डेली न्यूज़ (17 Apr, 2020)



भूकंपीय ध्वनि में परिवर्तन

प्रीलिम्स के लिये

भूकंपीय ध्वनि

मेन्स के लिये

भूकंपीय ध्वनि में परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे (British Geological Survey-BGS) के वैज्ञानिकों ने कोरोनवायरस (COVID-19) लॉकडाउन के बीच पृथ्वी की भूकंपीय ध्वनि (Earth’s Seismic Noise) और कंपन (Vibrations) में परिवर्तन की सूचना दी है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व बेल्जियम के रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी (Royal Observatory) के भूकंपीय विशेषज्ञों ने भूकंपीय शोर के स्तर में 30-50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की थी।
  • ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, अब दुनिया भर के भूकंपीय विशेषज्ञों ने भूकंपीय ध्वनि और कंपन के स्तर में गिरावट संबंधी अध्ययन शुरू कर दिया है।

भूकंपीय ध्वनि (Seismic Noise) 

  • भू-विज्ञान (Geology) में भूकंपीय ध्वनि को भीड़ के कारण उत्पन्न हुए सतह के अपेक्षाकृत लगातार कंपन को संदर्भित करता है।
  • भूकंपीय ध्वनि (Seismic Noise) भूकंपीय यंत्र द्वारा दर्ज किये गए संकेतों का अवांछित घटक (Unwanted Component) होती है। उल्लेखनीय है कि भूकंपीय यंत्र वह वैज्ञानिक उपकरण है जो ज़मीनी गति जैसे- भूकंप, ज्वालामुखी प्रस्फुटन और विस्फोट आदि को रिकॉर्ड करता है।
  • भूकंपीय ध्वनि में मानव गतिविधियों जैसे परिवहन और विनिर्माण के कारण उत्पन्न होने वाला कंपन शामिल होता है,, और यह ध्वनि वैज्ञानिकों के लिये मूल्यवान भूकंपीय डेटा के अध्ययन को अपेक्षाकृत मुश्किल बनाती है।
  • भू-विज्ञान के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों जैसे कि तेल अन्वेषण, जलविज्ञान और भूकंप इंजीनियरिंग में भी भूकंपीय ध्वनि का अध्ययन किया जाता है।

भूकंपीय ध्वनि में कमी के कारण?

  • बेल्जियम के रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी (Royal Observatory) द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, कोरोनोवायरस (COVID-19) महामारी से निपटने के लिये दुनिया भर में लॉकडाउन के उपायों को लागू किये जाने के कारण पृथ्वी की भूकंपीय ध्वनि में कमी आई है।
  • रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी के अनुसार, भूकंप मापी यंत्रों का प्रयोग कर भूकंप से होने वाले सतह के कंपन को मापा जाता है। यह यंत्र अपेक्षाकृत काफी संवेदनशील होते हैं, जिसके कारण यह कंपन के अन्य स्रोतों मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न होने वाली ध्वनियों जैसे- सड़क यातायात, मशीनरी और यहाँ तक ​​कि लोगों के चलने की ध्वनि को भी मापता है। 
    • ये सभी गतिविधियाँ कंपन उत्पन्न करती हैं जो पृथ्वी के माध्यम से भूकंपीय तरंगों के रूप में फैलती हैं।
  • रॉयल ऑब्ज़र्वेटरी के वैज्ञानिकों ने UK स्थित भूकंपीय स्टेशनों पर लॉकडाउन की शुरुआत से दो सप्ताह की अवधि में दिन के औसत ध्वनि स्तर की तुलना वर्ष की शुरुआत के औसत ध्वनि स्तर से की, जिससे यह ज्ञात हुआ कि लगभग सभी भूकंपीय स्टेशनों पर उक्त अवधि के दौरान भूकंपीय ध्वनि में औसतन 10-15 प्रतिशत की कमी आई है।

भूकंपीय ध्वनि में कमी का महत्त्व

  • मानव गतिविधि के कारण उत्पन्न होने वाली भूकंपीय ध्वनि उच्च आवृत्ति (1-100 हर्ट्ज़ के मध्य) की होती हैं और यह पृथ्वी की सतही परतों के माध्यम से यात्रा करती हैं।
  • आमतौर पर, भूकंपीय गतिविधि को सही ढंग से मापने और भूकंपीय ध्वनि के प्रभाव को कम करने के लिए, भू-वैज्ञानिक अपने यंत्रों को पृथ्वी की सतह से 100 मीटर नीचे रखते हैं।
  • हालाँकि लॉकडाउन के पश्चात् से भूकंपीय ध्वनि में कमी आई है और वैज्ञानिक पृथ्वी की सतह पर से भी भूकंपीय गतिविधियों को मापने में सक्षम हैं।
  • कम भूकंपीय ध्वनि के कारण कम शोर के स्तर के कारण वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि वे अब अपने उपकरणों के माध्यम से उन छोटे भूकंपों का भी पता लगा सकेंगे जिनके बारे में अब तक मौजूदा उपकरणों के माध्यम से जानना संभव नहीं था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंध्र प्रदेश राज्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने पर विवाद

प्रीलिम्स के लिये:

राज्य निर्वाचन आयुक्त, अपर्मिता प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश (2007) मामला

मेन्स के लिये:

राज्य निर्वाचन आयुक्त की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा एक अध्यादेश के माध्यम से 'राज्य निर्वाचन आयुक्त' (State Election Commissioner- SEC) के कार्यकाल में कटौती की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • अध्यादेश जिसके माध्यम से मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया है, जिसे पूर्व SEC ने असंवैधानिक घोषित करने के लिये उच्च न्यायालय में अपील की है।
  • जबकि मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया SEC सरकार से सलाह लिये बिना कार्य कर रहे थे तथा कुछ राजनीतिक नेताओं के इशारे पर काम कर रहे हैं।

अध्यादेश के माध्यम से बदलाव: 

  • अध्यादेश के माध्यम से पंचायत राज अधिनियम, 1994 (Panchayat Raj Act, 1994) में संशोधन के माध्यम से SEC का कार्यकाल तीन वर्ष तक सीमित कर दिया गया।
  • साथ ही अध्यादेश में उल्लेख किया गया है कि SEC को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के आधार एवं प्रक्रिया के अलावा किसी अन्य आधार पर नहीं हटाया जा सकेगा।

क्या था विवाद?

  • आंध्र प्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले थे लेकिन SEC ने COVID- 19 महामारी के प्रकोप का हवाला देते हुए चुनाव स्थगित कर दिये। 
  • इसके बाद राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में मामले को ले जाना चाहा लेकिन अदालत ने इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।

अपर्मिता प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश (2007) मामला: 

  • अपर्मिता प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश (2007) वाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि सेवा का कार्यकाल भी सेवा शर्तों का एक हिस्सा है। राज्य चुनाव आयोग सेवा कार्यकाल की सुरक्षा नहीं होने की स्थिति में अपने संवैधानिक दायित्त्वों का निर्वहन करने में सक्षम नहीं होगा।
  • SEC के कार्यकाल को कम करने का संशोधन संविधान की सीमओं का अतिक्रमण है।

आगे की राह:

  • ‘अपर्मिता प्रसाद सिंह बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश’ (2007) मामला, इस विवाद में मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। 

राज्य निर्वाचन आयोग

(State Election Commission- SEC):

  • भारत के संविधान में अनुच्छेद 243K तथा 243ZA में SEC संबंधी प्रावधान किये गए हैं।
  • SEC का गठन 73वें तथा 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 (Constitution Amendments Act, 1992) के तहत किया गया था।
  • SEC भारत के निर्वाचन आयोग से स्वतंत्र इकाई है।

 कार्य:

  • SEC का गठन प्रत्येक राज्य/संघशासित क्षेत्र के निगम, नगरपालिकाओं, ज़िला परिषदों, ज़िला पंचायतों, पंचायत समितियों, ग्राम पंचायतों तथा अन्य स्थानीय निकायों के चुनावों के संचालन के लिये किया गया है। 
  • अनुच्छेद 243K के अनुसार पंचायतों के चुनाव तथा निर्वाचन नामावली तैयार करने के दौरान अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के कार्य राज्य चुनाव आयोग में निहित होंगे।

विधानमंडल की भूमिका:

  • संविधान के प्रावधानों के अधीन राज्य का विधानमंडल कानून निर्माण करके पंचायतों के चुनाव या उससे संबंधित सभी मामलों के संबंध में प्रावधान कर सकता है। 

राज्यपाल की भूमिका:

  • राज्य निर्वाचन आयोग में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होता है जिसे राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • राज्य के विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन, राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद की अवधि तथा सेवा की शर्तें ऐसी होंगी जैसे कि राज्यपाल निर्धारित करता है। 
  • राज्य का राज्यपाल, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा अनुरोध करने पर ऐसे कर्मचारी उपलब्ध कराएगा, जो खंड (1) द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा प्रदत्त कार्यों के निर्वहन के लिये आवश्यक हो सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले गैर-लाभकारी संस्थानों पर सख्ती

प्रीलिम्स के लिये

गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम

मेन्स के लिये 

विदेशी अंशदान के दुरुपयोग पर नियंत्रण, COVID-19 से निपटने में गैर-लाभकारी संस्थानों की भूमिका   

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश में ‘विदेशी अंशदान लाइसेंस’ (Foreign Contribution Licence) वाले सभी गैर-लाभकारी संस्थानों (Nonprofit Organisations) को COVID-19 से निपटने में उनके योगदान की जानकारी प्रति माह सरकार के साथ साझा करने को कहा है।

मुख्य बिंदु:  

  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 7 अप्रैल, 2020 को दी गई जानकारी के अनुसार, देश में ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’ (Foreign Contribution Regulation Act- FCRA), 2010 के तहत विदेशी अंशदान प्राप्त करने वाले गैर-लाभकारी संस्थानों को हर महीने की 15 तारीख तक एक ऑनलाइन फॉर्म के माध्यम से COVID-19 से निपटने में उनके योगदान की जानकारी सरकार के साथ साझा करनी होगी।
  • केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश में कार्य कर रहे गैर-लाभकारी संस्थानों को COVID-19 के नियंत्रण के संबंध में भेजा गया यह दूसरा पत्र था।
  • इससे पहले भेजे गए पत्र में MHA ने गैर-लाभकारी संस्थानों से COVID-19 के नियंत्रण में सरकार और स्थानीय प्रशासन का सहयोग करने का आग्रह किया था।
  • इस पत्र में MHA ऐसे कई क्षेत्रों का उल्लेख किया था जिनमें गैर-लाभकारी संस्थान अपना सहयोग दे सकते हैं, जैसे- प्रवासी मज़दूरों और बेघर लोगों के लिये सामुदायिक रसोई की स्थापना, बेघर दिहाड़ी मज़दूरों और गरीबों के लिये आश्रय का प्रबंध करना आदि। 
  • ध्यातव्य है कि सरकार की तरफ से गैर-लाभकारी संस्थान से सहयोग के आग्रह के पहले हाल ही सरकार ने सामाजिक क्षेत्र में कार्यरत संस्थानों पर कठोर कार्यवाही की थी। साथ ही पिछले कुछ वर्षों में गैर-लाभकारी संस्थानों को विदेशों से प्राप्त होने वाले अंशदान में भारी गिरावट देखी गई है।    

गैर-लाभकारी संस्थानों पर सरकार की कार्रवाई: 

  • पिछले पाँच वर्षों में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा देश में  लगभग 14500 NGOs का पंजीकरण रद्द कर दिया गया है।     
  • साथ पिछले तीन वर्षों में FCRA के प्रावधानों का उल्लंघन करने के कारण 6600 से अधिक गैर-लाभकारी संस्थाओं के विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है।  
  • पिछले वर्ष संसद के शीतकालीन सत्र में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री द्वारा राज्यसभा को दी गई जानकारी के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान FCRA के तहत पंजीकृत NGOs को कुल 2244.77 करोड़ रुपए (28 नवंबर तक) विदेशी योगदान के रूप में प्राप्त हुआ जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 में NGOs  को प्राप्त कुल अंशदान 16,902.41 करोड़ रुपए था। 

गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान: 

  • गैर-लाभकारी या गैर-सरकारी संस्थान को सामान्यतः एनजीओ (NGO) के नाम से जाना जाता है। NGO ऐसे संगठन होते है जो न तो सरकार का हिस्सा होते हैं और न ही वे अन्य व्यावसायिक संस्थानों की तरह लाभ के उद्देश्य से कार्य करते हैं। 
  • ये संस्थान धर्मार्थ कार्यों के तहत शिक्षा, चिकित्सा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
  • भारत में ‘धार्मिक विन्यास अधिनियम, 1863’, सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882’ आदि के तहत NGOs का पंजीकरण किया जाता है। 
  • NGOs को विदेशी अंशदान प्राप्त करने के लिये ‘विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम’, 2010 के तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय में पंजीकरण कराना अनिवार्य होता है।
  • विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन नियम, 2012 के अनुसार, FCRA के तहत पंजीकरण के बगैर NGO 25,000 से अधिक आर्थिक सहायता या कोई अन्य विदेशी अंशदान नहीं स्वीकार कर सकते।          

विदेशी अंशदान/योगदान:  

  • FCRA, 2010 के तहत किसी व्यक्ति द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से किसी विदेशी स्रोत से उपहार के रूप में प्राप्त कोई वस्तु, मुद्रा या प्रतिभूतियों को विदेशी अंशदान के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • हालाँकि भारतीय नागरिकता धारक अनिवासी भारतीयों ('Non-resident Indians- NRI) द्वारा प्राप्त अंशदान को विदेशी अंशदान नहीं माना गया है।   

आगे की राह: 

  • गृह मंत्रालय के आदेश के बाद गैर-लाभकारी संस्थान को COVID-19 से निपटने के लिये प्राप्त होने वाले विदेशी अंशदानों की बेहतर निगरानी सुनिश्चित की जा सकेगी परंतु  इससे इन संस्थाओं पर अनावश्यक दबाव बढ़ सकता है।
  • वर्तमान में भारत जैसे विशाल देश में सरकार के लिये सुदूर क्षेत्रों तक COVID-19 के नियंत्रण हेतु आवश्यक सहायता उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है, ऐसे में  गैर-लाभकारी संस्थान इस बीमारी से लड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • सरकार के द्वारा स्थानीय स्तर पर मूलभूत सुविधाओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये NGOs और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर कार्य करने से इस बीमारी के दुष्प्रभावों को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।     

स्रोत: द हिंदू


मानवाधिकार और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

प्रीलिम्स के लिये 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

मेन्स के लिये

मानवाधिकारों के संरक्षण में NHRC की भूमिका

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) ने केंद्र सरकार से सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक एडवाइज़री जारी करने को कहा है ताकि आम जनता के मानवाधिकारों का उल्लंघन किये बिना देशव्यापी लॉकडाउन को सही ढंग से लागू किया जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • इससे पूर्व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने गृह मंत्रालय से कोरोनोवायरस (COVID-19) के प्रसार को रोकने के लिये लागू किये लॉकडाउन के दौरान मानसिक रूप से बीमार लोगों की चिंताओं को संबोधित करने को भी कहा था।
    • ध्यातव्य है कि लॉकडाउन दिशा-निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये तनाव और दबाव का सामना कर रहे लोकसेवक कभी-कभी आम लोगों विशेष रूप से बीमार और गरीब मज़दूरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं जिसके कारण उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • एडवाइज़री के माध्यम से NHRC यह सुनिश्चित करना चाहता है कि लोक सेवक, विशेष रूप से पुलिसकर्मी आम लोगों के साथ सही ढंग से व्यवहार करें और उनके जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा से संबंधित मानवाधिकारों का सम्मान करें।
  • NHRC के अनुसार, गृह मंत्रालय को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवश्यक निर्देश जारी करने चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके अधिकार क्षेत्र में आने वाले किसी भी मानसिक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की देखभाल और वायरस से उनकी सुरक्षा के लिये आवश्यक सावधानियों के लिये उचित परामर्श प्रदान किया सके तथा वे भोजन, आश्रय और चिकित्सा देखभाल आदि जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित न रह जाएँ।

मानवाधिकार और NHRC की भूमिका

  • मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और काम एवं शिक्षा का अधिकार, आदि शामिल हैं। ध्यातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र (United Nations-UN) की परिभाषा के अनुसार मानवधिकार जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त हैं।
    • इस प्रकार कोई भी व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के इन अधिकारों को प्राप्त करने का हकदार होता है।
  • भारत में इस अधिकारों की रक्षा का कार्य राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा किया जाता है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC) एक स्वतंत्र वैधानिक संस्था है, जिसकी स्थापना मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के तहत 12 अक्तूबर, 1993 को की गई थी।
  • NHRC एक बहु-सदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष, चार पूर्ण कालिक सदस्य तथा चार मानद सदस्य होते हैं। अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली उच्चस्तरीय कमेटी की सिफारिशों के आधार पर की जाती है।
    • इसके अतिरिक्त आयोग में पाँच विशिष्ट विभाग (विधि विभाग, जाँच विभाग, नीति अनुसंधान और कार्यक्रम विभाग, प्रशिक्षण विभाग और प्रशासन विभाग) भी होते हैं।

मानवाधिकार और भारतीय संविधान

  • विशेषज्ञों के अनुसार, व्यक्ति के समग्र विकास के लिये मानवाधिकार आवश्यक होते हैं। 
  • भारतीय संविधान में भी भारतीय नागरिकों और विदेशी नागरिकों के लिये मौलिक अधिकारों के रूप में मानवाधिकारों से संबंधित प्रावधान किये गए हैं।
  • 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ भारतीय संविधान अब तक के सबसे विस्तृत मौलिक संविधानों में से एक है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है।
  • भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में मानवाधिकारों जैसे - जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि का उल्लेख किया गया है।

NHRC के कार्य और शक्तियाँ 

  • मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित कोई मामला यदि NHRC के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो NHRC को उसकी जाँच करने का अधिकार है।
  • इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमे सुधार के लिये सुझाव दे सकता है।
  • NHRC संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिये प्रदान किये गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश भी कर सकता है।
  • NHRC मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य भी करता है।
  • NHRC प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य माध्यमों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच  मानवाधिकारों से जुड़ी जानकारी का प्रचार करता है और लोगों को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्राप्त उपायों के प्रति भी जागरूक करता है।
  • NHRC के पास सिविल न्यायालय की शक्तियाँ हैं और यह अंतरिम राहत भी प्रदान कर सकता है।

आगे की राह

  • मौजूदा समय में संपूर्ण विश्व कोरोनावायरस महामारी का सामना कर रहा है, नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, संपूर्ण विश्व में तकरीबन 21 लाख लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और इसके कारण लगभग 147000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है।
  • हालाँकि यह आवश्यक है कि ऐसी मुसीबत की घड़ी में हम मानवाधिकार जैसे महत्त्वपूर्ण विषय को नज़रअंदाज़ न करें, आवश्यक है कि नीति निर्माता राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आग्रह पर विचार करें और विभिन्न उपायों के माध्यम से मानवाधिकार के उल्लंघन के मुद्दे को संबोधित किया जाए।
  • नेल्सन मंडेला के शब्दों में कहें तो “लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।” 

स्रोत: द हिंदू


कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर

प्रीलिम्स के लिये

धातु जल प्रदूषण, कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर 

मेन्स के लिये

जल प्रदूषण के नियंत्रण में तकनीकी का प्रयोग, जल में विषाक्त धातुओं की उपस्थिति के दुष्प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के कुछ शोधकर्त्ताओं नें जल में उपस्थित भारी धातु आयनों (Heavy Metal Ions) की पहचान के लिये एक ‘कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर’ (Compact Solid-State Sensor) के विकास में सफलता प्राप्त की है।  

मुख्य बिंदु:

  • कर्नाटक के बंगलुरू में स्थित ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ (Centre for Nano and Soft Matter Sciences- CeNS) में शोधकर्त्ताओं की एक टीम ने  एक ‘कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर’ के विकास में सफलता प्राप्त की है, जिससे जल में उपस्थित भारी धातु आयनों जैसे- लेड (Lead) आयन (Pb2+) की पहचान की जा सकती है। 
  • अध्ययन के दौरान देखा गया कि इस सेंसर के माध्यम से बहुत ही आसानी से जल में उपस्थित भारी धातु आयनों की पहचान की जा सकती है, हालाँकि शोधकर्त्ताओं की टीम इस सेंसर की चयनात्मकता (Selectivity) में और अधिक सुधार का प्रयास कर रही है।

‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’

(Centre for Nano and Soft Matter Sciences- CeNS): 

  • ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology- DST) के तहत एक स्वायत्त शोध संस्थान है। 
  • यह संस्थान कर्नाटक की राजधानी बंगलुरू में स्थित है। 
  • इसकी स्थापना वर्ष 1991 में प्रख्यात तरल क्रिस्टल वैज्ञानिक ‘प्रो. एस. चंद्रशेखर’ के द्वारा कर्नाटक में ‘सेंटर फॉर लिक्विड क्रिस्टल रिसर्च’ (Centre for Liquid Crystal Research) नामक वैज्ञानिक संस्था के रूप में की गई थी।  
  • वर्ष 2014 में इसके कार्य क्षेत्र में वृद्धि की गई तथा इसका नाम बदलकर ‘नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र’ कर दिया गया था।   
  • इस संस्थान के शोध क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की धातु, सेमीकंडक्टर नैनोस्ट्रक्चर (semiconductor nanostructures), तरल क्रिस्टल, जैल, झिल्लियाँ (Membranes) और हाइब्रिड मैटेरियल (Hybrid Material) आदि प्रमुख हैं।  

कॉम्पैक्ट सॉलिड स्टेट सेंसर:

  • इस सेंसर में लगी झिल्ली (Film) को एक ग्लास सबस्ट्रेट (Substrate) पर बने मैंगनीज़ डोप्ड ज़िंक सल्फाइड क्वांटम डॉट्स (Manganese Doped Zinc Sulfide Quantum Dots) और रिड्यूस्ड ग्राफीन ऑक्साइड (Reduced Graphene Oxide- RGO) के कंपोज़िट पदार्थ के माध्यम से तैयार किया गया है।
  • ये क्वांटम डॉट्स जल में घुलनशील हैं और उच्च फोटोल्युमिनिसेंस (~30%) क्वांटम दक्षता होने के कारण यह ल्युमिनिसेंस आधारित सेंसिंग के लिये सबसे उपयुक्त हैं।
  • जैसे ही भारी धातु आयनों (पारा, सीसा, कैडमियम आदि) से युक्त जल सेंसर में लगी कंपोज़िट फिल्म के संपर्क में आते हैं, फिल्म से होने वाला उत्सर्जन कुछ ही सेकेंड में बुझ जाता है जिससे जल में भारी धातु आयनों की उपस्थिति की पुष्टि होती है।   

लाभ: 

  • इस सेंसर में प्रयुक्त क्वांटम डॉट्स को हाथ में पकड़ी जा सकने वाली छोटी अल्ट्रावायलेट लाइट (254nm) के माध्यम से भी उत्तेजित/सक्रिय किया जा सकता है, जिसके कारण सुदूर क्षेत्रों में भी आसानी से इसका प्रयोग किया जा सकता है।
  • यह सेंसर जल में उपस्थित भारी धातु आयनों के सूक्ष्मतम कणों {0.4 पार्ट्स प्रति बिलियन (Parts Per Billion- ppb) तक } की पहचान करने में सक्षम है।
  • जल में उपस्थित भारी आयनों की उपस्थिति से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान को देखते हुए लंबे समय से कुशल और आसानी से प्रयोग किये जा सकने वाले परीक्षण उपकरण की आवश्यकता बनी हुई थी ऐसे में इस उपकरण की सहायता से दूरस्थ क्षेत्रों में जल प्रदूषण की पहचान कर इसके निवारण के लिये आवश्यक कदम उठाए जा सकेंगे।   

जल में भारी धातु आयनों की उपस्थिति के नुकसान: 

  • जल में एक निश्चित मात्रा से अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति के स्वास्थ्य पर कई हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं, क्योंकि ये बड़ी आसानी से शरीर में जमा हो जाते हैं और इन्हें किसी रासायनिक या जैविक प्रक्रिया से निकालना बहुत कठिन होता है। 
  • मानव शरीर में अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकती है, साथ ही इसके कारण रक्त की संरचना में परिवर्तन, फेफड़े, गुर्दे, यकृत और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान हो सकता है। 
  • लंबे समय तक कुछ विशेष भारी धातुओं या उनके यौगिकों के संपर्क में रहने से कैंसर जैसी बीमारियाँ भी हो सकती है।    
  • साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे- नदियों, झीलों में अधिक भारी धातु आयनों की उपस्थिति वन्य जीवों और प्रजातीय विविधता को क्षति हो सकती है।    

भारी धातु आयन प्रदूषण के मुख्य स्रोत: 

  • अगस्त 2019 में ‘केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय’ (Ministry of Jal Shakti) द्वारा जारी ‘स्टेटस ऑफ ट्रेस एंड टाॅक्सिक मेटल्स इन इंडियन रिवर्स’ (Status of Trace and Toxic Metals in Indian Rivers) के अनुसार, भारतीय नदियों में धातु प्रदूषण के कुछ प्रमुख स्रोत खनन,चरम शोधन, उर्वरक, कागज, बैटरी, विद्युत लेपन आदि से जुड़ी औद्योगिक इकाइयाँ हैं। 
  • औद्योगिक केंद्रों से होने वाला उत्सर्जन, नदियों या प्राकृतिक जल स्रोतों में औद्योगिक केंद्रों से छोड़ा जाने वाला हानिकारक दूषित जल और अपशिष्ट पदार्थ प्रदूषण में वृद्धि का एक बड़ा कारण हैं।
  • इसके अतिरिक्त घरों से निकलने वाला गंदा पानी, कृषि उर्वरकों से होने वाला प्रदूषण, कचरे के बड़े ढेर से होने वाला रिसाव और वाहनों से होने वाला उत्सर्जन भी बड़ी मात्रा में प्रदूषण में वृद्धि करता है।      

आगे की राह:

  • औद्योगिक इकाईयों से निकलने वाले अपशिष्ट को नदियों में छोड़ने से पहले उनका रासायनिक और जैविक परिशोधन किया जाना चाहिये।
  • जल प्रदूषण से संबंधित कुशल और कड़े कानूनों तथा नियमों को लागू कर उनके अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये। 
  • औद्योगिक केंद्रों और कृषि से होने वाले प्रदूषण तथा नदियों में हानिकारक प्रदूषण स्तर की नियमित निगरानी की जानी चाहिये।

स्रोत: पीआईबी


COVID- 19 महामारी के कारण रुपए के मूल्य में गिरावट

प्रीलिम्स के लिये:

विदेशी विनिमय दर, यू. एस डॉलर इंडेक्स, मूल्य ह्रास तथा मूल्य वृद्धि, विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक 

मेन्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक का विनिमय दर में हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 महामारी के चलते भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 43 पैसे की गिरावट के साथ 76.87 रुपए के मूल्य स्तर पर आ गया।

मुख्य बिंदु:

  • रुपए के मूल्य स्तर में यह गिरावट इसलिये आई है क्योंकि निवेशक जोखिमपूर्ण बाज़ारों से अपना निवेश निकालकर सुरक्षित देशों में ले जा रहे हैं।
  • घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID- 19 महामारी के प्रभावों के कारण निवेशकों की चिंता लगातार बढ़ रही हैं।
  • हालाँकि ‘यू. एस. डॉलर सूचकांक’ (U.S. Dollar Index- USDX) का मूल्य 0.3% बढ़कर 99.19 स्तर पर पहुँच गया।

यू. एस. डॉलर सूचकांक (U.S. Dollar Index- USDX):

  • USDX सूचकांक में विदेशी मुद्राओं के एक समूह या बास्केट के आधार पर अमेरिकी डॉलर का मूल्य निर्धारित किया जाता है।
  • इस सूचकांक की गणना वर्तमान में विश्व की छह प्रमुख मुद्राओं की विनिमय दरों के आधार पर की जाती है, जिसमें यूरो, जापानी येन, कनाडाई डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोन तथा स्विस फ्रैंक शामिल है।

USDX

विदेशी विनिमय दर:

  • विदेशी विनिमय दर, एक मुद्रा की दूसरी मुद्रा में कीमत है। यह विभिन्न देशों की मुद्राओं के बीच कड़ी है और अंतर्राष्ट्रीय लागतों और कीमतों की तुलना करने में सहायक है। उदाहरण के लिये, यदि हमें एक डाॅलर के लिये 55 रुपए देने पड़ते हैं तो विनिमय की दर 55 रुपए प्रति डाॅलर होगी।

विनिमय दर का निर्धारण:

  • अलग-अलग देशों की, मुद्रा विनिमय दर का निर्धारण करने की अलग-अलग प्रणालियाँ हैं। इसको ‘लचीली विनिमय दर’ (Floating Exchange Rate), ‘स्थिर विनिमय दर’ अथवा ‘प्रतिबंधित लचीली विनिमय’ दर के द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।

मूल्य ह्रास तथा मूल्य वृद्धि:

  • विनिमय दर में वृद्धि का तात्पर्य है कि विदेशी मुद्रा डाॅलर की कीमत, घरेलू मुद्रा (रुपए) के रूप में बढ़ गई है। इसे घरेलू मुद्रा (रुपए) का विदेशी मुद्रा (डॉलर) के रूप में 'मूल्य ह्रास' कहते हैं। लचीली विनिमय दर व्यवस्था के अंर्तगत, जब घरेलू मुद्रा की कीमत, विदेशी मुद्रा के रूप में बढ़ जाती है तो इसे घरेलू मुद्रा की, विदेशी मुद्रा के सापेक्ष ‘मूल्य वृद्धि' कहते हैं।

विनिमय दर को प्रभावित करने वाले कारक: 

  • आयात और निर्यात:
    • विदेशी वस्तुओं और सेवाओं की मांग में वृद्धि तथा कमी, विनिमय की दर में बदलाव लाती है। यदि मांग में वृद्धि हो तो घरेलू मुद्रा में मूल्य ह्रास तथा मांग  में कमी हो तो मूल्य वृद्धि देखी जाती है। 
  • मांग  तथा आपूर्ति:
    • यह विनिमय दर, बाजार मांग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। 
  • सट्टेबाजी (Speculation):
    • विनिमय दर केवल निर्यात और आयात की मांग  एवं पूर्ति तथा परिसंपत्तियों में निवेश पर ही निर्भर नहीं करती है बल्कि विदेशी विनिमय के सट्टेबाजी पर भी निर्भर करती है, जहाँ विदेशी विनिमय की मांग  मुद्रा की मूल्य वृद्धि से प्राप्त संभावित लाभ के लिये की जाती है।
    •  किसी भी देश की मुद्रा एक प्रकार की परिसंपत्ति है। यदि भारतीयों को यह विश्वास हो कि ब्रिटिश पौंड के मूल्य में रुपए की अपेक्षा वृद्धि होने की संभावना है, तो वे पौंड को अपने पास रखना चाहेंगे तथा इससे पौंड की मांग  बढ़ेगी।
  • ब्याज की दरें और विनिमय दरः
    • अल्पकाल में विनिमय दर के निर्धारण में एक दूसरा कारक भी महत्त्वपूर्ण होता है, जिसे ब्याज दर विभेदक कहते हैं। अर्थात देशों के बीच ब्याज की दरों में अंतर होता है। 
    • बैंक, बहुराष्ट्रीय निगम और धनी व्यक्ति, विशाल निधि के स्वामी होते हैं। जो अधिक आय प्राप्त करने के लिये ऊँची ब्याज दर की खोज में रहते हैं। निवेशकर्त्ता उच्च ब्याज दर की ओर आकर्षित होते हैं और अपने देश की मुद्रा को बेचकर अन्य देश की मुद्रा का क्रय करते हैं। 
    • इस स्थिति में देश की मुद्रा की कम मांग होगी तथा इससे घरेलू देश की मुद्रा के मूल्य में ह्रास होगा। अतः किसी देश की आंतरिक ब्याज दर में वृद्धि होने पर घरेलू मुद्रा के मूल्य में वृद्धि होगी।
  • आय और विनिमय दरः
    • जब आय में वृद्धि होती है, तो उपभोक्ता के व्यय में भी वृद्धि होती है तथा इससे आयातित वस्तुओं पर व्यय में भी वृद्धि की संभावना होती है। 
    • जब आयात बढ़ता है तो इससे घरेलू मुद्रा के मूल्य में ह्रास होता है। यदि विदेशी आय में वृद्धि होती है तो घरेलू निर्यात में वृद्धि होगी।

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) का हस्तक्षेप:

  • RBI मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करता है ताकि कमजोर होते रुपए तथा देश के आयात बिल को संतुलित कर सके। 
  • ऐसे कई तरीके हैं जिनके द्वारा RBI हस्तक्षेप करता है: 
    •  यह डॉलर की खरीद तथा बिक्री के माध्यम से सीधे मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कर सकता है। अगर RBI रुपए के मूल्य को बढ़ाना चाहता है, तो वह डॉलर बिक्री कर सकता है और जब रुपए के मूल्य को नीचे लाने की आवश्यकता होती है, तो वह डॉलर खरीद सकता है। 
    • केंद्रीय बैंक 'मौद्रिक नीति' (Monetary Policy) के माध्यम से रुपए के मूल्य को भी प्रभावित कर सकता है। RBI रेपो दर (जिस दर पर RBI बैंकों को उधार देता है) तथा 'तरलता अनुपात' उपायों का उपयोग कर मूल्य स्तर को समायोजित करता है।

निष्कर्ष: 

  • वस्तुतः देखा जाए तो केवल रुपए का कमज़ोर होना चिंता की बात नहीं है। रुपए में कमज़ोरी आना तक आर्थिक विकास को प्रभावित करता है जब रुपए के कमज़ोर होने के साथ-साथ चालू खाता घाटा, मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटा आदि नियंत्रण में न रहें।
  • क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज़ के अनुसार, भारत की ऋणों के लिये विदेशी मुद्रा उधार पर कम निर्भरता अवमूल्यन के जोखिम को कम कर देती है। भारत का व्यापक घरेलू बाज़ार और स्थिर वित्तपोषण इसे बाहरी अस्थिरताओं से बचाने का कार्य करता है।

स्रोत: द हिंदू


नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक और COVID-19

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, नागरिक सुरक्षा 

मेन्स के लिये:

आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने हेतु नागरिक सुरक्षा से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों:

लद्दाख, दमन और दीव तथा पुदुचेरी को छोड़कर सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने COVID-19 से निपटने हेतु 50,000 से अधिक नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों को तैनात किया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • राजस्थान, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उत्तराखंड और असम में सबसे ज्यादा नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों को तैनात किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि वर्तमान में ज़िलाधिकारी के अधीन तैनात ये नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक (Civil Defence Volunteers) COVID-19 के दिशा-निर्देशों और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु स्थानीय प्रशासन की मदद कर रहे हैं। 
  • स्वयंसेवक ब्लॉक स्तर तक सरकार की नीतियों, सुविधाओं और सेवाओं का विस्तार कर रहे हैं। 

स्वयंसेवकों का योगदान:

  • प्रवासी श्रमिकों/अन्य व्यक्तियों के लिये सामुदायिक रसोई (Community Kitchens) और आश्रयों की स्थापना करना।
  • व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (Personal Protection Equipment- PPE), मास्क, सैनिटाइज़र का वितरण करना।
  • स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की मदद तथा सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) और स्वच्छता संबंधी मुद्दे के बारे में लोगों को जागरूक करना।
  • राशन वितरण, दवा, चिकित्सा उपकरण इत्यादि की आपूर्ति में मदद करना।
  • COVID-19 से संक्रमित लोगों की पहचान कर उन्हें एकांत में रखना।

नागरिक सुरक्षा (Civil Defence) के बारे में:

  • नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक ‘नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968’ और संबंधित नियमों और विनियमों के तहत कार्य करते हैं। 
    • नागरिक सुरक्षा का कार्य आपातकालीन परिस्थितियों से तत्काल निपटना, जनता की रक्षा करना, आपदा से नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए सेवाओं और सुविधाओं को बहाल करना इत्यादि है।
  • नागरिक सुरक्षा (संशोधन) अधिनियम, 2009 के द्वारा ‘नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों’ को अतिरिक्त भूमिका के रूप में आपदा प्रबंधन के तहत शामिल किया गया था। 
  • नागरिक सुरक्षा अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत राज्य सरकार स्थानीय प्रशासन की मदद करने हेतु नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवकों से कार्य ले सकती है।
    • नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक ज़िला मजिस्ट्रेट/ज़िला कलेक्टर या उपायुक्त के अधीन कार्य करते हैं।
  • उद्देश्य:
    • लोगों की रक्षा करना, आपदा के दौरान संपत्ति को नुकसान होने से बचाना, उत्पादन की निरंतरता बनाए रखना, लोगों का मनोबल ऊँचा रखना इत्यादि।
    • युद्ध और आपातकालीन स्थितियों के दौरान आतंरिक क्षेत्रों की रक्षा करना, सशस्त्र बलों की सहायता करना, नागरिकों को लामबंद करना और प्रशासन की मदद करना।
    • परमाणु हथियार, जैविक और रासायनिक युद्ध तथा प्राकृतिक/मानव निर्मित आपदाओं के दौरान लोगों की रक्षा करना।
  • केंद्र द्वारा दी जाने वाली वित्तीय सहायता: 
    • केंद्र सरकार द्वारा नागरिक सुरक्षा (Civil Defence) हेतु उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम को छोड़कर) के लिये कुल वार्षिक व्यय का 50% तथा अन्य राज्यों (असम को शामिल करते हुए) को कुल वार्षिक व्यय की 25% आर्थिक सहायता दी जाती है।

स्रोत: द हिंदू


वर्ष 2020-21में रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य

प्रीलिम्स के लिये:

प्रमुख फसलों की उत्पादकता 

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा

चर्चा में क्यों?

इस वर्ष ‘सामान्य मानसून’ के पूर्वानुमान के बाद, ‘कृषि मंत्रालय’  (Agriculture Ministry) ने वर्ष 2020-21 के लिये 298 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।

मुख्य बिंदु:

  • वर्ष 2020-21 के लिये खाद्यान उत्पादन का लक्ष्य वर्ष 2019-20 में अनुमानित उत्पादन लक्ष्य से लगभग 2% अधिक है।
  • केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि सरकार मानसून-पूर्व और मानसून (जून-सितंबर) की अवधि के दौरान फसलों की बुवाई के संचालन को सुनिश्चित करने के लिये सभी आवश्यक उपाय कर रही है। 

प्रमुख उत्पादन लक्ष्य:

  • धान (चावल) और गेहूँ के उत्पादन का लक्ष्य वर्ष 2019-20 में उनके अनुमानित उत्पादन के स्तर पर ही रखा है। लेकिन दालों एवं मोटे अनाजों का उत्पादन लक्ष्य, अधिक रखा गया है। 
  • उम्मीद की गई है कि वर्ष 2020-21 में दालों एवं मोटे अनाजों के उत्पादन में वृद्धि होने से खाद्यान्न उत्पादन में भारत नवीन रिकॉर्ड को प्राप्त कर सकता है।
  • खाद्यान्न की टोकरी (धान, गेहूँ, मोटे अनाज और दालों) के उत्पादन के लिये लक्ष्य निर्धारित करने के अलावा तिलहन के लिये वर्ष 2020-21 में लगभग 37 मिलियन टन से अधिक का लक्ष्य रखा है जो वर्ष 2019-20 के अनुमानित उत्पादन लक्ष्य से 3 मीट्रिक टन अधिक है।

प्रमुख फसलों का उत्पादन:

मिलियन टन में उत्पादन  वर्ष 2018-19 
कुल अनाज उत्पादन 

285.21

चावल 

116.48

गेहूँ 

103.60

दाल 

22.08

लॉकडाउन में किसानों को सहायता:

  • लॉकडाउन अवधि के दौरान किसानों को उनकी बुवाई और कटाई के कार्यों को पूरा करने के लिये सभी प्रकार की छूट दी जा सकती है।
  • सभी उर्वरक कंपनियों को अपने उत्पादों के सुचारू लाने ले जाने की सुविधा प्रदान की जाएगी।
  • सभी राज्य, गाँव/ब्लॉक स्तरों पर फसल उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करेंगे क्योंकि लॉकडाउन के कारण किसानों को अपने ब्लॉक से बाहर जाने की अनुमति नहीं है।
  • कृषि मंत्रालय द्वारा लॉकडाउन अवधि के दौरान 'राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन' (National Food Security Mission-NFSM), ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ (PM-KISAN) योजना,  ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ (PM-GKY) आदि के तहत किसानों और कृषि गतिविधियों की सुविधा के लिये कई उपायों की घोषणा की है। 

आगे की राह:

  • खाद्य और कृषि के क्षेत्र में डिजिटल मार्केटिंग के रूप में ‘वैकल्पिक बाज़ार’ संबंधी विचारों को अपनाना चाहिये। वर्तमान में यह व्यवस्था COVID-19 के संक्रमण को कम करने के साथ ही कृषि क्षेत्र में उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन सकती है। साथ ही भविष्य में इस माध्यम को बढ़ावा देकर देश में कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था को एक नई गति प्रदान की जा सकती है। 

स्रोत: द हिंदू


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 17 अप्रैल, 2020

सुरक्षित नहीं है ज़ूम एप: गृह मंत्रालय

गृह मंत्रालय ने वीडियो कॉलिंग/कॉन्फ्रेंसिंग एप ज़ूम (Zoom App) के संबंध में एडवाइज़री जारी की है, जिसके अनुसार यह वीडियो कॉलिंग/कॉन्फ्रेंसिंग एप सुरक्षित नहीं है और इसका सावधानीपूर्वक प्रयोग आवश्यक है। ज़ूम एप एक फ्री वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग एप है, जिसके ज़रिये यूज़र एक बार में अधिकतम 100 लोगों के साथ बात कर सकता है। एप में वन-टू-वन मीटिंग और 40 मिनट की ग्रुप कॉलिंग की सुविधा है। ध्यातव्य है कि कोरोनावायरस के कारण दुनिया के लगभग सभी देशों में लॉकडाउन लागू किया गया है, जिसके कारण भारत समेत सभी देशों में ऑनलाइन वीडियो कॉलिंग/कॉन्फ्रेंसिंग का चलन काफी बढ़ गया है और इसी के साथ ज़ूम एप का प्रयोग भी काफी व्यापक स्तर पर होने लगा है। ज़ूम एप की बढ़ती लोकप्रियता के साथ ही सुरक्षा को लेकर इस एप पर कई सवाल खड़े किये जा रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस एप के यूज़र से संबंधित डेटा के लीक होने के कई मामले भी सामने आए हैं। गृह मंत्रालय के अनुसार यदि लोग एडवाइज़री के बावजूद भी इस एप का प्रयोग करते हैं, तो कुछ आवश्यक बातों का ध्यान रखा जाए जैसे-.लगातार पासवर्ड बदलते रहें, कॉन्फ्रेंस कॉल में शामिल होने के लिये किसी को अनुमति देते हुए सतर्कता बरतें, ज्वाइन ऑप्शन को डिसऐबल करें, स्क्रीन शेयरिंग का ऑप्शन केवल होस्ट के पास रखें और किसी व्यक्ति के लिये पुनः ज्वाइन का ऑप्शन बंद रखें। 

रिवर्स रेपो रेट

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate) में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है। RBI ने रिवर्स रेपो रेट को 4 प्रतिशत से घटाकर 3.75 प्रतिशत कर दिया है।  ध्यातव्य है कि जब बैंक अपनी कुछ धनराशि को रिज़र्व बैंक में जमा कर देते हैं तो RBI द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को उस धनराशि पर एक निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है। रिज़र्व बैंक जिस दर पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। रिवर्स रेपो रेट में कटौती से बैंकों को अपना अतिरिक्त धन रिज़र्व बैंक के पास जमा कराने पर कम ब्याज प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में बैंक अपने अतिरिक्त धन को रिज़र्व बैंक के पास रखने के स्थान पर लोगों को बांटकर अधिक ब्याज प्राप्त करने पर ज़ोर देते हैं। इसके प्रभावस्वरूप बैंक अपने ऋण पर ब्याज दरों में कटौती कर देते हैं। यह विधि अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को बढ़ाने में मदद करती है।  ध्यातव्य है कि देशव्यापी लॉकडाउन के पश्चात् से भारत समेत दुनिया भर की अर्थव्यवस्था प्रभावित हो रही है, जिसके मद्देनज़र भारत सहित तमाम देश अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये लगातार प्रयास कर रहे हैं।

रंजीत चौधरी

हाल ही में प्रसिद्ध अभिनेता रंजीत चौधरी का 64 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। 19 सितंबर, 1955 को मुंबई में जन्मे रंजीत चौधरी को ‘खट्टा-मीठा’, ‘बातों बातों में’ और ‘बॉलीवुड/हॉलीवुड’ में उनके अभिनय के लिये याद किया जाता है। रंजीत चौधरी फिल्मों, टेलीविज़न और थिएटर में अपने बेहतरीन कार्य के लिये काफी जाना जाता था। रंजीत चौधरी ने वर्ष 1978 में फिल्म 'खट्टा मीठा' के ज़रिये बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत की थी। इसके पश्चात् उन्होंने ‘बातों बातों में’ और 'खूबसूरत' जैसी फिल्मों में भी कार्य किया। एक एक्टर के साथ-साथ रंजीत चौधरी बेहतरीन लेखक भी थे। उन्होंने सैम एंड मी (Sam & Me) का स्क्रीन प्ले लिखा और उसमें अभिनय भी किया था। भारत के अतिरिक्त उन्होंने विदेशी सिनेमा में भी कार्य किया था, उन्हें सबसे पहले हॉलीवुड फिल्म 'लोलनी इन अमेरिका' (Lonely in America) में भी कार्य किया था।

भारत की आर्थिक वृद्धि दर 1.9 प्रतिशत: IMF 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर दिया है। IMF ने वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिये भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटाकर 1.9 प्रतिशत कर दिया है। इससे पूर्व जनवरी, 2020 में IMF ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 5.8 प्रतिशत बताया था। IMF के अनुसार, कोरोनावायरस (COVID-19) को फैलने से रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था काफी अधिक प्रभावित हुई है और इसके कारण संपूर्ण विश्व वर्ष 1930 की मंदी से भी अधिक प्रभावित हो सकता है। उल्लेखनीय है कि कोरोनावायरस और लॉकडाउन के कारण भारत समेत विश्व के तमाम देशों के उद्योग क्षेत्र प्रभावित हुए हैं और निर्यात पर भी काफी प्रभाव पड़ा है। IMF के अनुसार, भारत उन दो बड़े देशों में शामिल है जहाँ वित्तीय वर्ष 2020-21 में आर्थिक वृद्धि दर सकारात्मक रहेगी। दूसरा देश चीन है जहाँ IMF के अनुसार 1.2 प्रतिशत वृद्धि दर रह सकती है। IMF एक अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था है जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का कार्य करती है। यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने तथा आर्थिक विकास को सुगम बनाने में भी सहायता प्रदान करती है।