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सामाजिक न्याय

अल्पसंख्यक संस्थान और आरटीई: एनसीपीसीआर सर्वेक्षण

  • 11 Aug 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग 

मेन्स के लिये:

अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for the Protection of the Rights of the Child-NCPCR) ने अल्पसंख्यक स्कूलों का राष्ट्रव्यापी मूल्यांकन किया। रिपोर्ट का शीर्षक था "अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए के संबंध में अनुच्छेद 15(5) के तहत छूट का प्रभाव"।

  • इसका उद्देश्य यह आकलन करना था कि भारतीय संविधान में 93वाँ संशोधन, जो अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा के अधिकार के अनिवार्य प्रावधानों से छूट देता है, अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को कैसे प्रभावित करता है।
  • रिपोर्ट में अल्पसंख्यक संस्थानों की अनुपातहीन संख्या या अल्पसंख्यक संस्थानों में गैर- अल्पसंख्यक वर्ग के प्रभुत्व पर प्रकाश डाला गया है।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग:

  • NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया है।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।
  • आयोग का अधिदेश (Mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
  • यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे के लिये मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
  • यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [ Protection of Children from Sexual Offences (POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

प्रमुख बिंदु:

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • गैर-अल्पसंख्यकों के लिये अल्पसंख्यक स्कूल केटरिंग (Minority Schools Catering to the Non-Minorities): कुल मिलाकर इन स्कूलों में 62.5% छात्र गैर-अल्पसंख्यक समुदायों के थे।
    • अल्पसंख्यक स्कूलों में केवल 8.76 प्रतिशत छात्र सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि के हैं।
  • अनुपातहीन संख्या: पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक आबादी का 92.47 प्रतिशत मुस्लिम और 2.47% ईसाई हैं। इसके विपरीत 114 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूल हैं और मुस्लिम अल्पसंख्यक दर्जे वाले केवल दो स्कूल हैं।
    • इसी तरह उत्तर प्रदेश में हालाँकि ईसाई आबादी 1% से कम है, राज्य में 197 ईसाई अल्पसंख्यक स्कूल हैं।
    • यह असमानता अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना के मूल उद्देश्य को छीन लेती है।
  • मदरसों में गैर-एकरूपता: इसमें पाया गया कि स्कूल से बाहर जाने वाले बच्चों की सबसे बड़ी संख्या (1.1 करोड़) मुस्लिम समुदाय की थी।
    • रिपोर्ट के मुताबिक देश में तीन तरह के मदरसे हैं:
      • मान्यता प्राप्त मदरसे: ये पंजीकृत हैं और धार्मिक व धर्मनिरपेक्ष शिक्षा दोनों प्रदान करते हैं; 
      • गैर-मान्यता प्राप्त मदरसे: गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या राज्य सरकारों द्वारा पंजीकरण के लिये कम पाया गया है क्योंकि इनमें  धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान नहीं की जाती है।
      • अनमैप्ड मदरसे: अनमैप्ड मदरसों ने कभी पंजीकरण के लिये आवेदन नहीं किया है।
    • NCPCR के अनुसार, सच्चर कमेटी की वर्ष 2005 की रिपोर्ट, जिसमें कहा गया है कि 4% मुस्लिम बच्चे (15.3 लाख) मदरसों में जाते हैं, ने केवल पंजीकृत मदरसों को ध्यान में रखा है।
    • इसके अलावा, मदरसों के पाठ्यक्रम, जिन्हें सदियों पहले विकसित किया गया है, एक समान नहीं हैं और यह अपने आसपास की दुनिया से अनभिज्ञ हैं।
      • कुछ छात्र हीन भावना विकसित कर लेते हैं और बाकी समाज से अलग हो जाते हैं तथा वातावरण के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ होते हैं।
      • इसके अलावा मदरसों में शिक्षक प्रशिक्षण का कोई कार्यक्रम नहीं होता है।

अनुच्छेद 15 (5), 30, 21A का संयोजन 

  • अल्पसंख्यक संस्थान: अल्पसंख्यक संस्थानों को संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अपनी पसंद के अनुसार अपने शिक्षण संस्थानों की स्थापना और प्रशासन करने का मौलिक अधिकार है।
    • हालाँकि वे राज्य द्वारा अनुशंसित नियमों की अनदेखी नहीं कर सकते।
    • इसके अलावा टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन मामले, 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 30 (1) न तो पूर्ण है और न ही कानून से ऊपर है।
    • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (c) के तहत मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी (पारसी) को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है।
  • अनुच्छेद 15 (5) (भारतीय संविधान में 93वाँ संशोधन): यह राज्य को अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को छोड़कर निजी शिक्षण संस्थानों (चाहे राज्य द्वारा सहायता प्राप्त या गैर-सहायता प्राप्त) सहित शैक्षणिक संस्थानों में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिये विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
  • शिक्षा का अधिकार (RTE): अनुच्छेद 21A के तहत शिक्षा के अधिकार को लागू करने हेतु अधिनियम में समाज के वंचित वर्गों के लिये 25% आरक्षण अनिवार्य है, वंचित समूहों में शामिल हैं:
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति
    • सामाजिक रूप से पिछड़ा वर्ग (Socially Backward Class)
    • डिफरेंटली एबल्ड (Differently abled)
  • RTE को दरकिनार (Bypassing) करने हेतु अनुच्छेद 30 का उपयोग करना: अल्पसंख्यक स्कूल RTE अधिनियम के दायरे से बाहर हैं। इसके अलावा वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रमति के फैसले (Pramati Judgment) में पूरे RTE अधिनियम को अल्पसंख्यक स्कूलों के लिये अनुपयुक्त बना दिया।
    • NCPCR के सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि उन स्कूलों और संस्थानों ने इसलिये अल्पसंख्यक संस्थानों के रूप में पंजीकरण कराया है ताकि उन्हें RTE लागू न करना पड़े।

सुझाव:

  • सरकार को मदरसों सहित ऐसे सभी स्कूलों को शिक्षा के अधिकार और सर्व शिक्षा अभियान के दायरे में लाना चाहिये।
  • NCPCR ने ऐसे स्कूलों में अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों के लिये आरक्षण का भी समर्थन किया, क्योंकि इसके सर्वेक्षण में वहाँ पढ़ने वाले गैर-अल्पसंख्यक छात्रों का एक बड़ा हिस्सा पाया गया था।
    • संस्थान में प्रवेश के लिये अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों के न्यूनतम प्रतिशत के संबंध में विशिष्ट दिशा-निर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता है।
  • अल्पसंख्यक संस्थानों के संबंध में RTE के तहत दी गई छूट की समीक्षा करने की आवश्यकता है।
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को सांस्कृतिक, भाषायी और धार्मिक संरक्षण के लिये अपने संस्थान खोलने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
    • हालाँकि RTE को अनुच्छेद 21 (A) का उल्लंघन नहीं करना चाहिये जो बच्चे की शिक्षा के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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