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  • 17 Jan, 2024
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इन्फोग्राफिक्स

लॉर्ड कर्ज़न

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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश, दोहरा कराधान परिहार समझौता, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश, अभिरक्षाधीन आस्तियाँ, पूंजी बाज़ार

मेन्स के लिये:

FDI और FPI में अंतर, FPI से संबंधित जोखिम

स्रोत: बिज़नेस लाइन

चर्चा में क्यों?

भारत में किये जाने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (Foreign portfolio investments- FPI) में विभिन्न क्षेत्रों के बीच वरीयता क्रम में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया है।

  • इस परिवर्तन का श्रेय विभिन्न कारकों को दिया जाता है, जिनमें नियामक परिवर्तन, भू-राजनीतिक घटनाएँ और रणनीतिक गठबंधन शामिल हैं।

भारत के FPI परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन कौन-से हैं?

  • लक्ज़मबर्ग का प्रभुत्व:
    • मॉरीशस को पीछे छोड़ लक्ज़मबर्ग अब भारत में FPI के मामले में तीसरे स्थान पर है। जिसकी  अभिराक्षधीन आस्तियाँ (Assets Under Custody- AUC) 30% बढ़कर ₹4.85 लाख करोड़ हो गई।
      • विश्व स्तर पर इसकी इक्विटी आस्तियाँ अब संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।
    • इस वृद्धि का श्रेय भारत-यूरोप के बीच बेहतर संबंधों को दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप तीन वित्तीय समझौते संपन्न हुए।
      • लक्ज़मबर्ग यूरोप (UK के अतिरिक्त) में 3,000 में से 1,400 से अधिक FPI खातों की मेज़बानी करता है।
      • विशेष रूप से GIFT सिटी के साथ सहयोग ने भारत तथा लक्ज़मबर्ग के बीच वित्तीय संबंधों को और सुदृढ़ किया है।
  • फ्राँस की उल्लेखनीय उपलब्धि:
  • परिवर्तित परिदृश्य में अन्य देश:
    • आयरलैंड की कर दक्षता तथा वैश्विक पहुँच जो विनियमित निधियों को आय एवं लाभ पर आयरिश कर से छूट प्रदान करता है, इसे आकर्षक बनाती है।
      • आयरलैंड तथा नॉर्वे अपने स्थान में एक-एक स्तर की पदोन्नति के साथ अब FPI देशों में 5वें एवं 7वें स्थान पर हैं।
    • इसके अलावा AUC में साल-दर-साल 19% की वृद्धि के बावजूद, कनाडा रैंकिंग में एक स्थान नीचे गिर गया। भारत और कनाडा के बीच राजनयिक तनाव का निवेश पर प्रभाव अनिश्चित बना हुआ है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेश क्या है?

  • परिचय: 
    • FPI का तात्पर्य भारत की वित्तीय परिसंपत्तियों, जैसे- स्टॉक, बॉन्ड और म्यूचुअल फंड में विदेशी व्यक्तियों, निगमों तथा संस्थानों द्वारा किये गए निवेश से है।
      • ये निवेश मुख्य रूप से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के विपरीत अल्पकालिक लाभ और पोर्टफोलियो विविधीकरण के उद्देश्य से होते हैं, जिसमें परिसंपत्तियों का दीर्घकालिक स्वामित्व शामिल होता है।
  • लाभ
    • पूंजी प्रवाह: FPI के परिणामस्वरूप भारतीय वित्तीय बाज़ारों में विदेशी पूंजी का प्रवाह होता है, जो तरलता और पूंजी उपलब्धता में वृद्धि में योगदान देता है।
    • शेयर बाज़ार में वृद्धि: बढ़ी हुई FPI शेयर बाज़ार पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है, जिससे उच्च मूल्यांकन और निवेशकों का विश्वास बढ़ेगा।
    • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण: FPI में अक्सर प्रौद्योगिकी-उन्मुख क्षेत्रों में निवेश शामिल होता है, जिससे प्रेरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विभिन्न उद्योगों में प्रगति होती है।
    • वैश्विक एकीकरण: FPI वित्तीय बाज़ारों के वैश्विक एकीकरण को बढ़ावा देता है, जिससे भारतीय बाज़ार वैश्विक रुझानों के साथ जुड़ सकते हैं और विदेशी निवेशकों को आकर्षित कर सकते हैं।
  • जोखिम: 
    • बाज़ार की अस्थिरता और पूंजी उड़ान: FPI प्रवाह अस्थिर हो सकता है, जो वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक कारकों से प्रेरित है।
      • अचानक प्रवाह या बहिर्वाह से बाज़ार में अस्थिरता और मुद्रा में उतार-चढ़ाव हो सकता है, जिससे घरेलू निवेशकों तथा अर्थव्यवस्था दोनों को नुकसान हो सकता है।
    • लाभकारी स्वामियों की पारदर्शिता और पहचान: जटिल FPI संरचनाओं के अंतिम लाभार्थियों की पहचान करना नियामकों के लिये चुनौतीपूर्ण हो सकता है, जिससे धन के संभावित दुरुपयोग और कर चोरी के बारे में चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
  • अभिरक्षा में संपत्ति: AUC वित्तीय परिसंपत्तियों के कुल मूल्य को संदर्भित करता है जो एक संरक्षक अपने ग्राहकों के लिये प्रबंधित करता है। यह FPI द्वारा रखी गई सभी इक्विटी के समापन बाज़ार मूल्य को भी संदर्भित कर सकता है।
  • पेकिंग ऑर्डर (Pecking Order): FPI के संदर्भ में पेकिंग ऑर्डर उन क्षेत्रों या देशों की रैंकिंग या पदानुक्रम को संदर्भित करता है जहाँ से विदेशी निवेशक एक लक्षित देश विशेष रूप से इस मामले में, भारत में निवेश करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013)

(a) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (SDR) तथा विदेशों से ऋण 
(b) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विशेष आहरण अधिकार (SDR)
(c) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विश्व बैंक से ऋण तथा विशेष आहरण अधिकार (SDR)
(d) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विश्व बैंक से ऋण

उत्तर: (b)


Q. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) 

(a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।
(b) यह मुख्यतः ऋण सृजित न करने वाला पूंजी प्रवाह है।
(c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।
(d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।

उत्तर: (b)


मेन्स:  

Q. भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में FDI की आवश्यकता की पुष्टि कीजिये। हस्ताक्षरित समझौता-ज्ञापनों तथा वास्तविक FDI के बीच अंतर क्यों है? भारत में वास्तविक FDI को बढ़ाने के लिये सुधारात्मक कदम सुझाइये। (2016)

Q. रक्षा क्षेत्रक में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को अब उदारीकृत करने की तैयारी है। भारत की रक्षा और अर्थव्यवस्था पर अल्पकाल तथा दीर्घकाल में इसके क्या प्रभाव अपेक्षित हैं? (2014)


सामाजिक न्याय

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं से संबंधित चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

आँगनवाड़ी सेवाएँ, समेकित बाल विकास सेवाएँ, केंद्र प्रायोजित योजना, पोषण ट्रैकर, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन

मेन्स के लिये:

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की प्रमुख भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं द्वारा सामना की जाने वाली प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

आंध्र प्रदेश में आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता बेहतर वेतन और लाभ की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं। राज्य सरकार ने प्रदर्शनकारी आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और सहायिकाओं के खिलाफ आवश्यक सेवा एवं रखरखाव अधिनियम (Essential Services and Maintenance Act- ESMA), 1971 लागू कर दिया है।

  • आँगनवाड़ी केंद्रों पर समेकित बाल विकास सेवाओं (ICDS) पर उनकी चल रही अनिश्चितकालीन हड़ताल के प्रभाव का हवाला देते हुए, आदेश ने राज्य में छह महीने के लिये उनकी हड़ताल पर रोक लगा दी है।

आँगनवाड़ी सेवाएँ और आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की भूमिका क्या हैं?

  • ICDS योजना और आँगनवाड़ी: 
    • ICDS योजना भारत में 2 अक्तूबर, 1975 को शुरू की गई थी। इसका नाम बदलकर आँगनवाड़ी सेवा कर दिया गया और अब यह सेवाएँ सक्षम आँगनवाड़ी तथा पोषण 2.0 के हिस्से के रूप में पेश की जाती हैं।
      • यह राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्यांवयन एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (AWW) और सहायकों (AWH) के एक बड़े नेटवर्क के माध्यम से लाभार्थियों अर्थात् 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों के प्रारंभिक बाल्यकाल, गर्भवती महिलाओं एवं स्तनपान कराने वाली माताओं के लिये देखभाल तथा विकास प्रदान करती है।

  • आँगनवाड़ी द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ:
    • यह देश भर के आँगनवाड़ी केंद्रों के मंच के माध्यम से सभी पात्र लाभार्थियों अर्थात् 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को प्रदान किया गया है।
      • तीन सेवाएँ अर्थात् टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और रेफरल सेवाएँ स्वास्थ्य से संबंधित हैं जो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के माध्यम से प्रदान की जाती हैं।
  • आँगनवाड़ी सेवाओं की ट्रैकिंग: ICT प्लेटफॉर्म पोषण ट्रैकर को देश भर में आँगनवाड़ी सेवाओं के कार्यान्वयन एवं निगरानी पर वास्तविक समय डेटा कैप्चर करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • यह आँगनवाड़ी केंद्र (AWC) की गतिविधियों, आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (AWW) की सेवा वितरण और संपूर्ण लाभार्थी प्रबंधन का सर्वांगीण दृश्य प्रदान करता है।
  •  आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं की प्रमुख भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ:
    • सामुदायिक आउटरीच और गतिशीलता:
      • लाभार्थियों का पंजीकरण: इनके द्वारा ICDS सेवाओं के लिये पात्र गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं तथा छह वर्ष से अल्प आयु के बच्चों की पहचान कर उनका पंजीकरण किया जाता है।
      • समुदायों को संगठित करना: ये कार्यकर्त्ता आँगनवाड़ी गतिविधियों में सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं तथा ICDS कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं और साथ ही स्वस्थ व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
    • शिशु देखभाल तथा प्रारंभिक बचपन की शिक्षा:
      • आँगनवाड़ी केंद्रों का प्रबंधन: केंद्र की साफ-सफाई और स्वच्छता सुनिश्चित करना तथा रिकॉर्ड बनाए रखना व शिक्षण सामग्री तैयार करना।
      • प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करना: बच्चों को औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिये तैयार करने हेतु आयु-उपयुक्त खेल गतिविधियाँ, कहानी के सत्र एवं मूल शिक्षण गतिविधियाँ आयोजित करना।
      • वृद्धि और विकास की निगरानी करना: नियमित रूप से बच्चों की लंबाई और वज़न को मापना तथा विकास में किसी भी प्रकार की बाधा की पहचान करना एवं यदि आवश्यक हो तो उनका समाधान करने हेतु आगे प्रेषित करना।
      • माता-पिता को परामर्श देना: शिशु देखभाल प्रथाओं, बाल पोषण तथा स्वस्थ आचरणों पर मार्गदर्शन प्रदान करना।
    • स्वास्थ्य तथा पोषण:
      • पूरक पोषण वितरित करना: विशेष रूप से गर्भवती तथा स्तनपान कराने वाली माताओं एवं छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के बीच कुपोषण को दूर करने के लिये गर्म पका हुआ भोजन, घर ले जाने के लिये राशन व पूरक पोषाहार प्रदान करना।
      • स्वास्थ्य जाँच करना: सामान्य बीमारियों से बचाव के लिये बच्चों के स्वास्थ्य की निगरानी करना, मूल स्वास्थ्य जाँच करना एवं आवश्यकता की स्थिति में उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये रेफर करना।
      • टीकाकरण: बच्चों के लिये टीकाकरण अभियान आयोजित करने तथा उसे सुविधाजनक बनाने में स्वास्थ्य कर्मियों की सहायता करना एवं समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करना।
      • जागरूकता बढ़ाना: माताओं तथा समुदायों को स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्वच्छता व स्वस्थ बाल विकास प्रथाओं के बारे में शिक्षित करना।

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • अल्प पारिश्रमिक: वे मान्यता प्राप्त सरकारी कर्मचारी नहीं होते हैं एवं आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं का मासिक मानदेय कई राज्यों में न्यूनतम वेतन से काफी कम है, जो अमूमन 5,000 से 10,000 रुपए के बीच होता है। 
    • इससे परिणामस्वरूप उनके लिये अपनी मूल आवश्यकतों की पूर्ति करने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है जिससे वे अपना पूरा ध्यान अपने कार्य पर केंद्रित करने से हतोत्साहित हो जाते हैं।
    • उनके मानदेय मिलने में विलंब भी एक आम बात है जिससे उनकी वित्तीय असुरक्षा तथा कठिनाई बढ़ जाती है।
  • कार्य तथा ज़िम्मेदारियों का अत्यधिक बोझ: आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को बहुत सारे कार्यों का उत्तरदायित्व दिया जाता है। इसके अतिरिक्त राज्य सरकारें अमूमन उन्हें बिना किसी अतिरिक्त मानदेय के कोविड-19 संबंधित कर्त्तव्यों, जनगणना कर्त्तव्यों अथवा आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन जैसे अतिरिक्त कार्य का उत्तरदायित्व देती हैं।
    • यह व्यापक कार्यभार अक्सर थकान की ओर ले जाता है और उनके द्वारा प्रदान की जा सकने वाली सेवाओं की गुणवत्ता में बाधा उत्पन्न करता है।
  • उचित प्रशिक्षण और संसाधनों का अभाव: हालाँकि आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को प्रारंभिक प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है, लेकिन यह अक्सर उन्हें उन जटिल कार्यों को संभालने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार करने में विफल रहता है जिनका वे दैनिक सामना करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, आँगनवाड़ी केंद्रों में अक्सर उचित बुनियादी ढाँचे, शिक्षण सामग्री और दवाओं जैसे आवश्यक संसाधनों की कमी होती है, जिससे उनकी प्रभावी ढंग से कार्य करने की क्षमता में बाधा आती है।
  • सामाजिक मान्यता और सम्मान का अभाव: आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं को समुदाय में उनके बहुमूल्य योगदान के लिये अक्सर सामाजिक कलंक और मान्यता की कमी का सामना करना पड़ता है।  सम्मान की यह कमी उनके मनोबल और प्रेरणा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।

आगे की राह

  • बढ़ा हुआ मुआवज़ा और लाभ:
    • जीवन यापन की लागत के अनुरूप उचित और समय पर वेतन संशोधन।
    • स्वास्थ्य बीमा, भविष्य निधि और मातृत्व अवकाश सहित मज़बूत सामाजिक सुरक्षा पैकेज।
  • व्यावसायिक विकास और मान्यता:
    • पदोन्नति के अवसरों के साथ समर्पित कॅरियर प्रगति मार्ग।
    • बाल विकास, स्वास्थ्य, पोषण और प्रारंभिक बचपन की शिक्षा में नियमित, गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम।
    • उनकी विशेषज्ञता को मान्यता देते हुए औपचारिक योग्यताएँ और प्रमाण-पत्र।
  • उन्नत कार्य परिस्थितियाँ और संसाधन:
    • कार्यभार को कम करने के लिये अतिरिक्त आँगनवाड़ी सहायकों के साथ इष्टतम स्टाफिंग स्तर।
    • बेहतर बुनियादी ढाँचे, उपकरण और शिक्षण सामग्री के साथ आँगनवाड़ी केंद्रों को आधुनिक बनाया गया।
    • कुशल रिकॉर्ड-कीपिंग, निगरानी और संचार के लिये तकनीकी-सक्षम समाधान।

  सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना। 
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना। 
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना। 
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a)  केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


भारतीय राजनीति

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद

प्रिलिम्स के लिये:

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद, सर्वोच्च न्यायालय (SC), अनुच्छेद 30(1), अल्पसंख्यक संस्थान, एस. अज़ीज़ बाशा बनाम भारत संघ

मेन्स के लिये:

AMU के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के संदर्भ में कहा कि किसी शैक्षणिक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा मात्र इस आधार पर समाप्त नहीं किया जा सकता कि उसका प्रशासन कानून (Statute) द्वारा विनियमित है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष केंद्र ने कहा था कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को केंद्रीय शैक्षिक संस्था (प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2006 (2012 में संशोधित) की धारा 3 के तहत आरक्षण नीति कार्यान्वित करने की आवश्यकता नहीं है।

विश्वविद्यालय का अल्पसंख्यक दर्जा कब विवाद में आया?

  • AMU का इतिहास:
    • अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की पृष्ठभूमि वास्तव में वर्ष 1875 में सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल (MOA) कॉलेज से शुरू होती है।
    • इसका प्राथमिक उद्देश्य उस अवधि के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के शैक्षिक पिछड़ेपन को दूर करना था।
    • वर्ष 1920 में संस्थान को भारतीय विधान परिषद के एक अधिनियम के माध्यम से विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ। इस परिवर्तन ने MOA कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में परिवर्तित कर दिया।
    • विश्वविद्यालय को MOA कॉलेज की सभी संपत्तियाँ तथा कार्य विरासत में प्राप्त हुई। AMU अधिनियम का आधिकारिक शीर्षक "अलीगढ़ में एक शिक्षण तथा आवासीय मुस्लिम विश्वविद्यालय को शामिल करने हेतु अधिनियम" था।
  • विवाद की उत्पत्ति:
    • AMU अधिनियम 1920 के समक्ष कानूनी चुनौतियाँ: 1920 के AMU अधिनियम में वर्ष 1951 तथा वर्ष 1965 के संशोधनों की कानूनी चुनौतियों ने वर्ष 1967 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद को उत्पन्न किया।
      • इसके मुख्य परिवर्तनों में 'लॉर्ड रेक्टर' के पद को 'विज़िटर' से परिवर्तित करना शामिल है, जो भारत का राष्ट्रपति होगा।
    • गैर-मुस्लिम समुदाय के नागरिकों को विश्वविद्यालय न्यायालय का हिस्सा बनने की अनुमति: विश्वविद्यालय न्यायालय में सदस्यता को केवल मुसलमानों तक सीमित करने वाले प्रावधानों को हटा दिया गया, जिससे गैर-मुसलमानों को भाग लेने की अनुमति मिल गई।
      • इसके अतिरिक्त इन संशोधनों ने कार्यकारी परिषद की शक्तियों को बढ़ाते हुए विश्वविद्यालय न्यायालय के अधिकार को कम कर दिया, जिससे न्यायालय अनिवार्य रूप से 'विज़िटर' द्वारा नियुक्त निकाय बन गया।
      • सर्वोच्च न्यायालय में कानूनी चुनौती मुख्य रूप से इस दावे पर आधारित थी कि मुस्लिम समुदाय ने AMU की स्थापना की थी तथा इसलिए इसे प्रबंधित करने का अधिकार उन्हें दिया जाना चाहिये।
    • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय: वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि मुस्लिम समुदाय द्वारा वर्ष 1920 में एक विश्वविद्यालय की स्थापना की पहल की गई किंतु इससे यह सुनिश्चित नहीं होता की भारत सरकार द्वारा इसकी डिग्री की आधिकारिक मान्यता की गारंटी दी जाएगी।
      • एस अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले, 1967 में शीर्ष न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि चूँकि AMU एक केंद्रीय विश्वविद्यालय था इसलिये इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना जा सकता है।
      • न्यायालय के निर्णय में महत्त्वपूर्ण बिंदु यह था कि AMU की स्थापना एक केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से की गई थी ताकि इसकी डिग्री की सरकारी मान्यता सुनिश्चित की जा सके, यह दर्शाता है कि यह अधिनियम केवल मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का संकलन नहीं था।
      • अदालत ने इस बात पर ज़ोर दिया कि हालाँकि अधिनियम मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों का परिणाम हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि 1920 अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय, मुस्लिम अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित किया गया था।
    • अल्पसंख्यक चरित्र: इस कानूनी चुनौती और उसके बाद वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय  के फैसले ने AMU के अल्पसंख्यक चरित्र की धारणा पर सवाल उठाया, यह तर्क देते हुए कि इसकी स्थापना तथा प्रशासन पूरी तरह से मुस्लिम अल्पसंख्यक के प्रयासों में निहित नहीं था जैसा कि शुरू में तर्क दिया गया था।
      • AMU अधिनियम 1981 के माध्यम से भारत की केंद्र सरकार द्वारा AMU को "राष्ट्रीय महत्व के संस्थान" का दर्जा दिया गया था।

विवाद क्यों बना रहता है?

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद मुसलमानों ने राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन किया, जिससे वर्ष 1981 में AMU के अल्पसंख्यक दर्जे की पुष्टि करने वाला संशोधन हुआ।
    • जवाब में, केंद्र सरकार ने वर्ष 1981 में AMU अधिनियम में एक संशोधन पेश किया और AMU अधिनियम की धारा 2(l) और उपधारा 5(2)(c) को जोड़कर इसकी अल्पसंख्यक स्थिति की स्पष्ट रूप से पुष्टि की।
  • वर्ष 2005 में, AMU ने मुस्लिम उम्मीदवारों के लिये स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रम की 50% सीटें आरक्षित कीं। हालाँकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 1981 के अधिनियम को रद्द करते हुए इस आरक्षण को पलट दिया।
    • अदालत ने तर्क दिया कि सर्वोच्च न्यायालय के एस. अजीज़ बाशा बनाम भारत संघ मामले के अनुसार, AMU अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में योग्य नहीं है।
  • वर्ष 2006 में, केंद्र सरकार की एक याचिका सहित आठ याचिकाओं ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी।
    • वर्ष 2016 में, केंद्र सरकार ने अपनी अपील में कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान की स्थापना एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों के विपरीत है।
  • वर्ष 2019 में तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को सात जजों की बेंच के पास भेज दिया था।

चल रहे AMU मामले में सर्वोच्च न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ हैं?

  • कानून द्वारा विनियमित होने पर अल्पसंख्यक दर्जा नहीं खोएगा:
    • अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून द्वारा विनियमन किसी संस्था की अल्पसंख्यक स्थिति को कम नहीं करता है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा विशेष प्रशासन को अनिवार्य नहीं करता है।
  • धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है:
    • एक अल्पसंख्यक संस्थान को विशेष रूप से धार्मिक पाठ्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश देते हुए एक धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है।
      • एक अल्पसंख्यक संस्थान को विशेष रूप से धार्मिक पाठ्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है और इसमें विभिन्न समुदायों के छात्रों को प्रवेश देते हुए एक धर्मनिरपेक्ष प्रशासन हो सकता है।
  • प्रशासन में बहुसंख्यक समुदाय अल्पसंख्यक दर्जे को प्रभावित नहीं करता:
    • शैक्षणिक संस्थानों की कुछ प्रशासनिक शाखाओं में बहुसंख्यक समुदाय के पदाधिकारियों की मौजूदगी ज़रूरी नहीं कि उनके अल्पसंख्यक चरित्र को कमज़ोर कर दे।

अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न मामले क्या हैं?

  • TMA पाई वाद :
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन के लिये अल्पसंख्यकों के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 30 के प्रयोजन के लिये धार्मिक एवं भाषायी अल्पसंख्यकों का निर्धारण राज्यवार आधार पर किया जाना चाहिये।
  • बाल पाटिल वाद:
    • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने 'बाल पाटिल' वाद में अपने फैसले में ‘टीएमए पाई’ वाद के निर्णय का उल्लेख किया था।
    • कानूनी स्थिति स्पष्ट करती है कि अब से भाषायी और धार्मिक अल्पसंख्यक, दोनों की स्थिति निर्धारित करने की इकाई 'राज्य' होगी।
  • इनामदार मामला:
    • इनामदार मामले, 2005 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार राज्य पेशेवर कॉलेजों सहित अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक गैर-सहायता प्राप्त निजी कॉलेजों पर अपनी आरक्षण नीति लागू नहीं कर सकता है।
      • न्यायालय ने घोषणा की कि निजी, गैर सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में आरक्षण असंवैधानिक है।

अल्पसंख्यक समुदायों के संबंध में संवैधानिक और वैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 29: 
    • इसमें प्रावधान है कि भारत के किसी भी हिस्से में रहने वाले नागरिकों के किसी भी वर्ग की अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उन्हें संरक्षित करने का अधिकार है।
    • यह धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ भाषाई अल्पसंख्यकों दोनों को सुरक्षा प्रदान करता है।
      • हालाँकि SC ने माना कि इस अनुच्छेद का दायरा केवल अल्पसंख्यकों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि अनुच्छेद में 'नागरिकों का वर्ग' शब्द के उपयोग में अल्पसंख्यकों के साथ-साथ बहुसंख्यक भी शामिल हैं।
  • संविधान का अनुच्छेद 30 (1) सभी धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने तथा प्रशासित करने का अधिकार देता है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 30 "अल्पसंख्यक को यहूदी बस्ती में बसाने" के लिये नहीं है।
    • यह प्रावधान यह गारंटी देकर अल्पसंख्यक समुदायों के विकास को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करता है कि यह अल्पसंख्यक संस्थानों की स्थिति के आधार पर सहायता देने में भेदभाव नहीं करेगा।
  • अनुच्छेद 25:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार की रक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 26:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 26 प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय (या उसके किसी भी अनुभाग) को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थान स्थापित करने एवं इसे बनाए रखने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 27:
    • यह किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिये करों के भुगतान के संबंध में स्वतंत्रता निर्धारित करता है।
  • अनुच्छेद 28:
    • यह कुछ शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता देता है।
  • राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Commission for Minorities- NcM)
    • NCM भारत सरकार द्वारा वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 के तहत स्थापित एक स्वायत्त निकाय है।
      • संविधान में अल्पसंख्यकों के लिये प्रदान किये गए सभी सुरक्षा उपायों के प्रवर्तन और कार्यान्वयन हेतु गृह मंत्रालय के वर्ष 1978 के संकल्प में आयोग की स्थापना की परिकल्पना की गई थी।
    • यह भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के कल्याण और विकास से संबंधित मामलों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को सलाह देने के लिये ज़िम्मेदार है।
    • प्रारंभ में पाँच धार्मिक समुदायों अर्थात् मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी को केंद्र सरकार द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया था। वर्ष 2014 में, जैनियों को भी एक अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया गया था।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:  

Q. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (एन.सी.एस.सी.) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये।  (2018)


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