अंतर्राष्ट्रीय संबंध
अमेरिका-मालदीव रक्षा सहयोग समझौता
- 14 Sep 2020
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, सार्क समूह, क्वाड (QUAD) मेन्स के लिये:भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंध, हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और चीन की बढ़ती आक्रामकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से अमेरिका तथा मालदीव के बीच एक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
प्रमुख बिंदु:
- अमेरिका और मालदीव के बीच 10 सितंबर, 2020 को ‘अमेरिकी रक्षा विभाग-मालदीव रक्षा मंत्रालय के रक्षा और सुरक्षा संबंधों हेतु रूपरेखा’ नामक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
- अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार, यह समझौता रक्षा साझेदारी की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के साथ हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिये दोनों देशों द्वारा सहयोग की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- मालदीव के रक्षा मंत्रालय ने इस समझौते को द्विपक्षीय सहयोग के साथ समुद्री डकैती और आतंकवाद जैसे बढ़ते खतरों के बीच हिंद-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र की शांति और सुरक्षा के लिये हितकर बताया है।
- इस समझौते के तहत ‘वरिष्ठ स्तर पर संवाद, समुद्री क्षेत्र में जागरूकता, प्राकृतिक आपदाओं और मानवीय राहत अभियान के साथ कई महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय मुद्दों को शामिल किया गया है।
- वर्तमान में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन की सेनाओं में बढ़ते तनाव के बीच इस समझौते को चीन के लिये एक महत्त्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
हिंद महासागर क्षेत्र में मालदीव की भूमिका:
- हिंद महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता तथा इस क्षेत्र में भारत के हितों को देखते हुए मालदीव की भूमिका बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
- हिंद महासागर में भू मध्य रेखा के 1 डिग्री दक्षिण से 8 डिग्री उत्तर तक लगभग 1000 से अधिक द्वीपों के साथ मालदीव भौगोलिक रूप से सबसे अधिक बिखरे हुए देशों में से एक है।
- बहुत ही कम भौगोलिक क्षेत्रफल और जनसंख्या के बावज़ूद भी यह द्वीपसमूह हिंद महासागर में लगभग 90,000 वर्ग किमी. से अधिक क्षेत्रफल कवर करता है।
- मालदीव, हिंद महासागर में स्वयं को एक चौराहे के रूप में देखता है, जहाँ पूर्व और पश्चिम से आने-जाने वाले सभी जहाज़ों को मालदीव के जल क्षेत्र से होकर गुज़रना पड़ता है।
चीन पर प्रभाव:
- अमेरिका के साथ मालदीव का यह समझौता रक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच उभरती दूरी को दर्शाता है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2018 के बीच पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की सरकार के दौरान मालदीव और चीन के बीच कई महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- वर्ष 2017 में मालदीव ने चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना (Belt and Road initiative- BRI) समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- अमेरिका के साथ रक्षा समझौते के बाद भी यदि BRI के तहत मालदीव और चीन के बीच आर्थिक सहयोग जारी रहता है तो भी यह समझौता BRI के रक्षा पहलुओं को प्रभावित करेगा।
भारत पर प्रभाव:
- विशेषज्ञों के अनुसार, कुछ वर्षों पहले भारत को इस प्रकार के किसी समझौते पर आपत्ति हो सकती थी परंतु हाल के दिनों में हिंद महासागर क्षेत्र में उभरते नए रक्षा समीकरणों के बीच इसे भारत के हित में देखा जा रहा है, गौरतलब है कि इस क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिये एक बड़ी चिंता का विषय है।
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2013 में भारत ने अमेरिका और मालदीव के बीच रक्षा सहयोग समझौते [स्टेटस ऑफ फोर्सेज़ एग्रीमेंट (Status of Forces Agreement- SOFA)] का विरोध किया था।
- अमेरिका के साथ हाल के वर्षों में भारत के संबंधों में हुई प्रगति के बीच अमेरिका और मालदीव के बीच यह समझौता भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि मालदीव के सुरक्षा मामलों में भारत के हस्तक्षेप को शक की निगाह से देखा जाता है कई मौकों पर इस मामले में भारत को राजनीतिक विरोध का भी सामना करना पड़ा है।
- मालदीव सार्क (SAARC) समूह का एक सदस्य है और भारत द्वारा मालदीव के साथ अपनी साझेदारी को मज़बूत करने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
- वर्ष 2018 में भारत द्वारा मालदीव के लिये 1.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक सहायता की घोषणा के साथ हाल ही में ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिये 500 मिलियन अमेरिकी डॉलर के वित्तीय पैकेज की घोषणा की गई थी।
आगे की राह:
- हिंद-महासागर क्षेत्र में चीन की सक्रियता को नियंत्रित करने हेतु भारत द्वारा क्षेत्र के अन्य देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के साथ ही इन देशों पर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना बहुत ही आवश्यक है।
- हाल के वर्षों में क्वाड (QUAD) समूह के तहत भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की साझेदारी में वृद्धि इस दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
- भारत सरकार द्वारा दोनों देशों के नागरिक संबंधों को मज़बूत करने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।