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डेली न्यूज़

  • 11 Nov, 2023
  • 27 min read
शासन व्यवस्था

चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी ट्रस्ट योजना, चुनावी बॉण्ड, राजनीतिक दल, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

चुनाव प्रक्रिया पर चुनावी बॉण्ड का प्रभाव, नीति निर्माण एवं कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की चुनावी बॉण्ड योजना को चुनौती पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

चुनावी ट्रस्ट योजना क्या है?

  • परिचय: 
    • चुनावी ट्रस्ट योजना, 2013 को केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) द्वारा अधिसूचित किया गया था।
    • चुनावी ट्रस्ट कंपनियों द्वारा स्थापित एक ट्रस्ट है जिसका एकमात्र उद्देश्य अन्य कंपनियों और व्यक्तियों से प्राप्त योगदान को राजनीतिक दलों में वितरित करना है।
    • सिर्फ कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 25 के तहत पंजीकृत कंपनियाँ ही चुनावी ट्रस्ट के रूप में अनुमोदन के लिये आवेदन करने हेतु पात्र हैं। चुनावी ट्रस्टों को हर तीन वित्तीय वर्ष में नवीनीकरण के लिये आवेदन करना होता है।
    • यह योजना एक चुनावी ट्रस्ट को मंजूरी देने की प्रक्रिया तय करती है जो स्वैच्छिक योगदान प्राप्त करेगा और उसे राजनीतिक दलों में वितरित करेगा।
    • चुनावी ट्रस्ट से संबंधित प्रावधान आयकर अधिनियम, 1961 और आयकर नियम-1962 के तहत हैं।
  • चुनावी ट्रस्ट में योगदान: 
    • वे इनसे योगदान प्राप्त कर सकते हैं:
      • एक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है।
      • भारत में पंजीकृत एक कंपनी।
      • भारत में निवासी एक फर्म या हिंदू अविभाजित परिवार या व्यक्तियों का एक संघ या व्यक्तियों का एक निकाय।
    • वे इनसे योगदान स्वीकार नहीं करेंगे:
      • एक व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है या किसी विदेशी संस्था से है चाहे वह निगमित हो या नहीं;
      • योजना के तहत पंजीकृत कोई अन्य चुनावी ट्रस्ट।
  • धन के वितरण के लिये तंत्र: 
    • प्रशासनिक खर्चों के लिये चुनावी ट्रस्टों को एक वित्तीय वर्ष के दौरान एकत्र किये गए कुल धन का अधिकतम 5% अलग रखने की अनुमति है।
      • ट्रस्टों की कुल आय का शेष 95% पात्र राजनीतिक दलों को वितरित किया जाना आवश्यक है।
    • चुनावी ट्रस्ट को प्राप्तियों, वितरण और दाताओं तथा प्राप्तकर्त्ताओं की सूची के विवरण सहित खाते बनाए रखने की आवश्यकता होती है।
  • चुनावी ट्रस्टों के खातों की लेखापरीक्षा:
    • प्रत्येक चुनावी ट्रस्ट को अपने खातों का लेखाकार द्वारा लेखापरीक्षा करवाना और लेखापरीक्षा रिपोर्ट आयकर आयुक्त या आयकर निदेशक को प्रस्तुत करना आवश्यक है।

चुनावी बॉण्ड क्या हैं?

  • चुनावी बॉण्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय साधन है।
  • बॉण्ड 1 हज़ार रुपए, 10 हज़ार रुपए, 1 लाख रुपए, 10 लाख रुपए और 1 करोड़ रुपए के गुणकों में बिना किसी अधिकतम सीमा के जारी किये जाते हैं। 
  • भारतीय स्टेट बैंक इन बॉण्डों को जारी करने और नकदीकरण के लिये अधिकृत है, जो जारी होने की तारीख से पंद्रह दिनों के लिये वैध हैं।
  • ये बॉण्ड पंजीकृत राजनीतिक दल के निर्दिष्ट खाते में नकदीकृत किये जा सकते हैं।
  • बॉण्ड केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर के महीनों में प्रत्येक में दस दिनों की अवधि के लिये किसी भी व्यक्ति (जो भारत का नागरिक है या भारत में निगमित या स्थापित है) द्वारा खरीद के लिये उपलब्ध हैं।
  • एक व्यक्ति व्यक्तिगत या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बॉण्ड खरीद सकता है।
  • बॉण्ड पर प्रदाता का नाम अंकित नहीं होता है।

चुनावी ट्रस्ट योजना चुनावी बॉण्ड योजना से किस प्रकार भिन्न है?

  • पारदर्शिता और जवाबदेही:
    • ET की कार्यप्रणाली को पारदर्शिता के कारण ही पहचान मिली है, क्योंकि इसके अंतर्गत योगदानकर्त्ताओं और लाभार्थियों की पहचान का खुलासा किया जाता है।
      • चुनावी ट्रस्ट योजना के अंतर्गत एक सुदृढ़ रिपोर्टिंग प्रणाली का पालन किया जाता है जिसकी विस्तृत वार्षिक योगदान रिपोर्ट भारतीय निर्चाचन आयोग (ECI) को प्रस्तुत की जाती है। यह कार्यप्रणाली अनुदान और उनके आवंटन का व्यापक रिकॉर्ड सुनिश्चित करती है।
    • वहीं दूसरी ओर, EB योजना में पारदर्शिता की कमी देखने को मिलती है।
      • दानदाताओं की पहचान के अभाव के कारण वित्तपोषण की प्रक्रिया में एक अपारदर्शी वातावरण का निर्माण होता है, जिससे प्राप्त योगदान के स्रोत का पता लगाना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • फंडिंग रुझान (2013-14 से 2021-22):
    • नौ वित्तीय वर्षों (2013-14 से 2021-22) के आंकड़ों से पता चलता है कि EB की शुरुआत के बाद दो सरकारी योजनाओं के माध्यम से राजनीतिक फंडिंग बढ़ गई, जिसमें बड़ी मात्रा में डोनेशन EB योजना के माध्यम से आया।
      • वर्ष 2017-18 और 2021-22 के बीच राजनीतिक दलों को ET के जरिये कुल 1,631 करोड़ रुपए मिले, जबकि EB के जरिये उन्होनें कुल 9,208 करोड़ रुपए का चंदा एकत्रित किया।
  • राजनीतिक दल की रसीदें:
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक एकल राजनीतिक दल ने वर्ष 2021-22 में ET द्वारा दिये गए कुल दान का 72% और वर्ष 2013-14 से वर्ष 2021-22 तक EB के माध्यम से 57% फंडिंग हासिल की है।
    • रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि राजनीतिक दलों को 55% से अधिक फंडिंग EB के माध्यम से आती है।

और पढ़ें… चुनावी बॉण्ड मामला


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रोजेक्ट चीता का एक वर्ष

जैवप्रिलिम्स के लिये:

भारत में चीतों की पुनःवापसी योजना, कुनो-पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP), CITES

मेंस के लिये:

भारत में चीते के स्थानान्तरण से जुड़ी चुनौतियाँ, जैव-विविधता का महत्त्व, आनुवंशिक, प्रजातियाँ, पारिस्थितिकी तंत्र।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

प्रोजेक्ट चीता, भारतीय वनों में अफ्रीकी चीतों की पुनःवापसी का भारत का एक महत्त्वाकांक्षी प्रयास है जो कि सितंबर 2022 में आरंभ किया गया था, एक वर्ष पूर्ण कर चुका है। 

  • परियोजना के अंतर्गत चार मामलों में अल्पकालिक सफलता हासिल करने का दावा किया है: जिसमें  "दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से लाए गए चीतों में से 50% जीवित रहना, होम रेंजों की स्थापना, कुनो में शावकों का जन्म" एवं स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व सृजन।

प्रोजेक्ट चीता के प्रथम वर्ष के व्यापक परिणाम: 

  • वनों में इनका अस्तित्व: 
    • चीता पुनः वापसी परियोजना के अनुसार, चीते, जो जंगल में कुल 142 महीनों के लिये लाये गए थे, ने संयुक्त रूप से 27 महीने से भी कम समय बिताया।
    • धात्री, साशा, सूरज, उदय, दक्ष और तेजस उन छह चीतों में से थे, जो कार्यात्मक वयस्क आबादी में परियोजना की 40% की गिरावट के परिणामस्वरूप मारे गए थे।
      • इसके अतिरिक्त, भारत में चार शावकों का जन्म हुआ जिनमें से तीन की मृत्यु हो गई और चौथे को कैद करके पाला जा रहा है।
  • होम रेंज की स्थापना:
    • इसका लक्ष्य चीतों के लिये कूनो में घरेलू क्षेत्र स्थापित करना था।
      • नामीबिया से आयातित केवल तीन चीते- आशा, गौरव और शौर्य - जंगल में तीन महीने से अधिक समय तक जीवित रहने में सक्षम थे। लेकिन जुलाई 2023 के बाद वे बोमा या बाड़ों तक ही सीमित रहे।
    • जिस कारण कूनो नेशनल पार्क में "होम रेंज" की सफल स्थापना के बारे में संदेह है।
  • प्रजनन सफलता:
    • कार्य योजना का उद्देश्य जंगल में चीतों का सफल प्रजनन कराना है।
      • नामीबियाई मादा सियाया उर्फ ज्वाला ने कूनो में चार शावकों को जन्म दिया। हालाँकि उसे बंदी बनाकर पाला गया तथा जंगल के लिये अयोग्य माना गया। उसके शावक एक  बोमा (इसमें वी आकार की बाड़ के माध्यम से जानवरों का पीछा करके उन्हें एक बाड़े में कैद किया जाता है) में ही जन्मे थे।
    • प्रजनन लक्ष्य को चुनौतियों तथा समझौतों का सामना करना पड़ता है, जिससे परियोजना की दीर्घकालिक सफलता पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
  • स्थानीय आजीविका में योगदान:
    • कुनो क्षेत्र में अनुबंधों, नौकरियों का निर्माण तथा भूमि मूल्यों में वृद्धि, ये सभी प्रोजेक्ट चीता के लाभकारी प्रभाव थे।
      • क्षेत्र में मानव-चीता संघर्ष की कोई सूचना नहीं है, जो कि यहाँ आए चीतों और स्थानीय समुदायों के बीच सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व समन्वय का संकेत देता है।

प्रोजेक्ट चीता को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

  • सत्यनिष्ठा चुनौतियाँ:
    • तीन नामीबियाई चीते, साशा (परियोजना की पहली दुर्घटना से ग्रस्त), ज्वाला, और सवाना उर्फ नाभा को परियोजना की अखंडता से समझौता करते हुये "अनुसंधान विषयों" के रूप में बंदी बनाकर रखा गया था।
  • दृष्टिकोण में बदलाव:
  • अग्रिम प्रतिमान में बदलाव:
    • आनुवंशिक रूप से चीतों की आत्मनिर्भर जनसंख्या का समर्थन करने में कुनो की असमर्थता के कारण वृहद-जनसंख्या दृष्टिकोण के लिये एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता होती है।
      • वृहद -जनसंख्या दृष्टिकोण में खंडित आवासों में एक प्रजाति की अलग-अलग आबादी का प्रबंधन करना, दीर्घकालिक व्यवहार्यता और आनुवंशिक विविधता के लिये उनकी परस्पर निर्भरता को स्वीकार करना शामिल है।
    • तेंदुओं के विपरीत, चीते अपनी विरल जनसंख्या के कारण अकेले लंबी दूरी तय नहीं कर सकते हैं।
    • आनुवंशिक व्यवहार्यता के लिये आवधिक स्थानांतरण के दक्षिण अफ़्रीकी मॉडल को अनुकूलित करने का सुझाव दिया गया है, लेकिन प्राकृतिक वन्यजीव फैलाव के कारण वन कनेक्टिविटी पर प्रभाव के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
  • कुनो की वहन क्षमता:
    • चीता एक्शन प्लान में 50 से अधिक एकल जीवों की संख्या के साथ दीर्घकालिक अस्तित्व की उच्च संभावना का अनुमान लगाया गया है।
      • वर्ष 2010 में एक व्यवहार्यता रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि कुनो के 347 वर्ग किमी. क्षेत्रफल में अधिकतम 27 चीतों को रखा जा सकता है, जबकि 3,000 वर्ग किमी. के बड़े परिदृश्य में 70-100 चीतों को रखा जा सकता है।
      • वर्ष 2020 में संशोधित आकलन से संकेत मिलता है कि कुनो में चीतल(मृगों) का घनत्व 38 प्रति वर्ग किमी. है, जो 21 चीतों का निवास स्थल है और 50 चीतों की एकल संख्या की व्यवहार्यता के लिये चुनौतीपूर्ण है।
    • परियोजना का एकमात्र विकल्प अब मध्य और पश्चिमी भारत में वितरित हुई मेटा-जनसंख्या है, जो सहायता प्राप्त वितरण के दक्षिण अफ्रीकी मॉडल की तुलना में अधिक चुनौतियाँ पेश कर रही है।

चीता पुनः वापसी परियोजना क्या है?

  • भारत में चीता पुनः वापसी परियोजना औपचारिक रूप से 17 सितंबर, 2022 को प्रारंभ हुई, जिसका उद्देश्य देश में चीतों की आबादी को बहाल करना था, जिन्हें वर्ष 1952 में देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था।
  • इस परियोजना में दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों का स्थानांतरण शामिल है।
  • यह परियोजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) तथा नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित की गई है।

नोट:

  • थल के सबसे तेज़ जंतु चीता को "क्रिपसकुलर" शिकारी माना जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सूर्योदय और सूर्यास्त के समय शिकार करते हैं।
  • मादा चीता की गर्भधारण अवधि 92-95 दिनों की होती है तथा ये लगभग 3- 5 शावकों को जन्म देती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2012)

  1. काली गर्दन वाला सारस (कृष्णाग्रीव सारस) 
  2. चीता
  3. उड़न गिलहरी (कंदली)
  4. हिम तेंदुआ

उपर्युक्त में से कौन-से भारत में प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत की ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता, 2017

प्रिलिम्स के लिये:

भारत की ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता, 2017, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA), विश्व ऊर्जा आउटलुक 2023,  IEA के साथ रणनीतिक साझेदारी समझौता, IEA स्वच्छ कोयला केंद्र।

मेन्स के लिये:

भारत की ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता, 2017, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप एवं नीति निर्माण तथा कार्यान्वयन से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) ने अपनी रिपोर्ट विश्व ऊर्जा आउटलुक 2023 में इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत की ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC), 2017 इसे अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से अलग करती है।

  • IEA ने कहा कि भारत विकासशील देशों में अद्वितीय है क्योंकि व्यावसायिक इमारतों में ऊर्जा दक्षता के लिये इसके नियम मज़बूत हैं, जबकि कई अन्य विकासशील देशों में इमारतों में ऊर्जा दक्षता भारत जितनी उन्नत नहीं है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी: 

  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है जिसकी स्थापना वर्ष 1974 में पेरिस, फ्राँस में की गई थी।
  • IEA मुख्य रूप से अपनी ऊर्जा नीतियों पर ध्यान केंद्रित करता है जिसमें आर्थिक विकास, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण शामिल है। इन नीतियों को IEA के 3 E के रूप में भी जाना जाता है।
  • भारत मार्च 2017 में IEA का सहयोगी सदस्य बना, लेकिन संगठन के साथ जुड़ने से बहुत पहले से ही यह IEA के साथ जुड़ा हुआ था।
  •  विश्व ऊर्जा आउटलुक रिपोर्ट IEA द्वारा प्रतिवर्ष जारी की जाती है।
  • IEA स्वच्छ कोयला केंद्र स्वतंत्र जानकारी और विश्लेषण प्रदान करने के लिये समर्पित है कि कैसे कोयला, संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप ऊर्जा का एक स्वच्छ स्रोत बन सकता है।

भारत की ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता (ECBC), 2017: 

  • परिचय:
    • ECBC को पहली बार वर्ष 2007 में विद्युत मंत्रालय के ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) द्वारा जारी किया गया था, इसके बाद वर्ष 2017 में इसे अद्यतित किया गया।
      • वर्तमान में 23 राज्यों ने ECBC अनुपालन को लागू करने के लिये नियमों को अधिसूचित किया है, जबकि महाराष्ट्र और गुजरात जैसे बड़े राज्य अभी भी नियमों का प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया में हैं।
    • ECBC वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करती है, जिसका उद्देश्य अनुपालन भवनों में 25 से 50% के बीच ऊर्जा बचत को सक्षम करना है।
    • यह संहिता अस्पतालों, होटलों, स्कूलों, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और मल्टीप्लेक्स जैसी व्यावसायिक इमारतों पर लागू होती है, जिनका कनेक्टेड लोड 100 किलोवाट या उससे अधिक है या अनुबंध की मांग 120 kVA या उससे अधिक है।
  • उद्देश्य:
    • भारत में ECBC भवन डिज़ाइन के छह प्रमुख घटकों पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें आवरण (दीवारें, छत, खिड़कियाँ), प्रकाश व्यवस्था, HVAC (हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग) सिस्टम एवं विद्युत ऊर्जा प्रणाली शामिल हैं।
    • इन घटकों की अनिवार्य और निर्देशात्मक दोनों आवश्यकताएँ हैं। यह संहिता नए निर्माणों तथा मौजूदा इमारतों की रेट्रोफिटिंग दोनों पर लागू होती है।
    • अनुपालन वाली इमारतों को दक्षता के आरोही क्रम में तीन टैगों अर्थात् ECBC, ECBC प्लस और सुपर ECBC में से एक दिया जाता है।
  • ECBC की आवश्यकता: 
    • ECBC जैसे ऊर्जा दक्षता निर्माण संहिता का कार्यान्वयन महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत में इमारतों में कुल विद्युत खपत का 30% हिस्सा है, यह आँकड़ा वर्ष 2042 तक 50% तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • इसके अलावा BEE के अनुसार, अगले बीस वर्षों में मौजूदा 40% इमारतों का निर्माण होना बाकी है, जो नीति निर्माताओं और बिल्डरों को यह सुनिश्चित करने का एक बेहतर अवसर देता है कि ये संधारणीय तरीके से बनाई जाएँ
  • 2007 से 2017 तक की विकास यात्रा:
    • ECBC का वर्ष 2017 का अपडेट अतिरिक्त प्राथमिकताओं के संदर्भ में सूचित करता है, जैसे: नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण, अनुपालन में आसानी और निष्क्रिय भवन डिज़ाइन रणनीतियों का समावेश
    • यह डिज़ाइनरों के लिये लचीलेपन पर भी ज़ोर देता है। यह वर्ष 2007 के संस्करण से एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है और संधारणीय तथा ऊर्जा-कुशल प्रथाओं की दिशा में वैश्विक रुझानों के अनुरूप है।

ECBC के राज्य कार्यान्वयन की स्थिति क्या है?

  • 28 राज्यों में से उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा केरल सहित केवल 15 राज्यों द्वारा नवीनतम 2017 (ECBC) नियमों को अपनाया गया है।
  • हालाँकि गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख और मणिपुर ने अभी तक इन नियमों को लागू नहीं किया है, जिससे संभावित ऊर्जा बचत नहीं हो पा रही है।
    • राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम का अनुमान है कि स्वयं गुजरात ECBC के प्रभावी अनुपालन करके वर्ष 2030 तक 83 टेरावाट-घंटे ऊर्जा बचा सकता है।
  • दूसरी ओर बिहार ने सबसे कम स्कोर किया तथा ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु व झारखंड को इमारतों में ऊर्जा दक्षता के मामले में पाँच सबसे निम्न राज्यों में शामिल किया।
    • राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक (SEEI), 2022 में कर्नाटक राज्य को इमारतों में ऊर्जा दक्षता के लिये शीर्ष राज्य के रूप में स्थान दिया गया, इसके बाद तेलंगाना, हरियाणा, आंध्र प्रदेश एवं पंजाब का स्थान है।

ऊर्जा संरक्षण और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल: 

  • PAT योजना:
    • परफॉर्म अचीव एंड ट्रेड स्कीम (PAT) ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा दक्षता में सुधार करने में लागत प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये एक बाज़ार आधारित तंत्र है जिसका व्यापार में उपयोग किया जा सकता है।
    • यह राष्ट्रीय उन्नत ऊर्जा दक्षता मिशन (NMEEE) का एक हिस्सा है, जो जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है।
  • मानक और अंकन:
    • यह योजना वर्ष 2006 में शुरू की गई थी और वर्तमान में इसे संसाधनों/उपकरणों रूम एयर कंडीशनर, सीलिंग फैन, रंगीन टेलीविज़न, कंप्यूटर, डायरेक्ट कूल रेफ्रिजरेटर, वितरण ट्रांसफार्मर, घरेलू गैस स्टोव, सामान्य प्रयोजन औद्योगिक मोटर, LED लैंप और कृषि पंपसेट आदि के लिये कार्यान्वित किया गया है।
  • मांग पक्ष प्रबंधन (DSM):
    • DSM विद्युत मीटर की मांग या ग्राहक-पक्ष पर प्रभाव डालने के उद्देश्य से उपायों का चयन, योजना और कार्यान्वयन है।

आगे की राह

  • IEA का मानना है कि भारत उन कुछ विकासशील देशों में शामिल है, जिनके पास वाणिज्यिक और आवासीय इमारतों के लिये भवन संहिता हैं तथा इससे समान कार्यान्वयन क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण ऊर्जा की बचत हो सकती है।
  • भारत ने 2022 में ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम भी पारित किया, जो देश में बिल्डिंग संहिता के दायरे को और विस्तारित करता है।
    • ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2022 अंतर्निहित कार्बन, शुद्ध शून्य उत्सर्जन, सामग्री और संसाधन दक्षता, स्वच्छ ऊर्जा की तैनाती एवं परिपत्र से संबंधित उपायों को शामिल करके ECBC को ऊर्जा संरक्षण एवं भवन संहिता में परिवर्तित करने का प्रावधान करता है।

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