आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना
प्रिलिम्स के लिये:आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, भारत का नियंत्रक और महालेखा- परीक्षक (CAG), सामाजिक-आर्थिक जातिगत जनगणना (SECC), स्वास्थ्य बीमा योजना मेन्स के लिये:आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, इससे संबंधित मुद्दे और आगे की राह |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा-परीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India- CAG) की प्रदर्शन ऑडिट रिपोर्ट ने आयुष्मान भारत-प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (Ayushman Bharat-Pradhan Mantri Jan Arogya Yojana- PMJAY) में अनियमितताओं को उजागर किया है।
CAG द्वारा उजागर किये गए मुद्दे:
- मृत मरीज़ों का उपचार:
- जिन मरीज़ों को पहले "मृत" दिखाया गया था, वे भी इस योजना के तहत उपचार का लाभ उठाते रहे।
- ऐसे सबसे ज़्यादा मामले छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड में थे और सबसे कम मामले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, असम तथा चंडीगढ़ से थे।
- इस योजना के तहत निर्दिष्ट उपचार के दौरान 88,760 रोगियों की मृत्यु हो गई। इन रोगियों के संबंध में नए उपचार से संबंधित कुल 2,14,923 दावों को सिस्टम में भुगतान के रूप में दिखाया गया है।
- जिन मरीज़ों को पहले "मृत" दिखाया गया था, वे भी इस योजना के तहत उपचार का लाभ उठाते रहे।
- अवास्तविक घरेलू आकार:
- ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पंजीकृत घर का आकार असामान्य रूप से बड़ा, यानी 11 से 201 सदस्यों तक का था।
- इस तरह की विसंगतियाँ लाभार्थी पंजीकरण प्रक्रिया के दौरान उचित सत्यापन नियंत्रण की कमी का सुझाव देती हैं।
- ऐसे उदाहरण हैं जहाँ पंजीकृत घर का आकार असामान्य रूप से बड़ा, यानी 11 से 201 सदस्यों तक का था।
- पेंशनभोगी को लाभ :
- कुछ राज्यों में पेंशनभोगियों के पास PMJAY कार्ड प्राप्त हुए, साथ ही वे इस योजना के अंर्तगत उपचार का लाभ उठा रहे थे।
- योजना से अयोग्य लाभार्थियों को हटाने के लिये देरी से की गई कार्रवाई के कारण अयोग्य व्यक्तियों को PMJAY के अंर्तगत लाभ प्राप्त हुआ।
- कुछ राज्यों में पेंशनभोगियों के पास PMJAY कार्ड प्राप्त हुए, साथ ही वे इस योजना के अंर्तगत उपचार का लाभ उठा रहे थे।
- फर्ज़ी मोबाइल नंबर और आधार:
- इससे जानकारी प्राप्त हुई कि कुछ लाभार्थियों को एक ही फर्ज़ी मोबाइल नंबर से पंजीकृत किया गया था, जिससे संभवतः सत्यापन प्रक्रिया से समझौता किया गया।
- इसी तरह कुछ आधार नंबरों को कई लाभार्थियों से जोड़ा गया था, जिससे उचित सत्यापन पर सवाल उठ रहे थे।
- प्रणालीगत विफलताएँ:
- CAG की रिपोर्ट ने प्रणालीगत मुद्दों को प्रदर्शित किया, जिसमें सार्वजनिक अस्पताल-आरक्षित प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने वाले निजी अस्पताल, ढाँचागत अपर्याप्तता, उपकरण की कमी के साथ चिकित्सा कदाचार के मामले भी शामिल रहे।
- पर्याप्त सत्यापन नियंत्रण का अभाव, अमान्य नाम, अवास्तविक जन्म तिथि, फर्ज़ी PMJAY ID आदि।
- कई राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में सूचीबद्ध अस्पतालों में उपलब्ध उपकरण गैर-कार्यात्मक पाए गए।
- CAG की रिपोर्ट ने प्रणालीगत मुद्दों को प्रदर्शित किया, जिसमें सार्वजनिक अस्पताल-आरक्षित प्रक्रियाएँ सुनिश्चित करने वाले निजी अस्पताल, ढाँचागत अपर्याप्तता, उपकरण की कमी के साथ चिकित्सा कदाचार के मामले भी शामिल रहे।
- लंबित ज़ुर्माना:
- रिपोर्ट में 9 राज्यों के 100 अस्पतालों पर 12.32 करोड़ रुपए के लंबित ज़ुर्माने की बात सामने आई है।
- योजना में डेटा संग्रहण:
- यह संभव है कि कुछ मामलों में क्षेत्रीय स्तर के कार्यकर्त्ताओं द्वारा कुछ यादृच्छिक दस-अंकीय संख्या दर्ज की गई हो।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) के वर्तमान IT पोर्टल में केवल वैध मोबाइल नंबर लेने हेतु आवश्यक सुधार हुए हैं, यदि लाभार्थी के पास पूर्व में ऐसा नंबर है।
- यह संभव है कि कुछ मामलों में क्षेत्रीय स्तर के कार्यकर्त्ताओं द्वारा कुछ यादृच्छिक दस-अंकीय संख्या दर्ज की गई हो।
सरकार द्वारा प्रमाणीकरण:
- मोबाइल नंबर और सत्यापन:
- स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि लाभार्थियों के सत्यापन के लिये मोबाइल नंबरों का उपयोग नहीं किया गया था।
- यह योजना मुख्य रूप से आधार-आधारित ई-KYC के माध्यम से लाभार्थियों की पहचान करती है, जिसमें मोबाइल नंबरों का उपयोग सत्यापन के बजाय संचार और प्रतिक्रिया उद्देश्यों के लिये किया गया था।
- स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि लाभार्थियों के सत्यापन के लिये मोबाइल नंबरों का उपयोग नहीं किया गया था।
- सत्यापित विकल्प:
- NHA ने लाभार्थी सत्यापन के लिये फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन, फेस सत्यापन और ओटीपी जैसे कई विकल्प प्रदान किये हैं।
- सामान्यतः फ़िंगरप्रिंट-आधारित सत्यापन का उपयोग किया जाता है, जो लाभार्थी सत्यापन की सटीकता सुनिश्चित करने में सहायता करता है।
- NHA ने लाभार्थी सत्यापन के लिये फिंगरप्रिंट, आईरिस स्कैन, फेस सत्यापन और ओटीपी जैसे कई विकल्प प्रदान किये हैं।
आयुष्मान भारत-PMJAY:
- परिचय:
- PM-JAY पूर्ण रूप से सरकार द्वारा वित्तपोषित विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना है।
- फरवरी 2018 में लॉन्च हुई यह योजना माध्यमिक देखभाल के साथ-साथ तृतीयक देखभाल हेतु प्रति परिवार 5 लाख रुपए की बीमा राशि प्रदान करती है।
- स्वास्थ्य लाभ पैकेज में सर्जरी, दवा एवं दैनिक उपचार, दवाओं की लागत और निदान शामिल हैं।
- लाभ:
- यह एक पात्रता आधारित योजना है जो नवीनतम सामाजिक- आर्थिक जाति जनगणना (SECC) डेटा द्वारा पहचाने गए लाभार्थियों को लक्षित करती है।
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को बचे हुए (अप्रमाणित) SECC परिवारों के खिलाफ टैगिंग के लिये समान सामाजिक-आर्थिक प्रोफाइल वाले गैर-सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) लाभार्थी परिवार डेटाबेस का उपयोग करने हेतु लचीलापन प्रदान किया है।
- यह एक पात्रता आधारित योजना है जो नवीनतम सामाजिक- आर्थिक जाति जनगणना (SECC) डेटा द्वारा पहचाने गए लाभार्थियों को लक्षित करती है।
- वित्तीयन:
- इस योजना का वित्तपोषण संयुक्त रूप से किया जाता है, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मामले में केंद्र एवं विधायिका के बीच 60:40, पूर्वोत्तर राज्यों तथा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल एवं उत्तराखंड के लिये 90:10 और विधायिका के बिना केंद्रशासित प्रदेशों हेतु 100% केंद्रीय वित्तपोषण।
- नोडल एजेंसी:
- राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) को राज्य सरकारों के साथ संयुक्त रूप से PMJAY के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक स्वायत्त इकाई के रूप में गठित किया गया है।
- राज्य स्वास्थ्य एजेंसी (SHA) राज्य में ABPMJAY के कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार राज्य सरकार का शीर्ष निकाय है।
आगे की राह
- PMJAY की अनियमितताएँ सुधारात्मक उपायों की मांग करती हैं, जिसमें योजना की अपेक्षित प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिये कड़े लाभार्थी सत्यापन, अस्पताल निरीक्षण और एक मज़बूत शिकायत निवारण तंत्र शामिल है।
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत हस्तक्षेप
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हरित क्रांति, खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम, प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना, जलवायु परिवर्तन, कुपोषण मेन्स के लिये:राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप, भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री ने लोकसभा में लिखित जवाब में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में हुई प्रगति पर महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन:
- परिचय:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 2007 में राष्ट्रीय विकास परिषद की कृषि उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
- इस समिति ने बेहतर कृषि विस्तार सेवाओं, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विकेंद्रीकृत योजना की आवश्यकता पर बल दिया जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन को एक मिशन मोड कार्यक्रम के रूप में संकल्पित किया गया।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसकी शुरुआत वर्ष 2007 में राष्ट्रीय विकास परिषद की कृषि उप-समिति की सिफारिशों के आधार पर की गई थी।
- प्रमुख क्षेत्र:
- इसे मुख्य रूप से चावल, गेहूँ, दलहन जैसी लक्षित फसलों के उत्पादन में धारणीय वृद्धि के साथ कदन्न, पोषक अनाज और तिलहन तक विस्तारित किया गया।
- कृषि विशिष्ट उत्पादकता और मृदा की उर्वरता की पुनर्प्राप्ति।
- कृषि क्षेत्र में शुद्ध आय में वृद्धि।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत प्रमुख हस्तक्षेप:
- क्लस्टर प्रदर्शन और बेहतर पद्धतियाँ: कृषि पद्धतियों के बेहतर पैकेजों को प्रदर्शित करने वाले क्लस्टर प्रदर्शन आयोजित करने के लिये राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के माध्यम से किसानों को सहायता प्रदान की जाती है।
- ये प्रदर्शन अनुकूलित फसल की खेती और प्रबंधन की तकनीकों पर प्रकाश डालते हैं।
- बीज उत्पादन और वितरण: कृषि उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिये उच्च उपज देने वाली किस्मों एवं संकर किस्मों को विकसित, उत्पादित करने हेतु किसानों को वितरित किया जाता है।
- कृषि मशीनीकरण और संसाधन संरक्षण: आधुनिक तथा कुशल कृषि मशीनरी और संसाधन संरक्षण उपकरणों का कार्यान्वयन संसाधन उपयोग को अनुकूलित करते हुए उन्नत कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है।
- प्रसंस्करण और कटाई के बाद उपकरणों में निवेश समग्र मूल्य शृंखला को बढ़ाता है तथा फसल के बाद के नुकसान को कम करता है।
- पौध संरक्षण और पोषक तत्त्व प्रबंधन: कीटों एवं बीमारियों से फसलों की सुरक्षा के उपाय, प्रभावी पोषक तत्त्व प्रबंधन तथा मृदा सुधार रणनीतियों के साथ मिलकर स्वस्थ पौधों के विकास में योगदान करते हैं।
- तिलहन उत्पादन पर केंद्रित दृष्टिकोण: तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये NFSM-तिलहन पहल तैयार की गई है। इसमें शामिल है:
- बीज सब्सिडी और वितरण: वित्तीय प्रोत्साहन एवं सब्सिडी गुणवत्ता वाले बीजों की खरीद तथा वितरण की सुविधा प्रदान करती है, जिससे बेहतर फसल पैदावार सुनिश्चित होती है।
- प्रदर्शन और प्रशिक्षण: ब्लॉक प्रदर्शन (Block Demonstrations), फ्रंट-लाइन प्रदर्शन (Front-Line Demonstrations) तथा क्लस्टर फ्रंट-लाइन प्रदर्शन (Cluster Front-Line Demonstrations) प्रभावी तिलहन खेती प्रथाओं को प्रदर्शित करने के लिये मंच के रूप में कार्य करते हैं।
- बुनियादी ढाँचा और इनपुट वितरण: जल-वाहक उपकरण, पादप संरक्षण उपकरण, विशिष्ट मृदा, सूक्ष्म पोषक तत्त्व तथा जैव-अभिकर्त्ता जैसे आवश्यक संसाधन तिलहन की खेती को उन्नत करते हैं।
नोट:
- खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन - ऑयल पाम (NMEO-OP): खाद्य तेल आयात को कम करने के लिये अगस्त 2021 में NMEO-OP की स्थापना की गई।
- यह मिशन पाम ऑयल की खेती के विस्तार पर ज़ोर देता है, जिसका उद्देश्य कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन, उत्पादकता बढ़ाना और देश के आयात बोझ को कम करना है।
- सतत् कृषि हेतु जल प्रबंधन:
- प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC): इसे वर्ष 2015-16 में लॉन्च किया गया था, PDMC ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों का उद्देश्य जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
- यह स्थान-विशिष्ट वैज्ञानिक तकनीकों और आधुनिक कृषि पद्धतियों को अपनाने पर भी ज़ोर देता है।
- कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट (जल प्रबंधन) [CADWM]: यह प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का भाग है, जिसका उद्देश्य सिंचाई दक्षता को बढ़ाना है।
- इसमें अंतिम-मील कनेक्टिविटी के लिये पंक्तिबद्ध फील्ड चैनलों और भूमिगत पाइपलाइनों का निर्माण शामिल है।
- जल उपयोग दक्षता ब्यूरो (BWUE): इसे विभिन्न क्षेत्रों में कुशल जल उपयोग को विनियमित करने के लिये स्थापित किया गया है, जो सिंचाई, उद्योगों और घरेलू समायोजनों (Domestic Settings) में जल उपयोग दक्षता में सुधार की नीतियों को बढ़ावा देता है।
- राष्ट्रीय जल मिशन (NWM): NWM ने वर्ष 2019 में 'सही फसल' अभियान शुरू किया, जो जल की कमी वाले क्षेत्रों में किसानों को ऐसी फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित करता है जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य, जल-कुशल और कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप हों।
- प्रति बूँद अधिक फसल (PDMC): इसे वर्ष 2015-16 में लॉन्च किया गया था, PDMC ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी सूक्ष्म सिंचाई प्रणालियों का उद्देश्य जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना है।
भारत में खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:
- कृषि चुनौतियाँ: भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, कीटों के संक्रमण और मिट्टी के क्षरण के कारण अप्रत्याशित मौसम पैटर्न जैसी विभिन्न चुनौतियों के प्रति संवेदनशील है।
- इन कारकों से फसल की पैदावार कम हो सकती है और भोजन की कमी हो सकती है।
- भूमि विखंडन: विरासत कानूनों की वजह से भूमि के उपविभाजन के कारण भूमि जोत छोटी और खंडित हो गई है।
- हालाँकि इससे आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने में बाधा आती है लेकिन ये उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं।
- विविधता का अभाव: कुछ प्रमुख फसलों पर अत्यधिक निर्भरता आहार विविधता को सीमित करती है। उचित पोषण के लिये विविध आहार आवश्यक है और चावल तथा गेहूँ जैसी कुछ फसलों पर ज़ोर कुपोषण में योगदान कर सकता है।
- खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतें: वैश्विक और घरेलू खाद्य कीमतों में उतार-चढ़ाव कमज़ोर आबादी के लिये आवश्यक खाद्य पदार्थों को अप्राप्य बना सकता है।
- आपूर्ति शृंखला में व्यवधान की वजह से मूल्य में अस्थिरता के कारण खाद्य असुरक्षा में अचानक वृद्धि हो सकती है।
आगे की राह
- कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्रीकरण: उन्नत भू-स्थानिक विश्लेषण का उपयोग करके विस्तृत कृषि-पारिस्थितिक क्षेत्रीकरण मानचित्र बनाए जाने चाहिये।
- इससे विशिष्ट क्षेत्रों को उनकी प्राकृतिक विशेषताओं के आधार पर सबसे उपयुक्त फसलों की पहचान करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार संसाधन उपयोग को अनुकूलित किया जा सकेगा और फसल की विफलता के जोखिम को कम किया जा सकेगा।
- शहरी क्षेत्रों में खाद्य भूदृश्य: शहरी निवासियों को अपने लॉन और अप्रयुक्त स्थानों को खाद्य परिदृश्य, फल एवं सब्जियाँ उगाने में बदलने के लिये प्रोत्साहित करना।
- यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण स्थानीय खाद्य उत्पादन में योगदान देता है और सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाता है।
- अपशिष्ट जल से पोषक तत्त्व पुनर्प्राप्ति: अपशिष्ट जल एवं जैविक कचरे से पोषक तत्त्व प्राप्ति के लिये प्रणाली को लागू करना, इसके पश्चात् इन पोषक तत्त्वों को उर्वरकों में परिवर्तित करना।
- यह सिंथेटिक उर्वरकों की आवश्यकता को कम करता है और साथ ही जल प्रदूषण का भी निपटान करता है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता से कीट का पता लगाना: कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित-संचालित कैमरे एवं सेंसर विकसित करना जो पौधों के स्वास्थ्य में सूक्ष्म परिवर्तनों का विश्लेषण करके लक्षित हस्तक्षेप की अनुमति देने के साथ व्यापक कीटनाशकों के उपयोग की आवश्यकता को कम कर कीट एवं बीमारी के प्रकोप का शीघ्र पता लगा सकते हैं।
- एकीकृत ऊर्जा का उपयोग कर खेती: कृषि को नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के साथ संयोजित करना।
- फसल वाले क्षेत्रों में सौर पैनलों को लगाया जा सकता है, जो छाया प्रदान करते हैं और जल के वाष्पीकरण को कम करते हैं, साथ ही कृषि उपकरणों को विद्युत प्रदान करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न करते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. मूल्य सब्सिडी को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) से बदलने से भारत में सब्सिडी का परिदृश्य किस प्रकार बदल सकता है? चर्चा कीजिये।(2015) |
स्रोत: पी.आई.बी
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम पर CAG रिपोर्ट
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP), भारत का नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) मेन्स के लिये:सरकारी कार्यक्रमों में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में CAG का महत्त्व, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, कल्याणकारी योजनाओं के लिये धन के दुरुपयोग के नैतिक निहितार्थ |
चर्चा में क्यों
भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा वर्ष 2017-18 से वर्ष 2020-21 तक राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) के प्रदर्शन ऑडिट पर एक हालिया रिपोर्ट में योजना, वित्तीय प्रबंधन एवं कार्यान्वयन में कई अनियमितताओं तथा कल्याण योजना NSAP की निगरानी के मामले प्रदर्शित हुए हैं।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- प्रचार-प्रसार के लिये पेंशन फंड का दुरुपयोग:
- ग्रामीण विकास मंत्रालय (MoRD) ने NSAP के लिये आवंटित धन को अन्य मंत्रालय की योजनाओं के प्रचार अभियानों पर व्यय कर दिया, जो पेंशन वितरण के लिये है।
- NSAP के लिये आवंटित धनराशि पेंशन वितरण तथा प्रशासनिक व्ययों के लिये थी, जिसमें से 3% को भविष्य के लिये अलग रखा गया था।
- मंत्रालय तथा राज्य अथवा केंद्रशासित प्रदेश दोनों स्तरों पर धन के दुरुपयोग के मामलों की पहचान की गई।
- MoRD ने विभिन्न मंत्रालय कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिये होर्डिंग्स के माध्यम से वर्ष 2017 में एक प्रचार अभियान प्रारंभ किया।
- होर्डिंग्स के लिये 39.15 लाख रुपए स्वीकृत किये गए और कई राज्यों में अभियानों के लिये 2.44 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए।
- इस अभियान के लिये आवंटित धन का उद्देश्य राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (National Rural Employment Guarantee Scheme) से था, लेकिन इसे NSAP योजनाओं से प्राप्त किया गया था।
- विज्ञापन विसंगतियाँ:
- CAG ने पाया कि विज्ञापन कार्य आदेशों में NSAP योजनाएँ शामिल नहीं थीं लेकिन प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण (PMAY-G) और दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY) जैसी योजनाओं पर प्रकाश डाला गया था।
- फंड डायवर्ज़न में शामिल राज्य:
- छह राज्यों (राजस्थान, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, ओडिशा, गोवा और बिहार) में पेंशन योजनाओं के लिये आवंटित धनराशि का दुरुपयोग किया गया।
- निहितार्थ और लाभार्थी प्रभाव:
- फंड डायवर्ज़न के कारण NSAP के तहत नियोजित सूचना, शिक्षा और संचार (Information, Education, and Communication- IEC) गतिविधियाँ प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुईं।
- शुरुआत में NSAP IEC के लिये निर्धारित 2.83 करोड़ रुपए की धनराशि का उपयोग अन्य मंत्रालय की योजनाओं को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP):
- परिचय:
- NSAP को 15 अगस्त, 1995 को केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में लॉन्च किया गया था।
- NSAP भारत के संविधान के अनुच्छेद 41 और 42 में निदेशक सिद्धांतों की पूर्ति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम का प्रतिनिधित्व करता है।
- NSAP का लक्ष्य गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों से संबंधित प्राथमिक आय उत्पादक की मृत्यु पर वृद्ध व्यक्तियों, विधवाओं, विकलांग व्यक्तियों और शोक संतप्त परिवारों को सहायता प्रदान करना है।
- अवयव:
- NSAP की पाँच उप-योजनाएँ हैं:
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): इस योजना के तहत 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के BPL व्यक्ति 79 वर्ष की आयु तक 200 रुपए और उसके बाद 500 रुपए की मासिक पेंशन के हकदार हैं।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना (IGNWPS): 40-59 वर्ष की BPL विधवाएँ 200 रुपए की मासिक पेंशन की हकदार हैं।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना (IGNDPS): गंभीर और एकाधिक विकलांगता वाले 18-59 वर्ष की आयु के BPL व्यक्ति 200 रुपए की मासिक पेंशन के हकदार हैं।
- राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना (NFBS): इस योजना के तहत एक BPL परिवार 18 से 64 वर्ष की आयु के प्राथमिक कमाने वाले की मृत्यु पर एकमुश्त धनराशि का हकदार है। सहायता राशि 10,000 रुपए है।
- अन्नपूर्णा: योजना के तहत उन वरिष्ठ नागरिकों को प्रतिमाह 10 किलोग्राम खाद्यान्न मुफ्त प्रदान किया जाता है, जो पात्र होते हुए भी NOAPS के तहत शामिल नहीं हुए हैं।
- NSAP की पाँच उप-योजनाएँ हैं:
- कार्यान्वयन:
- NSAP को ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकारों के सहयोग से कार्यान्वित किया जाता है।
- NSAP लाभार्थियों के बैंक खातों या डाक खातों में धनराशि स्थानांतरित करने के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) मोड का उपयोग करता है।
- NSAP का एक वेब पोर्टल है जो दिशा-निर्देश, रिपोर्ट, परिपत्र, शिकायत निवारण आदि पर जानकारी प्रदान करता है।
- प्रभाव:
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम ने गरीबी को कम करने, जीवन स्तर में सुधार लाने और लाभार्थियों की गरिमा तथा सशक्तीकरण में मदद की है।
- साथ ही इसने गरीबी उन्मूलन, सामाजिक सुरक्षा और समावेशन से संबंधित धारणीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी योगदान दिया है।
- वर्ष 2017-21 के बीच सालाना लगभग 4.65 करोड़ लाभार्थी वृद्धावस्था, विधवा, विकलांगता पेंशन और पारिवारिक लाभ पर निर्भर थे।
भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG):
- CAG भारतीय संविधान के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
- वह भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग के प्रमुख और सार्वजनिक वित्त का मुख्य संरक्षक हैं।
- यह वह संस्था है जिसके माध्यम से सरकार और अन्य सार्वजनिक प्राधिकरणों (वे सभी जो सार्वजनिक धन खर्च करते हैं) की संसद और राज्य विधानमंडलों तथा उनके माध्यम से जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक अपना पद छोड़ने के बाद भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अधीन पद धारण करने के लिये पात्र नहीं होगा।
- अनुच्छेद 148 CAG के एक स्वतंत्र पद का प्रावधान करता है।
- CAG से संबंधित अन्य प्रावधानों में शामिल हैं: अनुच्छेद 149-151 (कर्त्तव्य और शक्तियाँ, संघ एवं राज्यों के खातों का स्वरूप तथा लेखापरीक्षा रिपोर्ट), अनुच्छेद 279 (शुद्ध आय की गणना आदि) और तीसरी अनुसूची (शपथ अथवा प्रतिज्ञान) व छठी अनुसूची (असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. लोक निधि के फलोत्पादक और आशयित प्रयोग को सुरक्षित करने के साथ-साथ भारत में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (CAG) के कार्यालय का महत्त्व क्या है? (2012)
उपयुक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1, 3 और 4 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. “नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका है।” समझाएँ कि यह उसकी नियुक्ति की पद्धति और शर्तों के साथ-साथ उसके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों की सीमा में कैसे परिलक्षित होती है? (2018) प्रश्न. संघ एवं राज्यों की लेखाओं के संबध में नियंत्रक और महालेखापरीक्षक की शक्तिओं का प्रयोग भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 से व्युत्पन्न है। चर्चा कीजिये कि क्या सरकार की नीति कार्यान्वयन की लेखापरीक्षा करना अपने स्वयं (नियंत्रक और महालेखापरीक्षक) की अधिकारिता का अतिक्रमण करना होगा या नहीं। (2016) |
मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और पद की अवधि) विधेयक, 2023
प्रिलिम्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, सर्वोच्च न्यायालय (SC), जनहित याचिका (PIL), अनुच्छेद 324, आदर्श आचार संहिता मेन्स के लिये:मुख्य चुनाव आयुक्त के चयन के लिये प्रस्तावित विधेयक, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) एवं चुनाव आयुक्तों (EC) की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने के उद्देश्य से राज्यसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया है।
- इस कदम ने प्रवर समिति की संरचना और प्रक्रिया की स्वतंत्रता के लिये इसके निहितार्थों के बारे में चर्चा प्रारंभ कर दी है।
पृष्ठभूमि:
- मार्च 2023 में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि CEC और EC की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री तथा लोकसभा में विपक्ष के नेता एवं भारत के मुख्य न्यायाधीश की एक समिति की सलाह पर की जाएगी। उनकी नियुक्तियों पर संसद द्वारा एक कानून बनाया जाता है।
- यह निर्णय नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली वर्ष 2015 की जनहित याचिका (PIL) से सामने आई थी।
नोट: यह निर्णय न्यायमूर्ति के.एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने वर्ष 2015 में एक जनहित याचिका के जवाब में दिया था, जिसमें केंद्र द्वारा चुने गए चुनाव आयोग के सदस्यों की संवैधानिकता पर सवाल उठाया गया था। वर्ष 2018 में दो जजों की सर्वोच्च न्यायालय बेंच की स्थापना की गई थी, इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया क्योंकि इसके लिये अनुच्छेद 324 की बारीकी से जाँच की आवश्यकता थी।
संविधान.
- अनुच्छेद 324(2) के अनुसार: मुख्य चुनाव आयुक्त और कोई अतिरिक्त चुनाव आयुक्त यदि कोई हो, तो चुनाव आयोग के सदस्य होंगे। राष्ट्रपति मुख्य चुनाव आयुक्त या किसी अतिरिक्त चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करता है, जो संसद द्वारा इस संबंध में पारित किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन है।
- चूँकि संविधान के अनुच्छेद 324 द्वारा कोई संसदीय कानून लागू नहीं किया गया था, इसलिये न्यायालय ने "संवैधानिक शून्यता" को संबोधित करने के लिये यह कदम उठाया है।
- विधेयक अब इस रिक्तता को दूर करने और निर्वाचन आयोग में नियुक्तियाँ करने के लिये एक विधायी प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है।
वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति:
- वर्तमान में मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिये संविधान में कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया परिभाषित नहीं है। संविधान के भाग XV (निर्वाचन) में केवल पाँच अनुच्छेद (324-329) हैं।
- संविधान का अनुच्छेद 324 के अनुसार, "चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित है जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अन्य निर्वाचन आयुक्त शामिल होते हैं।
- मार्च 2023 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:
- चयन समिति की संरचना:
- चयन समिति में शामिल होंगे:
- अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री।
- सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष का नेता।
- यदि लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता नहीं दी गई है, तो लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता यह भूमिका निभाएगा।
- प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।
- चयन समिति में शामिल होंगे:
- खोज समिति:
- विधेयक में CEC और EC के पदों पर विचार करने के लिये पाँच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करने हेतु एक खोज समिति (Search Committee) की स्थापना का प्रस्ताव है।
- खोज समिति की अध्यक्षता कैबिनेट सचिव करेंगे और इसमें सचिव के पद से नीचे के दो सदस्य भी शामिल होंगे जिनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होगा।
- रिक्ति के कारण अमान्य नहीं किया जा सकता:
- चयन समिति के संविधान में किसी रिक्ति या दोष के कारण CEC और अन्य EC की नियुक्ति अमान्य नहीं होगी।
- पिछले अधिनियम को निरस्त करना:
- प्रस्तावित विधेयक चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 को निरस्त करता है।
- नए अधिनियम के पारित होने के बाद चुनाव आयोग का कामकाज़ उसके द्वारा नियंत्रित होगा।
- 1991 के अधिनियम में प्रावधान है कि EC का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा।
- विधेयक में प्रावधान है कि CEC और अन्य EC का वेतन, भत्ता और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान होंगी।
- सर्वसम्मति और बहुमत का निर्णय:
- विधेयक इस प्रावधान को बनाए रखता है कि चुनाव आयोग का कामकाज़ जब भी संभव हो सर्वसम्मति से किया जाना चाहिये। मतभेद की स्थिति में बहुमत का दृष्टिकोण मान्य होगा।
चिंताएँ:
- शक्ति का संतुलन:
- तीन सदस्यीय समिति में प्रधानमंत्री और एक कैबिनेट मंत्री (प्रधानमंत्री द्वारा नामित) शामिल होते हैं, विपक्ष के नेता के पास प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही अल्पमत रह जाता है।
- इससे समिति के भीतर शक्ति संतुलन पर सवाल उठता है और क्या चयन प्रक्रिया वास्तव में स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है या कार्यपालिका के पक्ष में झुकी रहती है।
- निर्वाचित शासन पर प्रभाव:
- प्रस्तावित परिवर्तनों का ECI की स्वायत्तता और कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ सकता है।
- निर्वाचन के संचालन में निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण है। प्रवर प्रक्रिया में कार्यपालिका का कोई भी कथित प्रभाव बिना पक्षपात के अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने की निर्वाचन आयोग की क्षमता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर सकता है।
- निर्माताओं के उद्देश्यों के साथ संरेखण:
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पिछले निर्णय में इस बात पर ज़ोर दिया था कि संविधान निर्माताओं का उद्देश्य चुनावों की निगरानी के लिये एक स्वतंत्र निकाय से था।
- प्रस्तावित विधेयक के आलोचक इस बात पर सवाल उठाते हैं कि क्या प्रवर समिति की नई संरचना निर्वाचन के लिये ज़िम्मेदार एक निष्पक्ष और स्वतंत्र निकाय बनाने के निर्माताओं के उद्देश्य के अनुरूप है।
भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में चुनाव आयुक्तों की भूमिका:
- भारत निर्वाचन आयोग:
- भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये वर्ष 1950 में भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना की गई थी।
- चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता है जो निर्वाचन आयोग का अध्यक्ष होता है और अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
- चुनाव आयोग के अन्य सदस्यों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाती है।
- निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव:
- चुनाव आयोजित करना: संविधान के अनुच्छेद 324 में प्रावधान है कि संसद, राज्य विधानसभाओं, भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय और भारत के उपराष्ट्रपति के कार्यालय के चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन तथा नियंत्रण की शक्ति निर्वाचन आयोग में निहित होगी।
- आदर्श आचार संहिता: ECI यह सुनिश्चित करता है कि निर्वाचन के दौरान सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को समान अवसर मिले।
- इसके लिये यह आदर्श आचार संहिता का उपयोग करता है, जो चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिये पालन करने हेतु दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
- राजनीतिक दलों के संबंध में इसकी भूमिका: इसका कार्य राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करना और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करना है।
- यह राजनीतिक दलों को मान्यता प्रदान करने और उन्हें चुनाव चिह्न आवंटित करने से संबंधित विवादों के निपटारे के लिये न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
- मतदाता शिक्षण कार्य: भारत निर्वाचन आयोग मतदाताओं को उनके अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूक करने के लिये मतदाता शिक्षा कार्यक्रम का आयोजन करता है।
- इसके तहत उन्हें मतदान के महत्त्व और वोट डालने के तरीके के बारे में शिक्षित करने का कार्य किया जाता है।
- चुनाव खर्च की निगरानी: यह आयोग चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के खर्च की निगरानी करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह कानून द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक न हो।
- चुनावी कदाचार का समाधान करना: यह आयोग बूथ कैप्चरिंग, फर्ज़ी मतदान और मतदाताओं को डराने-धमकाने जैसी चुनावी कदाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करता है।
आगे की राह
- सरकार को चयन समिति की संरचना की समीक्षा करनी चाहिये और इसे और अधिक संतुलित बनाने पर विचार करना चाहिये। इसमें निष्पक्ष निर्णय लेने की प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु विपक्ष को एक मज़बूत प्रतिनिधित्व प्रदान करना शामिल हो सकता है।
- चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता में वृद्धि करने के लिये सरकार को स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को खोज समिति में अथवा चयन समिति में पर्यवेक्षकों के रूप में शामिल किया जाना चाहिये।
- विधेयक को अंतिम रूप देने से पहले सरकार को विभिन्न दृष्टिकोणों पर विचार करने और यह सुनिश्चित करने के लिये विपक्षी दलों, कानूनी विशेषज्ञों और हितधारकों के साथ गहन परामर्श करना चाहिये ताकि संबद्ध मुद्दे पर पर्याप्त विचार-विमर्श हो।