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डेली न्यूज़

  • 10 May, 2023
  • 30 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

सलाहकार समिति का डीज़ल 4-पहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन, फेम योजना, शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070, इलेक्ट्रिक वाहन

मेन्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों के क्षेत्र में भारत का संक्रमण, डीज़ल चालित वाहनों का प्रभाव, शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करने की भारत की रणनीतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा गठित ऊर्जा संक्रमण सलाहकार समिति ने सिफारिश की है कि भारत को वर्ष 2027 तक डीज़ल संचालित 4-पहिया वाहनों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये एवं उत्सर्जन को कम करने हेतु दस लाख से अधिक आबादी वाले तथा प्रदूषित शहरों में इलेक्ट्रिक व गैस-ईंधन चालित वाहनों को अपनाना चाहिये। 

  • पूर्व पेट्रोलियम सचिव तरुण कपूर की अध्यक्षता वाली समिति ने वर्ष 2035 तक आंतरिक दहन इंजन वाले मोटरसाइकिल, स्कूटर और तिपहिया वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटाने का भी सुझाव दिया।

समिति की सिफारिशें:

  • नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना: 
    • भारत विश्व स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जकों में से एक है, अतः इसे अपने शुद्ध-शून्य लक्ष्य 2070 को प्राप्त करने हेतु नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से 40% विद्युत ऊर्जा उत्पादन करना चाहिये।
      • इसके अनुरूप पैनल की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2030 तक केवल इलेक्ट्रिक सिटी बसों को जोड़ा जाना चाहिये, डीज़ल सिटी बसों को वर्ष 2024 से चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना चाहिये।
    • इसने प्रत्येक श्रेणी में लगभग 50% हिस्सेदारी के साथ आंशिक रूप से इलेक्ट्रिक और आंशिक रूप से इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल के उपयोग का आह्वान किया।
  • EV उपयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रोत्साहन:
  • गैस चालित ट्रकों और रेलवे में संक्रमण: 
    • पैनल ने यह भी सिफारिश की है कि वस्तुओं की आवाजाही हेतु रेलवे और गैस चालित ट्रकों के अधिक उपयोग के साथ वर्ष  2024 से केवल विद्युत चालित शहर के डिलीवरी वाहनों को नए पंजीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • रेलवे नेटवर्क के दो से तीन वर्ष के भीतर पूरी तरह से इलेक्ट्रिक होने की उम्मीद है। पैनल के अनुसार, भारत में लंबी दूरी की बसों को दीर्घकाल तक विद्युत से संचालित किया जाना चाहिये, जिसमें पेट्रोल अगले 10-15 वर्षों में संक्रमणकालीन ईंधन के रूप में काम करेगा।
  • ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी में वृद्धि: 
    • भारत का लक्ष्य 2030 तक अपने ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी को मौजूदा 6.2% से बढ़ाकर 15% करना है।
      • इस लक्ष्य को हासिल करने हेतु’ पैनल ने दो महीने की मांग के बराबर भूमिगत गैस भंडारण का निर्माण करने का सुझाव दिया है।
    • पैनल विदेशी गैस उत्पादक कंपनियों की भागीदारी के साथ गैस भंडारण के निर्माण हेतु घटते तेल एवं गैस क्षेत्रों, नमक की गुफाओं तथा एक्वीफर्स के उपयोग की भी सिफारिश करता है।

भारत में डीज़ल की खपत: 

  • खपत पैटर्न:  
    • वर्तमान में भारत के पेट्रोलियम उत्पादों की खपत में डीज़ल की हिस्सेदारी लगभग 40% है, जिसका 80% परिवहन क्षेत्र में उपयोग किया जाता है।
    • भारत में पेट्रोल और डीज़ल की मांग वर्ष 2040 में चरम पर पहुँचने और उसके बाद  के समय में वाहनों के विद्युतीकरण के कारण इसकी मांग में गिरावट आने की उम्मीद है।  

Sector-wise-Diesel

  • डीज़ल की उच्च प्राथमिकता का कारण:
    • पेट्रोल चालित परिवहन साधनों की तुलना में डीज़ल इंजनों की उच्च ईंधन बचत इसकी प्राथमिकता का एक कारक है। यह प्रति लीटर डीज़ल की अधिक ऊर्जा क्षमता और डीज़ल इंजन की अंतर्निहित दक्षता के कारण है।
    • डीज़ल इंजन में उच्च-वोल्टेज स्पार्क इग्निशन (स्पार्क प्लग) का उपयोग नहीं किया जाता है और इस प्रकार प्रति किलोमीटर कम ईंधन का उपयोग होता है क्योंकि डीज़ल ईंधन में उच्च संपीड़न अनुपात होता है जिससे यह भारी वाहनों के लिये काफी उपयोगी ईंधन बन जाता है।
    • इसके अलावा डीज़ल इंजन अधिक टॉर्क (घूर्णन बल अथवा टर्निंग फोर्स) प्रदान करते हैं और इन इंजनों के बंद होने की संभावना कम होती है क्योंकि वे एक यांत्रिक अथवा इलेक्ट्रॉनिक संचालक द्वारा नियंत्रित होते हैं जो कि ढुलाई के लिये बेहतर साबित होते हैं।
  • डीज़ल चालित वाहनों का प्रभाव: 
    • वायु प्रदूषण:  
      • डीज़ल इंजन उच्च स्तर के पार्टिकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जित करते हैं, जो वायु प्रदूषण में योगदान करते हैं एवं मनुष्यों तथा वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
    • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन:  
      • चूँकि डीज़ल इंजन में ईंधन की खपत कम होती है, वे उच्च स्तर के कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी करते हैं जो जलवायु परिवर्तन में योगदान देता है।
    • ध्वनि प्रदूषण:  
      • डीज़ल इंजन आमतौर पर गैसोलीन इंजनों की तुलना में अधिक आवाज़ उत्पन्न करते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण बढ़ सकता है और यह शहरी क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
    • पर्यावरणीय क्षति:
      • डीज़ल के रिसाव से गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो सकती है, विशेषकर यदि जब रिसाव जल स्रोतों या संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र के निकट होता है।

डीज़ल आधारित वाणिज्यिक वाहनों पर प्रतिबंध के कारण चुनौतियाँ:

  • व्यावहारिकता और कार्यान्वयन:
    • मध्यम और भारी वाणिज्यिक वाहनों की तुलना में प्रस्तावित डीज़ल प्रतिबंध की व्यावहारिकता को लेकर अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है।
    • इसके परिणामस्वरूप रसद आपूर्ति और सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के संचालन  में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है।
  • परिवहन क्षेत्र में डीज़ल का दबदबा:
    • लंबी दूरी के परिवहन और शहरी बस सेवाओं के लिये डीज़ल पर अत्यधिक निर्भरता बनी हुई है।
    • परिवहन क्षेत्र में डीज़ल की खपत लगभग 87 प्रतिशत है, जबकि ट्रकों एवं बसों में डीज़ल की खपत लगभग 68 प्रतिशत है।
  • रूपांतरण चुनौतियाँ:
    • डीज़ल चालित ट्रकों को संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) में परिवर्तित करने की सीमाएँ हैं।
      • CNG का उपयोग मुख्य रूप से छोटी दूरी के लिये अनुकूल है और इसकी टन भार वहन क्षमता कम है।
  • वर्तमान उत्सर्जन मानदंडों का अनुपालन:
    • वाहन निर्माताओं का तर्क है कि डीज़ल वाहन मौजूदा उत्सर्जन मानदंडों का पालन करते हैं।
    • डीज़ल बेड़े को BS-VI उत्सर्जन मानदंडों में बदलने के लिये कार निर्माताओं द्वारा महत्त्वपूर्ण निवेश किये गए हैं और डीज़ल वाहनों पर प्रतिबंध से उनका समय, पैसा और प्रयास व्यर्थ चला जाएगा।

नवीकरणीय ऊर्जा आधारित परिवहन क्षेत्र हेतु भारत की पहल: 

  • FAME योजना: 
    • यह EV निर्माण और इसे अपनाने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन प्रदान करती है।
    • वर्ष 2030 तक विद्युत वाहनों की हिस्सेदारी 30% तक करने का लक्ष्य।
    • यह शहरी केंद्रों में चार्जिंग तकनीक और स्टेशनों की तैनाती का समर्थन करती है।
  • परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन:
    • इसका उद्देश्य हवा की गुणवत्ता में सुधार करना, तेल आयात पर निर्भरता को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा एवं भंडारण समाधानों को बढ़ाना है।
    • इलेक्ट्रिक वाहनों, इसके कल-पूर्जों, और बैटरी के साथ-साथ क्रांतिकारी परिवहन के लिये पहल पहल चरणबद्ध निर्माण योजनाओं को बढ़ावा देना।
  • लिथियम-आयन सेल बैटरियों के लिये सीमा शुल्क छूट:
    • सरकार ने लिथियम-आयन सेल बैटरियों के आयात को सीमा शुल्क से छूट दी है ताकि भारत में उनकी लागत कम की जा सके और उनका उत्पादन बढ़ाया जा सके।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
    • इस मिशन का उद्देश्य उद्योग, परिवहन और बिजली जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिये स्वच्छ एवं किफायती ऊर्जा स्रोत के रूप में हरित हाइड्रोजन को विकसित करना है।
      • इसमें हरित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्रों की स्थापना, भंडारण और वितरण अवसंरचना तथा अंतिम उपयोग अनुप्रयोगों की परिकल्पना की गई है।
  • इथेनॉल सम्मिश्रण:
    • इसमें जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिये पेट्रोल के साथ इथेनॉल को मिलाना शामिल है।
    • भारत में पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण का स्तर 9.99 प्रतिशत तक पहुँच गया है। पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल सम्मिश्रण (जिसे E20 भी कहा जाता है) का लक्ष्य वर्ष 2030 से 2025 कर दिया गया है।
  • PLI योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • इसे ऑटोमोबाइल और ऑटो-कंपोनेंट उद्योग सहित विभिन्न उद्योगों के लिये लागू किया गया है।
    • एडवांस सेल केमिकल बैटरी स्टोरेज निर्माण के विकास के लिये लगभग 18,000 करोड़ रुपए स्वीकृत किये गए।
    • इन प्रोत्साहनों का उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के स्वदेशी विकास को प्रोत्साहित करना है ताकि उनकी अग्रिम लागत को कम किया जा सके।
  • SATAT योजना:
    • सस्टेनेबल अल्टरनेटिव टुवर्ड्स अफोर्डेबल ट्रांसपोर्टेशन (SATAT) पहल का उद्देश्य वैकल्पिक, हरित परिवहन ईंधन के रूप में कंप्रेस्ड बायो-गैस (CBG) को बढ़ावा देना है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "वहनीय (एफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनेबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) 

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

गोवा में वनाग्नि

प्रिलिम्स के लिये:

वनाग्नि के प्रकार, कारण, फायदे और नुकसान, वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF), राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)

मेन्स के लिये:

वनाग्नि एवं उसका शमन

चर्चा में क्यों?

गोवा वन विभाग द्वारा मार्च 2023 में झाड़ियों में लगी आग की जाँच में पाया गया है कि यह आग बड़े पैमाने पर प्राकृतिक कारणों से लगी थी।

वन विभाग की जाँच के निष्कर्ष:

  • अक्तूबर 2022 के बाद से गोवा में बहुत कम बारिश, ग्रीष्म लहर जैसी स्थिति और न्यून आर्द्रता ने वनाग्नि के लिये उपयुक्त स्थिति उत्पन्न कर दी।
    • वनाग्नि का कारण: रिपोर्ट बताती है कि वनाग्नि की घटना का कारण एक अनुकूल वातावरण और चरम मौसम की स्थिति, विगत मौसम में न्यूनतम वर्षा, असामान्य रूप से उच्च तापमान तथा कम नमी है।
  • गोवा में वनाग्नि:
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) द्वारा प्रकाशित इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR), 2021 में गोवा के 100% वन आवरण को "न्यून अग्नि प्रवण" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • इसके अतिरिक्त गोवा में क्राउन फायर (पेड़ों के घर्षण के कारण) की घटना देखने को नहीं मिलती हैं, ऐसी घटनाएँ अधिकतर विदेशों में देखी जाती हैं।
      • गोवा के आर्द्र पर्णपाती वनों में सतह पर लगने वाली आग सामान्य हैं।
    • मवेशियों के चरागाह वाली भूमि को साफ करने के लिये ग्रामीणों द्वारा उपयोग की जाने वाली स्लेश-एंड-बर्न तकनीक में सामान्यतः वन क्षेत्र में भूमिगत और मृत कार्बनिक पदार्थों को जलाने हेतु सतही आग का प्रयोग किया जाता है।
      • काजू की खेती करने वाले किसान अक्सर खरपतवारों को साफ करने और उसे कम करने के लिये आग का कम प्रयोग करते हैं।

वनाग्नि: 

  • परिचय: 
    • वनाग्नि अनियंत्रित और गैर-निर्धारित दहन है जिसे ज्वलनशील वनस्पतियों की अधिकता वाले क्षेत्रों जैसे कि वन, घासभूमि, क्षुपभूमि (Shrubland) में पौधों/वनस्पतियों के दहन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
  • कारण: 
    • प्राक्रतिक: तड़ित/आकाशीय बिजली (Lightning) के कारण भी वृक्षों में आग लग जाती है। हालाँकि इस तरह की वनाग्नि को वर्षा ही बुझा देती है तथा बहुत अधिक क्षति नहीं होती।
      • शुष्क वनस्पतियों के स्वतः दहन और ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण भी वनों में आग लगती है।
      • उच्च वायुमंडलीय तापमान और सूखा (कम आर्द्रता) वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करते हैं।
    • मानवजनित कारण: खुले में किसी प्रकार कि लौ जलाने, सिगरेट अथवा बीड़ी या विद्युतीय चिंगारी या प्रज्वलन के किसी स्रोत की ज्वलनशील सामग्री के संपर्क में आने पर भी वनों में आग लग सकती है. 
  • प्रकार: 
    • शिखर अग्नि सबसे तीव्र एवं जोखिम पूर्ण वनाग्नि है वृक्षों के शिखर तक को अपनी चपेट में ले लेती है।
    • सतही अग्नि केवल सतही स्तर पर वन भूमि पर पड़ी सूखी पत्तियाँ, छोटी-छोटी झाड़ियाँ और लकड़ियाँ इसकी चपेट में आती हैं । यह सबसे आसानी से बुझाई जा सकने योग्य वनाग्नि है जिस कारण इससे वनों को होने वाली क्षति को न्यूनतम किया जा सकता है।
    • भूमिगत अग्नि (कभी-कभी भूमिगत अथवा उपसतह अग्नि कहा जाता है) कम तीव्रता की आग जो भूमि की सतह के नीचे मौजूद कार्बनिक पदार्थों और वन भूमि की सतह पर मौजूद अपशिष्टों का उपयोग करती है।

Wildfire

  • लाभ: 
    • वनीय तल की सफाई
    • आवास उपलब्धता
    • रोगों का निवारण 
    • पोषक तत्त्व पुनर्चक्रण 
  • हानि: 
    • अनपेक्षित वनस्पति की हानि
    • कटाव और अवसादन का कारण बन सकती है
    • पारितंत्र की क्षति 
    • मानवीय जीवन के लिये संकट उत्पन्न करती है
  • भारत में सुभेद्यता: 
    • भारत में वनाग्नि की घटनाएँ आमतौर पर नवंबर से जून मध्य तक होती है।
    • ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की एक रिपोर्ट में कहा गया है:
    • पिछले दो दशकों में वनाग्नि की घटनाओं में दस गुना वृद्धि हुई है और यह रिपोर्ट बताती है कि 62% से अधिक भारतीय राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि से ग्रसित हैं।
      • आंध्र प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, तेलंगाना और पूर्वोत्तर राज्य  वनाग्नि  के लिये सर्वाधिक संवेदनशील हैं।
      • मिज़ोरम में पिछले दो दशकों में वनाग्नि की घटनाएँ सबसे अधिक देखी गई हैं और इसके 95% ज़िले वनाग्नि के हॉटस्पॉट हैं।
    • भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) 2021 का अनुमान है कि देश के 36% से अधिक वन क्षेत्र में बार-बार आग लगने का खतरा है, जबकि  6% 'अत्यधिक' अग्नि-प्रवण है और लगभग 4% 'अत्यंत' प्रवण क्षेत्र है।
      • इसके अतिरिक्त भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के एक अध्ययन में पाया गया है कि भारत में वनों के अंतर्गत लगभग 10.66% क्षेत्र 'अत्यंत' से 'अत्यधिक' अग्नि-प्रवण है।

वनाग्नि के प्रबंधन से संबंधित भारत की पहलें: 

  • वनाग्नि के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF): इस कार्ययोजना को वर्ष 2018 में वनाग्नि की घटनाओं को कम करने के लक्ष्य के साथ जंगल के किनारे रह रहे समुदायों को सूचित, सक्षम और सशक्त बनाने तथा उन्हें राज्य वन विभागों से सहयोग के लिये प्रोत्साहित करने हेतु शुरू किया गया था। 
  • राष्ट्रीय ग्रीन इंडिया मिशन (GIM): इसे जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना के तहत लॉन्च किया गया है, GIM का उद्देश्य वन क्षेत्र को बढ़ाना और क्षतिग्रस्त वनों को पुनर्स्थापित करना है।
    • यह समुदाय आधारित वन प्रबंधन, जैवविविधता संरक्षण और सतत् वन प्रथाओं के उपयोग को बढ़ावा देता है, जो वनाग्नि को रोकने में योगदान करते हैं।
  • वनाग्नि निवारण और प्रबंधन योजना (FFPM): FFPM को MoEF&CC के तहत FSI द्वारा कार्यान्वित किया जाता है। इसका उद्देश्य रिमोट सेंसिंग जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग करके वनाग्नि प्रबंधन प्रणाली को मज़बूत करना है। 
    • यह वनाग्नि से निपटने में राज्यों की सहायता हेतु समर्पित सरकार द्वारा प्रायोजित एकमात्र कार्यक्रम है।

वनाग्नि को कम करने हेतु उपाय:

  • फायर ब्रेक्स का निर्माण: फायर ब्रेक्स ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ वनस्पति को हटा दिया जाता है, जिससे एक खाई बन जाती है जो आग के प्रसार को धीमा कर सकती है या रोक सकती है।
  • वनों की निगरानी और प्रबंधन: वनों की निगरानी और उनका उचित प्रबंधन आग को शुरू होने या फैलने से रोकने में मदद कर सकता है।
  • प्रारंभिक पहचान और त्वरित प्रतिक्रिया: प्रभावी शमन के लिये वनाग्नि का शीघ्र पता लगाना आवश्यक है।
    • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) वनाग्नि से प्रभावित क्षेत्रों का विश्लेषण तथा निवारण हेतु सैटेलाइट इमेजिंग तकनीक (जैसे MODIS) का उपयोग कर रहा है।
  • ईंधन प्रबंधन: विरलन और चयनात्मक लॉगिंग जैसी गतिविधियों के माध्यम से मृत वृक्षों, शुष्क वनस्पतियों और अन्य ज्वलनशील सामग्रियों के संचय को कम करना।
  • आग लगने की घटना के अनुरूप अभ्यास: वनों के आस-पास के क्षेत्रों जैसे- कारखानों, कोयले की खानों, तेल भंडारों, रासायनिक संयंत्रों और यहाँ तक कि घरेलू रसोई में भी सुरक्षित तौर-तरीकों को अपनाया जाना चाहिये। 
  • नियंत्रित दहन: नियंत्रित दहन के अंतर्गत नियंत्रित वातावरण में छोटे-छोटे हिस्सों में आग लगाना शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सुरक्षा

भारतीय सेना में समान वर्दी

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय सेना, वर्दी की साज-सज्जा, रेजिमेंटल प्रांतीयता 

मेन्स के लिये:

भारतीय सेना में समान वर्दी का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय सेना ने निर्णय लिया है कि 1 अगस्त, 2023 से ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के सभी अधिकारी सामान्य पहचान और दृष्टिकोण को बढ़ावा देने तथा मज़बूत करने हेतु अपने कैडर एवं नियुक्ति के बावजूद समान वर्दी पहनेंगे।

वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारियों की वर्दी:

  • वर्तमान पद: 
    • भारतीय सेना की विभिन्न शाखाएँ अपने रेजिमेंटल या कोर संबद्धता के आधार पर अलग-अलग वर्दी पहनती हैं, जैसे बेरेट, डोरी और रैंक के बैज।
      • अतिरिक्त पोशाक या उपकरण जो वर्दी या पोशाक को पूरा करने के लिये विशेष रूप से सैन्यकर्मियों द्वारा पहने जाते हैं।
    • इन्फैंट्री अधिकारी और सैन्य खुफिया अधिकारी गहरे हरे रंग की टोपी पहनते हैं, बख्तरबंद वाहिनी के अधिकारी काली टोपी पहनते हैं और अन्य वाहिनी अधिकारी गहरे नीले रंग की टोपी पहनते हैं। सैन्य पुलिस कोर के अधिकारी लाल रंग की टोपी पहनते हैं।
    • वर्तमान में लेफ्टिनेंट से जनरल रैंक तक के सभी अधिकारी अपने सैन्य- दल (रेजिमेंटल) या कोर संबद्धता के अनुसार वर्दी पहनते हैं।
  • नई वर्दी:
    • ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल रैंक के सभी अधिकारी अब एक ही रंग की टोपी, एक ही रैंक के सामान्य बैज, एक सामान्य बेल्ट बकल और एक समान प्रकार के जूते पहनेंगे।
      • सभी वरिष्ठ अधिकारियों के लिये शोल्डर रैंक बैज सुनहरे रंग का होगा।
        • वर्तमान में गोरखा राइफल्स, गढ़वाल राइफल्स और राजपूताना राइफल्स जैसे- राइफल रेजिमेंट के अधिकारी ब्लैक रैंक के बैज पहनते हैं।
    • ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के वरिष्ठ अधिकारियों की टोपी, शोल्डर रैंक बैज, गोरगेट पैच, बेल्ट और जूते अब मानकीकृत और समान होंगे।
      • कर्नल और निम्न रैंक के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी में कोई बदलाव नहीं किया गया है।
    • वे अब अपने कंधों पर रेजिमेंटल कॉर्ड्स (डोरी) नहीं पहनेंगे। वे 'स्पेशल फोर्सेज़', 'अरुणाचल स्काउट्स', 'डोगरा स्काउट्स' आदि जैसे शोल्डर फ्लैश भी नहीं पहनेंगे।
    • इस प्रकार वे कोई विशिष्ट वर्दी नहीं पहनेंगे जो उन्हें एक विशिष्ट रेजिमेंट या सैन्य-दल के सदस्य के रूप में नामित करे। इन वरिष्ठ रैंकों के सभी अधिकारियों हेतु एक समान डिज़ाइन होगा।

इस निर्णय का महत्त्व:

  • यह निर्णय भारतीय सेना में एक अधिक सामंजस्यपूर्ण और एकीकृत संगठनात्मक संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
    • यह मानक वर्दी भारतीय सेना के सच्चे लोकाचार को दर्शाते हुए वरिष्ठ रैंक के सभी अधिकारियों हेतु सामान्य पहचान सुनिश्चित करेगी।
  • रेजिमेंटल संकीर्णता को समाप्त करके और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच सामान्य पहचान एवं उद्देश्य की भावना को बढ़ावा देकर सेना आधुनिक युद्ध की चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना करने तथा बदलती रणनीतिक परिस्थितियों के अनुकूल हो सकती है।
    • किसी रेजिमेंट या सैन्य-दल के प्रति वफादारी या समर्पण को रेजिमेंटल संकीर्णता (Regimental Parochialism) कहा जाता है। किसी इकाई के प्रति गर्व और वफादारी अक्सर उसी संगठन के भीतर अन्य इकाइयों के साथ सहयोग या प्रतिस्पर्द्धा की कमी का कारण बन सकती है।
  • यह मिश्रित रेजिमेंटल समूह के सैनिकों को आदेश देने हेतु वरिष्ठ अधिकारियों की क्षमता में भी सुधार कर सकता है।
    • रेजिमेंटल वर्दी के बजाय एक समान वर्दी के प्रावधान से वरिष्ठ कमांडर एक अधिक समावेशी और सहयोगी नेतृत्त्व शैली का निर्माण कर सकते हैं जो पारंपरिक वफादारी और संबद्धता प्रदर्शित करती हो।

अन्य सेनाओं में पैटर्न: 

  • कर्नल और उससे ऊपर के रैंक के अधिकारियों द्वारा पहनी जाने वाली वर्दी को ब्रिटिश सेना में कर्मी/स्टाफ की वर्दी कहा जाता है, भारतीय सेना की वर्दी पैटर्न और संबंधित प्रतीक इसी से प्रेरित है। यह इसे रेजिमेंटल वर्दी से भिन्न बनाता है।
    • रेजिमेंटल वर्दी के किसी भी आइटम, विशेष रूप से हेडड्रेस (सिर पर पहना जाने वाला), को स्टाफ की वर्दी के साथ पहनने की अनुमति नहीं है।
  • पड़ोसी देशों में पाकिस्तान और बांग्लादेश की सेनाएँ भी ब्रिटिश सेना के समान ही पैटर्न का पालन करती हैं।
    • लेफ्टिनेंट कर्नल के पद से उपर के किसी भी अधिकारी को रेजिमेंटल वर्दी नहीं पहननी होती है, यानी बिलकुल नए किस्म की वर्दी मिलती है। ब्रिगेडियर और उससे ऊपर के रैंक के सभी अधिकारी समान पैटर्न वाली वर्दी पहनते हैं

स्रोत : द हिंदू


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