अंतर्राष्ट्रीय संबंध
हॉन्गकॉन्ग की चुनावी प्रणाली में परिवर्तन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने हॉन्गकॉन्ग की चुनावी प्रणाली में कई बड़े बदलाव किये हैं।
- यह कदम जून 2020 में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लागू करने के बाद चीन द्वारा हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (HKSAR) पर अपनी आधिकारिक पकड़ को मज़बूत करने के प्रयासों का हिस्सा है।
प्रमुख बिंदु:
नई चुनावी प्रणाली::
- विधानपरिषद की सदस्यता में वृद्धि:
- इस बदलाव के तहत हॉन्गकॉन्ग की विधानपरिषद (HKLC) के सदस्यों की संख्या बढ़कर 90 हो जाएगी। साथ ही बढ़ी हुई सीटों के लिये अतिरिक्त सदस्यों को मनोनीत किया जाएगा, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधियों की हिस्सेदारी कम हो जाएगी।
- वर्तमान में HKLC के कुल 70 सदस्यों में से केवल आधे सदस्य ही सीधे चुने जाते हैं और बाकी सदस्यों को मनोनीत किया जाता है।
- चुनाव समिति का विस्तार:
- चुनाव समिति (हॉन्गकॉन्ग इलेक्टोरल कॉलेज) में चीन से मनोनीत सदस्यों को शामिल करने के लिये इसका विस्तार किया गया है।
- चुनाव समिति पहले की तरह मुख्य कार्यकारी या चीफ एक्जीक्यूटीव (Chief Executive) का चुनाव करने के लिये उत्तरदायी होगी और यह HKLC के कुछ सदस्यों का भी चुनाव करेगी।
- नई उम्मीदवार की योग्यता:
- नई उम्मीदवार योग्यता समीक्षा समिति की स्थापना के माध्यम से चुनावों के लिये "देशभक्त" उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित किया जाएगा।
प्रभाव:
- यह परिवर्तन हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (HKSAR) के संचालन में चीन द्वारा नियुक्त राजनेताओं के प्रभाव/हस्तक्षेप को बढ़ाएगा, जो वर्ष 1997 के सत्ता हस्तांतरण के बाद सबसे बड़े बदलाव को चिह्नित करता है।
- बीजिंग समर्थक अधिकारियों की बढ़ी हुई संख्या शहर के नेतृत्व को प्रभावित करने में विपक्ष की शक्ति को कमज़ोर कर देगी।
- यह उस राजनीतिक स्वतंत्रता को समाप्त कर देगा जो हॉन्गकॉन्ग को "एक देश, दो प्रणाली" मॉडल के तहत मुख्य भूमि (चीनी जन-गणराज्य या पी.आर.सी.) से अलग करता था।
भारत के लिये निहितार्थ:
- हॉन्गकॉन्ग वैश्विक बाज़ार में भारतीय वस्तुओं के पुनर्निर्यात का एक प्रमुख केंद्र है।
- हॉन्गकॉन्ग भारत के लिये चौथा सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार है।
- भारत का मत है कि हॉन्गकॉन्ग चीन के साथ इसके संबंधों को मज़बूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, क्योंकि इसे चीन का प्रवेश द्वार माना जाता है।
- ऐसे में हॉन्गकॉन्ग में राजनीतिक अशांति के कारण उत्पन्न वैश्विक तनाव शेष विश्व और चीन के साथ भारत के व्यापार को भी प्रभावित कर सकता है।
आलोचना:
- यूरोपीय संघ ने इन परिवर्तनों की निंदा करते हुए चीन को व्यापक प्रतिबंधों की चेतावनी दी है।
- G7 ने इस बदलाव को हॉन्गकॉन्ग में असहमतिपूर्ण आवाज़ों एवं विचारों को दबाने की दिशा में एक कदम बताया है।
- विश्व की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं (जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका, यूके, ऑस्ट्रेलिया) ने इस कदम की निंदा की है और चीन से एक अधिक सहभागी और प्रतिनिधित्व वाली व्यवस्था के संचालन की अनुमति देने का आग्रह किया है।
- यह परिवर्तन ‘चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा’ (Sino-British Joint Declaration) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता है।
चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा :
परिचय
- यह चीन की संप्रभुता के तहत हॉन्गकॉन्ग को लेकर यूनाइटेड किंगडम और चीन के बीच वर्ष 1985 में हस्ताक्षरित एक संधि है।
- इस संधि के मुताबिक, चीन 1 जुलाई, 1997 से अफीम युद्ध (वर्ष 1840) के बाद ब्रिटेन के कब्ज़े वाले हॉन्गकॉन्ग का नियंत्रण पुनः प्राप्त कर लेगा।
- अफीम युद्ध: ये चीन के चिंग राजवंश और यूरोप के बीच लड़े गए युद्ध थे। ये दोनों युद्ध अफीम व्यापार पर अंकुश लगाने के लिये चिंग राजवंश के प्रयासों का परिणाम थे।
- पहला युद्ध वर्ष 1839 से वर्ष 1842 के बीच, जबकि दूसरा युद्ध वर्ष 1856 से वर्ष 1860 के बीच लड़ा गया था।
- अफीम युद्ध: ये चीन के चिंग राजवंश और यूरोप के बीच लड़े गए युद्ध थे। ये दोनों युद्ध अफीम व्यापार पर अंकुश लगाने के लिये चिंग राजवंश के प्रयासों का परिणाम थे।
प्रावधान
- इस संधि में कहा गया है कि हॉन्गकॉन्ग के बारे में चीन की बुनियादी नीतियाँ 50 वर्षों तक अपरिवर्तित रहेंगी और हॉन्गकॉन्ग के लिये उच्च स्तर की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाएगी। इन नीतियों को हॉन्गकॉन्ग के ‘बेसिक लॉ’ के तहत निर्धारित किया गया है।
- वर्ष 1997 से हॉन्गकॉन्ग को शासित करने वाले ‘बेसिक लॉ’ के मुताबिक, हॉन्गकॉन्ग विशेष प्रशासनिक क्षेत्र, चीन का हिस्सा तो है, किंतु विदेश नीति और रक्षा मामलों के अतिरिक्त हॉन्गकॉन्ग को काफी अधिक ‘स्वायत्तता’ एवं ‘कार्यकारी, विधायी तथा स्वतंत्र न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं।
- इसके मुताबिक, चीन की समाजवादी प्रणाली और नीतियाँ 50 वर्षों के लिये हॉन्गकॉन्ग पर लागू नहीं होंगी।
आगे की राह
- इस नए कानून से हॉन्गकॉन्ग के लोकतंत्र समर्थक आंदोलन पर काफी गंभीर प्रभाव पड़ेगा और वर्ष 1997 में चीन को सौंपे जाने पर हॉन्गकॉन्ग को प्रदान की गई स्वायत्तता पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून और नए चुनावी परिवर्तनों के साथ हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थक विपक्ष के लिये काफी कम स्थान रह गया है।
- चीन को अपने कानूनी दायित्वों के अनुरूप कार्य करना चाहिये और हॉन्गकॉन्ग में मौलिक अधिकारों एवं हॉन्गकॉन्ग की स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
भारत के हथियार आयात में गिरावट: SIPRI
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वैश्विक संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute-SIPRI) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत के हथियार आयात में वर्ष 2011-2015 और वर्ष 2016-2020 के बीच एक-तिहाई (लगभग 33%) की कमी आई है।
प्रमुख बिंदु
भारत विशिष्ट जानकारी
- दूसरा सबसे बड़ा आयातक:
- भारत विश्व में हथियारों का सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा आयातक है।
- भारत को हथियार आपूर्तिकर्त्ता:
- रूस दोनों अवधि (वर्ष 2011-2015 और वर्ष 2016-2020) में भारत का सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्त्ता देश है। हालाँकि भारत को हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 70% से गिरकर 49% हो गई है।
- वर्ष 2016-20 के दौरान भारत को सबसे बड़े हथियार आपूर्तिकर्त्ता के रूप में फ्राँस और इज़राइल क्रमशः दूसरे तथा तीसरे स्थान पर थे। भारत के हथियार आयात में फ्राँस और इज़राइल की हिस्सेदारी में क्रमशः 709% तथा 82% की वृद्धि हुई है।
- भारत को हथियारों की आपूर्ति में अमेरिका वर्ष 2016-20 की अवधि में चौथे स्थान पर था, जबकि वर्ष 2011-15 की अवधि में दूसरे स्थान पर था।
- भारत का निर्यात:
- वर्ष 2016-20 के दौरान वैश्विक हथियारों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 0.2% थी, जिससे यह विश्व में 24वाँ सबसे बड़ा हथियार निर्यातक बन गया।
- यह वर्ष 2011-15 की अवधि की तुलना में निर्यात में 200% से अधिक की वृद्धि का प्रतिनिधित्व करता है।
- इस दौरान भारत के सैन्य उपकरणों के शीर्ष प्राप्तकर्त्ता म्याँमार, श्रीलंका और मॉरीशस थे।
- भविष्य के रुझान:
- पाकिस्तान-चीन से बढ़ते खतरों और घरेलू रक्षा विनिर्माण में देरी के कारण आने वाले वर्षों में भारत के हथियारों के आयात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
आयात में गिरावट के कारण:
- भारत का आत्मनिर्भरता पर ज़ोर: इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गिरावट का कारण रक्षा विनिर्माण में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास है।
- इसके अतिरिक्त सशस्त्र बलों के लिये पूंजीगत व्यय का 60% से अधिक का आवंटन घरेलू रूप से उत्पादित हथियारों और प्लेटफॉर्मों हेतु किया गया है।
- इससे पहले सरकार ने 101 रक्षा उपकरणों की एक नकारात्मक आयात सूची की घोषणा की थी और प्लेटफॉर्म इस नकारात्मक सूची में शामिल वस्तुओं के निर्माण का अवसर प्रदान करेगा।
- जटिल खरीद प्रक्रिया: भारतीय हथियारों के आयात में गिरावट मुख्य रूप से इसकी जटिल खरीद प्रक्रियाओं के कारण आई है, जो रूसी हथियारों पर निर्भरता को कम करने के प्रयास से जुड़ा है।
अंतर्राष्ट्रीय स्थानांतरण:
- वर्ष 2016-2020 की अवधि में शीर्ष पाँच वैश्विक हथियार निर्यातक देश अमेरिका, रूस, फ्राँस, जर्मनी और चीन थे।
- प्रमुख हथियारों का अंतर्राष्ट्रीय हस्तांतरण वर्ष 2011-15 और वर्ष 2016-20 के बीच समान स्तर पर रहा।
- इस अवधि के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस और जर्मनी के हथियार निर्यात में पर्याप्त वृद्धि हुई थी, जबकि रूस तथा चीन के हथियारों के निर्यात में गिरावट आई।
- रूसी निर्यात में भारत को होने वाले आयात में कमी के कारण गिरावट आई।
- भले ही रूस ने वर्ष 2011-15 और वर्ष 2016-20 के बीच चीन, अल्जीरिया तथा मिस्र को अपने हथियारों की आपूर्ति को बढ़ा दिया हो लेकिन इससे रूस से भारत को होने वाले हथियारों की आपूर्ति में गिरावट नहीं आई।
- इस अवधि के दौरान मध्य-पूर्व के देशों को (विशेष रूप से सऊदी अरब) हथियारों के आयात में वृद्धि हुई।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो युद्ध, आयुध, हथियार नियंत्रण व नि:शस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।
- यह नीति निर्माताओं, शोधकर्त्ताओं, मीडिया एवं जागरूक नागरिकों को पारदर्शी स्रोतों के आधार पर डेटा, डेटा विश्लेषण एवं सिफारिशें प्रदान करता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
मुद्रास्फीति डेटा: फरवरी 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने फरवरी 2021 के लिये थोक मूल्य सूचकांक (WPI) जारी किया।
प्रमुख बिंदु
थोक मूल्य मुद्रास्फीति
- यह लगातार दूसरे माह बढ़कर 4.17 प्रतिशत पर पहुँच गई है।
- यह नवंबर 2018 के बाद से ही अपने उच्चतम स्तर पर है, जब थोक मुद्रास्फीति 4.47 प्रतिशत पर थी।
- जनवरी 2021 में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) मुद्रास्फीति 2.03 प्रतिशत और फरवरी 2020 में 2.26 प्रतिशत पर थी।
कारण
- खाद्य उत्पादों, ईंधन और बिजली आदि की कीमतों में बढ़ोतरी ने थोक मूल्य मुद्रास्फीति की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- खाद्य मुद्रास्फीति: फरवरी माह में खाद्य उत्पादों के मामले में 1.36 प्रतिशत मुद्रास्फीति देखी गई, जो कि जनवरी माह में (-) 2.80 प्रतिशत थी।
- खुदरा मुद्रास्फीति: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार पर फरवरी माह में यह 5.03 प्रतिशत पर थी।
थोक मूल्य सूचकांक (WPI)
- यह व्यापारियों द्वारा थोक में बेचे गए सामानों की कीमतों में बदलाव को मापता है।
- इसे वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आर्थिक सलाहकार कार्यालय द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
- यह भारत में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक है।
- हालाँकि कई आलोचक यह तर्क देते हैं कि आम जनता थोक मूल्य पर उत्पाद नहीं खरीदती है, इसलिये यह सूचकांक आम भारतीय नागरिक का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
- वर्ष 2017 में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आधार वर्ष को संशोधित कर वर्ष 2004-05 से वर्ष 2011-12 कर दिया गया था।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)
- यह सूचकांक खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण से मूल्य परिवर्तन को मापता है। इसे राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी किया जाता है।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के तहत भारतीय उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं जैसे- खाद्य, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद आदि की कीमत में परिवर्तन की गणना करता है।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के तहत खाद्य एवं पेय पदार्थ, ईंधन एवं प्रकाश, आवास एवं कपड़े, बिस्तर एवं जूते सहित कई उप-समूह शामिल हैं।
- CPI के निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
- औद्योगिक श्रमिकों (IW) के लिये CPI
- कृषि मज़दूर (AL) के लिये CPI
- ग्रामीण मज़दूर (RL) के लिये CPI
- CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)
- इनमें से प्रथम तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में ‘श्रम ब्यूरो’ द्वारा संकलित किया जाता है, जबकि CPI के चौथे प्रकार को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
- वर्ष 2012 को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के आधार वर्ष के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक संबंधी डेटा का उपयोग करती है। भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अप्रैल 2014 में मुद्रास्फीति के प्रमुख उपाय के रूप में CPI को अपनाया था।
थोक मूल्य सूचकांक बनाम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक
- WPI, उत्पादक स्तर पर मुद्रास्फीति को ट्रैक करता है, जबकि CPI उपभोक्ता स्तर पर कीमतों में परिवर्तन को मापता है।
- WPI सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को नहीं मापता, जबकि CPI में सेवाओं को भी ध्यान में रखा जाता है।
मुद्रास्फीति
- मुद्रास्फीति का तात्पर्य दैनिक या आम उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन और परिवहन इत्यादि की कीमतों में होने वाली वृद्धि से है।
- मुद्रास्फीति के तहत समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं के औसत मूल्य में होने वाले परिवर्तन को मापा जाता है।
- मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत होती है।
- इससे अंततः आर्थिक विकास में कमी आ सकती है।
- हालाँकि अर्थव्यवस्था में उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये मुद्रास्फीति का एक आवश्यक स्तर बनाये रखना आवश्यक होता है।
- भारत में मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों- थोक मूल्य सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है जो कि क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तन को मापते हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गुजरात के नर्मदा ज़िले के केवडिया में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी ’ (वर्ष 2018 में उद्घाटन से अब तक) को देखने आने वाले पर्यटकों की संख्या 50 लाख से अधिक हो चुकी है।
- 31 अक्तूबर 2020 को गुजरात में भारत की पहली सीप्लेन सेवा (First Seaplane Service) शुरू हुई। यह अहमदाबाद में साबरमती रिवरफ्रंट (Sabarmati Riverfront) को केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी (Statue of Unity) से जोड़ती है।
प्रमुख बिंदु:
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बारे में:
- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण सरदार वल्लभ भाई पटेल के सम्मान में किया गया है। स्वतंत्र भारत में 560 रियासतों को एकजुट करने का श्रेय सरदार पटेल को दिया जाता है, इसलिये इस प्रतिमा का नाम स्टैच्यू ऑफ यूनिटी ’रखा गया है।
- सरदार पटेल की 143वीं जयंती के अवसर पर 31 अक्तूबर, 2018 को इसका उद्घाटन किया गया।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी विश्व की सबसे ऊंँची (182 मीटर) मूर्ति है। यह चीन की स्प्रिंग टेम्पल बुद्ध प्रतिमा (Spring Temple Buddha statue) से 23 मीटर ऊंँची तथा अमेरिका में स्थित स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी (93 मीटर लंबा) की ऊंँचाई की लगभग दोगुनी है।
- जनवरी 2020 में इसे शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation- SCO) के आठ अजूबों में शामिल किया गया था।
अवस्थिति:
- यह नर्मदा नदी जो कि सतपुड़ा और विंध्य पर्वत शृंखलाओं के मध्य बहती है, के साधू बेट द्वीप (Sadhu Bet island) पर स्थित है।
डिज़ाइन:
- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का डिज़ाइन पद्म भूषण पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता मूर्तिकार राम वी सुतार द्वारा तैयार किया गया था और इस प्रतिमा का जटिल कांस्य क्लैडिंग कार्य चीनी फाउंड्री, जियांग्शी टॉकाइन कंपनी (Jiangxi Toqine Company- JTQ) द्वारा किया गया।
सरदार वल्लभ भाई पटेल:
जन्म:
- सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ था।
उपलब्धियांँ:
- सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री बने।
- वह भारतीय संविधान सभा की निम्नलिखित समितियों के प्रमुख रहे:
- मौलिक अधिकारों पर सलाहकार समिति।
- अल्पसंख्यकों और जनजातीय तथा बहिष्कृत क्षेत्रों पर नियुक्त समिति।
- प्रांतीय संविधान समिति।
- राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में खेड़ा सत्याग्रह (1918) और बारदोली सत्याग्रह (1928) के मुद्दों पर किसानों को एकत्रित करना।
- बारदोली की महिलाओं द्वारा वल्लभ भाई पटेल को 'सरदार' की उपाधि से सम्मानित किया गया, जिसका अर्थ है ' प्रमुख या नेता'।
- भारतीय रियासतों को भारतीय महासंघ में एकीकरण के लिये राज़ी करने तथा इस कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने हेतु सरदार पटेल को ‘भारत के लौह पुरुष’ (Iron Man of India) के रूप में जाना जाता है।
- उन्होंने भारत को एक अग्रणी भारत (श्रेष्ठ भारत) बनाने हेतु भारतीय लोगों से एकजुट होने का अनुरोध किया।
- यह विचारधारा वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत पहल (Atmanirbhar Bharat Initiative) के रूप में परिलक्षित है जो भारत को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करती है।
- सरदार पटेल को आधुनिक अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना करने हेतु ‘भारतीय सिविल सेवकों के संरक्षक संत' (Patron Saint of India’s Civil Servants) के रूप में भी जाना जाता है।
मृत्यु:
- सरदार पटेल की मृत्यु 15 दिसंबर, 1950 को बॉम्बे (वर्तमान मुंबई ) में हुई।