चीनी निर्यात
प्रिलिम्स के लिये:इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA), चीनी उद्योग, कृषि-आधारित उद्योग, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम, कृषि लागत तथा मूल्य आयोग (CACP), कीटनाशक, रिमोट सेंसिंग टेक्नोलॉजी। मेन्स के लिये:भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति, चीनी उद्योग के लिये विकास चालक, चीनी उद्योग से जुड़ी समस्याएँ। |
चर्चा में क्यों?
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) के अनुसार, भारत में चीनी मिलों ने 55 लाख टन चीनी के निर्यात हेतु अनुबंध किया है।
- सरकार ने चीनी मिलों को विपणन वर्ष 2022-23 (अक्तूबर-सितंबर) में मई तक 60 लाख टन चीनी निर्यात करने की अनुमति दी है।
भारत में चीनी उद्योग की वर्तमान स्थिति:
- परिचय:
- चीनी उद्योग एक महत्त्वपूर्ण कृषि आधारित उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों और चीनी मिलों में सीधे कार्यरत लगभग 5 लाख श्रमिकों की ग्रामीण आजीविका को प्रभावित करता है।
- वर्ष 2021-22 (अक्तूबर-सितंबर) में भारत विश्व में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता तथा विश्व के दूसरे सबसे बड़े निर्यातक के रूप में उभरा है।
- गन्ने की वृद्धि के लिये भौगोलिक स्थितियाँ:
- तापमान: गर्म और आर्द्र जलवायु के साथ 21-27 °C के मध्य।
- वर्षा: लगभग 75-100 सेमी.।
- मृदा का प्रकार: गहरी समृद्ध दोमट मृदा।
- शीर्ष गन्ना उत्पादक राज्य: महाराष्ट्र> उत्तर प्रदेश> कर्नाटक।
- चीनी उद्योग के लिये विकास उत्प्रेरक:
- प्रभावोत्पादक चीनी अवधि (सितंबर-अक्तूबर): इस अवधि के दौरान गन्ना उत्पादन, चीनी उत्पादन, चीनी निर्यात, गन्ना खरीद, गन्ने के बकाये का भुगतान और इथेनॉल उत्पादन सभी के रिकॉर्ड बने थे।
- उच्च निर्यात: बिना किसी वित्तीय सहायता के निर्यात लगभग 109.8 LMT था तथा वर्ष 2021-22 में लगभग 40,000 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा अर्जित की।
- भारत सरकार की नीतिगत पहल: पिछले 5 वर्षों में उचित समय पर की गई सरकारी पहलों ने उन्हें वर्ष 2018-19 में वित्तीय संकट से निकालकर वर्ष 2021-22 में आत्मनिर्भरता के स्तर पर पहुँचा दिया है।
- इथेनॉल उत्पादन को प्रोत्साहित करना: सरकार ने चीनी को इथेनॉल में परिवर्तित करने एवं अतिरिक्त चीनी का निर्यात करने के लिये चीनी मिलों को प्रोत्साहित किया है ताकि मिलों के संचालन को जारी रखने के लिये उनकी बेहतर वित्तीय स्थिति हो।
- पेट्रोल के साथ इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending with Petrol) कार्यक्रम: जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति 2018, वर्ष 2025 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत 20% इथेनॉल मिश्रण का सांकेतिक लक्ष्य प्रदान करती है।
- उचित और लाभकारी मूल्य: FRP (Fair and Remunerative Price) वह न्यूनतम मूल्य है जो चीनी मिलों को गन्ने की खरीद के लिये गन्ना किसानों को भुगतान करना पड़ता है।
- यह कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) की सिफारिशों के आधार पर तथा राज्य सरकारों एवं अन्य हितधारकों के परामर्श के बाद निर्धारित किया जाता है।
- संबद्ध समस्याएँ:
- अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों (Sweeteners) से प्रतिस्पर्द्धा: भारतीय चीनी उद्योग को उच्च फ्रुक्टोज कॉर्न सिरप जैसे अन्य मिठास बढ़ाने वाले उत्पादों से बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो उत्पादन हेतु सस्ते है और इनकी शेल्फ लाइफ लंबी है।
- आधुनिक प्रौद्योगिकी की कमी: भारत में कई चीनी मिलें पुरानी हैं और चीनी का कुशलतापूर्वक उत्पादन करने हेतु आवश्यक आधुनिक तकनीक की कमी से ग्रस्त हैं। इससे उद्योगों के लिये अन्य चीनी उत्पादक देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो जाता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: गन्ने की खेती के लिये बड़ी मात्रा में पानी और कीटनाशकों की आवश्यकता होती है, जिसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त चीनी मिलें अक्सर हवा और पानी में प्रदूषक छोड़ती हैं, जो आस-पास के समुदायों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: भारत में चीनी उद्योग राजनीति से काफी प्रभावित है, चीनी की कीमतों, उत्पादन और वितरण को निर्धारित करने में राज्य एवं केंद्र सरकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यह अक्सर पारदर्शिता तथा अक्षमता की कमी की ओर ले जाता है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA):
- इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (ISMA) भारत में एक प्रमुख चीनी संगठन है।
- यह देश में सरकार और चीनी उद्योग (निजी तथा सार्वजनिक चीनी मिलों दोनों) के मध्य इंटरफेस का कार्य करता है।
- इसका मुख्य उद्देश्य सरकार की अनुकूल और विकासोन्मुखी नीतियों के माध्यम से देश में निजी एवं सार्वजनिक चीनी मिलों के कामकाज़ तथा हितों की रक्षा सुनिश्चित करना है।
आगे की राह
- रिमोट सेंसिंग तकनीक: भारत में जल, खाद्य और ऊर्जा क्षेत्रों में गन्ने के महत्त्व के बावजूद भारत में हाल के वर्षों के गन्ना उत्पादन से संबंधित कोई निश्चित भौगोलिक मानचित्र उपलब्ध नहीं है।
- गन्ना उत्पादन क्षेत्रों के मानचित्रण के लिये रिमोट सेंसिंग तकनीकों को अपनाने की आवश्यकता है।
- विविधीकरण: भारत में चीनी उद्योग को जैव ईंधन और जैविक चीनी जैसे अन्य उत्पादों की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए कार्यों में विविधता लानी चाहिये।
- इससे चीनी की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़े जोखिम को कम करने में मदद मिलेगी।
- अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहन: फसल की पैदावार में सुधार लाने और चीनी उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये आवश्यक अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना चाहिये।
- सतत् कार्यप्रणाली को प्रोत्साहित करना: पर्यावरण पर चीनी उत्पादन के नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिये इस उद्योग को जल संरक्षण, एकीकृत कीट प्रबंधन और कीटनाशकों के कम उपयोग जैसे संधारणीय अभ्यास को प्रोत्साहित करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. जैव ईंधन पर भारत की राष्ट्रीय नीति के अनुसार, जैव ईंधन के उत्पादन के लिये निम्नलिखित में से किसका उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जा सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 5 और 6 उत्तर: (a) |
स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड
प्रवासियों हेतु दूरस्थ मतदान की सुविधा
प्रिलिम्स के लिये:ECI, VVPAT, रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, e-SHRAM पोर्टल, EVM, सर्वोच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:प्रवासियों और संबद्ध चिंताओं के लिये दूरस्थ मतदान। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने एक नई रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) का प्रस्ताव रखा, जो घरेलू प्रवासियों को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनावों में मतदान करने की अनुमति देगा।
- चुनाव आयोग ने राज्य विधानसभा चुनाव में इसे पायलट के रूप में इस्तेमाल करने का प्रस्ताव दिया ताकि राज्य के भीतर आंतरिक प्रवासी अपने मतपत्र डाल सकें।
रिमोट वोटिंग की आवश्यकता:
- मतदान प्रतिशत में कमी:
- वर्ष 2019 के आम चुनाव मे, 91% से अधिक नागरिक पंजीकृत थे, जिनमें से 67% ने मतदान किया था, जो देश के इतिहास में सबसे अधिक मतदान है।
- हालाँकि यह चिंताजनक है कि पात्र मतदाताओं में से एक-तिहाई, अर्थात् लगभग 30 करोड़ लोगों ने मतदान नहीं किया।
- आंतरिक प्रवासन:
- कम मतदान के कारणों में से एक आंतरिक पलायन था जो मतदाताओं को उनके गृह निर्वाचन क्षेत्रों से दूर ले गया।
- मतदाता अपना नाम उस निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में जोड़ सकते हैं जिसमें वे आमतौर पर रहते हैं, लेकिन कई लोगों ने विभिन्न कारणों से अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता पहचान पत्र बनाए रखने का विकल्प चुना।
- सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
- प्रवासियों को मतदान के अवसरों से कथित रूप से वंचित करने पर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2015 में चुनाव आयोग को दूरस्थ मतदान के विकल्पों का पता लगाने का निर्देश दिया था।
- असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण में वृद्धि:
- लगभग 10 मिलियन प्रवासी श्रमिक असंगठित क्षेत्र से संबंधित हैं, जो सरकार के ई-श्रम पोर्टल के साथ पंजीकृत हैं। यदि दूरस्थ मतदान प्रस्ताव को लागू किया जाता है, तो इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
दूरस्थ मतदान के लिये वर्तमान प्रस्ताव:
- RVM:
- RVM (Remote Voting Machine) मौजूदा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का संशोधित संस्करण है।
- प्रवासियों के गृह राज्य में चुनाव होने पर विभिन्न राज्यों में विशेष दूरस्थ मतदान केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
- RVM एक ही मतदान केंद्र से कई दूरस्थ निर्वाचन क्षेत्रों को संभाल सकता है।
- इसके लिये एक निश्चित बैलेट पेपर शीट के बजाय, मशीन को एक इलेक्ट्रॉनिक डायनेमिक बैलेट डिस्प्ले के लिये संशोधित किया गया है, जो एक निर्वाचन क्षेत्र कार्ड रीडर द्वारा पढ़े गए मतदाता की निर्वाचन क्षेत्र संख्या के अनुरूप विभिन्न उम्मीदवारों की सूची पेश करेगी।
- सुरक्षा:
- प्रणाली में एक ऐसा उपकरण होगा जिसकी सहायता से मतदाता अपना वोट सत्यापित कर सकता है।
- मतगणना के दिन की गणना के लिये ये इकाइयाँ प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के प्रत्येक उम्मीदवार के लिये डाले गए वोटों को सुरक्षित रखेंगी।
- इसके बाद परिणाम को RO (रिटर्निंग ऑफिसर) के साथ साझा किया जाएगा।
- रिटर्निंग ऑफिसर एक या एक से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में चुनावों की देखरेख के लिये उत्तरदायी होता है।
वर्तमान EVM की कार्यप्रणाली:
- वर्ष 1992 से भारत में बड़े पैमाने पर EVM का इस्तेमाल किया जाने लगा और वर्ष 2000 से सभी लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में इसका इस्तेमाल किया गया है।
- इस मशीन का नवीनतम संस्करण M3 मॉडल है, जिसका विनिर्माण वर्ष 2013 से किया जा रहा है। वर्ष 2010 में निर्वाचन आयोग को EVM में सही ढंग से वोट दर्ज होना सुनिश्चित करने वाली एक प्रणाली विकसित करने के लिये कई राजनीतिक दलों से अनुरोध प्राप्त हुआ।
- परिणामस्वरूप ECI ने वोटर वेरिफाइड पेपर ट्रेल ऑडिट (VVPAT) मशीन विकसित की, जिसका उपयोग वर्ष 2017 के मध्य से चुनावों में सामान्य रूप से किया जाने लगा।
- वर्तमान EVM सेटअप में एक बैलेटिंग यूनिट शामिल है, जो VVPAT प्रिंटर से जुड़ी होती है और मतदान कक्ष के अंदर स्थित होती है।
- VVPAT कंट्रोल यूनिट (CU) से जुड़ा होता है, जो पीठासीन अधिकारी (PO) की निगरानी में रहता है और डाले गए वोटों की संख्या का योग करता है।
- VVPAT चुनाव चिह्न और उम्मीदवार के नाम के साथ एक पर्ची प्रिंट करता है, जो VVPAT के अंदर एक बॉक्स में गिराए जाने से पहले मतदाता को सात सेकंड के लिये दिखाई देता है।
संबंधित चिंताएँ और चुनौतियाँ:
- प्रवासी मतदान के लिये बहु-निर्वाचन RVM में EVM के समान सुरक्षा प्रणाली और मतदान का अनुभव होगा। इसका अर्थ है कि मौजूदा EVM से संबंधित चुनौतियाँ RVM में भी बनी रहेंगी।
- मशीन से संबंधित चिंताओं के अतिरिक्त रिमोट वोटिंग को तार्किक और प्रशासनिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। इनमें दूरस्थ स्थानों में मतदाता पंजीकरण किस प्रकार होगा, गृह निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची से नाम कैसे हटाए जाएंगे, दूरस्थ मतदान आवेदनों को कैसे पारदर्शी बनाया जाएगा आदि से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।
- वर्तमान VVPAT तकनीक पूरी तरह से मतदाता के मतदान को वैध ठहराने में सक्षम नहीं है, भले ही एक मतदाता सात सेकंड के लिये अपने मतपत्र को देख सकता है। यह वैध तब होगा जब मतदाता को इसका प्रिंटआउट प्राप्त हो, साथ ही मतपत्र डालने से पहले इसे स्वीकृत करने तथा किसी भी प्रकार की गलती की स्थिति में इसे रद्द करने की भी सुविधा उपलब्ध हो।
- वर्तमान प्रणाली के तहत, यदि मतदाता अपने मतपत्र के संबंध में किसी प्रकार की शंका या दुविधा को लेकर शिकायत करता है तो उसे एक चुनाव अधिकारी की उपस्थिति में एक टेस्ट वोट की अनुमति दी जाती है, लकिन यदि टेस्ट वोट के अनुसार परिणाम मतदाता के पक्ष में नहीं होता है, तो मतदाता को दंडित किया जा सकता है या उस पर मुकदमा भी चलाया जा सकता है। रिमोट वोटिंग के साथ भी ऐसा ही हो सकता है।
आगे की राह
- मतदान प्रक्रिया सत्यापन योग्य एवं सही होने के लिये यह मशीन स्वतंत्र या सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर स्वतंत्र होना चाहिये, जिसका अर्थ है, इसकी सत्यता की स्थापना केवल इस धारणा पर निर्भर नहीं होनी चाहिये कि EVM सही है।
- "मतदाता के संतुष्ट नहीं होने पर वोट रद्द करने हेतु एक एजेंसी होनी चाहिये और रद्द करने की प्रक्रिया सरल होनी चाहिये तथा मतदाता को किसी के साथ बातचीत करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिये।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि दूरस्थ मतदान की किसी भी प्रणाली को चुनाव प्रणाली के सभी हितधारकों मतदाताओं, राजनीतिक दलों और चुनाव मशीनरी के विश्वास तथा स्वीकार्यता को ध्यान में रखना होगा। अधिकारियों ने समिति को सूचित किया है कि राजनीतिक सहमति दूरस्थ मतदान शुरू करने का तरीका है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में मतदान करने और निर्वाचित होने का अधिकार है: (2017) (a) मौलिक अधिकार उत्तर: (c) व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। |
स्रोत: द हिंदू
राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), सकल राजकोषीय घाटा (GFD), अनौपचारिक क्षेत्र, राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन, राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM)। मेन्स के लिये:राज्य वित्त का महत्त्व: वर्ष 2022-23 के बजट में राज्यों के ऋण का अध्ययन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022-23 में राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा (GFD) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 3.4% रहने का अनुमान है, जो वर्ष 2020-21 में 4.1% था।
- इसका कारण व्यापक आर्थिक सुधार और राजस्व संग्रह में वृद्धि है।
"राज्य वित्त: वर्ष 2022-23 के बजटों का अध्ययन" रिपोर्ट:
- परिचय:
- "राज्य वित्त: 2022-23 के बजटों का अध्ययन" शीर्षक वाली रिपोर्ट भारतीय राज्य सरकारों के वित्त की जानकारी, विश्लेषण और मूल्यांकन प्रदान करने वाला एक वार्षिक प्रकाशन है, जिसमें उनके राजस्व और व्यय में रुझान एवं चुनौतियाँ शामिल हैं।
- रिपोर्ट की मुख्य बातें:
- भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का ऋण वर्ष 2020-21 में जीडीपी के 31.1% की तुलना में वर्ष 2022-23 में 29.5% तक कम होने का अनुमान है,
- हालाँकि रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि यह अभी भी राजकोषीय उत्तरदायित्त्व और बजट प्रबंधन (FRBM) समीक्षा समिति, 2018 द्वारा अनुशंसित 20% से अधिक है।
- राज्यों को मिलने वाले गैर-कर राजस्व की राशि, जो कि शुल्क, ज़ुर्माना और रॉयल्टी जैसी चीज़ों से आती है, में वृद्धि होने की उम्मीद है। उद्योगों एवं सामान्य सेवाओं से प्राप्त होने वाला राजस्व शायद इस वृद्धि का मुख्य चालक होगा।
- रिपोर्ट में बताया गया है कि विभिन्न राज्य वित्तीय वर्ष 2022-2023 में राज्य GST, उत्पाद शुल्क और बिक्री कर जैसे विभिन्न स्रोतों से राजस्व में वृद्धि की उम्मीद कर रहे हैं।
- रिपोर्ट में सुझाए गए उपाय:
- ऋण समेकन (Debt Consolidation) राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिये।
- ऋण समेकन से तात्पर्य कई ऋणों को एक एकल, अधिक प्रबंधनीय ऋण में संयोजित करने की प्रक्रिया से है। यह समग्र ब्याज लागत को कम करने, भुगतान को आसान बनाने और कर्ज़ चुकाना आसान बना सकता है।
- स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढाँचा और हरित ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों को अधिक संसाधन आवंटित करके राज्य आर्थिक वृद्धि और विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।
- रिपोर्ट में प्रस्ताव किया गया है कि एक कोष स्थापित करना फायदेमंद होगा जिसका उपयोग मज़बूत राजस्व वृद्धि की अवधि के दौरान पूंजीगत व्यय को बफर करने के लिये किया जाएगा।
- इस कोष का उद्देश्य पूंजीगत परियोजनाओं पर खर्च का एक सुसंगत स्तर बनाए रखना होगा तथा यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक मंदी के दौरान इन परियोजनाओं पर खर्च में भारी कमी न हो।
- निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये राज्य सरकारों को निजी क्षेत्र के संचालन और विकास के लिये अनुकूल वातावरण बनाने पर ध्यान देना होगा।
- यह उन नीतियों और विनियमों को लागू करके प्राप्त किया जा सकता है जो निजी कंपनियों के लिये व्यवसाय करना आसान बनाते हैं, साथ ही निजी निवेश के लिये प्रोत्साहन और समर्थन प्रदान करते हैं।
- राज्यों को देश भर में राज्य पूंजीगत व्यय के स्पिलओवर (पश्चगामी) प्रभावों का पूरा लाभ प्राप्त करने के लिये उच्च अंतर-राज्य व्यापार और वाणिज्य को प्रोत्साहित करने तथा सुविधाजनक बनाने की भी आवश्यकता है।
- ऋण समेकन (Debt Consolidation) राज्य सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिये।
सकल राजकोषीय घाटा (GFD):
- GFD राज्य सरकार के समग्र वित्तीय स्वास्थ्य को मापता है और कुल व्यय से कुल राजस्व घटाकर इसकी गणना की जाती है।
- GFD में कमी को आमतौर पर सकारात्मक संकेत माना जाता है क्योंकि यह इंगित करता है कि राज्य सरकार अपने राजस्व और व्यय को अधिक प्रभावी ढंग से संतुलित करने में सक्षम है।
सरकारी घाटे के मापक:
- राजस्व घाटा: यह राजस्व प्राप्तियों पर सरकार के राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
- राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
- राजकोषीय घाटा: यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और उसकी प्राप्तियों के बीच का अंतर है। यह उस धन के बराबर है जिसे सरकार को वर्ष के दौरान उधार लेने की आवश्यकता है। यदि प्राप्तियाँ व्यय से अधिक हैं तो अधिशेष उत्पन्न होता है।
- राजकोषीय घाटा = कुल व्यय- (राजस्व प्राप्तियाँ+ गैर-ऋण सृजित पूंजीगत प्राप्तियाँ)।
- प्राथमिक घाटा: प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान- राजकोषीय घाटे के बराबर होता है। यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और इसकी प्राप्तियों के बीच अंतर को इंगित करता है, यह पिछले वर्षों के दौरान लिये गए ऋणों पर ब्याज भुगतान पर किये गए व्यय को ध्यान में नहीं रखता है।
- प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
- प्रभावी राजस्व घाटा: यह पूंजीगत संपत्ति के निर्माण के लिये राजस्व घाटे और अनुदान के बीच का अंतर है।
- सार्वजनिक व्यय पर रंगराजन समिति द्वारा प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक के अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारी होने की संभावना है? (2021) (a) सार्वजनिक ऋण का भुगतान उत्तर: (d) प्र. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हैदराबाद: चौथी औद्योगिक क्रांति का केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF), चौथी औद्योगिक क्रांति, बिग डेटा, साइबर सुरक्षा, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), ज़ेनोबॉट्स(Xenobots), पेसमेकर, माइक्रोप्लास्टिक्स, एनर्जी ट्रांज़िशन इंडेक्स, ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस रिपोर्ट, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट। मेन्स के लिये:चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) के अनुप्रयोग, 4IR(Fourth Industrial Revolution) से जुड़ी चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने हैदराबाद, तेलंगाना को चौथी औद्योगिक क्रांति के केंद्र (C4IR) की स्थापना के लिये चुना है।
- C4IR (Center for the Fourth Industrial Revolution) तेलंगाना एक स्वायत्त, गैर-लाभकारी संगठन होगा जो स्वास्थ्य देखभाल और जीवन विज्ञान पर ध्यान केंद्रित करेगा।
चौथी औद्योगिक क्रांति:
- परिचय:
- यह डिजिटल, भौतिक और जैविक दुनिया के बीच की सीमाओं को धुंधला करने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग की विशेषता है, यह डेटा द्वारा संचालित होता है।
- प्रमुख प्रौद्योगिकियों में क्लाउड कंप्यूटिंग, बिग डेटा, स्वायत्त रोबोट, साइबर सुरक्षा, सिमुलेशन, एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग तथा इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) शामिल हैं।
- 4IR शब्द वर्ष 2016 में WEF के कार्यकारी अध्यक्ष क्लॉस श्वाब द्वारा गढ़ा गया था।
- यह डिजिटल, भौतिक और जैविक दुनिया के बीच की सीमाओं को धुंधला करने के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग की विशेषता है, यह डेटा द्वारा संचालित होता है।
- इसके प्रमुख उदाहरण:
- पेसमेकर (Pacemaker): पेसमेकर चल रही चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) का एक निकट-परिपूर्ण उदाहरण है।
- पेसमेकर के चार वायरलेस सेंसर तापमान, ऑक्सीजन के स्तर और हृदय की विद्युत गतिविधि जैसी नब्ज़ की निगरानी करते हैं।
- वह उपकरण जो नब्ज़ का विश्लेषण करता है और तय करता है कि हृदय को कब और किस गति से गति प्रदान करनी है। डॉक्टर टैबलेट या स्मार्टफोन पर जानकारी को वायरलेस तरीके से एक्सेस कर सकते हैं।
- ज़ेनोबॉट्स: पहले जीवित रोबोट को ज़ेनोबॉट्स (Xenobots) नाम दिया गया है। इसे अफ्रीकी पंजे वाले मेंढक (जेनोपसलाविस) की स्टेम कोशिका से बनाया गया है तथा इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके प्रोग्राम किया जा सकता है।
- अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा अक्तूबर 2021 में इसकी प्रजनन क्षमता को साबित किया गया है।
- जब शोधकर्त्ताओं ने ज़ेनोबॉट्स को पेट्री डिश में रखा तो वे अपने मुँह के अंदर सैकड़ों छोटे स्टेम सेल इकट्ठा करने और कुछ दिनों बाद नए ज़ेनोबॉट्स को निर्मित करने में सक्षम थे।
- एक बार अच्छे से विकसित हो जाने के बाद ज़ेनोबॉट्स माइक्रोप्लास्टिक्स को साफ करने और मानव शरीर के अंदर मृत कोशिकाओं एवं ऊतकों को बदलने या पुनर्निर्माण करने जैसे कार्यों के लिये फायदेमंद हो सकते हैं।
- स्मार्ट रेलवे कोच: नवंबर 2020 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली में मॉडर्न कोच फैक्ट्री (MCF) ने स्मार्ट रेलवे कोच तैयार किये, जो कि यात्रियों को आरामदायक अनुभव प्रदान करने हेतु सेंसर युक्त बैटरी से लैस हैं।
- ये सेंसर शौचालयों में गंध के स्तर की निगरानी, दरवाज़े के सुरक्षित रूप से बंद होने की जाँच, आग के प्रकोप से बचने में मदद और चेहरे की पहचान करने वाले सीसीटीवी कैमरों का उपयोग कर अनधिकृत यात्रा को रोकने में मदद करते हैं।
- पेसमेकर (Pacemaker): पेसमेकर चल रही चौथी औद्योगिक क्रांति (4IR) का एक निकट-परिपूर्ण उदाहरण है।
- 4IR से जुड़ी चुनौतियाँ:
- नौकरी का विस्थापन: चूँकि स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता अधिक प्रचलित हो रही है, चिंता का विषय यह है कि कई नौकरियाँ मशीनों द्वारा प्रतिस्थापित हो जाएंगी जिससे बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरी छूट जाएगी और बेरोज़गारी बढ़ेगी।
- गोपनीयता संबंधी चिंता: औद्योगिक क्रांति 4.0 में उपकरणों और विभिन्न प्रणालियों की बढ़ती कनेक्टिविटी से साइबर हमलों का खतरा बढ़ सकता है, जिसका व्यवसायों और व्यक्तियों दोनों पर प्रभाव पड़ सकता है।
- नैतिक चिंताएँ: जैसे-जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालन अधिक उन्नत होते जा रहे हैं, जवाबदेही, पूर्वाग्रह और पारदर्शिता जैसे नैतिक मुद्दों के बारे में भी चिंताएँ बढ़ रही हैं।
- डिजिटल बुनियादी ढाँचे की कमी: सभी देशों में उद्योग 4.0 के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचे उपलब्ध नहीं हैं, जिससे डिजिटल डिवाइड और असमान आर्थिक विकास होता है।
अन्य औद्योगिक क्रांतियाँ:
- पहली औद्योगिक क्रांति (1800 के दशक में): इसमें उत्पादन को मशीनीकृत करने के लिये जल और भाप की शक्ति का उपयोग किया गया था। उदाहरण: भाप का इंजन।
- दूसरी औद्योगिक क्रांति (1900 की शुरुआत में): इसने बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु विद्युत का उपयोग किया। उदाहरण: बिजली।
- तीसरी औद्योगिक क्रांति (1900 के अंत में): इसने उत्पादन को स्वचालित करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग किया। उदाहरण: कंप्यूटर और इंटरनेट।