इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘भारत पर भूख से मुक्त होने और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का दायित्व है।’ इस कथन के संदर्भ में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की विवेचना कीजिये।

    12 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न-विच्छेद

    • प्रश्नगत कथन के संदर्भ में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की विवेचना करनी है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • प्रभावी भूमिका लिखते हुए प्रश्नगत कथन का आशय स्पष्ट करना है।
    • तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु लिखते हुए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, इसकी समस्याएँ तथा निदान के उपायों को बताएँ।
    • प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।

    भोजन का अधिकार अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून द्वारा स्थापित सिद्धांत है। यह सदस्य राज्य के लिये खाद्य सुरक्षा के अधिकार के सम्मान, संरक्षण और पूर्ति हेतु दायित्व का निर्धारण करता है। खाद्य सुरक्षा के सामान्य सिद्धांत के अंतर्गत चार प्रमुख आयामों, यथा – पहुँच, उपलब्धता, उपयोग और स्थिरता को शामिल किया जाता है। सार्वभौमिक मानवाधिकार घोषणा-पत्र और आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध के सदस्य के रूप में भारत पर भूख से मुक्त होने और पर्याप्त भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करने का दायित्व है। इसी दायित्व की पूर्ति हेतु 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम पारित किया गया।

    राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अध्यादेश एक ऐतिहासिक पहल है जिसके ज़रिये जनता को पोषण खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित की जा रही है। खाद्य सुरक्षा कानून का विशेष बल गरीब-से-गरीब व्यक्ति, महिलाओं और बच्चों की जरूरतें पूरी करने पर है। इस विधेयक में शिकायत निवारण तंत्र की भी व्यवस्था है, अगर कोई जनसेवक या अधिकृत व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता, तो उसके खिलाफ शिकायत कर सुनवाई का प्रावधान किया गया है।

    राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया। समाज के अति निर्धन वर्ग के हर परिवार को हर महीने अंत्योदय अन्न योजना में इस कानून के तहत सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो क्रमशः चावल, गेहूँ, मोटा अनाज मिल रहा है। पूरे देश में यह कानून लागू होने के बाद 81.34 करोड़ लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जा रहा है।

    यद्यपि खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के बाद से भूख की समस्या पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा चुका है परंतु फिर भी इसमें कई समस्याएँ हैं जिनके आधार पर इसका आकलन करना जरूरी है–

    • खाद्य सुरक्षा कानून भोजन के सार्वभौमिक अधिकार की गारंटी नहीं देता है। इसके बजाय यह कुछ मानदंडों के आधार पर पहचाने गए लोगों के लिये भोजन के अधिकार को सीमित करता है।
    • यह अधिनियम युद्ध, बाढ़, सूखा, आग, चक्रवात या भूकंप की स्थिति में लागू नहीं होगा। (यह केंद्र सरकार के अनुमोदन पर निर्भर करेगा।)
    • उपरोक्त परिस्थितियों में भोजन का अधिकार सबसे मूल्यवान हो जाता है। अतः यह संदिग्ध प्रतीत होता है कि यह अधिनियम उस अधिकार की गारंटी देने में प्रभावी है या नहीं।
    • इसके अंतर्गत कुछ ऐसे उद्देश्यों को शामिल किया गया है जिनके संबंध में प्रगतिशील रूप से कार्य किया जाना चाहिये। उन उद्देश्यों में कृषि सुधार, सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता और विकेंद्रीकृत खरीद को शामिल किया गया है, लेकिन इन उद्देश्यों अथवा प्रावधानों में हमारी कृषि प्रणालियों के बारे में मौलिक धारणाओं पर पुनर्विचार करने और खाद्य सुरक्षा को अधिक व्यापक तरीके से देखने की आवश्यकता का कोई जिक्र नहीं किया गया है।
    • यह तर्कसंगत है कि ‘प्रगतिशील प्राप्ति’ का मुद्दा खाद्य सुरक्षा में सुधार को अवरुद्ध करता है। ऐसा इसलिये क्योंकि इसके तहत वर्णित कुछ तत्त्व पहले से ही राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कानूनों और नीतयों में शामिल हैं।
    • उन्हें ‘प्रगतिशील प्राप्ति’ के दायित्व के रूप में वर्णित करने के विपरीत परिणाम सामने आएंगे, इसके परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर राज्य एनएफएसए में वर्णित आवश्यक कार्यवाहियों को करने से बचेंगे, वहीं दूसरी ओर जिस उद्देश्य के साथ इस अधिनियम को लाया गया उसे प्राप्त करना और कठिन हो जाएगा।
    • एनएफएसए को यदि केवल नागरिकों को खाद्य सुरक्षा प्रदान करने के लिये सरकारी प्रतिबद्धता के रूप में स्थापित किया जाता है तो यह अदालतों की कार्रवाई को सीमित कर सकता है।
    • ऐसे में अधिनियम के तहत नागरिक अधिकारों को किस सीमा तक विस्तृत किया जा सकता है यह चिंता का विषय है। हाल ही में स्वराज अभियान के मामलों में यह डर सामने आया जब भारत में लगातार सूखे की स्थिति से निपटने में सरकारी विफलताओं के प्रभाव स्पष्ट हुए।
    • यद्यपि एनएफएसए के प्रावधानों को लागू करने के लिये अदालत ने कार्यकारी को आदेश भी जारी किया, लेकिन नागरिकों को क्या दिया जाना चाहिये इस सबका निर्धारण न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता है।

    अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि जब एनएफएसए के अंतर्गत पहुँच, उपलब्धता और यहाँ तक कि सामंजस्यपूर्ण रूप से उपयोग के मुद्दों को गहनता से संबोधित किया गया है, तो भी इसके अंतर्गत खाद्य आपूर्ति की स्थिरता के मुद्दे पर काफी कुछ किये जाने की आवश्यकता है। वस्तुतः हमें एक तीसरी पीढ़ी के खाद्य सुरक्षा कानून को बनाने की आवश्यकता पर बल देना चाहिये जिसके अंतर्गत प्राकृतिक आपदाओं तथा जलवायु अनुकूलन सहित बहुत-से अन्य मुद्दों को शामिल करते हुए खाद्य सुरक्षा की समस्या को हल किया जाना चाहिये। इस तरह का ढाँचा सभी चार आयामों में देश की खाद्य सुरक्षा का सामना करने वाली चुनौतियों का समाधान करेगा और इस तरह की विशेषता वाले छोटे-छोटे प्रयास करने की अपेक्षा एक समन्वित प्रयास की दिशा में ध्यान देगा।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2