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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

हॉन्गकॉन्ग संकट और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

  • 23 May 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये

हॉन्गकॉन्ग संकट, हॉन्गकॉन्ग की भौगोलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

हॉन्गकॉन्ग को लेकर चीन की नीति और भारतीय दृष्टिकोण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन की संसद के समक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक मसौदा प्रस्तुत किया गया है, जो पहली बार चीन की सरकार को हॉन्गकॉन्ग के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा कानूनों का मसौदा तैयार करने तथा इस विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (Special Administrative Region-SAR) में अपने राष्ट्रीय सुरक्षा अंगों (Organs) को संचालित करने की अनुमति देगा।

प्रमुख बिंदु

  • चीन की सरकार ने इस मसौदे के माध्यम से हॉन्गकॉन्ग में लागू बेसिक लॉ (Basic Law) में ‘सुधार’ करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, ध्यातव्य है कि यही बेसिक लॉ (Basic Law) अथवा लघु संविधान हॉन्गकॉन्ग और बीजिंग के मध्य संबंधों को परिभाषित करता है।
  • चीन के इस नए मसौदे को हॉन्गकॉन्ग में असंतोष रोकने के लिये अब तक के सबसे व्यापक कदम के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। विश्लेषकों का मत है कि चीन की सरकार हॉन्गकॉन्ग विधायिका से परामर्श किये बिना ही इस मसौदे को लागू कर सकती है।

हॉन्गकॉन्ग की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1842 में चीन राजवंश के प्रथम अफीम युद्ध में पराजित होने के बाद चीन ने ब्रिटिश साम्राज्य को हॉन्गकॉन्ग द्वीप सौंप दिया था, उसके बाद हॉन्गकॉन्ग का (एक अलग भू-भाग) अस्तित्त्व सामने आया।
  • लगभग 6 दशक के दौरान चीन के लगभग 235 अन्य द्वीप भी ब्रिटेन के कब्ज़े में आ गए और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक केंद्र बन गया।
  • 20वीं सदी के प्रारंभ में यहाँ भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन हुआ जिनमें चीनी लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा थी।
  • बड़ी संख्या में प्रवासियों के आगमन ने हॉन्गकॉन्ग के लिये एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र के रूप में एक नई भूमिका निभाने में मदद की।
  • चीन की अर्थव्यवस्था एवं भौगोलिक स्थिति के प्रभाव के कारण वर्तमान में हॉन्गकॉन्ग सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था के साथ-साथ दुनिया के सबसे बड़े बाज़ारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार बन गया है।
  • वर्ष 1997 तक हॉन्गकॉन्ग ब्रिटिश साम्राज्य के नियंत्रण में रहा।

हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ 

  • 1 जुलाई, 1997 को 'एक देश, दो व्यवस्था' (One Country, Two Systems) के सिद्धांत के तहत हॉन्गकॉन्ग को पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र (Special Administrative Region-SAR) घोषित कर दिया गया और हॉन्गकॉन्ग ब्रिटिश उपनिवेश से मुक्त हो गया।
  • हॉन्गकॉन्ग को ‘बेसिक लॉ’ नामक एक लघु-संविधान द्वारा शासित किया जाता है, जो कि ‘एक देश, दो प्रणाली’ के सिद्धांत की पुष्टि करता है।
  • ध्यातव्य है कि ‘बेसिक लॉ’ वर्ष 1984 के चीन-ब्रिटिश संयुक्त घोषणा पत्र (Sino-British Joint Declaration) का ही परिणाम है, जिसके तहत चीन की सरकार द्वारा वर्ष 1997 से 50 वर्षों की अवधि के लिये हॉन्गकॉन्ग की उदार नीतियों, शासन प्रणाली, स्वतंत्र न्यायपालिका और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करने की बात की गई थी।
  • हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ अभिव्यक्ति और विचारों की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों की रक्षा करता है, जो कि चीन में मौजूद नहीं हैं। साथ ही हॉन्गकॉन्ग का ‘बेसिक लॉ’ इस क्षेत्र विशिष्ट की शासन की संरचना भी निर्धारित करता है।
  • हालाँकि हॉन्गकॉन्ग के आंतरिक मामलों में चीन के कम्युनिस्ट शासन के हस्तक्षेप और उसकी दमनकारी नीतियों के चलते हॉन्गकॉन्ग में समय-समय पर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं।

विरोध प्रदर्शन का लंबा इतिहास

  • विरोध प्रदर्शन हॉन्गकॉन्ग की राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गए हैं। चीन को सौंपे जाने के बाद हॉन्गकॉन्ग में ‘बेसिक लॉ’ में दी गई स्वतंत्रता को बचाने के लिये पहला विरोध प्रदर्शन वर्ष 2003 में हुआ था, जो कि वर्ष 1997 के बाद सबसे बड़ा लोकतंत्र समर्थित आंदोलन था।
  • वर्ष 2009 में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ जिसके परिणामस्वरूप यह कानून वापस ले लिया गया। वर्ष 2014 में भी हॉन्गकॉन्ग में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया गया। इस विरोध को ‘अंब्रेला मूवमेंट’ की संज्ञा दी जाती है।
    • दरअसल चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा हॉन्गकॉन्ग की जनता को यह भरोसा दिलाया गया था कि वर्ष 2017 से हॉन्गकॉन्ग के नागरिक अपने मुख्य कार्यकारी का निर्वाचन स्वयं कर सकेंगे किंतु चीन ने सिर्फ उन्हीं लोगों को इस पद के लिये चुनाव लड़ने की अनुमति दी जिन्हें चीन की साम्यवादी पार्टी का समर्थन हासिल हो। इससे हॉन्गकॉन्ग के लोगों को अत्यधिक निराशा हुई। 
    • परिणामस्वरूप लाखों लोगों ने 2 महीने से भी अधिक समय तक विरोध प्रदर्शन किया। 
  • वर्ष 1997 में सत्ता हस्तांतरण के बाद सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन वर्ष 2019 में हुआ, जब महीनों तक हॉन्गकॉन्ग के हज़ारों लोगों ने प्रस्तावित प्रत्यर्पण कानून के विरुद्ध आंदोलन किया और कानून वापस लेने के बाद भी लोकतंत्र के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखा।

प्रस्तावित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून

  • हॉन्गकॉन्ग के ‘बेसिक लॉ’ की धारा 23 के अनुसार, हॉन्गकॉन्ग को ‘किसी भी प्रकार के देशद्रोह, अलगाव, सरकार के विरुद्ध साज़िश और राज्य के रहस्यों की चोरी जैसे कृत्यों को रोकने तथा विदेशी राजनीतिक संगठनों या निकायों को इस क्षेत्र विशिष्ट में राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करने से रोकने एवं इस क्षेत्र विशिष्ट के राजनीतिक संगठनों या निकायों को विदेशी राजनीतिक संगठनों या निकायों के साथ संबंध स्थापित करने से रोकने के लिये जल्द-से-जल्द ‘राष्ट्रीय सुरक्षा कानून’ लागू करना होगा।
  • पहली बार जब वर्ष 2003 में हॉन्गकॉन्ग की सरकार ने यह कानून बनाने की कोशिश की थी, तो उस वर्ष यह शहर में व्यापक विरोध प्रदर्शन का मुद्दा बन गया था।
  • वर्ष 2003 के बाद एक बार पुनः इस कानून के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, चीन की सरकार ‘बेसिक लॉ’ के एनेक्स III (Annex III) का प्रयोग करके एक बार पुनः कानून के निर्माण का प्रयास कर सकती है।
  • ‘बेसिक लॉ’ के अनुसार, चीन की सरकार हॉन्गकॉन्ग में तब तक कोई कानून लागू नहीं कर सकती है, जब तक कि वह कानून एनेक्स III नामक खंड में सूचीबद्ध नहीं किया गया हो। ध्यातव्य है कि इस खंड में पहले से ही कुछ कानून सूचीबद्ध हैं, जिनमें अधिकांश अविवादास्पद और विदेश नीति से संबंधित हैं।
  • इन कानूनों को आसानी से राजाज्ञा (Decree) के माध्यम से लागू किया जा सकता है। जिसका अर्थ है कि उन्हें लागू करने के लिये हॉन्गकॉन्ग के प्रतिनिधियों से विमर्श की आवश्यकता नहीं होती है।

नए कानून का प्रभाव

  • चीन का यह नया कानून चीन की सरकार को लक्षित करने वाली देशद्रोही गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाएगा और साथ ही हॉन्गकॉन्ग के मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित अथवा दंडित करेगा।
  • आलोचकों का कहना है कि यह कदम हॉन्गकॉन्ग के 'एक देश, दो व्यवस्था' के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जो कि हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • विश्लेषकों ने उम्मीद ज़ाहिर की है कि यदि यह कानून अस्तित्त्व में आता है तो हॉन्गकॉन्ग में बीते वर्ष हुए व्यापक विरोध प्रदर्शन एक बार फिर से शुरू हो सकते हैं, ऐसे में चीन की सरकार को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • यह कदम पूर्वी एशियाई व्यापारिक केंद्र के रूप में हॉन्गकॉन्ग की पहचान को प्रभावित कर सकता है, और साथ ही इस कानून से चीन को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपेक्षा का सामना करना पड़ सकता है, जो कि पहले से ही कोरोना वायरस (COVID-19) से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी को छुपाने के आरोप का सामना कर रहा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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