सामाजिक न्याय
ऑक्सफैम रिपोर्ट: इनइक्वालिटी किल्स
प्रिलिम्स के लिये:ऑक्सफैम रिपोर्ट और इसके प्रमुख निष्कर्ष। मेन्स के लिये:ऑक्सफैम रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष, असमानता के कारण, कोविड-19 का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "इनइक्वालिटी किल्स" शीर्षक वाली ऑक्सफैम रिपोर्ट जारी की गई है, जिसने वैश्विक स्तर पर और भारत में कोविड-19 महामारी के कारण आय पर बुरे प्रभाव की ओर इशारा किया है।
प्रमुख बिंदु:
- बढ़ती असमानताओं का परिणाम: आर्थिक, लैंगिक और नस्लीय असमानताओं के साथ-साथ देशों के बीच मौजूद असमानता हमें दुनिया से अलग कर रही है।
- महामारी शुरू होने के बाद से दुनिया के 10 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति दोगुने स्तर पर पहुँच गई है।
- कोविड-19 के कारण 99% लोगों की आय में गिरावट हुई है।
- असमानता हर चार सेकंड में कम-से-कम एक व्यक्ति की मौत का कारण बनती है।
- आर्थिक असमानता: एक प्रकार की आर्थिक असमानता तब होती है जब सबसे अमीर तथा सबसे शक्तिशाली लोगों के लिये संरचनात्मक नीति विकल्प बनाए जाते हैं। यह सबसे गरीब लोगों, महिलाओं एवं लड़कियों तथा नस्लीय समूहों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है।
- स्वास्थ्य देखभाल तक असमान पहुँच: अच्छी गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवा एक मनुष्य का अधिकार है, लेकिन इसे अक्सर अमीर लोगों के लिये विलासिता के रूप में देखा जाता है।
- लिंग आधारित हिंसा: यह पितृसत्ता और लिंगवादी आर्थिक व्यवस्था में निहित सोच है। उदाहरण के लिये लिंग-चयनात्मक गर्भपात।
- गरीबी से प्रेरित भूख: भूख उन कारणों में से एक है जिससे गरीब मरते है और इसका सामना हर दिन दुनिया भर में अरबों आम लोगों को करना पड़ता है।
- जलवायु परिवर्तन संकट की असमानता: सबसे अमीर लोगों द्वारा उत्सर्जन इस जलवायु परिवर्तन का कारण रहा है, 20 सबसे अमीर अरबपतियों द्वारा CO2 उत्सर्जन औसतन सबसे गरीब लोगों द्वारा किये गए उत्सर्जन का 8,000 गुना होने का अनुमान है।
- वैक्सीन रंगभेद: अमीर देश अपने फार्मास्युटिकल अरबपतियों का समर्थन कर सकते हैं और अपनी आबादी की रक्षा के लिये टीके जमा कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने से वे अपने ही लोगों को उस उत्परिवर्तन से ज़ोखिम की ओर धकेलते हैं जिससे वैक्सीन रंगभेद उत्पन्न होता है।
- एक अवधारणा के रूप में वैक्सीन रंगभेद ऐतिहासिक रूप से अधीनस्थ लोगों पर असमान वैक्सीन वितरण नीतियों के प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करती है।
भारतीय परिदृश्य
- सामाजिक सुरक्षा व्यय में गिरावट:
- कोविड-19 से भारत के स्वास्थ्य बजट में वर्ष 2020-21 के आरई (Revised Estimates) से 10% की गिरावट देखी गई।
- शिक्षा के लिये आवंटन में 6% की कटौती की गई है।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये बजटीय आवंटन कुल केंद्रीय बजट के 1.5% से घटकर 0.6% हो गया है।
- बढ़ती असमानताएँ: रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 में देश के 84 फीसदी परिवारों की आय में गिरावट आई लेकिन साथ ही भारतीय अरबपतियों की संख्या 102 से बढ़कर 142 हो गई।
- अमीरी में इजाफा: महामारी के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपए हो गई।
- वैश्विक स्तर पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के ठीक बाद भारत में अरबपतियों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या है।
- वर्ष 2021 में भारत में अरबपतियों की संख्या में 39% की वृद्धि हुई है।
- गरीबों की संख्या में वृद्धि: वर्ष 2020 में 4.6 करोड़ से अधिक भारतीयों के अत्यधिक गरीब होने का अनुमान है जो संयुक्त राष्ट्र के आँकड़ों के अनुसार नए वैश्विक गरीबों का लगभग आधा हिस्सा है।
- साथ ही वर्ष 2020 में राष्ट्रीय संपत्ति में नीचे की 50% आबादी का हिस्सा मात्र 6% था।
- भारत में बेरोजगारी भी बढ़ी है।
- अमीरी में इजाफा: महामारी के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 23.14 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 53.16 लाख करोड़ रुपए हो गई।
- लैंगिक समानता को झटका: वर्ष 2020 में वर्ष 2019 की तुलना में महिलाओं की सामूहिक रूप से कमाई में 59.11 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
- बढ़ता राजकोषीय घाटा: पिछले वर्ष (2020) निवेश को आकर्षित करने के लिये कॉर्पोरेट करों को 30% से घटाकर 22% करने से 1.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, जिसने भारत के राजकोषीय घाटे को और अधिक बढाया।
- असमान संघवाद: देश के संघीय ढांँचे के बावजूद राजस्व संसाधन केंद्र के हाथों में ही केंद्रित है।
हालाँकि महामारी का प्रबंधन उन राज्यों को नहीं दिया गया था जो इसके वित्तीय या मानव संसाधनों के स्तर पर इसे संभालने में सक्षम नहीं थे।
आगे की राह:
- असमानता से निपटने हेतु अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक धन का निवेश: सभी सरकारों को इस महामारी की अवधि के दौरान अत्यधिक धनी लोगों द्वारा अर्जित लाभ पर तुरंत कर लगाना चाहिये।
- जीवन को सुरक्षित करने तथा भविष्य में निवेश करने हेतु उस धन को पुनर्निर्देशित करने पर बल: सभी सरकारों को जीवन बचाने और भविष्य में निवेश करने के लिये साक्ष्य-आधारित तथा उचित नीतियों में निवेश करना चाहिये।
- महामारी की से बचाव के लिये गुणवत्तापूर्ण, सार्वजनिक रूप से वित्तपोषित और सार्वजनिक रूप से वितरित सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा होनी चाहिये।
- अर्थव्यवस्था और समाज में बनियमों में परिवर्तन और सत्ता में बदलाव: इसमें सेक्सिस्ट कानूनों को समाप्त करना शामिल है, जिसका अर्थ है कि लगभग 3 बिलियन महिलाओं को कानूनी तौर पर पुरुषों के समान नौकरी चुनने से रोका जाता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
देश के मेंटर कार्यक्रम: दिल्ली सरकार
प्रिलिम्स के लिये:एनसीपीसीआर, पॉक्सो एक्ट, शिक्षा से संबंधित योजनाएँ। मेन्स के लिये:देश के मेंटर कार्यक्रम का महत्त्व और बच्चों की सुरक्षा से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने सुझाव दिया कि दिल्ली सरकार अपने प्रमुख 'देश के मेंटर' कार्यक्रम को तब तक के लिये स्थगित कर दे, जब तक कि बच्चों की सुरक्षा से संबंधित सभी खामियों को दूर नहीं किया जाता।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग:
- NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया है।
- यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
- आयोग का अधिदेश (Mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
- यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे के लिये मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
- यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
प्रमुख बिंदु
- देश के मेंटर कार्यक्रम के बारे में:
- इसे अक्तूबर 2021 में लॉन्च किया गया था, जिसका उद्देश्य नौवीं से बारहवीं कक्षा के छात्रों को स्वैच्छिक सलाहकारों (Voluntary Mentors) से जोड़ना था।
- दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी की एक टीम द्वारा बनाए गए एप के माध्यम से 18 से 35 वर्ष की आयु के लोग मेंटर बनने हेतु साइन अप कर सकते हैं, जो कि आपसी हितों के आधार पर छात्रों से जुड़े रहेंगे।
- मेंटरशिप में कम-से-कम दो महीने के लिये नियमित फोन कॉल शामिल हैं, जिसे वैकल्पिक रूप से अगले चार महीनों तक चलाया जा सकता है।
- इस विचार का उद्देश्य युवा मेंटर्स को उच्च शिक्षा और कॅरियर विकल्पों जैसे मामलों में छात्रों को मार्गदर्शन के लिये प्रेरित करना है, ताकि वे बेहतर ढंग से उच्च शिक्षा प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर सकें और दबाव मुक्त हो सकें।
- अब तक 44,000 लोगों ने मेंटर के रूप में साइन अप किया है, जो कि 1.76 लाख बच्चों के साथ काम कर रहे हैं।
- NCPCR द्वारा उठाई गई चिंताएँ:
- बच्चों को केवल समान लिंग के मेंटर के साथ जोड़ना ही दुर्व्यवहार से उनकी रक्षा करने का उपाय नहीं है।
- मेंटर के पुलिस सत्यापन का अभाव।
- साइकोमेट्रिक टेस्ट किसी भी बच्चे के लिये संभावित खतरे के संदर्भ में किसी व्यक्ति का पूर्ण प्रमाण मूल्यांकन नहीं है।
- बातचीत को फोन कॉल तक सीमित करना भी बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करता है क्योंकि "बच्चे से संबंधित अपराध फोन कॉल के माध्यम से भी शुरू किये जा सकते हैं।"
- बच्चों को ऐसी स्थितियों से बचाने की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही विभाग की होती है। किसी भी अप्रिय घटना की स्थिति में माता-पिता की सहमति का उपयोग के रूप में नहीं किया जा सकता है।
स्रोत; इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन के साथ भारत का व्यापार
प्रिलिम्स के लिये:भारत-चीन व्यापार, सक्रीय फार्मास्युटिकल सामग्री (APIs), आसियान, यूरोपीय संघ, पैंगोंग झील, नया सीमा कानून। मेन्स के लिये:चीन पर भारत की आर्थिक निर्भरता और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2021 में चीन के साथ भारत के व्यापार ने 125 बिलियन अमेरिकी के डॉलर का आँकड़े को पार कर दिया, जिसमें चीन से आयात रिकॉर्ड 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के करीब पहुँच गया है, जो कि चीन की वस्तुओं, विशेष रूप से मशीनरी की निरंतर मांग को रेखांकित करता है।
- यह बढ़ोतरी तब दर्ज की गई है जब पूर्वी लद्दाख में सेनाओं के बीच लंबे समय से चल रहे गतिरोध के कारण दोनों देशों के संबंधों में गिरावट आई है।
प्रमुख बिंदु
- चीन को भारत से निर्यात:
- हाल के वर्षों में चीन को भारत से सबसे अधिक निर्यात लौह अयस्क, कपास और अन्य कच्चे माल पर आधारित वस्तुओं का किया जाता है, क्योंकि पिछले वर्ष (2021) चीन में इन वस्तुओं की मांग में सुधार देखा गया है।
- चीन से भारत में आयात:
- भारत ने पिछले दो वर्षों में बड़ी मात्रा में इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी, सक्रिय फार्मास्युटिकल सामग्री (APIs), ऑटो कंपोनेंट्स एवं ऑक्सीजन कंसंटेटर्स से लेकर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPEs) तक कई तरह की मेडिकल सामग्री का आयात किया है।
- द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि:
- भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार में साल-दर-साल 43% की वृद्धि चीन के प्रमुख व्यापारिक भागीदारों में सबसे अधिक थी।
- चीन के शीर्ष तीन व्यापारिक भागीदारों के साथ व्यापार के आँकड़ों में आसियान के साथ 28.1% (878.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर), यूरोपीय संघ के साथ 27.5% (828.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर) और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ 28.7% (755.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की वृद्धि दर्ज की गई।
- चीन के साथ व्यापार घाटा:
- भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2021 में बढ़कर 69.38 अरब डॉलर हो गया।
- भारत एक दशक से अधिक समय से चीन के साथ बढ़ते व्यापार घाटे पर अपनी चिंताओं को उजागर करता रहा है और चीन से भारत के आईटी एवं फार्मास्यटिकल उत्पादों के लिये अपने बाज़ार खोलने का आह्वान कर रहा है।
- जब किसी देश का कुल आयात उसके निर्यात से अधिक हो जाता है तो इस स्थिति को उसके व्यापार घाटे के रूप संदर्भित किया जाता है।
- चीन पर निर्भरता का मुकाबला करने के लिये उठाए गए कदम:
- चाइनीज एप्स पर बैन।
- भारत द्वारा कई क्षेत्रों में चीनी निवेश की जाँच में सख्ती की गई है, साथ ही सरकार द्वारा चीनी कंपनियों को 5G परीक्षण से बाहर रखने के निर्णय पर विचार किया जा रहा है।
- सरकार ने हाल ही में चीन से टायरों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, साथ ही घरेलू कंपनियों के "अवसरवादी अधिग्रहण" पर अंकुश लगाने के लिये भारत के साथ थल सीमा साझा करने वाले देशों हेतु विदेशी निवेश के लिये पूर्व मंजूरी अनिवार्य कर दी है। यह एक ऐसा कदम है जो चीन के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को सीमित करेगा।
- एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट (Active Pharmaceutical Ingredients-APIs) के लिये चीन पर आयात निर्भरता में कटौती करने हेतु सरकार ने मार्च, 2020 में एक पैकेज को मंजूरी दी जिसमें देश में थोक दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को उनके निर्यात के साथ बढ़ावा देने के लिये कुल 13,760 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ चार योजनाएंँ शामिल हैं।
- वर्ष 2020 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने भारत को वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाने तथा आयात बिलों में कटौती करने हेतु 12 क्षेत्रों की पहचान की।
- इन क्षेत्रों में खाद्य प्रसंस्करण, जैविक खेती, लोहा, एल्युमीनियम और तांबा, कृषि रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स, औद्योगिक मशीनरी, फर्नीचर, चमड़ा एवं जूते, ऑटो पार्ट्स, कपड़ा, मास्क, सैनिटाइज़र और वेंटिलेटर शामिल हैं।
भारत-चीन संबंधों में वर्तमान मुद्दे
- पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध:
- भारत और चीन की सेनाओं के बीच सीमा गतिरोध मई 2020 में पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक टकराव के बाद शुरू हुआ और दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हजारों सैनिकों एवं भारी हथियारों की तैनाती बढ़ा दी है।
- 12 जनवरी, 2022 को दोनों पक्षों ने कोर कमांडर-स्तरीय चर्चा के 14वें दौर हेतु शेष क्षेत्रों में गतिरोध को समाप्त करने हेतु मुलाकात की और उन्होंने शीघ्र ही दोनों देशों ने फिर से मिलने का वादा किया।
- नया सीमा कानून:
- भू-सीमाओं पर चीन का नया कानून नए वर्ष (2022) से लागू हो गया है।
- यह कानून अन्य बातों के अलावा बताता है कि चीन भूमि सीमा मामलों पर संधियों का पालन करता है या संयुक्त रूप से अन्य देशों द्वारा स्वीकार किया जाता है।
- अरुणाचल प्रदेश में कई स्थानों का नामकरण:
- भारतीय राज्य पर अपने दावे के हिस्से के रूप में हाल ही में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों का नाम बदल दिया गया है।
- भारत ने वैश्विक स्तर पर इस कदम की निंदा की और एक स्पष्ट बयान के साथ जवाब दिया कि नए नामों को निर्दिष्ट करने से कोई फायदा नहीं होगा और न ही यह तथ्य बदलेगा कि ये स्थान अरुणाचल प्रदेश का हिस्सा हैं।
- पैंगोंग झील पर पुल:
- हाल ही में यह पाया गया कि चीन पैंगोंग त्सो पर एक नया पुल बना रहा है जो झील के उत्तर और दक्षिण किनारों के बीच व एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के करीब सैनिकों को तेज़ी से तैनात करने के लिये एक अतिरिक्त धुरी प्रदान करेगा।
- पुल उनके क्षेत्र में है और भारतीय सेना को अपनी परिचालन योजनाओं में इसे शामिल करना होगा।
- हाल ही में यह पाया गया कि चीन पैंगोंग त्सो पर एक नया पुल बना रहा है जो झील के उत्तर और दक्षिण किनारों के बीच व एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के करीब सैनिकों को तेज़ी से तैनात करने के लिये एक अतिरिक्त धुरी प्रदान करेगा।
आगे की राह
- चीनी उत्पादों पर निर्भरता को कम करने के लिये भारत को चीन से आयात का विश्लेषण करने और आगे का रास्ता विकसित करने की ज़रूरत है।
- इसके अलावा आर्थिक जटिलता मॉडल के आधार पर भारत सरकार प्रौद्योगिकी और नवाचार क्षमताओं के अनुसार उन्हें विभाजित करके उचित रोड मैप तैयार कर सकती है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन
प्रिलिम्स के लिये:टेक्निकल टेक्सटाइल, टेक्निकल टेक्सटाइल से संबंधित योजनाएँ। मेन्स के लिये:भारतीय अर्थव्यवस्था में तकनीकी वस्त्र का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कपड़ा मंत्रालय ने 'राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन' कार्यक्रम के तहत स्पेशलिटी फाइबर और जियोटेक्सटाइल (Specialty fibers and Geotextiles) के क्षेत्रों में 30 करोड़ रुपए की 20 रणनीतिक अनुसंधान परियोजनाओं को मंज़ूरी दी है।
तकनीकी वस्त्र:
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक वस्त्र होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा इत्यादि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- तकनीकी वस्त्र उत्पाद की मांग किसी देश के विकास और औद्योगीकरण पर निर्भर करती है।
- प्रयोग के आधार पर 12 तकनीकी वस्त्र खंड हैं: एग्रोटेक, मेडिटेक, बिल्डटेक, मोबिल्टेक, क्लोथेक, ओईटेक, जियोटेक, पैकटेक, हॉमटेक, प्रोटेक, इंडुटेक और स्पोर्टेक।
- उदाहरण: मोबिलटेक (Mobiltech) वाहनों में सीट बेल्ट और एयरबैग, हवाई जहाज़ की सीट जैसे उत्पादों को संदर्भित करता है। जियोटेक (Geotech) जो कि संयोगवश सबसे तेज़ी से उभरता हुआ खंड है, का उपयोग मृदा आदि को जोड़े रखने में किया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय
- इसे वर्ष 2020 में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) द्वारा देश को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान प्रदान करने और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाने के उद्देश्य से अनुमोदित किया गया था।
- इसका लक्ष्य घरेलू बाज़ार के आकार को वर्ष 2024 तक 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है।
- मंत्रालय:
- कपड़ा मंत्रालय के तहत एक मिशन निदेशालय।
- घटक: इसे वर्ष 2020-2021 से चार वर्षों के लिये लागू किया गया है और इसके चार घटक होंगे-
- पहला घटक: यह 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अनुसंधान, विकास एवं नवाचार पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- यह अनुसंधान फाइबर और भूमि, कृषि, चिकित्सा, खेल और मोबाइल वस्त्रों एवं बायोडिग्रेडेबल तकनीकी वस्त्रों के विकास में अनुप्रयोग-आधारित दोनों स्तरों पर होगा।
- अनुसंधान गतिविधियों में स्वदेशी मशीनरी और प्रक्रिया के विकास पर भी ध्यान दिया जाएगा।
- दूसरा घटक: यह तकनीकी वस्त्रों के लिये बाज़ार के प्रचार और विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- तीसरा घटक: यह निर्यात को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि देश से तकनीकी कपड़ा निर्यात वर्ष 2021-2022 तक 14,000 करोड़ रुपए से 20,000 करोड़ रुपए तक पहुँच जाए और मिशन समाप्त होने तक प्रतिवर्ष 10% औसत वृद्धि सुनिश्चित करे।
- तकनीकी वस्त्रों के लिये निर्यात प्रोत्साहन परिषद का गठन किया जाएगा।
- चौथा घटक: यह शिक्षा, प्रशिक्षण और कौशल विकास पर केंद्रित होगा।
- मिशन तकनीकी वस्त्रों और इसके अनुप्रयोग क्षेत्रों से संबंधित उच्च इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी स्तरों पर तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देगा।
- पहला घटक: यह 1,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ अनुसंधान, विकास एवं नवाचार पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- तकनीकी वस्त्र परिदृश्य:
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने पिछले पाँच वर्षों में गति पकड़ी है, जो वर्तमान में 8% प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है।
- अगले पाँच वर्षों के दौरान इस वृद्धि को 15-20% की सीमा तक ले जाने का लक्ष्य है।
- मौजूदा विश्व बाज़ार 250 अरब अमेरिकी डॉलर का है और इसमें भारत की हिस्सेदारी 19 अरब अमेरिकी डॉलर है।
- भारत इस बाज़ार में 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर (8% शेयर) के साथ एक महत्त्वाकांक्षी देश है।
- सबसे बड़े देश यूएसए, पश्चिमी यूरोप, चीन और जापान (20-40%) हैं।
- भारत में तकनीकी वस्त्रों के विकास ने पिछले पाँच वर्षों में गति पकड़ी है, जो वर्तमान में 8% प्रति वर्ष की दर से बढ़ रही है।
- वस्त्र उद्योग से संबंधित पहल:
- कपड़ा क्षेत्र के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना: इसका उद्देश्य उच्च गुणवत्ता के मानव निर्मित फाइबर (एमएमएफ) कपड़े, वस्त्र और तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ावा देना है।
- एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।
- समर्थ (कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु योजना): कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिये वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु समर्थ योजना (SAMARTH Scheme) की शुरुआत की गई।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (North East Region Textile Promotion Scheme- NERTPS): यह कपड़ा उद्योग के सभी क्षेत्रों को बुनियादी ढांँचा, क्षमता निर्माण और विपणन सहायता प्रदान करके NER में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने से संबंधित योजना है।
- पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी एवं श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
- रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
- जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और सीमित जल वाली परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान देना और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है। इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है।
स्रोत- पी.आई.बी
विश्व इतिहास
कोहिमा वार सीमेट्री
प्रिलिम्स के लिये:कोहिमा वार सीमेट्री, द्वितीय विश्व युद्ध, कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कमीशन, भारतीय राष्ट्रीय सेना मेन्स के लिये:द्वितीय विश्व युद्ध, द्वितीय विश्व युद्ध में उत्तर पूर्व भारत का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनाइटेड किंगडम स्थित कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कमीशन (Commonwealth War Graves Commission- CWGC) ने असामान्य विशेषताओं वाली पांँच साइट्स को सूचीबद्ध किया है। ये स्थल प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़े हुए हैं।
- नगालैंड की राजधानी कोहिमा को कोहिमा युद्ध कब्रिस्तान/कोहिमा वार सीमेट्री (Kohima War Cemetery) की वजह से सूची में शामिल किया गया है।
कॉमनवेल्थ वॉर ग्रेव्स कमीशन:
- CWGC छह सदस्य-राज्यों (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, यूनाइटेड किंगडम) का एक अंतर-सरकारी संगठन है जो इस बात को सुनिश्चित करता है कि युद्ध में मारे गए पुरुषों और महिलाओं को कभी नहीं भुलाया जाएगा।
- इसका गठन वर्ष 1917 में इंपीरियल वॉर ग्रेव्स कमीशन के रूप में किया गया था। हालाँकि वर्तमान नाम वर्ष 1960 में दिया गया था।
- इसका मुख्यालय मेडेनहेड, यूके में स्थित है।
प्रमुख बिंदु
- कोहिमा वार सीमेट्री के बारे में:
- नगालैंड की राजधानी कोहिमा में संभवत: विश्व का एकमात्र कब्रिस्तान/सीमेट्री है जहांँ टेनिस कोर्ट है।
- कोहिमा युद्ध सीमेट्री सीडब्ल्यूजीसी द्वारा महाद्वीपों में बनाए गए 23,000 विश्व युद्ध की कब्रों में से एक है।
- सीमेट्री का गठन:
- 3 अप्रैल, 1944 को 15,000 सैनिकों की एक जापानी सेना ने कोहिमा और उसके 2,500 मज़बूत सैनिक बलो पर हमला किया था।
- इसने दो सप्ताह की कठिन, खूनी लड़ाई का नेतृत्त्व किया था
- इस घर के लॉन में एक टेनिस कोर्ट था जिसका उपयोग ब्रिटिश अधिकारी मनोरंजन के लिये करते थे।
- बचे हुए रक्षकों ने अपने अंतिम स्टैंड के लिये तैयार गार्डन टेनिस कोर्ट के चारों ओर डेरा डाला। जैसे ही जापानी सेना हमला करने के लिये तैयार हुई उस पर एक राहत बल के प्रमुख टैंकों द्वारा हमला किया गया और रक्षकों को बचाया गया इस प्रकार हमलावरों को पीछे धकेल दिया गया।
- इस घटना के बावजूद जापानी सेना ने कोहिमा के लिये लड़ना जारी रखा और अंततः वह मई 1944 में पीछे हटने के लिये मजबूर हो गई।
- जो लोग कोहिमा युद्ध में मारे गए थे उन्हें युद्ध के मैदान में ही दफनाया गया था, जो बाद में एक स्थायी सीडब्ल्यूजीसी सीमेट्री बन गया।
- डिज़ाइनर कॉलिन सेंट क्लेयर ओक्स ने सीमेट्री के डिज़ाइन में टेनिस कोर्ट को शामिल किया।
- सूची में अन्य कब्रिस्तान (सीमेट्री):
- प्रथम विश्व युद्ध "क्रेटर सीमेट्री" - फ्राँस में पास डी कैलाइस क्षेत्र में ज़िवी क्रेटर और लिचफील्ड क्रेटर।
- साइप्रस में निकोसिया (वेन्स कीप) सीमेट्री या "सीमेट्री इन नो मैन्स लैंड"।
द्वितीय विश्व युद्ध में कोहिमा का महत्त्व
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीय उप-महाद्वीप के केवल कुछ ही विशिष्ट स्थान जैसे- नगालैंड और उससे सटा मणिपुर शामिल थे।
- वर्ष 1944 में बर्मी जंगल में कड़ी लड़ाई के बाद इस क्षेत्र में जापानी सेना ने चिंदविन नदी को पारकर भारत में प्रवेश कर लिया था। उनकी लड़ाई ‘फोर्टींंन आर्मी' से हुई थी, जो राष्ट्रमंडल की सेनाओं से मिलकर बनी थी।
- यह आक्रमण दो प्रमुख बिंदुओं- इंफाल और कोहिमा पर हुआ था। यहाँ ‘फोर्टींंन आर्मी' की हार का मतलब था कि जापान, भारत पर और बड़ा हमला कर सकता था।
- कोहिमा की सामरिक स्थिति काफी महत्त्वपूर्ण थी, जो कि दीमापुर के जंगल के पहाड़ों से गुज़रने का उच्चतम बिंदु था और अब यह नगालैंड का वाणिज्यिक केंद्र है।
- दीमापुर के पतन का अर्थ था कि इंफाल में मौजूद सैनिकों को सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना के साथ लड़ने वाले जापानी सैनिकों की दया पर छोड़ देना।
द्वितीय विश्व युद्ध
- परिचय:
- द्वितीय विश्व युद्ध वर्ष 1939-45 के बीच एक सशस्त्र विश्वव्यापी संघर्ष था।
- 1 सितंबर, 1939 को जर्मनी के पोलैंड पर आक्रमण के छह साल और एक दिन बाद यह समाप्त हो गया, जिसने 20वीं सदी के दूसरे वैश्विक संघर्ष को जन्म दिया।
- 2 सितंबर, 1945 को जब यह एक अमेरिकी युद्धपोत पर समाप्त हुआ, तब इसमें लगभग 60-80 मिलियन लोग शामिल हुए थे जो दुनिया की आबादी की लगभग 3% थी।
- मरने वालों में अधिकांश साधारण नागरिक थे, जिनमें 6 मिलियन यहूदी भी शामिल थे, जो युद्ध के दौरान नाजी बंदी शिविरों में मारे गए थे।
- प्रमुख प्रतिद्वंद्वी:
- धुरी शक्तियाँ- जर्मनी, इटली और जापान
- मित्र राष्ट्र- फ्राँस, ग्रेट ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और कुछ हद तक चीन
स्रोत- द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
घरेलू खतरनाक अपशिष्ट
प्रिलिम्स के लिये:घरेलू खतरनाक अपशिष्ट, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016। मेन्स के लिये:घरेलू खतरनाक अपशिष्ट और इसका प्रभाव, घरेलू खतरनाक अपशिष्ट के प्रबंधन की आवश्यकता, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 |
चर्चा में क्यों?
मज़बूत बुनियादी ढाँचे के अभाव में अधिकांश भारतीय शहरों के लिये घरेलू खतरनाक अपशिष्ट का पृथक्करण एक दूर का सपना बना हुआ है।
- इंदौर देश का एकमात्र शहर है जो अपने घरेलू खतरनाक अपशिष्ट का सुरक्षित प्रबंधन करता है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- घरेलू खतरनाक अपशिष्ट ऐसा कोई भी रसायन या उत्पाद है जो गंभीर बीमारी का कारण बन सकता है या यदि अनुचित तरीके से इसको संग्रहीत, परिवहन या निपटान किया जाता है तो यह पर्यावरण या स्वास्थ्य के लिये खतरा पैदा कर सकता है।
- जब खतरनाक अपशिष्ट को कूड़ेदान में, नाले के नीचे या ज़मीन पर फेंक दिया जाता है तो पानी और मिट्टी दूषित हो सकती है या कचरा संग्रहकर्ता को नुकसान हो सकता है।
- खतरनाक, ज्वलनशील, ज़हर और संक्षारक लेबल वाले अधिकांश उत्पादों को खतरनाक अपशिष्ट माना जाता है।
- उदाहरण: ऑटो बैटरी, उर्वरक, बैटरी (गैर-क्षारीय), पेंट।
- भारत में घरेलू खतरनाक अपशिष्ट:
- वर्ष 2020 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली और IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं द्वारा जहरीले भारी धातुओं व कीटनाशकों जैसे लगातार कार्बनिक संदूषकों का एक महत्त्वपूर्ण स्तर पाया गया है।
- उन्होंने देश भर में आठ डंप साइटस् से बारीक कणों का विश्लेषण किया है।
- वर्ष 2020 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली और IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं द्वारा जहरीले भारी धातुओं व कीटनाशकों जैसे लगातार कार्बनिक संदूषकों का एक महत्त्वपूर्ण स्तर पाया गया है।
- घरेलू कचरे को नियंत्रित करना:
- घरेलू कचरा ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 में उल्लिखित नियमों द्वारा शासित होता है।
- ये नियम घरेलू कचरे को सूखे और गीले कचरे में विभाजित करते हैं।
- गीले कचरे को किसी भी कचरे के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जो स्वयं ही विघटित या खराब हो जाता है।
- अन्य सभी कचरा नियमानुसार सूखे कचरे में गिना जाता है।
- मुद्दे:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016:
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 इसे "घरेलू स्तर पर उत्पन्न पेंट ड्रम, कीटनाशक के डिब्बे, कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लाइटबल्ब, ट्यूब लाइट, एक्सपायर्ड दवाएँ, टूटे हुए पारा थर्मामीटर, इस्तेमाल की गई बैटरी, इस्तेमाल की गई सुई और सीरिंज एवं दूषित गेज आदि" के रूप में परिभाषित करता है।
- यह परिभाषा संपूर्ण नहीं है इसलिये व्यक्तिगत घरों और स्थानीय सरकारी निकायों जैसे कि पंचायतों और नगर पालिकाओं के लिये छोड़ दिया जाता है।
- उदाहरण के लिये नियम सिगरेट बट्स को छोड़ देते हैं, भले ही उनमें भारी धातुओं तथा अन्य रसायनों के निशान हों।
- ज़मीनी स्तर पर नियमों के क्रियान्वयन का अभाव:
- नियमों के अनुसार, परिवारों को कचरे को गीले, सूखे और घरेलू खतरनाक अपशिष्ट जैसी श्रेणियों में अलग करना चाहिये।
- स्थानीय सरकारी निकायों को घरेलू खतरनाक अपशिष्ट को एकत्र करना चाहिये और/या प्रति 20 किलोमीटर की दूरी पर एक संग्रह केंद्र स्थापित करना चाहिये ताकि परिवार स्वयं अपशिष्ट को जमा कर सकें।
- इसके पश्चात् स्थानीय अधिकारियों को एकत्रित कचरे को निपटान सुविधाओं तक सुरक्षित रूप से पहुँचाना चाहिये। ये नियम वर्ष 2018 तक अधिकारियों को आवश्यक बुनियादी ढाँचे को विकसित करने और लोगों को संवेदनशील बनाने का भी निर्देश देते हैं।
- लेकिन इनमें से किसी भी नियम को धरातल पर सही ढंग से लागू नहीं किया गया है।
- पर्याप्त निपटान सुविधाओं की कमी:
- यदि अपशिष्ट एकत्र कर भी लिया जाता है, तो देश में उनके सुरक्षित निपटान के लिये पर्याप्त निपटान सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
- एक निपटान सुविधा में आमतौर पर विशिष्ट लैंडफिल मौजूद होते हैं, जो ज़मीन में जहरीले लीचेट के रिसाव को रोकते हैं ।
- केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2019 में जारी ‘भारत में रसायन और खतरनाक अपशिष्ट प्रबंधन व हैंडलिंग पर हैंडबुक’ के अनुसार, वर्तमान में देश में ऐसी केवल 45 सुविधाएँ ही हैं।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016:
आगे की राह
- खराब प्रदर्शन को देखते हुए भारत खतरनाक अपशिष्ट को ‘एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी’ (EPR) के तहत शामिल करने पर विचार कर सकता है।
- भारत में वर्तमान में केवल प्लास्टिक उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक एवं विद्युत उपकरणों के लिये ही EPR नीति मौजूद है। कनाडा में घरेलू खतरनाक अपशिष्ट वर्ष 1990 के दशक से EPR के अधीन है।
- इस नीति ने सरकार और करदाताओं को घरेलू खतरनाक अपशिष्ट संग्रह के उत्तदयित्त्व से राहत दी है।
- एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (Extended Producer Responsibility-EPR) के तहत मैन्युफैक्चरर्स पर अपने पोस्ट-कंज्यूमर प्रोडक्ट्स को एकत्र करने और संचालित करने की ज़िम्मेदारी होती है।
- भारत में वर्तमान में केवल प्लास्टिक उत्पादों और इलेक्ट्रॉनिक एवं विद्युत उपकरणों के लिये EPR नीति है। कनाडा में, घरेलू खतरनाक अपशिष्ट 1990 के दशक से ईपीआर के अधीन है।
- अधिकारियों को कचरे का सुरक्षित भंडारण और खतरनाक अपशिष्ट निपटान सुविधा के लिये परिवहन भी सुनिश्चित करना चाहिये।
- चूंँकि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के तहत नगर निगम के अधिकारियों की ज़िम्मेदारी है कि वे तिमाही या समय-समय पर खतरनाक कचरे को इकट्ठा करें और/या ऐसे जमा केंद्र स्थापित करें जहांँ ऐसे अपशिष्ट को पैदा करने वालों द्वारा छोड़ा जा सके।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
‘ओपन डेटा’ सप्ताह
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) ने ओपन डेटा अपनाने को प्रोत्साहित करने और भारत के शहरी पारिस्थितिकी तंत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये ‘ओपन डेटा’ सप्ताह शुरू करने की घोषणा की है।
- यह जनवरी के तीसरे सप्ताह के दौरान यानी 17 जनवरी, 2022 से 21 जनवरी, 2022 तक आयोजित किया जा रहा है।
- इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच प्रदान करना है, जो जटिल शहरी मुद्दों, जैसे कि कोविड -19 महामारी को संबोधित करने हेतु डेटा के उपयोग और प्रचार को बढ़ावा देने के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान करता हो।
प्रमुख बिंदु
- ओपन डेटा के विषय में:
- ‘ओपन डेटा’ वह डेटा है, जिसे किसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से उपयोग, पुन: उपयोग और पुनर्वितरित किया जा सकता है। इसे तीन व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
- उपलब्धता और पहुँच: यह न्यूनतम लागत पर आसानी से उपलब्ध होता है और यह प्रयोग करने योग्य रूप में भी उपलब्ध होना चाहिये।
- पुन: उपयोग और पुनर्वितरण: यह पुन: उपयोग और पुनर्वितरण पर बिना किसी प्रतिबंध के उपलब्ध कराया जाता है।
- सार्वभौम भागीदारी: कोई भी या हर कोई इसका उपयोग कर सकता है और/या इसका पुन: उपयोग भी कर सकता है। किसी भी मानदंड के आधार पर किसी व्यक्ति या समूह के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिये।
- ‘ओपन डेटा’ वह डेटा है, जिसे किसी के द्वारा स्वतंत्र रूप से उपयोग, पुन: उपयोग और पुनर्वितरित किया जा सकता है। इसे तीन व्यापक श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:
- शहरी नियोजन में ओपन डेटा के लाभ:
- पारदर्शिता: सार्वजनिक क्षेत्र में अधिक पारदर्शिता और अखंडता। यह सार्वजनिक धन के प्रवाह और बाज़ार अंतर्दृष्टि को ट्रैक करने की संभावना को बढ़ाता है।
- बहु-आयामी सहसंबंध: यह वर्तमान और ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को प्रकाशित करता है जिसे सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय जलवायु की जानकारी के साथ जोड़ा जा सकता है।
- क्रिया-उन्मुख दृष्टिकोण: यह वास्तविक समय में परिवर्तनों को पहचानने, प्रतिक्रिया करने या यहाँ तक कि भविष्यवाणी करने की क्षमता प्रदान करता है।
- मॉडलिंग और सिमुलेशन के माध्यम से विभिन्न प्रकार के परिवर्तन के प्रभाव का अनुमान और उपलब्ध डेटा की मात्रा के आधार पर उच्च सटीकता के साथ पूर्वानुमानों का परीक्षण करने की क्षमता।
- अक्षम या अप्रभावी प्रथाओं की आसान पहचान की अनुमति देकर प्रक्रियाओं और सेवाओं को सुव्यवस्थित करके उत्पादकता में वृद्धि करना।
- पर्यावरणीय स्थिरता: अपने स्रोतों की पहचान को सरल बनाकर तथा मौजूदा परियोजनाओं, सेवाओं और बुनियादी ढांँचे के पर्यावरणीय नियमों के अनुपालन में सहायता करके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करना।
- अनुरूप समाधान: समान समस्याओं को विभिन्न कानूनी ढांँचे और विभिन्न जनसांख्यिकी में संबोधित करने की अनुमति देना।
- डेटा का लोकतंत्रीकरण: यह सूचना को औसत अंतिम-उपयोगकर्त्ता तक पहुँचाने की अनुमति देगा।
- यह मूल्यों और कार्यों के एक पद्धतिगत ढांँचे का वर्णन करता है जो लोगो या विशिष्ट उपयोगकर्त्ताओं के किसी भी नुकसान को कम करने में सक्षम है।
आगे की राह
- कॉन्टैक्टलेस इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ: भारतीयों के पास बड़े पैमाने पर डेटा की कमी के कारण एक स्केलेबल मॉडल हेतु बिल्डिंग ब्लॉक्स तेजी से अपने डिजिटल पदचिह्न का विस्तार कर रहे हैं-खासकर कोविड- 19 के बाद।
- भारत पहले से मौजूद संपर्क रहित व्यवहार का लाभ उठा सकता है।
- आधार ने भारत में 1 अरब से अधिक लोगों को एक विशिष्ट पहचान प्रदान की है।
- वित्तीय लेन-देन को एक नई परिभाषा देने के लिये एकीकृत भुगतान इंटरफेस जैसे अंतर-संचालित भुगतान तंत्र।
- व्यक्तिगत डेटा के उपयोग के लिये सहमति: एक ऐसे कानूनी ढाँचे की आवश्यकता है जो डेटा गोपनीयता सुरक्षा प्रदान करे और इस तरह शासन को डेटा लोकतांत्रिकरण की ओर ले जाए।
- इस संदर्भ में डेटा प्राइवेसी के लिये गठित जस्टिस बीएन श्रीकृष्णा समिति की सिफारिशें बेहद महत्त्वपूर्ण हैं।
- ऐसा कानून भारत के डिजिटल भविष्य को परिभाषित करने में बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो व्यक्ति पर केंद्रित हो।
स्रोत-पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
वेब 3.0
प्रिलिम्स के लिये:वेब 1.0, वेब 2.0, वेब.3.0, इंटरनेट, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी। मेन्स के लिये:वेब के विभिन्न संस्करण, ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी, विकेंद्रीकृत प्रौद्योगिकी और इसका महत्व, डेटा सुरक्षा, ई-कॉमर्स। |
चर्चा में क्यों?
वेब 3 की अवधारणा, जिसे वेब 3.0 भी कहा जाता है, का उपयोग इंटरनेट के संभावित अगले चरण का वर्णन करने के लिये किया जाता है और यह वर्ष 2021 में काफी चर्चा में रहा है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- वर्ल्ड वाइड वेब, जिसे वेब के रूप में भी जाना जाता है वेब सर्वर में संग्रहीत वेबसाइटों या वेब पेजों का एक संग्रह है जो इंटरनेट के माध्यम से स्थानीय कंप्यूटरों से जुड़ा होता है।
- इन वेबसाइटों में टेक्स्ट पेज, डिजिटल इमेज, ऑडियो, वीडियो आदि होते हैं। उपयोगकर्त्ता कंप्यूटर, लैपटॉप, सेल फोन आदि जैसे अपने उपकरणों का उपयोग करके इंटरनेट पर दुनिया के किसी भी हिस्से से इन साइट्स की सामग्री तक पहुँच सकते हैं।
- वेब 3.0 एक विकेंद्रीकृत इंटरनेट है जो ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित है यह उपयोग में आने वाले संस्करणों, वेब 1.0 और वेब 2.0 से अलग होगा।
- वेब 3 में उपयोगकर्त्ताओं के पास प्लेटफॉर्म और एप्लीकेशन में स्वामित्व हिस्सेदारी होगी जो तकनीकी प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करते हैं।
- ब्लॉक चेन टेक्नोलॉजी कंपनी एथेरियम ( Ethereum) के संस्थापक गेविन वुड ने वर्ष 2014 में पहली बार वेब 3 शब्द का इस्तेमाल किया था और पिछले कुछ वर्षों में कई अन्य लोगों ने वेब 3 के विचार को जोड़ा है।
- पिछला संस्करण:
- वेब 1.0:
- वेब 1.0 वर्ल्ड वाइड वेब या इंटरनेट है जिसका आविष्कार वर्ष 1989 में हुआ था। यह वर्ष 1993 से लोकप्रिय हुआ और वर्ष 1999 तक चला।
- वेब 1.0 के समय में इंटरनेट अधिकतर स्टैटिक वेब पेज थे, जहाँ उपयोगकर्त्ता एक वेबसाइट पर जाते थे और फिर स्टैटिक या स्थिर जानकारी प्राप्त करते थे।
- भले ही शुरुआती दिनों में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स थीं, फिर भी यह एक अपेक्षाकृत बंद वातावरण था और उपयोगकर्त्ता स्वयं कोई सामग्री नहीं बना सकते थे या इंटरनेट पर समीक्षा पोस्ट नहीं कर सकते थे।
- वेब 2.0:
- वेब 2.0 किसी-न-किसी रूप में वर्ष 1990 के दशक के अंत में ही शुरू हुआ था, हालाँकि इसकी अधिकांश सुविधाएँ पूरी तरह से वर्ष 2004 में उपलब्ध हो सकीं। गौरतलब है कि अभी भी वेब 2.0 का युग जारी है।
- वेब 1.0 की तुलना में वेब 2.0 की विशिष्ट विशेषता यह है कि उपयोगकर्त्ता स्वयं भी कंटेंट पोस्ट बना सकते हैं।
- वे टिप्पणियों के रूप में वार्ता कर सकते हैं, अपनी पसंद बता सकते हैं, साझा कर सकते हैं और अपनी तस्वीरें या वीडियो अपलोड कर सकते हैं तथा ऐसी अन्य सभी गतिविधियाँ कर सकते हैं।
- मुख्य रूप से एक सोशल मीडिया प्रकार की वार्ता वेब 2.0 की विशिष्ट विशेषता है।
- वेब 1.0:
- वेब 3.0 की आवश्यकता:
- वेब 2.0 में इंटरनेट और इंटरनेट ट्रैफ़िक संबंधी अधिकांश डेटा का स्वामित्व या प्रबंधन कुछ विशिष्ट कंपनियों जैसे- गूगल द्वारा ही किया जाता है।
- इसने डेटा गोपनीयता, डेटा सुरक्षा और डेटा के दुरुपयोग से संबंधित समस्याएँ पैदा कर दी हैं।
- इसके कारण इंटरनेट का मूल उद्देश्य विकृत हो गया है।
- वेब 3.0 का महत्त्व:
- विकेंद्रीकृत और निष्पक्ष इंटरनेट: वेब 3.0 एक विकेंद्रीकृत और निष्पक्ष इंटरनेट प्रदान करेगा, जहाँ उपयोगकर्त्ता अपने स्वयं के डेटा को नियंत्रित कर सकते हैं।
- यह मध्यस्थों को हटाता है: ब्लॉकचेन के साथ लेन-देन का समय और स्थान स्थायी रूप से दर्ज किया जाता है।
- इस प्रकार वेब 3 मध्यस्थ की भूमिका को समाप्त कर सहकर्मी से सहकर्मी (विक्रेता से खरीदार) के मध्य लेन-देन को बढ़ावा देता है। इस अवधारणा को निम्नलिखित प्रकार से बढ़ाया जा सकता है
- विकेंद्रीकरण और पारदर्शिता: वेब 3 विकेंद्रीकृत स्वायत्त संगठन (DAO) पर केंद्रित है।
- DAO सभी व्यावसायिक नियमों से संबंधित है एवं किसी भी लेन-देन में शासी नियम किसी को भी देखने के लिये पारदर्शी रूप से उपलब्ध हैं तथा इन नियमों के अनुरूप सॉफ्टवेयर के द्वारा लिखा जाएगा।
- DAO के साथ प्रमाणित या मान्य करने के लिये केंद्रीय प्राधिकरण की कोई आवश्यकता नहीं है।
आगे की राह:
- वेब 3 अपने शुरुआती चरण में है और इस बात पर कोई सहमति नहीं है कि यह वेब 1.0 या वेब 2.0 की तरह शुरू होगा या नहीं। उद्योग और अकादमिक समुदाय के शीर्ष तकनीकी विशेषज्ञों को इस बात को लेकर संदेह है कि Web 3 उन समस्याओं को हल नहीं करता है जिन्हें हल करने के उद्देश्य से इसे विकसित किया जा रहा है।
- वेब 3 को वर्तमान आर्किटेक्चर से अलग करने की आवश्यकता होगी जहांँ एक फ्रंट-एंड (Front-End) मिडिल लेयर (Middle Layer) और बैक-एंड (Back-End) है।
- Web 3 के आर्किटेक्चर को ब्लॉकचेन को संभालने, ब्लॉक चेन में डेटा को बनाए रखने और इंडेक्स करने, पीयर टू पीयर कम्युनिकेशंस आदि हेतु बैकएंड सॉल्यूशंस की आवश्यकता होगी।
- इसी तरह मिडिल लेयर (Middle Layer), जिसे बिज़नेस रूल्स लेयर (Business Rules Layer) भी कहा जाता है, को ब्लॉकचेन आधारित बैकएंड से संभालने की आवश्यकता होगी।