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शासन व्यवस्था
डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान। मेन्स के लिये:उच्च शिक्षा का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने डीम्ड विश्वविद्यालय के दर्जे के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) में आवेदन किया है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT):
- परिचय:
- राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा गठित एक स्वायत्त संगठन है, जो कि स्कूली शिक्षा से संबंधित मामलों पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को सहायता प्रदान करने तथा उन्हें सुझाव देने का कार्य करती है।
- कार्यकारी समिति (EC) NCERT की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है और इसकी अध्यक्षता शिक्षा मंत्री करता है।
- उद्देश्य:
- स्कूली शिक्षा से संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान करना, उसे बढ़ावा देना और समन्वय स्थापित करना, एवं पाठ्यपुस्तक, संवादपत्र तथा अन्य शैक्षिक सामग्रियों का निर्माण करना, उन्हें प्रकाशित करना साथ ही शिक्षकों हेतु प्रशिक्षण का आयोजन करना।
डीम्ड विश्वविद्यालय:
- परिचय:
- डीम्ड विश्वविद्यालय एक प्रकार का उच्च शिक्षा संस्थान है, इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत "डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी" का दर्जा दिया गया है।
- व्यापक शब्दों में इसका अर्थ है कि संस्थान को अपने स्वयं के डिग्री कार्यक्रमों की पेशकश करने की अनुमति दी गई है, जो नियमित विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान किये जाने वाले डिग्री कार्यक्रमों के समकक्ष हैं।
- डीम्ड विश्वविद्यालय एक प्रकार का उच्च शिक्षा संस्थान है, इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत "डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी" का दर्जा दिया गया है।
- लाभ:
- डीम्ड यूनिवर्सिटी होने के कई फायदे हैं, जैसे वित्तीयन के अवसरों में वृद्धि और बेहतर संकाय को आकर्षित करना। इसके अतिरिक्त इन संस्थानों में प्रायः अधिक लचीली प्रवेश नीतियाँ होती हैं।
- पाठ्यक्रम को संशोधित करने का अधिकार।
- परीक्षा और मूल्यांकन आयोजित करने का अधिकार।
- डीम्ड यूनिवर्सिटी होने के कई फायदे हैं, जैसे वित्तीयन के अवसरों में वृद्धि और बेहतर संकाय को आकर्षित करना। इसके अतिरिक्त इन संस्थानों में प्रायः अधिक लचीली प्रवेश नीतियाँ होती हैं।
भारत में अन्य विभिन्न प्रकार के विश्वविद्यालय:
- केंद्रीय विश्वविद्यालय:
- केंद्रीय अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित विश्वविद्यालय की स्थापना और संचालन जिसे केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जाता है।
- राज्य विश्वविद्यालय:
- यह प्रांतीय अधिनियम या राज्य अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित विश्वविद्यालय है।
- निजी विश्वविद्यालय:
- प्रायोजक निकाय द्वारा राज्य/केंद्रीय अधिनियम के माध्यम से स्थापित विश्वविद्यालय अर्थात् सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत सोसायटी या किसी राज्य या सार्वजनिक ट्रस्ट या कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत पंजीकृत कंपनी में कुछ समय के लिये लागू कोई अन्य संबंधित कानून।
- राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान:
- संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित और राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान के रूप में घोषित संस्थान जो भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित हैं एवं इसमें सभी IIT, NIT और AIIM संस्थान शामिल हैं।
- राज्य विधानमंडल अधिनियम के तहत संस्था:
- राज्य विधानमंडल अधिनियम द्वारा स्थापित या निगमित संस्था।
NCERT द्वारा डीम्ड यूनिवर्सिटी के दर्जे की मांग के कारण :
- सरकार के फैसले का अभाव: NCERT को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान बनाने का सरकार का प्रस्ताव अभी लंबित है।
- लाभ: इससे NCERT को अपनी स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की डिग्री प्रदान करने की अनुमति देगी और कार्यक्रमों की शुरुआत, पाठ्यक्रम संरचना, परीक्षा आयोजित करने एवं प्रबंधन के मामले में स्वायत्तता होगी।
- वर्तमान स्थिति: NCERT के क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान (Regional Institute of Education-REI) द्वारा प्रस्तावित स्नातक और स्नातकोत्तर कार्यक्रम स्थानीय विश्वविद्यालयों जैसे- बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, एमडीएस विश्वविद्यालय, अजमेर, मैसूर विश्वविद्यालय, उत्कल विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर और उत्तर-पूर्वी पहाड़ी शिलांग विश्वविद्यालयों से संबद्ध हैं।
- आवश्यकता: दशकों से REI के माध्यम से नवीन शिक्षक-शिक्षा पाठ्यक्रम प्रदान करने के बावजूद NCERT अभी भी कार्यक्रम शुरू करने के लिये स्थानीय विश्वविद्यालयों के अनुमोदन पर निर्भर है।
- प्रभाव:"डीम्ड यूनिवर्सिटी" का दर्जा, NCERT की स्वायत्तता को समाप्त कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स: प्रश्न. वुड्स डिस्पैच के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: A व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-कतर GI उत्पाद बैठक
प्रिलिम्स के लिये:भौगोलिक संकेतक, भारत कतर व्यापार, APEDA मेन्स के लिये:भारत कतर संबंध, भौगोलिक संकेतक, APEDA |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत सरकार ने भारतीय दूतावास, दोहा और भारतीय व्यापार एवं पेशेवर परिषद (Indian Business and Professionals Council-IBPC) कतर के सहयोग से कृषि तथा खाद्य भौगोलिक संकेतक (GI) उत्पादों के लिये वर्चुअल नेटवर्किंग मीट का आयोजन किया।
- इस बैठक ने भारतीय मूल के कृषि और खाद्य उत्पादों एवं विशिष्ट विशेषताओं वाले उत्पादों के निर्यात में भारत की क्षमता को लेकर कतर और भारत के निर्यातकों तथा आयातकों के बीच बातचीत हेतु मंच प्रदान किया।
भौगोलिक संकेतक (GI) टैग:
- परिचय:
- GI एक संकेतक है, जिसका उपयोग एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली विशेष विशेषताओं वाले सामानों को पहचान प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण एवं उन्हें बेहतर सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास करता है।
- यह विश्व व्यापार संगठन के बौद्धिक संपदा अधिकारों (TRIPS) के व्यापार-संबंधित पहलुओं का भी हिस्सा है।
- पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1 (2) और 10 के तहत यह निर्णय लिया गया तथा यह भी कहा गया कि औद्योगिक संपत्ति एवं भौगोलिक संकेतक का संरक्षण बौद्धिक संपदा के तत्त्व हैं।
- यह मुख्य रूप से कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पाद (हस्तशिल्प और औद्योगिक सामान) है।
- वैधता:
- भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्षों की अवधि के लिये वैध होता है। इसे समय-समय पर 10-10 वर्षों की अतिरिक्त अवधि के लिये नवीनीकृत किया जा सकता है।
- भौगोलिक संकेतक का महत्त्व:
- एक बार भौगोलिक संकेतक का दर्जा प्रदान कर दिये जाने के बाद कोई अन्य निर्माता समान उत्पादों के विपणन के लिये इसके नाम का दुरुपयोग नहीं कर सकता है। यह ग्राहकों को उस उत्पाद की प्रामाणिकता के बारे में भी जानकारी की सुविधा प्रदान करता है।
- किसी उत्पाद का भौगोलिक संकेतक अन्य पंजीकृत भौगोलिक संकेतक के अनधिकृत उपयोग को रोकता है।
- यह कानूनी सुरक्षा प्रदान करके भारतीय भौगोलिक संकेतकोंं के निर्यात को बढ़ावा देता है और विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्य देशों को कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने में भी सक्षम बनाता है।
- GI टैग उत्पाद के निर्यात को बढ़ावा देने में मदद करता है।
- GI रजिस्ट्रेशन:
- GI उत्पादों के पंजीकरण की उचित प्रक्रिया है जिसमें आवेदन दाखिल करना, प्रारंभिक जाँच और परीक्षा, कारण बताओ नोटिस, भौगोलिक संकेतक पत्रिका में प्रकाशन, पंजीकरण का विरोध और पंजीकरण शामिल है।
- कानून द्वारा या उसके तहत स्थापित व्यक्तियों, उत्पादकों, संगठन या प्राधिकरण का कोई भी संघ आवेदन कर सकता है।
- आवेदक को उत्पादकों के हितों का प्रतिनिधित्व करना चाहिये।
- GI टैग उत्पाद:
- कुछ प्रसिद्ध वस्तुएँ जिनको यह टैग प्रदान किया गया है उनमें बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, चंदेरी फैब्रिक, मैसूर सिल्क, कुल्लू शॉल, कांगड़ा चाय, तंजावुर पेंटिंग, इलाहाबाद सुरखा, फर्रुखाबाद प्रिंट, लखनऊ जरदोजी, कश्मीर केसर और कश्मीर अखरोट की लकड़ी की नक्काशी शामिल हैं।
- कृषि GI उत्पाद:
- वर्तमान में भारत में 400 से अधिक पंजीकृत भौगोलिक संकेतक हैं, जिनमें से लगभग 150 कृषि और खाद्य उत्पाद GI प्राप्त हैं।
- 100 से अधिक पंजीकृत GI उत्पाद कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (Agriculture and Processed Food Export Development Authority-APEDA) अनुसूचित उत्पादों (ताजे फल और सब्जियाँ, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, पशु उत्पाद और अनाज) की श्रेणी में आते हैं।
भारत-कतर संबंध:
- उपराष्ट्रपति की कतर यात्रा 2022 की मुख्य विशेषताएँ:
- भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज:
- उपराष्ट्रपति ने "भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज" का शुभारंभ किया जिसका उद्देश्य दोनों देशों के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ना है।
- 70,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप के साथ भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप के लिये तीसरे सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है।
- भारत में 100 यूनिकॉर्न हैं, जिनका कुल मूल्यांकन 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- उपराष्ट्रपति ने "भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज" का शुभारंभ किया जिसका उद्देश्य दोनों देशों के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ना है।
- पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन:
- भारत पर्यावरण की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये निरंतर प्रयास कर रहा है।
- उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की स्थापना और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्त्वकर्त्ता की भूमिका का भी उल्लेख किया।
- उन्होंने कतर को अपनी ऊर्जा सुरक्षा में भारत के विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थिरता के लिये इस यात्रा में भागीदार बनने और ISA में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया।
- व्यापार मंडलों के बीच संयुक्त व्यापार परिषद:
- उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत और कतर के व्यापार मंडलों के बीच एक संयुक्त व्यापार परिषद की स्थापना की गई है जो निवेश पर एक संयुक्त कार्यबल के माध्यम से निवेश को बढ़ावा देगा।
- उन्होंने नए और उभरते अवसरों का दोहन करने के लिये दोनों पक्षों के व्यवसायों को मार्गदर्शन व सहायता हेतु साझेदारी करने के लिये इन्वेस्ट इंडिया एवं कतर इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी की भी सराहना की।
- बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:
- उन्होंने अंतर-संसदीय संघ (IPU), एशियाई संसदीय सभा और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत एवं कतर के बीच अधिक सहयोग का आह्वान किया।
- व्यापार:
- कतर को भारत से निर्यात:
- वर्ष 2020 में भारत ने कतर को 1.34 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की वस्तुओं का निर्यात किया।
- भारत द्वारा कतर को निर्यात किये जाने वाले मुख्य उत्पाद चावल, आभूषण और सोना हैं।
- पिछले 25 वर्षों के दौरान कतर को किया गया भारत का निर्यात 16.5% की वार्षिक दर से बढ़ा है, जो 1995 के 29.3 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 1.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- वर्ष 2020 में भारत ने कतर को 1.34 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की वस्तुओं का निर्यात किया।
- कतर से भारत को आयात:
- वर्ष 2020 में कतर ने भारत को 7.25 बिलियन अमेरिकी डाॅलर की वस्तुओं का निर्यात किया। कतर द्वारा भारत को निर्यात किये जाने वाले मुख्य उत्पाद पेट्रोलियम गैस, क्रूड पेट्रोलियम और हलोजनेटेड हाइड्रोकार्बन हैं।
- पिछले 25 वर्षों के दौरान भारत को कतर द्वारा किया गया निर्यात 19% की वार्षिक दर से बढ़ा है, जो वर्ष 1995 के 4 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2020 में 7.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- भारत के कुल प्राकृतिक गैस आयात में कतर की हिस्सेदारी 41% है।
- कतर को भारत से निर्यात:
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA):
- परिचय:
- APEDA की स्थापना भारत सरकार द्वारा दिसंबर 1985 में संसद द्वारा पारित कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण अधिनियम के तहत की गई थी।
- प्राधिकरण ने प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात संवर्धन परिषद (Processed Food Export Promotion Council-PFEPC) को प्रतिस्थापित किया।
- APEDA, जो वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आता है, ने वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान कुल कृषि निर्यात में लगभग 50% ( 24.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की हिस्सेदारी के साथ कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- कार्य:
- वित्तीय सहायता प्रदान करके निर्यात के लिये अनुसूचित उत्पादों से संबंधित उद्योगों का विकास।
- निर्धारित शुल्क के भुगतान पर अनुसूचित उत्पादों के निर्यातक के रूप में व्यक्तियों का पंजीकरण।
- निर्यात के प्रयोजन हेतु अनुसूचित उत्पादों के लिये मानकों और विशिष्टताओं का निर्धारण।
- अनुसूचित उत्पादों की पैकेजिंग में सुधार।
- भारत के बाहर अनुसूचित उत्पादों के विपणन में सुधार।
- निर्यातोन्मुख उत्पादन को बढ़ावा देना और अनुसूचित उत्पादों का विकास करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित में से किसे 'भौगोलिक संकेतक ' का दर्जा प्रदान किया गया है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C व्याख्या:
प्रश्न. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक क(पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018) (a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन उत्तर: (D) व्याख्या:
|
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
राज्यों में नीति आयोग जैसे निकाय
प्रिलिम्स के लिये:नीति आयोग, सहकारी संघवाद। मेन्स के लिये:राज्यों में नीति आयोग जैसे निकायों की स्थापना की आवश्यकता और योजना। |
चर्चा में क्यों?
नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) आयोग वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के दृष्टिकोण के साथ-साथ तेज़ और समावेशी आर्थिक विकास के लिये अपने योजना बोर्डों की जगह समान निकायों की स्थापना हेतु प्रत्येक राज्य की सहायता करेगा।
नीति आयोग:
- नीति आयोग भारत सरकार का सर्वोच्च सार्वजनिक नीति थिंक टैंक है।
- योजना आयोग को 1 जनवरी, 2015 को एक नए संस्थान नीति आयोग द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था, जिसमें 'सहकारी संघवाद' की भावना को प्रतिध्वनित करते हुए अधिकतम शासन, न्यूनतम सरकार की परिकल्पना की परिकल्पना के लिये 'बॉटम-अप' दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया था।
- इसके दो हब हैं:
- टीम इंडिया हब- राज्यों और केंद्र के बीच इंटरफेस का काम करता है।
- ज्ञान और नवोन्मेष हब- नीति आयोग के थिंक-टैंक की भाँति कार्य करता है।
राज्यों में नीति आयोग जैसे निकाय स्थापित करने की आवश्यकता:
- राज्य भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के चालक हैं। राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि रक्षा, रेलवे और राजमार्ग जैसे क्षेत्रों को छोड़कर राज्यों की विकास दर का एक समूह है।
- स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल मुख्य रूप से राज्य सरकार के पास हैं।
- व्करने में आसानी, भूमि सुधार, बुनियादी ढाँचे के विकास, ऋण प्रवाह और शहरीकरण में सुधार के लिये राज्य सरकारों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है, ये सभी निरंतर आर्थिक विकास के लिये अनिवार्य तत्त्व हैं।
- अधिकांश राज्यों ने अब तक अपने योजना विभागों/बोर्डों को फिर से जीवंत करने के लिये बहुत कम कार्य किया है, जो पहले योजना आयोग के साथ काम करते थे और केंद्र के साथ समानांतर राज्य पंचवर्षीय योजनाएँ तैयार करते थे।
- अधिकांश राज्यों के नियोजन विभाग, विशाल जनशक्ति के साथ लगभग निष्क्रिय अवस्था में हैं और साथ ही कार्य क्षेत्र की स्थिति को लेकर भी अस्पष्टता है।
कार्यान्वयन के लिये निर्धारित एजेंडा:
- प्रारंभ में इसका लक्ष्य 8-10 राज्यों में मार्च 2023 से पहले ऐसे निकायों की स्थापना करना है।
- चार राज्यों अर्थात् कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम ने इस संबंध में पहले ही कार्य शुरू कर दिया है।
- महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और गुजरात में जल्द ही कार्य शुरू होने की संभावना है।
- नीति आयोग ने इसके लिये एक योजना तैयार की है:
- राज्य योजना बोर्डों के मौजूदा ढाँचे की जाँच करने वाली टीमों के निर्माण में सहायता करना।
- अगले 4-6 महीनों में स्टेट इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मेशन (SIT) की स्थपाना करना।
- उच्च गुणवत्ता वाले विश्लेषणात्मक कार्य और नीति सिफारिशों को करने के लिये SIT में पेशेवरों की लेटरल एंट्री को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- राज्य योजना बोर्डों को SIT के रूप में पुनर्गठित करने के अलावा एक ब्लू-प्रिंट तैयार किया जाएगा:
- नीति निर्माण में राज्यों का मार्गदर्शन करना।
- सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की निगरानी एवं मूल्यांकन।
- योजनाओं के वितरण के लिये बेहतर तकनीक या मॉडल का सुझाव देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. अटल इनोवेशन मिशन किस के अंतर्गत स्थापित किया गया है? (2019) (a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग उत्तर: C व्याख्या:
अतः विकल्प C सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
खुदरा मुद्रास्फीति में वृद्धि और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में अनुबंध
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), GDP (सकल घरेलू उत्पाद)। मेन्स के लिये:मुद्रास्फीति के कारण, परिणाम और उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office-NSO) के आँकड़ों के अनुसार जुलाई 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7% हो गई और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (Index of Industrial Production-IIP) जुलाई 2022 में चार महीने के निचले स्तर 2.4% पर आ गया, जबकि वर्ष 2021 में इसमें 11.5% की वृद्धि हुई थी।
- 22 विनिर्माण उप-क्षेत्रों में से 9 ने खाद्य उत्पादों, तंबाकू उत्पादों, चमड़े के उत्पादों और विद्युत उपकरणों सहित उत्पादन में कमी की सूचना दी।
मुद्रास्फीति:
- मुद्रास्फीति दैनिक या सामान्य उपयोग की अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि को संदर्भित करती है, जैसे कि भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, परिवहन, उपभोक्ता वस्तुएँ आदि।
- मुद्रास्फीति किसी देश की मुद्रा की एक इकाई की क्रय शक्ति में कमी का संकेत है। यह अंततः आर्थिक विकास में मंदी का कारण बन सकती है।
- हालाँकि उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के एक मध्यम स्तर की आवश्यकता होती है।
- भारत में, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत NSO मुद्रास्फीति से संबंधित आँकड़े जारी करता है।
- भारत में, मुद्रास्फीति को मुख्य रूप से दो मुख्य सूचकांकों- थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) द्वारा मापा जाता है, जो क्रमशः थोक और खुदरा स्तर के मूल्य परिवर्तनों को मापते हैं।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(CPI):
- यह खुदरा खरीदार के दृष्टिकोण में परिवर्तन को मापता है।
- CPI उपभोग की वस्तुओं और सेवाओं जैसे- भोजन, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की कीमत में अंतर की गणना करता है।
- CPI के चार प्रमुख प्रकार:
- औद्योगिक श्रमिकों के लिये CPI (IW)
- कृषि मज़दूर के लिये CPI (AL)
- ग्रामीण मज़दूर के लिये CPI (RL)
- CPI (ग्रामीण/शहरी/संयुक्त)।
- इनमें से पहले तीन को श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो द्वारा संकलित किया जाता है,जबकि चौथा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
- CPI का आधार वर्ष 2012 है।
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(CPI):
- मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee-MPC) मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये CPI के आँकड़ों का उपयोग करती है।
- हेडलाइन और कोर मुद्रास्फीति:
- खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं का एक बास्केट शामिल है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति, मुद्रास्फीति का कच्चा आँकड़ा है जो कि CPI के आधार पर तैयार किया जाता है। हेडलाइन मुद्रास्फीति में खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को भी शामिल किया जाता है।
- कोर मुद्रास्फीति वह है जिसमें खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव को शामिल नहीं किया जाता है।
- कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - खाद्य और ईंधन में मुद्रास्फीति
भारत में हालिया मुद्रास्फीति का कारण:
- खाद्य मुद्रास्फीति: मुद्रास्फीति में वृद्धि काफी हद तक अनाज, दालों, दूध, फलों में उच्च मुद्रास्फीति के साथ 'खाद्य क्षेत्र में व्यापक आधार वाली वृद्धि' से प्रेरित थी।
- अनाज की कीमत जुलाई में 6.9% से बढ़कर अगस्त (2022) में 9.6% हो गई।
- शहरी मुद्रास्फीति की तुलना में ग्रामीण मुद्रास्फीति में तेज़ वृद्धि देखी गई।
- कम खरीफ उत्पादन: अनिश्चित मानसून के कारण खरीफ फसल की बुवाई के पिछले वर्ष के उत्पादन के स्तर से कम उत्पादन होने की संभावना है, इसलिये निकट भविष्य में खाद्य मुद्रास्फीति समस्या बनी रह सकती है।
- आधार प्रभाव: मुद्रास्फीति में वृद्धि प्रतिकूल आधार प्रभाव और खाद्य एवं ईंधन की कीमतों में वृद्धि दोनों के कारण है।
- कोर मुद्रास्फीति: खाद्य और ईंधन को छोड़कर हेडलाइन मुद्रास्फीति अगस्त में 5.9% थी, जो लगातार चौथे महीने 6% की सहिष्णुता सीमा से नीचे बनी हुई है।
- अन्य कारण: वैश्विक मुद्रास्फीति दबाव, मुद्रास्फीति की उम्मीदें, भारतीय मुद्रा में कमज़ोरी आदि।
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक
- IIP एक संकेतक है जो एक निश्चित अवधि के दौरान औद्योगिक उत्पादों के उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन को मापता है।
- इसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा मासिक रूप से संकलित और प्रकाशित किया जाता है।
- यह एक समग्र संकेतक है जो निम्नलिखित वर्गीकृत उद्योग समूहों की विकास दर को मापता है:
- व्यापक क्षेत्र अर्थात् खनन, विनिर्माण और बिजली।
- उपयोग-आधारित क्षेत्र अर्थात् मूल सामान, पूंजीगत वस्तुएँ और मध्यवर्ती वस्तुएँ।
- IIP के लिये आधार वर्ष 2011-2012 है।
- IIP का महत्त्व:
- इसका उपयोग नीति-निर्माण उद्देश्यों के लिये वित्त मंत्रालय, भारतीय रिज़र्व बैंक आदि सहित सरकारी एजेंसियों द्वारा किया जाता है।
- त्रैमासिक और अग्रिम सकल घरेलू उत्पाद अनुमानों की गणना के लिये IIP अत्यंत प्रासंगिक बना हुआ है।
- आठ प्रमुख क्षेत्रों के बारे में:
- इनमें औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल मदों के भार का 40.27 प्रतिशत शामिल है।
- आठ प्रमुख क्षेत्र के उद्योग उनके भार के घटते क्रम में: रिफाइनरी उत्पाद> बिजली> स्टील> कोयला> कच्चा तेल> प्राकृतिक गैस> सीमेंट> उर्वरक।
हाल के IIP संकुचन के कारण:
- खनन क्षेत्र का उत्पादन जुलाई 2022 में 3.3 प्रतिशत घटा। गैर-टिकाऊ वस्तुओं में जुलाई 2022 में 2.0% की गिरावट आई।
- कोयले के उत्पादन में दो अंकों की वृद्धि हुई, लेकिन जुलाई 2022 में खनन उत्पादन में तीव्र संकुचन अप्रत्याशित था, क्योंकि इस महीने के दौरान अत्यधिक वर्षा का प्रभाव देखा गया।
- विवेकाधीन खपत में संपर्क-गहन सेवाओं (Contact-Intensive Services) में बदलाव के कारण IIP की वृद्धि चार महीने के निचले स्तर पर आ गई।
- जुलाई 2019 के पूर्व-कोविड स्तरों की तुलना में औद्योगिक उत्पादन केवल 2.1% अधिक था, उपभोक्ता टिकाऊ और गैर-टिकाऊ खाद्य क्षेत्र अपने पूर्व-कोविड स्तरों में 6.8% और 2.5% से पीछे थे।
- आपूर्ति में व्यवधान, कमज़ोर वैश्विक विकास दृष्टिकोण भी औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित करता है।
आगे की राह
- आयात नीति में एकरूपता होनी चाहिये क्योंकि यह अग्रिम रूप से उचित बाज़ार संकेत भेजती है। आयात शुल्क के माध्यम से हस्तक्षेप करना कोटा से बेहतर है, जिसके कारण अधिक नुकसान होता है। हाल ही में सरकार ने घरेलू आपूर्ति को स्थिर रखने और कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिये गेहूँ का आटा, चावल, मैदा आदि जैसे खाद्य उत्पादों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
- एक फसल वर्ष में बहुत पहले से कमी/अधिशेष का संकेत देने के लिये उपग्रह रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकों का उपयोग करते हुए अधिक सटीक फसल पूर्वानुमान की आवश्यकता है।
- इसके अलावा वर्ष 2011-12 का एक दशक पुराना CPI आधार वर्ष, जो खाद्य पदार्थों को लगभग आधा भार देता है, को संशोधित एवं अद्यतन करने की आवश्यकता है ताकि भोजन की आदतों और आबादी की जीवन शैली में बदलाव को प्रतिबिंबित किया जा सके। बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ, गैर-खाद्य वस्तुओं पर खर्च बढ़ गया है तथा इसे CPI में बेहतर ढंग से प्रतिबिंबित करने की आवश्यकता है, जिससे आरबीआई गैर-परिवर्तनशील भाग (मुख्य मुद्रास्फीति) को बेहतर ढंग से लक्षित कर सके।
- घरेलू मांग में मज़बूत सुधार भारत के औद्योगिक उत्पादन के लिये समर्थन का एक प्रमुख स्रोत बनेगा।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न: ‘आठ कोर उद्योग सूचकांक' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
श्रीलंका में तमिलों का मुद्दा
प्रिलिम्स के लिये:श्रीलंका में तमिलों का मुद्दा, UNHRC, UN चार्टर, LTTE मेन्स के लिये:भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत और उसके पड़ोसी, भारत-श्रीलंका संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने तमिल मुद्दे पर राजनीतिक समाधान तक पहुँचने की अपनी प्रतिबद्धता पर श्रीलंका द्वारा किसी भी निर्णायक कदम पर न पहुँचने पर चिंता व्यक्त की है।
- भारत ने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (United Nations Human Rights Council) के 51वें सत्र में अपने बयान में कहा कि उसने हमेशा संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा निर्देशित "मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण एवं रचनात्मक अंतर्राष्ट्रीय संवाद तथा सहयोग के लिये राज्यों की ज़िम्मेदारी में विश्वास किया है"।
भारत द्वारा उठाए गए मुद्दे:
- श्रीलंका में मौजूदा संकट ने ऋण-संचालित अर्थव्यवस्था की सीमाओं और जीवन स्तर पर इसके प्रभाव को प्रदर्शित किया है।
- यह श्रीलंका के सर्वोत्तम हित में है कि वह अपने नागरिकों की क्षमता का निर्माण करे और उनके सशक्तीकरण की दिशा में काम करे।
- वर्ष 2009 में श्रीलंका के गृहयुद्ध जिसमें हज़ारों नागरिक मारे और लापता हो गए, की समाप्ति के 13 वर्ष बाद बचे हुए लोग युद्ध के समय के अपराधों के लिये न्याय और जवाबदेही की मांग कर रहे हैं।
- युद्ध के बाद के वर्षों में श्रीलंका के मानवाधिकार रक्षकों ने लगातार सैन्यीकरण, विशेष रूप से तमिल बहुसंख्यक उत्तर और पूर्व में दमन एवं असंतोष के लिये चिंता व्यक्त की है।
तमिल मुद्दा और इसका इतिहास:
- पृष्ठभूमि:
- श्रीलंका में 74.9% सिंहली और 11.2% श्रीलंकाई तमिल हैं। इन दो समूहों के भीतर सिंहली बौद्ध और तमिल हिंदू हैं, जो महत्त्वपूर्ण भाषायी और धार्मिक विभाजन प्रदर्शित करते हैं।
- ऐसा माना जाता है कि तमिल भारत के चोल साम्राज्य से आक्रमणकारियों और व्यापारियों दोनों के रूप में श्रीलंका पहुँचे।
- कुछ मूल कहानियों से पता चलता है कि सिंहली और तमिल समुदायों ने शुरू से ही तनाव (सांस्कृतिक असंगति के कारण नहीं बल्कि सत्ता विवादों के कारण) का अनुभव किया है।
- पूर्व-गृह युद्ध:
- ब्रिटिश शासन के दौरान तमिल पक्षपात के प्रतिरूप ने सिंहली लोगों को अलग-थलग और उत्पीड़ित महसूस कराया। वर्ष 1948 में ब्रिटिश कब्ज़े वाले द्वीप छोड़ने के तुरंत बाद तमिल प्रभुत्व के इन प्रतिरूपों में नाटकीय रूप से बदलाव आया।
- ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के बाद कई बार सिंहलियों ने सत्ता हासिल की और धीरे-धीरे अपने तमिल समकक्षों को प्रभावी ढंग से बेदखल करने वाले कृत्य किये, जिसके कारण वर्ष 1976 में लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) का उत्पत्ति हुई।
- LTTE/लिट्टे समझौता न करने वाला समूह था जो चे ग्वेरा और उसकी छापामार युद्ध रणनीति से प्रेरित था।
- वर्ष 1983 में यह संघर्ष गृहयुद्ध में बदल गया, जिसके कारण कोलंबो में तमिलों को निशाना बनाकर दंगे हुए।
- यह लड़ाई तीन दशकों तक चली और मई 2009 में समाप्त तब हुई, जब श्रीलंका सरकार ने घोषणा की कि उन्होंने लिट्टे नेता को मार दिया है।
- गृहयुद्ध के बाद की स्थिति:
- हालाँकि वर्ष 2009 में गृह युद्ध समाप्त हो गया था, लेकिन श्रीलंका में वर्तमान स्थिति में केवल आंशिक सुधार हुआ है।
- तमिल आबादी का एक बड़ा हिस्सा विस्थापित हुआ है, जबकि राजनीतिक और नागरिक अधिकारों के मुद्दे कम हैं, हाल के वर्षों में भी यातना एवं जबरन गायब करने की घटनाएँ जारी हैं।
- सरकार का आतंकवाद निरोधक कानून (पीटीए) ज़्यादातर तमिलों को निशाना बनाता है। अधिक सूक्ष्म अर्थों में श्रीलंकाई सरकार तमिल समुदाय को मताधिकार से वंचित करना जारी रखे हुए है।
- उदाहरण के लिये "सिंहलीकरण" की प्रक्रिया के माध्यम से सिंहली संस्कृति ने धीरे-धीरे तमिल आबादी की जगह ले ली है।
- मुख्य रूप से तमिल क्षेत्रों में सिंहली स्मारक,, सड़क और गाँव के नाम साथ ही बौद्ध पूजा स्थल अधिक आम हो गए।
- इन प्रयासों ने श्रीलंकाई इतिहास के साथ-साथ देश की संस्कृति के तमिल और हिंदू तत्त्वों पर तमिल परिप्रेक्ष्य का उल्लंघन किया है तथा कुछ मामलों में उन्हें मिटा दिया है।
भारत की चिंता:
- शरणार्थियों का पुनर्वास: श्रीलंकाई गृहयुद्ध (2009) से बचकर भारत आए श्रीलंकाई तमिलों की एक बड़ी संख्या तमिलनाडु में शरण लेने की मांग कर रही है। वे लोग श्रीलंका में फिर से निशाना बनाए जाने के डर से वहाँ वापस नहीं लौट रहे हैं। भारत के लिये उनका पुनर्वास करना एक बड़ी चुनौती है।
- तमिलों की अनदेखी: श्रीलंका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने हेतु श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा को नज़रअंदाज करने के लिये भारत सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर इसकी आलोचना की जाती है।
- सामरिक हित बनाम तमिल मुद्दा: अक्सर भारत को अपने पड़ोसी के आर्थिक हितों की रक्षा और हिंद महासागर में चीनी प्रभाव का मुकाबला करने के लिये रणनीतिक मुद्दों पर अल्पसंख्यक तमिलों के अधिकारों के मुद्दों को लेकर समझौता करना पड़ता है।
भारत-श्रीलंका संबंधों को लेकर अन्य मुद्दे:
- मछुआरों की हत्या:
- श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या दोनों देशों के बीच एक पुराना मुद्दा है।
- वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में कुल 284 भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया तथा कुल 53 भारतीय नौकाओं को श्रीलंकाई अधिकारियों ने ज़ब्त कर लिया।
- श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की हत्या दोनों देशों के बीच एक पुराना मुद्दा है।
- ईस्ट कोस्ट टर्मिनल परियोजना:
- इस वर्ष (2021) श्रीलंका ने ईस्ट कोस्ट टर्मिनल परियोजना के लिये भारत और जापान के साथ हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन को रद्द कर दिया।
- भारत ने इस कदम का विरोध किया, हालाँकि बाद में वह अडानी समूह द्वारा विकसित किये जा रहे वेस्ट कोस्ट टर्मिनल के लिये सहमत हो गया।
- इस वर्ष (2021) श्रीलंका ने ईस्ट कोस्ट टर्मिनल परियोजना के लिये भारत और जापान के साथ हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन को रद्द कर दिया।
- चीन का प्रभाव:
- श्रीलंका में चीन के तेज़ी से बढ़ते आर्थिक हित और परिणाम के रूप में राजनीतिक दबदबा भारत-श्रीलंका संबंधों को तनावपूर्ण बना रहा है।
- चीन पहले से ही श्रीलंका में सबसे बड़ा निवेशक है, जो कि वर्ष 2010-2019 के दौरान कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का लगभग 23.6% था, जबकि भारत का हिस्सा केवल 10.4 फीसदी है।
- चीन, श्रीलंकाई सामानों के लिये सबसे बड़े निर्यात स्थलों में से एक है और श्रीलंका के विदेशी ऋण के 10% हेतु उत्तरदायी है।
- श्रीलंका में चीन के तेज़ी से बढ़ते आर्थिक हित और परिणाम के रूप में राजनीतिक दबदबा भारत-श्रीलंका संबंधों को तनावपूर्ण बना रहा है।
- श्रीलंका का 13वाँ संविधान संशोधन:
- यह एक संयुक्त श्रीलंका के भीतर समानता, न्याय, शांति और सम्मान के लिये तमिल लोगों की उचित मांग को पूरा करने हेतु प्रांतीय परिषदों को आवश्यक शक्तियों के हस्तांतरण की परिकल्पना करता है।
आगे की राह
- अपने नागरिकों की क्षमता का निर्माण करना और उनके सशक्तीकरण की दिशा में काम करना श्रीलंका के सर्वोत्तम हित में है, जिसके लिये ज़मीनी स्तर पर सत्ता का हस्तांतरण एक पूर्व-आवश्यकता है।
- भारत के लिये हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को संरक्षित करने हेतु श्रीलंका के साथ नेबरहुड फर्स्ट पाॅलिसी का पालन करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स: प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (B) सही है। प्रश्न. भारत-श्रीलंका संबंधों में घरेलू कारक विदेश नीति को कैसे प्रभावित करते हैं? चर्चा कीजिये। (2013) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात
प्रिलिम्स के लिये:कृषि एवं खाद्य उद्योग और निर्यात, कृषि निर्यात नीति 2018, बी 2 बी प्रदर्शनी, जीआई टैग, एपीडा। मेन्स के लिये:कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात को बढ़ावा देना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्यिक आसूचना और सांख्यिकी महानिदेशालय (DGCI&S) ने मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जुलाई 2022-23) के लिये भारत के कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात के आँकड़े जारी किये हैं।
- वाणिज्य मंत्रालय, भारत सरकार के तहत DGCI&S, भारत के व्यापार सांख्यिकी और वाणिज्यिक सूचना के संग्रह, संकलन और प्रसार के लिये अग्रणी आधिकारिक संगठन है।
निष्कर्ष:
- कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में चालू वित्त वर्ष ( 2022-23 ) के पहले चार महीनों (अप्रैल-जुलाई) के दौरान पिछले वर्ष (2021-22) की समान अवधि की तुलना में 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- वर्ष 2022-23 के लिये कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की टोकरी हेतु 23.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- इस अवधि के दौरान फलों और सब्जियों के निर्यात में 4% की वृद्धि दर्ज की गई।
- बासमती चावल के निर्यात में 29.13% की वृद्धि देखी गई।
- समीक्षाधीन अवधि के दौरान गैर-बासमती चावल का निर्यात 9.24% बढ़कर 2.08 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
- डेयरी उत्पादों के निर्यात में 61.91% की वृद्धि के साथ यह 247 मिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
कृषि, खाद्य उद्योग और निर्यात परिदृश्य:
- परिचय:
- कृषि क्षेत्र भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत दुनिया में कृषि और खाद्य उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
- वर्ष 2021-22 में भारत की कृषि क्षेत्र की विकास दर पिछले वर्ष के 3.6% की तुलना में 3.9% होने का अनुमान है।
- भारत चावल, गेहूँ, दालें, तिलहन, कॉफी, जूट, गन्ना, चाय, तंबाकू, मूँगफली, डेयरी उत्पाद, फल आदि जैसे कई फसलों और खाद्यान्न का उत्पादन करता है।
- भारत का कृषि क्षेत्र मुख्य रूप से कृषि और संबद्ध उत्पादों, समुद्री उत्पादों, वृक्षारोपण एवं कपड़ा और संबद्ध उत्पादों का निर्यात करता है।
- कृषि क्षेत्र भारत में आजीविका का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत दुनिया में कृषि और खाद्य उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
- सांख्यिकी:
- वर्ष 2021-22 के दौरान भारत ने कुल कृषि निर्यात में 49.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया, जिसमें वर्ष 2020-21 में 41.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में 20% की वृद्धि हुई।
- कृषि और संबद्ध उत्पादों के निर्यात का मूल्य 37.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2020-21 में 17% की वृद्धि दर्शाता है।
- चावल भारत से सबसे ज़्यादा निर्यात किया जाने वाला कृषि उत्पाद है जिसका वर्ष 2021-22 के दौरान कुल कृषि निर्यात में 19% से अधिक का योगदान है।
- निर्यात गंतव्य:
- भारत के कृषि उत्पादों के सबसे बड़े आयातक अमेरिका, बांग्लादेश, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, वियतनाम, सऊदी अरब, ईरान, नेपाल और मलेशिया हैं।
- अन्य आयात करने वाले देश कोरिया, जापान, इटली और यूनाइटेड किंगडम हैं।
- वर्ष 2021-22 के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका भारतीय कृषि उत्पादों का सबसे बड़ा आयातक था।
- संयुक्त अरब अमीरात के बाद बांग्लादेश कृषि और संबद्ध उत्पादों का प्रमुख आयातक है।
- अमेरिका तथा चीन भारत के समुद्री उत्पादों के प्रमुख आयातक हैं।
वृद्धि के प्रमुख कारक:
- B2B प्रदर्शनियाँ:
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न पहलें की गई हैं जैसे कि विभिन्न देशों में B2B (बिज़नेस टू बिज़नेस) प्रदर्शनियों का आयोजन, भारतीय दूतावासों की सक्रिय भागीदारी द्वारा उत्पाद-विशिष्ट और सामान्य विपणन अभियानों के माध्यम से नए संभावित बाज़ारों की खोज करना।
- कृषि निर्यात नीति, 2018:
- AEP का मुख्य उद्देश्य निर्यात बास्केट और गंतव्यों में विविधता लाना, उच्च मूल्यवर्द्धित कृषि निर्यात को बढ़ावा देना, स्वदेशी, जैविक, पारंपरिक और गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देना है।
- वित्तीय सहायता योजना:
- यह APEDA द्वारा निर्यात प्रोत्साहन योजना है। इस योजना का प्राथमिक उद्देश्य निर्यात बुनियादी ढाँचे के विकास, गुणवत्ता विकास और बाज़ार विकास में व्यवसायों की सहायता करना है।
- कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA):
- भारतीय शराब के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) ने लंदन वाइन फेयर में 10 शराब निर्यातकों की भागीदारी की सुविधा प्रदान की।
- GI और अन्य पहल:
- संयुक्त अरब अमीरात के साथ कृषि और खाद्य उत्पादों पर एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ हस्तशिल्प सहित GI उत्पादों पर वर्चुअल क्रेता-विक्रेता बैठक का आयोजन कर भारत में पंजीकृत भौगोलिक संकेतक (GI) वाले उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये भी कई पहलें की गई हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन पिछले पांँच वर्षों में विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019) (a) चीन उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। |
स्रोत: पी.आई.बी.
कृषि
विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन 2022
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय डेयरी महासंघ विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन (IDF WDS) 2022, राष्ट्रीय गोकुल मिशन, गोबर धन योजना, डेयरी क्षेत्र का डिजिटलीकरण और मवेशियों का सार्वभौमिक टीकाकरण। पशुपालन बुनियादी ढाँचा विकास कोष, डेयरी विकास के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम। मेन्स के लिये:भारत में डेयरी क्षेत्र का महत्त्व, पशु-पालन का अर्थशास्त्र। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने इंडिया एक्सपो सेंटर एंड मार्ट, ग्रेटर नोएडा में अंतर्राष्ट्रीय डेयरी महासंघ विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन (International Dairy Federation World Dairy Summit-IDF WDS) 2022 का उद्घाटन किया।
- अंतर्राष्ट्रीय डेयरी संघ डेयरी शृंखला के सभी हितधारकों के लिये वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञता का प्रमुख स्रोत है।
- वर्ष 1903 से IDF के डेयरी विशेषज्ञों के नेटवर्क ने डेयरी क्षेत्र को वैश्विक सहमति तक पहुँचने के लिये तंत्र प्रदान किया है कि कैसे दुनिया को सुरक्षित और टिकाऊ डेयरी उत्पाद उपलब्ध कराने में मदद की जाए।
- वर्ष 1903 से IDF के डेयरी विशेषज्ञों के नेटवर्क ने डेयरी क्षेत्र को वैश्विक सहमति तक पहुँचने के लिये तंत्र प्रदान किया है कि कैसे दुनिया को सुरक्षित और टिकाऊ डेयरी उत्पाद उपलब्ध कराने में मदद की जाए।
अंतर्राष्ट्रीय डेयरी महासंघ विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन (IDF WDS)
- IDF विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन वैश्विक डेयरी क्षेत्र की वार्षिक बैठक है, जिसमें दुनिया भर से लगभग 1500 प्रतिभागियों को एक साथ लाया जाता है।
- इस तरह का पिछला शिखर सम्मेलन भारत में लगभग आधी सदी पहले 1974 में आयोजित किया गया था।
- इस वर्ष की थीम डेयरी फॉर न्यूट्रिशन एंड लाइवलीहुड है।
- IDF विश्व डेयरी शिखर सम्मेलन उद्योग के विशेषज्ञों को ज्ञान और विचारों को साझा करने के लिये मंच प्रदान करेगा कि कैसे क्षेत्र सुरक्षित और टिकाऊ डेयरी के साथ दुनिया को पोषण प्रदान करने में योगदान दे सकता है।
- प्रतिभागियों को व्यापक अर्थों में वैश्विक डेयरी क्षेत्र के लिये प्रासंगिक नवीनतम शोध निष्कर्षों और अनुभवों पर ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिलेगा।
भारत में डेयरी क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- भारत दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान पर है, जो वैश्विक दूध उत्पादन में 23% का योगदान देता है, इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, पाकिस्तान और ब्राज़ील का स्थान आता है।
- शीर्ष 5 दूध उत्पादक राज्य हैं: उत्तर प्रदेश (14.9%), राजस्थान (14.6%), मध्य प्रदेश (8.6%), गुजरात (7.6%) और आंध्र प्रदेश (7.0%)।
- महत्त्व:
- डेयरी क्षेत्र की क्षमता न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करती है, बल्कि विश्व भर में करोड़ों लोगों की आजीविका का प्रमुख स्रोत भी है।
- यह क्षेत्र देश में 8 करोड़ से अधिक परिवारों को रोज़गार प्रदान करता है।
- भारत में डेयरी सहकारी समितियों की एक-तिहाई से अधिक सदस्य महिलाएँ हैं।
डेयरी क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियाँ :
- चारे की कमी: अनुत्पादक पशुओं की अत्यधिक संख्या है जो उपलब्ध खाद्य और चारे के उपयोग में उत्पादक डेयरी पशुओं के हिस्से पर दबाव डालते हैं।
- औद्योगिक विकास के कारण प्रत्येक वर्ष चराई क्षेत्र में उल्लेखनीय कमी आ रही है जिसके परिणामस्वरूप कुल आवश्यकता के लिये खाद्य और चारे की आपूर्ति में कमी आ रही है।
- स्वास्थ्य: पशु चिकित्सा स्वास्थ्य देखभाल केंद्र प्रायः दूरस्थ स्थानों पर होते हैं और मवेशियों की आबादी तथा पशु चिकित्सा संस्थान के बीच के अनुपात में व्यापक अंतराल है, परिणामस्वरूप पशुओं को पर्याप्त रूप से स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं।
- इसके अलावा नियमित रूप से टीकाकरण और कृमि मुक्ति कार्यक्रम नहीं चलाया जाता है, परिणामस्वरूप बछड़ों एवं विशेष रूप से भैंस की प्रजातियों की बड़ी संख्या में मौत होती है।
- स्वच्छता की स्थिति: कई पशु मालिक अपने मवेशियों के लिये उचित आश्रय प्रदान नहीं करते हैं, जिससे उन्हें अत्यधिक जलवायु परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है।
- डेयरी क्षेत्र की अनौपचारिक प्रकृति: गन्ना, गेहूँ और चावल उत्पादक किसानों के विपरीत पशुपालक असंगठित हैं और उनके पास अपना पक्ष रखने के लिये राजनीतिक ताकत/दबाव समूह का अभाव है।
- लाभकारी मूल्य निर्धारण में कमी: हालाँकि उत्पादित दूध का मूल्य भारत में गेहूँ और चावल के उत्पादन के संयुक्त मूल्य से अधिक है परंतु उत्पादन की लागत और दूध के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य का कोई आधिकारिक और आवधिक अनुमान नहीं होता है।
सरकार द्वारा की गई पहलें:
- उत्पादकता में वृद्धि: सरकार ने डेयरी क्षेत्र की बेहतरी के लिये कई कदम उठाए हैं, परिणामस्वरूप पिछले आठ वर्षों में दुग्ध उत्पादन में 44% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- इसके अलावा वैश्विक स्तर पर 2% उत्पादन वृद्धि की तुलना में भारत में दुग्ध उत्पादन वृद्धि दर 6% से अधिक देखी जा रही है।
- योजनाएँ:
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन
- राष्ट्रव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम
- गोबर धन योजना
- डेयरी क्षेत्र का डिजिटलीकरण और मवेशियों का सार्वभौमिक टीकाकरण
- डेयरी विकास पर राष्ट्रीय कार्ययोजना
- पशुपालन अवसंरचना विकास कोष: इसका उद्देश्य मांस प्रसंस्करण क्षमता और उत्पाद विविधीकरण को बढ़ाने में मदद करना है ताकि असंगठित डेयरी उत्पादकों को डेयरी बाज़ारों का आयोजन करने के लिये अधिक से अधिक पहुँच प्रदान की जा सके।
- आगामी पहल:
- डेयरी इकोसिस्टम: सरकार एक ब्लैंच्ड डेयरी इकोसिस्टम विकसित करने पर कार्य कर रही है, जहाँ उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों का समाधान किया जाएगा।
- इसके अलावा किसानों के लिये अतिरिक्त आय, गरीबों का सशक्तीकरण, स्वच्छता, रसायन मुक्त खेती, स्वच्छ ऊर्जा और मवेशियों की देखभाल इस इकोसिस्टम से परस्पर जुड़े हुए हैं।
- पशु आधार: सरकार डेयरी पशुओं का सबसे बड़ा डेटाबेस तैयार कर रही है और डेयरी क्षेत्र से संबंधित पशुओं को इसमें टैग किया जा रहा है।
- वर्ष 2025 तक भारत 100% पशुओं का फुट, माउथ डिज़ीज़ (खुरपका-मुँहपका रोग) और ब्रुसेलोसिस से बचाव के लिये टीकाकरण करेगा।
- डेयरी इकोसिस्टम: सरकार एक ब्लैंच्ड डेयरी इकोसिस्टम विकसित करने पर कार्य कर रही है, जहाँ उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान देने के साथ-साथ इस क्षेत्र में व्याप्त चुनौतियों का समाधान किया जाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न :प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर का चयन कीजिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (b)
अतः विकल्प (b) सही है। |