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भारतीय समाज

वैवाहिक बलात्कार:महिलाओं के लिये एक अपमान

  • 01 Sep 2021
  • 15 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 31/08/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Marital rape: an indignity to women’’ पर आधारित है। इसमें वैवाहिक बलात्कार के गैर-अपराधीकरण (non-criminalisation of marital rape) से संबंधित समस्याओं की चर्चा की गई है और आगे की राह सुझाई गई है।

हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए एक निर्णय ने वैवाहिक बलात्कार के गैर-अपराधीकरण पर बहस को फिर से शुरू कर दिया है। भले ही महिलाओं की सुरक्षा के लिये आपराधिक कानून में कई संशोधन किये गए हैं, लेकिन भारत में वैवाहिक बलात्कार के गैर-अपराधीकरण की स्थिति महिलाओं की गरिमा और मानवाधिकारों को कमज़ोर करती है।

नवीनतम मामला

  • छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में आवेदक पति के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को चुनौती देने वाली एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (criminal revision petition) पर निर्णय दिया।
  • पत्नी के आरोपों के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार), धारा 377 (अप्राकृतिक शारीरिक संभोग) और धारा 498A  (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा पत्नी के प्रति क्रूरता) के तहत पति पर आरोप तय किये थे। 
  • छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने धारा 498A और धारा 377 के तहत तय आरोपों को तो बरकरार रखा लेकिन धारा 376 के आरोप से पति को इस आधार पर मुक्त कर दिया कि धारा 375 (बलात्कार की परिभाषा) के अपवाद 2 के अनुरूप एक पुरुष द्वारा अपनी पत्नी (यदि वह 18 वर्ष से अधिक आयु की है) के साथ संभोग बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।   
  • चूँकि उच्च न्यायालय कानून के दायरे में रहने को बाध्य था, उसके पास अन्य कोई विकल्प या निष्कर्ष उपलब्ध नहीं था। कानूनी परिकल्पना में विवाह के अंतर्गत सभी प्रकार के यौन संबंध परस्पर-सहमत (consensual) माने जाते हैं और पतियों को अपनी पत्नियों के साथ बलात यौन संबंध या बलात्कार के लिये मुकदमा चलाने या दंडित करने से छूट प्रदान की गई है।
  • इसके बावजूद, भारतीय आपराधिक कानून की विसंगतियाँ और विफलताएँ, जो इस निर्णय से उजागर हुईं, विचारणीय और परीक्षण के योग्य हैं।

वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने से संबद्ध समस्याएँ

  • असंगत प्रावधान: एक पति पर किसी अन्य पुरुष की तरह ही यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, दृश्यरतिकता (voyeurism) और जबरन नग्न करने (forcible disrobing) जैसे अपराधों के लिये मुकदमा चलाया जा सकता है।  
    • इसके अलावा, अपनी पत्नी से अलग रह रहे पति पर बलात्कार का मुकदमा भी चलाया जा सकता है (धारा 376B)। 
    • हालाँकि, वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अन्य यौन अपराधों के साथ असंगत है।
  • पितृसत्तात्मक धारणाएँ: वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा और लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।   
    • जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि व्यभिचार का अपराध (offence of adultery) असंवैधानिक था क्योंकि यह इस सिद्धांत पर आधारित था कि एक स्त्री विवाह के बाद अपने पति की संपत्ति है।  
    • वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना एक सदृश पितृसत्तात्मक धारणा की पुष्टि है कि विवाह के बाद एक पत्नी की व्यक्तिगत एवं यौन स्वायत्तता, शारीरिक अखंडता और मानवीय गरिमा का अधिकार आत्मसमर्पित हो जाता है।
  • विवाह संस्था के नष्ट होने की संभावना: वैवाहिक बलात्कार छूट को संरक्षित करने के लिये यहाँ तक कि सरकार द्वारा भी आमतौर पर यह तर्क दिया जाता कि वैवाहिक बलात्कार को एक आपराधिक कृत्य के रूप में मान्यता देना 'विवाह संस्था’ (Institution of Marriage) को नष्ट कर देगा।  
  • पति-संरक्षण या संश्रय का सिद्धांत (Doctrine of Coverture): वैवाहिक बलात्कार की गैर-आपराधिक प्रकृति का उदय ब्रिटिश काल में हुआ। वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने की धारणा बहुत हद तक पति-संरक्षण या संश्रय के सिद्धांत से व्युत्पन्न और प्रभावित है, जहाँ विवाह के बाद स्त्री की पहचान (identity) को उसके पति के साथ संयुक्त कर दिया गया है।  
    • 1860 के दशक में, जब भारतीय दंड संहिता (IPC) का मसौदा तैयार किया गया था, उस समय एक विवाहित महिला को एक स्वतंत्र कानूनी इकाई नहीं माना जाता था।
    • IPC में बलात्कार की परिभाषा से वैवाहिक बलात्कार को अलग या अपवाद के रूप में रखना विक्टोरियन पितृसत्तात्मक मानदंडों से प्रभावित था, जो पुरुषों और महिलाओं को एकसमान मान्यता नहीं देता था तथा विवाहित महिलाओं को संपत्ति रखने की अनुमति नहीं थी; साथ ही, पति और पत्नी की पहचान को "संश्रय के सिद्धांत" के तहत एक साथ संयुक्त कर दिया गया था।  
  • अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के विरुद्ध: हमारे संविधान के उदार और प्रगतिशील मूल्यों के विपरीत और ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन’ (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women) जैसे साधनों के तहत भारत के अंतर्राष्ट्रीय कर्त्तव्यों/दायित्वों का उल्लंघन करते हुए यह प्रावधान पुरुषों के समक्ष महिलाओं की अधीनता (विशेष रूप से विवाह के अंतर्गत) को रेखांकित करता है।    
    • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस अपवाद की पुनर्व्याख्या की थी ताकि अपनी नाबालिग (18 वर्ष की आयु से कम) पत्नियों से बलात्कार करने वाले पति इस अपवाद के आधार पर बच न सकें।
    • यह उपयुक्त समय है कि वयस्क महिलाओं को भी विवाह में इसी प्रकार की सुरक्षा और गरिमा प्रदान की जाए।

महिलाओं पर वैवाहिक बलात्कार के प्रभाव

  • पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार और अन्य दुर्व्यवहार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट (emotional distress) और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थ्य प्रभाव उत्पन्न करता है।  
  • वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित करता है। एक ओर पारिवारिक हिंसक माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करता है, तो दूसरी ओर ये घटनाएँ स्वयं की और अपने बच्चों की उपयुक्त देखरेख कर सकने की महिलाओं की क्षमता को कमज़ोर कर सकती हैं।    
  • अपरिचित या परिचित व्यक्ति द्वारा बलात्कार की शिकार पीड़िताओं (stranger and acquaintance rape victims) की तुलना में वैवाहिक बलात्कार की शिकार पीड़िताएँ (Marital rape victims) बार-बार बलात्कार की घटनाओं का शिकार होने की अधिक संभावना रखती हैं। वैवाहिक बलात्कार पीड़िताएँ दीर्घावधिक दैहिक आघातों का शिकार होती हैं जो कई मामलों में अपरिचित व्यक्ति द्वारा बलात्कार की शिकार पीड़िताओं के आघात से भी अधिक गंभीर हो सकते हैं।
  • वैवाहिक बलात्कार की शिकार महिलाएँ कई कारणों से विवाह में बने रहने को बाध्य हो सकती हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण अधिक हिंसा का डर, वित्तीय सुरक्षा की हानि, आत्महीनता की भावना और साथी के व्यवहार में परिवर्तन की झूठी आशा हैं।

आगे की राह 

  • विवाह की संस्था के विरुद्ध नहीं: इंडिपेंडेंट थॉट बनाम भारत संघ (2017) मामले में सरकार ने वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने का बचाव इस आधार पर किया था कि यह विवाह संस्था के विरुद्ध है।    
    • हालाँकि इस दावे को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि "विवाह संस्थागत नहीं बल्कि व्यक्तिगत विषय है—विवाह की 'संस्था' को कुछ भी नष्ट नहीं कर सकता है, सिवाय ऐसे कानून के जो विवाह को अवैध और दंडनीय बनाता है।"  
    • इस परिप्रेक्ष्य में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद से बाहर निकाला जा सकता है।
  • वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण: महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (The United Nations Declaration on the Elimination of Violence against Women) में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को इस रूप में परिभाषित किया गया है—"लिंग-आधारित हिंसा का ऐसा कृत्य जो महिलाओं के शारीरिक, लैंगिक और मानसिक हानि या पीड़ा का परिणाम देता हो या देने की संभावना रखता हो और इसमें ऐसे कृत्यों से उत्पन्न खतरे, स्वतंत्रता से बलपूर्वक या मनमाने ढंग से वंचित करना शामिल है, चाहे वे सार्वजानिक जीवन में घटित हों या निजी जीवन में.’’  
    • वर्ष 2013 में महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के उन्मूलन पर संयुक्त राष्ट्र समिति (UN Committee on Elimination of Discrimination Against Women- CEDAW) ने सिफारिश की थी कि भारत सरकार को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करना चाहिये।
  • न्यायमूर्ति वर्मा समिति की रिपोर्ट: 16 दिसंबर, 2012 के गैंग रेप मामले में राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद गठित जे. एस. वर्मा समिति ने भी वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण की अनुशंसा की थी।  
    • इस कानून की समाप्ति से महिलाएँ उत्पीड़क पतियों से सुरक्षित होंगी, वैवाहिक बलात्कार से उबरने के लिये आवश्यक सहायता प्राप्त कर सकेंगी और घरेलू हिंसा एवं यौन शोषण से स्वयं की रक्षा में सक्षम होंगी।
  • महिला अधिकार जागरूकता कार्यक्रम: सुचारू रूप से कार्यान्वित जागरूकता अभियान लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों को आश्रय, परामर्श, व्यावहारिक एवं कानूनी सलाह और अन्य सेवाएँ प्रदान कर सकता है।  
    • जागरूकता के प्रसार के लिये स्थानीय, राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक एवं निवारक कार्यक्रम शुरू किये जा सकते हैं।

निष्कर्ष

भारतीय कानून अब पतियों और पत्नियों को पृथक तथा स्वतंत्र कानूनी पहचान प्रदान करते हैं और आधुनिक युग में न्याय प्रणाली प्रकट रूप से महिलाओं की सुरक्षा पर केंद्रित हुई है।

इसलिये यह उपयुक्त समय है कि विधायिका को इस कानूनी दुर्बलता या विसंगति का संज्ञान लेना चाहिये और IPC की धारा 375 (अपवाद 2) को निरस्त कर वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार कानूनों के दायरे में लाना चाहिये।

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अभ्यास प्रश्न: बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है। चर्चा कीजिये।

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