संसद के सत्र
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने COVID-19 महामारी के कारण मामलों में वृद्धि की आशंका के चलते संसद के शीतकालीन सत्र को रद्द करने का फैसला लिया है।
प्रमुख बिंदु:
संसद के सत्र (Parliament Sessions):
- संसद के सत्र के संबंध में संविधान के अनुच्छेद 85 में प्रावधान किया गया है।
- संसद के किसी सत्र को बुलाने की शक्ति सरकार के पास है। इस पर निर्णय संसदीय मामलों की कैबिनेट समिति द्वारा लिया जाता है जिसे राष्ट्रपति द्वारा औपचारिक रूप दिया जाता है।
- भारत में कोई निश्चित संसदीय कैलेंडर नहीं है। संसद के एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं।
- सबसे लंबा, बजट सत्र (पहला सत्र) जनवरी के अंत में शुरू होता है और अप्रैल के अंत या मई के पहले सप्ताह तक समाप्त हो जाता है। इस सत्र में एक अवकाश होता है ताकि संसदीय समितियाँ बजटीय प्रस्तावों पर चर्चा कर सकें।
- दूसरा सत्र तीन सप्ताह का मानसून सत्र है, जो आमतौर पर जुलाई माह में शुरू होता है और अगस्त में खत्म होता है।
- शीतकालीन सत्र यानी तीसरे सत्र का आयोजन नवंबर से दिसंबर तक किया जाता है।
संसद सत्र आहूत करना (Summoning of Parliament):
- सत्र को आहूत करने के लिये राष्ट्रपति संसद के प्रत्येक सदन को समय-समय पर सम्मन जारी करता है, परंतु संसद के दोनों सत्रों के मध्य अधिकतम अंतराल 6 माह से ज़्यादा का नही होना चाहिये। अर्थात् संसद को कम-से-कम वर्ष में दो बार मिलना चाहिये।
स्थगन (Adjournment):
- संसद की बैठक को स्थगन या अनिश्चितकाल के लिये स्थगन या सत्रवसान या विघटन (लोकसभा के मामले में) द्वारा समाप्त किया जा सकता है। स्थगन द्वारा बैठक को कुछ निश्चित समय, जो कुछ घंटे, दिन या सप्ताह हो सकता है, के लिये निलंबित किया जा सकता है।
सत्रावसान (Prorogation):
- सत्रावसान द्वारा न केवल बैठक बल्कि सदन के सत्र को भी समाप्त किया जाता है। सत्रावसान की कार्रवाई राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। सत्रावसान और फिर से इकट्ठे होने (Reassembly) तक के समय को अवकाश कहा जाता है। सत्रावसान का आशय सत्र का समाप्त होना है, न कि विघटन (लोकसभा के मामले में क्योंकि राज्यसभा भंग नहीं होती है)।
कोरम (Quorum):
- कोरम या गणपूर्ति सदस्यों की न्यूनतम संख्या है, जिनकी उपस्थिति के चलते सदन का कार्य संपादित किया जाता है। यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी समेत कुल सदस्यों का दसवाँ हिस्सा होता है। अर्थात् किसी कार्य को करने के लिये लोकसभा में कम-से-कम 55 सदस्य तथा राज्यसभा में कम-से-कम 25 सदस्यों का होना आवश्यक है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय विद्युत व्यवस्था सुधार परियोजना
चर्चा में क्यों?
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय विद्युत व्यवस्था सुधार परियोजना (NERPSIP) के लिये 6,700 करोड़ रुपए के संशोधित लागत अनुमान (RCE) को मंज़ूरी दे दी है।
- यह अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन और वितरण प्रणाली को मज़बूत करने तथा पूर्वोत्तर क्षेत्र का आर्थिक विकास सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- इस परियोजना को दिसंबर 2014 में विद्युत मंत्रालय की एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना के रूप में मंज़ूरी प्रदान की गई थी।
वित्तपोषण
- इस परियोजना का वित्तपोषण भारत सरकार द्वारा विश्व बैंक की सहायता से किया जाएगा। भारत सरकार ने इस परियोजना को 50:50 प्रतिशत वहनीयता (50 प्रतिशत विश्व बैंक : 50 प्रतिशत भारत सरकार) के आधार पर शुरू करने की योजना बनाई है, किंतु इसमें क्षमता निर्माण पर होने वाला 89 करोड़ रुपए का खर्च पूरी तरह भारत सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
क्रियान्वयन
- यह योजना पूर्वोत्तर के छह लाभार्थी राज्यों यथा- असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, नगालैंड और त्रिपुरा के सहयोग से पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पावरग्रिड) द्वारा क्रियान्वित की जाएगी, इसे दिसंबर 2021 में शुरू किये जाने का लक्ष्य रखा गया है।
- ‘पावरग्रिड’ विद्युत मंत्रालय के अधीन एक ‘महारत्न’ कंपनी है। यह मुख्य तौर पर विद्युत ट्रांसमिशन व्यवसाय में संलग्न है और इसे अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन प्रणाली (ISTS) के नियोजन, कार्यान्वयन, प्रचालन एवं अनुरक्षण का उत्तरदायित्त्व सौंपा गया है।
रख-रखाव
- परियोजना की शुरुआत के बाद इसके रख-रखाव का दायित्त्व और स्वामित्त्व संबंधित राज्य सरकार की कंपनी को मिल जाएगा।
उद्देश्य
- इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और इस क्षेत्र में अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन एवं वितरण संरचना को मज़बूत बनाना है।
महत्त्व
- इस योजना के क्रियान्वयन से एक विश्वसनीय पावर ग्रिड का निर्माण किया जा सकेगा, जिससे विद्युत केंद्रों तक पूर्वोत्तर राज्यों के संपर्क और पहुँच में सुधार होगा। इस तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी वर्गों के उपभोक्ताओं तक ग्रिड के माध्यम से बिजली की पहुँच सुनिश्चित की जा सकेगी।
- इस योजना से लाभार्थी राज्यों में प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग में भी वृद्धि की जा सकेगी, जिससे पूर्वोत्तर क्षेत्र का समग्र आर्थिक विकास सुनिश्चित हो सकेगा।
- इस योजना में शामिल एजेंसियाँ निर्माण कार्य में स्थानीय मानव बल का इस्तेमाल कर सकेंगी और इस तरह पूर्वोत्तर क्षेत्र के कुशल और अकुशल कामगारों को रोज़गार का अवसर मिलेगा।
पूर्वोत्तर से संबंधित अन्य पहलें
- पूर्वोत्तर औद्योगिक विकास योजना (NEIDS)
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2018 में इस योजना को मंज़ूरी प्रदान की थी और पूर्वोत्तर राज्यों में रोज़गार को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार इस योजना के माध्यम से मुख्यतः MSMEs क्षेत्र को बढ़ावा दे रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन मार्ट (ITM)
- यह एक वार्षिक आयोजन है, जिसका उद्देश्य घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पूर्वोत्तर क्षेत्र की पर्यटन संभावनाओं को उजागर करना है।
- ज्ञात हो कि पर्यटन मंत्रालय के कुल योजना परिव्यय का तकरीबन 10 प्रतिशत हिस्सा पूर्वोत्तर के राज्यों में पर्यटन के विकास हेतु प्रयोग किया जाता है।
- राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM)
- इस मिशन के तहत क्षेत्र-आधारित (Area-Based) और क्षेत्रीय (Regionally) रूप से विभेदित रणनीति के माध्यम से बाँस क्षेत्र के समग्र विकास को बढ़ावा देने की परिकल्पना की गई है। इस योजना का उद्देश्य संपूर्ण मूल्य शृंखला बनाकर और उत्पादकों (किसानों) का उद्योग के साथ कारगर संपर्क स्थापित कर बाँस क्षेत्र का संपूर्ण विकास सुनिश्चित करना है।
स्रोत: पी.आई.बी.
दूरसंचार क्षेत्र के लिये नए राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित नए राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश स्थापित करने को मंज़ूरी दे दी है।
- इसके अलावा मंत्रिमंडलीय समिति ने 3.25 लाख करोड़ रुपए के आरक्षित मूल्य के साथ 2,251.25 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी को भी मंज़ूरी दी है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- जुलाई माह में केंद्र सरकार ने सभी दूरसंचार ऑपरेटरों से अपने नेटवर्क का 'सूचना सुरक्षा ऑडिट' करने को कहा था।
- इस सुरक्षा ऑडिट का प्राथमिक उद्देश्य दूरसंचार नेटवर्क में ऐसी किसी भी प्रकार की ‘बैकडोर’ अथवा ट्रैपडोर’ सुभेद्यता को खोजना था, जिसका उपयोग भविष्य में अवैध रूप से किसी भी प्रकार की सूचना प्राप्त करने के लिये किया जा सकता है।
- ‘बैकडोर’ या ‘ट्रैपडोर’ टेलीकॉम हार्डवेयर में लगाया जाने वाला एक प्रकार का कंप्यूटर बग होता है, जो कंपनियों को नेटवर्क पर साझा किये जा रहे डेटा को प्राप्त करने और एकत्र करने की अनुमति देता है।
- चीन की दिग्गज टेक्नोलॉजी कंपनी हुआवे (Huawei) और जेडटीई (ZTE) पर कई बार टेलीकॉम हार्डवेयर में ‘बैकडोर’ सुभेद्यता इनस्टॉल करने और उसके माध्यम से चीन की सरकार के लिये जासूसी करने का आरोप लगा है, जिसके कारण कई देशों ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए इन कंपनियों को प्रतिबंधित कर दिया है।
- आँकड़ों की मानें तो भारती एयरटेल के लगभग 30 प्रतिशत नेटवर्क, वोडाफोन-आइडिया के 40 प्रतिशत नेटवर्क में चीनी दूरसंचार उपकरणों का उपयोग किया गया है।
- इसके अलावा सरकारी टेलीकॉम कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) और महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (MTNL) के नेटवर्क में भी चीन की कंपनियों के उपकरण शामिल हैं।
- यद्यपि सरकार ने हुआवे (Huawei) और जेडटीई (ZTE) जैसी चीन की कंपनियों को 5G ट्रायल में हिस्सा लेने की अनुमति दी थी, किंतु गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा पर संघर्ष और ऐसे ही अन्य घटनाक्रमों के कारण इन कंपनियों की भागीदारी काफी मुश्किल हो गई है।
- सरकार ने BSNL और MTNL को अपने 4G नेटवर्क के लिये चीन की कंपनियों के उपकरणों का उपयोग करने से रोक दिया।
- बीते दिनों दूरसंचार विभाग ने संकेत दिया कि वह निजी टेलीकॉम को भी चीनी उपकरण के उपयोग से परहेज करने के लिये दिशा-निर्देश देने की घोषणा करेगा, हालाँकि अभी तक इस संदर्भ में कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किये गए हैं।
दूरसंचार क्षेत्र के लिये नए राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश
- इसका उद्देश्य दूरसंचार उत्पादों और उनके स्रोतों को 'विश्वसनीय' तथा 'गैर-विश्वसनीय' श्रेणियों के तहत वर्गीकृत करना है।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (NCSC) को इसके लिये निर्दिष्ट प्राधिकरण नामित किया गया है और इसके द्वारा दूरसंचार उत्पादों को 'विश्वसनीय' तथा 'गैर-विश्वसनीय' के रूप में वर्गीकृत करने हेतु आवश्यक कार्यप्रणाली तैयार की जाएगी।
- राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (NCSC) द्वारा दूरसंचार पर राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के अनुमोदन के आधार पर अपना निर्णय लिया जाएगा।
- इस समिति की अध्यक्षता उप-राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (Deputy-NSA) द्वारा की जाएगी और इसमें अन्य विभागों तथा मंत्रालयों के सदस्यों एवं स्वतंत्र विशेषज्ञों के साथ-साथ दूरसंचार उद्योग के दो सदस्य भी शामिल होंगे।
- निर्दिष्ट प्राधिकरण यानी राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा समन्वयक (NCSC) द्वारा जिन स्रोतों को ‘विश्वसनीय स्रोत’ के रूप में नामित किया जाएगा, उनमें से जो भी दूरसंचार विभाग ‘प्रेफरेंशियल मार्किट एक्सेस’ पॉलिसी के मापदंडों को पूरा करेंगे, उन्हें ‘भारतीय विश्वसनीय स्रोत’ के रूप में प्रमाणित किया जाएगा।
- यह नीति दूरसंचार क्षेत्र में उपकरण और हैंडसेट के स्थानीय निर्माताओं को अन्य देशों के विनिर्माताओं से मुकाबला करने का अवसर प्रदान करेगी।
- दूरसंचार सेवा प्रदत्ताओं (TSPs) के लिये ‘विश्वसनीय’ उत्पाद के रूप में नामित उपकरणों का उपयोग करना आवश्यक हो जाएगा।
- हालाँकि ये राष्ट्रीय सुरक्षा निर्देश दूरसंचार सेवा प्रदत्ताओं (TSPs) को अनिवार्य रूप से अपने पुराने और मौजूदा उपकरणों को बदलने के लिये मजबूर नहीं करेंगे, साथ ही इसके तहत मौजूदा वार्षिक रखरखाव अनुबंधों अथवा पुराने उपकरणों को अपग्रेड करने संबंधी अनुबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
महत्त्व
- नए निर्देशों के अलावा सरकार दूरसंचार सेवा प्रदत्ताओं के नेटवर्क सुरक्षा की प्रभावी निगरानी और नियंत्रण के लिये नियमित अंतराल पर नए दिशा-निर्देश जारी करती रहेगी।
- इस कदम से चीनी दूरसंचार उपकरण विक्रेताओं के लिये भारतीय दूरसंचार कंपनियों को उपकरण की आपूर्ति करना और भी कठिन हो जाएगा।
- ऐसे मोबाइल एप्स, जो या तो मूलतः चीन से हैं या फिर जिनका सर्वर चीन में स्थित है, के लिये भारतीय बाज़ार में प्रवेश करना और भी मुश्किल हो जाएगा।
- ज्ञात हो कि जून 2020 से अब तक सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए तकरीबन 200 एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया है।
टेलीकॉम स्पेक्ट्रम नीलामी
- यह नीलामी 700 मेगाहर्ट्ज, 800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज, 2300 मेगाहर्ट्ज और 2500 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी बैंड्स के स्पेक्ट्रम के लिये होगी और ये स्पेक्ट्रम 20 वर्ष की वैधता अवधि के लिये प्रदान किये जाएंगे।
- इसके माध्यम से दूरसंचार सेवा प्रदाता अपने 4G समेत अन्य नेटवर्क की क्षमता बढ़ाने में समर्थ होंगे, जबकि नए सेवा प्रदाता अपनी सेवाओं को शुरू करने में समर्थ हो जाएंगे।
- ध्यातव्य है कि भारत में एक निश्चित सेवा क्षेत्र में प्रति ऑपरेटर स्पेक्ट्रम होल्डिंग अंतर्राष्ट्रीय औसत से काफी कम है, जिसके कारण नए स्पेक्ट्रम की नीलामी काफी महत्त्वपूर्ण हो गई है।
स्पेक्ट्रम नीलामी
- यह सफल बोलीदाताओं को स्पेक्ट्रम सौंपने की एक पारदर्शी प्रक्रिया है।
- स्पेक्ट्रम की पर्याप्त उपलब्धता उपभोक्ताओं के लिये दूरसंचार सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाती है।
- आर्थिक प्रगति, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजन तथा डिजिटल इंडिया के प्रसार के साथ मज़बूत जुड़ाव से टेलीकॉम क्षेत्र आज एक प्रमुख अवसंरचना क्षेत्र बन गया है तथा टेलीकॉम स्पेक्ट्रम नीलामी के निर्णय से सभी पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना की मध्यावधि समीक्षा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री ने ‘राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना’ (National Hydrology Project-NHP) के तहत हुई प्रगति की समीक्षा की है।
प्रमुख बिंदु:
राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना:
- इस योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना के रूप की गई थी, इसके तहत अखिल भारतीय स्तर पर कार्यान्वयन एजेंसियों के लिये 100% अनुदान का प्रावधान किया गया है।
- यह केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की एक पहल है तथा इसे विश्व बैंक (World Bank) द्वारा भी समर्थन प्राप्त है।
- इस योजना पर 8 वर्ष की अवधि के लिये 3680 करोड़ के परिव्यय बजट का निर्धारण किया गया है।
- लक्ष्य:
- जल संसाधन जानकारी की सीमा, विश्वसनीयता और पहुँच में सुधार करने हेतु।
- भारत में लक्षित जल संसाधन प्रबंधन संस्थानों की क्षमता को मज़बूत करना।
- विश्वसनीय सूचना के अधिग्रहण को प्रभावी रूप से सुगम बनाना जो एक कुशल जल संसाधन विकास और प्रबंधन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
- लाभार्थी
- नदी बेसिन संगठनों सहित सतह और/या भूजल नियोजन और प्रबंधन के लिये ज़िम्मेदार केंद्रीय तथा राज्य कार्यान्वयन एजेंसियाँ।
- विश्व भर में तथा विभिन्न क्षेत्रों में ‘जल संसाधन सूचना प्रणाली’ (WRIS) के उपयोगकर्त्ता।
परियोजना के घटक:
- जल संसाधन निगरानी प्रणाली: जल संसाधन निगरानी प्रणाली (WRMS) जल संसाधनों के आँकड़ों की सीमा, समयबद्धता और विश्वसनीयता में सुधार पर केंद्रित है।
- हाइड्रोमेट अवलोकन नेटवर्क (Hydromet Observation Network) की स्थापना।
- जल अवसंरचना के लिये पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (SCADA) सिस्टम की स्थापना।
- हाइड्रो-सूचना विज्ञान केंद्रों की स्थापना।
- ‘जल संसाधन सूचना प्रणाली’ (WRIS): WRIS विभिन्न डेटा स्रोतों / विभागों के डेटाबेस और उत्पादों के मानकीकरण के माध्यम से वेब-सक्षम जल संसाधन सूचना प्रणाली के साथ राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय जल सूचना केंद्रों को मज़बूत करने का समर्थन करती है।
- जल संसाधन सूचना प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।
- राज्य जल संसाधन सूचना प्रणाली की स्थापना।
- जल संसाधन संचालन और नियोजन प्रणाली (WROPS): WROPS इंटरैक्टिव विश्लेषणात्मक उपकरणों और निर्णय समर्थन प्लेटफाॅर्मों के विकास का समर्थन करती है, जो हाइड्रोलॉजिकल फ्लड फोरकास्टिंग, एकीकृत जलाशय संचालन और जल संसाधनों के सुधार के लिये डाटाबेस, मॉडल और परिदृश्य प्रबंधक को एकीकृत करेगा जिससे सतही और भूजल दोनों के बेहतर संचालन, योजना और प्रबंधन में सुधार होगा।
- विश्लेषणात्मक उपकरण और निर्णय समर्थन प्रणाली का विकास।
- उद्देश्य प्रेरित अध्ययन।
- अभिनव ज्ञान उत्पाद संचालन।
- जल संसाधन संस्थान क्षमता संवर्द्धन (WRICE): इसका लक्ष्य ज्ञान आधारित जल संसाधन प्रबंधन के लिये क्षमता निर्माण करना है।
- जल संसाधन ज्ञान केंद्र।
- पेशेवर विकास।
- परियोजना प्रबंधन।
- परिचालनात्मक समर्थन।
मध्यावधि समीक्षा:
- एनएचपी को राष्ट्रीय महत्त्व की परियोजना की संज्ञा दी गई है क्योंकि यह सभी राज्यों को जल संसाधनों से संबंधित डेटा सहयोग प्रदान करने और साझा करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी 'नोडल' 'एकल बिंदु’ मंच स्थापित करता है।
- WRMS, WRIS, WROPS और WRICE के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
- राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (NHP) के तहत जल संसाधन डेटा का एक राष्ट्रव्यापी भंडार/संग्रह- 'राष्ट्रीय जल सूचना विज्ञान केंद्र' (NWIC) की स्थापना की गई है।
- एनएचपी पैन इंडिया के आधार पर डेटा अधिग्रहण प्रणाली (RTDS) की स्थापना पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जो मैनुअल डेटा अधिग्रहण स्टेशनों का पूरक होगा और बेहतर जल संसाधन प्रबंधन के लिये निर्णय लेने हेतु एक मज़बूत नींव रखेगा।
- NHP के माध्यम से जल संसाधनों के प्रबंधन में एक व्यापक परिवर्तन देखने को मिलेगा क्योंकि इसके तहत एक एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने के साथ अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
- चिंताएँ:
- देश में इतने बड़े पैमाने पर बिखरी हुई एजेंसियों से डेटा एकत्र करना प्रभावी जल संसाधन प्रबंधन और महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने में भी एक बड़ी बाधा है।
- पिछली सरकारों के उदासीन रवैये और रुचि की कमी के परिणामस्वरूप विश्वसनीय ऐतिहासिक डेटा की अनुपलब्धता का सामना करना पड़ा है।
- सुझाव :
- अधिकारियों को NHP के तहत किये गए महत्त्वपूर्ण कार्यों को सार्वजनिक मंचों पर साझा करने के लिये निर्देशित किया जाना चाहिये और इस पहल में योगदान देने के लिये विश्व स्तर पर अकादमिक समुदाय, विश्वविद्यालयों/अनुसंधान संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- इसके साथ ही केंद्रीय जल आयोग (CWC), केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB), राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA), राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH) आदि जैसे विभिन्न हितधारकों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये जल संसाधन प्रसार मंच ‘India-WRIS’ को और बेहतर बनाना आवश्यक है।
आगे की राह:
- समय के साथ सरकार,निजी क्षेत्रों और शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थानों में स्वाभाविक रूप से व्यापक डेटा-संचालित विकास होने की उम्मीद है, जो देश के जल क्षेत्र को काफी हद तक व्यक्तिगत निर्णय पर निर्भर एक पुरानी अनुभव आधारित प्रणाली से अनुकूलित, पारदर्शी प्रणाली में बदलने की क्षमता रखता है। जहाँ सभी क्षेत्रों में किसी भी निर्णय को लागू करने से पहले ही उसके प्रभावों का समग्र रूप से आकलन करना संभव है।
स्रोत: पीआईबी
वैक्सीन हेसिटेंसी: अर्थ और समस्या
चर्चा में क्यों?
सामान्य लोगों के बीच वैक्सीन की स्वीकृति का अध्ययन करने के लिये हाल ही में कई ऑनलाइन सर्वेक्षण किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु
वैक्सीन हेसिटेंसी अथवा टीका लगवाने में संकोच
- अर्थ: यह टीके की उपलब्धता के बावजूद टीके की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति में होने वाली देरी को इंगित करता है। यह जटिल और संदर्भ-विशिष्ट अवधारणा है, जो कि समय, स्थान और टीके के आधार पर परिवर्तित होती है। साथ ही यह आत्मसंतुष्टि, सुविधा और आत्मविश्वास जैसे कारकों से प्रभावित होती है।
- कारण: गलत जानकारी/सूचना को वैक्सीन हेसिटेंसी अथवा टीका लगवाने में संकोच का सबसे प्रमुख कारण माना जाता है।
- धार्मिक प्रचार द्वारा किसी विशिष्ट टीके के निर्माण में ऐसे रोगाणुओं, रसायनों अथवा जानवरों से व्युत्पन्न उत्पाद शामिल किये गए हैं, जो धार्मिक कानूनों द्वारा निषिद्ध हैं, लोगों के समक्ष टीके को लेकर दुविधा उत्पन्न कर सकता है।
- प्रायः सोशल मीडिया के माध्यम से भी किसी टीके को लेकर गलत सूचनाओं का प्रसार किया जाता है, यह लोगों में किसी टीके के प्रति संकोच का सबसे बड़ा कारण हो सकता है।
- उदाहरण के लिये भारत में एक वर्ग ऐसा भी है, जो पोलियो की दवा से परहेज करता है, क्योंकि उनके बीच यह गलत धारणा मौजूद है कि पोलियो का टीका बाँझपन की समस्या का कारण है।
- टीके के कारण उत्पन्न रोग: विदित हो कि ओरल पोलियो वैक्सीन (OPV) में तुलनात्मक रूप से कमज़ोर, किंतु जीवित पोलियो वायरस मौजूद होते हैं। चूँकि टीका-जनित वायरस प्रतिरक्षित (Immunized) बच्चों द्वारा उत्सर्जित किया जाता है इसलिये यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी फैल सकता है।
- इससे टीका-व्युत्पन्न पोलियो वायरस (VDPV) का खतरा बढ़ जाता है।
- टीकों तक पहुँचने में असुविधा भी टीके के प्रति संकोच का प्रमुख कारण है।
वैक्सीन हेसिटेंसी के मामले
- चेन्नई स्थित अपोलो अस्पताल के शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक ऑनलाइन अध्ययन में 1424 स्वास्थ्य पेशेवरों में से केवल 45 प्रतिशत कोरोना का टीका उपलब्ध होते ही उसे लगवाएंगे।
- 55 प्रतिशत स्वास्थ्य पेशेवरों ने यह तय नहीं किया है कि उन्हें क्या करना है।
- ‘लोकल सर्कल्स’ नामक एक अन्य संस्था द्वारा किये गए ऑनलाइन सर्वेक्षण में तकरीबन 59 प्रतिशत लोगों ने टीकाकरण के प्रति दुविधा व्यक्त की।
संबंधित मुद्दे
- महामारी को नियंत्रित करने के प्रयासों पर इसका प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है।
- व्यापक पैमाने पर वायरस के प्रसार को बढ़ावा मिल सकता है।
उपाय
- जनता को जागरूक बनाना
- दवा/टीके के अनुमोदन से पूर्व उसके विकास में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे- नैदानिक परीक्षण, निगरानी, विश्लेषण और विनियामक समीक्षाओं आदि संबंधी सूचना और चर्चा आम लोगों के बीच टीके के प्रति विश्वास को बढ़ावा देने में सहायक हो सकती है।
- आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने और टीके से संबंधित गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
यूनाइटेड किंगडम में भारतीय प्रवासियों की भूमिका
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्रिटिश विदेश सचिव ने कहा है कि यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में भारतीय प्रवासियों (Indian Diaspora) की वजह से "भारत की राजनीति" कुछ अर्थों में "ब्रिटेन की राजनीति" जैसी है।
- उनका यह बयान भारत के विदेश मंत्री के साथ किसानों के विरोध-प्रदर्शन से उत्पन्न स्थिति पर चर्चा के दौरान आया।
- ब्रिटिश प्रधानमंत्री 2021 के गणतंत्र दिवस (Republic Day) समारोह में मुख्य अतिथि होंगे।
- उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री को वर्ष 2021 में आयोजित होने वाले G-7 शिखर सम्मेलन के लिये आमंत्रित किया है।
प्रमुख बिंदु:
भारतीय प्रवासी:
- भारतीय प्रवासी एक सामान्य शब्द है, इसे उन लोगों को संबोधित करने के लिये उपयोग किया जाता है जो उन क्षेत्रों से चले गए हैं जो वर्तमान में भारत की सीमाओं के भीतर हैं।
- शब्द "डायस्पोरा" ग्रीक शब्द डायस्पेयरिन से लिया गया है, जिसका अर्थ है "फैलाव"। यह उन लोगों के संदर्भ में प्रयुक्त होता है जो रोज़गार, व्यापार या किसी अन्य प्रयोजन से अपनी जन्मभूमि छोड़ देते और विश्व के दूसरे भागों में निवास करते हैं।
ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों:
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के समावेश को पूरे विश्व में आधुनिक भारतीय प्रवासियों के अस्तित्व से जोड़ा जा सकता है।
- उन्नीसवीं सदी में भारतीय गिरमिटिया श्रमिकों को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में ब्रिटिश उपनिवेशों में ले जाया गया था।
- जनसंख्या:
- ब्रिटेन में भारतीय प्रवासी सबसे बड़े जातीय अल्पसंख्यक समुदायों में से एक है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ब्रिटेन में भारतीय मूल के लगभग 1.5 मिलियन लोग रहते हैं जो ब्रिटेन की कुल जनसंख्या के लगभग 1.8% है।
- अर्थव्यवस्था: ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद में भारतीयों का 6% तक का योगदान है।
- ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों के स्वामित्व वाली कंपनियाँ 36.84 बिलियन पाउंड के संयुक्त राजस्व के साथ 1,74,000 से अधिक लोगों को रोज़गार देती हैं और कॉर्पोरेशन टैक्स के रूप में 1 बिलियन पाउंड से भी अधिक का भुगतान करती हैं।
- संस्कृति:
- ब्रिटेन की मुख्यधारा में धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति, व्यंजनों, सिनेमा, भाषाओं, धर्म, दर्शन, प्रदर्शन कला आदि का समावेशन हो गया है।
- ब्रिटेन में नेहरू केंद्र (Nehru Centre) भारतीय उच्चायोग की सांस्कृतिक शाखा है, जिसे वर्ष 1992 में स्थापित किया गया था।
- भारतीय स्वतंत्रता की 70वीं वर्षगाँठ को चिह्नित करने के लिये वर्ष 2017 को भारत-ब्रिटेन संस्कृति का वर्ष के रूप में मनाया गया।
- राजनीति:
- वर्ष 2019 में ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में भारतीय मूल के 15 सदस्य थे।
भारतीय प्रवासियों का महत्त्व
- विशाल संख्या:
- वैश्विक प्रवास रिपोर्ट (Global Migration Report) 2020 के अनुसार, भारत के 17.5 मिलियन (1 करोड़ 75 लाख) प्रवासी दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे हैं। इनके द्वारा प्रेषित धन (Remittance) को प्राप्त करने के मामले में भारत (78.6 बिलियन डॉलर) विश्व में पहले स्थान पर है।
- भारतीय प्रवासियों अपने प्रेषण, निवेश, भारत के लिये लॉबिंग, विदेशों में भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने और अपनी बुद्धिमत्ता तथा उद्यम द्वारा भारत की एक अच्छी छवि बनाने में योगदान देते हैं।
- आर्थिक मोर्चा:
- भारतीय प्रवासियों कई विकसित देशों में सबसे अमीर अल्पसंख्यकों में से एक है, इससे उन्हें भारत के हितों की पैरवी करने में मदद मिलती है।
- भारत में प्रच्छन्न बेरोज़गारी (Disguised Unemployment) को कम करने में कम-कुशल श्रमिकों (विशेषकर पश्चिम एशिया) के प्रवास ने भी मदद की है।
- प्रवासियों द्वारा प्रेषित धन भुगतान संतुलन पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- व्यापार घाटे को 70-80 बिलियन अमरिकी डॉलर के विप्रेषण से कम करने में मदद मिलती है।
- प्रवासी श्रमिकों ने क्रॉस-नेशनल नेटवर्क के सहयोग से भारत में सूचना, वाणिज्यिक और व्यावसायिक विचारों तथा प्रौद्योगिकियों के प्रवाह को सुगम बनाया है।
- राजनीतिक मोर्चा:
- भारतीय मूल के अनेक लोग कई देशों में शीर्ष राजनीतिक पदों पर हैं। वे संयुक्त राज्य अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के एक महत्त्वपूर्ण भाग होने के साथ ही सरकार में भी भागीदार हैं।
- भारतीय प्रवासियों द्वारा भारत-अमेरिकी परमाणु समझौता में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- भारतीय प्रवासी न केवल भारत की सॉफ्ट पॉवर का हिस्सा है, बल्कि पूरी तरह से स्थानांतरणीय एक राजनीतिक वोट बैंक भी है।
- भारतीय मूल के अनेक लोग कई देशों में शीर्ष राजनीतिक पदों पर हैं। वे संयुक्त राज्य अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के एक महत्त्वपूर्ण भाग होने के साथ ही सरकार में भी भागीदार हैं।
भारतीय प्रवासियों से संबंधित सरकारी पहल
प्रवासी भारतीय दिवस:
- यह भारत सरकार के साथ विदेशी भारतीय समुदाय के जुड़ाव को मज़बूती प्रदान करने और उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने के लिये हर दो साल में एक बार मनाया जाता है।
उमंग अंतर्राष्ट्रीय एप:
- इसका उद्देश्य विदेशों में भारत सरकार की सेवाओं का लाभ उठाने के लिये भारतीय छात्रों, NRI और भारतीय पर्यटकों की मदद करना है।
- इसके अलावा यह अंतर्राष्ट्रीय संस्करण उमंग पर मौजूद भारतीय संस्कृति संबंधी सेवाओं की मदद से विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करने में अहम भूमिका निभाएगा।
वज्रा फैकल्टी स्कीम:
- यह स्कीम प्रवासी भारतीयों और विदेशी वैज्ञानिक समुदाय को भारत में अनुसंधान तथा विकास में भाग लेने व योगदान करने में सक्षम बनाती है।
भारत को जानें कार्यक्रम:
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य 18 से 26 आयु वर्ग के प्रवासी युवाओं को देश के विकास और उपलब्धियों से परिचित कराना और उन्हें उनके मूल देश से भावनात्मक रूप से जोड़ना है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
NDB के साथ ऋण समझौता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने ग्रामीण विकास और बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने के लिये न्यू डेवलपमेंट बैंक (New Development Bank- NDB) के साथ 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के ऋण समझौते की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु:
- सरकार और NDB ने COVID-19 के कारण बिगड़ी भारत की आर्थिक स्थितियों में सुधार के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किये:
- प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन (Natural Resource Management- NRM) से संबंधित ग्रामीण बुनियादी ढाँचे पर खर्च करना और
- मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) के तहत ग्रामीण रोज़गार सृजन।
- इस ऋण की अवधि 30 वर्ष है जिसमें 5 वर्ष की छूट भी शामिल है।
- यह ऋण विशेष रूप से उन प्रवासी श्रमिकों की मदद करने में सहायक होगा जो महामारी के कारण शहरी क्षेत्रों से लौट गए हैं और अपनी आजीविका खो चुके हैं।
- वायरस के प्रसार को रोकने के लिये पोस्ट लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधि को धीमा कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों सहित अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के रोज़गार और आय को क्षति पहुँची है।
- विश्व बैंक ने भारत की सामाजिक सुरक्षा के आधार को मज़बूत करने, छत्तीसगढ़ में आदिवासी परिवारों के लिये पोषण-सहायक कृषि को बढ़ावा देने, नगालैंड में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ाने और राज्यों में मौजूदा बाँधों की सुरक्षा तथा प्रदर्शन में सुधार के लिये 800 मिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक की चार परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है।
न्यू डेवलपमेंट बैंक
(New Development Bank- NDB):
- यह BRICS देशों द्वारा संचालित एक बहुपक्षीय विकास बैंक है।
- BRICS दुनिया की पाँच अग्रणी उभरती अर्थव्यवस्थाओं- ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के समूह के लिये एक संक्षिप्त शब्द (Abbreviation) है।
- वर्ष 2013 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में आयोजित BRICS शिखर सम्मेलन में 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' की स्थापना पर सहमति व्यक्त की गई थी तथा वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेज़ा में छठे BRICS शिखर सम्मेलन (6th BRICS Summit at Fortaleza) में इसकी स्थापना की गई थी।
- NDB की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 100 बिलियन डॉलर थी।
- NDB का मुख्यालय शंघाई, चीन में है।
संगठनात्मक संरचना:
- NDB के वर्तमान संगठनात्मक ढाँचे में 1 अध्यक्ष, 4 उपाध्यक्ष तथा अन्य कुछ कार्यकारी सदस्य शामिल हैं। अध्यक्ष का कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है।
NDB में मताधिकार प्रणाली:
- विश्व बैंक में जहाँ पूंजी शेयर के आधार पर देशों को मताधिकार प्राप्त होता है, के विपरीत 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' में प्रत्येक भागीदार देश को वर्तमान में समान मताधिकार प्राप्त है तथा किसी भी देश के पास वीटो पावर नहीं है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मानव विकास सूचकांक: UNDP
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा जारी मानव विकास रिपोर्ट (Humen Develpment Report- HDR) 2020 के अनुसार, मानव विकास सूचकांक ((Humen Develpment Index- HDI) में भारत 131वें स्थान पर है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भारत इस सूचकांक में 129वें स्थान पर था।
- वर्ष 2020 की इस रिपोर्ट में 189 देशों को उनके मानव विकास सूचकांक (HDI) की स्थिति के आधार पर रैंकिंग प्रदान की गई है।
- HDR 2020 में पृथ्वी पर दबाव-समायोजित मानव विकास सूचकांक को पेश किया गया है, जो देश के प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तथा सामग्री के पदचिह्न (Footprint) द्वारा मानक मानव विकास सूचकांक (HDI) को समायोजित करता है।
- अन्य सूचकांक जो इस रिपोर्ट का ही भाग हैं, इस प्रकार हैं:
- असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक (Inequality adjusted Human Development Index-IHDI)
- लैंगिक विकास सूचकांक (GDI),
- लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI).
प्रमुख बिंदु
परिचय: HDI इस बात पर ज़ोर देता है कि किसी देश के विकास का आकलन करने के लिये वहाँ के लोगों तथा उनकी क्षमताओं को अंतिम मानदंड माना जाना चाहिये, न कि केवल आर्थिक विकास को।
मानव विकास तीन बुनियादी आयामों पर आधारित होता है:
- लंबा और स्वस्थ जीवन,
- ज्ञान तक पहुँच,
- जीने का एक सभ्य मानक।
वर्ष 2019 में शीर्ष स्थान प्राप्तकर्त्ता:
- नॉर्वे इस सूचकांक में शीर्ष पर है, इसके बाद आयरलैंड, स्विट्ज़रलैंड, हॉन्गकॉन्ग और आइसलैंड का स्थान है।
एशियाई क्षेत्र की स्थिति:
- वैश्विक सूचकांक में "बहुत उच्च मानव विकास" के साथ एशियाई देशों के मध्य शीर्ष स्थान का प्रतिनिधित्त्व करते हुए सिंगापुर 11वें, सऊदी अरब 40वें और मलेशिया 62वें स्थान पर थे।
- शेष देशों में से श्रीलंका (72), थाईलैंड (79), चीन (85), इंडोनेशिया और फिलीपींस (दोनों 107) तथा वियतनाम (117) "उच्च मानव विकास" वाले देशों की श्रेणी में थे।
- 120 से 156 रैंक तक भारत, भूटान, बांग्लादेश, म्याँमार, नेपाल, कंबोडिया, केन्या और पाकिस्तान "मध्यम मानव विकास" श्रेणी वाले देशों में शामिल थे।
भारत की स्थिति:
- संपूर्ण प्रदर्शन: वर्ष 2019 के लिये HDI 0.645 है, जो देश को 'मध्यम मानव विकास' श्रेणी में तथा 189 देशों में 131वें स्थान पर रखता है।
- वर्ष 1990 और 2019 के मध्य भारत का HDI मान 0.429 से बढ़कर 0.645 हो गया है, यानी इसमें 50.3% की वृद्धि हुई है।
- लंबा और स्वस्थ जीवन: वर्ष 2019 में भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 69.7 वर्ष थी, जो दक्षिण एशियाई औसत 69.9 वर्षों की तुलना में थोड़ी कम थी।
- वर्ष 1990 और 2019 के मध्य भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा में 11.8 वर्ष की वृद्धि हुई है।
- ज्ञान तक पहुँच: भारत में स्कूली शिक्षा के लिये प्रत्याशित वर्ष 12.2 थे, जबकि बांग्लादेश में 11.2 और पाकिस्तान में 8.3 वर्ष थे।
- वर्ष 1990 और 2019 के बीच स्कूली शिक्षा के प्रत्याशित औसत वर्षों में 3.5 वर्ष की वृद्धि हुई तथा स्कूली शिक्षा के प्रत्याशित अनुमानित वर्षों में 4.5 वर्ष की वृद्धि हुई।
- जीने का एक सभ्य मानक: प्रति व्यक्ति के संदर्भ में सकल राष्ट्रीय आय (GNI) पिछले वर्ष की तुलना में गिरावट के बावजूद वर्ष 2019 में कुछ अन्य देशों की तुलना में भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है।
- वर्ष 1990 और 2019 के मध्य भारत के प्रति व्यक्ति GNI में लगभग 273.9% की वृद्धि हुई है।
ग्रहीय दबाव-समायोजित HDI/प्लैनेटरी प्रेशर-एड्जस्टेड HDI (PHDI)
- PHDI प्रत्येक व्यक्ति के आधार पर देश के कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन और मैटेरियल पदचिह्न (Material Footprint) के मानक HDI को समायोजित करता है।
- देशों का प्रदर्शन:
- नॉर्वे जोकि HDI में शीर्ष स्थान पर है, यदि PHDI मीट्रिक में इसका आकलन किया जाए तो यह 15 स्थान नीचे पहुँच जाएगा, आयरलैंड इस तालिका में शीर्ष पर है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका (HDI रैंक -17) और कनाडा (HDI रैंक -16) प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव को दर्शाते हुए PHDI में क्रमशः 45वें और 40वें स्थान पर पहुँच जाएंगे।
- तेल और गैस से समृद्ध खाड़ी राज्यों के स्थान में भी गिरावट आई है। चीन अपने मौजूदा 85वें स्थान से 16 स्थान नीचे आ जाएगा।
- भारत का प्रदर्शन:
- PHDI में आकलन करने पर भारत रैंकिंग में आठ स्थान ऊपर आ जाएगा।
- पेरिस समझौते के तहत भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन क्षमता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% कम करने और गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से 40% तक विद्युत शक्ति क्षमता प्राप्त करने का वादा किया।
- भारत में सौर क्षमता मार्च 2014 में 2.6 गीगावाट से बढ़कर जुलाई 2019 में 30 गीगावाट हो गई, परिणामस्वरूप इसने निर्धारित समय से चार वर्ष पहले ही अपना लक्ष्य (20 गीगावाट) प्राप्त कर लिया।
- वर्ष 2019 में भारत को संस्थापित सौर क्षमता के लिये 5वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
- राष्ट्रीय सौर मिशन का उद्देश्य विद्युत् उत्पादन के लिये सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना और सौर ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन आधारित विकल्पों के साथ प्रतिस्पर्द्धी बनाना है।
अन्य संकेतक:
- असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (Inequality-adjusted Human Development Index- IHDI) :
- IHDI असमानता के कारण HDI में प्रतिशत हानि को प्रदर्शित करता है।
- वर्ष 2019 के लिये भारत का IHDI स्कोर 0.537 (समग्र नुकसान 16.8%) है।
- लैंगिक विकास सूचकांक (Gender Development Index- GDI):
- GDI, HDI में असमानता को लैंगिक आधार पर मापता है।
- वर्ष 2019 के लिये भारत का GDI स्कोर 0.820 (विश्व का 0.943) है।
- लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index- GII) :
- यह तीन आयामों में महिलाओं और पुरुषों के बीच उपलब्धियों में असमानता को दर्शाने वाली एक समग्र माप है:
- प्रजनन स्वास्थ्य
- सशक्तीकरण तथा
- श्रम बाज़ार।
- GII में भारत 123वें स्थान पर है। पिछले वर्ष यह 162 देशों में 122वें स्थान पर था।
- यह तीन आयामों में महिलाओं और पुरुषों के बीच उपलब्धियों में असमानता को दर्शाने वाली एक समग्र माप है:
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI):
- MPI में वे आयाम शामिल होते हैं जिनका सामना विकासशील देशों के लोग अपने स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में करते हैं।
- भारत के MPI अनुमान के लिये सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सबसे हालिया सर्वेक्षण 2015-2016 का है। भारत में 27.9% जनसंख्या (3,77,492 हज़ार लोग) बहुआयामी गरीबी से ग्रसित है, जबकि इसके अतिरिक्त 19.3% जनसंख्या (2,60,596 हज़ार लोग)को बहुआयामी गरीबी के तहत सुभेद्य के रूप में में वर्गीकृत किया गया है।
अन्य निष्कर्ष:
- मुख्य चुनौतियाँ:
- वर्तमान में जब COVID-19 के विनाशकारी प्रभावों ने विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, इसी दौरान जलवायु परिवर्तन से लेकर असमानताओं तक में वृद्धि देखने को मिल रही है। भौतिक और सामाजिक असंतुलन की चुनौतियाँ आपस में संबंधित हैं: ये परस्पर क्रिया द्वारा एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं।
- बच्चों से संबंधित चुनौतियाँ :
- कंबोडिया, भारत और थाईलैंड में बच्चे कुपोषण से संबंधित मुद्दों जैसे कि स्टंटिंग और वेस्टिंग को दर्शाते हैं।
- भारत में माता-पिता के व्यवहार में विभिन्न प्रतिक्रियाओं के साथ-साथ लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा में कम रूचि के कारण लड़कों की तुलना में लड़कियों में कुपोषण के मामलों में वृद्धि हुई है।
- 2020 में विस्थापन:
- वर्ष 2020 में आपदाओं के कारण सबसे अधिक विस्थापन हुआ। चक्रवात के कारण सबसे अधिक विस्थापन हुआ जिसमें लगभग 3.3 मिलियन लोगों को अपना निवास स्थान खाली करना पड़ा।
- समाधान:
- मानव विकास का विस्तार- महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि, महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण, घर परिवार में युवा लड़कियों को अधिक सशक्त बनाना, गरीबी में कमी करना आदि।
- कोलम्बिया से भारत तक के साक्ष्य यह इंगित करते हैं कि वित्तीय सुरक्षा और भूमि का स्वामित्त्व महिलाओं की सुरक्षा में सुधार करता है तथा लिंग आधारित हिंसा के जोखिम को कम करता है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि भूमि का स्वामित्व महिलाओं को अधिक सशक्त बना सकता है।