5G में मिलीमीटर वेव बैंड
प्रिलिम्स के लिये:मिलीमीटर वेव बैंड, 5G, लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO), सैटेलाइट इंडस्ट्री, स्पेक्ट्रम, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन। मेन्स के लिये:5G तकनीक, 5G के मिमी. वेव बैंड और इससे संबंधित चिंताएँ, सैटेलाइट कम्युनिकेशन, इंटरनेशनल टेलीकम्युनिकेशन यूनियन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन-इंडिया (SIA) ने 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी में मिलीमीटर वेव (mm Wave) बैंड को शामिल करने की सरकार की योजना पर चिंता व्यक्त की है।
- SIA एक औद्योगिक निकाय है जो भारत में संचार उपग्रह पारिस्थितिकी तंत्र के हितों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने नीलामी के लिये स्पेक्ट्रम की मात्रा से संबंधित विषयों पर उद्योगों के विचार मांगे थे।
प्रमुख बिंदु
- 5G तकनीक:
- परिचय:
- 5G 5वीं पीढ़ी का मोबाइल नेटवर्क है। यह 1G, 2G, 3G और 4G नेटवर्क के बाद एक नया वैश्विक वायरलेस मानक है। 5G नेटवर्क एमएम वेव स्पेक्ट्रम में काम करेगा।
- यह एक नए प्रकार के नेटवर्क को सक्षम बनाता है जिसे मशीनों, वस्तुओं और उपकरणों सहित लगभग सभी को एक साथ जोड़ने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- 5G में बैंड: 5G मुख्य रूप से 3 बैंड में काम करता है, अर्थात् निम्न, मध्य और उच्च आवृत्ति स्पेक्ट्रम जिनमें से सभी के अपने उपयोग के साथ-साथ सीमाएँ भी हैं।
- निम्न बैंड स्पेक्ट्रम: यह इंटरनेट और डेटा एक्सचेंज की कवरेज एवं गति के मामले में बहुत अच्छा कार्य करता है, हालाँकि अधिकतम गति 100 एमबीपीएस (प्रति सेकंड मेगाबिट्स) तक सीमित है।
- मध्य बैंड स्पेक्ट्रम: यह कम बैंड की तुलना में उच्च गति प्रदान करता है, लेकिन कवरेज क्षेत्र और सिग्नल के प्रवेश के मामले में इसकी सीमाएँ हैं।
- उच्च बैंड स्पेक्ट्रम: इसमें तीनों बैंडों की उच्चतम गति है, लेकिन इसमें बेहद सीमित कवरेज और सिग्नल इनपुट क्षमता है।
- 5G के हाई-बैंड स्पेक्ट्रम में इंटरनेट की गति का परीक्षण 20 Gbps (गीगाबिट प्रति सेकंड) के रूप में किया गया है, जबकि अधिकांश मामलों में 4G में अधिकतम इंटरनेट डेटा गति 1 Gbps दर्ज की गई है।
- परिचय:
- मिलीमीटर वेव-बैंड:
- परिचय:
- यह रेडियो फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम का एक विशेष भाग है जो 24 गीगाहर्ट्ज़ और 100 गीगाहर्ट्ज़ के बीच होता है।
- जैसा कि नाम से पता चलता है इस स्पेक्ट्रम में एक छोटी तरंग दैर्ध्य है और यह अधिक गति एवं कम विलंबता प्रदान करने के लिये उपयुक्त है। यह बदले में डेटा ट्रांसफर को कुशल और निर्बाध बनाता है क्योंकि वर्तमान उपलब्ध नेटवर्क केवल कम आवृत्ति बैंडविथ पर ही बेहतर तरीके से कार्य करते हैं।
- महत्त्व:
- 5G सेवाओं को कम आवृत्ति बैंड का उपयोग करके तैनात किया जा सकता है। ये अधिक दूरी तय कर सकती हैं और शहरी वातावरण में भी कुशलता से काम करने के लिये सिद्ध होते हैं, जहाँ हस्तक्षेप की संभावना होती है।
- लेकिन जब डेटा गति की बात आती है तो ये बैंड वास्तविक 5G अनुभव के लिये आवश्यक चरम क्षमता को छूने में विफल होते हैं। ऐसे में mmWave मोबाइल सेवा प्रदाताओं के लिये सर्वोत्कृष्ट है।
- उपग्रह उद्योग पर प्रभाव:
- इंटरनेट मोटे तौर पर फाइबर-ऑप्टिक आधारित ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी या मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से उपयोगकर्ताओं को प्रदान किया गया है। हाल ही में इंटरनेट विक्रेताओं का एक और वर्ग दिखाई दे रहा है। ये उपग्रह आधारित संचार सेवा प्रदाता हैं।
- यह खंड शहरी और ग्रामीण दोनों उपयोगकर्त्ताओं को ब्रॉडबैंड प्रदान करने के लिये लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) उपग्रहों का उपयोग करता है। उनकी सेवा का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी के लिये भी किया जा सकता है।
- 23.6-24 गीगाहर्ट्ज़ पर मौसम उपग्रहों के लिये उपयोग किये जाने वाले निष्क्रिय उपग्रह बैंड में आउट ऑफ बैंड उत्सर्जन के कारण mmWave विवाद का विषय रहा था।
- आउट ऑफ बैंड उत्सर्जन आवश्यक बैंडविड्थ के ठीक बाहर आवृत्ति या आवृत्तियों पर उत्सर्जन है जो मॉड्यूलेशन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप होता है।
- सूचना के संगत संचरण को प्रभावित किये बिना ‘आउट ऑफ बैंड’ उत्सर्जन के स्तर को कम नहीं किया जा सकता है
- परिचय:
- उद्योग द्वारा उठाई गई चिंताएँ::
- आईटीयू मानदंडों के खिलाफ:
- SIA ने नियामक से 5G नीलामी में mmWave स्पेक्ट्रम को शामिल किये जाने को सीमित करने का आग्रह किया क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) द्वारा लिये गए निर्णय के अनुसार, उपग्रह-आधारित ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिये 27.5-31 GHz और 17.7-21.2 GHz बैंड को संरक्षित किया गया है।
- उद्योग निकाय ने यूरोप के "5G रोडमैप" की ओर इशारा किया जो उपग्रह-आधारित ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिये इन बैंडों को रखने के ITU के निर्णय पर बनाया गया है।
- लाभ से इनकार:
- इसने यह भी नोट किया कि आगामी 5G नीलामी में अत्यधिक स्पेक्ट्रम संसाधनों की पेशकश के परिणामस्वरूप भारतीय नागरिकों को उच्च-मांग, उन्नत उपग्रह ब्रॉडबैंड सेवाओं के लाभों से वंचित किया जाएगा।
- अर्थव्यवस्था को नुकसान:
- इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 184.6 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक का भारी नुकसान होगा, साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और रोजगार सृजन लाभों का नुकसान होगा।
- आईटीयू मानदंडों के खिलाफ:
- SIA’s के सुझाव:
- सैटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन-इंडिया ने इस बात को भी इंगित किया है कि 3.3-3.67 GHz बैंड में 330 MHz स्पेक्ट्रम प्रतिस्पर्द्धाी नीलामी सुनिश्चित करते हुए भारत की मिड बैंड 5G ज़रूरतों को पूरा करने हेतु पर्याप्त है।
- उद्योग निकाय ने इस बात पर बल दिया है कि अतिरिक्त स्पेक्ट्रम प्रदान करने से उपग्रह-आधारित सेवा प्रदाताओं की कीमत पर स्थलीय सुविधा द्वारा बिना बिके या इससे भी खराब, कम उपयोग किये जाने वाले बैंड के नकारात्मक जोखिम पैदा हो सकते हैं। एमएमवेव बैंड का आवंटन उपग्रह संचार उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण है जिसे यह सुनिश्चित करने के लिये एक मज़बूत नियामक समर्थन की आवश्यकता है कि 5G का संचालन उनके मौजूदा संचालन में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
स्रोत: द हिंदू
वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण
प्रिलिम्स के लिये:IPC की धारा 375, IPC की धारा 498A, न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति। मेन्स के लिये:वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण, आईपीसी की धारा 375, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) डेटा, न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की मांग वाली याचिका दर्ज की गई है।
- इसके जवाब में केंद्र सरकार ने कहा कि वह इसे अपराधी बनाने की दिशा में "रचनात्मक दृष्टिकोण" पर विचार कर रही है और विभिन्न हितधारकों से सुझाव भी मांगे है।
- याचिका में आपराधिक कानून में संशोधन की मांग की गई है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 (बलात्कार) शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- भूमिका:
- बलात्कार के अभियोजन के लिये "वैवाहिक प्रतिरक्षा" का आधार समाज की पितृसत्तात्मक सोच से उभरा हैं।
- जिसके अनुसार, विवाह के बाद एक पत्नी की व्यक्तिगत एवं यौन स्वायत्तता, शारीरिक अखंडता और मानवीय गरिमा का अधिकार आत्मसमर्पित हो जाता है।
- सत्तर के दशक में नारीवाद की दूसरी लहर के प्रभाव से ऑस्ट्रेलिया वर्ष 1976 में सुधारों को पारित करने वाला पहला देश बन गया और इसके बाद कई स्कैंडिनेवियाई व यूरोपीय देशों ने वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक अपराध बना दिया।
- बलात्कार के अभियोजन के लिये "वैवाहिक प्रतिरक्षा" का आधार समाज की पितृसत्तात्मक सोच से उभरा हैं।
- वैवाहिक बलात्कार के संबंध में कानूनी प्रावधान:
- वैवाहिक बलात्कार के अपवाद: भारतीय दंड संहिता की धारा 375, जो एक पुरुष को उसकी पत्नी के साथ जबरदस्ती अनैच्छिक यौन संबंधों की छूट देती है, बशर्ते पत्नी की उम्र 15 वर्ष से अधिक हो। इसे वैवाहिक बलात्कार के अपवाद" (Marital Rape Exception) के रूप में भी जाना जाता है।
- अर्थात् IPC की धारा 375 के अपवाद 2 के तहत पंद्रह वर्ष से अधिक की आयु के पति और पत्नी के बीच अनैच्छिक यौन संबंधों को धारा 375 के तहत निर्धारित "बलात्कार" की परिभाषा से बाहर रखा गया है तथा इस प्रकार यह ऐसे कृत्यों के अभियोजन को रोक देता है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने से संबंधित मुद्दे:
- महिलाओं के मूल अधिकारों के खिलाफ: वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा और लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।
- न्यायिक प्रणाली की निराशाजनक स्थिति: भारत में वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अभियोजन की कम दर के कुछ कारणों में शामिल हैं:
- सोशल कंडीशनिंग और कानूनी जागरूकता के अभाव के कारण अपराधों की कम रिपोर्टिंग।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के आंँकड़ों के संग्रह का गलत तरीका।
- न्याय की लंबी प्रक्रिया/स्वीकार्य प्रमाण की कमी के कारण अदालत के बाहर समझौता।
- न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट: 16 दिसंबर, 2012 के गैंग रेप मामले में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद गठित जे. एस. वर्मा समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की अनुशंसा की थी।
- इस कानून की समाप्ति से महिलाएँ उत्पीड़क पतियों से सुरक्षित होंगी, वैवाहिक बलात्कार से उबरने के लिये आवश्यक सहायता प्राप्त कर सकेंगी और घरेलू हिंसा एवं यौन शोषण से स्वयं की रक्षा में सक्षम होंगी।
- सरकार का पक्ष:
- विवाह संस्था पर विघटनकारी प्रभाव: अब तक सरकार ने कई मौकों पर कहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने से विवाह संस्था को खतरा होगा और निजता के अधिकार का भी उल्लंघन होगा।
- कानूनी प्रावधानों का दुरुपयोग: आईपीसी की धारा 498ए (एक विवाहित महिला का उसके पति और ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न) और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 का दुरुपयोग बढ़ रहा है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपराध बनाना पतियों को परेशान करने का एक आसान साधन बन सकता है।
आगे की राह
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण निश्चित रूप से एक प्रतीकात्मक शुरुआत होगी।
- दंपत्ति के यौन इतिहास, पीड़ित को शारीरिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान जैसे विभिन्न पहलुओं के आधार पर चिकित्सा कर्मियों, परिवार परामर्शदाताओं, न्यायाधीशों और पुलिस की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा सजा का फैसला किया जा सकता है।
- व्यवहार में बदलाव लाना: पीड़ितों की आर्थिक स्वतंत्रता की सुविधा के लिये सहमति, समय पर चिकित्सा देखभाल और पुनर्वास, कौशल विकास और रोज़गार के महत्व पर जनता (नागरिकों, पुलिस, न्यायाधीशों, चिकित्सा कर्मियों) को जागरूक करने वाले जागरूकता अभियानों के माध्यम से वैधानिक सुधार किया जाना चाहिये।
स्रोत- द हिंदू
विधायकों का निलंबन
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 212, अनुच्छेद 194, संविधान की मूल संरचना, लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 की धारा 151 (ए) मेन्स के लिये:जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951, शक्तियों का पृथक्करण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा के 12 विधायक अपने एक वर्ष के निलंबन के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय गए हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने पाया है कि विधायको का पूरे एक वर्ष के लिये निलंबन प्रथम दृष्टया असंवैधानिक है और इन निर्वाचन क्षेत्रों में एक संवैधानिक शून्य की स्थिति पैदा करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- विधायकों के निलंबन के बारे में:
- विधायकों को ओबीसी के डेटा के खुलासे के संबंध में विधानसभा में किये गए दुर्व्यवहार के लिये निलंबित किया गया है।
- निलंबन की चुनौती मुख्य रूप से नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के खंडन और निर्धारित प्रक्रिया के उल्लंघन के आधार पर निर्भर करती है।
- 12 विधायकों ने कहा है कि उन्हें अपना मामला पेश करने का मौका नहीं दिया गया और निलंबन ने संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है।
- महाराष्ट्र विधानसभा का नियम 53: इसमें कहा गया है कि "अध्यक्ष किसी भी उस सदस्य को विधानसभा से तुरंत हटने के लिये निर्देश दे सकता है जो उसके फैसले को मानने से इनकार करता है या जिसका आचरण उसकी राय में अव्यवस्था उत्पन्न करता है"।
- सदस्य को "दिन की शेष बैठक के दौरान खुद का अनुपस्थित" रहना होगा।
- यदि किसी सदस्य को उसी सत्र में दूसरी बार वापस लेने का आदेश दिया जाता है तो अध्यक्ष सदस्य को अनुपस्थित रहने का निर्देश दे सकता है, जो "किसी भी अवधि के लिये सत्र के शेष दिनों से अधिक नहीं होना चाहिये"।
- महाराष्ट्र विधानसभा द्वारा तर्क:
- अनुच्छेद 212: सदन ने अनुच्छेद 212 के तहत अपनी विधायी क्षमता के तहत कार्य किया तथा न्यायालय को विधायिका की कार्यवाही की जाँच करने का अधिकार नहीं है।
- अनुच्छेद 212 (1) के अनुसार, "किसी राज्य के विधानमंडल प्रक्रिया की किसी कथित अनियमितता के आधार पर किसी राज्य के विधानमंडल में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर सवाल नहीं उठाया जाएगा।
- अनुच्छेद 194: राज्य ने सदन की शक्तियों और विशेषाधिकारों पर अनुच्छेद 194 का भी उल्लेख किया और तर्क दिया है कि इन विशेषाधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी सदस्य को सदन की अंतर्निहित शक्तियों के माध्यम से निलंबित किया जा सकता है।
- राज्य द्वारा इस बात से भी इनकार किया गया है कि किसी सदस्य को निलंबित करने की शक्ति का प्रयोग केवल विधानसभा के नियम 53 के माध्यम से किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 212: सदन ने अनुच्छेद 212 के तहत अपनी विधायी क्षमता के तहत कार्य किया तथा न्यायालय को विधायिका की कार्यवाही की जाँच करने का अधिकार नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए तर्क:
- संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन: विधानसभा में पूरे एक साल तक निलंबित विधायकों के निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व न होने से संविधान का मूल ढाँचा प्रभावित होगा।
- संवैधानिक आवश्यकता: पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190 (4) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है, "यदि किसी राज्य के विधानमंडल के सदन का कोई सदस्य साठ दिनों की अवधि तक सदन की अनुमति के बिना उसकी सभी बैठकों से अनुपस्थित रहता है, तो सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है।"
- वैधानिक आवश्यकता: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151 (ए) के तहत, "किसी भी रिक्ति को भरने के लिये वहाँ एक उप-चुनाव, रिक्ति होने की तारीख से छह महीने की अवधि के भीतर आयोजित किया जाएगा"।
- इसका मतलब है कि इस धारा के तहत निर्दिष्ट अपवादों को छोड़कर, कोई भी निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक प्रतिनिधि के बिना नहीं रह सकता है।
- पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित करना: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक वर्ष का निलंबन प्रथम दृष्टया असंवैधानिक था क्योंकि यह छह महीने की सीमा से आगे निकल गया था और यहाँ "सदस्य को नहीं बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप का प्रश्न: उच्चतम न्यायालय से इस प्रश्न पर शासन करने की अपेक्षा की जाती है कि क्या न्यायपालिका सदन की कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकती है।
- हालाँकि संवैधानिक विशेषज्ञों का कहना है कि न्यायालय ने पिछले फैसलों में स्पष्ट किया है कि सदन द्वारा किये गए असंवैधानिक कृत्य के मामले में न्यायपालिका हस्तक्षेप कर सकती है।
संसद सदस्य के निलंबन के प्रावधान:
- लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के अंतर्गत नियम 378 के अनुसार, लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सदन में व्यवस्था बनाई रखी जाएगी तथा उसे अपने निर्णयों को प्रवर्तित करने के लिये सभी शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
- नियम 373 के अनुसार, यदि लोकसभा अध्यक्ष की राय में किसी सदस्य का व्यवहार अव्यवस्थापूर्ण है तो अध्यक्ष उस सदस्य को लोकसभा से बाहर चले जाने का निर्देश दे सकता है और जिस सदस्य को इस तरह का आदेश दिया जाएगा, वह तुरंत लोकसभा से बाहर चला जाएगा तथा उस दिन की बची हुई बैठक के दौरान वह सदन से बाहर रहेगा।
- नियम 374 (1), (2) तथा (3) के अनुसार, यदि लोकसभा अध्यक्ष की राय में किसी सदस्य ने अध्यक्ष के प्राधिकारों की उपेक्षा की है या वह जान बूझकर लोकसभा के कार्यों में बाधा डाल रहा है तो लोकसभा अध्यक्ष उस सदस्य का नाम लेकर उसे अवशिष्ट सत्र से निलंबित कर सकता है तथा निलंबित सदस्य तुरंत लोकसभा से बाहर चला जाएगा।
- नियम 374 (क) (1) के अनुसार, नियम 373 और 374 में अंतर्विष्ट किसी प्रावधान के बावजूद यदि कोई सदस्य लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से लोकसभा की कार्यवाही में बाधा डालकर जान-बूझकर सभा के नियमों का उल्लंघन करते हुए घोर अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उसका नाम लिये जाने पर वह लोकसभा की पाँच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिये (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित माना जाएगा।