कृषि
न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से किसानों को लाभ
- 10 Jul 2018
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संदर्भ
हाल ही में केंद्र सरकार ने 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि की घोषणा की है। इसमें पिछले वर्ष के न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में उड़द के लिये 3.70% की मामूली वृद्धि से लेकर रागी के लिये 52.5% तक की वृद्धि भी शामिल है। कृषि लागत और मूल्य आयोग ने इस वर्ष के बजट में घोषित कृषि क्षेत्र की रणनीति के अनुरूप इस लागत-प्लस-50% सिद्धांत से प्रेरित होकर यह निर्णय लिया है।
पृष्ठभूमि
- बजट 2018-19 में वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के उद्देश्य को हासिल करने के लिये कृषि नीति में जरूरी बदलाव करने का संकेत दिया गया था। बजट में बेहतर आय सृजन के ज़रिये किसानों की आय बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया गया था।
- इसी संदर्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्यों में की गई हालिया वृद्धि सरकार द्वारा किसानों को उनके लागत मूल्य से 50% अधिक लाभ दिलाने की दिशा में किया गया एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
- 2014 में सत्ता में आने के तुरंत बाद, नई सरकार ने किसानों को एमएसपी से बढ़कर बोनस देने के लिये राज्य सरकारों को भी सलाह दी थी।
प्रमुख बिंदु
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करते समय किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली वास्तविक इनपुट लागत के अनुमान और कृषि कार्य में लगे अवैतनिक पारिवारिक श्रम के लागू मूल्य को शामिल किया गया।
- फिर भी, कुछ फसलों के लिये घोषित अंतिम वृद्धि और भी अधिक है- बाजरा के लिये एमएसपी अनुमानित लागत से 97% अधिक है।
- 14 खरीफ फसलों के लिये अधिसूचित औसतन एमएसपी वृद्धि लगभग 25% अधिक है और इस बार 2013-14 के बाद से सबसे ज़्यादा वृद्धि हुई है।
- अनाज एवं पोषक अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में शुद्ध वृद्धि के लिहाज़ से धान (सामान्य) के एमएसपी में 200 रुपए प्रति क्विंटल, ज्वार (हाईब्रिड) में 730 रुपए प्रति क्विंटल और रागी में 997 रुपए प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई।
- पिछले वर्ष के मुकाबले एमएसपी में सबसे अधिक प्रतिशत वृद्धि रागी (52.47 प्रतिशत) में की गई है और उसके बाद सर्वाधिक वृद्धि ज्वार हाइब्रिड (42.94 प्रतिशत) में की गई है।
- बाजरे के एमएसपी में 525 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है ताकि लागत के मुकाबले रिटर्न में 96.97 प्रतिशत की वृद्धि हो सके।
- भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) एवं अन्य प्राधिकृत राज्य एजेंसियाँ पोषक अनाज सहित अन्य अनाजों के लिये किसानों को मूल्य समर्थन जारी रखेंगे।
जिंस |
किस्म |
2017-18 सत्र के लिये एमएसपी |
2018-19 सत्र के लिये अनुमोदित एमएसपी |
वृद्धि | लागत के मुकाबले रिटर्न* (प्रतिशत में) |
|
शुद्ध | प्रतिशत | |||||
धान |
सामान्य | 1550 | 1750 | 200 | 12.90 | 50.09 |
ग्रेड ए | 1590 | 1770 | 180 | 11.32 | 51.80 | |
ज्वार |
हाइब्रिड | 1700 | 2430 | 730 | 42.94 | 50.09 |
मालदंडी | 1725 | 2450 | 725 | 42.03 | 51.33 | |
बाजरा | - | 1425 | 1950 | 525 | 36.84 | 96.97 |
रागी | - | 1900 | 2897 | 997 | 52.47 | 50.01 |
मक्का | - | 1425 | 1700 | 275 | 19.30 | 50.31 |
अरहर(तुअर) | - | 5450 | 5675 | 225 | 4.13 | 65.36 |
मूंग | - | 5575 | 6975 | 1400 | 25.11 | 50.00 |
उड़द | - | 5400 | 5600 | 200 | 3.70 | 62.89 |
मूंगफली | - | 4450 | 4890 | 440 | 9.89 | 50.00 |
सूरजमुखी | - | 4100 | 5388 | 1288 | 31.42 | 50.01 |
सोयाबीन | - | 3050 | 3399 | 349 | 11.44 | 50.01 |
तिल | - | 5300 | 6249 | 949 | 17.91 | 50.01 |
नाइजर सीड (काला तिल) | - | 4050 | 5877 | 1827 | 45.11 | 50.01 |
कपास |
मीडियम स्टेपल | 4020 | 5150 | 1130 | 28.11 | 50.01 |
लॉन्ग स्टेपल | 4320 | 5450 | 1130 | 26.16 | 58.75 |
न्यूनतम समर्थन मूल्य
- यह कृषि मूल्य में किसी भी तेज़ गिरावट के खिलाफ कृषि उत्पादकों को सुरक्षा प्रदान करने हेतु भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला बाज़ार हस्तक्षेप का एक रूप है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर कुछ फसलों के लिये बुवाई के मौसम की शुरुआत में भारत सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्यों की घोषणा की जाती है। इसका मुख्य उद्देश्य किसानों को बिक्री की चिंताओं से राहत प्रदान करना और सार्वजनिक वितरण के लिये अनाजों की खरीद करना है।
- वर्तमान में एमएसपी के तहत 26 कृषि उत्पादों [7 अनाज- धान, गेहूँ, जौ, ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी; 5 दालें- ग्राम, अरहर/तुअर, मूंग, उड़द और मसूर; 8 तिलहन- मूंगफली, रैपसीड/सरसों, तोरिया, सोयाबीन, सूरजमुखी बीज, सेसमम, कुसुम के बीज, नाइज़रसीड एवं अन्य फसलें कोपरा, नारियल, कच्चा कपास, कच्चा जूट, गन्ना (उचित और लाभकारी मूल्य) तथा वीएफसी तंबाकू] को शामिल किया गया है।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य का निर्धारण
विभिन्न वस्तुओं की मूल्य नीति की सिफारिश करते समय कृषि लागत और मूल्य आयोग 2009 में निर्धारित की गई विभिन्न शर्तों (टीओआर) को ध्यान में रखता है। तदनुसार, यह विश्लेषण करता है-
- मांग और आपूर्ति;
- उत्पादन की लागत;
- घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में मूल्य प्रवृत्तियाँ;
- अंतर-फसल मूल्य समता;
- कृषि और गैर-कृषि के बीच व्यापार की शर्तें; और
- उस उत्पाद के उपभोक्ताओं पर एमएसपी का संभावित प्रभाव।
इस बात पर ध्यान दिया जा सकता है कि उत्पादन की लागत एक महत्त्वपूर्ण कारक है जो एमएसपी के निर्धारण में इनपुट के रूप में प्रयुक्त होता है, लेकिन यह निश्चित रूप से एकमात्र कारक नहीं है जो एमएसपी का निर्धारण करता है।
किसानों के समक्ष चुनौतियाँ और समाधान
- यह देखते हुए कि एमएसपी तंत्र मुख्य रूप से गेहूँ और धान के लिये आधिकारिक खरीद के माध्यम से लागू किया जाता है, अन्य फसलों के लिये मात्र कीमतों की घोषणा किसानों को यह सुनिश्चित करने में पर्याप्त नहीं हैं कि वे उन लाभों को प्राप्त कर सकें।
- यह अनुमान लगाते हुए बजट में वादा किया गया था कि नीति आयोग केंद्र और राज्यों के साथ एक सुव्यवस्थित प्रणाली स्थापित करने के लिये काम करेगा ताकि किसानों को एमएसपी के नीचे गिरने पर पर्याप्त पारिश्रमिक मिल सके।
- यह सरकारी खरीद या अंतर-वित्तपोषण तंत्र के माध्यम से संभव हो सकता है जिसके तहत एमएसपी और बाज़ार की कीमतों के बीच अंतर किसानों को स्थानांतरित कर दिया जाता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- अभी तक इस वर्ष के लिये केंद्र की खरीद रणनीति से संबंधित आँकड़े अधिक स्पष्ट नहीं हैं। किंतु वित्तीय वर्ष 2018-19 के अंत तक एमएसपी वृद्धि के प्रभावस्वरूप उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 0.5% से 1% तक की वृद्धि होने की उम्मीद है।
- किंतु दूसरी तरफ, यदि खरीद पर इसका व्यय लगभग 15,000 करोड़ रुपए (जीडीपी का लगभग 0.1%) है तो केंद्र की राजकोषीय स्थिति पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ सकता है। लेकिन यह लागत खरीद रणनीति और एमएसपी प्रवर्तन के लिये नई क्रियाविधि के आधार पर बढ़ सकती है।
आगे की राह
- जबकि ग्रामीण आय इस कृषि अनुकूल स्थिति से बढ़ सकती है, एमएसपी के कारण किसानों के विकल्पों पर विरूपणकारी प्रभाव को रोकने के लिये कृषि बाज़ारों को मुक्त करने के लिये संगत सुधार महत्त्वपूर्ण हैं।
- आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत भारी स्टॉकहोल्डिंग सीमा को आसान बनाना और कृषि निर्यात पर लगातार प्रतिबंधों से बचना महत्त्वपूर्ण है।
- दलहन की खेती को बढ़ावा दिये जाने से भारत को पोषण असुरक्षा से निपटने, मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर उर्वरता बढ़ाने और किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। इस प्रकार दलहन के एमएसपी में बढ़ोतरी से किसानों की प्रति एकड़ आय में वृद्धि सुनिश्चित होगी।
- इसके अलावा, एमएसपी में वृद्धि से तिलहन के उत्पादन को भी बढ़ावा मिलेगा और साथ ही उसके उत्पादन में निवेश को प्रोत्साहन मिलेगा।
निष्कर्ष
न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि से भारत को अपना आयात बिल घटाने में भी मदद मिलेगी। पोषक अनाजों के न्यूनतम मूल्य वृद्धि से पोषण सुरक्षा और किसानों की आय में सुधार होगा। किसानों की आय बढ़ाने में फसलों की विविधता, पशुधन और बागवानी क्षेत्र सर्वाधिक लाभप्रद साबित हो सकते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, राष्ट्रीय कृषि बाज़ार तथा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन सहित अन्य पहलों के माध्यम से सरकार किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य की ओर अग्रसर है।
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