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भारतीय अर्थव्यवस्था
एकल वस्तु एवं सेवा कर दर
प्रिलिम्स के लिये:वस्तु एवं सेवा कर और इसकी रूपरेखा मेन्स के लिये:वस्तु एवं सेवा कर के संबंध में सुझाए गए सुधार, वस्तु एवं सेवा कर की रूपरेखा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने कहा है कि भारत में "एकल वस्तु और सेवा कर (GST) दर" और "छूट-रहित कर व्यवस्था" होनी चाहिये।
सिफारिशें:
- एकल वस्तु एवं सेवा कर:
- GST की दरें सभी वस्तुओं पर समान होनी चाहिये क्योंकि 'प्रगतिशील' दरें अप्रत्यक्ष करों की तुलना में प्रत्यक्ष करों के मामले में अधिक व्यावहारिक होती हैं ।
- जब पहली बार GST की घोषणा की गई थी, तो नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) द्वारा अनुमान लगया था कि इससे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 1.5% से 2% की वृद्धि होगी।
- हालाँकि यह अनुमान इस बात पर निर्भर था कि सभी वस्तुएँ और सेवाएँ GST का हिस्सा होंगी तथा GST में एकरूपता होगी।
- विभिन्न GST दरें 'प्राइम कंट्रोल' की मानसिकता से प्रेरित होती हैं जिससे GST दरें 'विशिष्ट' मानी जाने वाली वस्तुओं के लिये अधिक और बड़े पैमाने पर उपभोग की वस्तुओं के लिये कम रखी जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप इस पर व्यक्तिगत विचार-विमर्श के साथ मुकदमेबाज़ी के मामले भी सामने आते हैं।
- पूर्व में GST के लिये आधिकारिक तौर पर अनुमानित 17% राजस्व-तटस्थ दर के विपरीत वर्तमान औसत दर 5% में वृद्धि होनी चाहिये।
- 'छूट रहित' प्रत्यक्ष कर व्यवस्था:
- सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने इस तर्क के साथ एक छूट रहित प्रत्यक्ष कर व्यवस्था का आह्वान किया कि कर वंचन गैर-कानूनी है लेकिन कर परिहार के तहत छूट संबंधी खंडों का उपयोग करते हुए कर का भार कम करना वैध माना जाता है।
- कर में अधिक छूट से कर संबंधी जटिलताओं के मामलों में भी वृद्धि होती है।
- कॉर्पोरेट करों और व्यक्तिगत आयकर (PIT) के बीच कृत्रिम अंतर को दूर किये जाने की आवश्यकता है।
- बहुत से अनिगमित व्यवसाय व्यक्तिगत आयकर के तहत करों का भुगतान करते हैं।
- छूट-रहित प्रत्यक्ष कर प्रणाली का उपयोग कर मतभेदों को दूर करने से प्रशासनिक दबाव में भी कमी आएगी।
- सलाहकार परिषद के अध्यक्ष ने इस तर्क के साथ एक छूट रहित प्रत्यक्ष कर व्यवस्था का आह्वान किया कि कर वंचन गैर-कानूनी है लेकिन कर परिहार के तहत छूट संबंधी खंडों का उपयोग करते हुए कर का भार कम करना वैध माना जाता है।
GST प्रणाली का वर्तमान ढाँचा:
- GST:
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू उपभोग के लिये बेची जाने वाली अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला मूल्यवर्द्धित कर है।
- GST का भुगतान उपभोक्ताओं द्वारा किया जाता है, लेकिन यह वस्तुओं और सेवाओं को बेचने वाले व्यवसायों द्वारा सरकार को प्रेषित किया जाता है।
- यह अनिवार्य रूप से एक उपभोग कर है जिसे अंतिम उपभोग बिंदु पर लगाया जाता है।
- इसे 101वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2016 के माध्यम से लाया गया था।
- इसमें उत्पाद शुल्क, मूल्यवर्द्धित कर (VAT), सेवा कर, विलासिता कर आदि जैसे अप्रत्यक्ष करों को समाहित किया गया है।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू उपभोग के लिये बेची जाने वाली अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाने वाला मूल्यवर्द्धित कर है।
- मौजूदा कर संरचना:
- केंद्रीय GST (CGST) में उत्पाद शुल्क, सेवा कर आदि शामिल हैं।
- राज्य GST (SGST) में मूल्यवर्द्धित कर (वैट), विलासिता कर आदि शामिल हैं।
- एकीकृत GST (IGST) में अंतर-राज्यीय व्यापार शामिल हैं।
- IGST कर नहीं है बल्कि राज्य और संघ के करों के समन्वय के लिये एक प्रणाली है।
- चार प्रमुख GST स्लैब हैं:
- 5%, 12%, 18% और 28%।
- कुछ अहितकर और विलासिता की वस्तुएँ जो 28% स्लैब में हैं, उपकर के अतिरिक्त लेवी को आकर्षित करते हैं, जिसकी आय राज्यों को राजस्व की कमी एवं मुआवज़े से संबंधित ऋणों के पुनर्भुगतान के लिये क्षतिपूर्ति करने हेतु एक अलग फंड में जमा होती है।
- GST परिषद:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 279A में कहा गया है कि GST के प्रशासन और संचालन के लिये राष्ट्रपति द्वारा GST परिषद का गठन किया जाएगा।
- इसका अध्यक्ष भारत का वित्त मंत्री होता है और राज्य सरकारों द्वारा मनोनीत मंत्री इसके सदस्य होते हैं।
- परिषद को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि केंद्र के पास एक-तिहाई वोटिंग शक्ति होगी और राज्यों के पास 2/3 वोटिंग शक्ति होगी।
- जबकि निर्णय सदस्यों के 3/4 बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।
- जबकि निर्णय सदस्यों के 3/4 बहुमत के आधार पर लिये जाते हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित मदों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त मदों में से कौन-सा/से GST (वस्तु और सेवा कर) के अंतर्गत छूट प्राप्त है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प c सही है। प्रश्न. 'वस्तु एवं सेवा कर (GST)' को लागू करने के सबसे संभावित लाभ क्या हैं/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
मेन्स:Q. वस्तु एवं सेवा कर (राज्यों को क्षतिपूर्ति) अधिनियम, 2017 के तर्काधार की व्याख्या कीजिये। COVID-19 ने कैसे वस्तु एवं सेवा कर क्षतिपूर्ति निधि को प्रभावित और नए संघीय तनावों को उत्पन्न किया है? (2020) Q. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई 2017 से क्रियान्वित GST के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। (2019) Q. संविधान (एक सौ एक संशोधन) अधिनियम, 2016 की मुख्य विशेषताओं को बताइये। क्या आपको लगता है कि यह "करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त करने और वस्तुओं तथा सेवाओं के लिये सामान्य राष्ट्रीय बाज़ार प्रदान करने" हेतु प्रभावशाली है? (2017) Q. भारत में वस्तु व सेवा कर (GST) प्रारंभ करने के मूलाधार की विवेचना कीजिये। इस व्यवस्था को लागू करने में बिलंब के कारणों का समालोचनात्मक वर्णन कीजिये। (2013) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भूगोल
ग्रहण के प्रकार
प्रिलिम्स के लिये:चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, पूर्णिमा, रेलिघ प्रकीर्णन मेन्स के लिये:पूर्ण चंद्र ग्रहण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 8 नवंबर, 2022 को पूर्ण चंद्र ग्रहण (TLE) देखा गया।
- इसके पहले भारत में अक्तूबर 2022 में आँशिक सूर्य ग्रहण देखा गया था।
प्रमुख बिंदु
सुपरमून:
- यह उस स्थिति को दर्शाता है जब चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सर्वाधिक निकट और साथ ही पूर्ण आकार में होता है।
- चंद्रमा द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा किये जाने के दौरान एक समय दोनों के मध्य सबसे कम दूरी रह जाती है जिसे उपभू (Perigee) कहा जाता है और जब दोनों के मध्य सबसे अधिक दूरी हो जाती है तो इसे अपभू (Apogee) कहा जाता है।
- चूँकि पूर्ण चंद्रमा पृथ्वी से कम-से-कम दूरी के बिंदु पर दिखाई देता है और इस समय यह न केवल अधिक चमकीला दिखाई देता है, बल्कि सामान्य पूर्णिमा के चंद्रमा से भी बड़ा होता है।
- नासा के अनुसार, सुपरमून शब्द वर्ष 1979 में ज्योतिषी रिचर्ड नोल द्वारा दिया गया था। एक सामान्य वर्ष में दो से चार पूर्ण सुपरमून और एक पंक्ति में दो से चार नए सुपरमून हो सकते हैं।
चंद्र ग्रहण:
- परिचय:
- चंद्र ग्रहण तब होता है,जब पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इस दौरान सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक-दूसरे की बिल्कुल सीध में होते हैं तथा यह घटना केवल पूर्णिमा के दिन ही घटित होती है।
- सर्वप्रथम चंद्रमा पेनुम्ब्रा (Penumbra) की तरफ चला जाता है-पृथ्वी की छाया का वह हिस्सा जहाँ सूर्य से आने वाला संपूर्ण प्रकाश अवरुद्ध नहीं होता है। चंद्रमा के भू-भाग का वह हिस्सा सामान्य पूर्णिमा की तुलना में धुँधला दिखाई देगा।
- उसके बाद चंद्रमा पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में चला जाता है, जहाँ सूर्य से आने वाला प्रकाश पूरी तरह से पृथ्वी के कारण अवरुद्ध हो जाता है। इसका मतलब है कि पृथ्वी के वायुमंडल में चंद्रमा की डिस्क द्वारा परावर्तित एकमात्र प्रकाश पहले ही वापस ले लिया गया है या परिवर्तित किया जा चुका है।
- पूर्ण चंद्र ग्रहण:
- पूर्ण चंद्र ग्रहण तब होता है जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच स्थित होती है और पृथ्वी की छाया चाँद पर पड़ती है।
- इस दौरान चंद्रमा की पूरी डिस्क पृथ्वी की कक्षा या प्रतिछाया (Umbra) में होती है, इसलिये चंद्रमा लाल (ब्लड मून) दिखाई देता है।
- रेलिघ प्रकीर्णन (Rayleigh Scattering) नामक घटना के कारण चंद्रमा लाल रंग का हो जाता है।
- रेलिघ प्रकीर्णन का तात्पर्य तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन के बिना किसी माध्यम में कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से है। यही कारण है कि आकाश नीला दिखाई देता है।
- ग्रहण के दौरान चंद्रमा लाल हो जाता है क्योंकि इस तक पहुँचने वाला सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुज़रता है। धूल या बादलों के कारण सूर्य की रोशनी में प्रकीर्णन के कारण यह लाल रंग का दिखाई देता है।
- NASA (नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) के अनुसार, पूर्ण चंद्र ग्रहण औसतन हर डेढ़ साल में एक बार होता है।
- आंशिक चंद्र ग्रहण:
- जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है एवं वह सूर्य से चंद्रमा पर आने वाले प्रत्यक्ष प्रकाश में बाधा डालती है।
- यह छाया बढ़ती जाती है और फिर चंद्रमा को पूरी तरह से ढके बिना कम हो जाती है।
- पेनुम्ब्रल चंद्र ग्रहण (Penumbral eclipse):
- इसमें चंद्रमा, पृथ्वी के पेनुम्ब्रा या इसकी छाया के बाहरी भाग से होकर गुज़रता है।
- इसमें चंद्रमा इतना धुँधला हो जाता है कि इसे देख पाना मुश्किल हो सकता है।
सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse):
- परिचय:
- जब पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं।
- प्रकार:
- पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)::
- पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse) तब होता है जब पृथ्वी, सूर्य तथा चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, इसके कारण पृथ्वी के एक भाग पर पूरी तरह से अँधेरा छा जाता है।
- इस घटना के दौरान चंद्रमा, सूर्य की पूरी सतह को ढक लेता है।
- जब चंद्रमा सूर्य की वलय को पूरी तरह से ढक लेता है तो सूर्य का केवल कोरोना दिखाई देता है।
- इसे पूर्ण ग्रहण इसलिये कहा जाता है क्योंकि ग्रहण के अधिकतम बिंदु (समग्रता के मध्य बिंदु) पर आकाश में अँधेरा छा जाता है और तापमान गिर जाता है।
- वलयाकार सूर्य ग्रहण:
- वलयाकार सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है तथा इसका आकार छोटा दिखाई देता है। इस दौरान चंद्रमा, सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है और उसका केवल कुछ हिस्सा दिखाई देता है।
- चूँकि चंद्रमा, पृथ्वी से बहुत दूर है, इसलिये यह सूर्य से छोटा दिखाई देता है और सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है।
- नतीजतन चंद्रमा एक बड़ी, चमकदार वलय के ऊपर एक अँधेरे वलय के रूप में दिखाई देता है, जो चंद्रमा के चारों ओर एक रिंग जैसा दिखता है।
- आंशिक सूर्य ग्रहण:
- आंशिक सूर्य ग्रहण तब होता है जब सूर्य और पृथ्वी के बीच से चंद्रमा गुजरता है लेकिन सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी पूरी तरह से एक साथ नहीं होते हैं।
- सूर्य का केवल एक हिस्सा ही ढका हुआ दिखाई देता है, जिससे यह अर्द्धचंद्राकार आकार का दिखाई देगा। पूर्ण या वलयाकार सूर्य ग्रहण के दौरान चंद्रमा की आंतरिक छाया से आच्छादित क्षेत्र के बाहर, लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देता है।
- मिश्रित सूर्य ग्रहण:
- थ्वी की सतह की वक्रता के कारण कभी-कभी ग्रहण के चरण वलयाकार और पूर्ण ग्रहण के बीच परिवर्तित हो सकता है कक्योंकि चंद्रमा की छाया दुनिया भर में दिखाई देती है।
- इसे मिश्रित सूर्य ग्रहण कहा जाता है।
- पूर्ण सूर्य ग्रहण (Total Solar Eclipse)::
स्रोत: द हिंदू
एथिक्स
भारत के लिये नैतिक शासन का आयाम
मेन्स के लिये:भारत के लिये नैतिक शासन का आयाम |
नैतिक शासन:
- नैतिक शासन से तात्पर्य शासन प्रक्रिया में नैतिक मूल्यों और व्यवहार के उच्च मानकों को शामिल करना है।
- उदाहरण के लिये एक नौकरशाह अपने कार्यालय में आने वाले लोगों की सेवा करने के लिये बाध्य तो होता है लेकिन यदि वह बहुत लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के बाद आने वाले थके हुए बुजुर्ग के लिये एक गिलास पानी की भी सुविधा उपलब्ध नहीं कराता है, तो इसके लिये उसे दंडित नहीं किया जा सकता है। सार्वजनिक सेवा और परोपकारिता की भावना ही उसे ऐसा करने के लिये प्रेरित करेगी।
- इसी तरह से आधार के साथ बायोमेट्रिक डेटा के बेमेल होने के वावजूद अधिकारी को लाभार्थियों को (विशेष रूप से महिलाओं और वरिष्ठ नागरिकों के लिये) सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत राशन के वितरण की अनुमति देनी चाहिये। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऐसी सेवाओं से मना करने पर किसी व्यक्ति की जान भी जा सकती है। इसलिये करुणा और मानवीय गरिमा नैतिक शासन का आधार होते हैं।
- नागरिकों और लोक सेवकों के बीच विश्वास एवं आपसी सहयोग स्थापित करने के लिये नैतिक शासन बहुत आवश्यक है।
नैतिक शासन के प्रमुख तत्त्व:
- नैतिक शासन का आशय निश्चित मूल्यों के आधार पर शासन के संचालन से है। उदाहरण के लिये ईमानदारी, अखंडता, करुणा, सहानुभूति, ज़िम्मेदारी, सामाजिक न्याय आदि कुछ ऐसे मूल्य हैं जिनके बिना नैतिक शासन को बनाए नहीं रखा जा सकता है।
- ईमानदारी से यह सुनिश्चित होगा कि प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य जनहित है और इसमें भ्रस्ट कार्यों का कोई स्थान नहीं है।
- उत्तरदायित्व केवल जवाबदेही नहीं है, यह किसी के विवेक पर आधारित निर्णय के रूप में चूक संबंधी प्रत्येक कार्य के लिये आंतरिक जवाबदेही सुनिश्चित करता है। अगर ऐसा हो जाता है तो भ्रष्टाचार का सवाल ही नहीं उठता।
- राष्ट्र को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये भ्रष्टाचार को समाप्त करना न केवल एक नैतिक अनिवार्यता है, बल्कि आर्थिक आवश्यकता भी है।
- भ्रष्टाचार को खत्म करने और नौकरशाही के कारण देरी को कम करने के लिये कानून का शासन, नैतिक शासन के सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में से एक होना चाहिये।
- कानून का शासन, प्रशासन में मनमानी को रोकता है, जिससे विवेक के दुरुपयोग की संभावना कम हो जाती है।
भारतीय शासन में नैतिक मुद्दे:
- प्राधिकरण या पद की स्थिति का उल्लंघन: अधिकारी ऐसे कार्य करते हैं जो उनकी स्थिति, ज़िम्मेदारियों और अधिकारों से बाहर होते हैं, जो अंततः राज्य या कुछ नागरिकों के हितों को नुकसान पहुँचाते हैं।
- उपेक्षा: सार्वजनिक अधिकारी या तो अपनी पेशेवर ज़िम्मेदारियों का पालन नहीं करते हैं या उनके साथ एक अपराधी के तरह व्यवहार करते हैं, जिससे राज्य या समुदाय को नुकसान होता है।
- रिश्वतखोरी: भ्रष्टाचार और रिश्वत समाज के स्वीकार्य अंग बन गए हैं, भ्रष्टाचार और लेन-देन के कार्य को बढ़ावा दे रहे हैं।
- शालीनता: अधिकारियों का असाधारण मेहनती, समर्पित और कर्तव्यनिष्ठ होना आवश्यक है, लेकिन वे आत्मसंतुष्ट होते हैं, जो स्थिति, पद और परिलब्धियों से ग्रस्त एवं विलासिता के आदी होते हैं।
- संरक्षण: वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा नियामक निकायों और अन्य महत्त्वपूर्ण पदों से सेवानिवृत्ति के बाद बड़े पैमाने पर बिना किसी दिशा-निर्देश और संरक्षण के कार्य किया जाता है।
- प्रशासनिक गोपनीयता: प्रशासनिक गोपनीयता का उद्देश्य निजी हितों को बनाए रखते हुए जनहित की सेवा करना है। इसलिये पारदर्शिता नैतिक शासन के सबसे महत्त्वपूर्ण गुणों में से एक है।
आगे की राह
- प्रभावी कानून: इसके तहत सिविल सेवकों को अपने आधिकारिक निर्णयों को न्यायोचित साबित करना पड़ेगा।
- प्रबंधन के प्रति नए दृष्टिकोण: भ्रष्टाचार और अनैतिक मामलों के संबंध में सभी सरकारी अधिकारियों एवं सिविल सेवकों को इससे सकारात्मक रूप से निपटने के लिये प्रोत्साहित करना।
- व्हिसलब्लोअर सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करना: अधिकारियों द्वारा किये जाने वाले गलत कार्यों को लोकहित में उजागर करने वाले व्यक्ति की सुरक्षा हेतु व्हिसलब्लोअर सुरक्षा कानून को प्रभावी बनाना।
- एथिक्स ऑडिट: महत्त्वपूर्ण प्रक्रियाओं की अखंडता के लिये ज़ोखिमों की पहचान करना।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश: अपनी व्यापक सिफारिशों में इसने चुनावों में राज्य द्वारा वित्तपोषण, दलबदल विरोधी कानून को अधिक प्रभावी बनाने और मंत्रियों, विधायिका, न्यायपालिका तथा सिविल सेवकों के लिये नैतिक संहिता की सिफारिश की।
- भ्रष्टाचार की जाँच करना: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधान को अधिक प्रभावी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिससे भ्रष्ट लोक सेवकों को हर्ज़ाना भरने, अवैध रूप से अर्जित संपत्ति की ज़ब्ती एवं त्वरित परीक्षण के लिये उत्तरदायी बनाया जा सके।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. उपयुक्त उदाहरणों सहित “सदाचार संहिता और आचार संहिता के बीच विभेदन कीजिये: (2018) प्रश्न. लोक प्रशासन में नैतिक दुविधाओं का समाधान करने के प्रक्रम को स्पष्ट कीजिये: (2018) प्रश्न.मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और यहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (2018) |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
भारतीय राजव्यवस्था
सभी कर्मचारियों को पीएफ पेंशन योजना चुनने का विकल्प
प्रिलिम्स के लिये:कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014, EPFO, सर्वोच्च न्यायालय। मेन्स के लिये:PF पेंशन योजना और इसके प्रभावों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय। |
चर्चा में क्यों?
एक महत्त्वपूर्ण फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने कर्मचारी पेंशन (संशोधन) योजना, 2014 को बरकरार रखते हुए पेंशन फंड में शामिल होने के लिये 15,000 रुपए मासिक वेतन की सीमा को रद्द कर दिया है।
कर्मचारी पेंशन योजना:
- परिचय:
- EPF पेंशन, जिसे तकनीकी रूप से कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के रूप में जाना जाता है, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा प्रदान की जाने वाली एक सामाजिक सुरक्षा योजना है।
- यह योजना पहली बार वर्ष 1995 में शुरू की गई थी।
- EPFO द्वारा प्रदान की जाने वाली यह योजना 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति के बाद संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये पेंशन का प्रावधान करती है।
- वे कर्मचारी जो EPF के सदस्य हैं वे स्वतः ही EPS के सदस्य बन जाते हैं।
- कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना में नियोक्ता और कर्मचारी दोनों कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) का 12% योगदान करते हैं।
- EPF योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य है जो 15,000 रुपए प्रति माह मूल वेतन प्राप्त करते हैं।
- नियोक्ता के 12% के हिस्से में से 8.33% EPS में जमा कर दिया जाता है।
- केंद्र सरकार भी कर्मचारियों के मासिक वेतन का 1.16% योगदान करती है।
- EPF पेंशन, जिसे तकनीकी रूप से कर्मचारी पेंशन योजना (EPS) के रूप में जाना जाता है, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा प्रदान की जाने वाली एक सामाजिक सुरक्षा योजना है।
- EPS (संशोधन) योजना, 2014:
- वर्ष 2014 के EPS संशोधन ने पेंशन योग्य वेतन सीमा को 6,500 रुपए प्रतिमाह से बढ़ाकर 15,000 रुपए प्रतिमाह कर दिया था और केवल मौजूदा सदस्यों (1 सितंबर, 2014 तक) को अपने नियोक्ताओं के साथ पेंशन फंड में अपने वास्तविक वेतन (यदि यह सीमा से अधिक) पर 8.33 प्रतिशत योगदान करने के विकल्प का प्रयोग करने की अनुमति दी थी। क्षेत्रीय भविष्य निधि आयुक्त के विवेक पर इसे और छह महीने के लिये बढ़ाया जा सकता है।
- हालाँकि इसने 15,000 रुपए से अधिक आय वाले और सितंबर 2014 के बाद शामिल होने वाले नए सदस्यों को योजना से पूरी तरह से बाहर कर दिया।
- हालाँकि संशोधन में ऐसे सदस्यों को पेंशन फंड के लिये प्रतिमाह 15,000 रुपए से अधिक वेतन का अतिरिक्त 1.16% योगदान करने की आवश्यकता थी।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने EPFO सदस्यों, जिन्होंने EPS का लाभ उठाया है, को अगले चार महीनों में अपने वास्तविक वेतन का 8.33% तक योगदान करने का एक और अवसर दिया है, जबकि पेंशन योग्य वेतन का 8.33% पेंशन के लिये 15,000 रुपए प्रतिमाह तक सीमित है।
- पूर्व-संशोधन योजना के तहत पेंशन योग्य वेतन की गणना पेंशन फंड की सदस्यता से बाहर निकलने से पहले 12 महीनों के दौरान प्राप्त वेतन के औसत के रूप में की गई थी। संशोधनों ने इसे पेंशन फंड की सदस्यता से बाहर निकलने से पहले औसतन 60 महीने तक बढ़ा दिया।
- न्यायालय ने संशोधन के तहत 15,000 रुपए से अधिक मासिक वेतन के संदर्भ में अतिरिक्त 1.16% का योगदान करने के लिये कहा जो कि कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के प्रावधानों से इतर है।
निहितार्थ:
- ईपीएफ के सदस्य 15000 रुपये की सीमा के बजाय अपने पूरे वेतन के आधार पर पेंशन प्राप्त कर सकेंगे।
- सहायक प्रोविडेंट आयुक्त के अनुमोदन के बिना ईपीएफ में योगदान करने वाले कर्मचारी और नियोक्ता को इस निर्णय का लाभ नहीं मिल सकता है।
- वर्ष 2014 में किया गया संशोधन उन कंपनियों पर लागू रह सकता है जो ट्रस्टों के माध्यम से अपने ईपीएफ कोष का प्रबंधन करती हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. भारत में नियोजित आकस्मिक श्रमिकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है? (a) 1 और 2 केवल उत्तर: (d) |
स्त्रोत: द हिन्दू
भारतीय राजव्यवस्था
विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका
प्रिलिम्स के लिये:विश्वविद्यालयों में कुलपति पर तमिलनाडु विधेयक, राज्य के विश्वविद्यालयों की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका मेन्स के लिये:केंद्र-राज्य संबंधों में राज्यपाल की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल ने भारत में नैतिक शासन के महत्त्व के बारे में बात की।
- राज्यपाल ने नियुक्ति में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों के उल्लंघन का हवाला देते हुए कुलपतियों को नोटिस जारी किया था।
विश्वविद्यालय के संबंध में राज्यपाल की शक्तियाँ:
- राज्य विश्वविद्यालय:
- ज़्यादातर मामलों में राज्य के राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं।
- राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप से कार्य करता है और सभी विश्वविद्यालयों के मामलों पर स्वयं निर्णय लेता है।
- केंद्रीय विश्वविद्यालय:
- केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का विज़िटर होगा।
- केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति नाममात्र के प्रमुख होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक के रूप में चुना जाता है, उनके कर्तव्यों को दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने के लिये सीमित किया जाता है।
- कुलपति की नियुक्ति, केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनलों से विज़िटर/आगंतुक द्वारा की जाती है।
- अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को विज़िटर के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण को अधिकृत करने एवं पूछताछ करने का अधिकार होगा।
राज्यपालों को कुलपति बनाने का मूल उद्देश्य:
- राज्यपालों को कुलपति बनाना और उन पर कुछ वैधानिक शक्तियाँ लगाने का मूल उद्देश्य विश्वविद्यालयों को राजनीतिक प्रभाव से बचाना था।
- आयोग की सिफारिशें:
- सरकारिया आयोग:
- न्यायमूर्ति आर.एस. सरकारिया आयोग ने पाया कि कुछ राज्यपालों द्वारा विश्वविद्यालय की कुछ नियुक्तियों में विवेक का इस्तेमाल करना आलोचना के दायरे में है।
- इसने राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका और कुलपति के रूप में निभाई गई वैधानिक भूमिका के बीच अंतर को स्वीकार करते हुए यह भी रेखांकित किया कि कुलपति सरकार की सलाह लेने के लिये बाध्य नहीं है।
- एम.एम. पुंछी आयोग:
- इस आयोग ने पाया कि राज्यपाल को ऐसी शक्तियाँ न दी जाएँ जिससे इसका पद विवादों या सार्वजनिक आलोचना के दायरे में आ जाए। इसने राज्यपाल को वैधानिक शक्तियाँ प्रदान करने को स्वीकार नहीं किया।
- सरकारिया आयोग:
UGC की भूमिका:
- शिक्षा समवर्ती सूची के अंतर्गत आती है, लेकिन संघ सूची की प्रविष्टि 66 "उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों के मानकों का समन्वय तथा निर्धारण" केंद्र को उच्च शिक्षा पर पर्याप्त अधिकार देता है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियुक्तियों के मामले में भी मानक-निर्धारण की भूमिका निभाता है।
- UGC (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और अन्य अकादमिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा में मानकों के रखरखाव के लिये अन्य उपाय) विनियम, 2018 के अनुसार, "विज़ीटर/चांसलर"- ज़्यादातर राज्यों में राज्यपाल, खोज-सह-चयन समितियों द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल में से कुलपति की नियुक्ति करेंगे।
- उच्च शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से जिन्हें UGC से फंड मिलता है, उन्हें इसके नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
- आमतौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में बिना किसी टकराव के इनका पालन किया जाता है, लेकिन कभी-कभी राज्य विश्वविद्यालयों के मामले में राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।
आगे की राह
- अब समय आ गया है कि सभी राज्य, राज्यपाल को कुलाधिपति के रूप में नियुक्त करने पर पुनर्विचार करें।
- हालाँकि उन्हें विश्वविद्यालय स्वायत्तता की रक्षा के वैकल्पिक साधन भी खोजना चाहिये ताकि सत्तारूढ़ दल विश्वविद्यालयों के कामकाज़ पर अनुचित प्रभाव न डालें।
यूपीएससी सिविल सेवा विगत वर्षों के प्रश्नप्रारंभिक परीक्षा:प्रश्न. भारत के किसी राज्य की विधानसभा के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:C व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही उत्तर है। प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (C) व्याख्या:
मुख्य परीक्षा:प्रश्न: क्या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (जुलाई 2018) उपराज्यपाल और दिल्ली की निर्वाचित सरकार के बीच राजनीतिक खींचतान को सुलझा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)) प्रश्न: राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों पर चर्चा कीजिये, अध्यादेशों को विधानमंडल के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा उन्हें फिर से प्रख्यापित करने की वैधता पर चर्चा कीजिये (2022) |