने वाले दल- बदल पर तो रोक लगाई परंतु बड़े स्तर पर होने वाले दल- बदल को कानूनी रूप प्रदान किया।
- यह किसी सदस्य द्वारा सदन के बाहर किये गए कार्यकलापों हेतु उसके निष्कासन की व्यवस्था नहीं करता है।