रेंग्मा नगा तथा स्वायत्त ज़िला परिषद की मांग
प्रिलिम्स के लिये:रेंग्मा नगा पीपुल्स काउंसिल, स्वायत्त ज़िला परिषद, रेंग्मा नगा जनजाति मेन्स के लिये:उत्तर-पूर्व की नृजातीय समस्याएँ |
चर्चा में क्यों?
रेंग्मा नगा पीपुल्स काउंसिल (RNPC) या रेंग्मा नगाओं ने असम में एक स्वायत्त ज़िला परिषद (ADC) की मांग की है।
- केंद्र और राज्य सरकारों ने हाल ही में ‘कार्बी आंगलोंग ऑटोनॉमस काउंसिल’ (KAAC) और ‘नॉर्थ कछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल’ (NCHAC) को ‘बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल’ जैसी क्षेत्रीय परिषदों में उन्नत किया है।
- 'प्रादेशिक परिषद का दर्जा' उन्हें अधिक स्वायत्तता और वित्तीय अनुदान प्रदान करेगा।
- यह आरोप लगाया जाता है कि इन रेंग्मा आदिवासी परिषदों के निर्माण से नगाओं को जो कि इस भूमि के "वैध स्वामी" हैं, को भूमि से वंचित कर दिया गया। KAAC और NCHAC दोनों नगालैंड के साथ सीमा साझा करते हैं।
प्रमुख बिंदु:
रेंग्मा नगा जनजाति:
- रेंग्मा नगालैंड, असम और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाने वाली एक नगा जनजाति है।
- इतिहास:
- असम के कार्बी हिल्स (तब मिकिर हिल्स के रूप में जाना जाता था) में रहने वाले रेंग्मा नगाओं की पहली आधिकारिक रिकॉर्डिंग वर्ष 1855 में पूर्वोत्तर क्षेत्र में तैनात एक ब्रिटिश अधिकारी मेजर जॉन बटलर द्वारा की गई थी।
- बटलर ने बताया कि रेंग्मा कार्बी आंगलोंग में 18वीं शताब्दी के शुरुआती हिस्से में नगा पहाड़ियों से चले गए थे, इन्होने अपने कई आदिवासी रीति-रिवाजों को त्याग दिया और स्थानीय समुदायों के भीतर शादी की।
- त्योहार: रेंग्माओं के फसल उत्सव को ‘नगड़ा’ कहा जाता है।
स्वायत्त ज़िला परिषद (ADC):
- संविधान की छठी अनुसूची चार पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
- संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 के तहत विशेष प्रावधान प्रदान किया गया है।
- आदिवासियों को स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद और ADCs के माध्यम से विधायी और कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गई है।
- स्वायत्त परिषदों की संरचना:
- प्रत्येक स्वायत्त ज़िला और क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा मनोनीत और बाकी चुनावों के माध्यम से निर्वाचित होते हैं। ये सभी पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये सत्ता में बने रहते हैं।
- हालाँकि बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद एक अपवाद है क्योंकि इसमें अधिकतम 46 सदस्य हो सकते हैं।
- राज्यपाल का नियंत्रण:
- स्वायत्तता की विभिन्न डिग्री के बावजूद छठी अनुसूची क्षेत्र संबंधित राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के बाहर नहीं आता है।
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों को व्यवस्थित और पुनर्गठित करने का अधिकार है।
- केंद्रीय और राज्य कानूनों की प्रयोज्यता:
- संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित अधिनियम इन क्षेत्रों में तब तक लागू किये जा सकते हैं या नहीं लागू किये जा सकते हैं जब तक कि राष्ट्रपति और राज्यपाल स्वायत्त क्षेत्रों के कानूनों में संशोधनों के साथ या बिना संशोधन के उसे या उसकी मंज़ूरी नहीं देते।
- सिविल और आपराधिक न्यायिक शक्तियाँ: परिषदों को व्यापक दीवानी और आपराधिक न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं, उदाहरण के लिये- गाँव में अदालतों की स्थापना आदि।
- हालाँकि इन परिषदों का अधिकार क्षेत्र संबंधित उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के अधीन है।
- मौजूदा स्वायत्त परिषद: संविधान की छठी अनुसूची में 4 राज्यों में 10 स्वायत्त ज़िला परिषदें शामिल हैं। ये हैं:
- असम: बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद, कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद और उत्तरी कछार हिल्स/दीमा हसाओ स्वायत्त परिषद।
- मेघालय: गारो हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद, जयंतिया हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद और खासी हिल्स स्वायत्त ज़िला परिषद।
- त्रिपुरा: त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद।
- मिज़ोरम: चकमा स्वायत्त ज़िला परिषद, लाई स्वायत्त ज़िला परिषद, मारा स्वायत्त ज़िला परिषद।
रेंग्मा नगा पीपुल्स काउंसिल (RNPC) के तर्क:
- रेंग्मा असम के पहले आदिवासी थे जिन्होंने वर्ष 1839 में अंग्रेजों का सामना किया था।
- लेकिन मौजूदा रेंग्मा हिल्स को राज्य के राजनीतिक मानचित्र से हटा दिया गया और वर्ष 1951 में मिकिर हिल्स (अब कार्बी आंगलोंग) के साथ बदल दिया गया।
- वर्ष 1816 और 1819 में असम में बर्मी आक्रमणों के दौरान रेंग्माओं ने अहोम शरणार्थियों को आश्रय दिया।
- अहोम भारतीय राज्यों असम और अरुणाचल प्रदेश का एक जातीय समूह है।
- वर्ष 1951 तक रेंग्मा हिल्स और मिकिर हिल्स दो अलग-अलग संस्थाएँ थीं। रेंग्मा हिल्स का विभाजन वर्ष 1963 में असम और नगालैंड के बीच हुआ था।
- रेंग्मा हिल्स में कार्बीज़ का कोई इतिहास नहीं है।
- नगालैंड राज्य के निर्माण के समय वर्ष 1976 तक कार्बी को मिकिर के नाम से जाना जाता था।
- वे मिकिर हिल्स के स्वदेशी आदिवासी लोग थे।
- कार्बी आंगलोंग स्वायत्त परिषद (KAAC) की आबादी लगभग 12 लाख है और कार्बी केवल 3 लाख हैं, शेष गैर-कार्बी हैं, जिनमें रेंग्मा नगा भी शामिल हैं, जिनकी आबादी लगभग 22,000 है।
NSCN (I-M) का पक्ष:
- ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड या ‘एनएससीएन (इसाक-मुइवा)’ ने कहा है कि रेंग्मा मुद्दा "इंडो-नगा राजनीतिक वार्ता" के महत्त्वपूर्ण एजेंडे में से एक था और किसी भी प्राधिकरण को अपने हितों को खत्म करने के लिये इतनी दूर नहीं जाना चाहिये।
- NSCN (IM) ने अगस्त 2015 में भारत सरकार के साथ एक नगा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, लेकिन समझौते को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है।
- NSCN (IM) की सबसे विवादास्पद मांगों में से एक एकीकृत नगा मातृभूमि का निर्माण था, जिसे नगालैंड के साथ असम, मणिपुर और अरुणाचल के नगा-आबादी क्षेत्रों को एकीकृत करके 'ग्रेटर नगालिम' कहा जाता था।
स्रोत: द हिंदू
घड़ियालों का संरक्षण: महानदी
प्रीलिम्स के लियेमगरमच्छों की प्रजातियाँ, महानदी बेसिन, IUCN रेड लिस्ट, CITES मेन्स के लियेमहानदी बेसिन में घड़ियाल के संरक्षण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ओडिशा ने महानदी बेसिन में घड़ियालों के संरक्षण के लिये 1,000 रुपए के नकद पुरस्कार की घोषणा की।
प्रमुख बिंदु
घड़ियाल के बारे में:
- घड़ियाल, जिसे कभी-कभी गेवियल (Gavials) भी कहा जाता है, एक प्रकार का एशियाई मगरमच्छ है जो अपने लंबे, पतले थूथन के कारण अलग आकृति का होता है। मगरमच्छ सरीसृपों का एक समूह है जिसमें मगरमच्छ, घड़ियाल, कैमन आदि शामिल हैं।
- भारत में मगरमच्छों की तीन प्रजातियाँ हैं अर्थात्:
- घड़ियाल (गेवियलिस गैंगेटिकस): IUCN रेड लिस्ट- गंभीर रूप से संकटग्रस्त
- मगर मगरमच्छ (Crocodylus Palustris): IUCN- सुभेद्य।
- खारे पानी का मगरमच्छ (Crocodylus Porosus): IUCN- कम चिंतनीय।
- तीनों को CITES के परिशिष्ट I और वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I में सूचीबद्ध किया गया है।
- अपवाद: ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और पापुआ न्यू गिनी की खारे पानी की मगरमच्छ आबादी को CITES के परिशिष्ट II में शामिल किया गया है।
- घड़ियाल का निवास स्थान:
- प्राकृतिक आवास: भारत के उत्तरी भाग का ताज़ा पानी।
- प्राथमिक आवास: चंबल नदी (यमुना की एक सहायक नदी)।
- माध्यमिक आवास: घाघरा, गंडक नदी, गिरवा नदी (उत्तर प्रदेश), रामगंगा नदी (उत्तराखंड) और सोन नदी (बिहार)।
- महत्व: घड़ियाल की आबादी स्वच्छ नदी के पानी का एक अच्छा संकेतक है।
- संरक्षण के प्रयास:
- लखनऊ, उत्तर प्रदेश में कुकरैल घड़ियाल पुनर्वास केंद्र व प्रजनन केंद्र, राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य (घड़ियाल इको पार्क, मध्य प्रदेश)।
- जोखिम:
- नदी प्रदूषण में वृद्धि, बाँध निर्माण, बड़े पैमाने पर मछली पकड़ना और बाढ़।
- अवैध बालू खनन व अवैध शिकार।
महानदी नदी:
- महानदी के बारे में:
- महानदी ओडिशा राज्य की सबसे बड़ी नदी और प्रायद्वीपीय भारत की तीसरी सबसे बड़ी (गोदावरी और कृष्णा नदी के बाद) नदी है।
- महानदी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड और महाराष्ट्र राज्यों से होकर बहती है।
- इसका बेसिन उत्तर में मध्य भारत की पहाड़ियों, दक्षिण और पूर्व में पूर्वी घाटों तथा पश्चिम में मैकाल पर्वतमाला से घिरा है।
- उद्गम:
- यह नदी अमरकंटक के दक्षिण में छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर की पहाड़ियों में सिहावा के पास से निकलती है।
- महानदी की प्रमुख सहायक नदियाँ: शिवनाथ नदी, हसदेव नदी, मांड नदी, ईब नदी, जोंक नदी, तेल नदी।
- महानदी विवाद: केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में महानदी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया।
- महानदी पर प्रमुख बाँध/परियोजनाएँ:
- हीराकुंड बाँध: यह भारत का सबसे लंबा बाँध है।
- रविशंकर सागर, दुधावा जलाशय, सोंदूर जलाशय, हसदेव बांगो और तांडुला अन्य प्रमुख परियोजनाएँ हैं।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
मालदीव की UNGA प्रेसीडेंसी
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र महासभा, SAARC, विश्व के मानचित्र में अद्दू एटोल और होर्मुज की खाड़ी की अवस्थिति, स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स, मिशन सागर, सुनामी, एकुवेरिन, ऑपरेशन कैक्टस मेन्स के लिये:भारत मालदीव द्विपक्षीय संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद को 2021-22 के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) के 76वें सत्र के अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
- भारत ने इस घोषणा का स्वागत किया है क्योंकि भारतीय राजनयिकों द्वारा मालदीव की मदद की जा रही थी इसके अलावा भारत संयुक्त राष्ट्र में मालदीव के साथ घनिष्ठ सहयोग की अपेक्षा करता है।
- हालाँकि मालदीव ने अपने दक्षिणी अद्दू एटोल में भारतीय वाणिज्य दूतावास खोलने पर कोई निर्णय नहीं लिया है, जबकि भारतीय मंत्रिमंडल ने इसके लिये एक प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु:
UNGA का अध्यक्ष:
- यह वार्षिक आधार पर घोषित एक पद है, जो विभिन्न क्षेत्रीय समूहों के बीच रोटेट होता रहता है। 76वें सत्र (2021-22) के आयोजन का उत्तरदायित्व एशिया-प्रशांत समूह पर है। यह पहली बार है जब मालदीव UNGA के अध्यक्ष के पद पर आसीन होगा।
- मालदीव इसे उन 52-सदस्यीय लघु द्वीप विकासशील राज्यों (Small Island Developing States- SIDS) के लिये एक अवसर के रूप में देख रहा है, जो जलवायु परिवर्तन की भेद्यता और अन्य विकासात्मक चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
अद्दू एटोल:
- अद्दू एटोल जिसे सीनू एटोल के नाम से भी जाना जाता है, मालदीव का सबसे दक्षिणी एटोल है।
- हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक स्थिति के अलावा अद्दू द्वीपसमूह का दूसरा सबसे बड़ा शहर है जहाँ 30,000 से अधिक लोग निवास करते हैं।
भारत का रुख:
- भारत ने मालदीव के शहर अद्दू में एक नया वाणिज्य दूतावास खोलने की मंज़ूरी दी, जो भारत के रणनीतिक रूप से स्थित द्वीप राष्ट्र के साथ अपने संबंधों के महत्त्व को दर्शाता है।
- मालदीव में अपनी राजनयिक उपस्थिति का विस्तार करने वाला भारत का यह निर्णय द्वीप राष्ट्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के चीन के लगातार प्रयासों के बीच आया है।
- इसके अलावा वाणिज्य दूतावास के लिये भारतीय तर्क अद्दू निवासियों को त्वरित वीज़ा सेवाओं के साथ मदद करना था।
पहल का विरोध:
- मालदीव के कुछ लोग नए वाणिज्य दूतावास को संदेह की नजर से देखते हैं, विशेषकर 33 मिलियन अमेरिकी डॉलर की मालदीव पुलिस प्रशिक्षण सुविधा के बाद, जिसे भारत अद्दू में बनाने में मदद कर रहा है।
- माले में पहले से ही एक भारतीय दूतावास है।
भारत के लिये मालदीव का भू-सामरिक महत्त्व:
- मालदीव, हिंद महासागर में एक टोल गेट के रूप में:
- इस द्वीप शृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भागों में स्थित संचार के दो महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग (Sea Lanes of Communication- SLOCs) हैं।
- ये SLOCs पश्चिम एशिया में अदन की खाड़ी तथा होर्मुज की खाड़ी एवं दक्षिण पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार प्रवाह के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत का लगभग 50% विदेशी व्यापार और 80% ऊर्जा आयात इन SLOCs के माध्यम से अरब सागर में स्थानांतरित होता है।
- महत्त्वपूर्ण समूहों का हिस्सा:
- इसके अलावा भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) तथा दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (SASEC) के सदस्य है।
भारत-मालदीव संबंध
भारत और मालदीव के बीच सहयोग:
- सुरक्षा सहयोग:
- दशकों से भारत ने मालदीव की मांग पर उसे तात्कालिक आपातकालीन सहायता पहुँचाई है।
- वर्ष 1988 में जब हथियारबंद आतंकवादियों ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम सरकार के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की, तो भारत ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ (Operation Cactus) के तहत पैराट्रूपर्स और नेवी जहाज़ों को भेजकर वैध सरकार को पुनः बहाल किया।
- भारत और मालदीव ‘एकुवेरिन’ (Ekuverin) नामक एक संयुक्त सैन्य अभ्यास का संचालन करते हैं।
- आपदा प्रबंधन:
- वर्ष 2004 में सुनामी और इसके एक दशक बाद मालदीव में पेयजल संकट कुछ अन्य ऐसे मौके थे जब भारत ने उसे आपदा सहायता पहुँचाई।
- मालदीव, भारत द्वारा अपने सभी पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई जा रही COVID-19 सहायता और वैक्सीन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।
- COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के अवरुद्ध रहने के दौरान भी भारत ने मिशन सागर (SAGAR) के तहत मालदीव को महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी।
- पीपल-टू-पीपल संपर्क:
- दोनों देशों की निकटता और हवाई संपर्क में सुधार के कारण पर्यटन तथा व्यापार के लिये मालदीव जाने वाले भारतीयों की संख्या में वृद्धि हुई है, वहीं भारत भी शिक्षा, चिकित्सा उपचार, मनोरंजन एवं व्यवसाय के लिये मालदीव का पसंदीदा स्थान है।
- आर्थिक सहयोग:
- पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। मालदीव पर लगाई गई भौगोलिक सीमाओं को देखते हुये, भारत ने मालदीव को आवश्यक वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंधों से छूट दी है।
संबंधों में तनाव:
- राजनैतिक अस्थिरता:
- भारत की प्रमुख चिंता इसकी सुरक्षा और विकास को लेकर पड़ोस में राजनीतिक अस्थिरता का प्रभाव रहा है।
- फरवरी 2015 में मालदीव के विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद की आतंकवाद के आरोप में गिरफ्तारी और उसके परिणामस्वरूप राजनीतिक संकट ने भारत की पड़ोस नीति के लिये एक वास्तविक कूटनीतिक कसौटी प्रस्तुत की है।
कट्टरपंथीकरण:
- पिछले एक दशक में इस्लामिक स्टेट (Islamic State- IS) और पाकिस्तान स्थित मदरसों तथा जिहादी समूहों जैसे आतंकवादी समूहों की ओर आकर्षित मालदीवियों की संख्या बढ़ रही है।
- राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक-आर्थिक अनिश्चितता द्वीप राष्ट्र में इस्लामी कट्टरवाद के उदय को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारक हैं।
- चीन का पक्ष:
- हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में चीन के सामरिक दखल में वृद्धि देखने को मिली है। मालदीव दक्षिण एशिया में चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है।
- इसके अलावा मालदीव ने भारत के साथ सौदेबाज़ी के लिये 'चाइना कार्ड' का उपयोग करना भी शुरू कर दिया है।
आगे की राह:
- यह आशा की जाती है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और UNGA के मालदीव के अध्यक्ष मिलकर काम करेंगे क्योंकि भारत बहुपक्षीय सुधार के लिये अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर है तथा वैश्विक निकाय में पुरानी शक्ति संरचनाओं में परिवर्तन को प्रभावित करने की निष्क्रिय प्रक्रिया को फिर से सक्रिय करता है।
- सरकार की "नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी" के अनुसार, मालदीव जैसे स्थिर, समृद्ध और शांतिपूर्ण देश के विकास के लिये भारत एक प्रतिबद्ध भागीदार बना हुआ है।
स्रोत: द हिंदू
उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट : AISHE 2019-20
प्रिलिम्स के लिये:उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट मेन्स के लिये:शिक्षा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण विकास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण रिपोर्ट (All India Survey on Higher Education- AISHE) 2019-20 को जारी करने की घोषणा की है।
- यह रिपोर्ट देश में उच्च शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर प्रमुख प्रदर्शन संकेतक प्रदान करती है।
- उच्च शिक्षा विभाग द्वारा वार्षिक रूप से जारी की जाने वाली अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण (AISHE) की शृंखला में यह 10वीं रिपोर्ट है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष
कुल छात्र नामांकन:
- वर्ष 2015-16 से 2019-20 तक पिछले पाँच वर्षों की अवधि में छात्र नामांकन में 11.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2019-20 के दौरान उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 3.85 करोड़ रहा जबकि वर्ष 2018-19 में यह 3.74 करोड़ था। इसमें 11.36 लाख (3.04 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की गई।
- भारत में सबसे अधिक नामांकन उत्तर प्रदेश में हुए इसमें 49.1% छात्र और 50.9% छात्राएँ हैं, इसके बाद तमिलनाडु और महाराष्ट्र का स्थान आता है।
सकल नामांकन अनुपात (GER):
- वर्ष 2019-20 के दौरान सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrollment Ratio- GER) में 0.8% की मामूली वृद्धि हुई।
- GER शिक्षा के किसी दिये गए स्तर में नामांकित छात्रों की संख्या है, यह उम्र की परवाह किये बिना, शिक्षा के समान स्तर के अनुरूप आधिकारिक स्कूली-आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त की जाती है।
- वर्ष 2019-20 में उच्च शिक्षा में नामांकित पात्र आयु वर्गों के छात्रों का प्रतिशत 27.1 था। जबकि वर्ष 2018-19 में यह 26.3% और वर्ष 2014-15 में 24.3% था।
महिला नामांकन:
- वर्ष 2015-16 से वर्ष 2019-20 तक उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में कुल मिलाकर 18% से अधिक की वृद्धि हुई है।
- शैक्षणिक पाठ्यक्रमों की अपेक्षा व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी कम होने के साथ-साथ राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों में छात्राओं की हिस्सेदारी सबसे कम है।
लैंगिक समानता सूचकांक:
- उच्च शिक्षा में लैंगिक समानता सूचकांक (Gender Parity Index- GPI) वर्ष 2018-19 के 1.00 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में 1.01 रहा जो कि पात्र आयु समूह में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के लिये उच्च शिक्षा में सापेक्ष पहुँच में सुधार का संकेत है।
- 1 का GPI लैंगिक समानता को दर्शाता है; एक GPI जो 0 और 1 के बीच भिन्न होता है, आमतौर पर इसका मतलब पुरुषों के पक्ष में असमानता है; जबकि 1 से अधिक का GPI महिलाओं के पक्ष में असमानता को दर्शाता है।
शिक्षकों की संख्या तथा छात्र शिक्षक अनुपात:
- शिक्षकों की कुल संख्या 15,03,156 है, जिसमें 57.5 प्रतिशत पुरुष और 42.5 प्रतिशत महिलाएँ हैं।
- शिक्षकों की कुल संख्या 15,03,156 है जिसमें 57.5% पुरुष और 42.5% महिलाएँ शामिल हैं।
- वर्ष 2019-20 में उच्च शिक्षा में छात्र शिक्षक अनुपात 26 है।
मुख्य आकर्षण:
- लगभग 85% छात्र (2.85 करोड़) मानविकी, विज्ञान, वाणिज्य, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, चिकित्सा विज्ञान तथा आईटी एवं कंप्यूटर जैसे छह प्रमुख विषयों में नामांकित थे।
हाल की पहलें:
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020:
- इसका उद्देश्य वर्ष 2035 तक उच्च शिक्षा में GER को 50% तक बढ़ाना है।
- अकादमिक और अनुसंधान सहयोग संवर्द्धन योजना (SPARC):
- SPARC का उद्देश्य भारतीय संस्थानों और विश्व के सर्वोत्तम संस्थानों के बीच अकादमिक एवं अनुसंधान सहयोग को सुगम बनाकर भारत के उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान परिदृश्य को बेहतर बनाना है।
- राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (RUSA):
- इसका उद्देश्य पूरे देश में उच्च शिक्षण संस्थानों को रणनीतिक वित्तपोषण प्रदान करना है।
- प्रधानमंत्री अनुसंधान अध्येता (PMRF) योजना:
- यह राष्ट्रीय प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए अत्याधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी डोमेन में अनुसंधान हेतु देश की प्रतिभाओं को डॉक्टरेट (Ph.D) कार्यक्रमों के लिये आकर्षित करेगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारत का इथेनॉल रोडमैप
प्रिलिम्स के लियेइथेनॉल और इथेनॉल सम्मिश्रण मेन्स के लियेभारत का इथेनॉल रोडमैप और इथेनॉल सम्मिश्रण को बढ़ावा देने के लिये सुझाव, सरकार द्वारा की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण के रोडमैप पर एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट जारी की है।
- इस रोडमैप के तहत अप्रैल 2022 तक E10 ईंधन की आपूर्ति के लिये इथेनॉल-मिश्रित ईंधन के चरणबद्ध रोलआउट और अप्रैल 2023 से अप्रैल 2025 तक E20 के चरणबद्ध रोलआउट का प्रस्ताव दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
रिपोर्ट के विषय में
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (MoP&NG) ने इथेनॉल के मूल्य निर्धारण, नए इंजन वाले वाहनों के लिये इथेनॉल की आपूर्ति, ऐसे वाहनों के मूल्य निर्धारण, विभिन्न इंजनों की ईंधन दक्षता जैसे मुद्दों का अध्ययन करने के लिये एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया था।
इथेनॉल सम्मिश्रण
- इथेनॉल
- यह प्रमुख जैव ईंधनों में से एक है, जो प्रकृतिक रूप से खमीर अथवा एथिलीन हाइड्रेशन जैसी पेट्रोकेमिकल प्रक्रियाओं के माध्यम से शर्करा के किण्वन द्वारा उत्पन्न होता है।
- सम्मिश्रण लक्ष्य
- भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक पेट्रोल (जिसे E20 भी कहा जाता है) में 20% इथेनॉल सम्मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- वर्तमान में भारत में पेट्रोल के साथ 8.5% इथेनॉल मिश्रित होता है।
- इथेनॉल सम्मिश्रण का उद्देश्य
- ऊर्जा सुरक्षा
- इथेनॉल के अधिक उपयोग से तेल आयात बिल को कम करने में मदद मिल सकती है। वर्ष 2020-21 में भारत की शुद्ध आयात लागत 551 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- E20 कार्यक्रम देश के लिये प्रतिवर्ष 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर (30,000 करोड़ रुपए) बचा सकता है।
- किसानों के लिये प्रोत्साहन
- तेल कंपनियाँ किसानों से इथेनॉल खरीदती हैं, जिससे गन्ना किसानों को फायदा होता है।
- इसके अलावा सरकार की योजना पानी बचाने वाली फसलों जैसे कि मक्का आदि को इथेनॉल का उत्पादन करने और गैर-खाद्य फीडस्टॉक से इथेनॉल के उत्पादन को प्रोत्साहित करने की है।
- उत्सर्जन पर प्रभाव
- इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के उपयोग से कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोकार्बन (HC) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) आदि के उत्सर्जन में कमी आती है।
- हालाँकि एसीटैल्डिहाइड उत्सर्जन जैसे अनियमित कार्बोनिल उत्सर्जन सामान्य पेट्रोल की तुलना में E10 और E20 में अधिक होता है, किंतु यह उत्सर्जन अपेक्षाकृत काफी कम होता है।
- ऊर्जा सुरक्षा
सुझाव
- इथेनॉल सम्मिश्रण रोडमैप को अधिसूचित करना: MoP&NG को तत्काल प्रभाव से अप्रैल, 2022 तक E10 ईंधन की अखिल भारतीय उपलब्धता और उसके बाद पुराने वाहनों के लिये वर्ष 2025 तक इसकी निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये एक योजना को अधिसूचित करना चाहिये और अप्रैल, 2023 से चरणबद्ध तरीके से देश में E20 का शुभारंभ करना चाहिये ताकि अप्रैल, 2025 तक E20 की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके।
- तेल विपणन कंपनियों के लिये बुनियादी अवसंरचना में वृद्धि: तेल विपणन कंपनियों को इथेनॉल भंडारण, हैंडलिंग, सम्मिश्रण और वितरण अवसंरचना की अनुमानित आवश्यकता के लिये तैयार करने की आवश्यकता है।
- विनियामक मंज़ूरी प्रक्रिया में तेज़ी लाना: वर्तमान में इथेनॉल उत्पादन संयंत्र ‘लाल श्रेणी’ के अंतर्गत आते हैं और नई व विस्तार परियोजनाओं के लिये वायु एवं जल अधिनियमों के तहत पर्यावरण मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
- इसमें कई बार लंबा समय लग जाता है जिससे देरी हो जाती है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) में तेज़ी लाने के लिये कई कदम उठाए गए हैं, हालाँकि अभी भी ऐसे कई क्षेत्र हैं, जिनमें सुधार करने से देश में इथेनॉल संयंत्र की जल्द स्थापना में मदद मिलेगी।
- इथेनॉल मिश्रित वाहन को प्रोत्साहन: विश्व स्तर पर उच्च इथेनॉल मिश्रण का अनुपालन करने वाले वाहनों को कर लाभ प्रदान किया जाता है।
- इस प्रकार के दृष्टिकोण को अपनाया जाना महत्त्वपूर्ण है ताकि E20 के डिज़ाइन के कारण लागत में हुई वृद्धि को कुछ हद तक कम किया जा सके, जैसा कि कुछ राज्यों में इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिये किया जा रहा है।
- इथेनॉल मिश्रित गैसोलीन का मूल्य निर्धारण: देश में उच्च इथेनॉल मिश्रण की बेहतर स्वीकार्यता प्रदान करने के लिये आवश्यक है कि ऐसे ईंधनों का खुदरा मूल्य सामान्य पेट्रोल से कम होना चाहिये ताकि मिश्रित ईंधन को प्रोत्साहित किया जा सके।
- सरकार इथेनॉल पर ईंधन के रूप में टैक्स ब्रेक पर विचार कर सकती है।
इस संबंध में शुरू की गई अन्य पहलें
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018, वर्ष 2030 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम के तहत 20% इथेनॉल सम्मिश्रण का एक सांकेतिक लक्ष्य प्रदान करती है।
- केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने वाहनों पर उनकी E20, E85 या E100 अनुरूपता का उल्लेख करते हुए स्टिकर लगाना अनिवार्य कर दिया है।
- इससे फ्लेक्स ईंधन वाले वाहनों का मार्ग प्रशस्त होगा।
- फ्लेक्स ईंधन वाले वाहन मिश्रित पेट्रोल के किसी भी अनुपात (E20 से E100 तक) पर चल सकते हैं।
- E100 पायलट प्रोजेक्ट: इसकी शुरुआत पुणे में की गई है।
- ‘टीवीएस अपाचे’ दोपहिया वाहनों को E80 या शुद्ध इथेनॉल (E100) पर चलाने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- प्रधानमंत्री ‘जी-वन’ योजना 2019: इस योजना का उद्देश्य 2G इथेनॉल क्षेत्र में वाणिज्यिक परियोजनाओं की स्थापना और अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है।
- गोबर-धन (गैल्वनाइजिंग जैविक जैव-एग्रो संसाधन) योजना: इस योजना का उद्देश्य गाँव की स्वच्छता पर सकारात्मक प्रभाव डालना और मवेशियों तथा जैविक कचरे से धन और ऊर्जा उत्पन्न करना है।
- इसका उद्देश्य नए ग्रामीण आजीविका के अवसर पैदा करना और किसानों एवं अन्य ग्रामीण लोगों की आय में वृद्धि करना है।
- रिपर्पज़ यूज़्ड कुकिंग आयल (RUCO): भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने यह पहल शुरू की है, जिसका उद्देश्य इस्तेमाल किये गए खाना पकाने के तेल को बायोडीजल में रूपांतरित करना है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अल सल्वाडोर में बिटकॉइन को कानूनी मान्यता
प्रिलिम्स के लियेअल सल्वाडोर अवस्थिति, बिटकॉइन मेन्स के लियेबिटकॉइन को कानूनी मान्यता दिये जाने के निहितार्थ, क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारत की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
मध्य अमेरिका का एक छोटा सा तटीय देश अल सल्वाडोर बिटकॉइन को कानूनी निविदा के रूप में अपनाने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है।
- कानूनी निविदा का आशय किसी विशिष्ट राजनीतिक अधिकार क्षेत्र के भीतर कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त धन से होता है।
प्रमुख बिंदु
बिटकॉइन
- परिचय
- बिटकॉइन एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी है, जिसे वर्ष 2009 में प्रस्तुत किया गया था और जो किसी को भी तुरंत भुगतान करने में सक्षम बनाती है।
- क्रिप्टोकरेंसी एक विशिष्ट प्रकार की आभासी मुद्रा है, जो क्रिप्टोग्राफिक एन्क्रिप्शन तकनीकों द्वारा विकेंद्रीकृत और संरक्षित होती है।
- बिटकॉइन, एथेरियम और रिपल आदि क्रिप्टोकरेंसी के उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
- बिटकॉइन एक ओपन-सोर्स प्रोटोकॉल पर आधारित है और किसी केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा जारी नहीं किया जाता है।
- बिटकॉइन एक प्रकार की क्रिप्टोकरेंसी है, जिसे वर्ष 2009 में प्रस्तुत किया गया था और जो किसी को भी तुरंत भुगतान करने में सक्षम बनाती है।
- प्रयोग
- मूलतः बिटकॉइन का उद्देश्य फिएट मनी का विकल्प प्रदान करना और दो शामिल पक्षों के बीच प्रत्यक्ष विनिमय का एक सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत माध्यम बनना था।
- फिएट मनी सरकार द्वारा जारी मुद्रा होती है जो सोने जैसी कमोडिटी द्वारा समर्थित नहीं होती है।
इस निर्णय के कारण
- प्रेषण का नुकसान
- अल सल्वाडोर विदेशों से श्रमिकों द्वारा भेजे गए धन पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- बिटकॉइन को अपनाने से यह प्रेषण की प्रकिया तीव्र और सुगम हो सकती है।
- वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना
- इससे देश में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलने की भी उम्मीद है, क्योंकि अधिकांश आबादी की औपचारिक बैंकिंग चैनलों तक पहुँच नहीं है।
चिंताएँ
- एक केंद्रीय नियामक प्राधिकरण की अनुपस्थिति में बिटकॉइन को वैध बनाने से धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग, उच्च ऊर्जा लागत और अत्यधिक अस्थिरता की संभावना काफी अधिक बढ़ गई है।
क्रिप्टो वर्ल्ड के लिये इसके निहितार्थ
- यह संभावित रूप से कमज़ोर अर्थव्यवस्था वाले अन्य छोटे देशों को क्रिप्टो को फिएट मुद्राओं के विकल्प के रूप में मान्यता देने के लिये प्रोत्साहित करेगा, जिससे दुनिया भर में क्रिप्टोकरेंसी को मुख्यधारा के रूप में अपनाने का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
- पहले से ही वेनेजुएला और कई अफ्रीकी देशों ने क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करना शुरू कर दिया है, क्योंकि उनकी मुद्राओं में तीव्रता से कमी देखने को मिल रही है।
भारत के लिये संदेश
- मौद्रिक नीति का अभाव
- अल सल्वाडोर की अपनी कोई मौद्रिक नीति नहीं है, इसलिये रक्षा हेतु कोई स्थानीय मुद्रा भी नहीं है। यह अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीति का अनुसरण करता है।
- इसलिये फेडरल रिज़र्व की नीतियों में कोई भी बदलाव निश्चित रूप से देश को प्रभावित करेगा। अतः वह ऐसे क्रिप्टोकरेंसी जैसे विकल्पों पर विचार कर रहा है।
- चूँकि, भारत के पास अपनी मुद्रा और एक केंद्रीय बैंक है, इसलिये बिटकॉइन और रुपए का साथ-साथ सह-अस्तित्व मुश्किल हो सकता है।
- अल सल्वाडोर की अपनी कोई मौद्रिक नीति नहीं है, इसलिये रक्षा हेतु कोई स्थानीय मुद्रा भी नहीं है। यह अमेरिकी फेडरल रिज़र्व की मौद्रिक नीति का अनुसरण करता है।
- प्रेषण पर प्रभाव
- भारत ज़रूर बिटकॉइन के प्रेषण प्रवाह पर प्रभाव की निगरानी करेगा, क्योंकि भारत विश्व में सबसे अधिक प्रेषण प्राप्त करता है।
- विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2020 में प्रेषण के रूप में 83 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक प्राप्त हुआ था।
- भारत ज़रूर बिटकॉइन के प्रेषण प्रवाह पर प्रभाव की निगरानी करेगा, क्योंकि भारत विश्व में सबसे अधिक प्रेषण प्राप्त करता है।
- मनी लॉन्ड्रिंग पर प्रभाव
- मनी लॉन्ड्रिंग के लिये इस कदम के निहितार्थ फिलहाल स्पष्ट नहीं हैं।
- वर्तमान में अल साल्वाडोर को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की सूची के तहत शामिल नहीं किया गया है।
- हालाँकि व्यापक पैमाने पर क्रिप्टोकरेंसी प्रवाह और बहिर्वाह के साथ यह उम्मीद की जा सकती है कि अल सल्वाडोर आभासी मुद्राओं पर वर्ष 2019 में जारी FATF दिशा-निर्देशों का पालन करेगा।
क्रिप्टोकरेंसी को लेकर भारत की मौजूदा स्थिति
- वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक सर्कुलर जारी किया जिसमें सभी बैंकों को क्रिप्टोकरेंसी में लेनदेन न करने का निर्देश दिया गया था। इस सर्कुलर को सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2020 में असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
- हाल ही में सरकार ने एक विधेयक पेश करने की घोषणा की है। क्रिप्टोकरेंसी और आधिकारिक डिजिटल मुद्रा का विनियमन विधेयक, 2021 नामक इस विधेयक का उद्देश्य एक संप्रभु डिजिटल मुद्रा बनाना और साथ ही सभी निजी क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध लगाना है।
- भारत में भारतीय ब्लॉकचेन स्टार्ट-अप्स में जाने वाली धनराशि वैश्विक स्तर पर ब्लॉकचैन क्षेत्र द्वारा जुटाई गई राशि के 0.2 प्रतिशत से भी कम है।
आगे की राह
- अल सल्वाडोर के इस निर्णय को मुख्यतः मौद्रिक अर्थ में नहीं, बल्कि इस उदाहरण के रूप में लिया जा सकता है कि अल सल्वाडोर का यह निर्णय ब्लॉकचेन जैसे उभरते क्षेत्रों में कार्यरत नवप्रवर्तकों और उद्यमियों के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है।
- यह वह धन है जो भारत के पास उपलब्ध तो है, किंतु नीतिगत रूप से संरक्षित नहीं है।
- यद्यपि भारत में क्रिप्टोकरेंसी के मौद्रिक और वित्तीय नियमों पर विचार-विमर्श जारी है, यह महत्त्वपूर्ण है कि इस क्षेत्र में प्रमुख नवाचारों पर काम कर रहे भारत के डेवलपर्स को प्रोत्साहन देने पर भी ध्यान दिया जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
फास्ट रेडियो बर्स्टस
प्रिलिम्स के लिये:फास्ट रेडियो बर्स्टस, टाटा इंस्टीट्यूट फॉर फंडामेंटल रिसर्च मेन्स के लिये:फास्ट रेडियो बर्स्ट से खगोलीय उलझनों को समझने में सहायता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पुणे स्थित ‘टाटा इंस्टीट्यूट फॉर फंडामेंटल रिसर्च’ (TIFR) और ‘नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स’ (NCRA) के शोधकर्त्ताओं ने ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ (FRB) कैटालॉग का सबसे बड़ा संग्रह एकत्रित किया है।
- ये आँकड़े ‘कैनेडियन हाइड्रोजन इंटेंसिटी मैपिंग एक्सपेरिमेंट’ (CHIME) से भी संबंधित हैं।
- वर्ष 2020 में ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) ने पहली बार FRB को मिल्की वे में देखा था।
प्रमुख बिंदु:
फास्ट रेडियो बर्स्टस:
- FRB रेडियो तरंगों के चमकदार विस्फोट होते हैं (रेडियो तरंगें बदलते चुंबकीय क्षेत्रों के साथ खगोलीय पिंडों द्वारा उत्पन्न की जा सकती हैं) जिनकी अवधि मिलीसेकंड-स्केल में होती है, जिसके कारण उनका पता लगाना और आकाश में उनकी स्थिति निर्धारित करना मुश्किल होता है।
- इसे पहली बार वर्ष 2007 में खोजा गया था।
- इनका एक परिभाषित लक्षण इनका फैलाव (बिखरना या पृथक्करण) है, इनके विस्फोट से रेडियो तरंगों का एक स्पेक्ट्रम उत्पन्न होता है और जैसे ही तरंगें पदार्थ के माध्यम से यात्रा करती हैं, ये उच्च रेडियो आवृत्तियों पर विस्फोट के साथ फैलती हैं, जो पहले की तुलना में दूरबीनों पर कम आवृत्तियों में आती हैं।
- कई अनुप्रयोगों में विशेष रूप से बड़ी दूरी पर फैलाव के परिणामस्वरूप सिग्नल में गिरावट हो सकती है।
- यह फैलाव शोधकर्त्ताओं को दो महत्त्वपूर्ण चीजों के बारे में जानने की अनुमति देता है:
- वे परोक्ष रूप से निर्धारित कर सकते हैं कि चीजें कितनी दूर हैं।
FRB कैटालॉग और निष्कर्ष:
- वर्तमान में नई सूची में ज्ञात FRBs के बारे में जानकारी का विस्तार हुआ है।
- उदाहरण के लिये- नए विस्फोट दो अलग-अलग वर्गों में आते हैं:
- वे जिनकी पुनरावृत्ति होती है,
- और जिनकी पुनरावृत्ति नहीं होती है।
- रिपीटर्स अलग-अलग होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में विस्फोट का समय अधिक होता था और एकल, गैर-दोहराव वाले FRBs के विस्फोट की तुलना में अधिक केंद्रित रेडियो आवृत्तियों का उत्सर्जन करते थे।
- ये दृढ़ता से सुझाव देते हैं कि पुनरावर्तक और गैर-पुनरावर्तक से उत्सर्जन या तो विभिन्न भौतिक तंत्रों द्वारा या विभिन्न खगोल भौतिक वातावरण में उत्पन्न होता है।
- ये विस्फोट समान रूप से अंतरिक्ष में वितरित होते हैं, ऐसा लगता है कि यह आकाश के किसी भी और सभी हिस्सों से उत्पन्न हुआ है।
- पूरे आकाश में लगभग 800 प्रतिदिन की दर से तेज़ FRBs होते हैं - यह FRBs का अब तक की समग्र दर का सबसे सटीक अनुमान है।
FRBs की उत्पत्ति:
- FRBs को ब्रह्मांड के विभिन्न और दूर के हिस्सों के साथ-साथ हमारी अपनी आकाशगंगा में भी देखा गया है। उनकी उत्पत्ति अज्ञात है और उनकी उपस्थिति अत्यधिक अप्रत्याशित है।
- CHIME प्रोजेक्ट ने अब तक खोजे गए ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ की संख्या को लगभग चौगुना कर दिया है।
- इस टेलीस्कोप ने वर्ष 2018 और 2019 के बीच अपने संचालन के पहले वर्ष में ही 535 नए FRBs का पता लगाया है।
- खगोलविदों को जल्द ही अधिक टिप्पणियों के साथ FRBs की उत्पत्ति का पता लगाने की उम्मीद है।
CHIME प्रोजेक्ट:
- यह एक नया रेडियो टेलीस्कोप है जिसमें कोई गतियुक्त भाग नहीं होता है। मूल रूप से ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर तत्त्व हाइड्रोजन को देखने योग्य ब्रह्मांड का मानचित्रण करने के लिये इसकी कल्पना की गई थी, इस असामान्य दूरबीन को उच्च मानचित्रण गति हेतु अनुकूलित किया गया है।
- यह ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा में कनाडा की राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद द्वारा संचालित डोमिनियन रेडियो एस्ट्रोफिज़िकल वेधशाला में स्थित है।
- जैसे ही पृथ्वी घूमती है, टेलीस्कोप को आकाश के आधे भाग से प्रतिदिन रेडियो सिग्नल प्राप्त होते हैं।
FRBs का अध्ययन करने का महत्व:
- हाल ही में तकनीकी प्रगति के साथ संयुक्त रूप से तेज़ रेडियो विस्फोट और उनकी मेज़बान आकाशगंगाओं के अद्वितीय गुणों ने शोधकर्त्ताओं में यह आशा की किरण जगा दी है कि इन घटनाओं का प्रयोग ब्रह्मांड के बारे में कुछ लंबे समय से चले आ रहे सवालों के जवाब देने के लिये किया जा सकता है।
- इसका उपयोग ब्रह्मांड में पदार्थ की त्रि-आयामी संरचना को समझने और ब्रह्मांड के विकास में शुरुआती क्षणों को खराब तरीके से समझने के लिये किया जा सकता है।