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डेली न्यूज़

  • 11 Apr, 2020
  • 61 min read
शासन व्यवस्था

जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव

प्रीलिम्स के लिये

दरबार मूव प्रक्रिया

मेन्स के लिये

प्रसाशनिक प्रक्रियाओं पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

144 वर्षों में पहली बार जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मौजूदा COVID-19 महामारी के मद्देनज़र प्रदेश में जम्मू से श्रीनगर में राजधानी के वार्षिक हस्तांतरण को रोकने का निर्णय लिया है।

प्रमुख बिंदु

  • ध्यातव्य है कि लगभग 148 वर्ष पहले शुरू हुई राजधानी हस्तांतरण की इस प्रक्रिया को ‘दरबार मूव’ (Darbar move) के नाम से जाना जाता है।
  • जम्मू में सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी आदेश के अनुसार, COVID-19 महामारी के मद्देनज़र जम्मू में सिविल सचिवालय कार्यशील रहेगा और ‘दरबार मूव’ के तहत आने वाले कर्मचारी ‘जैसा है, जहाँ है’ (As is Where is) आधार पर कार्य करेंगे।
    • इस प्रकार कश्मीर आधारित कर्मचारियों को कश्मीर में रहकर कार्य करने और जम्मू आधारित कर्मचारियों को जम्मू में कार्य करने की अनुमति मिलेगी।
  • इसके अलावा श्रीनगर नगर निगम (Srinagar Municipal Corporation-SMC) को श्रीनगर में सिविल सचिवालय में व्यापक स्वच्छता अभियान चलाने के लिये निर्देश दिया गया है, जहाँ 4 मई को 6 महीने पश्चात् कार्यालय खुलेंगे।

‘दरबार मूव’ (Darbar move)

  • जम्मू-कश्मीर में राजधानी हस्तांतरण अथवा ‘दरबार मूव’ की प्रक्रिया तकरीबन 148 वर्ष पुरानी है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1872 में डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह (1856 से 1885 तक) द्वारा बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य से की गई थी।
  • डोगरा शासक महाराजा रणबीर सिंह द्वारा शुरू की गई इस प्रथा के अनुसार, महाराजा का दरबार 6 महीनों के लिये श्रीनगर में लगता था और 6 महीनों के लिये जम्मू में।
    • इतिहासकारों के अनुसार, महाराजा का काफिला अप्रैल माह में श्रीनगर के लिये रवाना हो जाता था और अक्तूबर में उसकी वापसी होती थी।
  • डोगरा शासकों ने वर्ष 1947 तक इस प्रथा को जारी रखा और वर्ष 1947 के पश्चात् दरबार के स्थान पर राजधानी के हस्तांतरण की प्रथा शुरू हो गई। 
  • उल्लेखनीय है कि इस राजधानी हस्तांतरण की प्रक्रिया को लेकर समय-समय पर कई संगठनों द्वारा आपत्ति जताते हुए यह मांग की गई है कि दोनों ही राजधानियों (श्रीनगर और जम्मू) में सचिवालय का कार्य पूरे वर्ष चलता रहे, केवल वरिष्ठ अधिकारी ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित हों। 
    • प्रत्येक 6 माह में सभी दस्तावेज़ स्थानांतरित न किये जाएँ, इससे हस्तांतरण पर आने वाले खर्च को कम किया जा सकेगा। वर्तमान में वर्ष में 2 बार ‘दरबार मूव’ की प्रकिया पर लगभग 600 करोड़ रुपए का खर्च आता है।
  • हालाँकि इस प्रथा के समर्थकों का मत है कि यह प्रथा जम्मू और कश्मीर के मध्य संस्कृति के समन्वय हेतु एक सेतु के रूप में कार्य करता है।

COVID-19 और जम्मू-कश्मीर

  • COVID-19 वायरस मौजूदा समय में भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बना हुआ है। अब यह वायरस संपूर्ण विश्व में फैल गया है।
  • WHO के अनुसार, COVID-19 में CO का तात्पर्य कोरोना से है, जबकि VI विषाणु को, D बीमारी को तथा संख्या 19 वर्ष 2019 (बीमारी के पता चलने का वर्ष ) को चिह्नित करता है।
  • दुनिया भर में इस वायरस के कारण अब तक 1 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और तकरीबन 16 लाख लोग इसकी चपेट में हैं। भारत में भी स्थिति काफी गंभीर है और इस खतरनाक वायरस के कारण अब तक देश में 239 लोगों की मृत्यु हो चुकी है तथा देश में 7400 से अधिक लोग इसकी चपेट में हैं।
  • जम्मू-कश्मीर में कोरोनावायरस (COVID-19) संक्रमण के कुल 207 मामले सामने आए हैं, जिसमें से 197 अभी भी सक्रिय (Active) हैं और 4 लोगों की मृत्यु हो चुकी है, वहीं शेष लोग अब ठीक हो चुके हैं।
  • जम्मू-कश्मीर के नए मामलों में तबलीगी जमात (Tabligi Jamaat) के भी कुछ मामले शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

जनजातियों हेतु जागरूकता अभियान

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ, COVID-19, गैर-काष्ठ वन उत्पाद

मेन्स के लिये:

जनजातीयों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India-TRIFED) ने COVID-19 से निपटने हेतु आभासी प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु:

  • इस आभासी प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ( United Nations Children’s Fund-UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने भागीदारी की।
  • TRIFED के सदस्यों और स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHGs) से जुड़े लोगों को वेबिनार (Webinar) प्लेटफार्म के माध्यम से COVID-19 से बचाव हेतु आभासी प्रशिक्षण दिया गया, जैसे-
    • समुदाय को सामाजिक दूरी (Social Distancing) के बारे में जागरूक करना।
    • गैर-काष्ठ वन उत्पाद (Non Timber Forest Produce-NTFP) को एकत्र करते समय क्या करें तथा क्या न करें।
    • व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखने, कैशलेस प्रणाली को अपनाने इत्यादि के बारे में जागरूक करना। 

वेबिनार (Webinar):

वेबिनार एक ऐसा सॉफ्टवेयर है, जिसकी मदद से इंटरनेट पर संगोष्ठियाँ/सेमिनार, प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा सकते हैं या उनमें भाग लिया जा सकता है।

  • उल्लेखनीय है कि TRIFED ने आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन के #iStandWithHumanity पहल के घटक स्टैंड विथ ट्राइबल फैमिली (Stand With Tribal Families) के साथ जुड़ने के लिये फाउंडेशन से संपर्क किया है।
    • स्टैंड विथ ट्राइबल फैमिली, जनजाति समुदायों के लिये भोजन और राशन प्रदान करेगा। 

प्रशिक्षण के उद्देश्य:

  • 27 राज्यों में जनजाति क्षेत्रों को शामिल करते हुये 18,000 से अधिक प्रतिभागियों तक पहुँच स्थापित करना।
  • जनजातीयों और उनकी अर्थव्यवस्था को सुरक्षा प्रदान करने तथा उनकी आजीविका सुनिश्चित करने हेतु  कुछ सक्रिय उपायों को शुरू करना।
  • एक डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से वन धन सामाजिक दूरी (Van Dhan Social Distancing) जागरूकता के तहत 15,000 SHGs को आजीविका केंद्रों के रूप में बढ़ावा देना।
    • वर्तमान में 27 राज्यों और 1 केंद्रशासित प्रदेश में कुल 1205 वन धन विकास केंद्र (Van Dhan Vikas Kendras-VDVK) का संचालन किया जा रहा  हैं, जिनमें 18,075 वन धन स्वयं सहायता समूह शामिल हैं। इस योजना से 3.6 लाख से अधिक जनजाती क्षेत्रों के लोग जुड़े हैं।

गैर-काष्ठ वन उत्पाद

(Non Timber Forest Products): 

  • जनजातियाँ मार्च-जून महीने के दौरान NTFP को एकत्र करते हैं।
    • NTFP प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाले ऐसे उत्पाद हैं जो एक विशेष मौसम पर निर्भर होते हैं। जनजातियाँ मार्च-जून महीने के दौरान कुल वार्षिक आय का 60-80% कमाते हैं।
    • गर्मी के मौसम में एकत्रित प्रमुख गैर-काष्ठ वन उत्पादों में जंगली शहद, इमली, आम, तेंदू पत्ता, साल के पत्ते, महुआ के बीज, नीम के बीज, करंज के बीज, महुआ के फूल और तेज़पत्ता इत्यादि शामिल हैं।

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ

(Tribal Cooperative Marketing Development Federation of India-TRIFED):

  • भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास परिसंघ (TRIFED) की स्थापना वर्ष 1987 में हुई। यह राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है जो जनजातीय कार्य मंत्रालय के प्रशासकीय नियंत्रण के अधीन कार्य करता है।
  • ट्राइफेड का मुख्यालय दिल्ली में है और इसके 13 क्षेत्रीय कार्यालय हैं जो देश के विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं।

स्रोत: पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पेट्रोलियम उत्पादन में कटौती

प्रीलिम्स के लिये:

G-20 या ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (Group of Twenty), OPEC

मेन्स के लिये:

वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, वैश्विक संगठन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सऊदी अरब में आयोजित G-20 देशों की वर्चुअल बैठक (Virtual Meeting) में प्रमुख पेट्रोलियम उत्पादक देशों ने खनिज तेल की गिरती कीमतों को नियंत्रित करने के लिये आपसी सहमति से अपने दैनिक तेल उत्पादन में कटौती करने का फैसला किया है।

मुख्य बिंदु:    

  • 10 अप्रैल, 2020 को आयोजित G-20 देशों की वर्चुअल बैठक में विश्व के प्रमुख तेल उत्पादक देशों सऊदी अरब, रूस, अमेरिका आदि ने खनिज तेल की घटती कीमतों में स्थिरता लाने के लिये वैश्विक तेल आपूर्ति में कटौती करने पर सहमति जाहिर की है।
  • इस बैठक में पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) के देशों के साथ ही समूह के अन्य अनौपचारिक सदस्यों (OPEC+) के बीच हुए समझौते के तहत कच्चे तेल की वर्तमान वैश्विक आपूर्ति में 10% की कटौती की जाएगी। 
  • साथ ही OPEC संगठन ने विश्व के अन्य देशों से भी अपने तेल उत्पादन में 5% की कटौती करने की मांग की है।
  • अमेरिका के ऊर्जा सचिव के अनुसार, वर्ष 2020 के अंत तक अमेरिका के तेल उत्पादन में 2-3 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती की जा सकती है।
  • इस समझौते के तहत सऊदी अरब और रूस मई और जून के बीच अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 2.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती करेंगे तथा इराक अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती करेगा।
  • सऊदी अरब और रूस ने इस बात पर सहमति ज़ाहिर की कि तेल के उत्पादन में इस कटौती का आधार अक्तूबर 2018 के 11 मिलियन बैरल प्रतिदिन को माना जाएगा, हालाँकि अप्रैल 2020 में सऊदी अरब का तेल उत्पादन बढ़कर 12.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन तक पहुँच गया था।

G-20 समूह: 

  • G-20 या ग्रुप ऑफ ट्वेंटी (Group of Twenty) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग का प्रमुख मंच है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी।
  • G-20 का उद्देश्य साझा आर्थिक, राजनीतिक और स्वास्थ्य चुनौतियों के निपटने के लिये वैश्विक नेताओं को एकजुट करना है।  
  • G-20 समूह में कुल 20 सदस्य (19 देश+ यूरोपीय संघ) हैं।
  • G-20 नेताओं के पहले शिखर सम्मेलन का आयोजन वर्ष 2008 में वाशिंगटन डी.सी. (अमेरिका) में किया गया था।   
  • G-20 सदस्य देश सामूहिक रूप से विश्व के आर्थिक उत्पादन का लगभग 80%, वैश्विक जनसंख्या का दो-तिहाई (2/3) और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के तीन-चौथाई (3/4) भाग का प्रतिनिधित्त्व करते हैं।
  • प्रतिवर्ष G-20 के सदस्यों में से किसी एक देश को अगले एक वर्ष के लिये समूह का अध्यक्ष चुना जाता है, वर्तमान में G-20 की अध्यक्षता सऊदी अरब (1 दिसंबर 2019 से 30 नवंबर 2020 तक) के पास है।    
  • G-20 देशों के 15 वें शिखर सम्मेलन का आयोजन  21-22 नवंबर 2020 तक सऊदी अरब की राजधानी ‘रियाद’ में किया जाएगा। 

तेल की कीमतों में गिरावट के कारण: 

  • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की मांग में कमी के दौरान प्रमुख उत्पादक देशों के बीच तेल उत्पादन में कटौती को लेकर कोई सहमति न बन पाने के कारण तेल बाज़ार में भारी गिरावट देखने को मिली है।   
  • COVID-19 की महामारी ने पेट्रोलियम बाज़ार की समस्याओं को और अधिक बढ़ा दिया है, COVID-19 के संक्रमण को रोकने के लिये विश्व के अधिकांश देशों में उत्पादन और दैनिक गतिविधियों के प्रतिबंधित होने से कच्चे तेल की मांग में अतिरिक्त गिरावट देखने को मिली है।
  • पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये सार्वजनिक हवाई यातायात क्षेत्र एक बड़ा बाज़ार रहा है, परंतु COVID-19 के कारण वैश्विक स्तर पर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के स्थगित होने से विमानन ईंधन की मांग में अत्यधिक गिरावट आई है।

भारत पर प्रभाव:

  • भारत विश्व के सबसे बड़े तेल आयातक देशों में से एक है, ऐसे में तेल कीमतों में गिरावट से विदेशी मुद्रा में बचत की जा सकेगी।  
  • वर्तमान में COVID-19 की चुनौती के बीच तेल की कीमतों में गिरावट से सरकार के वित्तीय घाटे को कम करने में सहायता मिलेगी।
  • हालाँकि लंबे समय तक तेल की कीमतों में गिरावट से तेल के निर्यात पर आधारित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को क्षति होगी, जिसका प्रभाव इन देशों को होने वाले भारतीय निर्यात पर पड़ सकता है।
  • तेल उत्पादक देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट से इन देशों में रह रहे ‘अनिवासी भारतीयों’ (Non Resident Indian- NRI) के माध्यम से प्राप्त होने वाले प्रेषित धन (Remittance) में कमी के साथ बेरोज़गारी में वृद्धि की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।      

चुनौतियाँ:

  • COVID-19
    • वर्तमान में अन्य उद्योगों के साथ ही पेट्रोलियम उत्पादकों के लिये भी COVID-19 की महामारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है, वैश्विक स्तर पर तेल की मांग में वृद्धि के बगैर कीमतों को स्थिर करना उत्पादकों के लिये एक बड़ी चुनौती होगी।
  • आपसी सहमति का अभाव : 
    • मैक्सिको ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह अपने तेल उत्पादन में OPEC+ द्वारा प्रस्तावित मात्रा (4,00,000 बैरल प्रतिदिन) की एक-चौथाई (1/4) कटौती ही करेगा। हालाँकि मैक्सिको के राष्ट्रपति के अनुसार, अमेरिका ने मैक्सिको की सहायता करने के लिये अमेरिकी तेल उत्पादन में मैक्सिको के हिस्से की कटौती करने का प्रस्ताव किया है।
    • नार्वे और कनाडा (गैर OPEC+ देश) ने इस समझौते के लागू होने की स्थिति में अपने उत्पादन में कटौती करने के संकेत दिये है।
    • रूस के अनुसार, कनाडा अपने पेट्रोलियम उत्पादन में 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की कटौती कर सकता है परंतु कनाडा के ‘प्राकृतिक संसाधन मंत्री’ (Natural Resources Minister) के अनुसार, G-20 बैठक में मंत्रियों के बीच तेल कीमतों में स्थिरता लाने हेतु उत्पादन में कटौती पर सहमति बनी थी परंतु इसकी मात्रा पर कोई चर्चा नहीं हुई थी।

निष्कर्ष:  यद्यपि कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के तात्कालिक रूप में भारत के लिये कई सकारात्मक परिणाम दिखाई देते हैं परंतु यदि समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो तेल निर्यातक देशों के साथ ही भारत के लिये भी यह एक बड़ी चुनौती बन सकती है। वर्तमान में पेट्रोलियम उद्योग वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण अंग है, ऐसे में वैश्विक अर्थव्यवस्था की सतत् वृद्धि के लिये कच्चे तेल की कीमतों का स्थिर होना बहुत ही आवश्यक है।  

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

औद्योगिक उत्पादन में 4.5% की वृद्धि

प्रीलिम्स के लिये: 

औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय

मेन्स के लिये:

औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office -NSO) द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार, फरवरी 2020 में औद्योगिक उत्‍पादन सूचकांक (Index of Industrial Production -IIP) 133.3 अंक रहा जो फरवरी, 2019 के मुकाबले 4.5% अधिक है। इसका मतलब यही है कि फरवरी, 2020 में औद्योगिक विकास दर 4.5% रही।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय;


  •  वर्ष 2019 में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) तथा केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office-CSO) का विलय करके राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का गठन किया गया
  •  NSO का अध्यक्ष एक महानिदेशक होता है तथा यह अखिल भारतीय स्तर पर नमूना सर्वेक्षण कराने का काम करता है।

वृद्धि के प्रमुख कारण:

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में वृद्धि खनन, विद्युत् और विनिर्माण क्षेत्रों में उच्च उत्पादन के कारण हुई है।
  • खनन क्षेत्र में फरवरी माह में पिछले वर्ष के उत्पादन की तुलना में 10% की वृद्धि देखी गई, जबकि विद्युत् क्षेत्र में पिछले वर्ष की तुलना में 8.1% की वृद्धि देखने को मिलती है।
  • विनिर्माण क्षेत्र का उत्पादन 3.2% की दर से बढ़ा है। विनिर्माण क्षेत्र के 23 में से 13 समूहों में फरवरी माह में सकारात्मक उत्पादन वृद्धि हुई।
  • बुनियादी धातुओं का निर्माण करने वाले उद्योगों के उत्पादन में 18% से अधिक की वृद्धि, जबकि रसायनों के उत्पादन में 8% की वृद्धि देखने को मिलती है।
  • प्राथमिक वस्तुओं के उत्पादन में 7% से अधिक तथा मध्यवर्ती वस्तुओं के उत्पादन में  22% से अधिक की वृद्धि हुई है।

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP):


  • विद्युत्, कच्चा तेल, कोयला, सीमेंट, स्टील, रिफाइनरी उत्पाद, प्राकृतिक गैस, और उर्वरक आठ ‘कोर’ उद्योग हैं, जो औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में शामिल वस्तुओं के भार का लगभग 40% भाग रखते हैं। 
  • खनन, विनिर्माण और विद्युत् तीन व्यापक क्षेत्र हैं, जिनके अंतर्गत IIP के घटक सम्मिलित होते हैं। 
  • औद्योगिक मूल्य सूचकांक से संबंधित आँकड़े  प्रत्येक माह NSO द्वारा संकलित और प्रकाशित किया जाते हैं।
  • वर्ष 2017 में IIP का आधार वर्ष 2004-05 से परिवर्तित कर वर्ष 2011-2012 कर दिया गया।

नकारात्मक वृद्धि वाले उद्योग:

  • फरवरी माह  में ऑटो सेक्टर में बड़ी गिरावट के साथ उद्योग समूह ‘मोटर वाहनों, ट्रेलरों और सेमी-ट्रेलरों के विनिर्माण’ ने (-) 15.6 प्रतिशत की सर्वाधिक ऋणात्‍मक वृद्धि दर दर्ज की है। कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण उत्पादन में भी लगभग 15% की नकारात्मक वृद्धि देखी गई। कुल मिलाकर, पूंजीगत वस्तुओं में लगभग 10% की गिरावट आई है।  
  • प्राथमिक और मध्यवर्ती वस्तुओं को छोड़कर अन्य उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं के उत्पादन में भी 6.4% की नकारात्मक वृद्धि देखने को मिलती है।

आगे की राह:

COVID ​​-19 महामारी के कारण हुए लॉकडाउन के कारण IIP में मार्च माह में फिर से भारी गिरावट की संभावना है, क्योंकि इसके कारण अधिकांश औद्योगिक उत्पादन रुक गए।

स्रोत- पीआईबी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ADB द्वारा 2.2 बिलियन डॉलर की सहायता

प्रीलिम्स के लिये:

एशियाई विकास बैंक 

मेन्स के लिये:

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ADB की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'एशियाई विकास बैंक' (Asian Development Bank- ADB) के अध्यक्ष ने COVID- 19 महामारी के प्रति अनुक्रिया के लिये भारत को 2.2 बिलियन डॉलर की आर्थिक मदद करने का आश्वासन दिया है।

मुख्य बिंदु:

  •  ADB ने भारत सहित विकासशील सदस्य देशों की आपातकालिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये लगभग 6.5 बिलियन डॉलर के प्रारंभिक पैकेज की घोषणा की है। 
  • ADB अध्यक्ष द्वारा COVID- 19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की प्रशंसा भी की गई।

आर्थिक मदद की आवश्यकता:

  • महामारी के कारण वैश्विक आर्थिक विकास दर कमज़ोर होने से भारत के व्यापार तथा विनिर्माण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान पैदा हो रहा है।
  • महामारी के कारण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आकार के उद्योगों (micro, small, and medium-  MSME) के साथ-साथ देश के औपचारिक तथा अनौपचारिक श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो रही है। ऐसे में इन क्षेत्रों को आर्थिक मदद की बहुत अधिक आवश्यकता है। 

आर्थिक मदद का महत्त्व: 

  • ADB द्वारा घोषित आर्थिक उपाय, गरीबों तथा व्यवसायकर्त्ताओं को काफी राहत तथा प्रोत्साहन प्रदान करेंगे एवं वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने में तेज़ी से मदद करेंगे।

आर्थिक मदद का स्वरूप:

  • सहायता राशि स्वास्थ्य क्षेत्र, गरीबों लोगों पर महामारी के आर्थिक प्रभाव को कम करने, अनौपचारिक कार्यकर्त्ताओं, MSME तथा वित्तीय क्षेत्र को मदद के रूप में दी जाएगी।

ADB द्वारा भारत की प्रशंसा:

  • COVID- 19 महामारी के प्रबंधन की दिशा में भारत सरकार द्वारा प्रारंभ किये गए निम्नलिखित उपायों की ADB द्वारा प्रशंसा की गई:
  • 'राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकालीन कार्यक्रम'। 
  • व्यवसाय के क्षेत्र में कर छूट तथा राहत उपाय। 
  • 1.7 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक राहत पैकेज। 
  • तीन सप्ताह के लॉकडाउन से प्रभावित गरीबों, महिलाओं तथा श्रमिकों को प्रदान की गई तत्काल सहायता।

आगे की राह:

  • ADB ने कहा है कि ज़रूरत पड़ने पर भारत की सहायता राशि को और बढ़ाया जाएगा तथा ADB सहायता राशि प्रदान करने के विभिन्न मार्गों यथा- आपातकालीन सहायता, नीति-आधारित ऋण (Policy-based Loans), बजट समर्थन आदि का सहारा ले सकता है।

एशियाई विकास बैंक (ADB):

  • एशियाई विकास बैंक (ADB) एक क्षेत्रीय विकास बैंक है। इसकी स्थापना 19 दिसंबर 1966 को हुई थी। 
  • ADB का मुख्यालय मनीला, फिलीपींस में है। वर्तमान में ADB में 68 सदस्य हैं, जिनमें से 49 एशिया-प्रशांत क्षेत्र के हैं। 
  • ADB में शेयरों का सबसे बड़ा अनुपात जापान का है।

ADB का कार्यक्षेत्र:

  • इसका उद्देश्य एशिया में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • ADB विकासशील देशों की उन परियोजनाओं को समर्थन प्रदान करता है जो सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के सहयोग के माध्यम से आर्थिक और विकास की दिशा में कार्य करती है। 
  • 'ADB रणनीति 2030' (ADB Strategy 2030) में ‘एशिया-प्रशांत क्षेत्र’ की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार ADB के कार्यों को निर्धारित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कंप्यूटर आधारित नैनोमैटीरियल

प्रीलिम्स के लिये: 

पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी एवं पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव, वान डर वाल्स हेटेरोस्ट्रक्चर (vdWH) तकनीक

मेन्स के लिये:

नैनो-इलेक्ट्रॉनिक्स का भविष्य

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (Institute of Nano Science and Technology- INST) के शोधकर्त्ताओं ने सुपरहाई पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी (Superhigh Piezoelectricity) के साथ नैनो-मटीरियल के कंप्यूटर आधारित डिज़ाइन निर्मित किये हैं जो भविष्य में अगली पीढ़ी के अल्ट्राथिन (Ultrathin) नैनो-ट्रांज़िस्टरों (Nano-Transistors) से युक्त बेहद छोटे आकार के बिजली उपकरणों के बुनियादी तत्त्व साबित हो सकते हैं।

मुख्य बिंदु: 

  • दो आयामी (2D) सामग्रियों में पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी के इस्तेमाल के बारे में पहली बार वर्ष 2012 में सैद्धांतिक रूप से परिकल्पना की गई थी। किंतु बाद में वर्ष 2014 में इसका प्रयोग वास्तविक रूप से मोनोलेयर (Monolayer) में किया गया।

पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी (Piezoelectricity): 

  • कुछ ठोस पदार्थों (जैसे क्रिस्टल, सिरामिक तथा हड्डियाँ, डीएनए एवं विभिन्न प्रकार के प्रोटीन आदि जैविक पदार्थ) पर यांत्रिक प्रतिबल लगाने पर उन पर आवेश एकत्र हो जाता है। इसी को पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी (Piezoelectricity) कहते हैं तथा इस प्रभाव को पीज़ोइलेक्ट्रिक प्रभाव (Piezoelectric Effect) कहा जाता है।
  • सामान्य अर्थों में दाब से उत्पन्न होने वाली बिजली को पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी कहते हैं। इसके अनुप्रयोगों में गैस लाइटर, प्रेशर गेज़, सेंसर आदि आते हैं जिन्होंने दैनिक जीवन को आसान बना दिया है।
  • तब से ग्राफीन (Graphene) जैसी दो आयामी सामग्रियों में पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने वाले अनुसंधान में वृद्धि हुई है। हालाँकि अब तक की अधिकांश दो आयामी सामग्रियों में मुख्य रूप से इन-प्लेन पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी ही दिखाई देती है किंतु उपकरण आधारित अनुप्रयोगों के लिये आउट-ऑफ-प्लेन पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी वांछित है और इसकी मांग भी है। 
  • वहीं हाल ही में भारतीय शोधकर्त्ताओं ने नैनोस्केल एवं अमेरिकन केमिकल सोसाइटी (Nanoscale and American Chemical Society) में प्रकाशित अपनी शोध रिपोर्ट में दो आयामी नैनो संरचना में एक मोनोलेयर को दूसरे पर चढ़ाने के माध्यम से सुपरहाई-आउट-ऑफ-प्लेन पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी (Superhigh Out-of-Plane Piezoelectricity) के अनुप्रयोग की नई तकनीक प्रदर्शित की है।
  • पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी का ऐसा प्रयोग दो आयामी वान डर वाल्स हेटेरोस्ट्रक्चर (van der Waals Heterostructure- vdWH) तकनीक पर आधारित है जिसमें दो आयामी मोनोलयर शामिल किये जाते हैं।
    • नैनो साम​ग्रियों के डिज़ाइन की यह एक नई तकनीक है जहाँ परस्पर पूरक गुणों  वाले विभिन्न मोनोलेयर्स को एक साथ जोड़कर उनकी आंतरिक सीमाओं को विस्तार दिया जाता है।
    • जब vdWH का गठन करने के लिये दो मोनोलेयर को एक दूसरे के ऊपर रखा जाता है तो विभिन्न कारक इलेक्ट्रॉनिक गुणों को प्रभावित करते हैं। दो स्थापित मोनोलेयर के बीच उच्च चार्ज घनत्व अंतर के कारण इंटरफेस में उत्पन्न होने वाले द्विध्रुव (Dipoles) इंटरलेयर क्षेत्र में बाहर निकल जाते हैं।
    • परिणामस्वरूप इनमें आउट-ऑफ-प्लेन पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी के इस्तेमाल को देखा जा सकता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने अनुमान लगाया है कि उनके द्वारा डिज़ाइन की गई सामग्रियों के आउट-ऑफ-प्लेन पीज़ोइलेक्ट्रिसिटी गुणांक 40.33 pm/V के उच्च स्तर तक पहुँच सकते हैं जो आमतौर पर उद्योगों में उपयोग किये जाने वाली अन्य सामग्रियों जैसे- वुरज़ाईट एआईएन (wurziteAlN) (5.1 pm/V) एवं गैलियम नाइट्राइड (GaN) (3.1 pm/V) की तुलना में बहुत अधिक है।

उपयोग:

  • बाज़ार में छोटे आकार के बिजली उपकरणों की बढ़ती मांग के कारण सुपरफास्ट अल्ट्राथिन नैनो उपकरण एवं नैनो-ट्रांज़िस्टरों की मांग में भी लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे में भविष्य में सूक्ष्म आकार के बिजली उपकरणों के लिये ये बुनियादी मैटीरियल बन सकते हैं।
  • कंप्यूटर एवं लैपटॉप के मदर बोर्ड में उपयोग किये जाने वाले ट्रांज़िस्टर समय के साथ अधिक पतले एवं सूक्ष्म हो रहे हैं। ऐसे में पीज़ोइलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच समन्वय के माध्यम से इन अल्ट्राथिन अगली पीढ़ी के नैनो-ट्रांजिस्टर में पीज़ोइलेक्ट्रिक नैनोमैटेरियल्स का उपयोग किया जा सकता है।

इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST):

  • मोहाली (चंडीगढ़) स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस एंड टेक्नोलॉजी (INST) भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science & Technology) के तहत एक स्वायत्त संस्थान है। 
  • इसे सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम-1860 (Society Registration Act-1860) के तहत जनवरी 2013 में स्थापित किया गया था।

स्रोत: पीआईबी


कृषि

बाज़ार हस्तक्षेप योजना

प्रीलिम्स के लिये:

बाज़ार हस्तक्षेप योजना

मेन्स के लिये:

बाज़ार हस्तक्षेप योजना का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल में COVID- 19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न परिवहन बाधाओं को दृष्टिगत रखते हुए सरकार ने कृषि तथा बागवानी फसलों के जल्दी खराब होने वाले उत्पादों को बाज़ारों तक पहुँचाने के लिये 50 ट्रेनों को शुरू किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • बागवानी किसानों को COVID- 19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन के कारण सबसे अधिक कठिनाइयों तथा नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
  • केंद्र सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को जल्दी खराब होने वाली फसलों के 'पारिश्रमिक मूल्य' (Remunerative Prices) सुनिश्चित करने के लिये ‘बाज़ार हस्तक्षेप योजना’ (Market Intervention Scheme- MIS) का क्रियान्वयन करने का निर्देश दिया है।

बाज़ार हस्तक्षेप योजना (MIS):

  • बाज़ार हस्तक्षेप योजना का उद्देश्य, जल्दी खराब होने वाली फसलों के उत्पादकों को बाज़ार में लागत से कम दाम पर बिक्री के संबंध में सुरक्षा प्रदान करना है। MIS योजना को विशेष रूप से तब प्रयोग में लाया जाता है जब बिक्री का मूल्य, उत्पादन की लागत से भी काम होता है। 
  • इस योजना का क्रियान्वयन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है, जबकि खरीद प्रक्रिया में हुए नुकसान को केंद्र तथा राज्य द्वारा 50:50 में वहन किया जाता है। 
  • इस योजना का प्रयोग तब किया जाता है जब फसलों की बाज़ार कीमतों में 'पिछले सामान्य वर्ष (Previous Normal Year: विगत वर्ष जिसमें फसलों का बाज़ार मूल्य सामान्य रहा हो) की तुलना में 10% या इससे अधिक की गिरावट होती है।

MIS योजना संबंधी नवीन आदेश:

  • केंद्र सरकार ने ‘मूल्य समर्थन योजना’ के तहत की जाने वाली खरीद फसलों में कुछ अन्य फसलों को शामिल करने का निर्णय लिया है।  
  • नवीन आदेश का विस्तार 'भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ लिमिटेड' (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Limted- NAFED) के अलावा अन्य एजेंसी; जो दाल तथा तिलहन की खरीद करती हैं, तक किया गया है।   
  • प्रत्येक राज्य में नवीन आदेश योजना शुरू होने की तारीख से 90 दिनों बाद तक लागू रहेंगे। 
  • इसमें वर्ष 2020 की रबी फसल के लिये प्रति किसान खरीद की सीमा 25 क्विंटल से बढ़ाकर 40 क्विंटल प्रति किसान कर दी गई है।

नवीन आदेश का महत्त्व:

  • लॉकडाउन के कारण शुष्क भूमि वाले क्षेत्रों में की जाने दलहन और तिलहन उत्पादों यथा- तूर, उड़द, छोले, सोयाबीन का बाज़ार मूल्य 'न्यूनतम समर्थन मूल्य' (Minimum Support Prices- MSP) से भी काफी नीचे हो गया है।
  • MIS योजना के तहत दालों की खरीद, COVID- 19 महामारी के तहत घोषित राहत पैकेज के लक्ष्यों को पूरा करने में सहायता करेगा। खरीदी गई दाल का उपयोग अगले तीन महीनों के लिये सभी राशन-कार्ड धारी परिवारों को एक किलो प्रति माह दाल प्रदान करने में किया जाएगा।

आगे की राह:

  • यद्यपि 40 क्विंटल प्रति किसान खरीद की सीमा यह सुनिश्चित करती है कि सभी किसानों को अपनी उपज बेचने का समान मौका मिले लेकिन परिवहन प्रतिबंध के कारण किसानों को बार-बार अपने उत्पादों को सरकारी खरीद (Procurement) के लिये ले जाना मुश्किल होगा, अत: इन प्रतिबंधों में छूट प्रदान की जानी चाहिये। 

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था के लिये राहत पैकेज की मांग

प्रीलिम्स के लिये 

नरेडको (NAREDCO), एसोचैम (ASSOCHAM)

मेन्स के लिये 

आपदा के समय में राहत पैकेज की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

रियल एस्टेट डेवलपर्स के उद्योग निकाय नरेडको (National Real Estate Development Council-NAREDCO) और उद्योग संघ एसोचैम (ASSOCHAM) ने भारत सरकार से भारतीय उद्योगों के लिये 200 बिलियन डॉलर का राहत पैकेज देने का आग्रह किया है, जो कि देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 10 प्रतिशत है।

प्रमुख बिंदु

  • उद्योग निकायों का अनुमान है कि, नौकरियों और आय के नुकसान की भरपाई करने के लिये आगामी तीन महीनों में 50-100 बिलियन डॉलर नकद धनराशि की आवश्यकता होगी।
  • साथ ही यह भी आग्रह किया गया है कि आगामी तीन महीने के लिये GST में 50 प्रतिशत और पूरे वर्ष के लिये 25 प्रतिशत कमी की जाए।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखे गए सिफारिश पत्र में एसोचैम (ASSOCHAM) के अध्यक्ष ने COVID-19 महामारी से लड़ने और अर्थव्यवस्था को इस महामारी के प्रभाव से बचाने के लिये कई उपाय प्रस्तावित किये हैं।
  • ध्यातव्य है कि इस तरह का राहत पैकेज व्यवसायों और श्रमिकों को चुनौतीपूर्ण स्थिति से निपटने में मदद करेगा।
  • उद्योग निकाय द्वारा लिखे गए पत्र के अनुसार, यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण होगा कि सरकार तीन उद्देश्यों के साथ आगे बढ़ें (1) प्रत्यक्ष स्थानांतरण के माध्यम से कर्मचारियों और श्रमिकों को तत्काल सहायता (2) यह सुनिश्चित करना कि कंपनियों के पास मंदी से बचने के लिये पर्याप्त नकदी प्रवाह है (3) राजकोषीय और कर उपायों के माध्यम से अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये मांग और निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • इसके अतिरिक्त दोनों निकायों ने लॉकडाउन के कारण रोज़गार के नुकसान को कम करने के लिये निर्माण स्थलों पर लॉकडाउन को आंशिक रूप से हटाने का भी आग्रह किया है।
  • NAREDCO ने आगामी 6 महीनों के लिये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के तहत सभी मामलों को निलंबित करने की भी मांग की है।
  • ध्यातव्य है कि NBFC और IL&LF संकट के कारण देश का रियल एस्टेट सेक्टर पहले ही गंभीर संकट का सामना कर रहा है। 
    • आँकड़ों के अनुसार, रियल एस्टेट सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में तकरीबन 7 प्रतिशत का योगदान करता है और देश की लगभग 11 प्रतिशत आबादी इसमें कार्यरत है।

नेशनल रियल स्टेट डवलपमेंट काउंसिल 

(National Real Estate Development Council-NAREDCO)

  • नेशनल रियल स्टेट डवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) की स्थापना वर्ष 1998 में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के तत्त्वावधान में एक स्वायत्त स्व-नियामक निकाय के रूप में की गई थी।
  • NAREDCO, रियल एस्टेट और हाउसिंग उद्योग के लिये एक सर्वोच्च राष्ट्रीय निकाय है और यह एक ऐसे मंच के रूप में कार्य करता है, जहाँ सरकार, उद्योग और जनता द्वारा विभिन्न समस्याओं पर चर्चा की जाती है और उनका समाधान खोजने का प्रयास किया जाता है।
  • इसका गठन रियल एस्टेट उद्योग में पारदर्शिता और नैतिकता को प्रेरित करने तथा असंगठित भारतीय रियल एस्टेट उद्योग को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के उद्देश्य से किया गया था।

एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया

(The Associated Chambers of Commerce & Industry of India-ASSOCHAM)

  • एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) भारत के सबसे बड़े व्यापार संघों में से एक है, जिसकी स्थापना वर्ष 1920 में भारतीय उद्योग के मूल्य सृजन हेतु की गई थी।
  • संपूर्ण भारत में इसके लगभग 200 से अधिक चैंबर्स तथा व्यापार संगठन हैं और 450000 से अधिक सदस्य हैं।
  • एसोचैम (ASSOCHAM) ने देश के व्यापार, वाणिज्य और औद्योगिक वातावरण को आकार देने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
  • इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में एक विशेष स्थान प्राप्त करने तथा वैश्विक महत्त्वाकांक्षा वाले नए भारतीय कॉरपोरेट जगत के उद्भव में एसोचैम (ASSOCHAM) का उल्लेखनीय योगदान रहा है।

स्रोत: द हिंदू


कृषि

लॉकडाउन के दौरान वैकल्पिक बाज़ार

प्रीलिम्स के लिये

कृषि वैकल्पिक बाज़ार 

मेन्स के लिये

कृषि क्षेत्र में COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने हेतु सरकार के प्रयास

चर्चा में क्यों?  

COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण अन्य क्षेत्रों के साथ कृषि उत्पादन की आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई है। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार की लगभग दो दशकों पुरानी एक योजना पुनः प्रासंगिक हुई है, जिसके तहत एक वैकल्पिक बाज़ार के माध्यम से कृषि उत्पादों को सीधे ग्राहकों तक पहुँचाया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:   

  • देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण किसानों के लिये अपने उत्पादों को ग्राहकों तक पहुँचाना कठिन हुआ है और वर्तमान में ज़्यादातर फसलों तथा सब्जियों की कटाई का मौसम होने से कृषि उत्पादों के सही समय पर मंडियों तक न पहुँचने से कृषि क्षेत्र में भारी नुकसान होगा।   
  • इस योजना की शुरुआत महाराष्ट्र के ‘राज्य कृषि विभाग’ और ‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’ (Maharashtra State Agricultural Marketing Board- MSAMB) के सहयोग से की गई थी।

‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’

(Maharashtra State Agricultural Marketing Board- MSAMB):

  • महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड की स्थापना 23 मार्च, 1984 को ‘महाराष्ट्र कृषि उत्पादन विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1963’ के तहत की गई।

उद्देश्य: 

  • कृषि उत्पाद बाज़ार के विकास की राज्य स्तरीय योजना बनाना।
  • कृषि विपणन विकास कोष (Agricultural Marketing Development Fund) को बनाए रखना और उसका प्रबंधन करना।
  • ‘महाराष्ट्र कृषि उत्पादन विपणन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1963’ के प्रयोजनों और शर्तों (जैसा कि अधिनियम में निर्धारित है) पर बाज़ार समितियों को उपबंध या ऋण प्रदान  करना।
  • कृषि उपज के विपणन से संबंधित मामलों/योजनाओं का प्रचार-प्रसार करना।

उद्देश्य: 

इस योजना का उद्देश्य कृषक समूहों और ‘किसान उत्पादक कंपनियों’ (Farmer Producer Companies- FPC) के सहयोग से शहरी क्षेत्र में एक कम भीड़ वाले ऐसे बाज़ार की स्थापना करना है जिससे ग्राहकों तक किसानों की सीधी पहुँच को सुनिश्चित किया जा सके।

‘किसान उत्पादक कंपनी’

(Farmer Producer Company- FPC):

  • किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी) एक संयुक्त स्टॉक कंपनी और एक सहकारी संघ को मिलकर बनाई गई एक व्यवस्था है।
  • इसमें एक कंपनी और एक सहकारी संगठन दोनों के गुण होते हैं। 
  • इसका उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि, प्रसंस्करण, सदस्यों के लिये आवश्यक उपकरणों की आपूर्ति, तकनीकी या अन्य सेवाओं के लिये परामर्श आदि उपलब्ध करना है।  
  • एक ‘किसान उत्पादक कंपनी’ में कम-से-कम 5 और अधिकतम 15 निदेशक हो सकते हैं।      

कैसे काम करता है यह वैकल्पिक बाज़ार?

  • इसके लिये सरकार और ‘महाराष्ट्र राज्य कृषि विपणन बोर्ड’ कृषक समूहों और FPCs की पहचान कर समूहों (Clusters) का निर्माण करते हैं।
  • स्थानीय निकाय (Local Bodies) बाज़ार हेतु स्थान का चुनाव करते हैं और इन बाज़ारों को सीधे ग्राहकों तक अपने उत्पादों को पहुँचाने के लिये ‘सहकारी आवास समितियों’ (Cooperative Housing Societies) से  जोड़ दिया जाता है।  
  • इस मॉडल.योजना के तहत कृषक समूहों और FPCs को नगरपालिका वार्डों या इलाकों में साप्ताहिक बाज़ार के लिये स्थान प्रदान किया जाता है।
  • कुछ उत्पादक समूहों को हाउसिंग सोसायटियों के गेट पर फल और सब्जियों के ट्रक खड़े कर अपने उत्पाद बेचने की अनुमति दी जाती है।
  • इस तरह के बाज़ारों में सबसे ज़्यादा मात्रा स्थानीय स्तर पर उत्पादित सब्जियों की होती है।  

लाभ:    

  • इस मॉडल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह कृषि व्यापार के लिये एक विकेंद्रीकृत और कृषि उत्पादों को सीधे उपभोक्ता के घर तक पहुँचाने की व्यवस्था प्रदान करता है। 
  • इस विकेंद्रीकृत व्यवस्था के माध्यम से उत्पादकों और उपभोक्ता के बीच से बिचौलियों की भूमिका को समाप्त करने में सहायता मिलती है जिसका सीधा लाभ किसानों को प्राप्त होगा। 
  • इसके माध्यम से मांग और आपूर्ति का बेहतर नियंत्रण किया जा सकता है। 
  • इसके माध्यम से किसानों में उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा। 

लॉकडाउन के दौरान वैकल्पिक बाज़ार का लाभ:

  • इस व्यवस्था के माध्यम से मंडियों की अपेक्षा लोगों की गतिविधि को सीमित कर COVID-19 के प्रसार की संभावनाओं को कम करने में सहायता प्राप्त होगी। 
    • उदाहरण के लिये पुणे (महाराष्ट्र) में कई FPCs ने हाउसिंग सोसायटियों तक डिलीवरी शुरू की है, साथ ही प्रशासन ने प्रत्येक ज़िले के लिये विशेष फोन नंबरों की व्यवस्था की है जिससे कोई भी सब्जियों के लिये प्री-आर्डर (Pre-Order) कर सकता है।
  • इस व्यवस्था के माध्यम से मंडियों और थोक बाज़ारों के बंद होने से कृषि उत्पादों की आपूर्ति के संदर्भ में उत्पन्न हुई अव्यवस्था को दूर करने में सहायता प्राप्त हुई है। 
  • मंडियों के बंद होने से देश में लगभग 100 लाख हेक्टेयर से अधिक की फसलों के खराब होने का भय था, परंतु इस व्यवस्था के माध्यम से कई राज्यों में फसलों को ऐसे बाज़ारों तक पहुँचाकर, किसानों को होने वाली क्षति को कम करने में मदद मिली है।

निष्कर्ष: हालाँकि खाद्य और कृषि के क्षेत्र में डिजिटल मार्केटिंग का विचार नया नहीं है परंतु अभी भी यह माध्यम छोटे व्यापारियों और किसानों को आकर्षित करने में असफल रहा है। वर्तमान में यह व्यवस्था  COVID-19 के संक्रमण को कम करने के साथ ही कृषि क्षेत्र में उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन सकती है। साथ ही भविष्य में इस माध्यम को बढ़ावा देकर देश में कृषि से जुड़ी अर्थव्यवस्था को एक नई गति प्रदान की जा सकती है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 11 अप्रैल, 2020

भारतीय खाद्य निगम के कर्मचारियों और मज़दूरों के लिये COVID-19 बीमा 

खाद्य और उपभोक्‍ता कार्य मंत्री रामविलास पासवान ने भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) के एक लाख से अधिक कर्मियों और मज़दूरों के लिये COVID-19 बीमा सुरक्षा की घोषणा की है। खाद्य और उपभोक्‍ता कार्य मंत्री द्वारा की गई घोषणा के अनुसार, ऐसे सभी कर्मियों और मज़दूरों को 35 लाख रुपए प्रति व्‍यक्ति तक का बीमा प्रदान किया जाएगा, जिनकी मृत्‍यु लॉकडाउन की घोषणा से 6 माह तक ड्यूटी के पश्चात् कोरोनावायरस (COVID-19) से होगी। घोषणा के अनुसार, COVID-19 से मृत्‍यु पर निगम के मज़दूरों के परिजनों को 15 लाख रुपए, अनुबंधित मज़दूरों के परिजनों को 10 लाख रुपए और निगम के अन्‍य कर्मियों के परिजनों को 25-35 लाख रुपए मिलेंगे। ध्यातव्य है कि अभी तक आतंकी हमले, बम विस्‍फोट, भीड़ हिंसा और प्राकृतिक आपदा के कारण निगम के कर्मियों की मृत्‍यु पर ही उनके परिजनों को क्षतिपूर्ति का प्रावधान था। भारतीय खाद्य निगम (Food Corporation of India- FCI) ‘उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय’ के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के अंतर्गत शामिल सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है। इसकी स्थापना एक सांविधिक निकाय के रूप में भारतीय खाद्य निगम अधिनियम, 1964 के तहत वर्ष 1965 में की गई थी। इसका मुख्य कार्य खाद्यान्न एवं अन्य खाद्य पदार्थों की खरीद, भंडारण, परिवहन, वितरण और बिक्री करना है।

घरेलू हिंसा की रिपोर्ट के लिये व्‍हाट्सअप नंबर 

राष्‍ट्रीय महिला आयोग (National Commission for Women-NCW) ने घरेलू हिंसा के मामलों की रिपोर्ट के लिये व्‍हाट्सअप नंबर (72177 35372) जारी किया है। महिला आयोग के अनुसार, इस  व्‍हाट्सअप नंबर से संकट में उत्पीड़ित महिलाओं की सहायता की जा सकेगी। यह व्‍हाट्सअप नंबर लॉडडाउन की अवधि तक कार्य करेगा। ध्यातव्य है कि देशव्यापी लॉकडाउन लागू होने के पश्चात् से लिंग-आधारित हिंसा और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी दिखाई दे रही है। राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, जहाँ एक ओर मार्च के पहले सप्ताह (2-8 मार्च) में महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा के 116 मामले सामने आए वहीं मार्च के अंतिम सप्ताह (23 मार्च - 1 अप्रैल) में ऐसे मामलों की संख्या बढ़कर 257 हो गई। NCW के अनुसार, घरेलू हिंसा में हो रही बढ़ोतरी के मद्देनज़र यह निर्णय लिया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन जनवरी 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में किया गया था। NCW का मुख्य उद्देश्य महिलाओं की संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्त्व दिवस

प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल को राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्त्व दिवस मनाया जाता है। भारत इस दिवस का आयोजन करने वाला पहला देश है। इस दिवस का आयोजन कस्तूरबा गांधी की जयंती के उपलक्ष्य में किया जाता है। महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी देश में 'बा' के नाम से विख्यात हैं। कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल, 1869 को पोरबंदर (Porbandar) में हुआ था, उनकी मृत्यु 22 फरवरी, 1944 को पुणे में हुई थी। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्त्व दिवस का आयोजन देश में मातृ मृत्यु दर के चिंताजनक स्तर और ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित प्रसव को लेकर जागरुकता की कमी जैसे मुद्दों को संबोधित करने के उद्देश्य से किया जाता है। इस दिवस के आयोजन की शुरुआत कस्तूरबा गांधी की जयंती पर भारत सरकार द्वारा वर्ष 2003 में की गई थी। इस दिवस पर देश भर में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, ताकि गर्भवती महिलाओं के पोषण पर ध्यान दिया जा सके। 

शांति हीरानंद चावला 

हाल ही में प्रसिद्ध भारतीय शास्त्रीय गायिका और पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित शांति हीरानंद चावला का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। शांति हीरानंद चावला का जन्म वर्ष 1932 को ब्रिटिश भारत में लखनऊ (मौजूदा उत्तर प्रदेश) में हुआ था। गौरतलब है कि शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में शांति हीरानंद काफी प्रसिद्ध थीं। उन्होंने ठुमरी, दादरा और गज़ल जैसी विधाओं में बेगम अख्तर से शिक्षा हासिल की थी। शांति हीरानंद चावला ने इस्लामाबाद, लाहौर, बोस्टन और वाशिंगटन समेत दुनियाभर में कई स्थानों पर प्रस्तुति दी थी। शांति हीरानंद चावला ने "बेगम अख्तर: द स्टोरी ऑफ माय अम्मी" नामक एक पुस्तक भी लिखी थी। इस पुस्तक में शांति हीरानंद चावला द्वारा उनकी गुरु, बेगम अख्तर के साथ उनकी यात्रा का वृतांत प्रस्तुत किया गया है। शांति हीरानंद चावला को वर्ष 2007 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।


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