डेली न्यूज़ (18 Apr, 2020)



महामारियों का ऐतिहासिक स्वरुप

प्रीलिम्स के लिये:

जस्टिनियन प्लेग, ब्लैक डेथ, स्पैनिश फ्लू 

मेन्स के लिये:

महामारी प्रबंधन 

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 महामारी ने इस बहस को पुन: चर्चा में ला दिया है कि पूरे इतिहास काल में मानव समाज और राजनीति को महामारियों ने कैसे आकार दिया है।

मुख्य बिंदु:

  • 6वीं शताब्दी के ‘जस्टिनियन प्लेग’ (Justinian Plague) से लेकर 20वीं शताब्दी के स्पेनिश फ्लू तक की महामारियों ने अनेक साम्राज्यों का पतन करने के साथ ही सामाजिक उथल-पुथल पैदा की है। 
  • यहाँ कुछ बड़ी महामारियों पर नजर डालते हैं जिन्होंने मानव इतिहास को प्रभावित किया है।

जस्टिनियन प्लेग

(Justinian Plague):

  • यह रिकॉर्ड किये गए इतिहास में सबसे घातक महामारियों में से है जिसकी उत्पति मिस्र में 6वीं शताब्दी में हुई थी। इसका प्रसार तेज़ी से पूर्वी रोमन साम्राज्य में हो गया। प्लेग का नाम पूर्वी रोमन साम्राज्य से तात्कालिक सम्राट जस्टिनियन के नाम पर 'जस्टिनियन प्लेग' पड़ा। 
  • इस महामारी के कारण लगभग 25 से 100 मिलियन लोग मारे गए। इस महामारी के समय पूर्वी रोमन साम्राज्य में इटली, रोम और उत्तरी अफ्रीका सहित संपूर्ण भूमध्यसागरीय तट शामिल था।
  • 750 ईस्वी तक प्लेग का बार-बार प्रकोप रहा जिससे पूर्वी रोमन साम्राज्य आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर हो गया तथा प्लेग के प्रकोप के समाप्त होने तक रोमन साम्राज्य ने यूरोप में जर्मन-भाषी फ्रैंक्स क्षेत्र खो दिया तथा मिस्र एवं सीरिया अरब साम्राज्य के नियंत्रण में आ गया था।

ब्लैक डेथ (Black Death):

  • ब्लैक डेथ महामारी को मानव इतिहास में दर्ज सबसे घातक महामारी माना जाता है। इस महामारी का प्रभाव 14वीं शताब्दी के दौरान यूरोप और एशिया महाद्वीपों में रहा।
  • इस महामारी के दौरान 75 से 200 मिलियन लोग मारे गए। इसकी शुरुआत 1340 के प्रारंभिक दशक से मानी जाती है जिसका प्रभाव चीन, भारत, सीरिया और मिस्र के बाद 1347 में यूरोप तक हो गया। इस महामारी के कारण यूरोप की लगभग 50% आबादी खत्म हो गई।
  • इस महामारी के स्थायी आर्थिक और सामाजिक प्रभाव रहे:
    • महामारी के लिये यूरोप में यहूदियों को जिम्मेदार ठहराया गया तथा यहीं से यूरोप में यहूदियों का उत्पीड़न प्रारंभ हुआ।
    • ब्लैक डेथ के बाद कैथोलिक चर्च का प्रभाव कम हो गया तथा मनुष्य के ईश्वर के साथ संबंधों को चुनौती दी गई।

स्पैनिश फ़्लू (Spanish Flu):

  • स्पैनिश फ़्लू, महामारी का प्रभाव प्रथम विश्व युद्ध के अंतिम चरण के दौरान रहा।  यह 20वीं शताब्दी की सबसे घातक महामारी थी जिसमें लगभग 50 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। स्पैनिश फ्लू को सबसे पहले यूरोप में दर्ज किया गया, जिसका बाद में अमेरिका और एशिया में तेज़ी से प्रसार हुआ। भारत में इस महामारी से लगभग 17 से 18 मिलियन लोगों की मृत्यु हो गई।
  • महामारी का प्रमुख प्रभाव प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम पर रहा। हालाँकि फ्लू से विश्व युद्ध में शामिल दोनों तरफ लोग मारे गए थे परंतु जर्मन और ऑस्ट्रियाई सेनाएँ इससे बुरी तरह से प्रभावित हुई।

COVID-19:

  • COVID- 19 का क्या प्रभाव रहा? यह अभी नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि अभी भी इस महामारी का प्रभाव जारी है। COVID- 19 महामारी के कारण लगभग 2 मिलियन लोग संक्रमित तथा लगभग 1,26,000 से लोग मारे जा चुके हैं। रोज़गार, आर्थिक वृद्धि आदि पर COVID- 19 महामारी के प्रभाव अभी से दिखाई दे रहे हैं। 

स्रोत: द हिंदू


ब्रेक्ज़िट और COVID-19

प्रीलिम्स के लिये

ब्रेक्ज़िट, COVID-19 

मेन्स के लिये

ब्रेक्ज़िट, वैश्विक राजनीति पर COVID-19 का प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) प्रमुख ने ब्रिटेन को COVID-19 की अनिश्चितता से उत्पन्न हुई चुनौतियों को कम करने के लिये ‘पोस्ट ब्रेक्ज़िट ट्रांज़िसन पीरियड’ (Post Brexit Transition Period) में वृद्धि करने की सलाह दी है।

मुख्य बिंदु: 

  • IMF प्रमुख के अनुसार, वर्तमान में जब COVID-19 की महामारी के कारण पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है ऐसे समय में ब्रिटेन को इस अनिश्चितता को दूर करने के लिये आवश्यक कदम उठाने चाहिये।
  • ब्रिटेन के लिये यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद ट्रांज़िसन पीरियड 31 दिसंबर, 2020 को समाप्त हो जाएगा, ऐसे में बिना किसी व्यापारिक समझौते के दोनों तरफ से आयात और निर्यात प्रभावित होगा। 
  • वर्तमान COVID-19 की महामारी के कारण यह समस्या और भी जटिल हो गई है।
  • इससे पहले IMF ने चेतावनी जारी की थी कि इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था वर्ष 1930 की मंदी के बाद सबसे तीव्र गिरावट की ओर बढ़ रही है।

पोस्ट ब्रेक्ज़िट ट्रांज़िसन पीरियड

(Post Brexit Transition Period):

  • 31 जनवरी, 2020 को ब्रिटेन के यूरोपीय संघ (European Union -EU) से औपचारिक रूप से अलग होने के बाद ब्रिटेन यूरोपीय संसद और यूरोपीय कमीशन से अलग हो गया है, परंतु वह अगले 11 महीनों (31 दिसंबर, 2020) तक यूरोपीय कस्टम यूनियन और एकल बाज़ार/सिंगल मार्केट (Single Market) का हिस्सा बना रहेगा।  
  • अर्थात् इस दौरान EU और ब्रिटेन के बीच लोगों की आवाजाही और मुक्त व्यापार की अनुमति पूर्व की तरह बनी रहेगी। 
  • इस अवधि के दौरान दोनों पक्षों के बीच व्यापार, वीज़ा और अन्य मामलों पर आवश्यक समझौते किये जाएंगे।  
  • वर्ष 1993 में यूरोपीय संघ की स्थापना के बाद ब्रिटेन इस संगठन से अलग होने वाला पहला सदस्य है।    

ब्रिटेन पर COVID-19 का प्रभाव:

  • वर्तमान में ब्रिटेन विश्व के उन देशों में शामिल है जिनमें COVID-19 का सबसे गंभीर प्रभाव देखने को मिला है।
  • ब्रिटेन में COVID-19 के कारण मृत्यु का पहला मामला 28 फरवरी, 2020 को सामने आया था और वर्तमान में ब्रिटेन में इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 1 लाख से अधिक तथा मृतकों की संख्या 14,000 से अधिक हो गई है।
  • इतने कम समय में बड़ी संख्या में लोगों और कुछ स्वास्थ्य कर्मियों में COVID-19 संक्रमण के फैलने से ब्रिटेन की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (National Health Service- NHS) पर दबाव बढ़ गया है।
  • COVID-19 का प्रभाव स्वास्थ्य के साथ अन्य क्षेत्रों पर भी देखने को मिला है, 
  • एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में ब्रिटेन की GDP में 35% तक गिरावट हो सकती है और बेरोज़गारी में 10% (लगभग 20 लाख) की वृद्धि देखने को मिल सकती है।
  • ब्रिटेन में लागू लॉकडाउन के कारण वर्तमान वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में देश के विभिन्न क्षेत्रों में उद्योगों और व्यवसायों में भारी नुकसान होने का अनुमान है, इनमें विनिर्माण (-55%), भवन निर्माण (-70%), होलसेल, खुदरा और वाहनों की बिक्री (-50%), आवास तथा भोजन (-85%) आदि प्रमुख हैं। 
  • साथ ही इस वित्तीय वर्ष में ब्रिटेन के राजकोषीय घाटे में 218 बिलियन पाउंड की वृद्धि का अनुमान है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी एक वर्ष का सबसे बड़ा राजकोषीय घाटा होगा।

ब्रेक्ज़िट का ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:   

  • ब्रिटेन 31 जनवरी, 2020 को औपचारिक रूप से यूरोपीय संघ से अलग हो गया है ऐसे में 31 दिसंबर, 2020 को ट्रांज़िसन पीरियड के समाप्त होने से पहले ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच किसी व्यापार समझौते का लागू होना बहुत आवश्यक होगा।  
  • वर्तमान में ब्रिटेन के कुल निर्यात में से 46% की खपत यूरोपीय बाज़ार में होती है ऐसे में ट्रांज़िसन पीरियड के बाद बिना किसी व्यापार समझौते के ब्रिटिश निर्यात को बड़ा नुकसान हो सकता है। 
  • संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन’ (United Nations Conference on Trade and Development- UNCTAD) के अनुमान के अनुसार, बिना किसी समझौते की स्थिति में ब्रिटेन को व्यापार कर के रूप में 32 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
  • UNCTAD के अनुमान के अनुसार, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार समझौते की स्थिति में भी ब्रिटेन के निर्यात में 9% की गिरावट देखी जा सकती है।  
  • यूरोपीय संघ से अलग होने पर ब्रिटेन को कई अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा जिसका प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से देश की अर्थव्यवस्था में दिखाई देगा। जैसे- ब्रिटेन के नागरिकों को अन्य यूरोपीय देशों में नौकरी या व्यापार करने में कठिनाई, अन्य EU देशों के कम वेतन पर कार्य करने वाले कुशल श्रमिकों की कमी आदि।  
  • EU देशों के बीच आवाजाही की छूट के कारण कई ब्रिटिश कंपनियों ने अपने  कारखाने कम उत्पादन लागत वाले अन्य EU देशों में खोल रखे थे, EU से अलग होने पर इनके उत्पादन की लागत में वृद्धि होगी। 
  • बिना किसी मज़बूत व्यापार समझौते के ब्रिटेन में विदेशी निवेश को बढ़ावा देना एक बड़ी चुनौती होगी। ब्रेक्ज़िट के बाद अन्य EU देशों की कई बड़ी कंपनियों ने ब्रिटेन में अपने कार्यालय बंद करने शुरू कर दिये है, जिससे ब्रिटेन में बड़ी मात्रा बेरोज़गारी में वृद्धि होगी।
  • उत्तरी आयरलैंड (यूनाइटेड किंगडम का हिस्सा) और आयरलैंड गणराज्य सीमा समाधान के लिये ब्रिटेन और EU के बीच मुक्त व्यापार समझौता ही सबसे उपयुक्त उपाय होगा परंतु ऐसा न होने पर ब्रिटेन के लिये इस समस्या का समाधान करना एक बड़ी चुनौती होगी।

ब्रेक्ज़िट और COVID-19:

  • COVID-19 की अनिश्चितता ने ब्रिटिश अर्थव्यवस्था पर ब्रेक्ज़िट के प्रभावों को कई गुना बढ़ा दिया है।   
  • ब्रेक्ज़िट के कारण EU से वापस आकर ब्रिटेन में नौकरियों की तलाश कर रहे युवाओं को COVID-19 के कारण रोज़गार न मिलने से देश में बेरोज़गारी की वृद्धि होगी। 
  • EU से अलग होने के बाद ब्रिटेन में कई तरह की योजनाओं की शुरुआत भी की गई थी परंतु COVID-19 के कारण इनमें देरी के साथ ही इनकी लागत भी बढ़ने का अनुमान है। 
  • ब्रिटिश सरकार की पूर्व योजना के अनुसार, ब्रेक्ज़िट के बाद उद्योगों की मदद के लिये कई तरह के राहत पैकेज जारी करने का अनुमान था परंतु वर्तमान राजकोषीय घाटे और अर्थव्यवस्था की गिरावट को देखते हुये, किसी बड़े राहत पैकेज की संभावना बहुत कम हो गई है।
  • हाल ही में EU और ब्रिटेन के द्वारा जारी एक साझा बयान में दोनों पक्षों के भविष्य के संबंधों पर चर्चा के लिये सप्ताह भर चलने वाली तीन बैठकों की घोषणा की गई, ये क्रमशः 20 अप्रैल, 11 मई और 1 जून को प्रारंभ होंगी।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति की बैठक

प्रीलिम्स के लिये

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक

मेन्स के लिये

महामारी प्रबंधन में अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की भूमिका

चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्‍यम से अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति (International Monetary and Financial Committee-IMFC) और विश्व बैंक-अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की विकास समिति (Development Committee) की बैठक में भाग लिया। 

अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति की बैठक

  • यह बैठक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) के प्रबंध निदेशक के ‘वैश्विक नीतिगत एजेंडे’ पर आधारित थी, जिसका शीर्षक था ‘असाधारण परिस्थितियाँ - असाधारण कदम’ (Exceptional Times – Exceptional Action)। 
  • बैठक के दौरान IMFC के सदस्यों ने COVID-19 से निपटने के लिये सदस्य देशों द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों और उपायों पर समिति को अपडेट किया तथा इसके साथ ही वैश्विक तरलता एवं सदस्य देशों की वित्तपोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये IMF द्वारा प्रस्‍तुत किये गए संकट-निपटान पैकेज पर भी अपने-अपने विचार व्‍यक्‍त किये।
  • वित्त मंत्री ने बैठक में अपने संबोधन के दौरान स्वास्थ्य संकट से निपटने के साथ-साथ इसके प्रभावों को कम करने के लिये भारत सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों को रेखांकित किया।
  • ध्यातव्य है कि अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक एवं वित्तीय समिति, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की मंत्रि‍स्तरीय समिति है।

विकास समिति की बैठक

  • बैठक में निर्मला सीतारमण ने कहा कि भारत की आबादी को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत COVID-19 का एक बड़ा हॉटस्पॉट बन सकता था, किंतु स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत बनाने और वायरस के प्रसार को रोकने में सरकार की भूमिका ने ऐसा नहीं होने दिया।
  • सोशल डिस्टेंसिंग, यात्रा प्रतिबंध, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों में वर्क फ्रॉम होम (WFH) की नीति, परीक्षण, स्क्रीनिंग और उपचार सुविधाओं में बढ़ोतरी जैसे महत्त्वपूर्ण उपायों ने सरकार को कोरोनावायरस के प्रभाव को कम करने में मदद की है।
  • वित्त मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि वैश्विक समुदाय का एक ज़िम्मेदार सदस्य होने के नाते भारत ज़रूरतमंद देशों को महत्त्वपूर्ण दवाइयाँ और आवश्यक सामग्री भी उपलब्ध करा रहा है और भविष्य में स्थिति के अनुसार ऐसा करता रहेगा।
  • विकास समिति (Development Committee) की बैठक विश्व बैंक तथा IMF के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (Boards of the Governors) की बैठक के साथ ही दोनों संस्थानों के कार्यों की प्रगति पर चर्चा करने के लिये प्रत्येक वर्ष आयोजित की जाती है।

इस संदर्भ में सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदम

  • ध्यातव्य है कि हाल ही में कोरोनावायरस (COVID-19) से लड़ने और स्वास्थ्य प्रणाली को मज़बूत करने के लिये 2 अरब डॉलर (15,000 करोड़ रुपए) का आवंटन किया था। इस आपातकालीन पैकेज का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आर्थिक तौर पर सहायता प्रदान करना था।
  • गरीबों एवं बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों की कठिनाइयों को कम करने के लिये 23 अरब डॉलर (1.70 लाख करोड़ रुपए) की राशि के सामाजिक सहायता उपायों की एक योजना की घोषणा की थी।
    • सरकार द्वारा घोषित इस पैकेज का उद्देश्य निर्धनतम लोगों को भोजन आदि की सुविधा प्रदान कर उनकी भरसक मदद करना है, ताकि उन्‍हें आवश्यक आपूर्ति या वस्‍तुओं को खरीदने और अपनी अनिवार्य ज़रूरतों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।
  • देश की विभिन्न छोटी बड़ी कंपनियों को कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रभाव से बचाने हेतु केंद्र सरकार ने वैधानिक एवं नियामकीय अनुपालन में कंपनियों को राहत देने के लिये कई प्रावधान किये हैं।
  • इस संबंध में RBI द्वारा भी कई उपायों की घोषणा की गई है, जिनमें रेपो रेट तथा रिवर्स रेपो रेट में कटौती करना और ऋणों की किस्त अदायगी में तीन माह की छूट प्रदान करना शामिल है।

आगे की राह

  • कोरोनावायरस वैश्विक समुदाय के समक्ष एक गंभीर चुनौती के रूप में उभर कर आया है और सभी देश इस वायरस से यथासंभव लड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत समेत दुनिया भर के कई देशों ने वायरस का मुकाबला करने के लिये विभिन्न उपायों की घोषणा की है। केंद्र सरकार ने देश में लॉकडाउन के दूसरे चरण को भी लागू कर दिया है।
  • हालाँकि इन प्रयासों के बावजूद देश में दिन-ब-दिन संक्रमित लोगों और संक्रमण के कारण मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके अलावा देश के कई स्थानों से आवश्यक बुनियादी ज़रूरतों जैसे- मास्क और सैनिटाइज़र की कमी के मामले भी सामने आ रहे हैं।
  • नीति निर्माताओं को इस मुद्दों को जल्द-से-जल्द सुलझाने का प्रयास करना चाहिये और नीति के निर्माण के साथ-साथ उसके कार्यान्वयन पर भी ध्यान देना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


COVID-19 के लिये इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन का विकास

प्रीलिम्स के लिये

इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन, COVID-19 

मेन्स के लिये

COVID-19 से निपटने में तकनीकी का प्रयोग, जैव प्रोद्योगिकी से संबंधित प्रश्न   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘कोशिकीय व आण्विक जीव विज्ञान केंद्र’ (Centre for Cellular and Molecular Biology- CCMB) के शोधकर्त्ताओं ने जानकारी दी है कि वे कोरोनावायरस से निपटने के लिये निष्क्रिय विषाणु आधारित वैक्सीन या इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन (Inactivated Virus Vaccine) के निर्माण का प्रयास कर रहे हैं।

मुख्य बिंदु:   

  • इनएक्टिवेटेड वैक्सीन अपनी सुरक्षा और निर्माण की आसान प्रक्रिया के लिये जानी जाती है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, यह वैक्सीन कोरोनावायरस के प्रसार और इसके दुष्प्रभावों को रोकने का सबसे उपयुक्त उपाय है।
  • वर्तमान में विश्व के अनेक संस्थान इस बीमारी से लड़ने के लिए वैक्सीन के विकास में लगे हुये हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organaisation- WHO) से विश्व भर से ऐसे 42 से अधिक संस्थाओं की सूची तैयार की है, जो इस बीमारी की वैक्सीन पर कम कर रहें हैं।

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन:

  • इस प्रक्रिया में पहले बड़ी संख्या में विषाणुओं का संवर्द्धन किया जाता है और फिर उन्हें रासायनिक प्रक्रिया या ऊष्मा (Heat) से मार दिया जाता है।
  • यद्यपि इस रोगजनक या पैथोजेन (Pathogen) को मार दिया जाता है या उसकी प्रजनन क्षमता को नष्ट कर दिया जाता है परंतु इसके बहुत से अंग/हिस्से जुड़े हुए होते हैं। जैसे- स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) जिसकी सहायता से यह कोशिकाओं में प्रवेश करता है।
  • इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाने जाने वाले एंटीजेन (Antigen) को भी सुरक्षित छोड़ दिया जाता है।
  • जब इस मृत जीवाणु को मानव शरीर में प्रवेश कराया जाता है तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसे जीवित समझ कर कुछ एंटीबॉडीज़ (Antibodies) के उत्सर्जन के माध्यम से प्रतिक्रिया करती है, जो इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन (Inactivated Virus Vaccine) के रूप में कार्य करती है।
  • पोलियो और रेबीज़ के लिये इनएक्टिवेटेड वैक्सीन का निर्माण/विकास इसी प्रकार किया गया था।

लाभ:   

  • मृत होने के कारण यह रोगजनक (Pathogen) तो प्रजनन नहीं कर पाता है और यहाँ तक कि  व्यक्ति में किसी हल्की सी भी बीमारी का विकास नहीं कर पाता। अतः यह उन लोगों को भी दी जा सकती है जिनकी रोग -प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत नहीं होती जैसे- बुजुर्ग या सह-रुग्णता (Co-Morbidity) से संबंधित रोगों से ग्रसित लोग आदि   
  • CCMB निदेशक के अनुसार, यदि हम बड़ी संख्या में विषाणुओं का संवर्द्धन कर उसे निष्क्रिय करते हैं तो यह इस बीमारी से संक्रमित लोगों के उपचार में प्रयोग किया जा सकेगा।  
  • पोलियो और रेबीज़ की वैक्सीन निर्माण में इस तकनीकी की सफलता के बाद इस क्षेत्र में उपयुक्त विशेषज्ञता उपलब्ध है। 
  • कोशिका संवर्द्धन की सही तकनीकी की पहचान से COVID-19 के उपचार की दावा के निर्माण में भी सहायता मिलेगी।  

चुनौतियाँ:

  • मानव शरीर के बाहर इस विषाणु का विकास करना एक बड़ी तकनीकी चुनौती है।
  • अभी तक कोरोनावायरस का विकास सिर्फ मानव शरीर में पाया गया है, ऐसे में मानव शरीर से बाहर इस विषाणु के विकास/संवर्द्धन के लिये उपयुक्त कोशिकाओं की पहचान कारण एक बड़ी चुनौती होगी।

  • वर्तमान में इस विषाणु के कृत्रिम विकास के लिये CCMB द्वारा ‘अफ्रीकन ग्रीन मंकी’  (African Green Monkey) में पाए जाने वाले उपकला ऊतक परतों (Epithelial Cell Line) का प्रयोग किया जा रहा है।
  • परीक्षणों के दौरान इन उतकों की निगरानी की जाएगी, यदि इनमें कोई परिवर्तन दिखाई देता है, जैसे-कोशिकाओं का निष्क्रिय होना या वायरस का अलग होना तो यह प्रयोग सफल माना जाएगा।  

स्रोत: पीआईबी


भारतीय विनिर्माण क्षेत्र

प्रीलिम्स के लिये

OBICUS, भारतीय विनिर्माण क्षेत्र

मेन्स के लिये

अर्थव्यवस्था के विकास में विनिर्माण क्षेत्र की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) ने विनिर्माण क्षेत्र के लिये आदेश बहियों, माल-सूचियों और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण (Order books, Inventories and Capacity Utilisation Survey-OBICUS) का 49वां दौर शुरू किया है। यह सर्वेक्षण जनवरी-मार्च 2020 (2019-20 की चौथी तिमाही) के लिये आयोजित किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • RBI के अनुसार, इस सर्वेक्षण के आँकड़े सर्वेक्षण पूरा होने के पश्चात् कुछ ही समय में RBI के इनपुट के साथ जारी किये जाएंगे।
  • उल्लेखनीय है कि RBI ने 3 अप्रैल, 2020 को विनिर्माण क्षेत्र के लिये अक्तूबर-दिसंबर 2019 के दौरान OBICUS के 48वें दौर के आँकड़े जारी किये थे, इस दौरान 704 विनिर्माण कंपनियों को कवर किया गया था।
  • सर्वेक्षण के 48वें संस्मरण के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2019-20 की तीसरी तिमाही में क्षमता उपयोग (Capacity Utilisation-CU) घटकर 68.6 प्रतिशत रह गया था, जो उससे पिछली तिमाही में 69.1 प्रतिशत था।

आदेश बहियों, माल-सूचियों और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण 

(Order books, Inventories and Capacity Utilisation Survey-OBICUS) 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) वर्ष 2008 से प्रत्येक वर्ष तिमाही आधार पर आदेश बहियों, माल-सूचियों और क्षमता उपयोग सर्वेक्षण (OBICUS) का आयोजन कर रहा है।
  • यह सर्वेक्षण मौद्रिक नीति के निर्माण के लिये आवश्यक बहुमूल्य जानकारी प्रदान करता है।
  • इस सर्वेक्षण में एक विशिष्ट तिमाही के दौरान प्राप्त हुआ नए आदेशों (New Orders), तिमाही की शुरुआत में आदेशों के संचय (Backlog) और तिमाही के अंत में लंबित आदेशों (Pending Orders) के डेटा को शामिल किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण में तिमाही के अंत में अधिनिर्मित उत्पादन (Work-in-Progress) और पूर्णरूप से निर्मित वस्तुओं (Finished Goods) का डेटा भी शामिल होता है।
  • RBI द्वारा सर्वेक्षण से प्राप्त प्रतिक्रियाओं के माध्यम से क्षमता उपयोग (Capacity Utilisation-CU) के स्तर का अनुमान लगाया जाता है।

भारतीय विनिर्माण क्षेत्र

  • बीते कुछ वर्षों में भारतीय विनिर्माण क्षेत्र भारत में कुछ प्रमुख उच्च विकास क्षेत्रों में से एक के रूप में उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में वैश्विक स्तर पर भारत को एक विनिर्माण हब के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से मेक इन इंडिया ’कार्यक्रम की शुरुआत की थी और भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक पहचान दिलाई थी।
  • अनुमानानुसार, वर्ष 2020 के अंत तक भारत दुनिया का पाँचवाँ सबसे बड़ा विनिर्माण देश बन जाएगा, किंतु मौजूदा समय में कोरोनावायरस महामारी का प्रभाव भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर भी पड़ सकता है।
  • वर्ष 2017-18 के आँकड़ों के अनुसार, विनिर्माण क्षेत्र भारत की GDP में कुल 16.7 प्रतिशत योगदान देता है। 
  • ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत भारत सरकार का लक्ष्य वर्ष 2022 तक भारत की GDP में विनिर्माण क्षेत्र के योगदान को 25 प्रतिशत तक बढ़ाना है और विनिर्माण क्षेत्र में तकरीबन 100 मिलियन नए रोज़गारों का निर्माण करना है।

विनिर्माण क्षेत्र का महत्त्व

  • विश्व के जितने भी बड़े और संपन्न राष्ट्र हैं उनके विकास की कहानी को देखें तो ज्ञात होता है कि भारत किन मोर्चों पर पीछे रह गया है।
  • दरअसल, औद्योगिक क्रांति ने समूचे विश्व को यह दिखाया कि यदि किसी देश का विनिर्माण क्षेत्र मज़बूत हो तो वह किस प्रकार उच्च आय वाला देश बन सकता है।
  • चीन इस तथ्य का एक प्रमुख उदाहरण है। हालाँकि कुछ ऐसे भी देश रहे हैं जिन्होंने विनिर्माण के स्थान पर सेवा क्षेत्र (Service-Sector) को बढ़ावा दिया और बेहतर विकास किया, किंतु ऐसे देश आकार और जनसंख्या की दृष्टि से अपेक्षाकृत छोटे हैं।
  • कोई देश जितना कम विनिर्माण करता है उसका आयात उतना ही अधिक होता है। आयात और निर्यात के बीच बढ़ती दूरी व्यापार असंतुलन को बढ़ावा देती है। अतः व्यापार संतुलन को बनाए रखने में विनिर्माण क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
  • विनिर्माण क्षेत्र में कार्य करने वाला कार्यबल कौशल युक्त होता है और तकनीकी विकास के साथ उसके कौशल में और भी वृद्धि होती है। यदि विनिर्माण क्षेत्र आगे बढ़ता है तो श्रमबल को बेहतर प्रशिक्षण प्राप्त करने के अवसरों में भी वृद्धि होती है जिससे वह कौशल युक्त बनता है।

निष्कर्ष

विनिर्माण क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। किंतु मौजूदा COVID-19 महामारी का देश के विनिर्माण क्षेत्र पर काफी अधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इस प्रकार आवश्यक है कि सरकार कोरोनावायरस को मद्देनज़र रखते हुए देश के विनिर्माण क्षेत्र के विकास हेतु उपर्युक्त नीति का विकास करे, ताकि अर्थव्यवस्था के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को संकट की स्थिति से बचाया जा सके।

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड 


COVID- 19 का बैंकों के NPA पर प्रभाव

प्रीलिम्स के लिये:

विशेष उल्लेख खाता, परिसंपत्तियों का वर्गीकरण 

मेन्स के लिये:

भारत में NPAs की समस्या  

चर्चा में क्यों?

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों’ (Public sector banks- PSBs) ने मार्च 2020 में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक के ऋणों के ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों’ (Non-Performing Assets- NPAs) में परिवर्तित हो जाने पर केंद्र सरकार से अपनी चिंता व्यक्त की है। 

मुख्य बिंदु: 

  • भारतीय रिजर्व बैंक’ (Reserve Bank of India- RBI) ने परिसंपत्तियों के वर्गीकरण को महामारी के दौरान स्थगित करने के PSBs के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था।
  • उधारकर्त्ता जिन्हें विशेष उल्लेख खातों -2 (Special Mention Accounts- 2- SMA-2) के रूप में वर्गीकृत किया गया था, संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली में मार्च के अंत तक 50,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि NPA में बदल गई। यह NPA मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) से संबंधित है।

विशेष उल्लेख खाता

(Special Mention Account- SMA):

  • SMA खाता उधारकर्त्ताओं द्वारा ऋण दायित्वों को पूरा न कर पाने पर ऋण के प्रारंभिक तनाव (Stress) को प्रदर्शित करता है। हालाँकि इस खाते को अभी तक NPA के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाता है। 
  • इस तरह के खातों की शीघ्र पहचान से बैंक परिसंपत्ति के NPA में बदलने से पूर्व ही आवश्यक उपचारात्मक कार्रवाई शुरू करने में सक्षम होते हैं। 
  •  SMA में निम्नलिखित प्रकार से ऋण/अग्रिम खातों को वर्गीकृत किया जाता है:
SMA उप-श्रेणियाँ  मूलधन या ब्याज का भुगतान में विलंब 
SMA- 0 1-30 दिन 
SMA- 1 31-60 दिन 
SMA- 2
61- 90 दिन 

गैर-निष्पादनकारी संपत्ति:

  • सामान्य रूप से वह संपत्ति जिस पर ब्याज/मूलधन 90 दिनों तक बकाया हो, उसे गैर-निष्पादनकारी संपत्ति कहा जाता है। 
  • NPA को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है।
  • सब-स्टैंडर्ड एसेट्स (Sub-­Standard Assets): 
    • 12 माह या इससे कम अवधि तक NPA के रूप में बने रहने वाली संपत्ति।
  • डाउटफुल एसेट्स (Doubtful Assets):
    • अगर कोई संपत्ति 12 माह तक सब-स्टैंडर्ड की श्रेणी में बनी रहे।
  • लॉस एसेट्स (Loss Assets):
    • यह न वसूल की जा सकने वाली और अत्यंत कम मूल्य वाली संपत्ति होती है। बैंक द्वारा इसके परिसंपत्ति के रूप में बने रहने की पुष्टि नहीं की जाती है।

RBI का पैकेज:

  • RBI ने क्रेडिट कार्ड और कार्यशील पूंजी (Working Capital) के साथ ही कृषि, खुदरा एवं सभी प्रकार के फसल ऋणों के भुगतान अवधि को तीन माह के लिये बढ़ा दिया है। ये लाभ 1 मार्च से 31 मई के दौरान उपलब्ध रहेंगे।
    • कार्यशील पूंजी ऋण एक ऐसा ऋण होता है, जो कंपनी के रोज़मर्रा के कामों को पूरा करने के लिये लिया जाता है। 

बैंकों का पक्ष:

  • बैंकों ने सरकार से अनुरोध किया है कि वह RBI से आधिकारिक स्पष्टीकरण ले कि COVID- 19 प्रभाव से निपटने के लिये RBI द्वारा राहत पैकेज के हिस्से के रूप में ऋणों की वसूली पर लगाई गई रोक ‘गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों’ (Non-Banking Financial Companies- NBFC) तक विस्तारित होगी या नहीं।
  • यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि RBI ने भुगतान अवधि को कार्यशील पूंजी और खुदरा ग्राहकों के लिये बढ़ाया है, जबकि NBFC के पास कार्यशील पूंजी की कोई अवधारणा नहीं होती है, अत: भुगतान के नियम उन पर लागू नहीं होंगे।

NBFC तक पैकेज विस्तार का फायदा:

  • पैकेज के NBFC तक विस्तार करने पर इनके द्वारा MSME को दिये गए ऋण की गारंटी सरकार द्वारा दी जाएगी। सरकार द्वारा सुनिश्चित किये जाने पर ऋण की वापसी की बैंकों को 100% गारंटी होगी। 

स्रोत: बिज़नेस स्टैन्डर्ड


कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं COVID-19

प्रीलिम्स के लिये:

कृत्रिम बुद्धिमत्ता, COVID-19

मेन्स के लिये:

COVID-19 से निपटने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के योगदान से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में COVID-19 के परीक्षण हेतु इटली और भारत के कुछ छात्रों द्वारा संयुक्त रूप से एक एप विकसित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • इस एप द्वारा लोगों की आवाज (Voice) के आधार पर COVID-19 का परीक्षण किया जा सकता है। 
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) पर आधारित इस एप द्वारा COVID-19 से संक्रमित 300 व्यक्तियों का परीक्षण किया गया जिसमें इस तकनीक की सटीकता 98% पाई गयी। 
  • गौरतलब है कि भारतीय विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Science-IISc), बैंगलोर की एक टीम भी खाँसी और श्वसन ध्वनियों के विश्लेषण के आधार पर COVID-19 हेतु परीक्षण पर कार्य कर रही है।

एप की कार्यप्रणाली:

  • एप पर माइक्रोफोन से बात करने से लोगों के आवाज की आवृत्ति और शोर को कई मापदंडों में एप द्वारा वर्गीकृत कर दिया जाता है।
  • एक सामान्य व्यक्ति तथा COVID-19 से संक्रमित व्यक्ति के आवाज की आवृत्ति और शोर की तुलना कर यह निर्धारित किया जाता है कि व्यक्ति संक्रमित है या नहीं।

लाभ:

  • यह एप COVID-19 से संक्रमित लोगों की पहचान करने हेतु प्राथमिक स्तर के परीक्षण को शीघ्रता से करने में सक्षम है।
    • प्राथमिक स्तर के परीक्षण में सकारात्मक परिणाम वाले व्यक्ति को ही अगले चरण के परीक्षण हेतु प्रयोगशाला में भेजा जाएगा। 
  • एप की सहायता से किया जाने वाला परीक्षण निःशुल्क होगा।
  • सरकार को COVID-19 से अत्यधिक प्रभावित क्षेत्रों (Hotspot Regions) की पहचान करने में मदद मिलेगी। 

चुनौतियाँ:

  • हाल के दिनों में देश में COVID-19 से संक्रमित लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है ऐसे में यह अति आवश्यक है कि शीघ्र ही अधिक-से-अधिक संक्रमित लोगों की पहचान की जाए। परंतु इस एप के बारे में लोगों को बताना/प्रचार-प्रसार करना तथा एप की कार्यप्रणाली से अवगत कराना एक बड़ी चुनौती होगी।  

कृत्रिम बुद्धिमत्ता

(Artificial Intelligence-AI):

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है। इसके जनक जॉन मैकार्थी हैं।
  • यह मशीनों की सोचने, समझने, सीखने, समस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता को सूचित करता है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर शोध की शुरुआत 1950 के दशक में हुई थी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का अर्थ है कृत्रिम तरीके से विकसित बौद्धिक क्षमता।
  • इसके ज़रिये कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम तैयार किया जाता है, जिसे उन्हीं तर्कों के आधार पर संचालित करने का प्रयास किया जाता है जिसके आधार पर मानव मस्तिष्क कार्य करता है।
  • AI पूर्णतः प्रतिक्रियात्मक (Purely Reactive), सीमित स्मृति (Limited Memory), मस्तिष्क सिद्धांत (Brain Theory) एवं आत्म-चेतन (Self Conscious) जैसी अवधारणाओं पर कार्य करता है।

स्रोत: द हिंदू


राशन वितरण से लगभग 10 करोड़ लोग वंचित

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013

मेन्स के लिये:

सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

ज्याँ द्रेज़ (Jean Dreze) और रीतिका खेड़ा (Reetika Khera) जैसे प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के अनुसार, सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत किये जा रहे राशन वितरण से लगभग 10 करोड़ लोग वंचित हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों का उपयोग करते हुए राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act) के तहत कुल आबादी के 67% हिस्से को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Public Distribution System) के माध्यम से राशन वितरण किया जाता है। इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में 75% और शहरी क्षेत्रों में 50% लोग शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या लगभग 121 करोड़ है।
    • वर्तमान में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लगभग 80 करोड़ लोगों को कवर किया जा रहा है। 
  • हालाँकि, वर्ष 2020 के लिये अनुमानित 137 करोड़ की आबादी हेतु 67% के अनुपात को लागू करने पर हम पाते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत लगभग 90 करोड़ लोग कवर होने चाहिये। इसका तात्पर्य यह है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन वितरण से लगभग 10 करोड़ लोग वंचित होंगे। 
  • उल्लेखनीय है कि लॉकडाउन के कारण नौकरी खो चुके लोग अब सिर्फ सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर आश्रित हैं। इन्हीं परिस्थितियों के बीच COVID-19 के कारण देशभर में लॉकडाउन की वजह से सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित खामियाँ सामने आई हैं। 

सार्वजनिक वितरण प्रणाली

(Public Distribution System-PDS):

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ता खाद्यान्न आम लोगों तक पहुँचाया जाता है, जो केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की संयुक्त ज़िम्मेदारी है।
  • केंद्र सरकार सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध कराती है और उसका वितरण स्थानीय स्तर पर राज्य सरकारों द्वारा आवंटित उचित दर की दुकानों (राशन की दुकान) के द्वारा किया जाता है।

राज्यों से संबंधित आँकड़े:

  • विशेषज्ञों के अनुसार, राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन वितरण से उत्तर प्रदेश में 2.8 करोड़ लोग और बिहार में 1.8 करोड़ लोग वंचित होंगे।
    • वर्ष 2016 से जन्म और मृत्यु दर का उपयोग कर अनुमानित जनसंख्या वृद्धि दर और जनसंख्या की गणना की जा रही है, जबकि वास्तविक जनसंख्या इससे कहीं ज्यादा है।

राष्‍ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013

(National Food Security Act-2013):

  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम एक ऐतिहासिक पहल है जिसके माध्यम से निर्धनों, महिलाओं एवं बच्‍चों की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है। 
  • इस अधिनियम में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्‍यवस्‍था है। अगर कोई लोकसेवक या अधिकृत व्‍यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता है तो उसके विरुद्ध शिकायत पर सुनवाई का प्रावधान किया गया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
  • इस अधिनियम के तहत समाज के अति निर्धन वर्ग के प्रत्येक परिवार को प्रत्येक माह अंत्‍योदय अन्‍न योजना में सब्सिडी दरों पर तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो क्रमशः चावल, गेहूँ और मोटा अनाज दिया जाता है।

आगे की राह:

  • COVID-19 के कारण उत्पन्न इस संकट से निपटने हेतु योजनाओं के निर्माण के दौरान सावधानियाँ बरतनी होंगी। योजनाओं के निर्माण में दक्षता इस संकट से देश को बाहर निकलने में सहायक साबित हो सकती है। 

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 अप्रैल, 2020

डाक कर्मचारियों के लिये क्षतिपूर्ति

COVID-19 की स्थिति के परिप्रेक्ष्य में संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (Ministry of Communications and Information Technology) ने ग्रामीण डाक सेवक (Gramin Dak Sevak-GDS) सहित सभी डाक कर्मचारियों को कर्तव्य निवर्हन के दौरान बीमारी का शिकार हो जाने पर 10 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने का निर्णय लिया है। ये दिशा-निर्देश जल्द प्रभावी हो जाएंगे और COVID-19 संकट की समाप्ति तक के लिये लागू रहेंगे। ध्यातव्य है कि गृह मंत्रालय ने डाक विभाग को अनिवार्य सेवाओं के रूप में मान्यता दी है। ग्रामीण डाक सेवक सहित डाक कर्मचारी ग्राहकों को मेल डिलीवरी, डाक घर बचत बैंक, डाक जीवन बीमा देने जैसे विभिन्न दायित्त्वों का निर्वाह कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, डाक घर स्थानीय राज्य प्रशासन एवं पुलिस अधिकारियों के साथ समन्वय स्थापित कर देश भर में COVID-19 किट, फूड पैकेट, राशन एवं अनिवार्य दवाओं आदि की डिलीवरी भी कर रहे हैं। इस प्रकार, डाक विभाग अपने सामान्य कर्तव्यों के निर्वहन के साथ साथ COVID-19 संकट से लड़ने में भी अपना योगदान दे रहा है।

विश्वनाथन आनंद

हाल ही में विश्व प्रसिद्ध शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद को ‘वर्ल्ड वाइड फंड- इंडिया’ (World Wide Fund-India) के पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया गया है। इस पर्यावरण शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1976 में की गई थी। इस कार्यक्रम के तहत देश के युवाओं, स्कूली बच्चों और नागरिकों को पर्यावरण के बारे में जागरूक किया जाता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य समस्या हल करने में सक्षम, महत्त्वपूर्ण विचारकों और पर्यावरण के प्रति जागरूक नागरिकों का निर्माण करना है। वर्ल्ड वाइड फंड (WWF) का गठन वर्ष 1961 में किया गया था। WWF पर्यावरण के संरक्षण, अनुसंधान एवं रख-रखाव जैसे विषयों से संबद्ध कार्य करता है। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) में स्थित है। वर्ल्ड वाइड फंड का प्रमुख उद्देश्य पृथ्वी के वातावरण के क्षरण को रोकते हुए एक ऐसे भविष्य का निर्माण करना है जिसमें प्रकृति और मनुष्य एक साथ समन्वय स्थापित कर सकें। 11 दिसंबर, 1969 को तमिलनाडु के मयिलादुथुरई (Mayiladuthurai) में जन्मे विश्वनाथन आनंद 5 बार विश्व शतरंज चैंपियनशिप (World Chess Championship) जीत चुके हैं। ध्यातव्य है कि विश्वनाथन आनंद को वर्ष 1988 में मात्र 18 वर्ष की आयु में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप 2020 

हाल ही में भारतीय मुक्केबाजी संघ (Indian Boxing Federation-BFI) ने घोषणा की है कि भारत नवंबर-दिसंबर 2020 में आयोजित होने वाली एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप 2020  की मेजबानी करेगा। BFI के अनुसार, कोरोनावायरस की समाप्ति के पश्चात् एशियाई मुक्केबाजी परिसंघ (Asian Boxing Confederation) द्वारा इस संबंध में औपचारिक घोषणा की जाएगी। इससे पूर्व भारत ने वर्ष 1980 में मुंबई में पुरुष एशियाई चैंपियनशिप और वर्ष 2003 में हिसार (हरियाणा) में महिला चैंपियनशिप की मेजबानी की थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 से पुरुष और महिला चैंपियनशिप का आयोजन एक साथ किया जा रहा है। भारतीय मुक्केबाजी संघ (Indian Boxing Federation-BFI) देश में ओलंपिक मुक्केबाजी के लिये राष्ट्रीय शासकीय निकाय है और इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है। ध्यातव्य है कि मौजूदा समय में कोरोनावायरस (COVID-19) के कारण टोक्यो ओलंपिक सहित विश्व की लगभग सभी खेल प्रयोगिताओं को कुछ समय के लिये स्थगित कर दिया गया है।

एशिया की आर्थिक वृद्धि दर में कमी 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) के अनुमान के अनुसार, मौजूदा वर्ष में कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण एशिया की आर्थिक वृद्धि दर शून्य रह सकती है। विश्लेषकों के अनुसार, यदि ऐसा होता है तो यह बीते 60 वर्ष में एशिया का सर्वाधिक खराब प्रदर्शन होगा। हालाँकि, IMF का मत है कि गतिविधियों के संदर्भ में अन्य क्षेत्रों की तुलना में एशिया का प्रदर्शन काफी बेहतर है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, COVID-19 महामारी का एशिया-प्रशांत क्षेत्र पर गंभीर और अप्रत्याशित प्रभाव होगा। उल्लेखनीय है कि एशिया की आर्थिक वृद्धि दर वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान 4.7 प्रतिशत और एशियाई वित्तीय संकट के दौरान 1.3 प्रतिशत रही थी। IMF के अनुमानानुसार, इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3 प्रतिशत की गिरावट देखी जा सकती है। विदित हो कि कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी के कारण एशिया समेत विश्व के तमाम क्षेत्रों के उत्पादन में भारी कमी आई है, जिसके कारण आर्थिक वृद्धि दर में कमी आ सकती है।