सामाजिक न्याय
किसानों की आत्महत्या पर NCRB की रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:
NCRB, कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े
मेन्स के लिये:
कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था, भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषकों का योगदान, कृषि क्षेत्र में आत्महत्याएँ और सरकारी रणनीतियाँ, आत्महत्याओं को रोकने से संबंधित उपाय
चर्चा में क्यों?
2 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Record Bureau- NCRB) ने वर्ष 2017 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या से संबंधित आँकड़ो को प्रकाशित किया है जिसमें कृषि क्षेत्र से संबंधित आत्महत्याओं में कमी देखी गई है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- NCRB के अनुसार, वर्ष 2017 में भारत में कृषि में शामिल 10,655 लोगों ने आत्महत्या की है। हालाँकि यह आँकड़ा वर्ष 2013 के बाद सबसे कम है।
- आत्महत्या करने वालों में 5,955 किसान/कृषक और 4,700 खेतिहर मज़दूर थे, ध्यातव्य है कि इनकी संख्या वर्ष 2016 की तुलना में कम है। वर्ष 2017 में देश में आत्महत्या के सभी मामलों में कृषि से संबंधित लोगों द्वारा आत्महत्या का प्रतिशत 8.2% है।
- NCRB ने अक्तूबर 2019 में 2017 के अपराध संबंधी आँकड़े जारी किये थे, लेकिन आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े जारी नहीं किये थे। वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के आँकड़ो को जारी करते हुए भी NCRB ने किसान आत्महत्या में गिरावट का दावा किया था।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2016 में 6270 किसानों ने, जबकि वर्ष 2015 में लगभग 8,007 किसानों ने आत्महत्या की एवं वर्ष 2016 में 5,109 कृषि मज़दूरों ने तथा वर्ष 2015 में 4,595 कृषि मज़दूरों ने आत्महत्या की।
- हालाँकि आत्महत्या करने वाली महिला किसानों की संख्या 2016 के 275 से बढ़कर 2017 में 480 हो गई है।
- वर्ष 2017 में कृषि क्षेत्र में सबसे अधिक आत्महत्याएँ महाराष्ट्र में (34.7 प्रतिशत) हुई हैं, उसके बाद कर्नाटक (20.3 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (9 प्रतिशत), तेलंगाना (8 प्रतिशत) और आंध्र प्रदेश (7.7 प्रतिशत) में आत्महत्याएँ हुई हैं।
- पश्चिम बंगाल, ओडिशा, नगालैंड, मणिपुर, मिज़ोरम, उत्तराखंड, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप तथा पुद्दूचेरी में किसानों या कृषि श्रमिकों द्वारा आत्महत्या किये जाने की नगण्य सूचनाएँ प्राप्त हुईं।
- वर्ष 2016 के कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित आँकड़े वर्ष 2017 के आँकड़ो से मिलते-जुलते हैं। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं का प्रतिशत क्रमशः महाराष्ट्र में 32.2 प्रतिशत, कर्नाटक में 18.3 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 11.6 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 7.1 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में 6 प्रतिशत था तथा वर्ष 2015 में भी कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं में महाराष्ट्र शीर्ष पर था एवं कर्नाटक और मध्य प्रदेश वर्ष 2016 की भाँति दूसरे और तीसरे स्थान पर थे।
- NCRB देश भर से प्रतिवर्ष विभिन्न प्रकार के अपराधों से संबंधित आँकड़ो को इकठ्ठा करता है।
कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं का कारण
कृषि क्षेत्र में आत्महत्याओं से संबंधित कारणों में निम्नलिखित कारण शामिल हैं-
- दिवालियापन या ऋणग्रस्तता: कृषकों द्वारा कृषि संबंधी कार्यों हेतु बैंकों और महाजनों से ऋण लिया जाता है किंतु प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं के कारण जब उनके फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप नहीं होती है तो वे ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी ग्लानि में आत्महत्या कर लेते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2015 में 3000 किसानों ने ऋणग्रस्तता से तंग आकर आत्महत्या किया था।
- परिवार की समस्याएँ: पारिवारिक समस्याएँ जैसे- ज़मीनी विवाद, आपसी लड़ाइयाँ इत्यादि भी कृषकों में आत्महत्या करने का कारण हो सकते हैं।
- फसल की विफलता: जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा एवं बाढ़ जैसी आपदाओं की बारंबारता में वृद्धि से फसल बर्बाद हो जाती है। फसल की पैदावार अनुमान के अनुरूप न होने से किसानों पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है जिससे कुछ किसान इस बोझ को नहीं संभाल पाते और आत्महत्या का रास्ता चुनते हैं।
- बीमारी और मादक द्रव्यों/शराब का सेवन: कृषकों की आय अत्यंत कम होती है जिससे ऐसी बीमारियाँ जिनका इलाज़ कराना अत्यधिक महँगा होता है उन बीमारियों के इलाज के स्थान पर किसान आत्महत्या करना ज़्यादा सही मानते हैं। इसके अतिरिक्त कई किसान मादक पदार्थों के सेवन से भावावेश में आत्महत्या कर लेते हैं।
- दोषपूर्ण आर्थिक नीतियों के कारण कृषि धीरे-धीरे घाटे का सौदा बन गई है।
- भू-जोत के आकार का दिन-प्रतिदिन छोटा होने से कृषकों की आय में लगातार कमी हो रही है| गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार, आत्महत्या करने वाले किसानों में 72 प्रतिशत छोटे एवं सीमांत किसान हैं।
लगभग डेढ़ दशक के दौरान कृषि क्षेत्र में आत्महत्या
वर्ष | कृषि क्षेत्र में कुल आत्महत्या | आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या | आत्महत्या करने वाले खेतिहर मज़दूरों की संख्या |
2017 | 10,655 | 5,955 | 4700 |
2016 | 11,379 | 6270 | 5109 |
2015 | 12,602 | 8007 | 4595 |
2014 | 12,360 | 5650 | 6710 |
2013 | 11,772 | 5650 | 6122 |
आगे की राह
किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिये निम्नलिखित उपाय अपनाए जाने चाहिये-
- किसानों को कम कीमत पर बीमा एवं स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान की जाएँ।
- राज्य स्तर पर किसान आयोग का गठन किया जाए ताकि किसी भी प्रकार की समस्या का जल्द हल निकाला जा सके।
- कृषि शोध एवं अनुसंधान के माध्यम से ऐसे बीजों को विकसित किया जाए जो प्रतिकूल मौसम में भी उपज दे सकें।
- किसानों को तकनीकी, प्रबंधन एवं विपणन संबंधी सहायता प्रदान की जाए।
- इस संबंध में स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
- कृषि क्षेत्र के लिये संस्थागत ऋण में वृद्धि की जाए।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
71वें गणतंत्र दिवस की झाँकियाँ
प्रीलिम्स के लिये:
विभिन्न राज्यों द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की जाने वाली झाँकियाँ
मेन्स के लिये:
गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रस्तुत की जाने वाली झाँकियों की विषय-वस्तु
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस के अवसर पर झाँकियाँ प्रस्तुत करने वाले विभिन्न राज्यों तथा विभागों की सूची जारी की है।
मुख्य बिंदु:
- गणतंत्र दिवस परेड के दौरान वर्ष 2020 में 22 झाँकियाँ प्रस्तुत की जाएंगी।
- इस वर्ष सरकार ने कुल 56 आवेदनों में से (32 राज्यों और केंद्रशासित, 24 विभागों) में से 22 आवेदनों (15 राज्यों, 1 केंद्रशासित प्रदेश और 6 सरकारी विभागों) का चयन किया है।
किन राज्यों को मिला है मौका:
- वर्ष 2020 के गणतंत्र दिवस समारोह में झाँकियों के प्रस्तुतीकरण के लिये आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मेघालय, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश राज्य के साथ नवनिर्मित जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश के आवेदन को स्वीकार किया गया है।
- वर्ष 2019 में भी 16 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा झाँकियाँ प्रस्तुत की गई थीं।
किन सरकारी विभागों द्वारा प्रस्तुत की जाएंगी झाँकियाँ:
- सरकारी विभागों में ‘उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग’ (Department of Promotion of Industry and Internal Trade), पेयजल और स्वच्छता विभाग (Department of Drinking Water and Sanitation), वित्तीय सेवाएँ विभाग (Department of Financial Services), राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (National Disaster Response Force-NDRF), केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (Central Public Works Department) एवं जहाज़रानी मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 के गणतंत्र दिवस के अवसर पर झाँकियाँ प्रस्तुत की जाएंगी।
झाँकियों के चयन की प्रक्रिया:
- गणतंत्र दिवस परेड के लिये झाँकियों की चयन प्रक्रिया रक्षा मंत्रालय द्वारा पूर्ण की जाती है।
- सर्वप्रथम रक्षा मंत्रालय कला के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट लोगों की एक विशेषज्ञ समिति का गठन करता है ताकि विभिन्न क्षेत्रों से आए प्रस्तावों का संक्षिप्तीकरण किया जा सके।
- इस विशेषज्ञ समिति में कला, संस्कृति, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला, नृत्यकला आदि क्षेत्रों के प्रमुख व्यक्ति शामिल होते हैं।
- विभिन्न राज्यों और संगठनों द्वारा झाँकियों से संबंधित प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद विशेषज्ञ समिति की बैठकों में उनका निरंतर मूल्यांकन किया जाता है।
- पहले चरण में प्रस्तावों के प्रारूप तथा रुप-रेखा की जाँच की जाती है और इसमें संशोधन करने के लिये सुझाव दिये जाते हैं।
- जब समिति द्वारा रूपरेखा को मंज़ूरी दे दी जाती है, तो प्रतिभागियों को अपने प्रस्तावों के 3-डी मॉडल प्रस्तुत करने के लिये कहा जाता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि झाँकी का चयन हो चुका है।
- अंतिम चयन के लिये विशेषज्ञ समिति द्वारा संबंधित प्रस्तावों के 3-D मॉडल का मूल्यांकन किया जाता है।
- किसी भी राज्य या संगठन को केवल एक ही झाँकी प्रस्तुत करने की स्वीकृति मिलती है।
क्या हैं झाँकियों से संबंधित दिशा-निर्देश:
- राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली झाँकियों पर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के नाम के अतिरिक्त अन्य किसी भी लोगो को प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये।
- झाँकियों पर नाम लिखे जाने का भी निम्नलिखित स्वरूप तय किया गया है-
- सामने की ओर हिंदी में
- पीछे की तरफ अंग्रेज़ी में
- किनारों की तरफ क्षेत्रीय भाषा में
- मंत्रालयों और अन्य एजेंसियों के मामले में विभाग का नाम आगे हिंदी में और पीछे अंग्रेज़ी में लिखना होता है।
- प्रस्तुत की जाने वाली झाँकी के अनुयान (Trailer) पर कलाकारों की संख्या 10 से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- झाँकी पर या उसके साथ प्रदर्शन करने वाले कलाकार संबंधित राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से ही होने चाहिये।
ध्यातव्य है कि वर्ष 2020 के गणतंत्र दिवस समारोह के लिये ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेयर बोल्सोनारो (Jair Bolsonaro) मुख्य अतिथि की भूमिका में होंगे।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
उजाला (UJALA) और SLNP योजना के पाँच वर्ष
प्रीलिम्स के लिये:
उजाला योजना, SLNP योजना
मेन्स के लिये:
केंद्र प्रायोजित योजनाएं, नवीकरणीय ऊर्जा
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 5 जनवरी, 2015 को शुरू की गई उजाला (UJALA) और SLNP योजनाओं ने हाल ही में अपने पाँच वर्ष पूरे किये।
मुख्य बिंदु:
उजाला (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All-UJALA) और राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम (Street Lighting National Programme-SLNP) सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजनाएँ हैं।
राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम
(Street Lighting National Programme-SLNP)
राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम (SLNP): SLNP देश में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा चलाई गई एक योजना है। इसकी शुरुआत 5 जनवरी, 2015 को की गई थी तथा इसके तहत सरकार का लक्ष्य देश में 3.5 करोड़ पारंपरिक स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा कुशल LED लाइट्स से बदलना है।
- SLNP विश्व की स्ट्रीट लाइट बदलने की सबसे बड़ी परियोजना है, इस योजना के अंतर्गत पूरे भारत में अब तक 1.03 करोड़ रूपए की लागत से स्मार्ट LED स्ट्रीट लाइट लगाई गई है।
- इस योजना के परिणामस्वरूप प्रतिवर्ष 6.97 बिलियन किलोवाट उर्जा की बचत के साथ ही पीक डिमांड (Peak Demand) में 1,161 मेगावाट की कमी करने में सफलता प्राप्त हुई है। (पीक डिमांड: विशेष समयावधि में जब विद्युत माँग औसत से अधिक होती है।)
- इसके साथ ही इस योजना के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष अनुमानित 4.80 मिलियन टन कार्बनडाइ ऑक्साइड (CO2) की कमी करने में सफलता मिली है।
- देश के विभिन्न राज्यों में इस योजना के अंतर्गत स्ट्रीट लाइटें लगाने में भारत सरकार की मेक इन इंडिया (Make in India) पहल के माध्यम से लगभग 13,000 लोगों को रोज़गार प्रदान किया गया।
SLNP योजना के अन्य योगदान:
- SLNP योजना के माध्यम से लोगों की दैनिक उत्पादकता को बढ़ाते हुए सड़कों को और सुरक्षित बनाया गया है।
- इस योजना के अंतर्गत लगी LED स्ट्रीट लाइट के स्वचालित होने के कारण ऊर्जा अपव्यय पर रोक लगाने में सफलता प्राप्त हुई है।
- तथा साथ ही जिन राज्यों में इस योजना के अंतर्गत सड़कों पर LED लाइटें लगाई गई हैं वहाँ लाइट जलने के समय में 95% की वृद्धि होने के साथ विद्युत खर्च में 50% तक की कमी हुई है।
- पिछले पाँच वर्षों में देश की 3,00,000 किमी. सड़कों पर LED लाइट द्वारा सुरक्षा के साथ-साथ ऊर्जा की बचत को सुनिश्चित किया गया है।
उजाला योजना :
उजाला योजना: उजाला योजना (Unnat Jeevan by Affordable LED and Appliances for All -UJALA) की शुरुआत वर्ष 2015 में ‘राष्ट्रीय एल.ई.डी. कार्यक्रम’ (National LED Programme) के रूप में की गई थी। इस योजना का उद्देश्य कम लागत पर LED बल्ब उपलब्ध कराकर ऊर्जा बचत और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करना है।
- उजाला योजना राष्ट्रीय स्तर पर विद्युतीकरण के उद्देश्य से चलाई गई विश्व की सबसे बड़ी घरेलू योजना है।
- इस योजना के क्रियान्वन में ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (Energy Efficiency Services Limited-EESL) के सहयोग से पूर्णरूप से स्वदेशी (घरेलू) तकनीकी का प्रयोग किया गया।
- उजाला योजना के माध्यम से पूरे देश में बहुत ही कम कीमत पर 36.13 करोड़ से अधिक LED बल्ब वितरित किये गए।
- इस योजना के माध्यम से प्रतिवर्ष लगभग 46.92 बिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत के साथ ही पीक डिमांड (Peak Demand) में 9,394 मेगावाट की कमी करने में सफलता प्राप्त हुई है।
- उजाला योजना के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में प्रतिवर्ष अनुमानित 38 मिलियन टन कार्बनडाइ ऑक्साइड(CO2) की कमी की जा सकी है।
उजाला योजना के अन्य योगदान:
- इस योजना के माध्यम से ऊर्जा बचत के क्षेत्र में कई दूरगामी परिवर्तन करने में सफलता प्राप्त हुई है, इस योजना के परिणामस्वरूप LED बल्ब की कीमतों में भारी कमी की गई, जो की वर्ष 2015 के 310 रूपए (प्रति बल्ब) से घट कर वर्ष 2018 में 38 रुपए हो गई।
- परिवारों को अधिक ऊर्जा वाले पारंपरिक बल्बों के स्थान पर कम ऊर्जा पर चलने वाले LED बल्ब का इस्तेमाल करने के लिये प्रेरित कर उनकी ऊर्जा खपत में कमी लाने में सफलता मिली है।
- इस योजना के फलस्वरूप वर्ष 2014 से 2015 के बीच LED बल्बों की बिक्री 0.1% से बढ़कर 15% तक पहुँच गई, जिसे वर्ष 2020 तक 60% करने का लक्ष्य रखा गया है।
- इस योजना को वर्ष 2018 में शुरू किये गए ग्राम स्वराज अभियान (GSA) से जोड़कर देश के 21,058 गाँवों के गरीब परिवारों को विशेष मूल्य पर LED बल्ब उपलब्ध कराए गए।
वैश्विक पहचान :
भारत सरकार की ऊर्जा बचत की इन दूरदर्शी योजनाओं की विश्व के विभिन्न समूहों और संस्थाओं ने सराहना की तथा इन योजनाओं को कई वैश्विक मंचों पर पुरस्कृत भी किया गया जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
- South Asia Procurement Innovation Award (SAPIA) 2017
- 2019 CIO 100 Award: SLNP में सूचना प्रौद्योगिकी (IT) के अभिनव प्रयोग और योजना के सफल व्यावसायिक परिणामों के लिये।
- Global Solid State Lighting (SSL): LED क्षेत्र में दोनों योजनाओं के परिवर्तनकारी योगदान के लिये। .
आगे की राह:
ग्राम पंचायतों का ग्रामीण भारत के रोज़मर्रा के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, अतः ग्रामीण भारत के समावेशी विकास और सहभागी शासन के माध्यम से लोकतंत्र को मज़बूत करने में ग्राम पंचायतों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
- वर्तमान में देश भर की ग्राम सभाओं के अंतर्गत कुल स्ट्रीट लाइटों की संख्या लगभग 3.08 करोड़ है तथा 3.08 करोड़ पारंपरिक लाइटों को LED से बदलकर अनुमानतः 3420 मिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत और लगभग 29 लाख टन CO2 उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- वर्तमान में SLNP के तहत आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, गोवा और अंडमान एवं निकोबार द्वीप की ग्राम पंचायतों में लगभग 23 लाख पारंपरिक स्ट्रीट लाइट को LED से बदला जा चुका है।
- SLNP के तहत मार्च 2020 तक 1.34 करोड़ पारंपरिक स्ट्रीट लाइट को LED से बदलने की योजना है, इस महत्त्वाकांक्षी परियोजना के परिणामस्वरूप उच्च विद्युत मांग (Peak Demand) में 1500 मेगावाट की कमी, 9 बिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत और CO2 उत्सर्जन में लगभग 6.2 मिलियन टन की कटौती का अनुमान है।
- EESL के अनुसार, वर्ष 2024 तक इस योजना में लगभग 8000 करोड़ रूपये का निवेश कर ग्रामीण भारत में इस योजना के तहत 30 मिलियन पारंपरिक बल्बों को LED से बदलने की योजना है।
स्रोत: PIB
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मिलीमीटर स्पेक्ट्रम
प्रीलिम्स के लिये:
‘मिलीमीटर’ स्पेक्ट्रम, 5G स्पेक्ट्रम
मेन्स के लिये :
दूरसंचार क्षेत्र में नई तकनीकी: चुनौतियाँ और लाभ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दूरसंचार विभाग (भारत सरकार) ने 5G बैंड के 24.75 – 27.25 गीगाहर्ट्ज़ (GHz) स्पेक्ट्रम की इस वर्ष नीलामी की इच्छा ज़ाहिर की है।
मुख्य बिंदु:
- दूरसंचार विभाग जल्दी ही इस संबंध में भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India-TRAI) की अनुमति मांग सकता है।
- 5G बैंड के अंतर्गत इस नए स्पेक्ट्रम को ‘मिलीमीटर-वेव-बैंड्स (Millimeter-Wave Bands) के नाम से भी जाना जाता है।
- यह स्पेक्ट्रम सरकार द्वारा मार्च-अप्रैल 2020 में बिक्री के लिये चयनित 8,300 मेगाहर्ट्ज़ (MHz) वाले स्पेक्ट्रम से अलग है।
- दूरसंचार विभाग इस नए स्पेक्ट्रम को भी 8,300 मेगाहर्ट्ज़ (MHz) स्पेक्ट्रम के साथ बाज़ार के लिये खोलना चाहता था परंतु TRAI की अनुमति में देरी के कारण अब इसे वर्ष 2020 में ही कुछ देरी से बिक्री के लिये रखने की तैयारी है।
- दूरसंचार आयोग (Digital Communications Commission-DCC) ने 20 दिसंबर, 2019 को 8,300 मेगाहर्ट्ज़ (MHz) स्पेक्ट्रम की 22 लाइसेंस्ड स्पेक्ट्रम एक्सेस (Licensed Spectrum Access-LSA) या दूर-संचार क्षेत्रों (Telecom Circles) में बिक्री की अनुमति दी थी।
क्यों है खास नया स्पेक्ट्रम?
- इस मिलीमीटर-वेव-बैंड या अत्यंत उच्च आवृत्ति (Extremely High-Frequency) स्पेक्ट्रम का उपयोग प्रमुखतः हवाई-अड्डों पर सुरक्षा स्कैनरों, सीसीटीवी, वैज्ञानिक शोध, मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन और सैन्य अग्निशमन (Military Fire Control) में होता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, जैसे-जैसे तरंग दैर्ध्य छोटी होती है सेल (Cell) का आकर भी छोटा होता जाता है, जो कि प्रसारण केंद्र से संपर्क की इकाई है।
- वर्तमान में इस तकनीक का उपयोग उद्योगों और ऑप्टिकल फाइबर तक पहुँच वाले घरों में होने की उम्मीदें अधिक हैं।
स्पेक्ट्रम की ऊँची कीमत को लेकर शंकाएँ:
- दूरसंचार आयोग ने TRAI की सलाह पर नए स्पेक्ट्रम का मूल्य लगभग 5.22 लाख करोड़ रूपए रखा है।
- भारतीय दूरसंचार क्षेत्र की कुछ कंपनियों ने स्पेक्ट्रम की ऊँची कीमतों पर निराशा ज़ाहिर की है, सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया की औद्योगिक शाखा (Industry Body Cellular Operators Association of India) के अनुसार, नियामकों द्वारा प्रस्तावित वर्तमान मूल्य वैश्विक कीमतों की तुलना में भी बहुत अधिक है तथा इन पर पुनः विचार किये जाने की ज़रूरत है।
सेलुलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Cellular Operators Association of India-COAI): यह दूरसंचार क्षेत्र में सक्रिय कंपनियों का एक गैर-सरकारी संघ है, इसकी स्थापना वर्ष 1905 में की गयी थी। COAI दूरसंचार क्षेत्र की कंपनियों और सरकार के बीच मध्यस्थता का काम करती है तथा दोनों के सहयोग से दूरसंचार से संबंधित विभिन्न कार्यक्रमों जैसे- इंडिया मोबाइल काॅन्ग्रेस (India Mobile Congress-IMC) का आयोजन करती है।
बढ़ी कीमतों पर सरकार का पक्ष:
- दूरसंचार विभाग के अनुसार, स्पेक्ट्रम का मूल्य चुकाने पर वर्तमान में दो वर्षों का अधिस्थगन है, जिसके बाद स्पेक्ट्रम की शेष राशि को अगली 16 किस्तों में चुकाने की व्यवस्था है, ऐसे में यदि कंपनियाँ 5G को लेकर दूर-दृष्टि रखती हैं तो उन्हें इसके भविष्य में निवेश करना होगा।
इंडिया मोबाइल काॅन्ग्रेस (India Mobile Congress-IMC): IMC दक्षिणी एशिया में अपनी तरह का सबसे बड़ा मंच है। वर्ष 2017 में इसकी स्थापना के बाद से प्रतिवर्ष यह मंच दूर-संचार क्षेत्र की कंपनियों, नीति निर्धारकों, नियामकों और अकादमिक क्षेत्र के प्रतिनिधि इत्यादि को एक साथ लाकर इस क्षेत्र के भविष्य की रूपरेखा निर्धारित करने में सहयोग करता है। इसके साथ ही हर वर्ष इस आयोजन में भविष्य की नयी तकनीकों का प्रदर्शन भी किया जाता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
चीनी उत्पादन से जुड़े विभिन्न क्षेत्र
प्रीलिम्स के लिये:
उचित एवं लाभकारी मूल्य, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग
मेन्स के लिये:
भारत में चीनी उत्पादन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति
चर्चा में क्यों?
चालू विपणन वर्ष के पहले तीन महीनों में देश का चीनी उत्पादन 30.22% घटकर 7.79 मिलियन टन हो गया।
मुख्य बिंदु:
- ‘इंडियन शुगर मिल एसोशिएसन’ (Indian Sugar Mills Association- ISMA) के अनुसार, चीनी मिलों ने सरकार के ‘अधिकतम स्वीकार्य निर्यात मात्रा कोटा’ (Maximum Admissible Export Quantity Quota-MAEQ) के तहत 2.5 मिलियन टन से अधिक चीनी के निर्यात के लिये अनुबंध किया है।
- हालाँकि चीनी का निर्यात अभी भी अच्छी स्थिति में है।
चीनी की एक्स-मिल कीमतें:
- ISMA के अनुसार, केंद्र सरकार ने वर्ष 2019-20 के लिये ‘उचित और लाभकारी मूल्य’ (Fair and Remunerative Price-FRP)) में बढ़ोतरी नहीं की है, अतः उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब आदि राज्य सरकारों ने भी ‘प्रदेश परामार्शित मूल्य’ (State Advised Price-SAP) में बढ़ोतरी नहीं की है, इसीलिये चीनी की एक्स-मिल कीमतें स्थिर बनीं हुई हैं। इससे चीनी मिलें किसानों को समय पर गन्ना मूल्य का भुगतान करने के लिहाज़ से बेहतर स्थिति में हैं।
- ISMA के अनुसार, चीनी की एक्स-मिल कीमतें उत्तर भारत में 3,250-3,350 रुपए प्रति क्विंटल और दक्षिण भारत में 3100-3250 रुपए प्रति क्विंटल के दायरे में स्थिर बनी हुई हैं।
अनुमानित उत्पादन:
- ISMA ने वर्ष 2019-20 के लिये अपने पहले अनुमान में 26 मिलियन टन चीनी उत्पादन का अनुमान लगाया है, जबकि वर्ष 2018-19 में यह 33.16 मिलियन टन था।
- देश के सबसे बड़े चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में चीनी का उत्पादन दिसंबर 2019 तक घटकर 1.65 मिलियन टन रह गया, जबकि वर्ष 2018-19 में इस अवधि में 4.45 मिलियन टन चीनी का उत्पादन हुआ था।
चीनी की औसत प्राप्ति:
- बाढ़ से प्रभावित गन्ने की फसल में सुक्रोज की मात्रा कम होने से महाराष्ट्र में चीनी की औसत प्राप्ति वर्ष 2018-19 की तुलना में 10.5% से घटकर 10 रह गई।
- दिसंबर 2019 के अंत में कुल 137 चीनी मिलें कार्यरत थीं, जबकि वर्ष 2018-19 में इस अवधि के दौरान 189 मिलें कार्यरत थीं।
उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन में वृद्धि:
- चीनी के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में चीनी उत्पादन वर्ष 2018-19 के 3.10 मिलियन टन की तुलना में वर्ष 2019-20 में बढ़कर 3.31 मिलियन टन हो गया है।
उचित और लाभप्रद मूल्य:
- चीनी मिलें जिस मूल्य पर किसानों से गन्ना खरीदती हैं उसे उचित और लाभप्रद मूल्य कहा जाता है। इसका निर्धारण ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग’ (Commission on Agricultural Costs and Prices-CACP) की सिफारिशों के आधार पर ‘आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति’ (Cabinet Committee on Economic Affairs-CCEA) द्वारा किया जाता है।
स्रोत- द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
दिल्ली का पहला स्मॉग टॉवर
प्रीलिम्स के लिये:
CPCB, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, स्मॉग टॉवर, Particulate Matters,
मेन्स के लिये:
वायु प्रदूषण से संबंधित मुद्दे, वायु प्रदूषण से निपटने के लिये उठाए जाने वाले कदम, नागरिकों को स्वच्छ वायु प्रदान करने से संबंधित सरकार की रणनीतियाँ
चर्चा में क्यों?
शुक्रवार 3 जनवरी, 2020 को राष्ट्रीय राजधानी के लाजपत नगर में एक प्रोटोटाइप एयर प्यूरीफायर का उद्घाटन किया गया।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- पूर्व क्रिकेटर और पूर्वी दिल्ली के भाजपा सांसद गौतम गंभीर ने दिल्ली के लाजपत नगर में इस पहले स्मॉग टॉवर का उद्घाटन किया।
- यह टॉवर लाजपत नगर के ट्रेडर्स एसोसिएशन एवं गौतम गंभीर फाउंडेशन ने मिलकर लगवाया है। इस स्मॉग टॉवर की ऊँचाई लगभग 20 फीट है तथा इस स्मॉग टॉवर की लागत लगभग 7 लाख रुपए है।
- नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों को राजधानी में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये स्मॉग टॉवर लगाने की योजना तैयार करने का निर्देश दिया था।
- दिल्ली सरकार भी कनॉट प्लेस के सेंट्रल पार्क में एक स्मॉग टॉवर लगाने की योजना बना रही है। यह परियोजना भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Indian Institute of Technology-IIT) बॉम्बे, IIT- दिल्ली और मिनेसोटा विश्वविद्यालय (यूएसए) के बीच सहयोग पर आधारित है। गौरतलब है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board-CPCB) भी इस परियोजना में शामिल है।टॉवर में स्थापित फिल्टर में एक प्रमुख घटक के रूप में कार्बन नैनोफाइबर का उपयोग किया जाएगा और उसे इसकी परिधि के साथ फिट किया जाएगा। 20 मीटर (65 फीट) ऊँचा टॉवर हवा में मौजूद सभी आकार के कणों को आकर्षित कर साफ़ करेगा।
- ध्यातव्य है कि टॉवर के शीर्ष में लगे पंखों के माध्यम से अत्यधिक मात्रा में हवा को एयर फिल्टर की तरफ खींचा जाएगा और दूषित वायु को शुद्ध किया जाएगा।
स्मॉग टॉवर क्या है?
- स्मॉग टावर एक बहुत बड़ा एयर प्यूरीफायर है। यह अपने आसपास से प्रदूषित हवा या उसके कणों को सोख लेता है और फिर वापस पर्यावरण में साफ हवा छोड़ता है।
यह कैसे काम करता है?
- लाजपत नगर में स्थापित स्मॉग टॉवर प्रतिदिन 6,00,000 क्यूबिक मीटर वायु का उपचार करने में सक्षम है और 75 प्रतिशत से अधिक पार्टिकुलेट कणों (Particulate Matters- PM) जैसे- PM 2.5 और PM 10 को एकत्र कर सकता है।
- यह प्रदूषण स्तर को कम करेगा और चार आउटलेट इकाइयों के माध्यम से ताज़ी हवा को बाहर निकालने में मदद करेगा।
विश्व में स्मॉग टॉवर के अन्य उदाहरण
- वर्षों से वायु प्रदूषण से जूझ रहे चीन के पास अपनी राजधानी बीजिंग और उत्तरी शहर शीआन में दो स्मॉग टॉवर हैं।
- शीआन का टॉवर दुनिया का सबसे बड़ा टॉवर है और कथित तौर पर इसने अपने आसपास के क्षेत्र में लगभग 6 वर्ग किमी के क्षेत्र में पीएम 2.5 को 19% तक कम किया है।
- जब से यह टॉवर लॉन्च किया गया है तब से 100 मीटर (328 फीट) ऊँचे इस टॉवर ने प्रतिदिन 10 मिलियन क्यूबिक मीटर स्वच्छ हवा का उत्पादन किया है और गंभीर रूप से प्रदूषित दिनों में स्मॉग को मध्यम स्तर के करीब लाने में सक्षम है।
- बीजिंग में लगाया गया टॉवर, डच कलाकार डैन रूजगार्डे द्वारा बनाया गया है, यह टॉवर शुद्धिकरण के दौरान उत्पन्न कार्बन कचरे को रत्नों में परिवर्तित करने में सक्षम है। 30 मिनट तक संपीडित होने पर स्मॉग कण डॉर्क रत्नों में बदल जाते हैं, जिनका उपयोग छल्ले और कफलिंक के लिये किया जाता है।
स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
जलीय आक्रामक विदेशी प्रजातियों से उपजता संकट
मेन्स के लिये:
स्वदेशी प्रजातियों के अस्तित्त्व पर आक्रामक विदेशी प्रजातियों का प्रभाव
संदर्भ
पारिस्थितिकी में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश के चलते न केवल स्वदेशी प्रजातियों के अस्तित्व के लिये खतरे की स्थिति बन गई है बल्कि इससे पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भारत में बढ़ती इस समस्या के समाधान के लिये व्यापक शोध एवं अध्ययन की आवश्यकता है ताकि नीति निर्माण में इस समस्या को महत्त्व देते हुए आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
मूल समस्या क्या है?
बादल फटने से आने वाली बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में जलीय आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश में वृद्धि हुई है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र, प्राकृतिक वास तथा देशज प्रजातियों को क्षति पहुँचती है। हाल ही में केरल विश्व विद्यालय द्वारा कराये गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई कि वर्ष 2018 में आई बाढ़ के चलते केरल की आर्द्र्भूमियों में कुछ हानिकारक मत्सय प्रजातियों [जैसे- आरापैमा (Arapaima) और एलिगेटर गार (Alligator Gar) ने प्रवेश किया। ये अवैध रूप से आयातित मत्सय प्रजातियाँ हैं जिन्हें देश भर में सजावटी और वाणिज्यिक मत्सय व्यापारियों द्वारा पाला जाता है।
विदेशी प्रजातियाँ
- अपने मूल क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों को विदेशी प्रजातियाँ कहा जाता है। इन्हें आक्रामक, गैर-स्वदेशी, एलियन प्रजातियाँ अथवा जैव-आक्रांता (Bioinvaders) भी कहा जाता है।
- ये प्रजातियाँ किसी स्थान पर पाई जाने वाली स्वदेशी प्रजातियों से जैविक और अजैविक संसाधनों के संदर्भ में प्रतिस्पर्द्धा कर स्थानीय पर्यावरण के साथ ही मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।
मछलियों से खतरे की वजह
- एलियन शिकारी मछलियाँ आसानी से नए पारिस्थितिकी तंत्र में खुद को आसानी से ढाल लेती हैं। एक बार पारिस्थितिकी तंत्र में ढल जाने के बाद ये मछलियाँ मूल प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने लगती हैं। उदाहरण के लिये- गोल्ड फिश, अमेरिकन कैटफ़िश, टाइनी गप्पी, थ्री-स्पॉट गौरामी
- गोल्ड फिश: यह मछली जलीय वनस्पतियों के साथ ही मूल प्रजातियों के वंश-वृद्धि क्षेत्र को भी कम करती है
- अमेरिकन कैटफिश: यह मछली अत्यधिक चराई (Overgrazing) की वज़ह से खाद्य श्रृंखला को प्रभावित करती है। ये मछलियाँ शैवाल भक्षक भी कहलाती हैं।
प्रभाव
- वस्तुत: जब विदेशी प्रजातियों को जानबुझकर या अनजाने में एक प्राकृतिक वास में प्रवेश कराया जाता है तो उनमें से कुछ स्वदेशी प्रजातियों के पतन या विलोपन का कारण बनने लगती हैं। इन आक्रामक विदेशी प्रजातियों को आवासीय क्षति के बाद जैव-विविधता के लिये दूसरा सबसे बड़ा खतरा माना जाता है।
- भारी बाढ़ के दौरान आक्रामक विदेशी मछलियाँ, जिन्हें घरेलू एक्वैरियम टैंक, तालाबों, झीलों और परित्यक्त खदानों सहित अवैध रूप से भंगुर प्रणालियों में रखा जाता हैं, आसानी से समीप की आर्द्र्भूमियों में प्रवेश कर जाती हैं।
- धीरे-धीरे ये प्रजातियाँ पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन कर स्थानीय विविधता को क्षति पहुँचाने लगती हैं।
- वर्तमान में भारत के किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में ऐसी आक्रामक सजावटी और व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों के अवैध पालन, प्रजनन एवं व्यापार के संबंध में कोई सुदृढ़ नीति या कानून मौजूद नहीं है।
विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियाँ
- विदेशी आक्रमणकारी समुद्री प्रजातियों में सबसे अधिक संख्या जीनस एसाइडिया (Ascidia) (31) की है।
- इसके बाद इस क्रम में आरथ्रोपोड्स (Arthropods) (26), एनालडि्स (Annelids) (16), सीनिडेरियन (Cnidarian) (11), ब्रायोजन (Bryzoans) (6), मोलास्कस (Molluscs) (5), टेनोफोरा (Ctenophora) (3) और एन्टोप्रोकटा (Entoprocta) (1) का स्थान आता है।
- विशेषज्ञों के अनुसार, टूब्रैसट्रिया कोकसीनी (Tubastrea Coccinea) अथवा ऑरेंज कप-कोरल, यह प्रजाति इंडो-ईस्ट पैसिफिक में पाई जाती है, लेकिन अब यह प्रजाति अंडमान निकोबार द्वीप समूह, कच्छ की खाड़ी, केरल और लक्षद्वीप के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रही है।
अवैध स्टॉकिंग (Illegal stocking)
- उदाहरण के लिये, तमिलनाडु में अवैध रूप से आयातित सजावटी और व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मत्स्य प्रजातियों की स्टॉकिंग एक मुनाफे का व्यवसाय है। उत्तरी चेन्नई में कोलाथुर अपने सजावटी मछली व्यापार (80 से अधिक दुकानें) के लिये जाना जाता है और क्षेत्र के अधिकांश निवासी 150-200 विदेशी सजावटी मछली प्रजातियों के प्रजनन और बिक्री में संलग्न हैं। इन प्रजातियों के प्रजनन के लिये अधिकतर छोटे सीमेंट के गढ्ढों, मिट्टी के तालाबों, प्लास्टिक-लाइन वाले पूलों, होमस्टेड तालाबों आदि का उपयोग किया जाता हैं। इस क्षेत्र में आने वाली मौसमी मानसूनी बाढ़ विदेशी प्रजातियों के प्रजनन स्टॉक और वयस्क मछलियों को बहाकर ताज़े जल में प्रवेश करा देती है।
- मानसून के मौसम में जलाशयों में वर्षा की मात्रा, जल स्तर और परिवहन, संचार और बिजली सहित आवश्यक सेवाओं के विषस्य में विवरण जारी किया जाता हैं लेकिन इससे जैव-विविधता को होने वाले नुकसान के विषय में कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
- विभिन्न नदी प्रणालियों में पाई जाने वाली प्रमुख भारतीय मत्स्य प्रजातियां नील टीलापिया, अफ्रीकी कैटफिश, थाई पंगुस जैस कई विदेशी प्रजातियों के आक्रमण के कारण प्रभावित हुई हैं। ये स्थानीय जल निकायों से पहले से विद्यमान प्राकृतिक प्रजातियों के विलुप्त होने में भी योगदान करती हैं।
हालाँकि जलीय जैव-विविधता के संरक्षण नीति के विषय में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इसके संदर्भ में केवल यह अनुमान व्यक्त किया जा सकता हैं कि राज्य सरकार ने मानसून के मौसम में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के पलायन को नियंत्रित और प्रबंधित करने के लिये अभी तक कोई नीति नहीं बनाई है। हालाँकि इस समय विशेषज्ञों के परामर्श से एक नीति का मसौदा तैयार करने की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
प्रीलिम्स के लिये
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना
मेन्स के लिये
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रावधान तथा महत्त्व
चर्चा मे क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र अपने भूमि रिकॉर्ड को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana- PMFBY) के वेब पोर्टल से एकीकृत करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
मुख्य बिंदु:
- इसके माध्यम से ओवर इंश्योरेंस (Over-Insurance) (धारित भूमि से अधिक भूमि का बीमा) तथा अपात्र व्यक्तियों द्वारा उपयोग किये गए बीमा की जाँच में मदद मिलेगी।
- महाराष्ट्र को PMFBY के तहत दावों के भुगतान के मामले में देश के शीर्ष पाँच राज्यों में गिना जाता है।
- वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान महाराष्ट्र के 1.39 करोड़ किसानों ने इस योजना को अपनाया तथा कुल 4,778.30 करोड़ रुपए की प्रीमियम राशि एकत्रित की गई।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना:
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना वर्ष 2016 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) के अंतर्गत प्रारंभ की गई थी।
- यह फसल के नष्ट होने की दशा में किसानों को व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है तथा किसानों की आय को स्थिर बनाए रखने में मदद करती है।
- इसके तहत सभी खाद्यान्न, तिलहन, वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों को शामिल किया गया है।
- इसके तहत किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली प्रीमियम राशि खरीफ फसलों के लिये 2%, रबी की फसलों के लिये 1.5% निर्धारित की गई है। इसके अलावा वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों पर प्रीमियम राशि 5% है।
- यह योजना उन किसानों के लिये अनिवार्य है जिन्होंने अधिसूचित फसलों के लिये फसल ऋण या किसान क्रेडिट कार्ड (Kisan Credit Card- KCC) के तहत ऋण लिया है, जबकि अन्य के लिये ये ऐच्छिक है।
- इस योजना का क्रियान्वयन सूचीबद्ध सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा किया जाता है। क्रियान्वयन एजेंसी का चयन संबंधित राज्य सरकार द्वारा नीलामी द्वारा किया जाता है।
- इसमें न सिर्फ खड़ी फसल बल्कि फसल पूर्व बुवाई तथा फसल कटाई के पश्चात् जोखिमों को भी शामिल किया गया है।
- इस योजना के तहत स्थानीय आपदाओं की क्षति का भी आकलन किया जाएगा तथा संभावित दावों के 25 प्रतिशत का तत्काल भुगतान ऑनलाइन माध्यम से ही कर दिया जाएगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विविध
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 06 जनवरी, 2020
लियो कार्टर
न्यूजीलैंड के बल्लेबाज लियो कार्टर एक ओवर में 6 छक्के लगाकर ऐसे करने वाले वे विश्व के सातवें खिलाड़ी बन गए हैं। घरेलू टी-20 टूर्नामेंट में कैंटरबरी टीम के कार्टर ने नॉर्दर्न नाइट्स के खिलाफ यह उपलब्धि हासिल की है। कॉर्टर के अतिरिक्त वेस्टइंडीज के गैरी सोबर्स, भारत के रवि शास्त्री और युवराज सिंह, दक्षिण अफ्रीका के हर्शल गिब्स, इंग्लैंड के रॉस विटिली और अफगानिस्तान के हज़रतुल्ला जजई ने भी एक ओवर में 6 छक्के लगाने का कारनामा किया है।
गिनी बिसाऊ के नए राष्ट्रपति
गिनी बिसाऊ के पूर्व प्रधानमंत्री व सैन्य जनरल उमारो सिस्सोको एम्बालो को हाल ही में देश के नए राष्ट्रपति के रूप में चुना गया है। ज्ञात हो कि गिनी-बिसाऊ के मौजूदा राष्ट्रपति जोसे मारियो वाज़ हैं जिनका कार्यकाल जल्द ही खत्म होने वाला है। उमारो सिस्सोको का जन्म 23 सितंबर, 1972 को हुआ था। सेना में कार्य करने के पश्चात् उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया और वर्ष 2016 से वर्ष 2018 के बीच गिनी बिसाऊ के 18वें प्रधानमंत्री भी रहे। गिनी बिसाऊ पश्चिमी अफ्रीका में स्थित एक देश है, यह देश वर्ष 1974 में पुर्तगाल से स्वतंत्र हुआ था।
नॉलेज हब
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने नई दिल्ली स्थित नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) परिसर में नॉलेज हब का उद्घाटन किया है। इस केंद्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के माध्यम से आर्थिक गतिविधियों के बारे में सीखने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। बैंकों, वित्तीय सेवाओं और बीमा क्षेत्र को इससे काफी फायदा होने की उम्मीद है।
महिला विज्ञान कॉन्ग्रेस
बंगलुरु की यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर में 5-6 जनवरी को 9वीं महिला विज्ञान कॉन्ग्रेस का आयोजन किया गया है। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एरोनॉटिकल सिस्टम की महानिदेशक और भारत की मिसाइल वुमेन के नाम से प्रसिद्ध डॉ. टेसी थॉमस महिला विज्ञान कॉन्ग्रेस की मुख्य अतिथि थीं। उल्लेखनीय है कि प्रथम महिला विज्ञान कॉन्ग्रेस जनवरी 2012 में भुवनेश्वर में 90वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के साथ आयोजित की गई थी और अमेरिका में भारत की तत्कालीन राजदूत निरूपमा राव प्रथम भारतीय विज्ञान कांग्रेस की मुख्य अतिथि थीं।
पी. एच. पांडियन
तमिलनाडु विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और अन्नाद्रमुक (AIADMK) के वरिष्ठ नेता पी. एच. पांडियन का हाल ही में निधन हो गया। 74 वर्ष के पांडियन बीते कुछ समय से बीमार थे। पूर्व विधायक और सांसद रह चुके पांडियन 1980-84 के बीच तमिलनाडु विधानसभा के उपाध्यक्ष और वर्ष 1985 से 1989 तक अध्यक्ष पद पर भी आसीन रहे थे।