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डेली न्यूज़

  • 12 Jun, 2020
  • 39 min read
शासन व्यवस्था

इंडिया रैंकिंग्स , 2020

प्रीलिम्स के लिये

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क

मेन्स के लिये

भारत में शैक्षणिक परिदृश्य एवं मानव संसाधन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (Ministry of Human Resource Development-MHRD) द्वारा राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework-NIRF) के तहत जारी ‘इंडिया रैंकिंग्स 2020’ (India Rankings 2020) में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT-Madras) को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत के सबसे सर्वश्रेष्ठ संस्थान के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के रैंकिंग फ्रेमवर्क में देश भर के कुल 3,771 संस्थान पंजीकृत किये गए हैं, जो कि बीते वर्ष की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक हैं।
  • यह भारत में उच्च शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग का लगातार पाँचवाँ संस्करण है। वर्ष 2020 में पहले की नौ रैंकिंग के अलावा ‘डेंटल’ (Dental) श्रेणी को पहली बार शामिल किया गया, जिससे इस वर्ष कुल श्रेणियों की संख्या दस हो गई है।

इस प्रकार की रैंकिंग का महत्त्व

  • इस प्रकार की रैंकिंग से छात्रों को कुछ मापदंडों के आधार पर विश्वविद्यालयों का चयन करने में सहायता मिलती है। 
  • इस रैंकिंग के माध्यम से विश्वविद्यालयों को विभिन्न रैंकिंग मापदंडों पर अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने और अनुसंधान तथा सुधार के क्षेत्रों में खामियों की पहचान करने में मदद मिलती है। 
  • राष्ट्रीय स्तर पर संस्थानों की रैंकिंग संस्थानों के बीच बेहतर प्रदर्शन करने और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में उच्च रैंकिंग सुनिश्चित करने के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मक भावना पैदा करती है।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की यह रैंकिंग निम्नलिखित श्रेणियों में जारी की गई है-

समग्र

  • पहला स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (IIT-Madras)
  • दूसरा स्थान: भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु (IISc-Bengaluru)
  • तीसरा स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (IIT-Delhi) 

विश्वविद्यालय

  • पहला स्थान: भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु (Indian Institute of Science, Bengaluru) 
  • दूसरा स्थान: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (Jawaharlal Nehru University)
  • तीसरा स्थान: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी (Banaras Hindu University) 

इंजीनियरिंग 

  • पहला स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास (Indian Institute of Technology Madras)
  • दूसरा स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (Indian Institute of Technology Delhi)
  • तीसरा स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे (Indian Institute of Technology Bombay)

प्रबंधन 

  • पहला स्थान: भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (Indian Institute of Management Ahmedabad) 
  • दूसरा स्थान: भारतीय प्रबंधन संस्थान, बैंगलोर (Indian Institute of Management Bangalore)
  • तीसरा स्थान: भारतीय प्रबंधन संस्थान, कलकत्ता (Indian Institute of Management Calcutta)

कॉलेज

  • पहला स्थान: मिरांडा हाउस, दिल्ली (Miranda House, Delhi)
  • दूसरा स्थान: लेडी श्री राम कॉलेज फॉर विमेन, नई दिल्ली (Lady Shri Ram College for Women, New Delhi)
  • तीसरा स्थान: हिंदू कॉलेज, दिल्ली (Hindu College, Delhi)

फार्मेसी (Pharmacy)

  • पहला स्थान: जामिया हमदर्द, नई दिल्ली (Jamia Hamdard, New Delhi)
  • दूसरा स्थान: पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ (Panjab University, Chandigarh)
  • तीसरा स्थान: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, मोहाली (National Institute of Pharmaceutical Education and Research, Mohali)

मेडिकल

  • पहला स्थान: अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली (All India Institute of Medical Sciences, New Delhi)
  • दूसरा स्थान: पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ (Post Graduate Institute of Medical Education and Research, Chandigarh)
  • तीसरा स्थान: क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर (Christian Medical College, Vellore)

वास्तुकला

  • पहला स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर (Indian Institute of Technology Kharagpur)
  • दूसरा स्थान: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (Indian Institute of Technology Roorkee)
  • तीसरा स्थान: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कालीकट (National Institute of Technology Calicut)

कानून

  • पहला स्थान: नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलुरु (National Law School of India University, Bengaluru)
  • दूसरा स्थान: नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली (National Law University, New Delhi)
  • तीसरा स्थान: नालसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद (Nalsar University of Law, Hyderabad)

डेंटल

  • पहला स्थान: मौलाना आज़ाद इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज़, दिल्ली (Maulana Azad Institute of Dental Sciences, Delhi)
  • दूसरा स्थान: मणिपाल कॉलेज ऑफ डेंटल साइंसेज़, उडुपी (Manipal College of Dental Sciences, Udupi)
  • तीसरा स्थान: डॉ डी. वाई. पाटिल विद्यापीठ, पुणे (Dr. D. Y. Patil Vidyapeeth, Pune)

राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क 

(National Institutional Ranking Framework-NIRF)

  • मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (National Institutional Ranking Framework - NIRF) को सितंबर, 2015 में शुरू किया गया था।
  • इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत देशभर के शैक्षणिक संस्थानों को उनकी गुणवत्ता एवं प्रदर्शन के आधार पर सूचीबद्ध करने के लिये एक पद्धति की रूपरेखा तैयार की जाती है।
  • शैक्षणिक संस्थानों की रैंकिंग करने के लिये कुछ विशेष मानक तय किये गए हैं। इन मानकों में आम तौर पर ‘शिक्षण, शिक्षा और संसाधन’ (Teaching, Learning and Resources), ‘अनुसंधान और व्यावसायिक अभ्यास (Research and Professional Practices), ‘स्नातक परिणाम’ (Graduation Outcomes), ‘आउटरीच और समावेशिता’ (Outreach and Inclusivity) और ‘अनुभूति’ (Perception) आदि को शामिल किया जाता हैं।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

नेचर इंडेक्स- 2020

प्रीलिम्स के लिये:

नेचर इंडेक्स- 2020

मेन्स के लिये:

भारत में शोध कार्य

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' (Department of Science & Technology) के तीन स्वायत्त संस्थानों सहित भारत के शीर्ष 30 संस्थानों को ‘नेचर इंडेक्स- 2020’ (Nature Index- 2020) में शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • ‘नेचर इंडेक्स’, 82 उच्च गुणवत्ता वाली विज्ञान पत्रिकाओं में प्रकाशित शोधलेखों के आधार पर तैयार किया जाने वाला डेटाबेस है।
  • ये डेटाबेस ‘नेचर रिसर्च’ (Nature Research) द्वारा संकलित किया गया है।
  • ‘नेचर रिसर्च’ अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रकाशन कंपनी ‘स्प्रिंगर नेचर’ (Springer Nature) का एक प्रभाग है।
  • ‘नेचर इंडेक्स’ में विभिन्न संस्थाओं की वैश्विक, क्षेत्रीय तथा देशों के अनुसार रैंकिंग जारी की जाती है।  

नेचर इंडेक्स-2020 में शामिल भारतीय संस्थान:

  • नेचर इंडेक्स-2020 में विभिन्न विश्वविद्यालयों, ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों’ (Indian Institutes of Technology- IITs), ‘भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थानों’ (Indian Institutes of Science Education and Research- IISERs), अनुसंधान संस्थानों तथा प्रयोगशालाओं सहित 30 भारतीय संस्थानों को शामिल किया गया है।
  • सूचकांक में DST के तीन स्वायत संस्थान 'विज्ञान आधारित कृषि के लिये भारतीय संघ' (Indian Association for the Cultivation of Science- IACS), कोलकाता 7वें स्थान पर, ‘जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र’ (Jawaharlal Nehru Centre for Advanced Scientific Research- JNCASR), बंगलौर 14 वें स्थान पर और ‘एस. एन. बोस बुनियादी विज्ञान के लिये राष्ट्रीय केंद्र’ (S. N. Bose National Centre for Basic Sciences), कोलकाता 30 वें स्थान पर हैं।
  • वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो 'वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद' (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR), 160 वें स्थान तथा ‘भारतीय विज्ञान संस्थान’ (Indian Institute of Science- IISc), बंगलौर 184वें स्थान के साथ शीर्ष 500 रैंकिंग में शामिल होने वाले अग्रणी भारतीय संस्थान हैं।

‘नेचर इंडेक्स’ के आधार:

  • नेचर इंडेक्स तैयार करते समय निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया जाता है:  
    • किसी संस्थान द्वारा उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य;
    • संस्थान का विश्व स्तर पर उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान;
    • संस्थान का उच्च गुणवत्ता के अनुसंधान में एक-दूसरे के साथ सहयोग तथा समय के साथ किया जाने वाला बदलाव; 

भारत में शोध की खराब स्थिति का कारण:

  • भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली  पिछले कुछ दशकों से यथास्थिति में बनी हुई है। अध्ययन सामग्री की गुणवत्ता तथा उस तक छात्रों की पहुँच सुनिश्चित करने की दिशा में कोई क्रांतिकारी प्रयास नहीं किये गए हैं।
  • भारत की 1.3 बिलियन आबादी में से वर्ष 2015 में प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 216 शोधकर्त्ता थे। भारत में अनुसंधान पर निवेश सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.62 प्रतिशत है। चीन, सकल घरेलू उत्पाद का 2.11 प्रतिशत से अधिक अनुसंधान पर निवेश करता है तथा प्रति मिलियन जनसंख्या पर 1,200 शोधकर्त्ता हैं।
  • वर्ष 2018 में PhD कार्यक्रमों के नामांकित छात्रों की संख्या 161,412 थी जो देश में उच्च शिक्षा में कुल छात्र नामांकन का 0.5 प्रतिशत से भी कम है।

सरकार द्वारा किये गए प्रयास:

आगे की राह:

  • स्नातक से पूर्व शोध कार्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। क्योंकि इससे छात्र अधिगम, स्नातक शिक्षा में नामांकन, रचनात्मकता, समस्या समाधान  कौशल, बौद्धिक स्वतंत्रता आदि में वृद्धि होती है।
  • शोध कार्यक्रमों की प्रकृति को बहुअनुशासित बनाए जाने की आवश्यकता है। ताकि विषयों का चुनाव, परिसरों तथा बाहरी संगठनों के बीच छात्रों की गतिशीलता की अनुमति मिल सके।
  • विश्वविद्यालयों में अनुसंधान कार्यों को केंद्र में रखा जाना चाहिये तथा शोध प्रकाशन को बढ़ावा देना चाहिये।

निष्कर्ष: 

  • भारत वर्तमान में 'इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस ’, 'स्टडी इन इंडिया’ जैसे कार्यक्रमों के साथ ही एक ‘नई शिक्षा नीति’ तैयार करके वैश्विक स्तर पर शिक्षा में स्थति को सुधारने की दिशा में कार्य कर रहा है। भारत एक समृद्ध ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ वाला देश है, यदि इसका सदुपयोग किया गया तो यह देश को ‘ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था’ बनाने में योगदान कर सकता है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय राजव्यवस्था

आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं: सर्वोच्च न्यायालय

प्रीलिम्स के लिये:

आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में अंतर

मेन्स के लिये:

रिट अधिकारिता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक आरक्षण संबंधी मामले में अनुच्छेद-32 के तहत दायर याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आरक्षण एक मौलिक अधिकार नहीं है।

प्रमुख बिंदु: 

  • याचिका में तमिलनाडु में मेडिकल पाठ्यक्रमों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के अभ्यर्थियों को 50% आरक्षण नहीं देने के केंद्र सरकार के निर्णय को चुनौती दी गई थी। 
  • याचिका में तमिलनाडु के शीर्ष नेताओं द्वारा वर्ष 2020-21 के लिये ‘राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा’ (National Eligibility Cum Entrance Test- NEET) में राज्य के लिये आरक्षित सीटों में से 50% सीटें ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (OBC) हेतु आरक्षित करने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत एक याचिका केवल मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में दायर की जा सकती है।
  • आरक्षण का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। अत: आरक्षण नहीं देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति प्रदान करते हुए याचिका वापस लेने को कहा है।

आरक्षण संबंधी संवैधानिक प्रावधान:

  • यद्यपि भारतीय संविधान के भाग-III के अंतर्गत अनुच्छेद 15 तथा 16 में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को शामिल किया गया हैं।
    • परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने इन अनुच्छेदों की प्रकृति के आधार पर इन्हे मौलिक अधिकार नहीं माना है। इसलिये इन्हें लागू करना राज्य के लिये बाध्यकारी नहीं हैं।
  • आरक्षण की अवधारणा आनुपातिक नहीं, बल्कि पर्याप्त (Not Proportionate but Adequate) प्रतिनिधित्व पर आधारित है, अर्थात् आरक्षण का लाभ जनसंख्या के अनुपात में उपलब्ध कराने की बजाय पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिये है।

विभिन्न वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था:

  • वर्तमान में सार्वजनिक शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों (SC) के लिये 15%, अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये 7.5%, अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) के लिये 27% तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण की व्यवस्था की गई है, यदि उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है ।

रिट की व्यवस्था:

  • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय को देश में न्यायिक व्यवस्था को बनाए रखने, व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा संविधान के संरक्षण का दायित्व प्रदान किया गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 तथा उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत रिट अधिकारिता प्रदान की गई है । 
  • इन अनुच्छेदों के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), प्रतिषेध (Prohibition), उत्प्रेषण ( Certiorari) और अधिकार-प्रच्छा (Quo-Warranto) आदि रिट जारी की जा सकती है।

उच्च न्यायालय में रिट की अनुमति क्यों?

  • उच्चतम न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में ही रिट जारी कर सकता है जबकि उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य मामलों में भी रिट जारी कर सकता है।
  • उच्चतम न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट की सुनवाई से मना नहीं कर सकता जबकि अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय सुनवाई के लिये याचिका स्वीकार करने से मना कर सकता है क्योंकि अनुच्छेद 226 मौलिक अधिकारों का भाग नहीं है। 

निर्णय का महत्त्व:

  • चूँकि सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है अत: आरक्षण के उल्लंघन पर अनुच्छेद 32 के तहत रिट स्वीकार करना अनिवार्य नहीं है।
  • निर्णय के बाद आरक्षण संबंधी मामलों में रिट याचिका सीधे सर्वोच्च न्यायालय के स्थान पर उच्च न्यायालयों में लगानी होगी क्योंकि उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में मौलिक अधिकारों के अलावा अन्य मामले भी शामिल होते हैं। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रथम अनुमानित ‘गौर’ जनसंख्या अभ्यास

प्रीलिम्स के लिये: 

भारतीय गौर के बारे में

मेन्स के लिये:

प्रथम अनुमानित ‘गौर’ जनसंख्या आकलन अभ्यास का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  नीलगिरि वन प्रभाग (Nilgiris Forest Division) द्वारा भारतीय गौर (Gaur) की जनसंख्या का प्रथम अनुमानित अभ्यास ( First Population Estimation Exercise ) किया गया जिसे इस वर्ष फरवरी में आयोजित किया गया था।

Gaur

प्रमुख बिंदु:

  • नीलगिरि वन प्रभाग के अनुमानित आकलन के अनुसार, पूरे मंडल में 2,000 से अधिक भारतीय गौर निवास करते हैं।
  • नीलगिरि वन प्रभाग के आँकड़ों के अनुसार, इस अभ्यास की एक सप्ताह की अवधि में विभाग के कर्मचारियों तथा स्वयंसेवकों द्वारा 794 गौरों को प्रत्यक्ष रूप से देखा गया।
  • नीलगिरि वन प्रभाग के आँकड़ों के अनुसार, प्रति वर्ग किलोमीटर में आठ व्यक्तियों के औसत के साथ मंडल में 2,000 से अधिक भारतीय गौरों की मौजूदगी देखी गई।

भारतीय गौर (Indian Gaur):

  • स्थानिक नाम- गौर (Gaurus))
  • वैज्ञानिक नाम- बोस गोरस (Bos Gaurus)
  • मूल रूप से यह दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया मे पाया जाने वाला एक बड़ा, काले लोम (बालों का आवरण) से ढका गोजातीय पशु है।
  • वर्तमान समय में इसकी सबसे अधिक आबादी भारत में पाई जाती है। 

गौर जनसंख्या अभ्यास की आवश्यकता क्यों?

  • पिछले कुछ वर्षों में नीलगिरि प्रभाग के आसपास के क्षेत्रों जैसे- कुन्नूर, उदगमंडलम, कोटागिरी तथा कुंडाह में अन्य प्रमुख जीवों के साथ-साथ  भारतीय गौर तथा मनुष्यों के बीच टकराव की घटनाएँ सामने आई हैं । 
  • इसके कारण मानवीय निवासों के पास गौर की बढ़ती आबादी के आकलन की आवश्यकता हुई। 
  • वर्ष 2019 में, भारतीय गौर द्वारा तीन लोगों को मारे जाने तथा कई को घायल करने की घटनाएँ देखी गईं थीं।

मानव बस्तियों के पास गौर?

  • आकलन के दौरान देखा गया कि भारतीय गौर की अधिकांश संख्या कुंडाह, कोटागिरी, कुन्नूर तथा कट्टाबेटू के आसपास अधिकांश ऐसे हिस्से में हैं  जहाँ खाने पीने की दुकानें जैसे- चाय, रेस्टोरेंट इत्यादि है। 
  • इसका कारण मानव बस्तियों तथा उनके आस पास भोजन की आसान उपलब्धता, जंगल में शिकारियों से सुरक्षा तथा आरक्षित जंगलों में आक्रामक वनस्पतियों का बढ़ता प्रसार हो सकता है।
  • कुछ ऐसे भी क्षेत्र देखे गए जहाँ भारतीय गौर की आबादी कम थी, जैसे-पकारा तथा नादुवट्टम क्षेत्र क्योंकि इन जगहों का वन क्षेत्र बड़े पैमाने पर आक्रामक वानस्पतिक  प्रजातियों से मुक्त था।

भारतीय गौर की मौत:

  • पिछले एक दशक में उनकी आबादी में लगातार वृद्धि होने के कारण शहरों के भीतर भारतीय गौर को अधिक देखा जा रहा है। 
  •  नीलगिरि वन प्रभाग में हर साल औसतन 60 गौर मर जाते हैं। 
  • इनमें से कई मानव आवास के करीब होने वाली दुर्घटनाओं की शिकार हो जाती हैं।

जनसंख्या अभ्यास का महत्त्व:

  • इस प्रकार के जनसंख्या आकलन से गौरों की वास्तविक संख्या एवं निवास क्षेत्र का पता किया जा सकता है जिसके चलते मानव-गौर के मध्य हिंसक संघर्ष को रोका जा सकता है।
  • गौरों की वास्तविक निवास स्थिति के आधार पर इनका संरक्षण क्षेत्र निर्धारित किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सीमा समायोजन कर

प्रीलिम्स के लिये:

सीमा समायोजन कर 

मेन्स के लिये:

सीमा समायोजन कर से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘नीति आयोग’ (The National Institution for Transforming India-NITI Aayog) के एक सदस्य द्वारा घरेलू उद्योगों को संरक्षण/एक समान स्तर प्रदान करने के लिये आयात पर ‘सीमा समायोजन कर’ (Border Adjustment Tax- BAT) लगाने का समर्थन किया गया है। 

प्रमुख बिंदु:

  • यह सुझाव संयुक्त राज्य अमेरिका तथा चीन के मध्य चल रहे व्यापार तनाव को ध्यान में रखते हुए दिया गया है जिसे देखकर आशंका व्यक्त की जा रही है कि यह व्यापार तनाव COVID-19 महामारी के बाद भी जारी रह सकता है।
  • ‘सीमा समायोजन कर’ एक ऐसा कर है जो बाहर से आयातित सामान पर बंदरगाह पर  लेवी शुल्क के अलावा लगाया जाता है।
  • यह एक राजकोषीय उपाय है जिसे ‘कर के गंतव्य सिद्धांत’ (Destination Principle of Taxation) के अनुसार वस्तुओं या सेवाओं पर लगाया जाता है।
    • इस सिद्धांत के अनुसार, सरकारी कर उत्पादों को, अंतिम उपभोक्ता के लिये उनके उत्पादन या उत्पत्ति के स्थान के बजाय उनकी बिक्री के स्थान के आधार पर तैयार किया जाता है।
  • इस प्रकार, इस कर के माध्यम से एक देश के व्यापार को एक निश्चित ‘कर सीमा पर’ (At The Border) समायोजित करने के लिये-
    • आयातित उत्पादों और घरेलू स्तर पर उत्पादित उत्पादों को उसी आधार पर और उसी दर पर बेचा जाता है।
    • विदेशी उपभोक्ताओं को निर्यात किये गए उत्पादों पर कर से छूट दी जाती है।
  • सामान्यत: यह कर अपने क्षेत्राधिकार के भीतर उत्पादों या सेवाओं की आपूर्ति करने वाली विदेशी और घरेलू कंपनियों के लिये ‘प्रतिस्पर्धा की समान स्थिति’ (Equal Conditions of Competition) को बढ़ावा देता है।
  • विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों एवं मुख्य शर्तों के तहत  कुछ विशेष प्रकार के आंतरिक करों के समायोजन की अनुमति हैं। ये शर्तें इस प्रकार हैं-
    • घरेलू उत्पाद के समान ही आयात पर भी कर समान रूप से लागू होना चाहिये।
    • कर उत्पाद पर लिया जाना चाहिये और यह ‘प्रत्यक्ष’ नहीं होना चाहिये ।
    • ‘अनुमत सीमा कर समायोजन’ को निर्यात पर सब्सिडी नहीं देनी चाहिये ।

‘सीमा समायोजन कर’ का व्यापारिक भागीदारों पर पड़ने वाला  प्रभाव:

  • वृहद स्तर पर, आयात कम होने और निर्यात बढ़ने के साथ, एक देश अपने व्यापार घाटे में कटौती कर सकता है।
    • यदि कोई देश कई अन्य विकासशील देशों के लिये एक प्रमुख निर्यात बाज़ार है, तो कर योजना के कार्यान्वयन के कारण उन पर गंभीर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
    • मूल्य वृद्धि को बढ़ावा देने के लिये घरेलू सामानों पर बिजली शुल्क, मंडी कर, स्वच्छ ऊर्जा उपकर और रॉयल्टी जैसे विभिन्न करों को लगाया जाता है। इसके कारण भारत में आयातित वस्तुओं को मूल्य लाभ (Price Advantage) प्राप्त होता है।
  • भारतीय उद्योगों द्वारा हमेशा ऐसे घरेलू करों के बारे में शिकायतें की जाती रही हैं जो घरेलू रूप से उत्पादित वस्तुओं पर वसूल किये जाते हैं क्योंकि ये कर उत्पाद में अंतर्निहित होते हैं।
  • कई प्रकार के आयातित सामान अपने मूल देश में इस तरह की लेवी के साथ लोड नहीं किये जाते हैं जिससे भारत में ऐसे उत्पादों को मूल्य लाभ मिलता है।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 जून, 2020

हींग और केसर उत्पादन में बढ़ोतरी हेतु समझौता

भारत में केसर और हींग का उत्पादन बढ़ाने के लिये हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित ‘हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Institute of Himalayan Bioresource Technology-IHBT) और हिमाचल प्रदेश के ‘कृषि विभाग’ के मध्य साझेदारी की गई है। इस साझेदारी के तहत ‘हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान (IHBT) किसानों को तकनीकी जानकारी मुहैया कराने के साथ-साथ राज्य कृषि विभाग के अधिकारियों एवं किसानों को प्रशिक्षित भी करेगा। उल्लेखनीय है कि केसर और हींग को विश्व के सबसे मूल्यवान मसालों में गिना जाता है। भारत में सदियों से हींग और केसर का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है, किंतु इसके बावजूद देश में इन दोनों ही मसालों का उत्पादन काफी सीमित है। भारत में, केसर की वार्षिक माँग करीब 100 टन है, किंतु हमारे देश में इसका औसत उत्पादन लगभग 6-7 टन ही संभव हो पाता है, जिसके कारण प्रत्येक वर्ष बड़ी मात्रा में केसर का आयात करना पड़ता है। इसी प्रकार, भारत में हींग उत्पादन भी काफी सीमित है, किंतु इसके बावजूद भारत में प्रत्येक वर्ष विश्व में हींग के कुल उत्पादन के 40 प्रतिशत की खपत होती है, भारत अपनी इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये प्रत्येक वर्ष लगभग 600 करोड़ रुपए मूल्य की तकरीबन 1200 मीट्रिक टन कच्ची हींग अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आयात करता है। इस साझेदारी के माध्यम से भारत की आयात निर्भरता में कमी की जा सकेगी। साथ ही यह हिमाचल प्रदेश में कृषि आय बढ़ाने, आजीविका में वृद्धि तथा ग्रामीण विकास के उद्देश्य को पूरा करने में सहायक सिद्ध होगी।

विश्व बाल श्रम निषेध दिवस

प्रत्येक वर्ष 12 जून को बाल श्रम जैसी क्रूर और बर्बर प्रथा को रेखांकित करने और आम लोगों में इसके विरुद्ध जागरुकता पैदा करने के लिये विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour) का आयोजन किया जाता है। वर्ष 2020 के लिये इस दिवस का थीम है: ‘COVID-19- प्रोटेक्ट चिल्ड्रेन फ्रॉम चाइल्ड लेबर, नाओ मोर देन एवर!’ (Covid-19: Protect Children from Child Labour, Now More Than Ever!)। इस दिवस की शुरुआत वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) द्वारा वैश्विक स्तर पर बाल श्रम को समाप्त करने के प्रयासों की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित के उद्देश्य से की गई थी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020 के लिये विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का थीम बाल श्रम पर मौजूदा महामारी के प्रभाव को रेखांकित करती है। ध्यातव्य है कि कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण लाखों लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है, जिसमें छोटे बच्चे भी शामिल हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, विश्व स्तर पर लगभग 152 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जो बाल श्रम में लगे हुए हैं, जिनमें से 72 मिलियन बच्चों की कार्य स्थिति काफी चिंताजनक है। 

डॉ. रतन लाल

प्रख्यात भारतीय मूल के अमेरिकी मृदा वैज्ञानिक डॉ. रतन लाल (Dr Rattan Lal) को कृषि क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के समान माने जाने वाले प्रतिष्ठित 'विश्व खाद्य पुरस्कार' के लिये चुना गया है। डॉ. रतन लाल को यह सम्मान मृदा केंद्रित दृष्टिकोण रखते हुए खाद्य उत्पादन बढ़ाने के उपाय विकसित करने हेतु दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि डॉ. रतन लाल द्वारा विकसित उपायों के माध्यम से न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण संभव हो पाया है, बल्कि इनसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी कम किया जा सका है। डॉ. रतन लाल द्वारा विकसित तकनीक से विश्व भर के करोड़ों किसानों को लाभ हुआ है, डॉ. रतन लाल वर्तमान में ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी (Ohio State University) में प्रोफेसर के तौर पर कार्यरत हैं। गौरतलब है कि डॉ. रतन लाल ने कृषि भूमि को ऊर्वर बनाए रखने की नई तकनीक को बढ़ावा देने के लिये लगभग चार महाद्वीपों में पचास वर्ष से भी अधिक समय तक कार्य किया है। विश्व खाद्य पुरस्कार (World Food Prize) एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार है जो कि विश्व में भोजन की गुणवत्ता, मात्रा या उपलब्धता में सुधार करके मानव विकास को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति को प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार के तहत विजेता को 2, 50,000 अमेरिकी डॉलर की राशि प्रदान की जाती है।

संयुक्त साइंस कम्युनिकेशन फोरम

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology-DST) ने सार्वजनिक क्षेत्र की विज्ञान संचार संस्थानों और एजेंसियों के बीच आपसी बातचीत, सहयोग और समन्वय को सुविधाजनक बनाने के लिये एक ‘जॉइंट साइंस कम्युनिकेशन फोरम’ (Joint Science Communication Forum) का गठन किया है। यह फोरम विभिन्न संस्थानों के विज्ञान संचार प्रयासों को एक साथ लाएगा और व्यापक स्तर पर एक आम नीति तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने में मदद करेगा। इसका लक्ष्य एक राष्ट्रीय विज्ञान संचार की रूपरेखा तैयार करना है। फोरम में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के अलावा कृषि, स्वास्थ्य, संस्कृति, रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और सूचना और प्रसारण समेत विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत में विज्ञान संचार के लिये एक मज़बूत संगठनात्मक संरचना मौजूद है। देश में कम-से-कम पाँच राष्ट्रीय संगठन, विज्ञान संचार के विकास के लिये कार्य कर रहे हैं।


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