क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी
प्रिलिम्स के लियेक्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी मेन्स के लियेRCEP का महत्त्व और वैश्विक व्यापार में भारत की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
लगभग एक दशक की लंबी वार्ता के पश्चात् इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की 15 अर्थव्यवस्थाओं ने 37वें आसियान शिखर सम्मेलन के मौके पर अंततः क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के रूप में विश्व के सबसे बड़े मुक्त व्यापार ब्लॉक का गठन किया।
प्रमुख बिंदु
- इसी के साथ ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) में भारत के शामिल होने की चर्चा पुनः शुरू हो गई है, जबकि कुछ समय पूर्व भारत ने इस मुक्त व्यापार ब्लॉक में शामिल होने से इनकार कर दिया था।
क्या है क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी?
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसमें आसियान (ASEAN) के दस सदस्य देश तथा पाँच अन्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) शामिल हैं।
- ध्यातव्य है कि यह समझौता इस लिहाज़ से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं है। अमेरिका वर्ष 2017 में ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से भी बाहर हो गया था।
- आसियान के दस सदस्य देशों के अलावा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में मुख्यतः वे देश शामिल हैं जिन्होंने आसियान देशों के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- पृष्ठभूमि: क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के रूप में एक व्यापक मुक्त व्यापार ब्लॉक बनाने को लेकर वार्ता की शुरुआत वर्ष 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान हुई थी और अब लगभग 8 वर्ष बाद इस समझौते को अंतिम रूप दिया गया है।
- भारत शुरुआत से ही क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के लिये होने वाली वार्ताओं का हिस्सा रहा है किंतु वर्ष 2019 में भारत ने कुछ अनसुलझे मुद्दों और चीन से संबंधित चिंताओं का हवाला देते हुए इसमें शामिल न होने का निर्णय लिया था।
क्यों महत्त्वपूर्ण है RCEP?
- कई विश्लेषण मानते हैं कि व्यापारिक दृष्टिकोण से क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) का विशाल आकार इसे वैश्विक स्तर पर काफी महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- ध्यातव्य है कि अपने वर्तमान स्वरूप में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के अंतर्गत विश्व की कुल आबादी का लगभग एक-तिहाई हिस्सा कवर किया गया है। वहीं यह मुक्त व्यापार ब्लॉक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 29% हिस्सा कवर करता है।
- एक अनुमान के मुताबिक, चीन द्वारा समर्थित यह समूह अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौते और यूरोपीय संघ (EU) दोनों को पीछे छोड़ते हुए दुनिया में सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते के रूप में उभर सकता है।
- उम्मीद के अनुसार, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) आगामी 20 वर्ष के भीतर आयात पर लगने वाले शुल्क को पूर्णतः समाप्त कर देगा। इस समझौते में बौद्धिक संपदा, दूरसंचार, वित्तीय सेवाओं, ई-कॉमर्स और पेशेवर सेवाओं से संबंधित प्रावधान भी शामिल हैं।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के तहत, सभी सदस्य राष्ट्रों के साथ एक समान व्यवहार किया जाएगा।
- इस समझौते के कारण वर्ष 2030 तक वैश्विक आय में 186 बिलियन डॉलर तक की बढ़ोतरी हो सकती है, साथ ही यह समझौता अपने सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था में 0.2% की बढ़ोतरी कर सकता है।
- हालाँकि, कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस सौदे से चीन, जापान और दक्षिण कोरिया को अन्य सदस्य देशों की तुलना में अधिक लाभ होने की संभावना है।
चीन के लिये इस समझौते के निहितार्थ
- COVID-19 महामारी के पश्चात् चीनी अर्थव्यवस्था को गति देने में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- यह समझौता चीन को व्यापक पैमाने पर जापान तथा दक्षिण कोरिया के बाज़ारों तक पहुँच प्रदान करने में मदद करेगा। उल्लेखनीय है कि तीनों देशों ने अभी तक आपस में कोई भी मुक्त व्यापार समझौता नहीं किया है।
- यद्यपि चीन ने पहले से ही कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं किंतु यह पहली बार है जब उसने किसी क्षेत्रीय बहुपक्षीय व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।
भारत का पक्ष
- गौरतलब है कि भारत वर्ष 2019 में ही कुछ असहमतियों के कारण इस समझौते से बाहर हो गया था, हालाँकि मौजूदा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) पर सहमति व्यक्त करते हुए सभी सदस्य देशों ने सामूहिक रूप से कहा है कि भारत भविष्य में कभी भी इस समझौते में शामिल होने के लिये आवेदन कर सकता है।
- इस समझौते को लेकर भारत की प्रमुख चिंताओं में से एक आयात में वृद्धि के विरुद्ध अपर्याप्त संरक्षण भी था, क्योंकि भारतीय उद्योगों को भय था कि इस समझौते पर हस्ताक्षर करने से भारतीय बाज़ारों में चीन के सस्ते उत्पादों बाढ़ आ जाएगी।
- हाल ही में आयोजित हुए 17वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन के दौरान भारत ने क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला किंतु इस दौरान RCEP को लेकर भारत ने कोई चर्चा नहीं की, सभवतः इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि भारत चीन के साथ अपनी सीमा पर तनाव के कारण चीन समर्थित किसी समूह में शामिल नहीं होना चाह रहा है।
आगे की राह
- एक व्यापक मुक्त व्यापार ब्लॉक के रूप में यह एक ऐतिहासिक व्यापारिक पहल है, जिसके कारण इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के बीच वाणिज्य को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलेगी।
- यह देखते हुए कि इस समझौते में शामिल होने के लिये भारत के पास अभी भी कई अवसर हैं, भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) को लेकर अपने हितों को सभी सदस्य देशों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिये, क्योंकि भारत ने पहले ही 12 देशों के साथ व्यापार और निवेश संबंधी समझौते किये हुए हैं।
स्रोत: द हिंदू
‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम का विस्तार
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त अरब अमीरात की अवस्थिति, ‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम मेन्स के लियेकार्यक्रम के विस्तार के निहितार्थ और इसके लाभ |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने अपने ‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम का विस्तार करते हुए इसके तहत कुछ पेशेवरों और विशिष्ट डिग्री धारकों को शामिल करने की घोषणा की है।
प्रमुख बिंदु
- संयुक्त अरब अमीरात की सरकार द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक, डॉक्टरेट (Doctorate) और मेडिकल डॉक्टर डिग्री धारक तथा कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्रोग्रामिंग, इलेक्ट्रिकल, बायोटेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग डिग्री धारक इस प्रोग्राम का लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
- इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), बिग डेटा और एपिडेमियोलॉजी अथवा महामारी विज्ञान के क्षेत्र में विशिष्ट डिग्री धारक संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के ऐसे छात्र भी इस प्रोग्राम का लाभ प्राप्त करने में सक्षम होंगे, जिन्होंने 3.8 या उससे अधिक GPA प्राप्त किया है।
- ये परिवर्तन 1 दिसंबर, 2020 से लागू होंगे।
निहितार्थ
- मुख्यतः एक तेल और गैस उत्पादक देश होने के कारण कोरोना वायरस महामारी और तेल की कम कीमत ने संयुक्त अरब अमीरात की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है, इसके कारण कई प्रवासी अपने देश जाने को भी मजबूर हो गए हैं। ऐसे में संयुक्त अरब अमीरात की सरकार के इस निर्णय को अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के एक प्रयास के रूप में भी देखा जा सकता है।
लाभ
- संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की सरकार द्वारा लिये गए इस निर्णय का उद्देश्य विभिन्न क्षेत्रों और वैज्ञानिक विषयों के विशेषज्ञों तथा प्रतिभाशाली पेशेवरों को आकर्षित करना एवं उन्हें संयुक्त अरब अमीरात के विकास से जोड़ना है।
- ‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम के विस्तार से विश्व भर के प्रतिभाशाली लोग संयुक्त अरब अमीरात में अपना कॅरियर शुरू करने के प्रति आकर्षित होंगे, जिससे वहाँ नवाचार, रचनात्मकता और प्रायोगिक अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सकेगा, जो कि संयुक्त अरब अमीरात के विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है।
भारत की दृष्टि से
- संयुक्त अरब अमीरात का यह निर्णय भारत के युवाओं खासतौर पर तकनीकी क्षेत्र में कार्यरत युवाओं के लिये काफी महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है और इससे युवाओं को रोज़गार के नए अवसर तलाशने में भी मदद मिलेगी।
- ऐतिहासिक रूप से भारत में इंजीनियरिंग डिग्री धारकों की संख्या सबसे अधिक रही है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम 15 लाख इंजीनियरिंग छात्र विभिन्न शाखाओं जैसे IT, मैकेनिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल, सिविल आदि से स्नातक की डिग्री प्राप्त करते हैं।
- इसे भारत का ‘इंजीनियरिंग संकट’ (Engineering Crisis) ही कहा जाएगा कि इतनी बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग स्नातक होने के बावजूद केवल 2.5 लाख स्नातकों को ही तकनीकी क्षेत्र में रोज़गार मिल पाता है।
‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम
- ‘गोल्डन वीज़ा’ प्रोग्राम की शुरुआत वर्ष 2019 में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद द्वारा की गई थी, जो कि एक दीर्घकालिक निवास कार्यक्रम है।
- इस कार्यक्रम का संपूर्ण उद्देश्य संयुक्त अरब अमीरात में एक आकर्षक निवेश वातावरण का निर्माण करना है, जो देश में व्यावसायिक विकास को प्रोत्साहित करेगा और नई प्रतिभाओं को आकर्षित करेगा।
- आमतौर पर संयुक्त अरब अमीरात प्रवासियों को स्थायी निवास वीज़ा नहीं प्रदान करता है, किंतु गोल्डन वीज़ा एक नवीकरणीय 10-वर्षीय वीज़ा है, जिससे प्रवासियों को वहाँ दीर्घकाल के लिये रहने का अवसर मिलता है।
- अभी तक वीज़ा केवल निवेशकों, उद्यमियों, मुख्य कार्यकारी अधिकारियों और वैज्ञानिकों आदि को जारी किया जाता था, किंतु अब हालिया घोषणा के साथ ही तकनीक, मेडिकल और कला क्षेत्र के प्रतिभाशाली युवाओं को भी इसका लाभ मिल सकेगा।
स्रोत: द हिंदू
अरुणाचल बॉर्डर के पास चीन की रेलवे
प्रिलिम्स के लिये:दापोरिजो पुल, सिसेरी नदी पुल, बोगीबील पुल, हिम विजय मेन्स के लिये:सीमा क्षेत्रों में चीन की बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ और भारत की सुरक्षा |
चर्चा में क्यों?
चीन ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण रेलवे लाइन जो चीन के सिचुआन प्रांत (Sichuan Province) को तिब्बत में निंगची (Nyingchi) से जोड़ेगी पर कार्य करना शुरू कर दिया है। यह रेलवे लाइन भारत के अरुणाचल प्रदेश की सीमा के पास है।
प्रमुख बिंदु:
- यह तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region-TAR) को चीन की मुख्य भूमि के साथ जोड़ने वाला दूसरा ऐसा मार्ग होगा। इससे पहले किंघाई-तिब्बत रेलवे लाइन (Qinghai-Tibet Railway Line) द्वारा ल्हासा को हिंटरलैंड क्षेत्र से जोड़ा जा चुका है।
भारत पर प्रभाव:
सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ:
- यह रेलवे लाइन काफी हद तक सीमा क्षेत्र में चीनी सैन्यकर्मियों और सामग्री के परिवहन एवं रसद आपूर्ति की दक्षता व सुविधा में सुधार करेगी।
- अरुणाचल प्रदेश सीमा के पास प्रत्यक्ष गतिरोध की स्थितियों में जैसा कि डोकलाम या हाल ही में लद्दाख गतिरोध के दौरान देखा गया था, चीन एक लाभप्रद स्थिति में हो सकता है।
पारिस्थितिकी से संबंधित चिंताएँ:
- परियोजना लाइन से संबद्ध संवेदनशील पारिस्थितिक वातावरण, भारत के लिये पारिस्थितिकी से संबंधित चिंताएँ उत्पन्न कर सकता है।
भारत द्वारा हाल ही में उठाए गए कदम:
- भारत, सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (Border Area Development Programme- BADP) का केवल 10% धन चीन सीमा से लगे बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये खर्च करेगा।
- सीमा सड़क संगठन (BRO) ने अरुणाचल प्रदेश में सुबनसिरी नदी के ऊपर सिर्फ 27 दिनों के रिकॉर्ड समय में दापोरीजो पुल (Daporijo Bridge) का निर्माण किया। यह भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) तक जाने वाली सड़कों को जोड़ता है।
- हाल ही में रक्षा मंत्री ने अरुणाचल प्रदेश के पश्चिम कामेंग ज़िले में नेचिफु (Nechiphu) में एक सुरंग की नींव रखी। यह तवांग के माध्यम से LAC तक सैनिकों की यात्रा में लगने वाले समय को कम कर देगा, जिसे चीन अपने क्षेत्र में होने का दावा करता है।
- BRO पहले से ही अरुणाचल प्रदेश में से ला दर्रे (Se La pass) के तहत एक ‘ऑल वेदर टनल’ का निर्माण कर रहा है जो तवांग को अरुणाचल व गुवाहाटी के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।
- अरुणाचल प्रदेश सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे क्षेत्रों से शहरी केंद्रों की ओर जनसंख्या के पलायन (विशेष रूप से चीन सीमा के साथ लगे क्षेत्रों से) को रोकने के लिये केंद्र सरकार से पायलट विकास परियोजनाओं की मांग की है। अरुणाचल प्रदेश सरकार ने भारत-चीन सीमा पर बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये पायलट परियोजनाओं के रूप में 10 जनगणना शहरों (Census Towns) के चयन की सिफारिश की है।
- हाल ही में रक्षा मंत्री ने अरुणाचल प्रदेश में निचली दिबांग घाटी में स्थित सिसेरी नदी पुल (Sisseri River Bridge) का उद्घाटन किया, जो दिबांग घाटी को सियांग से जोड़ता है।
- वर्ष 2019 में भारतीय वायु सेना ने अरुणाचल प्रदेश में भारत के सबसे पूर्वी गाँव-विजयनगर (चांगलांग ज़िले) में पुनर्निर्मित हवाई पट्टी का उद्घाटन किया।
- वर्ष 2019 में भारतीय सेना ने अपने नए ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (Integrated Battle Groups- IBG) के साथ अरुणाचल प्रदेश और असम में 'हिमविजय' (HimVijay) अभ्यास किया।
- बोगीबील पुल (Bogibeel Bridge) जो भारत का सबसे लंबा सड़क-रेल पुल है, असम में डिब्रूगढ़ को अरुणाचल प्रदेश में पासीघाट से जोड़ता है। इसका उद्घाटन वर्ष 2018 में किया गया था।
- यह भारत-चीन सीमा के पास के क्षेत्रों में सैनिकों और उपकरणों की त्वरित आवाजाही की सुविधा प्रदान करेगा।
भारत-चीन सीमा क्षेत्र:
- भारत और चीन सीमा साझा करते हैं जो लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक 3488 किलोमीटर तक फैली हुई है।
- दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद अभी भी अनसुलझा है।
- इसे तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
- पश्चिमी क्षेत्र: यह लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश (UT) के अंतर्गत आता है और 1597 किमी. लंबा है।
- यह दोनों देशों के बीच सबसे अधिक विवादित क्षेत्र है।
- मध्य क्षेत्र: यह उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पड़ता है और 545 किलोमीटर लंबा है।
- यह दोनों देशों के बीच सबसे कम विवादित क्षेत्र है।
- पूर्वी क्षेत्र: यह सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में पड़ता है और 1346 किलोमीटर लंबा है।
- चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत का हिस्सा मानता है जिसे भारत खारिज करता है।
आगे की राह:
- भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये अपनी सीमा के पास चीन में किसी भी नए ढाँचागत विकास के मामले में पर्याप्त रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है। इसके अलावा इसे अपने क्षेत्र में दुर्गम सीमा क्षेत्रों में मज़बूत बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है ताकि कुशल तरीके से सैन्यकर्मियों एवं रसद की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
राजस्व बकाए में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:वित्त आयोग, जीएसटी उपकर मेन्स के लिये:राज्यों के कर राजस्व में गिरावट, उपकर विवाद, 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 15वें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जून 2022 तक राज्यों के कर राजस्व में गिरावट और जीएसटी उपकर (GST Cess) के बीच का अंतर 2.3 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर 7 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच सकता है।
प्रमुख बिंदु:
- गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत की है।
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आयोग के अनुसार, यदि अगले 20 महीनों में जीएसटी संग्रह में निरंतर वृद्धि नहीं होती है तो ऐसी स्थिति में राज्यों के कर राजस्व में गिरावट और जीएसटी उपकर के बीच का अंतर तीव्र वृद्धि के साथ 5-7 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच सकता है।
- वस्तुतः राज्यों को दी जाने वाली जीएसटी क्षतिपूर्ति के बकाए में काफी वृद्धि हो सकती है।
- वर्तमान वित्तीय वर्ष में राज्यों के कर राजस्व में 3 लाख करोड़ रुपए तक की गिरावट का अनुमान है, जबकि इस दौरान जीएसटी उपकर के रूप में प्राप्त कुल राजस्व 65,000 रुपए ही रह सकता है।
- ध्यातव्य है कि COVID-19 महामारी से पहले ही देश की अर्थव्यवस्था में कुछ गिरावट देखी जा रही थी परंतु इस महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये लागू देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को गंभीर क्षति हुई है।
राज्यों के कर राजस्व में गिरावट का कारण:
- गौरतलब है कि जीएसटी प्रणाली में शामिल होने के बाद राज्यों की स्थानीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाने की शक्ति समाप्त हो गई, जिससे राज्यों की आय में भारी गिरावट देखने को मिली है।
- केंद्र सरकार के पूर्व अनुमान के अनुरूप जीएसटी के तहत पर्याप्त कर संग्रह न होने के कारण राज्य के राजस्व में कमी हुई है।
- इस चुनौती को दूर करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा ‘जीएसटी (राज्यों को प्रतिपूर्ति) अधिनियम, 2017’ के तहत कुछ निर्धारित वस्तुओं पर उपकर संग्रहण के माध्यम से राज्यों को अगले पाँच वर्षों (वर्ष 2017-22) तक जीएसटी के कारण उनके राजस्व में हुई कमी की भरपाई का आश्वासन दिया गया।
- जीएसटी उपकर में गिरावट को देखते हुए अक्तूबर 2020 में वित्त आयोग ने जीएसटी उपकर को वर्ष 2022 के बाद भी अनिश्चितकाल (जब तक राज्यों को जून 2022 तक बकाए मुआवज़े का पूरा भुगतान नहीं जाता) के लिये जारी रखने का निर्णय लिया था।
चुनौतियाँ:
- 14वें वित्त आयोग के विपरीत वर्तमान वित्त आयोग ने आगामी पाँच वर्षों में प्रत्येक वर्ष के लिये जीडीपी वृद्धि के अलग-अलग अनुमान जारी किये हैं।
- गौरतलब है कि 15वें वित्त आयोग ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट जारी करते समय कई आर्थिक बदलावों (जैसे-विमुद्रीकरण और जीएसटी आदि) के कारण देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट के बीच अगले पाँच वर्षों के लिये जीडीपी वृद्धि का विश्वसनीय अनुमान जारी करने को अत्यंत कठिन बताया था।
राज्यों को कर हस्तांतरण:
- 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों की हिस्सेदारी के निर्धारण हेतु वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों को आधार बनाए जाने पर कई राज्यों ने चिंता व्यक्त की थी।
- राज्यों के अनुसार, वर्ष 1971 के बाद से जनसंख्या नियंत्रण की योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने के कारण उनकी हिस्सेदारी जनसंख्या बाहुल्य राज्यों की अपेक्षा कम हो जाएगी।
- इस चुनौती को दूर करने के लिये 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों की हिस्सेदारी के निर्धारण के लिये कुल प्रजनन अनुपात को एक अतिरिक्त मानक के रूप में शामिल किया गया है।
- आयोग ने महत्त्वपूर्ण सुधारों को आगे बढ़ाने हेतु राज्यों के लिये संभावित प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन पर भी ध्यान दिया है।
15वाँ वित्त आयोग:
- 15वें वित्त आयोग का गठन 27 नवंबर, 2017 को किया गया था।
- योजना आयोग के पूर्व सदस्य श्री एन. के सिंह को 15वें वित्त आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
- गौरतलब है कि श्री एन.के. सिंह भारत सरकार के पूर्व सचिव एवं वर्ष 2008-2014 तक बिहार से राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं।
- 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें वित्तीय वर्ष 2020-25 तक पाँच साल की अवधि में लागू की जाएंगी।