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डेली न्यूज़

  • 12 Nov, 2020
  • 39 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

ESA असंवैधानिक घोषित करने के लिये याचिका

प्रिलिम्स के लिये:

जैवविविधता, पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, माधव गाडगिल, कस्तूरीरंगन समिति, पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र, लाल उद्योग, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986

मेन्स के लिये: 

जैवविविधता बनाम आजीविका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, किसानों के लिये केरल स्थित एक NGO ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर कर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 2018 के मसौदा अधिसूचना (Draft Notification) को चुनौती दी गई है। इसके जरिये छह राज्यों के 56,825 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पश्चिमी घाट पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Areas in Western Ghats) घोषित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (Western Ghats Ecology Expert Panel), जिन्हें गाडगिल समिति और उच्च-स्तरीय कार्य समूह भी कहा जाता है। जिसको कस्तूरीरंगन समिति भी कहा जाता है। जिन्हें क्षेत्र के सतत् और समावेशी विकास की अनुमति देते हुए पश्चिमी घाटों की जैव विविधता के संरक्षण तथा सुरक्षा के लिये गठित किया गया था।
  • उन्होंने सिफारिश की कि छह राज्यों केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु में पड़ने वाले भौगोलिक क्षेत्रों को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र (Ecologically Sensitive Area) घोषित किया जाना चाहिये।
  • ESA में अधिसूचित क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए वर्ष 2018 में एक मसौदा अधिसूचना जारी की गई थी।

याचिका के मुख्य बिंदु:

  • मसौदा अधिसूचना केरल में 123 कृषि क्षेत्रों को ESA घोषित करेगा। यह 22 लाख लोगों को प्रभावित करेगा और केरल की अर्थव्यवस्था को पंगु बना देगा।
  • केंद्र ने पश्चिमी घाट क्षेत्र में रहने वाले लोगों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया था, जो "जैव विविधता के विध्वंसक और पारिस्थितिक क्षति के एजेंटों" के रूप में था।
  • इसके अलावा, यह सुझाव दिया कि केरल में ESA को आरक्षित वनों और संरक्षित क्षेत्रों तक सीमित रखा जाना चाहिये।

गाडगिल समिति:

  • इसने प्रस्तावित किया कि इस पूरे क्षेत्र को ‘पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील क्षेत्र’ के रूप में नामित किया जाए।
  • साथ ही इस क्षेत्र के भीतर छोटे क्षेत्रों को उनकी मौजूदा स्थिति और खतरे की प्रकृति के आधार पर पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों को I, II या III के रूप में पहचाना जाना था।
  • इसने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के तहत वैधानिक प्राधिकरण के रूप में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा-3 के तहत पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण  के गठन की सिफारिश की।
  • अधिक पर्यावरण के अनुकूल होने और जमीनी वास्तविकताओं के अनुरूप नहीं होने के कारण इसकी आलोचना की गई।

कस्तूरीरंगन समिति:

  • इसने गाडगिल रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित प्रणाली के विपरीत विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की मांग की।
  • समिति की प्रमुख सिफारिश:
    • पश्चिमी घाटों के कुल क्षेत्रफल के बजाय, कुल क्षेत्रफल का केवल 37% ESA के तहत लाया जाना है।
    • ESA में खनन, उत्खनन और रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध।
    • किसी नई ताप विद्युत परियोजना की अनुमति न दी जाए किंतु प्रतिबंधों के साथ पनबिजली परियोजनाओं की अनुमति दी जाए।
    • लाल उद्योगों (अत्यधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों) को सख्ती से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
    • रिपोर्ट में ESA के दायरे में बसे क्षेत्रों और खेती को बाहर निकालने की सिफारिश की गई है, जिससे यह किसान समर्थक दृष्टिकोण है।

आगे की राह

  • यह मामला ‘विकास बनाम संरक्षण’ की बहस से संबंधित है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि विकास के नाम पर विनाश को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये तथा सतत् विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • विभिन्न पक्षों के बीच सहमति से संबंधित चिंताओं का समाधान करके वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण, समय पर ढंग से मतभेदों को हल करने के लिये आवश्यक है।
  • कार्यान्वयन में देरी केवल देश के बेशकीमती प्राकृतिक संसाधनों को कम करेगा। इसलिये वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों और मांगों के समग्र दृष्टिकोण के साथ, उन्हें संबोधित करने के लिये विकासशील रणनीतियों को विकसित किया जाना चाहिये।

स्रोत:द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

व्‍यवहार्यता अंतर वित्त पोषण योजना

प्रिलिम्स के लिये:

व्यवहार्यता अंतराल अनुदान

मेन्स के लिये: 

सामाजिक एवं आर्थिक आधारभूत ढाँचे में PPP को बढ़ावा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रि‍मंडल समिति ने ‘आधारभूत व्यवहार्यता अंतराल अनुदान’ (Infrastructure Viability Gap Funding- VGF) योजना में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) हेतु वित्तीय सहायता के लिये इसे जारी रखने और इसके पुनर्गठन को मंज़ूरी दी है। इसकी समयावधि वर्ष 2024-25 तक है और इसकी कुल लागत 8100 करोड़ रुपए है।

प्रमुख बिंदु: 

  • व्यवहार्यता अंतराल अनुदान (VGF):
    • यह एक ऐसा अनुदान होता है जो सरकार द्वारा ऐसे आधारभूत ढाँचा परियोजना को प्रदान किया जाता है जो आर्थिक रूप से उचित हो लेकिन उनकी वित्तीय व्यवहार्यता कम हो (Economically Justified but not Financially Viable) ऐसा अनुदान दीर्घकालीन परिपक्वता अवधि वाली परियोजना को प्रदान किया जाता है।  
  • पृष्ठभूमि: 
    • केंद्रीय वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग ने वर्ष 2006 में ‘आधारभूत ढाँचे में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) को वित्तीय समर्थन देने के लिये योजना’ (व्यवहार्यता अंतराल अनुदान योजना) की शुरुआत उन परियोजनाओं के लिये की थी जो आर्थिक रूप से न्यायोचित है किंतु वाणिज्यिक रूप से व्यावहारिक नहीं है। जिसका मुख्य कारण अधिक पूंजी लागत आवश्यकताएँ, लंबी अवधि और व्यावसायिक स्तर पर उपयोगकर्त्ता शुल्क बढ़ाने में असमर्थता शामिल है। 
    • मौजूदा योजना में कुल परियोजना की 40% VGF हिस्सेदारी केंद्र सरकार और परियोजना की शुरुआत की स्थिति में पूंजी अनुदान  (20% + 20%) के रूप में प्रायोजक प्राधिकरण की ओर से उपलब्‍ध कराई जाती है। 
  • इस संशोधित योजना में सामाजिक आधारभूत ढाँचे में निजी क्षेत्र की सहभागिता को मुख्यधारा में लाने के लिये दो उप-योजनाओं की शुरुआत की गई है।

1. उप योजना-1 (Sub Scheme -1):    

  • यह योजना सामाजिक क्षेत्रों जैसे अपशिष्ट जल शोधन, जलापूर्ति, ठोस कचरा प्रबंधन, स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्रों की आवश्यकता को पूरा करेगी। 
  • इस तरह की परियोजनाओं में पूंजी लागत को पूर्ण रूप से पूरा करने के लिये बैंक संबंधी सामर्थ्य एवं कम राजस्‍व जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इस श्रेणी के तहत पात्र परियोजनाओं में कम-से-कम 100% परिचालन लागत पुन: प्राप्त होनी चाहिये। 
  • इसमें केंद्र सरकार VGF के तहत कुल परियोजना लागत का अधिकतम 30% उपलब्‍ध कराएगी और राज्‍य सरकार/प्रायोजक केंद्रीय मंत्रालय/वैधानिक निकाय कुल परियोजना लागत की अतिरिक्त 30% सहायता उपलब्ध करा सकते हैं।

2. उप योजना-2 (Sub Scheme-2):

  • यह उप-योजना प्राथमिक सामाजिक क्षेत्रों की परियोजनाओं को सहायता देगी और ये परियोजनाएँ स्वास्थ्य एवं शिक्षा क्षेत्रों से संबंधित हो सकती है जहाँ कम-से-कम 50% परिचालन लागत की पुन: प्राप्ति संभव है।
  • इन परियोजनाओं में केंद्र एवं राज्य सरकारें मिलकर पहले पाँच वर्षों के लिये पूंजीगत व्यय का 80% तक मुहैया कराएंगी और परिचालन एवं रखरखाव (O & M) लागत का 50% तक खर्च करेंगी।
  • केंद्र सरकार इस परियोजना में कुल परियोजना लागत का अधिकतम 40% उपलब्‍ध कराएगी। इसके अलावा, यह वाणिज्यिक परिचालन के पहले पाँच वर्षों में परियोजना के परिचालन लागत का अधिकतम 25% प्रदान कर सकती है।

इस योजना के तहत परियोजनाओं का दायरा: 

  • इस योजना की शुरुआत के बाद से 64 परियोजनाओं को अंतिम अनुमोदन प्रदान किया जा चुका है और इनकी कुल परियोजना लागत 34228 करोड़ रुपए तथा VGF 5639 करोड़ रुपए है। 
  • वित्त वर्ष 2019-20 के अंत तक 4375 करोड़ रुपए की VGF राशि को वितरित किया जा चुका है।

क्रियान्वयन रणनीति:

  • नई योजना को मंत्रिमंडल की मंज़ूरी मिलने के बाद एक माह की अवधि में लागू किया जाएगा और नई VGF योजना में प्रस्तावित संशोधनों को इसके दिशा-निर्देशों में उपयुक्त रूप से शामिल किया जाएगा।

शामिल व्यय: 

वित्त वर्ष 

आर्थिक आधारभूत ढाँचा क्षेत्र में सार्वजनिक निजी सहभागिता को वित्तीय समर्थन देने की योजना (करोड़ रुपए)

सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी आधारभूत अवसंरचना को वित्तीय समर्थन देने की योजना (करोड़ रुपए)

2020-21



1000

400

2021-22

1100

400

2022-23

1200

400

2023-24

1300

400

2024-25

1400

500

कुल

6000

2100

लाभ:

  • इस परियोजना का लक्ष्य सामाजिक एवं आर्थिक आधारभूत ढाँचे में सार्वजनिक निजी सहभागिता (PPP) को बढ़ावा देना है ताकि परिसंपत्तियों का बेहतर सृजन हो और इनके उपयुक्‍त संचालन एवं रखरखाव को सुनिश्चित किया जा सके। साथ ही आर्थिक एवं सामाजिक रूप से आवश्यक परियोजनाओं को वाणिज्यिक रूप से व्‍यावहारिकता में लाया जा सके। 
    • ये परियोजनाएँ देश में आधारभूत ढाँचे के विकास में मदद करेंगी। 
  • प्रस्तावित VGF योजना को नए रूप में लागू करने से सार्वजनिक निजी क्षेत्र की अधिक से अधिक परियोजनाओं को आकर्षित किया जा सकेगा और सामाजिक क्षेत्रों (स्वास्थ्य, शिक्षा, अपशिष्‍ट जल, ठोस कचरा प्रबंधन, जल आपूर्ति आदि) के लिये निजी निवेश में सहायता मिलेगी। 
    • नए अस्पतालों एवं स्कूलों के बनने से रोज़गार के नए अवसर उपलब्ध होंगे। 

स्रोत: पीआईबी 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

‘ओवर द टॉप’ प्लेटफॉर्म और सरकारी हस्तक्षेप

प्रिलिम्स के लिये

‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 

मेन्स के लिये

वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं को विनियमित करने की आवश्यकता और इसकी आलोचना

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने अपने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल्स और नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम तथा हॉटस्टार जैसे अन्य ‘ओवर द टॉप' (Over The Top- OTT) प्लेटफॉर्म अथवा वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाने की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि वर्तमान में भारत में इन प्लेटफॉर्म और पोर्टल्स पर उपलब्ध डिजिटल कंटेंट को नियंत्रित करने वाला कोई कानून या स्वायत्त निकाय नहीं है।
    • अब तक ‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म जैसे- नेटफ्लिक्स, अमेज़न तथा हॉटस्टार और समाचार प्लेटफॉर्म आदि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के कानूनी ढाँचे के दायरे में आते थे, किंतु प्रिंट और प्रसारण मीडिया के विपरीत उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी मंत्रालय द्वारा विनियमित नहीं किया जाता था।
  • सरकार के इस कदम का प्राथमिक उद्देश्य ‘डिजिटल/ऑनलाइन मीडिया’ को नियंत्रित अथवा विनियमित करना है। राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया है कि ‘डिजिटल/ऑनलाइन मीडिया’ के अंतर्गत ‘ऑनलाइन कंटेंट प्रदाताओं द्वारा उपलब्ध कराई गईं फिल्में और ऑडियो-विज़ुअल प्रोग्राम तथा ऑनलाइन प्लेटफार्म पर समाचार और समसामयिक विषय-वस्तु शामिल है।

क्या होते हैं ‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म?

  • OTT सेवाओं से आशय ऐसे एप से है, जिनका उपयोग उपभोक्ताओं द्वारा इंटरनेट के माध्यम से किया जाता है। OTT शब्द का प्रयोग आमतौर पर वीडियो-ऑन-डिमांड प्लेटफॉर्म के संबंध में किया जाता है, लेकिन ऑडियो स्ट्रीमिंग, मैसेज सर्विस या इंटरनेट-आधारित वॉयस कॉलिंग सोल्यूशन के संदर्भ में भी इसका प्रयोग होता है।
  • प्रायः ओटीटी (OTT) या ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म का प्रयोग ऑडियो और वीडियो होस्टिंग तथा स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाता के रूप में किया जाता है, जिनकी शुरुआत तो असल में कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म के रूप में हुई थी, किंतु वर्तमान में ये स्वयं ही शॉर्ट फिल्म, फीचर फिल्म, वृत्तचित्रों और वेब-फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम तथा हॉटस्टार आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
    • ये प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ताओं को व्यापक कंटेंट प्रदान करने साथ-साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का इस्तेमाल करते हुए उन्हें कंटेंट के संबंध में सुझाव भी प्रदान करते हैं।
  • इन वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं के अलावा कई बार दूरसंचार, एसएमएस या मल्टीमीडिया मैसेज भेजने से संबंधी सेवाएँ उपलब्ध कराने वाले प्लेटफॉर्म को भी OTT की परिभाषा में शामिल किया जाता है।

OTT प्लेटफॉर्म को विनियमित करने संबंधित मौजूद कानून

  • गौरतलब है कि भारत में अब तक किसी भी ‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिये कोई विशिष्ट कानून या नियम नहीं हैं, क्योंकि यह अन्य मनोरंजन के माध्यमों की तुलना में एक नया माध्यम है।
  • टेलीविजन, प्रिंट या रेडियो के विपरीत, जो कि सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करते हैं और विनियामक निकायों द्वारा नियंत्रित किये जाते हैं, ‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कंटेंट को लेकर कोई भी नियम या कानून नहीं है और इनके किसी नियामक निकाय द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
    • भारत में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) द्वारा प्रिंट मीडिया को, न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) द्वारा समाचार चैनलों को और भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) द्वारा भारतीय विज्ञापन उद्योग को नियंत्रित किया जाता है, साथ ही ये संगठन इन उद्योगों का प्रतिनिधित्त्व भी करते हैं।
  • यद्यपि ‘ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म को लेकर भारत में कोई नियम-कानून नहीं है, किंतु सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79 इन वीडियो स्ट्रीमिंग सेवा प्रदाताओं पर लागू होती है।
    • अधिनियम की धारा 79 कुछ मामलों में मध्यस्थों को उत्तरदायित्त्व से छूट देती है। इसमें कहा गया है कि मध्यस्थ उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए किसी भी तीसरे पक्ष की जानकारी, डेटा या संचार के लिये उत्तरदायी नहीं होंगे।

विनियम की आवश्यकता

  • एक अनुमान के अनुसार, मार्च 2019 के अंत तक भारत का ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग उद्योग का मूल्य तकरीबन 500 करोड़ रुपए का था, जो कि वर्ष 2025 के अंत तक 4000 करोड़ रुपए हो सकता है।
  • वर्ष 2019 के अंत तक भारत में 17 करोड़ ओटीटी प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ता थे और जैसे-जैसे भारत में मोबाइल एवं इंटरनेट के उपयोगकर्त्ताओ की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है वैसे ही ओटीटी प्लेटफॉर्म उपयोगकर्त्ताओं की संख्या में भी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।
  • ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में उपयोगकर्त्ताओं को जो कंटेंट प्रदान किया जा रहा है, उसे विनियमित किया जाना काफी आवश्यक है।
  • वर्ष 2019 के बाद से सर्वोच्च न्यायालय और देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों में ओटीटी प्लेटफॉर्म पर मौजूद कंटेंट को लेकर कई सारे मामले दर्ज किये गए है। इस तरह सरकार का यह कदम ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर मौजूद आपत्तिजनक कंटेंट को नियंत्रित करने की दिशा में एकदम सही कदम है।

कदम की आलोचना

  • भारतीय एंटरटेनमेंट उद्योग से जुड़े तमाम लोगों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है और इसे पूर्णतः अनुचित बताया है।
  • कला को स्वतंत्र रूप से विकसित होने की अनुमति दिये बिना हम किसी भी प्रकार की डिजिटल क्रांति की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं। सरकार इस कदम के माध्यम से कला के विकास में बाधा डालने और उसे सीमित करने का प्रयास कर रही है।
  • फिल्मों और कहानियों को सेंसर करना अथवा उन्हें नियंत्रित करना एक प्रकार से विचारों को नियंत्रित करने जैसा है, जो कि पूर्णतः लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है।
    • डिजिटल मीडिया को नियंत्रित करने से भारतीय नागरिकों की रचनात्मक स्वतंत्रता प्रभावित होगी।
  • जब किसी उद्योग को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है तो वह विनियमन उसकी सीमा बँध जाता है, और उस उद्योग का विकास पूर्णतः रुक जाता है। इस तरह ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग उद्योग को नियंत्रित करने से उसके विकास में बाधा उत्पन्न हो सकती है।

आगे की राह

  • भारत का ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग उद्योग अभी विकास के चरण में है और भविष्य में यह उद्योग भारत के मनोरंजन उद्योग की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता है। 
  • सरकार के इस कदम को लेकर लोगों के मत काफी बँटे हुए हैं, जहाँ एक ओर कुछ लोगों का मानना है कि सरकार के इस कदम से भारतीय नागरिकों की रचनात्मक/सृजनात्मक स्वतंत्रता प्रभावित होगी, वहीं दूसरे लोग मानते हैं कि तेज़ी से विकसित होते ऑनलाइन वीडियो स्ट्रीमिंग उद्योग को नियंत्रित करना काफी महत्त्वपूर्ण है। 
  • ऐसे में कई विशेषज्ञ संतुलित मार्ग का सुझाव देते हैं। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) द्वारा ओवर द टॉप' (OTT) प्लेटफॉर्म के लिये एक स्व-नियामक तंत्र प्रस्तावित किया गया है, हालाँकि सरकार ने इस प्रस्तावित तंत्र पर असहमति व्यक्त की थी और इस पर अनुमति देने से इनकार कर दिया था। 
  • अतः आवश्यक है कि इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) द्वारा प्रस्तावित संहिता (Code) और स्व-नियामक तंत्र पर पुनर्विचार किया जाए और इसमें आवश्यकता अनुकूल परिवर्तन किया जाए।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-मालदीव संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

मालदीव की भौगोलिक अवस्थिति, ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये: 

भारत और मालदीव के प्रगाढ़ होते संबंध

चर्चा में क्यों?

9 नवंबर, 2020 को भारत के विदेश सचिव ने मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से मुलाकात की और भारत की सहायता से वहाँ शुरू हो रही बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में हुई प्रगति की गति पर चर्चा की।

प्रमुख बिंदु: 

  • भारतीय विदेश सचिव की दो दिवसीय माले (मालदीव की राजधानी) यात्रा 'भारत से मालदीव की इस वर्ष की पहली उच्च स्तरीय द्विपक्षीय यात्रा है। 

बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में भागीदारी: 

  • गौरतलब है कि इस अवसर पर दिसंबर 2018 और जून 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री और मालदीव के राष्ट्रपति के बीच आयोजित उच्च स्तरीय बातचीत के दौरान लिये गए निर्णयों के कार्यान्वयन की स्थिति के बारे में जानकारी दी गई।
    • भारतीय विदेश सचिव ने भारत की तरफ से ‘लाइन्स ऑफ क्रेडिट’ के तहत मालदीव में आठ बड़ी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर हुई प्रगति पर विस्तार से जानकारी दी। 
    • उम्मीद जताई गई है कि इनमें से पाँच बुनियादी ढाँचा परियोजनाएँ अगले दो महीनों में शुरू हो जाएंगी।
  • इस यात्रा के दौरान भारतीय विदेश सचिव ने मालदीव के विदेश मंत्री के साथ ग्रेटर माले की कनेक्टिविटी परियोजना (Greater Male Connectivity Project) के वित्तपोषण हेतु मालदीव को $100 मिलियन का अनुदान देने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
    • ध्यातव्य है कि ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) मालदीव में सबसे बड़ी नागरिक बुनियादी ढाँचा परियोजना होगी, जिसके माध्यम से मालदीव की राजधानी माले (Malé) को पड़ोस के तीन द्वीपों विलिंगिली (Villingili), गुल्हीफाहू (Gulhifalhu) और थिलाफूसी (Thilafushi) से जोड़ा जाएगा।
  • मालदीव के अड्डू शहर (Addu City) में एक ड्रग-डिटॉक्स सेंटर (Drug-Detox Centre) की स्थापना और हनीमाधू (Hanimaadhoo) में कृषि अनुसंधान केंद्र (Agricultural Research Centre) को अपग्रेड करने को लेकर भी दोनों देशों के मध्य समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • COVID-19 के दौरान मालदीव को भारत की मदद:
    • मालदीव के राष्ट्रपति ने COVID-19 महामारी से निपटने में भारत से प्राप्त समर्थन के लिये आभार व्यक्त किया विशेष रूप से $250 मिलियन की वित्तीय सहायता जो सितंबर, 2020 में बजट समर्थन के रूप में प्रदान की गई थी।
  • भारतीय विदेश सचिव ने वर्ष 2021-22 के लिये 76वें संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के अध्यक्ष पद के लिये मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की उम्मीदवारी का समर्थन करने के भारत के निर्णय से अवगत कराया।
  • मालदीव के स्पीकर मोहम्मद नशीद के साथ अपनी बैठक के दौरान भारतीय विदेश सचिव  ने भारत-मालदीव के द्विपक्षीय मज़बूत संबंधों को चर्चा की। मालदीव के स्पीकर ने भारत की संसद द्वारा ‘पीपुल्स मजलिस’ (People’s Majlis) को प्रदान की जा रही क्षमता निर्माण सहायता के बारे में अवगत कराया।    
  • रक्षा क्षेत्र में सहयोग:  भारतीय विदेश सचिव ने मालदीव के रक्षा मंत्री से मिलकर उन्हें संयुक्त ईईजेड निगरानी (Joint EEZ Surveillance), ​​संयुक्त सैन्य अभ्यास और मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief- HADR) सहित द्विपक्षीय रक्षा सहयोग की स्थिति के बारे में जानकारी दी।
    • दोनों पक्षों ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा में अपने साझा हितों पर प्रकाश डाला। 
    • विदेश सचिव ने क्षेत्र की सुरक्षा एवं स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये मालदीव के साथ मिलकर कार्य करने की भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।
  • पर्यटन क्षेत्र: मार्च 2019 में हस्ताक्षरित वीज़ा मुक्त समझौते और अगस्त, 2020 में स्थापित द्विपक्षीय ‘एयर ट्रैवल बबल’ (Air Travel Bubble) के कामकाज पर भी दोनों देशों ने संतोष व्यक्त किया। जो अब 13 साप्ताहिक उड़ानों के माध्यम से पाँच भारतीय शहरों को माले से जोड़ता है। 
    • भारत से आने वाले पर्यटकों की संख्या में अक्तूबर, 2020 के बाद से वृद्धि देखी गई  है।

आगे की राह:

  • ध्यातव्य है कि मालदीव, भारत द्वारा अपने पड़ोसी देशों को दी गई आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभार्थी रहा है, जब वैश्विक स्तर पर महामारी ने आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया था तो भारत ने मई माह में 580 टन खाद्य पदार्थ समेत मालदीव को आवश्यक खाद्य और निर्माण सामग्री की आपूर्ति की थी। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों में और मज़बूती आई थी।
  • ध्यातव्य है कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल के दौरान भारत-मालदीव संबंधों में कुछ गिरावट दर्ज की गई थी और मालदीव चीन के काफी करीब जाता दिखाई दे रहा था, हालाँकि मालदीव के नए राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह का कार्यकाल शुरू होने के बाद से ही दोनों देशों के संबंधों में सुधार आया है।
  • मालदीव रणनीतिक रूप से भारत के नज़दीक और हिंद महासागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर स्थित है। मालदीव में चीन जैसी किसी प्रतिस्पर्द्धी शक्ति की मौजूदगी भारत के सुरक्षा हितों के संदर्भ में उचित नहीं है, इसलिये ऐसे निर्णय काफी महत्त्वपूर्ण हैं।
  • चीन वैश्विक व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान के माध्यम से मालदीव जैसे देशों में तेज़ी से अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। ऐसे में मालदीव के ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट (GMCP) में निवेश करके मालदीव में चीन के वर्चस्व को कम करने में मदद मिल सकती है।

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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति, शैक्षणिक क्रेडिट बैंक, प्रयोगात्मक शिक्षा,  भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, ग्रामीण उद्यमिता जागरूकता विकास योजना

मेन्स के लिये: 

पहली राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति

चर्चा में क्यों?

पहली राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति फसल विज्ञान, मत्स्य पालन, पशु चिकित्सा और डेयरी प्रशिक्षण और अनुसंधान पर केंद्रित 74 विश्वविद्यालयों के लिये कई प्रवेश और निकास विकल्पों के साथ शैक्षणिक ऋण बैंकों और डिग्री कार्यक्रमों को प्रभाव में ला रही है।

मुख्य बिंदु:

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020 के जारी होने के बाद, राष्ट्रीय कृषि शिक्षा नीति तैयार करने की प्रक्रिया लगभग दो महीने पहले शुरू की गई थी।
  • इससे पहले भारतीय प्रधानमंत्री ने कृषि शिक्षा को माध्यमिक विद्यालय स्तर तक ले जाने के लिये कहा था, NEP, 2020 में इस संबंध में आवश्यक सुधार किये गए हैं।

कृषि शिक्षा नीति को NEP, 2020 के साथ जोड़ा जाना है:

  • शैक्षणिक क्रेडिट बैंक (Academic Credit Banks):
    • यह बैंक बहु प्रवेश और बहु निकास के सिद्धांत पर कार्य करेगा। इसके साथ ही यह विद्यार्थी को कभी भी, कहीं भी और किसी भी स्तर पर पढ़ाई की स्वतंत्रता देगा।
    • यह बैंक राष्ट्रीय शैक्षणिक संग्रह स्थान (National Academic Depository) के साथ मिलकर कार्य करेगा।
    • यहाँ पर विद्यार्थी अपने क्रेडिट को जमा और ज़रूरत पड़ने पर उनको हस्तांतरित या भुना भी सकेंगे।
    • NAC बैंक में खाता खुलवाना अनिवार्य नहीं होगा। यह पूरी तरह से विद्यार्थी के ऊपर निर्भर है कि वह खाता खुलवाए या नहीं।
  • प्रयोगात्मक शिक्षा (Experiential Education):
    • भारत में, कृषि शिक्षा अपने समय से पहले ही आगे है जिसे पहले से ही NEP में समाहित किया गया है। NEP में प्रायोगिक शिक्षा का उल्लेख है जबकि कृषि शिक्षा में वर्ष 2016 से ही यह अनिवार्य है।
      • प्रायोगिक शिक्षा, एक शिक्षण दर्शन है जो बहुआयामी कार्यप्रणाली को सूचित करता है जिसमें शिक्षक ज्ञान को बढ़ाने, कौशल विकसित करने, मूल्यों को स्पष्ट करने और अपने समुदायों में योगदान करने की लोगों की क्षमता विकसित करने के उद्देश्य शामिल हैं।
      • ग्रामीण उद्यमिता जागरूकता विकास योजना (Rural Entrepreneurship Awareness Development Yojana-  READY) कार्यक्रम में सभी छात्रों को छह महीने की इंटर्नशिप करने की आवश्यकता होती है, जो आमतौर पर अपने चौथे वर्ष में प्रशिक्षण, ग्रामीण जागरूकता, उद्योग के अनुभव, अनुसंधान विशेषज्ञता और उद्यमिता कौशल हासिल करने के लिये की जाती है।
    • एक बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करना है कि अगर हम बहु प्रवेश-निकास प्रणाली को लागू करते हैं तो प्रायोगिक ज्ञान सभी छात्रों के लिये कैसे सुनिश्चित करेंगे।
      • प्रवेश और निकास का विकल्प छात्रों को डिप्लोमा अर्जित करने का अवसर प्रदान करता है, जिस समय उन्हें अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करने और एक पूर्ण कॉलेज की डिग्री अर्जित करने में सक्षम होने का विकल्प दिया जाता है।

मुद्दे:

  • बहुविषयकता की चुनौती (Challenge of Multidisciplinarity):
    • कृषि विश्वविद्यालयों को भूमि अनुदान पैटर्न पर तैयार किया गया है, जिसमें अनुसंधान और विस्तार तथा गहरे सामुदायिक संपर्क पर ध्यान केंद्रित किया गया है जो इस दर्शन से प्रेरित है कि किसानों को उनकी समस्याओं के समग्र समाधान की आवश्यकता है।
    • हालाँकि, हाल के वर्षों में, बागवानी, पशु चिकित्सा विज्ञान और मत्स्य विज्ञान में कई क्षेत्र के विशिष्ट विश्वविद्यालय (Domain Specific Universities) सामने आए हैं। इन हालत में मानविकी और सामाजिक विज्ञान को शामिल करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से संबंध:
    • कृषि शिक्षा राज्य सूची का विषय है, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय) देश भर में शिक्षा की गुणवत्ता के लिये ज़िम्मेदार है और उम्मीद करता है कि NEP द्वारा प्रस्तावित उच्च शिक्षा विनियमन (Higher Education Regulation) की नई प्रणाली के तहत एक मानक-व्यवस्था (Standards-Setting) जारी रहने की उम्मीद है।

स्रोत:द हिंदू


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