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COVID-19 के कारण भारत में प्रेषित धन/रेमिटेंस में भारी गिरावट

  • 23 Apr 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये:

रेमिटेंस, विश्व बैंक  

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, COVID-19 की महामारी के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक स्तर पर प्रवसियों द्वारा भेजे जाने वाले धन/रेमिटेंस (Remittances) में भारी गिरावट देखी जा सकती है।

मुख्य बिंदु:

  • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में भारतीय प्रवासियों द्वारा भेजे जाने वाला रेमिटेंस 23% की गिरावट के साथ 64 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है।
  • गौरतलब है कि वर्ष 2019 में भारत को रेमिटेंस के रूप में प्राप्त होने वाले धन में 5.5% की वृद्धि के साथ कुल 83 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए थे।   
  • इसके साथ ही विश्व के अन्य प्रमुख हिस्सों में जैसे- यूरोप और मध्य एशिया (27.5%), उप-सहारा अफ्रीका (23.1%), दक्षिण एशिया (22.1%), मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (19.6%), लैटिन अमेरिका तथा कैरेबियन (19.3%), पूर्वी एशिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र (13%) में रेमिटेंस में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है।  
  • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में पाकिस्तान का रेमिटेंस 23% की गिरावट के साथ 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है, जबकि पिछले वर्ष पाकिस्तान को 6.2% की वृद्धि के साथ रेमिटेंस के रूप में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए थे।   
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में बंग्लादेश के रेमिटेंस में 22%, नेपाल के रेमिटेंस में 14% और श्रीलंका के रेमिटेंस में 19% तक की गिरावट हो सकती  है।

प्रेषित धन या रेमिटेंस (Remittance): 

  • रेमिटेंस से आशय प्रवासी कामगारों द्वारा धन अथवा वस्तु के रूप में अपने मूल समुदाय/परिवार को भेजी जाने वाली आय से है।
  • पिछले कुछ वर्षों में वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप रेमिटेंस का महत्त्व बढ़ा है, वर्तमान में विश्व के कई विकासशील देशों में रेमिटेंस विदेशों से होने वाली आय का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है।
  • आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में ‘निम्न और मध्य आय वाले देशों’ (Low and Middle-Income Countries- LMICs) को रेमिटेंस के रूप में लगभग 554 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए। 

देशों के विकास में रेमिटेंस का योगदान: 

  • कई अध्ययनों में देखा गया है कि रेमिटेंस ‘निम्न और मध्य आय वाले देशों’ में गरीबी दूर करने, पोषण में वृद्धि, स्वास्थ्य और मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने में सहायक रहे हैं।
  • साथ ही यह भी देखा गया है कि रेमिटेंस पाने वाले घरों में बाल मज़दूरी के मामलों में कमी आई है तथा शिक्षा पर होने वाले खर्च में वृद्धि हुई है।
  • अन्य किसी पूंजी की तुलना में रेमिटेंस का प्रवाह स्थिर होता है और प्रायः किसी आपदा के बाद जब निजी क्षेत्र के निवेश में गिरावट आती है ऐसे समय में रेमिटेंस की मात्रा में वृद्धि देखी गई है।
  • राजनीतिक संघर्ष और आतंरिक अस्थिरता से जूझ रहे देशों में रेमिटेंस अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2011 में हैती (Haiti) की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 12% रहा था और वर्ष 2006 में सोमालिया के कुछ क्षेत्रों की जीडीपी में रेमिटेंस का योगदान 70% तक रहा था। 

माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ

(Migration and Development Brief):    

  • माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ, प्रवासी कामगारों के संदर्भ में विश्व बैंक द्वारा तैयार की जाने वाली एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट है। 
  • इसे विश्व बैंक की प्रमुख अनुसंधान शाखा ‘डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स’ (Development Economics- DEC) की माइग्रेशन एंड रेमिटेंस यूनिट (Migration and Remittances Unit) द्वारा तैयार किया जाता है। 
  • इस रिपोर्ट को हर वर्ष दो बार जारी किया जाता है।
  • यह रिपोर्ट पिछले 6 माह में माइग्रेशन और रेमिटेंस के प्रवाह तथा इससे जुड़ी नीतियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध करने का प्रयास करती है।     

रेमिटेंस में गिरावट के कारण:     

  • वर्तमान में COVID-19 की महामारी के कारण विश्वभर में औद्योगिक इकाइयों को भारी क्षति हुई है और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भी कमी आयी है, जिसके कारण प्रवासी कामगारों की आय में कमी के साथ काम के अवसरों में भी कटौती हुई है ।
  • भारत के साथ ही दक्षिण एशिया के कई अन्य देशों के लिये मध्य पूर्व के देश रोज़गार और रेमिटेंस का एक बड़ा स्रोत हैं, परंतु हाल ही में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की घटती कीमतों से इन देशों की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिले हैं।
  • यूरोप के कई देश प्रवासी कामगारों की एक बड़ी आबादी को रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं परंतु यूरोप के कुछ प्रमुख देश COVID-19 महामारी से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। साथ ही COVID-19 के संक्रमण को रोकने हेतु लागू लॉकडाउन का प्रभाव यूरोप की मुद्रा पर भी पड़ा है।
  • प्रवासी कामगारों में पेशेवर प्रशिक्षित लोगों के अतिरिक्त एक बड़ी आबादी सेवा क्षेत्र (परिवहन, होटल आदि) में काम करने वाले लोगों और अकुशल मज़दूरों की है, COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर बंदी के कारण कामगारों का यह वर्ग सबसे अधिक प्रभावित हुआ है।

रेमिटेंस में गिरावट के नुकसान: 

  • वर्ष 2018 में भारत विश्व में सबसे अधिक रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश था, आँकड़ों के हिसाब से इस दौरान लगभग 170 लाख प्रवासी भारतीयों ने विश्व के कई देशों में कार्य करते हुए रेमिटेंस के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दिया था।
  • ऐसे में वैश्विक स्तर पर रेमिटेंस में गिरावट का प्रत्यक्ष प्रभाव प्रवासी भारतीयों पर आश्रित उनके परिवारों पर पड़ेगा।
  • वर्तमान में जब देश में लॉकडाउन के कारण आर्थिक क्षेत्र में तरलता की कमी हुई है ऐसे में रेमिटेंस में गिरावट से इस समस्या में अधिक वृद्धि हो सकती है।
  • भारत में रेमिटेंस के रूप में प्राप्त होने वाले धन का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से अन्य देशों (मुख्यतः अरब देशों) में गए कामगारों द्वारा भेजा जाता है, ऐसे में लंबे समय तक रेमिटेंस में कमी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है।

अन्य चुनौतियाँ: 

  • विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट के साथ ही देशों में संरक्षणवादी विचारधारा को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे आने वाले दिनों में प्रवासी कामगारों के लिये रोज़गार के अवसरों में गिरावट देखी जा सकती है। 
    • उदाहरण के लिये हाल ही में अमेरिका (USA) के राष्ट्रपति ने नए प्रवासी कामगारों के लिये कुछ प्रतिबंधों की घोषणा की है।
  • अन्य देशों से रेमिटेंस भेजने पर लगने वाला खर्च प्रवासी कामगारों के लिये एक बड़ी समस्या है, वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 200 अमेरिकी डॉलर भेजने की औसत लागत 6.8% है, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में यह लागत औसतन 9% है।
  • दक्षिण एशिया में रेमिटेंस भेजने की लागत औसतन 4.8% है, साथ ही कई क्षेत्रों में यह 3% के सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development goals-SDGs) से भी कम है परंतु कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धा और बेहतर विनियमन के अभाव में इसकी लागत 10% तक पहुँच जाती है। 

आगे की राह:     

  • विशेषज्ञों के अनुसार, वर्तमान वैश्विक आपदा के समय विकासशील और विकसित देशों में गरीब और सुभेद्य लोगों के हितों की रक्षा के लिये प्रभावी सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है, अतः सभी देशों द्वारा संकट के इस समय में स्थानीय नागरिकों की तरह ही प्रवासी कामगारों को भी आवश्यक सहायता उपलब्ध करानी चाहिये।
  • रेमिटेंस भेजने के तरीकों को आसान बनाने तथा इसकी लागत को कम कर प्रवासी कामगारों और उनके परिवारों को महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया जा सकता है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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