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डेली न्यूज़

  • 14 Nov, 2019
  • 35 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिमी घाट में  तितली का सर्वेक्षण

प्रीलिम्स के लिये:

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य,  चिनार वन्यजीव अभयारण्य, संकेतक प्रजाति  

मेन्स के लिये:

जैव-विविधता पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केरल सरकार ने पश्चिमी घाट में स्थित वायनाड वन्यजीव अभयारण्य और चिनार वन्यजीव अभयारण्य के क्षेत्र में तितली सर्वेक्षण किया है।

प्रमुख बिंदु

  • सर्वेक्षण का उद्देश्य पश्चिमी घाट के वन क्षेत्रों में तितली की विविधता (Butterfly Diversity) का आकलन करना है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होती है। यह सर्वेक्षण दक्षिण भारत के मैदानी इलाकों से पश्चिमी घाट क्षेत्रों में वार्षिक तितली प्रवास के साथ मेल खाता (Coincide) है।
  • तितली एक संकेतक प्रजाति है, इसलिये इस प्रकार का सर्वेक्षण पारिस्थितिकी पर जलवायु परिवर्तन के अंतर्संबंध और प्रभावों का अध्ययन करने में मदद करेगा।
  • एक संकेतक प्रजाति (Indicator Species) पारिस्थितिकी तंत्र की समग्र स्थिति और उस पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों के बारे में जानकारी प्रदान करती है। ये पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ-साथ सामुदायिक संरचना के पहलुओं की गुणवत्ता और परिवर्तनों को दर्शाती हैं।

मुख्य निष्कर्ष:

  • सर्वेक्षण से ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र में तितलियों की 191 प्रजातियाँ हैं, जिनमें से 12 इस क्षेत्र की स्थानिक (Endemic) हैं। 
  • सर्वेक्षण में तितलियों की दुर्लभ ‘सिल्वर फॉरगेट मी नॉट’ (Silver Forget Me Not), ‘कॉमन थ्री रिंग’ (Common Three Ring,) और ‘ब्राउन ओनीक्स’ (Brown Onyx) जैसी प्रजातियाँ देखी गईं।
  • वन क्षेत्रों में तितलियों की बहुत कम विविधता पाई गई है, इसका कारण कि यहाँ पर सेना स्पेक्ट्बिल्स (Senna Spectabilis) जैसे आक्रामक विदेशी पौधे पाए जाते हैं। सेना स्पेक्टबिल्स जैसे  आक्रामक विदेशी पौधे तितलियों के कई मेजबान पौधों के विकास को प्रभावित करते हैं।

वायनाड वन्यजीव अभयारण्य
Wayanad Wildlife sanctuary- WWS)

  • यह मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान, मुकुर्ती राष्ट्रीय उद्यान और शांत घाटी के साथ नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व का हिस्सा है।
  • इसकी भौगोलिक अवस्थिति इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह उत्तर-पूर्वी भाग में कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिज़र्व और नागरहोल राष्ट्रीय उद्यान जैसे अन्य संरक्षित क्षेत्रों के साथ दक्षिण-पूर्व में तमिलनाडु का मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व को पारिस्थितिक और भौगोलिक निरंतरता (Ecological And Geographic Continuity) प्रदान करता है।
  • इस अभयारण्य में विश्व की एशियाई हाथियों (Asiatic Elephant) की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है।
  • वायनाड ज़िले में काबिनी और उसकी तीन सहायक नदियाँ (पनामारम, मनंथावादि और कालिंदी) प्रवाहित होती हैं।
  • केरल की पूर्वी भाग में प्रवाहित होने वाली काबिनी कावेरी नदी की महत्त्वपूर्ण सहायक नदी है।

चिनार वन्यजीव अभयारण्य 
(Chinnar Wildlife Sanctuary- CWS)

  • यह केरल राज्य के 13 अभयारण्यों में से एक है और केरल के इड्डकी ज़िले में अन्नामलाई पहाड़ी (Annamalai Hill) के पास स्थित है।
  • यह इराविकुलम राष्ट्रीय उद्यान (Eravikulam National Park) के क्षेत्र के अंतर्गत आता है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

अंतर्राष्ट्रीय बीज संधि

प्रीलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय बीज संधि, PPV&FR 2001, FAO

मेन्स के लिये:

बीजों पर बौद्धिक संपदा अधिकार से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

खाद्य और कृषि के लिये वनस्पति आनुवंशिक संसाधनों की अंतर्राष्ट्रीय संधि के शासी निकाय का आठवाँ सत्र (रोम) इटली में 11 से 16 नवंबर, 2019 तक आयोजित किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • इसका शासी निकाय सत्र अर्द्धवार्षिक रूप से आयोजित किया जाता है।
  • भारत द्वारा संबंधित मुद्दों को दूर करने के लिये वनस्पति आनुवंशिक संसाधनों के संरक्षण और भारतीय कानून संरक्षण की विविधता और किसानों के अधिकार (Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights- PPV&FR) अधिनियम की विशिष्टता पर चर्चा की गई।

खाद्य और कृषि के लिये वनस्पति आनुवांशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि
(International Treaty of Plant Genetic Resources for Food and Agriculture- ITPGRFA)

  • इसे 3 नवंबर 2001 को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के 31वें सत्र सम्मेलन में अपनाया गया था।

उद्देश्य:

  • किसानों का योगदान: फसलों की विविधता को पहचानने के लिये किसानों का योगदान।
  • पहुँच और लाभ साझा करना (Access and Benefit Sharing): किसानों, पौधों के प्रजनकों (Breeders) और वैज्ञानिकों को आनुवंशिक सामग्री के उपयोग की सुविधा प्रदान करने के लिये एक वैश्विक प्रणाली स्थापित करना।
  • संधारणीयता (Sustainability): खाद्य और कृषि के लिये संयंत्र आनुवंशिक संसाधनों (Plant Genetic Resource) का संरक्षण और निरंतर उपयोग करना तथा उनके उपयोग से होने वाले लाभों का उचित- न्यायसंगत साझाकरण एवं जैविक विविधता पर सम्मेलन (Convention on Biological Diversity) के साथ स्वभाव।
  • यह बीज संधि के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि यह विश्व के खाद्य और कृषि के लिये वनस्पति आनुवंशिक संसाधन के संरक्षण, विनिमय और स्थायी उपयोग के माध्यम से खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता (Signatory) देश है।

पौधों की विविधता और किसानों के अधिकार अधिनियम, 2001
Protection of Plant Varieties and Farmers’ Rights (PPV&FR) Act, 2001

  • इसका उद्देश्य किसानों और प्रजनकों (Breeder’s) के अधिकारों की रक्षा करना है।
  • अधिनियम के अनुसार, एक किसान ब्राॅण्ड (Brand) के नाम को छोड़कर PPV&FR अधिनियम, 2001 के तहत संरक्षित किस्म के बीज सहित अपने खेत की उपज को सुरक्षित करने (Save), उपयोग करने, बोने, विनिमय करने, साझा करने या बेचने का हकदार है।
  • यह अधिनियम अंतर्राष्ट्रीय संधि के अनुच्छेद-9 के अनुरूप है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत, 138 कृषकों/कृषक समुदायों को पादप किस्मों और किसानों के अधिकार प्राधिकरण द्वारा संयंत्र जीनोम उद्धारकर्त्ता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
  • यह पुरस्कार प्रतिवर्ष किसानों को आनुवंशिक संसाधनों (एक संवर्द्धित पौधे की गतिशील जनसंख्या) और वाणिज्यिक पौधों को नुकसान पहुँचाने वाले आक्रामक पौधों के उन्मूलन में लगे किसानों को दिया जाता है।

स्रोत- PIB


भारतीय अर्थव्यवस्था

इस्पात/स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति

प्रीलिम्स के लिये:

स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति, हब और स्पोक मॉडल, 6Rs सिद्धांत

मेन्स के लिये:

पुनर्चक्रण नीति से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय इस्पात मंत्रालय द्वारा इस्पात/स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति (Steel Scrap Recycling Policy) जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु

  • इस्पात क्षेत्र में चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy)
    • गुणवत्ता वाले स्टील उत्पादन के लिये वाहनों और व्हाइट गुड्स (White Goods) से निकलने वाले स्टील स्क्रैप का उपयोग करना।
    • इससे भारत की वाहनों के आयात पर निर्भरता कम होगी।
  • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR)
    • ऑटोमोबाइल वाहनों के अप्रयोग की स्थिति में उनके पुनर्चक्रण को ध्यान में रखते हुए वाहनों को डिज़ाइन किया जाएगा।
    • भारत में धातु स्क्रैपिंग केंद्रों की (Metal Scrapping Centres) स्थापना को बढ़ावा देने के लिये नीति में एक रूपरेखा की परिकल्पना की गई है।
  • हब और स्पोक मॉडल (Hub and Spoke model- H&S)
    • हब और स्पोक मॉडल का उपयोग तब किया जाता है जब एक केंद्रीय लोकेशन (जिसे 'हब' कहा जाता है) के साथ कई लोकेशन स्थान (Multiple Locations Sourcing) होते हैं। यह लोकेशन ग्राहक के संपर्क के लिये एक एकल बिंदु प्रदान करता है, जिसे 'स्पोक' कहा जाता है।
    • नीति के तहत स्क्रैप (लौह, गैर-लौह और अन्य गैर-धातु) पुनर्नवीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
    • 4 संग्रहण (Collection) और निराकरण केंद्र (Dismantling Centre) 1 स्क्रैप प्रसंस्करण केंद्र (Processing Centre) के साथ कार्य करेंगे।
  • पर्यावरण पर विशेष ध्यान दिया गया है
    • यह नीति 6Rs {Reduce- कम करना, Reuse-पुन: उपयोग, Recycle- पुनरावृत्ति, Recover- पुनर्प्राप्त, Redesign- नया स्वरूप और Remanufacture नया निर्माण} के सिद्धांतों पर काम करेगी।
    • इसका उद्देश्य ग्रीन हाउस गैस (Green House Gas- GHG) उत्सर्जन को कम करना है।
    • इसका उद्देश्य पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEF & CC) द्वारा जारी किये गए खतरनाक और अन्य अपशिष्टों (प्रबंधन और सीमा-पार (Transboundary) मूवमेंट) नियमों, 2016 (Hazardous & Other Wastes (Management & Transboundary Movement) Rules, 2016) के अनुपालन हेतु खतरनाक अपशिष्टों के उपचार के लिये एक तंत्र बनाना है।

भारत में इस्पात स्क्रैप की स्थिति:

  • स्क्रैप के रूप में प्रयुक्त या पुन: उपयोग की जाने वाली स्टील, भारतीय स्टील उद्योग के लिये द्वितीयक कच्चा माल है वहीं लौह अयस्क स्टील बनाने का प्राथमिक स्रोत है।
  • इस्पात स्क्रैप की वर्तमान आपूर्ति घरेलू असंगठित स्क्रैप उद्योग से 25 मिलियन टन और स्क्रैप के आयात से 7 मिलियन टन है।
  • प्रतिस्पर्द्धी दरों पर कच्चे माल की उपलब्धता इस्पात उद्योग के विकास और राष्ट्रीय स्टील नीति (National Steel Policy- NSP) 2017 लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये जरूरी है।
  • NSP-2017 का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 300 मिलियन टन प्रति वर्ष स्टील उत्पादन क्षमता बनाकर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी स्टील उद्योग विकसित करना है।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

उपासना स्थल अधिनियम, 1991

 प्रीलिम्स के लिये:

उपासना स्थल अधिनियम, 1991

मेन्स के लिये:

उपासना स्थल अधिनियम, 1991 प्रावधान और महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद मामले (Ayodhya verdict) में उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 {Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991} का उल्लेख किया, जो स्वतंत्रता के समय मौजूद धार्मिक उपासना स्थलों को बदलने (Conversion of Religious Places) पर रोक लगाता है।

  • यह अधिनियम बाबरी मस्ज़िद (वर्ष 1992) के विध्वंस से एक वर्ष पहले सितंबर 1991 में पारित किया गया था।

उद्देश्य:

  • इस अधिनियम की धारा 3 (Section 3) के तहत किसी पूजा के स्थान या उसके एक खंड को अलग धार्मिक संप्रदाय की पूजा के स्थल में बदलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • यह अधिनियम राज्य पर एक सकारात्मक दायित्व (Positive Obligation) भी प्रदान करता है कि वह स्वतंत्रता के समय मौजूद प्रत्येक पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को बनाए रखे।
  • सभी धर्मों में समानता बनाए रखने और संरक्षित करने के लिये विधायी दायित्व राज्य की   एक आवश्यक धर्मनिरपेक्ष विशेषता (Secular Feature) है, यह भारतीय संविधान की मूल विशेषताओं में से एक है।

छूट (Exemption)

  • अयोध्या में विवादित स्थल को अधिनियम से छूट दी गई थी इसलिये इस कानून के लागू होने के बाद भी अयोध्या मामले पर मुकदमा लड़ा जा सका।
  • यह अधिनियम किसी भी पूजा स्थल पर लागू नहीं होता है जो एक प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक या प्राचीन स्मारक हो अथवा पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 (Archaeological Sites and Remains Act, 1958) द्वारा कवर एक पुरातात्विक स्थल है।

दंड 

  • अधिनियम की धारा 6 में अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ अधिकतम तीन वर्ष की कैद का प्रावधान है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जॉर्डन-इज़राइल शांति संधि का अंत 

प्रीलिम्स के लिये

बखूरा (नहराईम/Naharayim ) तथा अल घमर (ज़ोफर/Tzofar) की भौगोलिक स्थिति

मेन्स के लिये 

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में इज़राइल-जॉर्डन संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जॉर्डन ने इज़राइल के साथ हुए 25 वर्ष पुराने शांति संधि (Peace treaty) के एक प्रावधान का अंत कर दिया।

  • मुख्य बिंदु:
  • 26 अक्तूबर, 1994 में जॉर्डन तथा इज़राइल के मध्य एक संधि हुई थी जिसके द्वारा दोनों देशों के मध्य स्थित सीमावर्ती क्षेत्र ‘बखूरा’ (हिब्रू में नहराईम) तथा ‘अल घमर’ (ज़ोफर) के लिये विशेष प्रावधान किये गए थे।
  • इज़राइल-जॉर्डन शांति संधि में बखूरा तथा अल घमर से संबंधित मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे:
    • बखूरा तथा अल घमर के क्षेत्र पर जॉर्डन की प्रभुसत्ता बनी रहेगी परंतु इज़राइल को इस क्षेत्र के निजी उपयोग का अधिकार प्राप्त होगा।
    • इन अधिकारों के तहत इज़राइल के नागरिक इस क्षेत्र में बिना किसी रोक-टोक के आवाजाही कर सकेंगे तथा कृषि, पर्यटन व अन्य संबंधित कार्यों के लिये उन्हें छूट प्रदान की जाएगी।
    • इन क्षेत्रों में दोनों देशों में से किसी भी देश के आप्रवासन (Immigration) तथा सीमा शुल्क से (Custom) संबंधित नियम नहीं लागू होंगे।
    • इस क्षेत्र पर इज़राइल का अधिकार आगामी 25 वर्षों के लिये लागू रहेगा तथा इस अवधि के पूरा होने के बाद इसे स्वतः ही नवीकृत (Renewed) मान लिया जाएगा।
    • इस संधि के नवीकरण को लेकर यदि किसी देश को आपत्ति होगी तो वह इसके समाप्ति के एक वर्ष पूर्व सूचित कर सकता है तथा इस स्थिति में आपसी विचार-विमर्श द्वारा निर्णय लिया जाएगा।
  • वर्ष 2019 में इस संधि की अवधि समाप्त होने के बाद जॉर्डन ने इज़राइल को पट्टे (Lease) पर दिये गए बखूरा तथा अल घमर के इलाके को दुबारा देने से मना कर दिया। इस संबंध में वर्ष 2018 में ही जॉर्डन ने इज़राइल को सूचित कर दिया था।
  • ये दोनों ही क्षेत्र जॉर्डन-इज़राइल की सीमा पर बसे हैं जिसमें ‘बखूरा’ गैलिली समुद्र (Sea of Galilee) के किनारे व जॉर्डन नदी (Jordan river) के तट पर तथा ‘अल घमर’ मृत सागर (Dead sea) के दक्षिण में स्थित है।

jordan

जॉर्डन का संधि से अलग होने का कारण:

  • इज़राइल द्वारा जेरुसलम की अल-अक्सा (Al-Aqsa Mosque) मस्जिद पर अवैध कब्ज़ा तथा जॉर्डन के नागरिकों को इज़राइल में नज़रबंद (Detention) किये जाने से दोनों देशों के मध्य तनाव बढ़ा है।
  • अमेरिका द्वारा जेरुसलम को इज़राइल की राजधानी घोषित किये जाने के बाद अरब देशों में इज़राइल के प्रति असंतोष की स्थिति बनी है। अतः जॉर्डन ने इज़राइल का विरोध करने के उद्देश्य से यह निर्णय लिया है।
  • पिछले एक दशक से इज़राइल लगातार दोनों देशों के मध्य स्थित वेस्ट बैंक (West Bank) तथा जॉर्डन घाटी (Jordan Valley) में अवैध निर्माण तथा कब्ज़ा कर रहा है। इज़राइल इस पूरे क्षेत्र पर अपनी संप्रभुता चाहता है जबकि जॉर्डन चाहता है कि इस क्षेत्र पर एक संप्रभु देश फिलिस्तीन (Palestine) बनाया जाए।
  • इज़राइल तथा जॉर्डन के मध्य पिछले एक दशक से वैचारिक तथा आर्थिक विवाद की स्थिति बनी हुई हैं।
  • संधि के समाप्त होने से प्रभाव:
  • पिछले 25 वर्षों से इज़राइल के किसान इन दोनों क्षेत्रों में खेती करते आ रहे थे। इस संधि की समाप्ति के बाद वर्षों से चले आ रहे उनकी आजीविका के साधन समाप्त हो जाएंगे।
  • जॉर्डन द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार इज़राइली किसान अपनी बची हुई फसलों की कटाई कर सकते हैं लेकिन अब उस क्षेत्र में प्रवेश के लिये उन्हें वीज़ा लेना होगा।

इज़राइल-जॉर्डन संबंध: पृष्ठभूमि

  • द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश संरक्षित क्षेत्र (Brititsh Mandate) फिलिस्तीन (आधुनिक इज़राइल, जॉर्डन तथा फिलिस्तीन) को विभाजित करके इज़राइल का निर्माण किया गया। विश्व युद्ध के दौरान यूरोप से विस्थापित हुए यहूदियों (Jews) को यहाँ बसाया गया तथा वर्ष 1947 में इज़राइल एक स्वतंत्र देश बना।
  • प्रारंभ में जॉर्डन इज़राइल के संबंध, इज़राइल तथा अन्य अरब देशों से भिन्न थे। दोनों देश एक लंबी भौगोलिक सीमा साझा करते हैं तथा वर्ष 1947 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रस्तावित बँटवारे को जॉर्डन ने स्वीकार कर लिया था। इसके तहत यह तय किया गया था कि इज़राइल तथा जॉर्डन में क्रमशः यहूदी तथा मुसलमान अलग-अलग रहेंगे।
  • इज़राइल की स्थापना के समय से ही अन्य अरब देशों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि मुस्लिमों के पवित्र स्थल जेरुसलम पर इज़राइल का अधिकार हो गया था।
  • इज़राइल के गठन के बाद ही वर्ष 1948 में अरब देशों ने संयुक्त रूप से इज़राइल पर आक्रमण कर दिया तथा अरब देशों के दबाव में जॉर्डन को भी युद्ध में हिस्सा लेना पड़ा। युद्ध के बाद जॉर्डन ने पूर्वी जेरुसलम तथा वेस्ट बैंक पर कब्ज़ा कर लिया।
  • वर्ष 1967 में हुए तीसरे अरब-इज़राइल युद्ध (छः दिवसीय युद्ध) में इज़राइल की जीत हुई तथा गाजा पट्टी (Gaza Strip), वेस्ट बैंक तथा पूर्वी जेरुसलम पर इज़राइल  का पुनः अधिकार हो गया।
  • फिलिस्तीन के हक में जॉर्डन ने इज़राइल से बातचीत के माध्यम से समझौता करने का प्रयास किया परंतु इसका कोई हल नहीं निकल सका।
  • अंततः 25 जुलाई, 1994 को संयुक्त राज्य अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डी. सी. में हुए समझौते के बाद जॉर्डन-इज़राइल  के बीच लंबे अरसे से चली आ रही युद्ध जैसी स्थिति के बाद शांति स्थापित हो सकी।
  • उसी वर्ष 26 अक्तूबर, 1994 में दोनों देशों में यारमूक (Yarmouk) तथा जॉर्डन (Jordan) नदियों के जल प्रयोग के साथ ही बखूरा एवं अल घमर के इलाकों से संबंधित अधिकार को लेकर संधि हुई।

स्रोत : द हिंदू 


शासन व्यवस्था

विश्व मधुमेह दिवस

प्रीलिम्स के लिये:

विश्व मधुमेह दिवस, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मधुमेह रोगियों तक इंसुलिन की पहुंच बढ़ाने के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

13 नवंबर 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व मधुमेह दिवस से एक दिन पहले मधुमेह रोगियों तक इंसुलिन की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये एक कार्यक्रम प्रारंभ किया है।

मुख्य बिंदु:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) ने 13 नवंबर, 2019 को विश्व मधुमेह दिवस से एक दिन पहले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में मधुमेह पीड़ितों की इंसुलिन तक आसान पहुँच स्थापित करने के लिये एक नए कार्यक्रम की घोषणा की है।
  • इस कार्यक्रम से विश्व में लगभग 420 मिलियन व्यक्ति लाभान्वित होंगे।
  • मधुमेह से संबंधित वैश्विक रिपोर्ट के अनुसार, गरीब देशों में प्रत्येक 3 में से 1 मधुमेह रोगी की ही आसान उपचार और इंसुलिन तक पहुँच है।
  • इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि मधुमेह रोगी तक इंसुलिन की पहुँच को जीवन या मृत्यु से संबंधित मामला माना जाना चाहिये और सामान्य रूप से मधुमेह पीड़ितों तक इंसुलिन की पहुँच में सुधार करने को  प्राथमिकता देनी चाहिये।
  • इंटरनेशनल डायबिटीज़ फेडरेशन डायबिटीज़ एटलस (International Diabetes Federation Diabetes Atlas) के सातवें संस्करण के अनुसार, वर्ष 2017 में चीन में मधुमेह से प्रभावित रोगियों की संख्या सर्वाधिक 11.43 करोड़ थी जबकि दूसरे स्थान पर भारत (7.29 करोड़) में सर्वाधिक मधुमेह प्रभावित रोगी थे।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey), 2015-16 के अनुसार, भारत में 15-49 वर्ष आयु वर्ग की 5.8% महिला तथा 8% पुरुष मधुमेह रोगियों में रक्तशर्करा का स्तर 140 mg/dl से भी अधिक है।
  • मधुमेह में वृद्धि के लिये अस्वास्थ्यवर्द्धक आहार, शारीरिक गतिविधियों की कमी, अल्कोहल का उपयोग, मोटापा तथा तंबाकू का उपयोग प्रमुख रूप से ज़िम्मेदार है।
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उच्च रक्त शर्करा स्तर वाले रोगियों की जीवन शैली एवं व्यवहार में परिवर्तन लाने, तीव्र जाँच और निदान तथा अन्य गैर संक्रामक रोगों के उपचार के उपयुक्त प्रबंधन के लिये जागरूकता फैलाई जा रही है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रारंभ किया गया कार्यक्रम:

  • WHO द्वारा विश्व मधुमेह दिवस के अवसर पर पहली बार इंसुलिन प्रीक्वालिफिकेशन (Prequalification) कार्यक्रम को पायलट कार्यक्रम के रूप में प्रारंभ किया गया है।
  • WHO के अनुसार, विश्व में टाइप-2 मधुमेह से पीड़ित लगभग 65 मिलियन व्यक्तियों में से आधे व्यक्तियों की ही इंसुलिन तक पहुँच है। मधुमेह टाइप-1 से पीड़ित रोगियों को जीवित रहने के लिये जीवन भर इंसुलिन की आवश्यकता होती है।
  • WHO के अनुमान के अनुसार, इंसुलिन प्रीक्वालिफिकेशन (Prequalification) कार्यक्रम के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का प्रसार करके तथा विभिन्न देशों को इंसुलिन उत्पादों के अधिक से अधिक विकल्प उपलब्ध कराकर मधुमेह रोगियों को कम कीमत पर इंसुलिन उपलब्ध कराना है। वर्तमान में इंसुलिन की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद निम्न और मध्यम आय वाले देशों में इंसुलिन की कीमतें मधुमेह के उपचार में सबसे बड़ी बाधक हैं।

इन्सुलिन तक पहुँच: एक चुनौती

  • WHO द्वारा वर्ष 2016-2019 के दौरान 4 महाद्वीपों के 24 देशों से एकत्रित किये गए आँकड़े यह दर्शाते हैं कि मानव इंसुलिन केवल 61% स्वास्थ्य सुविधाओं तथा एनालॉग (प्रयोगशाला आधारित) इंसुलिन 13% स्वास्थ्य सुविधाओं के लिये उपलब्ध है।
    • इन आँकड़ों के अनुसार, घाना की राजधानी एक्रा (Accra) में एक मधुमेह रोगी के लिये इंसुलिन की मासिक आपूर्ति की कीमत एक श्रमिक के 5.5 दिनों के वेतन (कुल आय के 22.5%) के बराबर है।
    • विश्व में 420 मिलियन से अधिक व्यक्ति मधुमेह से ग्रसित हैं। यह विश्व में होने वाली मौतों का सातवाँ प्रमुख कारण तथा दिल का दौरा, किडनी फेलर (Kidney Failure) जैसी दुर्बल समस्याओं का भी प्रमुख कारण है।
    • टाइप-1 मधुमेह रोगियों को जीवित रहने के लिये इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है तथा अंधापन और किडनी फेल्यर जैसे रोगों से बचने के लिये अपने रक्त शर्करा स्तर को कम स्तर पर बनाए रखना पड़ता है। वहीं टाइप-2 मधुमेह रोगियों को ओरल (Oral) दवाओं का प्रभाव नहीं होने पर अपने रक्त शर्करा स्तर को नियंत्रित करने के लिये इंसुलिन की आवश्यकता होती है।
  • WHO इस कार्यक्रम के माध्यम से मधुमेह के उपचार से संबंधित दिशा-निर्देशों को अद्यतन करेगा तथा एनालॉग इंसुलिन के मूल्य में कमी की रणनीति बनाकर इंसुलिन वितरण प्रणाली को सशक्त करेगा।
  • यह कार्यक्रम निर्माताओं द्वारा विकसित चिकित्सा उत्पादों का मूल्यांकन कर उनकी गुणवत्ता, प्रभावकारिता और सुरक्षा को सुनिश्चित करके गुणवत्तापूर्ण दवाओं को उपलब्ध कराता है।
  • यह कार्यक्रम ग्लोबल फंड, गावी (The Global Alliance for Vaccines and Immunizations-GAVI), वैक्सीन अलायंस (Vaccine Alliance) और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं को स्वास्थ्य उत्पादों के मूल्यांकन तथा प्रीक्वालिफिकेशन (Prequalification) के लिये मार्गदर्शन देता है।

इंसुलिन प्रीक्वालिफिकेशन कार्यक्रम, WHO द्वारा मधुमेह की समस्या से निपटने के लिये आने वाले वर्ष में उठाए जाने वाले कदमों में से एक है।

स्रोत-द हिंदू


भारतीय राजनीति

दल बदल विरोधी कानून

प्रीलिम्स के लिये:

अनुसूची 10,दल-बदल विरोधी कानून, संविधान का 91 वाँ संशोधन 

मेन्स के लिये:

दल बदल कानून से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अपने एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक के विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 10वीं अनुसूची (दल बदल विरोधी क़ानून) के तहत अयोग्य घोषित किये गए 17 विधायकों की अयोग्यता के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन उनके उपचुनाव लड़ने पे लगी रोक को हटा दिया।

प्रमुख बिंदु

  • न्यायालय के अनुसार, 'न तो संविधान और न ही वैधानिक योजना के तहत ( जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 या दल बदल विरोधी कानून) यह उल्लेख किया गया है कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य ठहराए गए विधायक फिर से चुनाव नहीं लड़ सकते।
  • न्यायालय ने अपने निर्णय में संविधान के 91वें संशोधन का उल्लेख किया।
    • वर्ष 2003 में संविधान का 91वाँ संशोधन किया गया।
    • संशोधन के अनुसार, दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित किए गए सदस्य को संविधान के  अनुच्छेद 75 (1 B), 164 (1 B) और 361 (B) एक मंत्री के रूप में नियुक्त होने से या उसके  राजनीतिक लाभ के पद को धारण करने से प्रतिबंधित करता है।
    • प्रतिबंध की यह अवधि उसके अयोग्य घोषित किये जाने से नियुक्ति की अवधि समाप्त होने के पहले या विधायिका द्वारा पुनः निर्वाचित किये जाने(दोनों में जो भी पहले हो) तक रहती है।
  • किहोतो होलोहन बनाम जाचिल्लू मामले (1993) में, उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम नहीं होगा।
  • विधानसभा अध्यक्ष का निर्णय दुर्भावना, दुराग्रह, संवैधानिक जनादेश और प्राकृतिक न्याय पाए जाने की स्थिति में न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है।
  • निर्णय के अंतर्गत चुने गए विधायको को इस्तीफा देने का पूरा अधिकार है। इसके साथ साथ  उद्देश्य के आधार पर अध्यक्ष को भी इस्तीफा नामंजूर करने की शक्ति प्राप्त है।
  • संविधान के अनुच्छेद 190 (3) के तहत, अध्यक्ष को इस्तीफा स्वीकार करने से पहले उसकी स्वैच्छिक और वास्तविक प्रकृति का पता लगाना होगा।

पृष्ठभूमि 

  • वर्ष 2019 में, कर्नाटक विधानसभा में सत्ता पक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर विचार किया जाना था। 
  • इस प्रक्रिया के दौरान कुछ विधायकों ने अपने संबंधित दलों से इस्तीफा दे दिया। हालाँकि, कुछ दिनों के भीतर होने वाले विश्वास मत के तहत तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने उनका इस्तीफा नहीं लिया।
  • सत्ता पक्ष द्वारा फ्लोर टेस्ट (Floor Test) के दौरान जैसे ही विश्वास मत हासिल किया गया, अध्यक्ष ने उन इस्तीफा देने वाले सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया।

स्रोत-द हिंदू 


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