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कृषि

प्रधानमंत्री फ़सल बीमा योजनाः किसानों की स्थिति सुधारने की दिशा में एक मज़बूत पहल

  • 01 Mar 2019
  • 7 min read

भूमिका

NSSO के आँकड़ों के अनुसार देश के कुल कार्यबल का 48.9%कृषि क्षेत्र में संलग्न है, एक तरफ जहाँ कृषि के अलाभकारी व्यवसाय हो जाने के कारण किसान स्वयं ही कृषि छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अतिवृष्टि, अनावृष्टि, ओलावृष्टि, जलभराव और चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं की मार भी किसानों की कमर तोड़ देती है।

किसानों की समस्याएँ

  • NCRB द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार 2014 में 5650 किसानों ने आत्महत्याएँ कीं जिनमें 55-6% आत्महत्याएँ कृषि में प्राप्त हुई असफलता और उसके चलते बढ़े हुए आर्थिक दबाव के कारण की गईं। इनमें से 16.8% आत्महत्याएँ केवल फसल बर्बादी की वजह से की गईं।
  • किसानों की ऋणग्रस्तता एवं उन पर बढ़ता आर्थिक बोझ।
  • कृषि क्षेत्र से लगातार हो रहे श्रम के पलायन के कारण देश में बेरोज़गारी भी बढ़ेगी क्योंकि अधिकतर कृषक अकुशल श्रमिक हैं।

किसानों के लिये योजना

  • कृषकों की जोखिम प्रबंधन की चुनौतियों को देखते हुए ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ की शुरुआत की गई है।
  • पिछली फसल बीमा योजनाएँ विभिन्न नीतिगत एवं प्रकार्यात्मक खामियों के कारण अपेक्षानुरूप सफल नहीं रहीं। इनमें 1999 में शुरू की गई ‘राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना’ प्रमुख है। 2010-11 में इसी योजना को ‘संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना’ के रूप में पुनः प्रारंभ किया गया। इस योजना में प्रमुख खामी यह थी कि वाणिज्यिक फसलों के प्रीमियम पर सरकार द्वारा सब्सिडी नहीं दी जाती थी।
  • वर्तमान में प्रारम्भ की गई ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ में किसानों के कल्याण एवं कृषि सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास किया गया है। इसके तहत 2018-19 तक लगभग 50% सकल फसल क्षेत्र को योजना के दायरे में लाने का लक्ष्य रखा गया है।
  • इस योजना के अंतर्गत किसानों द्वारा देय प्रीमियम पर सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी के दायरे में वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों को भी शामिल कर लिया गया है। इसमें खरीफ के लिये 2%, रबी के लिये 1.5% तथा वार्षिक वाणिज्यिक एवं बागवानी फसलों के लिये 5% प्रीमियम की राशि तय की गई है।
  • किसानों द्वारा दिये जाने वाले प्रीमियम के बीच के अंतर को सरकार द्वारा पूरा किया जाएगा जिसे केंद्र एवं राज्य सरकार बराबर के अनुपात में वहन करेगी। इस उद्देश्य के लिये केंद्र सरकार द्वारा प्रतिवर्ष ₹88000 करोड़ रुपए दिये जाएंगे। सरकार द्वारा वहन की जाने वाली प्रीमियम राशि पर कोई ऊपरी सीमा (upper cap) तय नहीं है, जैसा कि पूर्ववर्ती योजना में था। इसलिये अब किसानों को शत-प्रतिशत नुकसान की स्थिति में पूरी बीमित राशि प्राप्त हो सकेगी।
  • यदि बीमित किसान किन्हीं प्राकृतिक कारणों से समय पर खेत की बुआई नहीं कर पाता है, तो इस वजह से पैदावार में हुआ नुकसान योजना के दायरे में आएगा और इसके लिये किसान को दावे की राशि प्राप्त होगी।

योजना में आपदा श्रेणी का विस्तार

  • इस योजना में ओलावृष्टि, जलभराव और भूस्खलन जैसी आपदाओं को स्थानीय आपदा माना गया है। पूर्व की योजनाओं के अंतर्गत किसान के खेत में जलभराव होने की स्थिति में उसको मिलने वाली दावे की राशि इस बात पर निर्भर करती थी कि बीमित इकाई (गाँव या गाँव के समूह) में कुल कितना नुकसान हुआ है।
  • इस योजना में फसल कटाई के बाद (post harvest) यानी अगर फसल कटाई के 14 दिन बाद तक फसल खेत में है और उस दौरान कोई आपदा आ जाती है तो किसानों को दावे की राशि प्राप्त हो सकेगी।
  • इस योजना में प्रक्रियात्मक विलंब जैसी समस्याओं को दूर करने एवं पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिये फसल कटाई एवं नुकसान के आकलन के लिये उपग्रह एवं दूरसंवेदी तकनीक के प्रयोग की बात कही गई है।

निगरानी कार्य

राज्यों में इस योजना के प्रबंधन एवं निगरानी के लिये ‘फसल बीमा पर राज्य स्तरीय समन्वय समिति’ जिम्मेदार होगी और केंद्र स्तर पर कृषि सहयोग एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में एकराष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति का गठन किया जाएगा।

योजना का प्रभाव

  • इस योजना की सफलता से किसानों की स्थिति में तो सुधार होगा ही, साथ ही, यह वित्तीय समावेशन की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा।
  • इस योजना का सकारात्मक प्रभाव बैंकों की सेहत पर भी पड़ सकता है। चूँकि बैंकों की बढ़ती गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियों (NPAs) में कृषि क्षेत्रक को दिये गए ऋण का बैड डेब्ट (Bad Debt) के रूप में परिवर्तित हो जाना भी एक बड़ी वजह है।
  • चूँकि इस योजना की सबसे बड़ी चुनौती लोगों को इसके प्रति जागरूकता की होगी। अतः कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा इस चुनौती को भाँपते हुए सभी चिह्नित क्षेत्रों में संचार के सभी प्रभावी माध्यमों (प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, मोबाइल एसएमएस इत्यादि) का उपयोग किया जाएगा।

निष्कर्ष

इस योजना को सफल बनाने के लिये छोटे किसानों पर ज्यादा ध्यान देना होगा, क्योंकि सर्वाधिक समस्या इन छोटे किसानों के साथ ही होती है; जिनके पास न तो पूंजी होती है और न ही बैंकों से ऋण लेने के लिये कोई कॉलेटरल (Collateral)। साथ-ही-साथ डिजिटल साक्षरता भी बढ़ानी होगी।

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