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डेली न्यूज़

  • 13 Aug, 2020
  • 39 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि योजना

प्रिलिम्स के लिये:

PM SVANidhi, आत्मनिर्भर भारत

 मेन्स के लिये:

COVID-19 महामारी का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और इससे निपटने के सरकार के प्रयास, आत्मनिर्भर भारत के मुख्य घटक, विशेषताएँ, चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Union Ministry of  Housing and Urban Affairs- MoHUA) ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर्स आत्मनिर्भर निधि (PM Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi-PM SVANidhi) योजना के तहत 5 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • PM SVANidhi योजना 2 जुलाई को शुरू की गई थी और 1 लाख ऋण के आवेदन पहले ही स्वीकृत हो चुके हैं।
  • PM SVANidhi योजना COVID-19 महामारी के मद्देनज़र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत के तहत घोषित आर्थिक राहत पैकेज का एक हिस्सा है, यह योजना स्ट्रीट वेंडर्स के लिये एक वर्ष में ₹ 10,000 तक के  पूंजीगत ऋण का प्रावधान करती है।
  • MoHUA के अनुसार, इस योजना का उद्देश्य देश भर में 50 लाख स्ट्रीट वेंडर्स को लॉकडाउन के बाद काम फिर से शुरू करने में आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
  • ऋण प्राप्त करने के लिये आवेदकों को किसी प्रकार की ज़मानत या कोलैट्रल (Collateral) की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस योजना के तहत प्राप्त हुई पूंजी को चुकाने के लिये एक वर्ष का समय दिया जाएगा, विक्रेता इस अवधि के दौरान मासिक किश्तों के माध्यम से ऋण का भुगतान कर सकेंगे।
  • साथ ही इस योजना के तहत यदि लाभार्थी लिये गए ऋण पर भुगतान समय से या निर्धारित तिथि से पहले ही करते हैं तो उन्हें 7% (वार्षिक) की ब्याज सब्सिडी प्रदान की जाएगी, जो ‘प्रत्यक्ष लाभ अंतरण’ (Direct Benefit Transfer- DBT) के माध्यम से 6 माह के अंतराल पर सीधे लाभार्थी के बैंक खाते में जमा की जाएगी।
  • इस योजना में निर्धारित तिथि से पहले ऋण के पूर्ण भुगतान पर कोई ज़ुर्माना नहीं लागू होगा।
  • सूक्ष्म-वित्त संस्थानों (Micro finance Institutions- MFI)/गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non Banking Financial Company- NBFC)/स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG),  बैंकों को शहरी क्षेत्र की गरीब आबादी से जुड़ी इस योजना में शामिल किया गया है।  
    • इन संस्थानों को ज़मीनी स्तर पर उनकी उपस्थिति और छोटे व्यापारियों व शहरों की गरीब आबादी के साथ निकटता के कारण इस योजना में शामिल किया गया है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान

  • COVID-19 महामारी के दौरान देश की अर्थव्यवस्था की प्रतिकूल स्थिति के मद्देनज़र 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत विभिन्न प्रकार के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की शुरुआत की गई।
  • मिशन को दो चरणों में लागू किया जाएगा:
    • प्रथम चरण के तहत चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा ताकि स्थानीय विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।
    • द्वितीय चरण में  चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
  •  'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के तहत 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा की गई है, जो भारत के ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (Gross Domestic Product- GDP) के लगभग 10% के बराबर है। पैकेज में भूमि, श्रम, तरलता और कानूनों (Land, Labour, Liquidity and Laws- 4Is) पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। 
  • आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ:
    • अर्थव्यवस्था (Economy): जो वृद्धिशील परिवर्तन (Incremental Change) के स्थान पर बड़ी उछाल (Quantum Jump) पर आधारित हो;  
    • अवसंरचना (Infrastructure): ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने;
    • प्रौद्योगिकी (Technolog): 21 वीं सदी प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्था पर आधारित प्रणाली; 
    • गतिशील जनसांख्यिकी (Vibrant Demography): जो आत्मनिर्भर भारत के लिये ऊर्जा का स्रोत है; 
    • मांग (Demand): भारत की मांग और आपूर्ति श्रृंखला की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

हॉर्नबिल

प्रिलिम्स के लिये:

हॉर्नबिल, पापुम रिज़र्व फॉरेस्ट, पक्के टाइगर रिज़र्व

मेन्स के लिये:

जैवविविधता संरक्षण का महत्त्व  

चर्चा में क्यों?

उपग्रह डेटा पर आधारित एक अध्ययन के अनुसार, अरुणाचल प्रदेश में वनों की कटाई की उच्च दर के कारण हॉर्नबिल (Hornbill) पक्षी के निवास स्थान खतरे में पड़ रहे हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • उपग्रह डेटा पर आधारित यह अध्ययन 862 वर्ग किमी. के क्षेत्रफल में फैले पापुम रिज़र्व फॉरेस्ट (Papum Reserve Forest) में किया गया, जो पक्के टाइगर रिज़र्व के क्षेत्र में स्थित है तथा अवैध कटाई और जातीय संघर्ष से प्रभावित है।
  • पापुम रिज़र्व फॉरेस्ट में वनों की कटाई की वार्षिक दर 8.2 वर्ग किमी. है।
  • भारतीय पूर्वी हिमालय के जैविक रूप से समृद्ध जंगलों में महत्त्वपूर्ण हॉर्नबिल निवास स्थान के नुकसान और गिरावट को दर्शाते हैं तथा आवास संरक्षण के प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।

hornbills

महत्त्व:

  • पापुम रिज़र्व फॉरेस्ट बड़ी, रंगीन और फल खाने वाली हॉर्नबिल (Large, Colourful Fruit-eating hornbill) की तीन प्रजातियों- ग्रेट, पुष्पांजलि और ओरिएंटल चितकबरा (Great, Wreathed and Oriental Pied) का निवास स्थान है। इसके अतिरिक्त पक्के रिज़र्व में हॉर्नबिल की एक चौथी प्रजाति रूफस-नेक्ड (Rufous-Necked) पाई जाती है।
  • उष्णकटिबंधीय वृक्षों के बीजों को फैलाने में अहम भूमिका निभाने के लिये ’वन इंजीनियरों’ या ‘वन किसानों ’के रूप में प्रसिद्द हार्नबिल वनों की समृद्धि और संतुलन का संकेत देते हैं, जिनमें वे घोंसले बनाते हैं।

खतरा:

  • हॉर्नबिल्स का उपयोग उनके ऊपरी चोंच (Upper Beak) के लिये किया जाता था। पूर्वोत्तर में कुछ जातीय समुदायों के सांस्कृतिक प्रतीकों विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के न्यिशी (Nyishi) के सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में इनके पंखों का प्रयोग किया जाता है। फाइबर ग्लास के प्रयोग के बाद संरक्षण कार्यक्रम के बाद पक्षियों के लिये खतरा काफी हद तक कम हो गया।

भारत में हॉर्नबिल:

  • भारत में हॉर्नबिल की नौ प्रजातियाँ हैं जिनमें से चार पश्चिमी घाट पर पाई जाती हैं- भारतीय ग्रे हॉर्नबिल (भारत का स्थानिक), मालाबार ग्रे हॉर्नबिल (पश्चिमी घाट का स्थानिक), मालाबार पाइड हॉर्नबिल (भारत व श्रीलंका का स्थानिक) और व्यापक रूप से पाया जाने वाला ग्रेट हॉर्नबिल (अरुणाचल प्रदेश और केरल का राजकीय पक्षी)।
  • इसके अतिरिक्त रफस-नेक्ड हॉर्नबिल, ऑस्टेन की ब्राउन हॉर्नबिल, जिसमें ग्रेट हॉर्नबिल जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ पूर्वोत्तर भारत के कई राज्यों में पाई जाती हैं।
  • भारत में हॉर्नबिल की एक ऐसी प्रजाति नारकोंडम हॉर्नबिल भी है जिसकी संख्या बहुत कम है तथा  जो केवल अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के  नारकोंडम द्वीप पर पाई जाती है।

पक्के टाइगर रिज़र्व:

  • पक्के टाइगर रिज़र्व, जिसे ‘पखुई टाइगर रिज़र्व’ के नाम से भी जाना जाता है, पूर्वोत्तर भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के पूर्वी कामेंग ज़िले में स्थित एक टाइगर रिज़र्व है।
  • यह अरुणाचल प्रदेश राज्य में नामदफा रिज़र्व के पश्चिम भाग में स्थित है, जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 862 वर्ग किमी. है।

Pakke-Tiger-Reserve

  • इस टाइगर रिज़र्व ने 'संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण' की श्रेणी में ‘हॉर्नबिल नेस्ट एडॉप्शन प्रोग्राम’ के लिये भारत जैव विविधता पुरस्कार (India Biodiversity Award-IBA) जीता था।
  • यह उत्तर-पश्चिम में भारेली या कामेंग नदी और पूर्व में पक्के नदी से घिरा है।
  • पक्के टाइगर रिज़र्व (नवंबर से मार्च तक ठंडे मौसम वाली) उपोष्ण कटिबंधीय जलवायु क्षेत्र में अवस्थित है।
  • यहाँ बिल्ली परिवार की तीन बड़ी प्रजातियाँ- बंगाल टाइगर, इंडियन लेपर्ड और क्लाउडेड तेंदुआ पाई जाती हैं।
  • यहाँ विश्व स्तर पर लुप्तप्राय सफेद पंखों वाला ‘व्हाइट विंग्ड वुड डक’ (White-winged Wood Duck), आईबिसबिल (Ibisbill) और ओरिएंटल बे उल्लू (Oriental Bay Owl) और हॉर्नबिल जैसे पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश के अन्य महत्त्वपूर्ण संरक्षित क्षेत्र:
    • नामदफा: यह पूर्वी हिमालय में अवस्थित एक ‘जैव विविधता हॉटस्पॉट’ (Biodiversity Hotspot) है। यह 27° उत्तरी अक्षांश पर तराई सदाबहार वर्षावन क्षेत्र में अवस्थित है।
    • कमलांग टाइगर रिज़र्व: कमलांग वन्यजीव अभयारण्य वनस्पतियों और जीवों से समृद्ध है जो अरुणाचल प्रदेश के लोहित ज़िले में स्थित है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मेगा प्रयोगशालाएँ

प्रिलिम्स के लिये: 

मेगा प्रयोगशालाएँ

मेन्स के लिये: 

मेगा प्रयोगशालाओं के लाभ, COVID-19 से संबंधित विभिन्न टेस्ट

चर्चा में क्यों?

COVID-19 के परीक्षण को गति देने के साथ-साथ परीक्षण की सटीकता में सुधार लाने के लिये, वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) द्वारा "मेगा प्रयोगशालाएँ" (Mega labs) विकसित करने पर काम किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • इन प्रयोगशालाओं में नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग मशीन (Next Generation Sequencing Machines- NGS) की स्थापना की जाएगी।
    • इन मशीनों का प्रयोग मानव जीनोम अनुक्रमण के लिये भी किया जाता है।
    • CSIR ने NGS मशीनों के निर्माण हेतु U.S आधारित इल्लुमिना कंपनी के साथ भागीदारी की है।
    • वर्तमान में भारत में उपलब्ध इस प्रकार की NGS  मशीन की कीमत लगभग 4 करोड़ रुपए है।
  • इन मशीनों को SARS-CoV-2 कोरोनावायरस का पता लगाने हेतु एक बार में 1,500-3,000 वायरल जीनोम अनुक्रम करने के लिये फिर से तैयार किया जाएगा।

Genome-Study

लाभ:

  • सटीकता-
    • NGS परीक्षणों की सटीकता RT-PCR की तुलना में 70%-80% और एंटीजन परीक्षणों की 50% की तुलना में 97.53% है 
      • जीनोम अनुक्रमण मशीनों से वायरस की उन संभावित उपस्थिति का पता बेहतर तरीके से और उपयुक्त संशोधनों के साथ लगाया जा सकता है जो पारंपरिक रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन परीक्षण (reverse transcription polymerase chain reaction- RT-PCR) से छूट जाते हैं।
      • RT-PCR परीक्षण के तहत SARS-COV-2 वायरस की पहचान वायरस के केवल विशिष्ट हिस्सों का विश्लेषण करते हुए की जाती है, जबकि जीनोम विधि सहायता से वायरस के जीनोम के एक बड़े हिस्से का विश्लेषण किया जा सकता है। 
    • यह विधि वायरस की उपस्थिति का सटीकता से निर्धारण कर सकती है।
  • पुष्टिकरण-
    • NGS के  मामलों को या तो सकारात्मक या नकारात्मक के रूप में पहचाना जाता है जबकि RT-PCR उन्हें 'अनिर्णायक' भी कर देता है। इस प्रकार इसे एक पुष्टिकरण परीक्षण के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है
  • विश्वसनीयता-
    • यह वायरस के विकास के इतिहास का भी पता लगा सकता है और म्यूटेशन को अधिक मज़बूती से ट्रैक कर सकता है।
    • यह अधिक स्थानों की पहचान करने में मदद कर सकता है, क्योंकि SARS-COv-2 वायरस अन्य संबंधित वायरस से भिन्न होते हैं।
  • बड़े पैमाने पर परीक्षण:
    • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) के अनुसार, NGS परीक्षण वर्तमान में लगभग प्रतिदिन 7.5 लाख से एक लाख परीक्षण प्रति दिन तक बढ़ा सकते हैं। 
    • RT-PCR में प्राइमर और प्रोब की आवश्यकता होती है जो महामारी के दौरान थोड़े समय में बड़े पैमाने पर ऐसे परीक्षणों के संचालन में एक बड़ी बाधा के रूप में होते हैं। 
    • NGS को प्राइमर और प्रोब की आवश्यकता नहीं होती है इसमें केवल कस्टम अभिकर्मकों (Custom Reagents) की आवश्यकता होती है।

प्राइमर (Primers): 

  • प्राइमर एक विशेष DNA अनुक्रम को बढ़ाने के लिये उपयोग किये जाने वाले DNA के छोटे अनुक्रम हैं।

प्रोब (Probes):

  • प्रोब एक छोटा रेडियोधर्मी या फ्लोरोसेंटली (Radioactively or Fluorescently) लेबल DNA अनुक्रम है, जिसका उपयोग किसी विशेष DNA अनुक्रम की पहचान करने के लिये किया जाता है।

अभिकर्मक (Reagents):

  • अभिकर्मक को पशु ऊतकों से DNA अर्क (Extracts) को तैयार करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जिसका प्रयोग सीधे PCR में किया जा सकता है।

अन्य प्रयोग:

  • पूरे जीनोम अनुक्रमण में सक्षम "हब्स" स्थापित करने से वायरस में होने वाले महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को ट्रैक करने में मदद मिलेगी और किसी भी प्रकार के प्रकोप के लिये (वायरल या बैक्टीरियल मूल) पुनरुद्देशित किया जा सकता है, ।
  • NGS का उपयोग COVID-19 के लिये नए नैदानिक ​​परीक्षणों को विकसित करने के लिये भी किया जा सकता है।

निगरानी और ट्रेसिंग:

  • मौजूदा परीक्षणों की सीमित सटीकता और क्षमता के कारण, एक बड़ी आबादी के गलत तरीके से नकारात्मक परिणाम आए हैं।
  • NGS बड़े पूलों जैसे- औद्योगिक हब, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों या उन स्थानों जहाँ प्रकोप होने की संभावना है, की निरंतर निगरानी जैसे एक बड़े उद्देश्य की प्राप्ति में मदद कर सकता है ।

COVID-19 के लिये परीक्षण:

देश में COVID -19 संक्रमण का पता लगाने के लिये परीक्षण के विभिन्न तरीकों का प्रयोग किया जा रहा है। इनमें शामिल हैं-

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

डेपसांग मैदान

प्रिलिम्स के लिये: 

दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी, दौलत बेग ओल्डी, वास्तविक नियंत्रण रेखा, गलवान घाटी

मेन्स के लिये: 

वर्तमान समय में भारत-चीन के मध्य उत्पन्न सामरिक विवाद का कारण, प्रभाव एवं समाधान 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, भारत एवं चीन के मध्य सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण डेपसांग मैदान (Depsang Plains) के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये मेजर जनरल-स्तरीय वार्ता संपन्न की गई। वार्ता को दौलत बेग ओल्डी (Daulat Beg Oldie- DBO) में आयोजित किया गया जो दोनों देशों द्वारा प्रस्तुत अलग-अलग दावों के मुद्दों पर चर्चा करने तथा एक-दूसरे द्वारा डेपसांग मैदान में गश्त को रोकने पर केंद्रित थी।

Depsang-Plains

प्रमुख बिंदु:

  • बैठक के बारे में:
  • 15 जून 2020 को पोस्ट गैल्वान क्लैश (Post Galwan Clash) पर पहली उच्च स्तरीय वार्ता संपन्न हुई।
  • तब से सैन्य वार्ता कोर कमांडर स्तर तक ही सीमित है।
  • बैठक में केवल सीमा प्रबंधन के हिस्से के रूप में दोनों पक्षों द्वारा नियमित गश्त पैटर्न्स (Routine Patrolling Patterns) पर चर्चा की गई।

  • डेपसांग मैदान:
    • पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा ( Line of Actual Control (LAC) पर चल रहे गतिरोध में पैंगोंग एवं डेपसांग मैदान दोनों वर्तमान गतिरोध के प्रमुख क्षेत्र हैं।
    • डेपसांग मैदानों के सामरिक महत्त्व के बावजूद, अब तक आयोजित सैन्य वार्ताओं का क्रम गलवान (Galwan), गोगरा हॉटस्प्रिंग (Gogra Hotsprings) और पांगोंग झील के फिंगर कएरिया में (Finger area of Pangong) में उत्पन्न गतिरोध पर ही केंद्रित है।
    • डेपसांग LAC के उन क्षेत्रों में से एक है जहाँ टैंक युद्धाभ्यास संभव है।
    • वर्ष 1962 के युद्ध के दौरान, चीनी सैनिकों ने मैदान पर कब्जा कर लिया था। वर्ष 2013 में चीनी सैनिकों द्वारा इसके 19 किमी अंदर आकर टेंटों को उखाड़ दिया गया जिसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के मध्य 21 दिन तक गतिरोध बना रहा।
  • डेपसांग मैदान में विवाद के मुद्दे:
    • डेपसांग मैदान के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में काफी संख्या में चीनी सेना की उपस्थिति है, जिसे बल्ज (Bulge) कहा जाता है।
    • चीनी सैनिकों ने भारतीय सेना की टुकड़ियों को विभिन्न गश्त बिंदुओं/क्षेत्रों तक पहुँचने से रोक दिया है।
    •  LAC के समीप चीन के द्वारा निर्माण कार्य तथा टैंक एवं बख्तरबंद वाहनों का मौज़ूदगी बढ़ाई गई है।

भारत की चिंता:

  • इस क्षेत्र में चीन की मौजूदगी भारतीय सीमा में स्थित बर्ट (Burts) और राकी नाला (Raki Nala) क्षेत्र में एक चुनौती/खतरा है इसके अलावा दौलत बेग ओल्डीबी (Daulat Beg Oldieby- DBO) चीनी सेना को 255 किमी लंबी दारबुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (Darbuk-Shyok-Daulat Beg Oldie) सड़क के काफी करीब लाता है। 

चुनौतियाँ:

  • भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित भारत @ 75 शिखर सम्मेलन(India@75 Summit) को संबोधित करते हुए भारत के विदेश मंत्री द्वारा कहा गया कि चीन के साथ एक समझ विकसित करना चीन-भारतीय संबंधों के समक्ष एक बड़ी चुनौती है।
  • दोनों देश बिलियन-प्लस आबादी (Billion-Plus Populations)  के साथ भौगोलिक रूप से बहुत विशिष्ट हैं।
  • ऐसे समय में दोनों के मध्य एक समानांतर लेकिन अंतर में वृद्धि हो रही है जब दोनों आधुनिक देश एक दूसरे के पड़ोसी भी हैं जहाँ दोनों देशों के मध्य एक संतुलन समझ में बढ़ोतरी हो रही है।

आगे की राह:

  • भारतीय विदेश नीति के संचालन के लिये संतुलन स्थापित करना एक केंद्रीय एवं महत्त्वपूर्ण बिंदु है।
  • वर्तमान समय में  70 वर्ष पूर्व के राजनयिक संबंध स्थापित करने की मूल आकांक्षा को फिर से जागृत करने, अच्छे पड़ोसी तथा दोस्ती, एकता और सहयोग की भावना को आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
  • भारत और चीन के पास विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, जनसांख्यिकी, बाज़ार एवं सेनाएँ  विद्यमान हैं इसलिये यह दोनों देशों के हितों में है कि वे अपने लोगों, क्षेत्र और वैश्विक शांति एवं विकास के लिये अपनी ऊर्जा को संरेखित करें।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सौर उपकरण विनिर्माण में आत्मनिर्भरता

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता

मेन्स के लिये:

सौर उपकरण विनिर्माण में आत्मनिर्भरता

चर्चा में क्यों?

'आत्मानिर्भर भारत अभियान’, भारत के सौर ऊर्जा उपकरण विनिर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हाल ही में अनेक ‘ विनिर्माण इकाइयों’ ने ‘नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय’ (Ministry of New and Renewable Energy) को इस दिशा में प्रस्ताव पेश किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • हाल ही में भारत सरकार ने सौर ऊर्जा उपकरणों के आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाने को अनुमति दी है। सौर उपकरणों के घरेलू निर्माण में इन इकाइयों की दिलचस्पी में वृद्धि, सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम से मेल खाती है।
  • 10 गीगावाट (GW) से अधिक क्षमता वाले प्रस्ताव पेश करने वाली विनिर्माण इकाइयों में भारत तथा भारत से बाहर स्थित, दोनों प्रकार की विनिर्माण इकाइयाँ शामिल हैं।

सरकार के कदम:

सेफगार्ड ड्यूटी:

  • घरेलू विनिर्माताओं की सुरक्षा के लिये सरकार ने अल्पकालिक उपाय के रूप में 'सेफगार्ड ड्यूटी' (Safeguard Duties) को लागू किया गया है। 
  • भारत ने चीन और मलेशिया से सौर उपकरणों के आयात पर लगभग 15 प्रतिशत की दर से  'सेफगार्ड ड्यूटी' लागू की है। जिन्हें जुलाई 2021 तक बढ़ाया गया है।
  • सामान्यत: 'सेफगार्ड ड्यूटी' को सीमित समय के लिये आरोपित किया जाता है, अत: यह दीर्घकालीन निवेश को प्रभावित नहीं करता है। 

‘सीमा शुल्क’ (Customs Duties):

  • दीर्घकालिक घरेलू निवेश को प्रेरित करने के लिये ‘सीमा शुल्क’ (Customs Duties) को आरोपित किया गया है।
  • हालाँकि सौर उपकरणों पर लगभग 20-25 प्रतिशत के प्रस्तावित 'बुनियादी सीमा शुल्क' (Basic Customs Duty) को आधिकारिक रूप से लागू करना बाकी है।

ब्याज सब्सिडी योजना (Interest Subvention Scheme):

  • घरेलू विनिर्माण पर 5 प्रतिशत ब्याज छूट के साथ 'इंटरेस्ट सबवेंशन स्कीम' वर्तमान में वित्त मंत्रालय के पास लंबित है।

'सौर विनिर्माण ज़ोन' (Solar Manufacturing zones):

  • सौर विनिर्माण के लिये 'सौर विनिर्माण ज़ोन' (Manufacturing Zones) को नामित करने के एक प्रस्ताव पर भी विचार किया जा रहा है।

सौर उपकरण विनिर्माण के समक्ष चुनौतियाँ:

  • विगत दो वर्षों में सौर ऊर्जा उपकरणों के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये अनेक उपायों यथा सुरक्षा शुल्क, 'घरेलू सामग्री की आवश्यकता नीति' और 'मॉडल और निर्माताओं की अनुमोदित सूची' को अपनाने के बावजूद अपेक्षित पैमाने पर प्रगति नहीं हुई है। 
  • वर्तमान में सौर उपकरण विनिर्माण के समक्ष निम्नलिखित चुनौतियाँ हैं:

पूंजी गहन उद्योग:

  • सौर सेल विनिर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें उच्च प्रौद्योगिकी और अत्यधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। सौर सेल प्रौद्योगिकी का 8-10 महीने में उन्नयन करने की आवश्यकता होती है।

चीन का वर्चस्व:

  • वर्तमान में भारत की 20GW की औसत वार्षिक विनिर्माण मांग के बावजूद केवल 3GW के आसपास विनिर्माण क्षमता है। 1.68 बिलियन डॉलर आयात के साथ सौर ऊर्जा उपकरणों का लगभग 80 प्रतिशत चीन से आयतित है। 

कम क्षमता:

  • 'मेरकॉम इंडिया रिसर्च' (Mercom India Research) के अनुसार, वर्तमान में भारत में 16 सौर सेल विनिर्माता इकाई हैं, जिनमें से केवल आधी इकाइयों की क्षमता 100 मेगावाट या उससे अधिक है।

डबल्यूटीओ में चुनौती:

आगे की राह:

  • संभावित गैर-पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों की खोज तथा उन्हें किफायती एवं सुलभ बनाने के लिये अनुसंधान की आवश्यकता है। 
  • भारत को पेरिस समझौते के तहत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और वित्तपोषण पर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये। 
  • गैर-पारंपरिक ऊर्जा के साथ-साथ परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में भारत की स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को अपनाने की दिशा में कार्य करना चाहिये। 

नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता:

  • भारत ने वर्ष 2014 के बाद से सौर ऊर्जा क्षमता में काफी प्रगति की है। भारत उत्तरोत्तर वृद्धि के साथ विश्व के तीसरे बड़े सौर ऊर्जा बाज़ार के रूप में उभरा है।
  • भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 175GW अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। जिसमें सौर ऊर्जा से 100 GW, पवन ऊर्जा से 60 GW, जैव-शक्ति ऊर्जा से 10 GW और लघु जल-विद्युत से 5 GW ऊर्जा शामिल हैं।
  • भारत ने ‘पेरिस समझौते’ के तहत 'राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान' (INDC) के तहत वर्ष 2030 तक कुल स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का 40% 'गैर-जीवाश्म ईंधन संसाधनों' से प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
  • भारत की संचयी सौर स्थापित क्षमता लगभग 36.6 GW है, जो भारत में कुल स्थापित विद्युत क्षमता के 9.8% का प्रतिनिधित्व करती है। 
  • बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं को छोड़कर, देश के कुल विद्युत क्षमता मिश्रण में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान लगभग 23.9% है, जिसमें सौर ऊर्जा (9.8%), पवन ऊर्जा (10.1%), जैव-शक्ति (2.7%), लघु जलविद्युत परियोजनाएँ (1.3%), और अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाएँ (0.04%) शामिल हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

तुर्की एवं ग्रीस के मध्य तनाव

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन,  हागिया सोफिया संग्रहालय 

मेन्स के लिये:

तुर्की और ग्रीस के मध्य उत्पन्न विवाद

चर्चा में क्यों?

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के सहयोगी तुर्की और ग्रीस पिछले दो सप्ताह में दो बार आपसी विरोध जता चुके हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • ये दोनों मामले तुर्की द्वारा 1500 वर्ष पुराने हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में परिवर्तित करना और पूर्वी भू-मध्य सागर में हाइड्रोकार्बन की खोज करने के मुद्दे से संबंधित हैं।
  • इस वर्ष दोनों राष्ट्रों के बीच संबंधों में गिरावट देखी गई है। फरवरी में, तुर्की ने हज़ारों प्रवासियों को ग्रीस और यूरोपीय संघ में प्रवेश करने की अनुमति दी थी, जिसके कारण तनाव उत्पन्न हुआ।

भूमध्य सागरीय पड़ोसी

  • सदियों से, तुर्की और ग्रीस ने एक विविध प्रकार का इतिहास साझा किया है। वर्ष 1830 में ग्रीस ने आधुनिक तुर्की के प्रणेता ओटोमन साम्राज्य से स्वतंत्रता हासिल की। वर्ष 1923 में, दोनों देशों ने अपनी मुस्लिम और ईसाई आबादी का आदान-प्रदान किया- यह दूसरा सबसे बड़ा मानव प्रवासन था केवल भारत के विभाजन के समय हुआ प्रवासन  ही इतिहास में इससे बड़ा था।
  • दोनों देशों के मध्य दशकों पुराने साइप्रस संघर्ष पर विरोध जारी है, और ईजियन सागर में अन्वेषण अधिकारों को लेकर दो बार तो बात युद्ध तक चली गई है।
  • हालाँकि, दोनों देश 30-सदस्यीय नाटो गठबंधन का हिस्सा हैं, और तुर्की आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ की पूर्ण सदस्यता के लिये एक उम्मीदवार है, ग्रीस जिसका एक भाग है।

Greece

पूर्वी भूमध्यसागरीय विवाद

  • 40 वर्षों तक तुर्की और ग्रीस ने पूर्वी भूमध्य सागर और ईजियन सागर के अधिकारों पर असहमति जताई है, जहाँ तेल एवं गैस के भंडार होने की संभावनाएँ हैं।
  • 21 जुलाई को, तुर्की ने घोषणा की कि ड्रिलिंग जहाज ओरुक रीस तेल और गैस के लिए समुद्र के एक विवादित हिस्से की खोज करेगा। ग्रीस ने अपनी वायु सेना, नौसेना और कोस्टगार्ड को हाई अलर्ट पर रखकर इसका प्रत्युत्तर दिया।

हागिया सोफिया संग्रहालय से संबंधित विवाद

  • विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तुर्की के वर्तमान राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन ने तुर्की की राजनीति में प्रवेश किया था तो उनके प्रमुख एजेंडे में हागिया सोफिया की तत्कालीन स्थिति शामिल नहीं थी।
    • तुर्की के आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार, रेसेप एरदोगन ने अपनी राजनीति के शुरुआत दौर में एक बार हागिया सोफिया को मस्जिद के रूप में बदलने की मांग पर आपत्ति भी ज़ाहिर की थी।
  • हालाँकि राष्ट्रपति रेसेप एरदोगन ने इस्तांबुल में नगरपालिका चुनावों में हार के बाद अपना पक्ष पूरी तरह से बदल दिया।
  • इसके पश्चात् जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा येरुशलम को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता दे दी गई, तब रेसेप एरदोगन ने भी हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद में बदलने के पक्ष में बोलना शुरू कर दिया।
  • जानकार मानते हैं कि हागिया सोफिया संग्रहालय को मस्जिद के रूप में बदलने को लेकर रेसेप एरदोगन का पक्ष राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने की इच्छा से काफी हद तक जुड़ हुआ है। अपने इस कदम के माध्यम से वह पुनः अपना राजनीतिक समर्थन प्राप्त करना चाहते हैं, जो इस्तांबुल के नगरपालिका चुनावों के बाद लगातार कम हो रहा है।

हागिया सोफिया-

  • इस्तांबुल की इस प्रतिष्ठित संरचना का निर्माण तकरीबन 532 ईस्वी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य (Byzantine Empire) के शासक जस्टिनियन (Justinian) के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ, उस समय इस शहर को कॉन्सटेनटिनोपोल (Constantinople) या कस्तुनतुनिया (Qustuntunia) के रूप में जाना जाता था।
  • इस प्रतिष्ठित इमारत को बनाने के लिये काफी उत्तम किस्म की निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया था और इस कार्य में उस समय के सबसे बेहतरीन कारीगरों को लगाया गया था, वर्तमान में यह एक संग्रहालय के रूप में तुर्की के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
  • गिरजाघर के रूप में इस ढाँचे का निर्माण लगभग पाँच वर्षों यानी 537 ईस्वी में पूरा हो गया। यह इमारत उस समय ऑर्थोडॉक्स इसाईयत (Orthodox Christianity) के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र थी, और कुछ ही समय में यह बाइज़ेंटाइन साम्राज्य की स्थापना का प्रतीक बन गया।
  • यह इमारत लगभग 900 वर्षों तक ऑर्थोडॉक्स इसाईयत के लिये एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित रही, किंतु वर्ष 1453 में जब इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य (Ottoman Empire) के सुल्तान मेहमत द्वितीय (Sultan Mehmet II) ने कस्तुनतुनिया पर कब्ज़ा कर लिया, तब इसका नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया गया।
  • हमलावर ताकतों ने हागिया सोफिया में काफी तोड़फोड़ की और कुछ समय बाद इसे मस्जिद में बदल दिया गया, मस्जिद के रूप में परिवर्तन होने के पश्चात् स्मारक की संरचना में कई आंतरिक और बाह्य परिवर्तन किये गए और वहाँ से सभी रूढ़िवादी प्रतीकों को हटा दिया गया था, साथ ही इस संरचना के बाहरी हिस्सों में मीनारों का निर्माण किया गया।
    • एक लंबे अरसे तक हागिया सोफिया इस्तांबुल की सबसे महत्त्वपूर्ण मस्जिद रही।
  • 1930 के दशक में आधुनिक तुर्की गणराज्य के संस्थापक मुस्तफा कमाल अतातुर्क (Mustafa Kemal Ataturk) ने तुर्की को अधिक धर्मनिरपेक्ष देश बनाने के प्रयासों के तहत मस्जिद को एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया।
    • वर्ष 1935 में इसे एक संग्रहालय के रूप में आम जनता के लिये खोल दिया गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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