केंद्रीय तिब्बती राहत समिति
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय तिब्बती राहत समिति, टीपीआईई (निर्वासन में तिब्बती संसद), शिमला कन्वेंशन। मेन्स के लिये:भारत की तिब्बत नीति, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने दलाई लामा की केंद्रीय तिब्बती राहत समिति (Central Tibetan Relief Committee- CTRC) को 40 करोड़ रुपए के सहायता अनुदान प्रदान करने की योजना का विस्तार कर वित्तीय वर्ष 2025-26 तक पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया है।
- यह योजना देश के 12 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में फैली तिब्बती बस्तियों में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों के लिये प्रशासनिक खर्चों और सामाजिक कल्याण खर्चों को पूरा करने हेतु सीटीआरसी को 8 करोड़ रुपए का वार्षिक अनुदान प्रदान करती है।
केंद्रीय तिब्बती राहत समिति:
- इसे वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। समिति का मुख्य उद्देश्य निजी, स्वैच्छिक एजेंसियों और तिब्बती शरणार्थियों के पुनर्वास एवं उन्हें बसाने के लिये भारत सरकार के प्रयासों के साथ समन्वय स्थापित करना है।
- इस समिति में भारत, नेपाल और भूटान में स्थित 53 तिब्बती बस्तियों के सदस्य शामिल हैं।
- यह तिब्बत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को संरक्षित करने तथा निर्वासित तिब्बती लोगों के स्थायी लोकतांत्रिक समुदायों का निर्माण करने और उनके सतत् रखरखाव हेतु समर्पित है।
- यह सरकारों, विशेष रूप से भारत, नेपाल और भूटान, परोपकारी संगठनों और व्यक्तियों की उदार अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर निर्भर है।
- सभी CTRC गतिविधियाँ निदेशक मंडल की सहमति और समर्थन तथा TPiE (निर्वासन में तिब्बती संसद) से अनुमोदन के साथ की जाती हैं।
- TPiE का मुख्यालय हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा ज़िले के धर्मशाला में है, जिसके अनुसार पूरे भारत में 1 लाख से अधिक तिब्बती बसे हुए हैं।
तिब्बती शरणार्थियों के पलायन का कारण:
- वर्ष 1912 से वर्ष 1949 में चीन के जनवादी गणराज्य की स्थापना तक किसी भी चीनी सरकार द्वारा चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (Tibet Autonomous Region- TAR) पर नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया।
- कई तिब्बतियों का कहना है कि वे उस समय के अधिकांश समय अनिवार्य रूप से स्वतंत्र थे और वर्ष 1950 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा TAR पर कब्ज़ा करने के बाद वहाँ चीन के शासन का वे विरोध करते रहे।
- वर्ष 1951 तक अकेले दलाई लामा की सरकार ने इस भूमि/क्षेत्र पर शासन किया।
- तिब्बत तब तक "चीन" के अंतर्गत नहीं था जब तक कि माओत्से तुंग की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ( People's Liberation Army- PLA) ने इस क्षेत्र में अपने सैनिकों के साथ मार्च नहीं किया।
- इसे अक्सर तिब्बती लोगों और तीसरे पक्ष के टिप्पणीकारों द्वारा "सांस्कृतिक नरसंहार" (Cultural Genocide) के रूप में वर्णित किया गया है।
- वर्ष 1959 का असफल तिब्बती विद्रोह, जिसमें तिब्बतियों ने चीन की सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयास में विद्रोह किया तथा यह 14वें दलाई लामा के भागकर भारत आने का कारण बना।
- 29 अप्रैल, 1959 में दलाई लामा द्वारा उत्तर भारतीय हिल स्टेशन मसूरी में तिब्बती निर्वासन प्रशासन (Tibetan Exile Administration) की स्थापना की गई।
- इसे आध्यात्मिक दलाई लामा के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (Central Tibetan Administration- CTA) का नाम दिया गया है जो स्वतंत्र तिब्बत की सरकार की निरंतरता का परिणाम था।
- मई 1960 में CTA को धर्मशाला में स्थानांतरित कर दिया गया।
भारत की तिब्बत नीति:
- तिब्बत वर्षो से भारत का एक अच्छा पड़ोसी रहा है, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाओं सहित 3500 किमी. LAC तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ जुड़ा है, न कि शेष चीन के साथ।
- वर्ष 1914 में चीन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये, जिसके तहत सीमाओं को चिह्नित किया गया।
- हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद चीन ने इस सम्मेलन और मैकमोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया, जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
- इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें तिब्बत को ‘चीन के तिब्बत क्षेत्र’ के रूप में मान्यता देने पर सहमति हुई।
- वर्ष 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद ‘दलाई लामा’ (तिब्बती लोगों के आध्यात्मिक नेता) और उनके कई अनुयायी भारत आ गए।
- पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें और तिब्बती शरणार्थियों को आश्रय दिया तथा निर्वासन में तिब्बती सरकार की स्थापना में मदद की।
- आधिकारिक भारतीय नीति यह है कि दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और भारत में एक लाख से अधिक निर्वासित लोगों वाले तिब्बती समुदाय को किसी भी राजनीतिक गतिविधि की अनुमति नहीं है।
- भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति में भारत की तिब्बत नीति में बदलाव आया है।
- नीति में यह बदलाव सार्वजनिक मंचों पर दलाई लामा के साथ सक्रिय रूप से संलग्न होने वाली भारत सरकार की नीति को चिह्नित करता है।
स्रोत: द हिंदू
बदलते मौसम में वनाग्नि का प्रबंधन
प्रिलिम्स के लिये:वनाग्नि, जलवायु परिवर्तन, जंगल की आग पर राष्ट्रीय कार्य योजना, ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद, एनडीएमए, वन सर्वेक्षण रिपोर्ट। मेन्स के लिये:वनाग्नि और इससे संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) द्वारा जारी एक अध्ययन (मैनेजिंग फॉरेस्ट फायर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट) के अनुसार, पिछले दो दशकों में वनाग्नि की आवृत्ति और तीव्रता के साथ-साथ इस तरह की वनाग्नि वाले महीनों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- CEEW एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, एशिया के अग्रणी गैर-लाभकारी नीति अनुसंधान संस्थानों में से एक है, जो संसाधनों के उपयोग, पुन: उपयोग और दुरुपयोग को प्रभावित करने वाले सभी मामलों पर शोध हेतु समर्पित है।
वनाग्नि क्या है?
- इसे बुशफायर (Bushfire) या जंगल की आग भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।
- वनाग्नि की घटनाएँ वन क्षेत्र की सफाई जैसे- मानवीय कार्यों, अत्यधिक सूखा या दुर्लभ मामलों में आकाशीय बिजली गिरने के कारण प्रेरित हो सकती हैं।
- वनाग्नि को प्रेरित करने के लिये तीन स्थितियों की आवश्यकता होती है: ईंधन, ऑक्सीजन और ऊष्मा/ऊर्जा/गर्मी का स्रोत।
अध्ययन के निष्कर्ष:
- वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि:
- पिछले दो दशकों के दौरान वनाग्नि की घटनाओं में दस गुना वृद्धि हुई है और 62% से अधिक भारतीय राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि के लिये प्रवण हैं।
- तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि की घटनाओं के लिये सबसे अधिक प्रवण हैं।
- पिछले दो दशकों में वनाग्नि की सर्वाधिक घटनाएँ मिज़ोरम में घटित हुई हैं, इसके 95% से अधिक ज़िले वनाग्नि के लिये हॉटस्पॉट हैं।
- जो ज़िले पहले बाढ़ प्रवण थे, अब जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ‘स्वैपिंग ट्रेंड’ के कारण सूखा प्रवण बन गए हैं।
- 75% से अधिक भारतीय ज़िले चरम जलवायु घटना के प्रति ‘हॉटस्पॉट’ के रूप में विकसित हुए हैं, और 30% से अधिक ज़िले अत्यधिक वनाग्नि वाले ‘हॉटस्पॉट’ हैं।
वनाग्नि हॉटस्पॉट राज्य और ज़िले |
||
दशक |
हॉटस्पॉट राज्य |
हॉटस्पॉट ज़िले |
2000-19 |
आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, मणिपुर, मिज़ोरम, नगालैंड, उत्तराखंड |
दीमा हसाओ, लुंगलेई, लवंगतलाई, ममित, हरदा, जबलपुर, होशंगाबाद, नारायणपुर, उधम सिंह नगर, कंधमाल, गढ़चिरौली |
- पूर्वोत्तर में वनाग्नि की अधिक घटनाएँ:
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में हाल के दशकों में वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि हुई है।
- वर्षा सिंचित क्षेत्र होने के बावजूद पूर्वोत्तर भारत में मार्च-मई माह के बीच शुष्क मौसम में वृद्धि के दौरान और खराब वर्षा वितरण पैटर्न के कारण वनाग्नि की अधिक घटनाएँ देखी जा रही हैं।
- दुर्घटना की लंबी अवधि:
- इससे पहले वनाग्नि की घटनाएँ प्रायः गर्मी के महीनों के दौरान यानी मई और जून माह के बीच होती थी। अब वसंत के दौरान यानी मार्च एवं मई माह के बीच भी जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ देखी जा रही हैं।
- पहले जंगल में आग लगने की अवधि दो से तीन महीने तक होती थी, लेकिन अब यह अवधि लगभग छह महीने तक बढ़ गई है।
- वर्ष 2019 में भारतीय वन सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में पाया गया था कि भारत में 36% वन क्षेत्र उन क्षेत्रों में आते हैं जो वनाग्नि से ग्रस्त हैं।
वनाग्नि पर हालिया डेटा:
- भारतीय वन सर्वेक्षण के अनुसार, 30 मार्च, 2022 तक भारत में वनाग्नि की कुल 381 घटनाओं की सूचना मिली है। वनाग्नि की सर्वाधिक (133) घटनाएँ मध्य प्रदेश में दर्ज की गई हैं।
- मार्च 2022 में वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में दर्ज की गई थीं।
- राजस्थान के सरिस्का टाइगर रिज़र्व में हाल ही में लगी आग को भी बेमौसम माना गया था, यहाँ उच्च तापमान के कारण वनाग्नि का प्रसार देखा गया।
- जनवरी 2021 में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश (कुल्लू घाटी) और नगालैंड-मणिपुर सीमा (ज़ुकू घाटी) में लंबे समय तक आग लगी रही।
- हाल की वनाग्नि की घटनाओं में मध्य प्रदेश के बाँधवगढ़ वन अभ्यारण्य में हुई घटना भी शामिल हैं।
CEEW की सिफारिशें:
- आपदा के रूप में पहचानना:
- वनाग्नि को "प्राकृतिक आपदा" माना जाना चाहिये और इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अधीन लाया जाना चाहिये।
- इसके अलावा वनाग्नि को प्राकृतिक आपदा नामित कर उसके प्रबंधन हेतु वित्तीय आवंटन भी किया जाना चाहिये।
- चेतावनी प्रणाली/अलर्ट सिस्टम विकसित करना:
- वनाग्नि के लिये केवल एक चेतावनी प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है जो वास्तविक समय प्रभाव-आधारित अलर्ट जारी कर सके।
- अनुकूलनीय क्षमताओं को बढ़ाना:
- ज़िला प्रशासन और वनों पर आश्रित समुदायों के लक्षित क्षमता-निर्माण पहलों से वनाग्नि के कारण होने वाले नुकसान एवं क्षति को रोका जा सकता है।
- स्वच्छ वायु युक्त आश्रय प्रदान करना:
- राज्य सरकार/राज्य वन विभागों (एसएफडी) को सरकारी स्कूलों और सामुदायिक हॉल जैसे सार्वजनिक भवनों को निर्मित करना चाहिये जिनमें स्वच्छ हवा हेतु उपाय जैसे- एयर फिल्टर की व्यवस्था हो, ताकि वनाग्नि के कारण उत्पन्न धुएँ से प्रभावित होने वाले समुदायों को स्वच्छ वायु प्रदान की जा सके।
वनाग्नि की घटनाओं में कमी के प्रयास:
- वर्ष 2004 में FSI (भारतीय वन सर्वेक्षण) ने वनाग्नि की रियल टाइम निगरानी हेतु फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम विकसित किया।
- वनाग्नि पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPFF) 2018 और वनाग्नि रोकथाम एवं प्रबंधन योजना।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
बायोगैस ऊर्जा
प्रिलिम्स के लिये:जीवाश्म ईंधन, जलवायु परिवर्तन, मीथेन, ग्रीनहाउस गैस, डेंगू, मलेरिया, वायु प्रदूषण, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, जल प्रदूषण, वनों की कटाई, कार्बन डाइऑक्साइड, सतत् विकास लक्ष्य। मेन्स के लिये:बायोगैस ऊर्जा और उसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नोएडा प्राधिकरण ने घोषणा की है कि वह सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) संयंत्र को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित कर सकता है, क्योंकि स्थानीय निवासियों द्वारा एक स्वचालित संपीड़ित बायोगैस (CBG) संयंत्र की स्थापना का विरोध किया जा रहा है।
क्या है बायोगैस?
- इसमें मुख्य रूप से हाइड्रो-कार्बन शामिल होता है, जो दहनशील होने के साथ ही जलने पर गर्मी एवं ऊर्जा पैदा कर सकता है।
- बायोगैस एक जैव रासायनिक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होती है, जिसमें कुछ प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायो-गैस में परिवर्तित करते हैं।
- चूँकि उपयोगी गैस एक जैविक प्रक्रिया से उत्पन्न होती है, इसलिये इसे ‘बायोगैस’ कहा गया है।
- मीथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।
बायोमास से संबंधित मुद्दे:
- प्रदूषण:
- खाना पकाने, गर्म करने और प्रकाश के लिये ऊर्जा पैदा करने हेतु लकड़ी, जीवाश्म ईंधन एवं अन्य सामग्री (जैसे अपशिष्ट के रूप में ऊर्जा संयंत्रों में उपयोग किये गए कचरे से प्राप्त ईंधन) के कारण होने वाला प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य एवं जीवन की गुणवत्ता में सुधार की प्रमुख बाधाओं में से एक है।
- जीवाश्म ईंधन और बायोमास के दहन से निकलने वाले प्रदूषक न केवल लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के लिये भी उत्तरदायी हैं।
- अपशिष्ट सृजन:
- भारत प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट (MSW) उत्पन्न करता है, जिसमें से लगभग आधा जैविक होता है।
- MSW का यह कार्बनिक अंश मीथेन का उत्पादन करने के लिये विघटित होता है, जब लैंडफिल की तरह अनुचित तरीके से निपटाया जाता है।
- जैविक कचरे को लैंडफिल में फेंकना या कचरा जलाना पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये भी खतरनाक है। ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन के अलावा अपशिष्ट के इस तरह के अवैज्ञानिक निपटान से डेंगू बुखार और मलेरिया जैसी बीमारियाँ होती हैं।
- स्वास्थ्य के लिये खतरा:
- कई अध्ययनों से अस्थमा, वातस्फीति, कैंसर और हृदय रोग जैसी कई पुरानी बीमारियों को भी वायु प्रदूषण से जोड़ा गया है।
बायोगैस का महत्त्व:
- प्रदूषण मुक्त शहर:
- बायोगैस समाधान हमारे शहरों को स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद कर सकता है।
- लैंडफिल से ज़हरीले पदार्थों का रिसाव भूजल को दूषित करता है।
- कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के कारण पर्यावरण में भारी मात्रा में मीथेन निष्कासित होती है, जिससे वायु प्रदूषण एवं ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति उत्पन्न होती है, क्योंकि मीथेन एक बहुत ही शक्तिशाली GHG है।
- बायोगैस समाधान हमारे शहरों को स्वच्छ एवं प्रदूषण मुक्त बनाने में मदद कर सकता है।
- जैविक कचरे का प्रबंधन:
- बड़े पैमाने पर म्युनिसिपल बायोगैस सिस्टम (Municipal Biogas System) स्थापित कर शहरों में जैविक कचरे का कुशलतापूर्वक निपटान करने में मदद मिल सकती है ताकि कचरे के अत्यधिक बोझ से उत्पन्न पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का सामना किया जा सके।
- शहरों को स्वच्छ और स्वस्थ रखते हुए जैव उर्वरकों के साथ स्वच्छ एवं हरित ईंधन का निर्माण करने हेतु नगर निगम के कचरे के लिये इन संयंत्रों का उपयोग किया जा सकता है।
- महिलाओं के लिये मददगार:
- बायोगैस का उपयोग करना महिलाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित हो सकता है क्योंकि वे हानिकारक धुएंँ और प्रदूषण के संपर्क में आने से बच जाएंगी।
- घरों के अंदर जीवाश्म ईंधन और बायोमास के जलने से होने वाले वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के कारण हर साल वैश्विक स्तर पर चार मिलियन से अधिक लोग मारे जाते हैं।
- घर के अंदर होने वाले प्रदूषण के कारण महिला सदस्य अत्यधिक प्रभावित होती हैं क्योंकि उन्हें अधिक समय तक घर में रहकर कार्य करना होता है।
- बायोगैस का उपयोग करना महिलाओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित हो सकता है क्योंकि वे हानिकारक धुएंँ और प्रदूषण के संपर्क में आने से बच जाएंगी।
- ऊर्जा निर्भरता का विकल्प:
- बायोगैस का प्रयोग ग्रामीण और कृषि समुदाय जो कि अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये मुख्य रूप से लकड़ी, गोबर, लकड़ी का कोयला, कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन के दहन पर निर्भर है, की ऊर्जा निर्भरता को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- भारत में उत्पादित कुल बिजली का केवल 26.53 प्रतिशत नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त होता है।
- गैर-नवीकरणीय स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता देश में लंबे समय से चली आ रही ऊर्जा समस्याओं का प्रमुख कारण है।
- बायोगैस का प्रयोग ग्रामीण और कृषि समुदाय जो कि अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के लिये मुख्य रूप से लकड़ी, गोबर, लकड़ी का कोयला, कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधन के दहन पर निर्भर है, की ऊर्जा निर्भरता को बदलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- पशुधन खाद का प्रबंधन:
- सूक्ष्म और वृहद् स्तर पर बायोगैस संयंत्र स्थापित करने से पशुधन से प्राप्त खाद, कृषि अपशिष्ट, मिट्टी की बिगड़ती गुणवत्ता, जल प्रदूषण और वनों की कटाई जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों का समाधान किया जा सकता है।
- कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करना:
- एक पूरी तरह कार्यात्मक बायोगैस डाइजेस्टर, संसाधित किये गए प्रत्येक टन फीडस्टॉक (Feedstock Processed) के लिये एक वर्ष में लगभग 2.83 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम कर सकता है।
- जैविक कचरे को स्वच्छ ऊर्जा में बदलने के लिये बायोगैस डाइजेस्टर का उपयोग करना प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, आजीविका की असमानता और व्यक्तिगत स्तर के साथ-साथ पूरे समुदाय में स्वास्थ्य जैसी चुनौतियों का मुकाबला करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
- मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार:
- डाइजेस्टेट (Digestate), बायोगैस संयंत्रों में उत्पन्न एक उप-उत्पाद अर्थात् बाय प्रोडक्ट होता है जो जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होता है और मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।
- डाइजेस्टेट, पौधों के लिये आवश्यक सूक्ष्म और मैक्रोपोषक तत्त्वों (Micro and Macro-Nutrients) से भरपूर होता है तथा समय के साथ मिट्टी की गुणवत्ता को खराब करने वाले सिंथेटिक उर्वरकों के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- डाइजेस्टेट (Digestate), बायोगैस संयंत्रों में उत्पन्न एक उप-उत्पाद अर्थात् बाय प्रोडक्ट होता है जो जैव उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि यह कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध होता है और मिट्टी की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।
- लैंगिक असमानता कम करने में मददगार:
- बायोगैस लैंगिक असमानता को कम करने और महिलाओं को सशक्त बनाने में भी मदद कर सकती है, जिससे जीवन की गुणवत्ता में सुधार होगा।
- चूँकि ग्रामीण परिवारों को खाना पकाने के लिये ईंधन के रूप में बायोगैस तक पहुँच प्राप्त होती है, अतः इसके चलते महिलाओं और लड़कियों को जलाऊ लकड़ी तथा अन्य ईंधन इकट्ठा करने में अधिक समय की आवश्यकता नहीं होती है और अपने खाली समय का उपयोग वे शिक्षा, नए कौशल प्राप्त करने एवं सामुदायिक कार्य के लिये कर सकते हैं।
- नए कौशल प्राप्त करने से अंततः उनकी पहुँच नए रोज़गार और व्यावसायिक अवसरों तक सुनिश्चित होगी जो उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद तथा घरेलू निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करते है।
- SDG लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक हो सकता है:
- बायोगैस कई संयुक्त राष्ट्र-अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है जैसे कि ज़ीरो हंगर, अच्छा स्वास्थ्य और भलाई, लैंगिक समानता, स्वच्छ पानी एवं स्वच्छता, टिकाऊ, सस्ती व स्वच्छ ऊर्जा, अच्छा काम तथा आर्थिक विकास, असमानताओं में कमी, स्थायी शहर और समुदाय, जलवायु कार्रवाई आदि।
संबंधित पहलें:
- सतत (SATAT) :
- SATAT का अर्थ है किफायती परिवहन के लिये सतत् विकल्प (Sustainable Alternative Towards Affordable Transportation- SATAT) है।
- यह संपीडित बायोगैस उत्पादन संयंत्र स्थापित करने की एक पहल है, जिसका उद्देश्य उद्यमियों से संपीड़ित जैव-गैस (Compressed Biogas-CBG) उत्पादन संयंत्र स्थापित करने और स्वचालित ईंधन (Automotive Fuel) में संपीड़ित जैव-गैस के उपयोग हेतु बाज़ार में इसकी उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019) 1- कार्बन मोनोऑक्साइड फसल/जैव अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
|
स्रोत: डाउन टू अर्थ
विश्व खाद्य मूल्य सूचकांक: FAO
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन और इसकी पहल, एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, वैश्विक खाद्य मूल्य वृद्धि के कारण। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, विश्व खाद्य मूल्य सूचकांक (World Food Price Index) मार्च में औसतन 159.3 अंक रहा, जिसने 11 साल पहले (फरवरी 2011) के 137.6 अंकों के पुराने रिकॉर्ड को तोड़ दिया है।
प्रमुख बिंदु
वैश्विक खाद्य मूल्य वृद्धि का कारण:
- अत्यधिक अस्थिरता:
- FAO सूचकांक में पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारी अस्थिरता देखी गई है।
- मई 2020 में सूचकांक 91.1 अंकों के साथ अपने चार वर्ष के निम्न स्तर पर पर आ गया था, जिसका कारण महामारी की वजह से देशों में लगने वाले लॉकडाउन के चलते उत्पन्न मांग थी।
- लेकिन जैसे ही सरकारों द्वारा आर्थिक गतिविधियों और आवाजाही से प्रतिबंध हटाने की बात की गई तो पुनः मांग में वृद्धि देखी गई। आपूर्ति शृंखला में व्यवधान हर स्तर पर देखा गया जिसमें सामग्री की पैकेजिंग से लेकर शिपिंग कंटेनरों के लिये मज़दूरों की कमी सामने आई।
- आपूर्ति की कमी:
- काला सागर क्षेत्र में तनाव के कारण आपूर्ति में अत्यधिक कमी देखी गई है, जिससे जनवरी और मार्च 2021 के बीच सूचकांक लगभग 24 अंक या 17.5% बढ़ गया है।
- मार्च 2021 में FAO के अनाज और वनस्पति तेल मूल्य सूचकांकों ने क्रमशः 170.1 अंक और 248.6 अंक की रिकॉर्ड बढ़त हासिल की।
- काला सागर क्षेत्र में तनाव के कारण आपूर्ति में अत्यधिक कमी देखी गई है, जिससे जनवरी और मार्च 2021 के बीच सूचकांक लगभग 24 अंक या 17.5% बढ़ गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से रूसी बैंकों का कटऑफ:
- काला सागर और आज़ोव सागर में बंदरगाह बंद होने के साथ-साथ रूसी बैंकों को अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से बाहर कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप इस प्रमुख कृषि-वस्तु आपूर्ति क्षेत्र में बड़े पैमाने पर शिपिंग व्यवधान उत्पन्न हुए हैं।
FAO का खाद्य मूल्य सूचकांक:
- इसे वर्ष 1996 में वैश्विक कृषि वस्तु बाज़ार के विकास की निगरानी में मदद के लिये सार्वजनिक रूप से पेश किया गया था।
- FAO फूड प्राइस इंडेक्स (FFPI) खाद्य वस्तुओं की टोकरी के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में मासिक बदलाव का एक मापक है।
- यह अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और चीनी की टोकरी के मूल्यों में हुए परिवर्तनों को मापता है।
- इसका आधार वर्ष 2014-16 है।
खाद्य और कृषि संगठन:
- परिचय:
- खाद्य और कृषि संगठन की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत की गई थी, यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- प्रत्येक वर्ष विश्व में 16 अक्तूबर को विश्व खाद्य दिवस मनाया जाता है। यह दिवस FAO की स्थापना की वर्षगाँठ की याद में मनाया जाता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सहायता संगठनों में से एक है जो रोम (इटली) में स्थित है। इसके अलावा विश्व खाद्य कार्यक्रम और कृषि विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय कोष (IFAD) भी इसमें शामिल हैं।
- FAO की पहलें:
- विश्व स्तरीय महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (GIAHS)।
- विश्व में मरुस्थलीय टिड्डी की स्थिति पर नज़र रखना।
- FAO और WHO के खाद्य मानक कार्यक्रमों के कार्यान्वयन के मामलों के संबंध में कोडेक्स एलेमेंट्रिस आयोग (CAC) उत्तरदायी निकाय है।
- खाद्य और कृषि के लिये प्लांट जेनेटिक रिसोर्सेज़ पर अंतर्राष्ट्रीय संधि को वर्ष 2001 में FAO के 31वें सत्र में अपनाया गया था।
- फ्लैगशिप पब्लिकेशन (Flagship Publications):
- वैश्विक मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर की स्थिति (SOFIA)।
- विश्व के वनों की स्थिति (SOFO)।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI)।
- खाद्य और कृषि की स्थिति (SOFA)।
- कृषि कोमोडिटी बाज़ार की स्थिति (SOCO)।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 मेन्स के लिये:विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020, सर्वोच्च न्यायालय ने FCRA संशोधनों को बरकरार रखा, गैर-सरकारी संगठन (NGOs) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा।
- इसने माना कि विदेशी भेंट प्राप्त करना पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता है, साथ ही इसे संसद द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
- वर्ष 2020 में भारत सरकार ने FCRA में संशोधन का प्रस्ताव दिया था, जिसने गैर-सरकारी संगठनों (NGOs), व्यक्तियों और अन्य संगठनों को विदेशों से योगदान किये गए धन को प्राप्त करने या उपयोग करने पर नए प्रतिबंध लगाए।
निर्णयों की मुख्य विशेषताएँ:
- दवा बनाम मादक रूपांतरण : विदेशी अंशदान तब तक एक दवा की तरह कार्य करता है जब तक कि इसका उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से किया जाता है।
- हालाँकि विदेशी अंशदान का स्वतंत्र और अनियंत्रित प्रवाह उस मादक पदार्थ की तरह कार्य कर सकता है जिसमें राष्ट्र की संप्रभुता एवं अखंडता को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
- राजनीतिक विचारधारा की प्रभावशीलता: SC ने रेखांकित किया कि विदेशी अंशदान राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित या थोप सकता है।
- इस प्रकार FCRA संशोधन अनिवार्य रूप से सार्वजनिक व्यवस्था के हित में परिकल्पित है क्योंकि इसका उद्देश्य विदेशी स्रोतों से आने वाले दान या भेंट के दुरुपयोग को रोकना है।
- वैश्विक उदाहरण: विदेशी दान प्राप्त करना पूर्ण या निहित अधिकार भी नहीं है।
- ऐसा इसलिये है क्योंकि विदेशी अंशदान से प्रभावित राष्ट्रीय राजनीति की संभावना के सिद्धांत को विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त है।
- कानून को कायम रखना: इस परिदृश्य में संसद के लिये यह आवश्यक हो गया था कि वह विदेशी अंशदान के प्रवाह और उपयोग को प्रभावी ढंग से विनियमित करने के लिये एक सख्त शासन प्रदान करे।
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 क्या है?
- भारत में व्यक्तियों के विदेशी धन को एफसीआरए अधिनियम के तहत विनियमित और गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- लोगों को गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना विदेशी योगदान स्वीकार करने की अनुमति है।
- हालाँकि ऐसे विदेशी योगदान की स्वीकृति के लिये 25,000 रुपए की मौद्रिक सीमा निर्धारित की गई है।
- अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले उस उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये यह योगदान प्राप्त किया गया है।
- अधिनियम के तहत संगठनों को प्रत्येक पाँच वर्ष में अपना पंजीकरण कराना आवश्यक है।
अधिनियम में किये गए संशोधन:
- विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर प्रतिबंध: यह संशोधन लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है।
- विदेशी योगदान का हस्तांतरण: यह किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी योगदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
- पंजीकरण के लिये आधार: पहचान दस्तावेज़ के रूप में विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों के लिये आधार संख्या अनिवार्य है।
- FCRA खाता: विदेशी अंशदान केवल भारतीय स्टेट बैंक, नई दिल्ली की ऐसी शाखाओं में FCRA खाते के रूप में बैंक द्वारा निर्दिष्ट खाते में ही प्राप्त किया जाना चाहिये।
- इस खाते में विदेशी अंशदान के अलावा कोई धनराशि प्राप्त या जमा नहीं की जानी चाहिये।
- विदेशी अंशदान के उपयोग में प्रतिबंध: इसने सरकार को अप्रयुक्त विदेशी अंशदान के उपयोग को प्रतिबंधित करने की अनुमति दी।
- ऐसा तब किया जा सकता है जब जाँच के आधार पर सरकार को लगता है कि ऐसे व्यक्ति ने FCRA के प्रावधानों का उल्लंघन किया है।
- प्रशासनिक उपयोग को सीमित करना: यद्यपि पहले गैर-सरकारी संगठन प्रशासनिक उपयोग के लिये 50% तक धन का उपयोग कर सकते थे, नए संशोधन ने इस उपयोग को 20% तक सीमित कर दिया।
संशोधनों का उद्देश्य और संबंधित मुद्दे:
- उद्देश्य: विदेशी योगदान के कई प्राप्तकर्त्ताओं ने इसका उपयोग उस उद्देश्य के लिये नहीं किया, जिसके लिये उन्हें FCRA 2010 के तहत पंजीकृत या पूर्व अनुमति दी गई थी।
- हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उन छह (NGOs) के लाइसेंस निलंबित कर दिये गए हैं जिन पर धर्म परिवर्तन हेतु विदेशी योगदान (Foreign Contributions) का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया था।
- ऐसी स्थिति देश की आंतरिक सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती थी।
- इसका उद्देश्य विदेशी योगदान की प्राप्ति और उपयोग में पारदर्शिता तथा जवाबदेही को बढ़ाना एवं समाज के कल्याण के लिये कार्य कर रहे वास्तविक गैर-सरकारी संगठनों को मदद प्रदान करना है।
- मुद्दे: संशोधनों में कुछ स्थानों पर इसकी आलोचना हुई कि नागरिक समाज संगठनों (Civil Society Organisations) पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है।
- सरकार का उद्देश्य उन गैर-सरकारी संगठनों को नियंत्रित करना है जो संदिग्ध गतिविधियों में लिप्त हैं।
- हालाँकि यह गैर-सरकारी संगठनों की विविधता को पहचानने में विफलता, जिसमें विश्व स्तर के संगठन भी शामिल हैं, वैश्विक स्तर पर उनकी मान्यता, प्रतिस्पर्द्धा और रचनात्मकता को समाप्त कर देगी।
आगे की राह:
- NGOs सरकारी योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने में मददगार होते हैं। वे उन अंतरालों को भरते हैं, जहांँ सरकार अपना काम सही से करने में विफल रहती है।
- सरकार को अपने वैश्विक जुड़ाव के ढांँचे के रूप में वसुधैव कुटुम्बकम के प्राचीन भारतीय लोकाचार के साथ रहना चाहिये और सरकार के कार्यों की आलोचना करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के खिलाफ प्रतिशोध की भावना के साथ कार्य नहीं करना चाहिये।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मौद्रिक नीति समीक्षा: आरबीआई
प्रिलिम्स के लिये:स्थायी जमा सुविधा, आरबीआई, मौद्रिक नीति समिति (MPC), मौद्रिक नीति के साधन, आरबीआई के विभिन्न नीतिगत दृष्टिकोण मेन्स के लिये:आरबीआई द्वारा मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, मौद्रिक नीति, स्थायी जमा सुविधा और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में लगातार ग्यारहवीं बार भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपनी नवीनतम मौद्रिक नीति समीक्षा में मुख्य नीति दर - रेपो दर को 4% पर अपरिवर्तित रखने का निर्णय लिया है।
- इसने अपने उदार रुख को भी बरकरार रखा है, लेकिन संकेत दिया है कि यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये अधिशेष तरलता की क्रमिक और अंशांकित (कैलिब्रेटेड) निकासी में संलग्न होगा।
इस मौद्रिक नीति समीक्षा का महत्त्व:
- रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रभाव को स्वीकार करना: कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि तथा यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के प्रभाव के मद्देनज़र आरबीआई ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिये वृद्धि पूर्वानुमान को 7.8% से घटाकर 7.2% कर दिया है।
- रूस-यूक्रेन युद्ध संभावित रूप से वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों और वैश्विक स्पिल-ओवर चैनल्स के माध्यम से आर्थिक सुधार को बाधित कर सकता है।
- स्थायी जमा सुविधा: रिज़र्व बैंक ने मुद्रास्फीति को बढ़ावा देने वाली वित्तीय प्रणाली से 8.5 लाख करोड़ रुपए की अधिशेष तरलता को बाहर निकालने के लिये एक नए उपाय, स्थायी जमा सुविधा को तरलता को अवशोषित करने हेतु एक अतिरिक्त उपकरण के रूप में पेश किया है।
- नीतिगत रुख में बदलाव का संकेत: यह मौद्रिक नीति समीक्षा संकेत देती है कि रिज़र्व बैंक ने अंततः मुद्रास्फीति से निपटने के लिये अपनी प्राथमिकताओं को स्थानांतरित कर दिया है।
- ऐसे में आने वाले महीनों में इसकी प्रमुख नीतिगत दर (रेपो रेट) में बढ़ोतरी की संभावना है।
- इसके अलावा रिज़र्व बैंक ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में अपने मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को पहले अनुमानित 4.5% से बढ़ाकर 5.7% कर दिया है, हालाँकि यह भी रिज़र्व बैंक के लक्ष्य के 6% के ऊपरी बैंड से कम है।
- पूर्व-महामारी स्तरों को प्राप्त करना: रिज़र्व बैंक नीति पैनल ने तरलता समायोजन सुविधा (LAF) के तहत नीति दर को 50 आधार अंकों के पूर्व-महामारी स्तर पर बहाल करके एक ठोस कदम उठाया है।
- इसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के दबाव को कम करना है।
- LAF मौद्रिक नीति में उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है जो बैंकों को पुनर्खरीद समझौतों (रेपो) के माध्यम से RBI से धन उधार लेने या रिवर्स रेपो समझौते के माध्यम से RBI को धन उधार देने की अनुमति देता है।
स्थायी जमा सुविधा और इसकी भूमिका:
- परिचय: रिज़र्व बैंक ने 3.75% की ब्याज़ दर पर तरलता को अवशोषित करने के लिये एक अतिरिक्त उपकरण- स्थायी जमा सुविधा (SDF) की शुरुआत की है।
- यह बिना किसी संपार्श्विक के तरलता को अवशोषित करने के लिये एक अतिरिक्त उपकरण है।
- पृष्ठभूमि: वर्ष 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की संशोधित धारा 17 ने रिज़र्व बैंक को SDF पेश करने का अधिकार दिया था।
- कार्यप्रणाली: रिज़र्व बैंक पर बाध्यकारी संपार्श्विक बाधा को हटाकर SDF मौद्रिक नीति के संचालन ढाँचे को मज़बूत करता है।
- तरलता प्रबंधन में इसकी भूमिका के अलावा SDF एक वित्तीय स्थिरता उपकरण भी है।
- SDF दर, पॉलिसी दर (रेपो दर) से 25 bps कम होगी और यह इस स्तर पर ओवरनाइट जमा पर लागू होगी।
- हालाँकि यह उचित मूल्य निर्धारण के साथ जब भी आवश्यकता होती है, लंबी अवधि की तरलता को अवशोषित करने के लिये लचीलापन बनाए रखेगा।
- आवश्यकता: महामारी के मद्देनज़र किये गए ‘असाधारण’ तरलता उपाय रिज़र्व बैंक के विभिन्न अन्य कार्यों के माध्यम से इंजेक्ट की गई तरलता के साथ वित्तीय प्रणाली में में 8.5 लाख करोड़ रुपए के ऑर्डर की तरलता प्रदान करने में सक्षम रहे हैं।
- SDF का मुख्य उद्देश्य सिस्टम में अतिरिक्त तरलता को कम करना तथा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।
- कार्यान्वयन: आरबीआई इस वर्ष की शुरुआत में गैर-विघटनकारी तरीके से एक बहु-वर्ष की समय सीमा में इस तरलता की क्रमिक और कैलिब्रेटेड निकासी में संलग्न होगा।
मौद्रिक नीति की लिखतें |
|
रेपो दर |
|
रिवर्स रेपो दर |
|
तरलता समायोजन सुविधा |
|
सीमांत स्थायी सुविधा (MSF) |
|
कॉरिडोर |
|
बैंक दर |
|
नकद आरक्षित अनुपात (CRR) |
|
सांविधिक चलनिधि अनुपात (SLR) |
|
खुला बाज़ार परिचालन (OMO) |
|
बाज़ार स्थिरीकरण योजना (MSS) |
|
आरबीआई के विभिन्न नीतिगत दृष्टिकोण |
|
अकोमोडेटिव (उदार) |
|
तटस्थ |
|
हॉकिश नीति |
|
कैलिब्रेटेड नीति |
|
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक एक विस्तारवादी मौद्रिक नीति अपनाने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |