भारत और नाटो के बीच वार्ता
प्रिलिम्स के लिये:नाटो, सोवियत संघ। मेन्स के लिये:द्विपक्षीय समूह और समझौते, अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों का महत्त्व। |
हाल ही में यह रिपोर्ट सामने आई है कि भारत ने पहली बार 12 दिसंबर, 2019 को ब्रुसेल्स में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के साथ अपनी पहली राजनीतिक वार्ता आयोजित की थी।
नाटो:
- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा स्थापित एक सैन्य गठबंधन है।
- वर्तमान में इसमें 30 सदस्य राज्य शामिल हैं।
- मूल सदस्य:
- बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्राँस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
- अन्य देश:
- ग्रीस और तुर्की (वर्ष 1952), पश्चिम जर्मनी (वर्ष 1955, वर्ष 1990 से जर्मनी के रूप में), स्पेन (वर्ष 1982), चेक गणराज्य, हंगरी और पोलैंड (वर्ष 1999), बुल्गारिया, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, और स्लोवेनिया (वर्ष 2004), अल्बानिया और क्रोएशिया (वर्ष 2009), मोंटेनेग्रो (वर्ष 2017), और नार्थ मैसेडोनिया (वर्ष 2020)।
- फ्रांँस वर्ष 1966 में नाटो की एकीकृत सैन्य कमान से हट गया लेकिन संगठन का सदस्य बना रहा। इसने वर्ष 2009 में नाटो की सैन्य कमान में अपना पद फिर से शुरू किया।
- हाल ही में, फिनलैंड और स्वीडन ने नाटो में शामिल होने के लिये रुचि दिखाई है।
- मूल सदस्य:
- मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम।
नाटो-इंडिया पॉलिटिकल डायलॉग:
- परिचय:
- भारत ने 12 दिसंबर, 2019 को ब्रुसेल्स में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के साथ अपनी पहली राजनीतिक बातचीत की।
- महत्त्व:
- नाटो चीन और पाकिस्तान दोनों को द्विपक्षीय वार्ता में शामिल करता रहा है।
- जबकि नाटो को राजनीतिक वार्ता में शामिल करने से भारत को क्षेत्रों की स्थिति और भारत के लिये चिंता के मुद्दों के बारे में नाटो की धारणाओं में संतुलन लाने का अवसर मिलेगा।
- अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका सहित, चीन और आतंकवाद पर भारत तथा नाटो दोनों के दृष्टिकोणों में अभिसरण है।
- समस्याएँ:
- नाटो के दृष्टिकोण के अनुसार, उसके सामने सबसे बड़ा खतरा चीन नहीं, बल्कि रूस है, जिसकी आक्रामक कार्रवाई यूरोपीय सुरक्षा के लिये खतरा है।
- इसके अलावा यूक्रेन और इंटरमीडिएट-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस ट्रीटी जैसे मुद्दों को रखने से रूसी इनकार के कारण नाटो-रूस परिषद (NATO-Russia Council) की बैठके बुलाने में नाटो/ NATO को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था,
- नाटो देशों के बीच मतभेद को देखते हुए, चीन पर उसके विचार को मिश्रित रूप में देखा गया, जबकि इसने चीन के उदय पर विचार-विमर्श किया, इसने चुनौती और अवसर दोनों को प्रस्तुत किया,
- इसके अलावा अफगानिस्तान में नाटो ने तालिबान को राजनीतिक इकाई के रूप में देखा।
- नाटो के दृष्टिकोण के अनुसार, उसके सामने सबसे बड़ा खतरा चीन नहीं, बल्कि रूस है, जिसकी आक्रामक कार्रवाई यूरोपीय सुरक्षा के लिये खतरा है।
- नाटो का दृष्टिकोण:
- भारत के साथ संवाद नाटो देशों के बीच सहयोग को और बढ़ाएगा एवं भारत की भू-रणनीतिक स्थिति अद्वितीय परिप्रेक्ष्य साझा करती है और भारत के अपने क्षेत्र तथा उसके बाहर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाती है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत के स्वतंत्रता संग्राम की महिला नायक
प्रिलिम्स के लिये:नारी शक्ति, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई, दुर्गा भाभी, रानी गैदिन्ल्यू, बेगम हज़रत महल। मेन्स के लिये:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में महिला स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि दी।
स्वतंत्रता संग्राम में महिला नायकों की भूमिका:
महिला नायक |
स्वतंत्रता संग्राम में योगदान |
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षो के प्रश्न (PYQs):प्रिलिम्स:प्रश्न. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में उषा मेहता की ख्याति (a) भारत छोड़ो आंदोलन की वेला में गुप्त कांग्रेस रेडियो चलाने हेतु है उत्तर: a
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स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
भारत में बाँध प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:कारम नदी में बाँध प्रबंधन, नर्मदा नदी, भारत के बाँध, भारत में बाँधों का विनियमन मेन्स के लिये:भारत के पुराने बाँधों और उठाये जाने वाले कदम से संबंधित में चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नर्मदा की सहायक कारम नदी पर बन रहे "कारम बाँध" का बाहरी हिस्सा ढह गया।
- बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 में कुछ शर्तों के साथ उन बांधों को शामिल किया गया है जिनकी ऊंचाई 15 मीटर से अधिक और 10 मीटर से 15 मीटर के बीच है।
नर्मदा नदी
- परिचय:
- नर्मदा प्रायद्वीपीय क्षेत्र की सबसे बड़ी पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है जो उत्तर में विंध्य रेंज और दक्षिण में सतपुड़ा रेंज के बीच भ्रंश घाटी से होकर बहती है।
- उद्गम:
- यह मध्य प्रदेश में अमरकंटक के पास मैकला श्रेणी से निकलती है।
- अपवहन-क्षेत्र:
- यह महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के कुछ क्षेत्रों के अलावा मध्य प्रदेश में एक बड़े क्षेत्र में जल प्रवाहित होता है।
- जबलपुर (मध्य प्रदेश) के पास नदी धुआँधार जलप्रपात बनाती है।
- नर्मदा के मुहाने में कई द्वीप हैं जिनमें से आलियाबेट सबसे बड़ा है।
- प्रमुख सहायक नदियाँ: हिरेन, ओरसांग, बरना और कोलार।
- बेसिन में प्रमुख जल विद्युत परियोजनाएँ: इंदिरा सागर, सरदार सरोवर आदि।
- नर्मदा बचाओ आंदोलन (NBA):
- यह नर्मदा नदी पर कई बड़ी बाँध परियोजनाओं के खिलाफ जनजातियों (आदिवासियों), किसानों, पर्यावरणविदों और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं द्वारा संचालित भारतीय सामाजिक आंदोलन है।
- गुजरात में सरदार सरोवर बांध नदी पर सबसे बड़े बाँधों में से एक है और आंदोलन के पहले केंद्र बिंदुओं में से एक था।
बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021:
- परिचय:
- बाँध सुरक्षा अधिनियम 2021 का उद्देश्य देश भर में सभी निर्दिष्ट बाँधों की निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव करना है।
- यह अधिनियम देश में सभी निर्दिष्ट बाँधों पर लागू होता है, यानी वे बाँध जिनकी ऊँचाई 15 मीटर से अधिक और 10 मीटर से 15 मीटर के बीच कुछ निश्चित डिजाइन और संरचनात्मक स्थितियों के साथ है।
- प्रावधान:
- यह दो राष्ट्रीय निकायों का गठन करता है:
- बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति:
- इसके कार्यों में बाँध सुरक्षा के संबंध में नीतियों को विकसित करना और विनियमों की सिफारिश करना शामिल है।
- राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण:
- इसके कार्यों में राष्ट्रीय समिति की नीतियों को लागू करना और राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों (SDSOs), या SDSO और उस राज्य के किसी भी बाँध प्राधिकरण के बीच के मामलों को हल करना शामिल है।
- बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति:
- इसमें दो राज्य निकाय भी शामिल हैं:
- राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (SDSOs):
- इसके कार्यों में बाँधों की सतत् निगरानी, निरीक्षण और मॉनीटरिंग शामिल है।
- राज्य बाँध सुरक्षा समिति:
- यह राज्य बाँध पुनर्वास कार्यक्रमों की निगरानी, SDSO के काम की समीक्षा और बाँध सुरक्षा के संबंध में अनुशंसित उपायों पर प्रगति की समीक्षा करेगा।
- राज्य बाँध सुरक्षा संगठन (SDSOs):
- बाँध प्राधिकरण की बाध्यताएँ:
- बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021 के अनुसार, सभी निर्दिष्ट बाँधों का वर्ष में दो बार; मानसून पूर्व और मानसून के बाद की अवधि के दौरान निरीक्षण किया जाना आवश्यक है।
- बाँध के सुरक्षित निर्माण, संचालन, रखरखाव और पर्यवेक्षण के लिये बाँध प्राधिकरण ज़िम्मेदार होंगे।
- उन्हें प्रत्येक बाँध में एक बाँध सुरक्षा इकाई उपलब्ध करानी होगी।
- बाँध प्राधिकरण के कार्यों में शामिल हैं:
- आपात कार्य योजना तैयार करना।
- निर्दिष्ट नियमित अंतरालों पर जोखिम मूल्यांकन अध्ययन करना।
- विशेषज्ञों के पैनल के माध्यम से व्यापक बाँध सुरक्षा मूल्यांकन तैयार करना।
- दंड:
- अधिनियम के तहत किसी व्यक्ति को उसके कार्यों के निर्वहन में बाधा डालने या निर्देशों का पालन करने से इनकार करने वाले को एक वर्ष के लिए जेल हो सकती है। जीवन की हानि के मामले में, व्यक्ति को दो साल की कैद हो सकती है।
- यह दो राष्ट्रीय निकायों का गठन करता है:
- अधिनियम के साथ समस्याएँ:
- अंतर्राज्यीय नदी बाँधों पर कानून बनाने के संदर्भ में संसद के अधिकार क्षेत्र:
- यह अधिनियम देश के सभी निर्दिष्ट बाँधों पर लागू होता है। संविधान के अनुसार राज्यों के पास पानी के मामलों पर, जिसमें जल संरक्षण और जल से ऊर्जा बनाना शामिल है, उस पर कानून बना सकते हैं (राज्य सूची की प्रविष्टि 17)।
- हालाँकि संसद अंतर-राज्यीय नदी घाटियों को विनियमित और विकसित कर सकती है यदि वह इसे जनहित में आवश्यक समझे (संघ सूची की प्रविष्टि 56)।
- क्या संसद के पास पूरी तरह से एक राज्य के भीतर बहने वाली नदियों पर बाँधों को विनियमित करने का अधिकार है।
- यह अधिनियम देश के सभी निर्दिष्ट बाँधों पर लागू होता है। संविधान के अनुसार राज्यों के पास पानी के मामलों पर, जिसमें जल संरक्षण और जल से ऊर्जा बनाना शामिल है, उस पर कानून बना सकते हैं (राज्य सूची की प्रविष्टि 17)।
- अधिसूचना के माध्यम से अधिकारियों के कार्यों को बदलना:
- बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति, राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण और बाँध सुरक्षा पर राज्य समिति के कार्यों को अधिनियम की अनुसूचियों में सूचीबद्ध किया गया है।
- इन अनुसूचियों में सरकार द्वारा एक अधिसूचना के माध्यम से संशोधन किया जा सकता है।
- प्रश्न यह है कि क्या प्राधिकारियों के मुख्य कार्यों में अधिसूचना के माध्यम से संशोधन किया जाना चाहिये या क्या ऐसे संशोधन संसद द्वारा पारित किये जाने चाहिये।
- बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति, राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण और बाँध सुरक्षा पर राज्य समिति के कार्यों को अधिनियम की अनुसूचियों में सूचीबद्ध किया गया है।
- अंतर्राज्यीय नदी बाँधों पर कानून बनाने के संदर्भ में संसद के अधिकार क्षेत्र:
आगे की राह
- बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने में सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू वास्तविक हितधारकों के विचारों को ध्यान में रखते हुए जवाबदेही और पारदर्शिता का होना है, हालाँकि बाँधों से नीचे की ओर रहने वाले लोग अधिक जोखिम वाले समूह हैं।
- परिचालन सुरक्षा के संदर्भ में नियम वक्र जो यह तय करता है कि बाँध को कैसे संचालित किया जाना चाहिये जब एक बाँध प्रस्तावित किया जाता है, साथ ही पर्यावरणीय परिवर्तनों जैसे कि गाद और वर्षा प्रतिरूप के आधार पर नियमित अंतराल पर अद्यतन करने की आवश्यकता होती है। क्योंकि ये बाँध में आने वाली बाढ़ की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ स्पिलवे क्षमता को भी बदल देंगे।
- नियम वक्र को भी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये ताकि लोग इसके सही कामकाज पर नज़र रख सकें और इसकी अनुपस्थिति में सवाल उठा सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षो के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और जहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं. अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (मुख्य परीक्षा, 2018) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विकसित देश का लक्ष्य
प्रिलिम्स के लिये:विकसित देश, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), प्रति व्यक्ति आय, मानव विकास सूचकांक (एचडीआई), संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन, विश्व आर्थिक मंच, सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआई)। मेन्स के लिये:एक विकसित देश के भारत के लक्ष्य को पूरा करने के लिये प्रति व्यक्ति आय और आर्थिक समृद्धि का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पंच प्रण को वर्ष 2047 तक (जब भारत की स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूरे होंगे) पूरा करने का लक्ष्य रखा है,
- भारत को अगले 25 वर्षों में एक विकसित देश बनाने का पहला संकल्प है।
- वर्ष 2047 के लिये शेष प्रतिज्ञाएँ हैं - दासता के निशान मिटाना, अपनी विरासत पर गर्व करना, विविधता में एकता सुनिश्चित करना और नागरिक कर्तव्यों का पालन करना।
विकसित देश:
- एक विकसित देश औद्योगीकृत होता है, जिसमें जीवन की उच्च गुणवत्ता, विकसित अर्थव्यवस्था और कम औद्योगिक राष्ट्रों के सापेक्ष उन्नत तकनीकी अवसंरचना होती है।
- जबकि विकासशील देश वे हैं जो औद्योगीकरण की प्रक्रिया में हैं या पूर्व-औद्योगिक और लगभग पूरी तरह से कृषि प्रधान हैं।
- आर्थिक विकास की मात्रा के मूल्यांकन के लिये सबसे आम मानदंड हैं:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या एक वर्ष में किसी देश में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य।
- उच्च सकल घरेलू उत्पाद और प्रति व्यक्ति आय (प्रति व्यक्ति अर्जित आय की राशि) वाले देशों को विकसित माना जाता है।
- तृतीयक और चतुर्थ क्षेत्र का प्रभुत्त्व:
- जिन देशों में तृतीयक (मनोरंजन, वित्तीय और खुदरा विक्रेताओं जैसी सेवाएँ प्रदान करने वाली कंपनियाँ) और उद्योग के चतुर्थ क्षेत्र (ज्ञान आधारित गतिविधियाँ जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, अनुसंधान और विकास, साथ ही परामर्श सेवाएँ और शिक्षा) का प्रभुत्त्व होता है उन्हें विकसित के रूप में वर्णित किया गया है।
- उत्तर-औद्योगिक अर्थव्यवस्था :
- इसके अलावा, विकसित देशों में आम तौर पर अधिक उन्नत औद्योगिक अर्थव्यवस्थाएँ होती हैं, जिसका अर्थ है कि सेवा क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र की तुलना में अधिक धन प्रदान करता है।
- मानव विकास सूचकांक:
- अन्य मानदंड बुनियादी ढाँचे के मापन, जीवन स्तर के सामान्य मानक और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) हैं।
- चूँकि एचडीआई जीवन प्रत्याशा और शिक्षा के सूचकांकों पर ध्यान केंद्रित करता है तथा किसी देश में प्रति व्यक्ति शुद्ध संपत्ति या वस्तुओं की सापेक्ष गुणवत्ता जैसे कारकों को ध्यान में नहीं रखता है।
- यही कारण है कि कुछ सबसे उन्नत देश जिनमें जी7 सदस्य (कनाडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके, यूएस और यूरोपीय संघ) और अन्य शामिल हैं, एचडीआई में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं करते हैं तथा स्विट्ज़रलैंड जैसे देश एचडीआई में उच्च रैंक पर हैं।
- अन्य मानदंड बुनियादी ढाँचे के मापन, जीवन स्तर के सामान्य मानक और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) हैं।
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
विकसित देश की परिभाषा:
- विकसित देश की कोई सर्वसम्मत परिभाषा नहीं है।
- संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन और विश्व आर्थिक मंच जैसी एजेंसियांँ विकसित और विकासशील देशों को वर्गीकृत करने के लिये अपने संकेतकों का उपयोग करती हैं।
- उदाहरण के लिये, संयुक्त राष्ट्र देशों को निम्न, निम्न-मध्यम, उच्च-मध्यम और उच्च आय वाले देशों में वर्गीकृत करता है।
- यह वर्गीकरण किसी देश की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) पर आधारित है।
- कम आय वाली अर्थव्यवस्था: $ 1,085 तक प्रति व्यक्ति GNI
- निम्न मध्य-आय: $ 4,255 तक प्रति व्यक्ति GNI
- ऊपरी-मध्य-आय: $ 13,205 प्रति व्यक्ति GNI
- उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था: $ 13,205 से ऊपर प्रति व्यक्ति GNI
- यह वर्गीकरण किसी देश की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) पर आधारित है।
संयुक्त राष्ट्र वर्गीकरण का विरोध:
- संयुक्त राष्ट्र का वर्गीकरण बहुत सटीक नहीं है क्योंकि यह सीमित विश्लेषणात्मक मूल्य पर केंद्रित है। जिसके कारण केवल शीर्ष तीन देशों - अमेरिका, ब्रिटेन और नॉर्वे को विकसित देशों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- जबकि, लगभग 31 विकसित देश हैं, और शेष 17 (संक्रमणशील अर्थव्यवस्थाओं) को छोड़कर विकासशील देशों के रूप में नामित हैं।
- चीन के मामले में, देश की प्रति व्यक्ति आय सोमालिया की तुलना में नॉर्वे के करीब है।
- चीन की प्रति व्यक्ति आय सोमालिया की तुलना में 26 गुना है जबकि नॉर्वे की चीन की तुलना में लगभग सात गुना है, लेकिन फिर भी, इसे एक विकासशील देश का टैग मिला है।
- दूसरी ओर, यूक्रेन जैसा देश, जिसकी प्रति व्यक्ति जीएनआई $4,120 (चीन का एक तिहाई) है, एक विकसित राष्ट्र के बजाय (संक्रमणशील अर्थव्यवस्थाओं के रूप में नामित है।
भारत की स्थिति:
- भारत इस समय विकसित देशों के साथ-साथ कुछ विकासशील देशों से भी काफी पीछे है।
- सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भारत छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत बांग्लादेश से भी पीछे है।
- इसके अलावा, चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में 5.5 गुना है और ब्रिटेन की लगभग 33 गुना है।
- इस असमानता का मानचित्रण करने के लिये और भारत और अन्य देशों के स्कोर से तुलना करने के लिये हम मानव विकास सूचकांक (HDI) को देखते हैं,
- भारत का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।
- भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा वर्ष 1947 में लगभग 40 वर्ष से बढ़कर अब लगभग 70 वर्ष हो गई है।
- भारत ने प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक तीनों स्तरों पर शिक्षा के नामांकन में भी काफी प्रगति की है।
- एक विकसित देश कहलाने के लिये भारत को प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि एक इकाई के रूप में लोग अधिक मायने रखते हैं।
- प्रति व्यक्ति आय में असमानता अक्सर विभिन्न देशों में जीवन की समग्र गुणवत्ता में दिखाई देती है।
भारत के प्रगतिशीलता में कमी के क्षेत्र:
- विश्व बैंक द्वारा भारत पर वर्ष 2018 की नैदानिक रिपोर्ट के अनुसार, क्रय शक्ति समानता के मामले में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद अधिकांश भारतीय अभी भी अन्य मध्यम आय वाले या अमीर देशों के लोगों की तुलना में अपेक्षाकृत गरीब हैं।
- लगभग 10% भारतीयों का उपभोग स्तर वैश्विक मध्यम वर्ग के लिये प्रति दिन व्यय 10 अमेरिकी डॉलर (PPP) की सामान्य रूप से उपयोग की जाने वाली सीमा से अधिक है।
- इसके अलावा उपभोग के खाद्य हिस्से जैसे अन्य समूह से पता चलता है कि भारत में अमीर परिवारों को भी अमीर देशों में गरीब परिवारों के स्तर तक पहुँचने के लिये अपनी कुल खपत का पर्याप्त विस्तार देखना होगा।
भारत वर्ष 2047 तक विकसित देश के लक्ष्य को प्राप्त करना:
- विश्व बैंक की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2047 तक इसकी स्वतंत्रता की शताब्दी तक इसके कम से कम आधे नागरिक वैश्विक मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल हो सकते हैं।
- इसका मतलब यह होगा कि घरों में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल, बेहतर स्वच्छता, विश्वसनीय बिजली, सुरक्षित वातावरण, किफायती आवास और अवकाश गतिविधियों पर खर्च करने के लिये पर्याप्त विवेकाधीन आय तक पहुँच होगी।
- इसके अलावा रिपोर्ट ने अत्यधिक गरीबी रेखा से ऊपर आय की पूर्व शर्त के साथ-साथ सार्वजनिक सेवा वितरण में काफी सुधार किया।
- इसका मतलब यह होगा कि घरों में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल, स्वच्छ जल, बेहतर स्वच्छता, विश्वसनीय बिजली, सुरक्षित वातावरण, किफायती आवास और अवकाश गतिविधियों पर खर्च करने के लिये पर्याप्त विवेकाधीन आय तक पहुँच होगी।
आजादी के बाद से भारत की उपलब्धियाँ:
- सकल घरेलू उत्पाद (GDP):
- भारत की GDP वर्ष 1950-51 में 2.79 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2021-22 में अनुमानित 147.36 लाख करोड़ रुपए हो गई।
- भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में 3.17 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की है, जिसके वर्ष 2022 में दुनिया की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की उम्मीद है।
- विदेशी मुद्रा:
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार वर्ष 1950-51 में 911 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2022 में 45,42,615 करोड़ रुपए हो गया है।
- अब भारत के पास दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है।
- खाद्य उत्पादन:
- भारत का खाद्यान्न उत्पादन 1950-51 में 50.8 मिलियन टन से बढ़कर अब 316.06 मिलियन टन हो गया है।
- साक्षरता दर:
- साक्षरता दर भी वर्ष 1951 में 18.3% से बढ़कर 78% हो गई है। महिला साक्षरता दर 8.9% से बढ़कर 70% से अधिक हो गई है।
- साक्षरता दर भी वर्ष 1951 में 18.3% से बढ़कर 78% हो गई है। महिला साक्षरता दर 8.9% से बढ़कर 70% से अधिक हो गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षो के प्रश्न (PYQs):प्रारंभिक परीक्षा:निरपेक्ष और प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करती, यदि (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: C व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। मेन्स:पूंजीवाद ने विश्व अर्थव्यवस्था को अभूतपूर्व समृद्धि की राह प्रदान की है। हालाँकि यह प्रायः अदूरदर्शिता को प्रोत्साहित करता है तथा अमीर और गरीब के बीच व्यापक असमानताओं को भी बढ़ावा देता है। इस आलोक में क्या भारत में समावेशी विकास लाने के लिये पूंजीवाद पर विश्वास करना और उसे अपनाना सही होगा? चर्चा कीजिये। (2014) |
स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस
आर्कटिक प्रवर्धन
प्रिलिम्स के लिये:आर्कटिक प्रवर्धन ,ध्रुवीय प्रवर्धन , ग्रीन हाउस गैस, ग्लोबल वार्मिंग, पर्माफ्रॉस्ट विगलन, जलवायु, परिवर्तन। मेन्स के लिये:आर्कटिक प्रवर्धन के परिणाम और भारत पर इसका प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आर्कटिक प्रवर्धन पर प्रकाशित कुछ शोधों में यह सुझाया गया था कि क्षेत्र तेज़ी से बदल रहा है और हो सकता है कि सर्वोत्तम जलवायु मॉडल परिवर्तनों की दर को पकड़ने और इसकी सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम न हों।
शोध के निष्कर्ष:
- आर्कटिक ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना तेज़ी से गर्म हो रहा है।
- आर्कटिक के यूरेशियन हिस्से में वार्मिंग अधिक केंद्रित है, जहाँ रूस और नॉर्वे के उत्तर में बैरेंट्स सागर, वैश्विक औसत से सात गुना तेज दर से गर्म हो रहा है।
पुराने शोध:
- 21वीं सदी की शुरुआत से पहले आर्कटिक वैश्विक दर से दोगुना तेज़ी से गर्म हो रहा था।
- अंतर-सरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change- IPCC) द्वारा वर्ष 2019 में 'महासागर और क्रायोस्फीयर में जलवायु परिवर्तन पर विशेष रिपोर्ट' के अनुसार पिछले दो दशकों में आर्कटिक सतह के हवा के तापमान में वैश्विक औसत से दोगुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
- मई 2021 में, आर्कटिक मॉनिटरिंग एंड असेसमेंट प्रोग्राम (एएमएपी) ने चेतावनी दी थी कि आर्कटिक हमारे ग्रह की तुलना में तीन गुना तेज़ी से गर्म हो गया है, और यदि ग्रह पूर्व-औद्योगिक स्तर से दो डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होता है, तो गर्मियों में समुद्री बर्फ के पूरी तरह से गायब होने की संभावना 10 गुना अधिक है।
- रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र में औसत वार्षिक तापमान में 3.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जबकि ग्रह के लिये यह वृद्धि 1 डिग्री सेल्सियस की है।
- माध्य आर्कटिक प्रवर्धन में वर्ष 1986 और वर्ष 1999 में भारी परिवर्तन देखा गया, जब अनुपात 4.0 तक पहुंच गया, जिसका अर्थ है कि शेष ग्रह की तुलना में चार गुना तेज तापन।
आर्कटिक प्रवर्धन
- ध्रुवीय प्रवर्धन तब होता है जब पृथ्वी के वायुमंडल में परिवर्तन के कारण उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के तापमान में बाकी दुनिया की तुलना में अधिक अंतर होता है।
- इस घटना को ग्रह के औसत तापमान परिवर्तन के सापेक्ष मापा जाता है।
- ये परिवर्तन उत्तरी अक्षांशों पर अधिक स्पष्ट हैं और आर्कटिक प्रवर्धन के रूप में जाने जाते हैं।
- यह तब होता है जब ग्रीनहाउस गैसों में वृद्धि से वातावरण का शुद्ध विकिरण संतुलन प्रभावित होता है।
आर्कटिक प्रवर्धन की प्रक्रिया:
- बर्फ की एल्बिडो प्रतिक्रिया, ह्रास दर, जल वाष्प की दर (जलवाष्प में परिवर्तन तापमान बढ़ना या कम होन) और महासागर का तापमान परिवहन के प्राथमिक कारण हैं।
- एल्बिडो, सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त ऊष्मा का वह भाग, जो बिना पृथ्वी एवं वायुमंडल को गर्म किये परावर्तित हो जाता है।
- बर्फ में उच्च एल्बिडो होता है, जिसका अर्थ है कि वे पानी और जमीन के विपरीत अधिकांश सौर विकिरण को प्रतिबिंबित करने में सक्षम हैं।
- जैसे-जैसे समुद्री बर्फ पिघलेगी, आर्कटिक महासागर सौर विकिरण को अवशोषित करने में अधिक सक्षम होगा, जिससे प्रवर्धन को बढ़ावा मिलेगा।
- सामान्य ताप ह्रास दर ऊँचाई में वृद्धि के अनुपात में तापमान होने वाली कमी है।
- कई अध्ययनों से पता चलता है कि बर्फ की एल्बिडो प्रतिक्रिया और ह्रास दर क्रमशः 40% और 15% ध्रुवीय प्रवर्धन के लिये ज़िम्मेदार हैं।
आर्कटिक वार्मिंग के परिणाम:
- ग्रीनलैंड की बर्फ की परत का पतला होना:
- ग्रीनलैंड की बर्फ की परत खतरनाक दर से पिघल रही है और समुद्री बर्फ के संचय की दर वर्ष 2000 के बाद से उल्लेखनीय रूप से कम हो रही है, जो पुरानी और मोटी बर्फ की चादरों की जगह नई और बर्फ की पतली परत द्वारा चिह्नित है।
- असामान्य गर्मी के तापमान के परिणामस्वरूप प्रति दिन 6 बिलियन टन बर्फ की परत पिघल जाती है, जो तीन दिनों की अवधि में कुल 18 बिलियन टन पानी के एक फुट पानी से वेस्ट वर्जीनिया को कवर करने के लिये पर्याप्त है।
- समुद्र के स्तर में वृद्धि:
- ग्रीनलैंड की बर्फ की परत अंटार्कटिका के बाद बर्फ की दूसरी सबसे बड़ी मात्रा धारित करती है, और इसलिये यह समुद्र के स्तर को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- वर्ष 2019 में, समुद्र के स्तर में लगभग 1.5 मीटर की वृद्धि का यह एकमात्र सबसे बड़ा कारण था।
- यदि यह परत पूरी तरह से पिघल जाती है, तो समुद्र का स्तर सात मीटर तक बढ़ जाएगा, जो द्वीपीय देशों और प्रमुख तटीय शहरों को डूबा सकती है।
- ग्रीनलैंड की बर्फ की परत अंटार्कटिका के बाद बर्फ की दूसरी सबसे बड़ी मात्रा धारित करती है, और इसलिये यह समुद्र के स्तर को बनाए रखने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- जैव विविधता पर प्रभाव:
- आर्कटिक महासागर और क्षेत्र में समुद्रों का गर्म होना, जल का अम्लीकरण, लवणता के स्तर में परिवर्तन, समुद्री प्रजातियों और आश्रित प्रजातियों सहित जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है।
- वैश्विक तापमान बढ़ने से वर्षा में भी वृद्धि हो रही है जो बारहसिंगा के लिये लाइकेन की उपलब्धता और पहुँच को प्रभावित कर रही है।
- आर्कटिक का प्रवर्द्धन आर्कटिक जीवों के बीच व्यापक भुखमरी और मृत्यु का कारण बन रहा है।
- पर्माफ्रॉस्ट का पिघलना:
- आर्कटिक में पर्माफ्रॉस्ट पिघल रहा है और बदले में कार्बन और मीथेन उत्सर्जित हो रहा है जो ग्लोबल वार्मिंग के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों में से हैं।
- विशेषज्ञों को डर है कि विगलन और पिघलना लंबे समय से निष्क्रिय बैक्टीरिया और वायरस को भी स्वतंत्र कर देगा जो पर्माफ्रॉस्ट में जम गए थे और संभावित रूप से बीमारियों को जन्म दे सकते हैं।
- इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण वर्ष 2016 में साइबेरिया में एंथ्रेक्स के प्रकोप पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के कारण हुआ जहाँ लगभग 2,00,000 बारहसिंगा की मृत्यु हो गई।
भारत पर इसका प्रभाव:
- हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने भारतीय उपमहाद्वीप में मानसून पर बदलते आर्कटिक के प्रभाव पर विचार किया है।
- भारत के सामने चरम मौसम की घटनाओं और जल एवं खाद्य सुरक्षा के लिये वर्षा पर भारी निर्भरता के कारण दोनों के संबंध का महत्त्व का बढ़ रहा है।
- वर्ष 2021 में प्रकाशित एक अध्ययन (आर्कटिक समुद्री बर्फ और विलंब से भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा की चरम सीमा के बीच संभावित संबंध) ने पाया कि बैरेंट्स-कारा समुद्र क्षेत्र में समुद्री बर्फ कम होने से सितंबर- अक्तूबर में मानसून के उत्तरार्ध में अत्यधिक वर्षा की घटनाएंँ हो सकती हैं।
- अरब सागर में गर्म तापमान के साथ संयुक्त रूप से घटती समुद्री बर्फ के कारण वायुमंडलीय परिसंचरण में परिवर्तन नमी को बढ़ाने और अत्यधिक वर्षा की घटनाओं योगदान देता है।
- वर्ष 2021 में विश्व मौसम विज्ञान संगठन की रिपोर्ट (वैश्विक जलवायु की स्थिति, 2021) के अनुसार, भारतीय तट के साथ समुद्र का स्तर वैश्विक औसत दर से तेज़ी से बढ़ रहा है।
- इस वृद्धि के प्राथमिक कारणों में से ध्रुवीय क्षेत्रों, विशेष रूप से आर्कटिक में समुद्री बर्फ का पिघलना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षो के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. ‘मेथैन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सही हैं? 1- भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होता प्रेरित हो सकता है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
अतः विकल्प (d) सही है। |