अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और रूस के विदेश मंत्रियों की बैठक
चर्चा में क्यों?
भारत और रूस के बीच एक आम सहमति विकसित करने के लिये दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक दूसरे की चिंताओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया।
- इन मुद्दों में रक्षा आपूर्ति, S-400 वायु रक्षा प्रणाली, अफगानिस्तान में भारत की भूमिका और तालिबान की भागीदारी तथा कोरोना वायरस वैक्सीन पर सहयोग आदि शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
दोनों देशों के बीच निम्नलिखित क्षेत्रों में सहयोग पर चर्चा की गई
- रूस के सुदूर पूर्व में आर्थिक अवसर
- रूस के सुदूर पूर्व में बैकाल झील, जो कि विश्व की सबसे बड़ी ताज़े पानी की झील है, से लेकर प्रशांत महासागर तक इसमें रूस का लगभग एक तिहाई क्षेत्र शामिल है।
- यद्यपि यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे- खनिज, हाइड्रोकार्बन, लकड़ी और मछली आदि के मामले में समृद्ध है, किंतु इसके बावजूद यह आर्थिक रूप से काफी कम विकसित है।
- भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देने हेतु ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान का लाभ उठाना।
- ‘इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर’ के माध्यम से कनेक्टिविटी स्थापित करना।
- इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), सदस्य राज्यों के बीच परिवहन सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ईरान, रूस और भारत द्वारा सितंबर 2000 में सेंट पीटर्सबर्ग में स्थापित एक मल्टी मॉडल परिवहन मार्ग है।
- चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री गलियारा।
- यह भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के उद्देश्य से लगभग 5,600 समुद्री मील लंबा एक समुद्री मार्ग है।
- अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों में साझेदारी।
S-400 वायु रक्षा प्रणाली
- दोनों देशों के बीच S-400 वायु रक्षा प्रणाली की बिक्री से संबंधित मुद्दों पर चर्चा की गई।
- एस-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा डिज़ाइन की गई एक गतिशील (Mobile) और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली है।
- यह विश्व में लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने में सक्षम सबसे खतरनाक आधुनिक मिसाइल प्रणाली है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम’ (THAAD) से भी बेहतर माना जाता है।
- यद्यपि भारत इसे खरीदने के लिये उत्सुक है, किंतु संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम (CAATSA) के तहत प्रतिबंध लगाए जाने का खतरा अभी भी बना हुआ है।
सैन्य गठबंधन और इंडो-पैसिफिक
- सैन्य गठबंधन
- रूस के विदेश मंत्री ने स्पष्ट किया कि रूस और चीन के द्विपक्षीय संबंध वर्तमान में काफी बेहतर हैं, किंतु दोनों देश किसी भी प्रकार के सैन्य गठबंधन स्थापित पर विचार नहीं कर रहे हैं।
- उन्होंने क्वाड समूह का भी उल्लेख किया और इसे ‘एशियाई नाटो’ के रूप में संदर्भित किया, जिसका प्रयोग प्रायः चीन द्वारा किया जाता है।
- क्वाड, जो कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता है, का उद्देश्य ‘मुक्त, स्वतंत्र और समृद्ध’ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र सुनिश्चित करना है।
- इंडो-पैसिफिक
- रूस और भारत दोनों देश इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में स्थिरता और कनेक्टिविटी स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं तथा दोनों देशों ने एशिया में किसी भी प्रकार का ‘सैन्य गठबंधन’ स्थापित न करने का आग्रह किया।
- रूस ने इस क्षेत्र को ‘एशिया प्रशांत’ के रूप में संबोधित किया, जबकि भारत ने इसे ‘इंडो-पैसिफिक’ के रूप में संबोधित किया।
अफगान शांति
- दोनों देशों ने स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान की शांति वार्ता से संबंधित विभिन्न हितधारकों के मध्य ‘सामंजस्य’ स्थापित करना काफी महत्त्वपूर्ण है।
- शांति प्रक्रिया मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिये और एक राजनीतिक समाधान का आशय स्वतंत्र, संप्रभु, एकजुट एवं लोकतांत्रिक अफगानिस्तान से होना चाहिये।
- अफगानिस्तान में शांति समझौते का अंतिम निर्णय देश के सभी राजनीतिक, जातीय और धार्मिक समूहों की भागीदारी को ध्यान में रखकर लिया जाना चाहिये। अन्यथा यह समाधान स्थिर और संतुलित नहीं होगा।
चिकित्सा सहयोग
- ‘रशियन फंड फॉर डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट’ ने रूस की वैक्सीन ‘स्पुतनिक वी’ की 700 से 750 मिलियन खुराक के लिये विभिन्न भारतीय निर्माताओं के साथ अनुबंध किया है।
- दोनों मंत्रियों ने रूस को कोवैक्सीन के संभावित निर्यात पर चर्चा की, जिसे जल्द ही रूस के विशेषज्ञों द्वारा मंज़ूरी दिये जाने की संभावना है।
भारत-रूस संबंध
- राजनीतिक: भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति के बीच वार्षिक शिखर बैठक भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझेदारी में सर्वोच्च संस्थागत संवाद तंत्र है।
- आर्थिक: वर्ष 2019-2020 में भारत और रूस के बीच कुल 10.11 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ, जो कि क्षमता से काफी कम है। दोनों देशों ने वर्ष 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार को 30 बिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- रक्षा और सुरक्षा: ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम, SU-30 एयरक्राफ्ट और T-90 टैंकों का भारत में उत्पादन, दोनों देशों के बीच बढ़ रहे रक्षा और सुरक्षा संबंधों का एक उदाहरण है।
- परमाणु ऊर्जा में सहयोग: कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र (KKNPP) भारत में रूस के सहयोग से बनाया जा रहा है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग: गगनयान कार्यक्रम में सहयोग।
- समान बहुपक्षीय मंच
- ब्रिक्स
- रूस-भारत-चीन समूह (RIC)
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
- सैन्य अभ्यास:
- अभ्यास- TSENTR
- इंद्र सैन्य अभ्यास- संयुक्त त्रि-सेवा (सेना, नौसेना, वायु सेना) अभ्यास
आगे की राह
- इंडो-पैसिफिक धारणा में रूस की संलग्नता: भारत को इंडो-पैसिफिक में रूस की संलग्नता को बढ़ाने पर विचार करना चाहिये।
- इस क्षेत्र में रूस की सक्रिय भागीदारी इंडो-पैसिफिक को सही मायनों में ‘स्वतंत्र और समावेशी’ बनाने में योगदान करेगी।
- भारतीय विदेश नीति में रूस-भारत-चीन समूह को प्राथमिकता: भारत रूस, चीन और भारत के बीच पारस्परिक लाभप्रद त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ावा दे सकता है, जो भारत एवं चीन के बीच अविश्वास और मतभेद को कम करने में योगदान कर सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
नाटो में शामिल होने के लिये यूक्रेन का प्रयास
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति ने उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic Treaty Organization/NATO) में यूक्रेन की सदस्यता हेतु तेज़ी से पहल करने का आग्रह किया।
- यूक्रेन को इस साल नाटो सदस्यता कार्य योजना (Membership Action Plan) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किये जाने की उम्मीद है।
प्रमुख पहल
यूक्रेन का नाटो में शामिल होने का कारण:
- यूक्रेन का मानना है कि नाटो में शामिल होना ही रूस समर्थक अलगाववादियों से निपटने का एकमात्र उपाय है।
- दोनों देशों (यूक्रेन और रूस) की सीमा पर सैन्य झड़पों में वृद्धि हुई है, जिसका फायदा उठाकर पूर्वी यूक्रेन में अलगाववादियों द्वारा संघर्ष को तेज़ किये जाने की आशंका है।
- यूक्रेन ने रूस पर अपनी उत्तरी और पूर्वी सीमाओं के साथ-साथ क्रीमिया प्रायद्वीप (वर्ष 2014 से रूस के कब्ज़े में) पर हजारों सैन्य कर्मियों को तैनात करने का आरोप लगाया।
- यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों ने रूस की इस कार्रवाई की निंदा करते हुए उसे चेतावनी दी है।
- भारत क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप को लेकर पश्चिमी शक्तियों द्वारा की जाने वाली निंदा में शामिल नहीं हुआ और इस मुद्दे पर सार्वजनिक रूप से कुछ कहने से बचता रहा है।
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विषय में:
- नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 को संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिम यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के विरुद्ध सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक सैन्य संगठन के रूप में (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) की गई थी।
- इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में है।
- संधि के एक प्रमुख प्रावधान (तथाकथित अनुच्छेद 5) में कहा गया है कि यदि यूरोप या उत्तरी अमेरिका में संगठन के किसी सदस्य पर हमला किया जाता है, तो इसे सभी सदस्यों पर हमला माना जाएगा। इसने प्रभावी रूप से पश्चिमी यूरोप को अमेरिका के "परमाणु छत्र" के तहत रखा है।
- नाटो ने केवल 12 सितंबर, 2001 को अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के हमलों के बाद अनुच्छेद 5 को एक बार लागू किया था।
- नाटो का संरक्षण सदस्य देशों के गृह युद्ध या आंतरिक तख्तापलट तक नहीं है।
- इस संगठन में 30 मार्च, 2021 तक कुल 30 सदस्य देश शामिल हैं, उत्तरी मैसेडोनिया (वर्ष 2020) इस संगठन में शामिल होने वाला सबसे नवीनतम सदस्य है।
सदस्यता कार्ययोजना
- यह नाटो गठबंधन में शामिल होने के इच्छुक देशों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप सलाह, सहायता और व्यावहारिक समर्थन देने वाला कार्यक्रम है।
- इसमें भागीदारी भविष्य की सदस्यता पर गठबंधन द्वारा किसी भी निर्णय को पूर्व निर्धारित नहीं करती है।
- इसमें वर्तमान में बोस्निया और हर्ज़ेगोविना भाग ले रहे हैं।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
नाबार्ड के व्यवसाय में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (National Bank for Agriculture and Rural Development- NABARD) द्वारा वित्त वर्ष 2020-21 की समाप्ति तक कुल 6.57 लाख करोड़ का व्यवसाय/कारोबार किया गया जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में 23.5% की वृद्धि दर्ज की गई है।
प्रमुख बिंदु:
वर्ष 2020-21 में नाबार्ड का व्यवसाय:
- आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत नाबार्ड द्वारा सहकारी बैंकों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी: लघु वित्त संस्थान (Non-Banking Financial Company: Micro Finance Institution-NBFC-MFIs) को एक विशेष तरलता सुविधा (Special Liquidity Facility- SLF) के माध्यम से राशि उपलब्ध कराई गई।
- यह विशेष तरलता सुविधा सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के संसाधनों को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी ताकि वे किसानों को ऋण दे सकें।
- नाबार्ड द्वारा महामारी के दौरान कृषि और ग्रामीण विकास हेतु कुल 2.23 लाख करोड़ रुपए की पुनर्वित्त राशि उपलब्ध कराई गई।
- भारत सरकार के जल, साफ एवं सफाई-वॉश (Water, Sanitisation and Hygiene- WASH) कार्यक्रम का समर्थन करने हेतु 500 करोड़ रुपये की पुनर्वित्त सुविधा की शुरुआत की गई।
NABARD के बारे में:
- गठन:
- 12 जुलाई, 1982 को भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) के कृषि ऋण कार्यों और तत्कालीन कृषि पुनर्वित्त और विकास निगम (Agricultural Refinance and Development Corporation - ARDC) के पुनर्वित्त कार्यों को स्थानांतरित कर नाबार्ड की स्थापना की गई।
- यह एक सांविधिक निकाय है जिसे राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम, 1981 के तहत स्थापित किया गया है।
- कार्य:
- यह एक विकास बैंक है जो मुख्य रूप से देश के ग्रामीण क्षेत्र पर केंद्रित है।
- यह कृषि और ग्रामीण विकास हेतु वित्त प्रदान करने वाला शीर्ष बैंकिंग संस्थान है।
- RBI के साथ सहयोग:
- रिज़र्व बैंक के निदेशकों में से 3 निदेशक नाबार्ड के निदेशक मंडल में शामिल होते हैं।
- नाबार्ड सहकारी बैंकों को लाइसेंस जारी करने, राज्य सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों द्वारा नई शाखाएंँ खोलने हेतु RBI को सिफारिशें करता है।
- मुख्यालय: मुंबई
नाबार्ड के प्रमुख कार्य:
- यह ग्रामीण बुनियादी ढांँचे के निर्माण हेतु पुनर्वित्त सुविधा उपलब्ध करता है।
- पुनर्वित्त संस्थान महत्त्वपूर्ण संस्थान होते हैं जो अन्य संस्थानों के माध्यम से अंतिम ग्राहक को ऋण उपलब्ध कराते हैं।
- नाबार्ड द्वारा सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अल्पकालिक, मध्यम अवधि और दीर्घकालिक पुनर्वित्त की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है ताकि किसानों एवं ग्रामीण कारीगरों की निवेश गतिविधियों को पर्याप्त ऋण उपलब्ध कराए जा सके।
- यह सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) का पर्यवेक्षण कर उच्च स्तरीय बैंकिंग सुविधाओं को विकसित करने तथा उन्हें कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (Core Banking Solution-CBS) प्लेटफॉर्म में एकीकृत करने में मदद करता है।
- कोर बैंकिंग सॉल्यूशन को एक ऐसे साधन के रूप में परिभाषित किया जाता है जो ग्राहकों को एक ही स्थान से किसी भी समय (24x7) बैंकिंग सुविधा उपलब्ध कराता है।
- यह केंद्र सरकार की विकास योजनाओं और उनके कार्यान्वयन का खाका प्रस्तुत करता है।
- जैसे: राष्ट्रीय पशुधन मिशन, ब्याज अनुदान योजना, नई कृषि विपणन अवसंरचना आदि।
- नाबार्ड के पास विश्व बैंक और प्रमुख वैश्विक संगठनों सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय साझेदार हैं जो ग्रामीण विकास के साथ-साथ कृषि क्षेत्र में नई खोजों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
- ये अंतर्राष्ट्रीय साझेदार सलाहकार सेवाओं के अलावा ग्रामीण लोगों के उत्थान हेतु विभिन्न कृषि प्रक्रियाओं के अनुकूलन को सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन की गई वित्तीय सहायता प्रदान करने में एक प्रमुख सलाहकार की भूमिका निभाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
ओपियम पॉपी स्ट्रॉ
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने चिकित्सा उद्देश्यों के लिये उपयोग किये जाने वाले अल्कलॉइड की उपज को बढ़ावा देने हेतु भारत की अफीम फसल से ‘कंसेंट्रेटेड पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS) का उत्पादन शुरू करने और कई देशों को निर्यात करने के लिये निजी क्षेत्रों पर रोक लगाने का निर्णय लिया है।
अल्केलॉइड्स:
- अल्केलॉइड्स प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले कार्बनिक यौगिकों के विशाल समूह हैं, जो कि नाइट्रोजन परमाणु से युक्त (कुछ मामलों में एमिनो या एमिडो) होते हैं।
- ये नाइट्रोजन परमाणु इन यौगिकों की क्षारीयता का कारण बनते हैं।
- सामान्यतः प्रचलित अल्केलॉइड्स में मॉर्फिन, स्ट्राइकिन, क्विनिन, एफेड्रिन और निकोटीन शामिल हैं।
- अल्केलॉइड्स के औषधीय गुणों में काफी विविधता होती है। मॉर्फिन दर्द से राहत के लिये इस्तेमाल किया जाने वाला एक शक्तिशाली मादक पदार्थ है, हालाँकि इसके नशे के गुण के कारण इसका सीमित उपयोग किया जाता है।
प्रमुख बिंदु:
पॉपी स्ट्रॉ:
- अफीम को बीजकोष से निकाले जाने के बाद इसके खसखस को ‘पॉपी स्ट्रॉ’ कहा जाता है।
- इस ‘पॉपी स्ट्रॉ’ में बहुत कम मात्रा में मॉर्फिन सामग्री होती है और यदि पर्याप्त मात्रा में इसका उपयोग किया जाता है, तो यह अधिक मात्रा में मॉर्फिन का उत्सर्जन कर सकती है।
- ‘पॉपी स्ट्रॉ’ का भंडारण, बिक्री, उपयोग आदि राज्य सरकारों द्वारा ‘स्टेट नार्कोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस रूल्स’ के तहत विनियमित किया जाता है।
- किसान ‘पॉपी स्ट्रॉ’ को राज्य सरकारों द्वारा लाइसेंस प्राप्त व्यक्तियों को बेचते हैं।
- अतिरिक्त ‘पॉपी स्ट्रॉ’ को वापस खेत में डाल दिया जाता है।
- ‘पॉपी स्ट्रॉ’ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (NDC अधिनियम) के तहत मादक दवाओं में से एक है।
- इसलिये बिना लाइसेंस या प्राधिकार के किसी भी स्थिति के उल्लंघन में ‘पॉपी स्ट्रॉ’ को रखने, बेचने, खरीदने या उपयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति NDPS अधिनियम के तहत अभियोजन के लिये उत्तरदायी है।
वर्तमान में अल्केलॉइड का निष्कर्षण:
- वर्तमान में केवल वित्त मंत्रालय में राजस्व विभाग द्वारा विनियमित सुविधाओं के अंतर्गत भारत अफीम की गोंद से अल्केलॉइड निकालता है।
- यह किसानों को अफीम की फली को चीरकर इसका गोंद निकालकर सरकारी कारखानों को बेचने के कार्य की अनुमति देता है।
- मंत्रालय ने अब नई तकनीकों पर कार्य करने का निर्णय लिया है, दो निजी फर्मों द्वारा परीक्षण खेती के बाद ‘कंसेंट्रेटेड पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS) का उपयोग करके अल्केलॉइड का उच्च निष्कर्षण दिखाया गया है। इस प्रकार सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के उपयोग पर विचार कर रही है।
साझेदारी मॉडल:
- अफीम के ‘पॉपी’ से दो प्रकार के ‘नारकोटिक रॉ मटेरियल’ (NRM) का उत्पादन किया जा सकता है - अफीम गोंद और ‘कंसेंट्रेटेड पॉपी स्ट्रॉ’ (CPS)।
- भारत में केवल अफीम के गोंद का उत्पादन किया जाता है। अब भारत सरकार ने निर्णय लिया है कि भारत में CPS उत्पादन शुरू किया जाना चाहिये।
- विभिन्न हितधारक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) सहित एक उपयुक्त मॉडल तैयार करेंगे, निजी निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये नियमों और कानूनों में आवश्यक बदलावों की सलाह देंगे और फसल एवं अंतिम उत्पाद की सुरक्षा के लिये सुरक्षा उपायों की सिफारिश करेंगे।
- न्यायिक मुकदमों का सामना कर रही फर्मों को अपने परिसरों में थोक रूप से अल्केलॉइड बनाने के लिये राज्य सरकारों से प्रासंगिक लाइसेंस प्राप्त करने के मामले में कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, इस मुद्दे को हल करना होगा।
- परीक्षण के निष्कर्षों के अनुसार, कुछ CPS किस्मों के आयातित बीजों ने भारतीय क्षेत्रों में प्रभावी रूप से काम किया और उनके ‘नारकोटिक रॉ मटेरियल’ की उपज वर्तमान में उपयोग किये गए आयातित बीजों से बहुत अधिक थी।
- कुछ फर्मों ने हरितगृह पर्यावरण के अंतर्गत ‘हाइड्रोपोनिक’ और ‘एयरोपोनिक’ तरीकों से भी CPS की खेती की।
- हाइड्रोपोनिक्स और एयरोपोनिक्स दोनों सतत् जल संरक्षण कृषि के तरीके हैं, ये केवल उन माध्यमों से भिन्न होते हैं जिनका उपयोग पौधों के विकास में किया जाता है।
इस कदम का महत्त्व:
- वर्तमान अफीम फसल में CPS की अपेक्षा अफीम का गोंद अधिक मात्रा में पाया गया, यदि CPS किस्मों का उपयोग एक इनडोर ग्रीनहाउस वातावरण में किया जाता है तो एक वर्ष में दो या तीन फसल चक्रों का होना संभव है ।
- भारत की अफीम फसल का क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से लगातार कम हो रहा है और CPS निष्कर्षण विधि से औषधीय उपयोगों हेतु कोडीन (अफीम से निकाले गए) जैसे उत्पादों के आयात पर सामयिक निर्भरता में कटौती करने में मदद मिलेगी।
भारत में अफीम की खेती:
- स्वतंत्रता के बाद अफीम की कृषि और इसके प्रसंस्करण क्षेत्र पर नियंत्रण अप्रैल 1950 से केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व बन गया।
- वर्तमान में नारकोटिक्स आयुक्त द्वारा अधीनस्थों के साथ सभी शक्तियों का उपयोग करते हुए और अफीम की खेती तथा इसके उत्पादन के अधीक्षण से संबंधित सभी कार्यों को किया जाता है।
- आयुक्त इस शक्ति को ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985’ और ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस रूल्स, 1985’ से प्राप्त करता है।
- नारकोटिक्स आयुक्त कुछ मादक और नशीले पदार्थों के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने के साथ मादक पदार्थों के निर्यात और आयात के लिये परमिट तथा इनके अनुमोदन की अनुमति देता है।
- भारत सरकार हर वर्ष अफीम पोस्ता की खेती के लिये लाइसेंसिंग नीति की घोषणा करती है, और लाइसेंस के नवीनीकरण या नवीनीकरण हेतु न्यूनतम अर्हकारी पैदावार को निर्धारित करते हुए अधिकतम क्षेत्र जिस पर एक व्यक्तिगत कृषक द्वारा खेती की जा सकती है तथा प्राकृतिक कारणों की वजह से होनी वाली क्षतिपूर्ति के लिये एक कृषक को पहुँचाए जाने वाले अधिकतम लाभ आदि का निर्धारण करती है।
- अफीम पोस्ता की खेती केवल ऐसे भू-भागों में की जा सकती है, जो सरकार द्वारा अधिसूचित हैं।
- वर्तमान में ये भू-भाग तीन राज्यों तक ही सीमित हैं- मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश।
- अफीम की खेती के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80% हिस्सा मध्य प्रदेश के मंदसौर ज़िले और राजस्थान के चित्तौड़गढ़ और झालावाड़ ज़िलों में है।
- निर्यात हेतु अफीम की खेती करने के लिये भारत संयुक्त राष्ट्र ड्रग्स और अपराध कार्यालय द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुमति प्राप्त कुछ देशों में से एक है।
उपयोग:
- अफीम का चिकित्सीय महत्त्व अद्वितीय है और चिकित्सा जगत में अपरिहार्य है।
- इसका उपयोग होम्योपैथी और आयुर्वेद या स्वदेशी दवाओं के यूनानी प्रणालियों में भी किया जाता है।
- अफीम जिसका उपयोग‘एनाल्जेसिक’ (Analgesics), एंटी-टूसिव (Anti-Tussive), एंटी स्पस्मोडिक (Anti spasmodic) और खाद्य बीज-तेल के स्रोत के रूप में किया जाता है, एक औषधीय जड़ी बूटी के रूप में भी कार्य करती है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
अनामय : आदिवासी स्वास्थ्य सहयोग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जनजातीय कार्य मंत्रालय ने एक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये आदिवासी स्वास्थ्य सहयोगात्मक (THC) कार्यक्रम 'अनामय' (Anamaya) का शुभारंभ किया है।
- वर्ष 2018 में एक विशेषज्ञ समिति ने जनजातीय स्वास्थ्य से संबंधी मुद्दों और चिंताओं पर एक व्यापक रिपोर्ट जारी की थी।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- यह भारत के आदिवासी समुदायों के बीच सभी रोकथाम की जाने वाली मौतों को दूर करने के लिये सरकारी, परोपकारी, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय, गैर-सरकारी संगठनों (NGO)/ समुदाय आधारित संगठनों (CBO) को एक साथ लाने की अनूठी पहल है।
- यह भारत के जनजातीय समुदायों में स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति को बेहतर करने के लिये विभिन्न सरकारी एजेंसियों और संगठनों के प्रयासों को एकीकृत करेगी।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य भारत की जनजातीय आबादी की प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियों की समाधान के लिये एक स्थायी, उच्च प्रदर्शन वाली स्वास्थ्य परिवेश का निर्माण करना है।
हितधारक:
- यह जनजातीय कार्य मंत्रालय की एक बहु-हितधारक पहल है जिसे मुख्य रूप से पीरामल फाउंडेशन और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (BMGF) का समर्थन प्राप्त है।
- पीरामल फाउंडेशन पीरामल ग्रुप की परोपकारी शाखा है। यह फाउंडेशन चार व्यापक क्षेत्रों (स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, आजीविका निर्माण और युवा सशक्तीकरण) में परियोजनाओं का क्रियान्वयन कर रहा है।
संचालन:
- यह उच्च जनजातीय आबादी वाले 6 राज्यों के 50 आदिवासी आकांक्षी ज़िलों (20% से अधिक अनुसूचित जनजाति जनसंख्या वाले) के साथ परिचालन शुरू करेगा।
- अगले 10 साल के दौरान THC के काम का विस्तार जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा मान्यता प्राप्त 177 आदिवासी ज़िलों तक किया जाएगा।
जनजातीय समुदायों से संबंधित अन्य पहले:
- स्थानीय स्व-निकायों में अनुसूचित जनजाति (ST) के प्रतिनिधियों के क्षमता निर्माण के लिये कार्यक्रम:
- इसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं में जनजातीय प्रतिनिधियों के निर्णय लेने की क्षमताओं में सुधार करके उनको सशक्त बनाना है।
- 1000 स्प्रिंग इनिशिएटिव्स:
- 1000 स्प्रिंग इनिशिएटिव्स का उद्देश्य ग्रामीण भारत के कठिन एवं दुर्गम क्षेत्रों में रह रहे जनजातीय लोगों के लिये सुरक्षित एवं पर्याप्त जलापूर्ति में सुधार करना है।
- यह पहल बारहमासी स्प्रिंग्स के जल का उपयोग करने में सहायता करेगी जिसका उपयोग जनजातीय क्षेत्रों में पानी की कमी को दूर करने के लिये किया जाएगा।
- जनजातीय स्वास्थ्य प्रकोष्ठ :
- जनजातीय कार्य मंत्रालय में एक जनजातीय स्वास्थ्य प्रकोष्ठ (Tribal Health Cell) की स्थापना की जा रही है।
- यह केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों को प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को सुविधाजनक बनाने और मज़बूत करने तथा आदिवासी स्वास्थ्य अनुसंधान में निवेश करने में मदद करेगा ।
स्रोत: पीआईबी
भूगोल
लाल सागर
चर्चा में क्यों:
हाल ही में इज़रायल द्वारा लाल सागर में खड़े ईरानी मालवाहक पोत एम.वी. साविज़ (MV Saviz) पर हमला किया गया। इज़रायल द्वारा यह हमला अपने जहाज़ों पर पिछले ईरानी हमलों के जवाब में किया गया था।
- यह हमला उस समय किया गया है जब ईरानी अधिकारी ईरान के परमाणु गतिविधियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से तैयार की गई संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (JCPOA) की बहाली पर बातचीत करने के लिये वियना में एकत्रित हुए।
प्रमुख बिंदु:
लाल सागर के बारे में:
- अवस्थिति:
- लाल सागर एक अर्द्ध-संलग्न उष्णकटिबंधीय बेसिन (Semi-Enclosed Tropical Basin) है, जो उत्तर-पूर्व में अफ्रीका, पश्चिम और पूर्व में अरब प्रायद्वीप से घिरा हुआ है।
- लंबा और संकीर्ण आकार का बेसिन भूमध्य सागर के मध्य और उत्तर-पश्चिम तथा हिंद महासागर से दक्षिण-पूर्व तक फैला हुआ है।
- उत्तरी छोर पर यह अकाबा की खाड़ी (Gulf of Aqaba)और स्वेज की खाड़ी (Gulf of Suez) से अलग हो जाता है, जो स्वेज नहर के माध्यम से भूमध्य सागर से जुड़ा हुआ है।
- दक्षिणी छोर पर यह बाब अल मंदेब (Bab-el-Mandeb) जलडमरूमध्य के द्वारा अदन की खाड़ी और बाहरी हिंद महासागर से जुड़ा हुआ है।
- यह रेगिस्तान या अर्द्ध-रेगिस्तानी क्षेत्रों से घिरा हुआ है, जिसमें कोई भी बड़ा ताज़े पानी का प्रवाह नहीं है।
- निर्माण:
- पिछले 4 से 5 मिलियन वर्षों में लाल सागर ने अपने वर्तमान आकार को प्राप्त किया है। धीमी गति से समुद्री फैलाव इसे भू-गर्भीय रूप से पृथ्वी पर सबसे कम आयु के समुद्री क्षेत्रों के रूप में निर्मित करता है।
- वर्तमान में यह बेसिन प्रति वर्ष 1-2 सेमी. की दर से चौड़ा हो रहा है।
- जैव विविधता:
- लाल सागर के अद्वितीय आवास समुद्री कछुओं, डोंग, डॉल्फिन और कई स्थानिक मछली प्रजातियों सहित समुद्री जीवन की एक विस्तृत श्रृंखला का आश्रय हैं।
- प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) का विस्तार मुख्य रूप से उत्तरी और मध्य तटों के साथ हैं जबकि दक्षिणी क्षेत्र में इनकी संख्या में कमी देखी जाती है, क्योंकि दक्षिणी क्षेत्र का तटीय जल अधिक अशांत है।
- लाल सागर का नाम:
- लाल सागर के नाम के संदर्भ में विभिन्न सिद्धांत प्रचलित हैं, जिनमें सबसे लोकप्रिय पानी की सतह के पास ट्राइकोडेस्मियम इरीथीयम (Trichodesmium erythraeum) नामक एक लाल रंग के शैवाल की उपस्थिति माना जाता है।
- अन्य विद्वानों का मानना है कि अक्सर एशियाई भाषाओं में प्रमुख दिशाओं (Cardinal Directions) को संदर्भित करने हेतु रंगों का उपयोग किया जाता है जिसमें लाल "दक्षिण" दिशा को और उसी प्रकार काला सागर ‘उत्तर’ दिशा को संदर्भित करता है।
संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना:
- वर्ष 2015 में ईरान ने वैश्विक शक्तियों P5 + 1 के समूह (संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी) के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम से संबंधित दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की।
- इसे संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (Joint Comprehensive Plan Of Action-JCPOA) और सामान्यतः 'ईरान परमाणु समझौता' के नाम से जाना जाता है।
- इस समझौते के तहत ईरान ने प्रतिबंधों को हटाने और वैश्विक व्यापार तक पहुँच स्थापित करने के बदले अपनी परमाणु गतिविधियों पर अंकुश लगाने की सहमति व्यक्त की।
- ईरान द्वारा ज़ोर देकर कहा कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ऐसा नहीं मानता था।
- इस समझौते के तहत ईरान को शोध के लिये थोड़ी मात्रा में यूरेनियम जमा करने की अनुमति दी गई लेकिन यूरेनियम के संवर्द्धन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसका उपयोग रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने के लिये किया जाता है।
- हालांँकि मई 2018 में अमेरिका ने स्वयं को JCPOA से अलग कर लिया तथा ईरान के साथ उन देशों पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है जो ईरान के साथ महत्त्वपूर्ण व्यापारिक संबंध साझा करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
विश्व स्वास्थ्य दिवस, 2021 और भारत की जीवन प्रत्याशा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मनाए गए विश्व स्वास्थ्य दिवस (World Health Day), 2021 के अवसर पर भारत की जनगणना और रजिस्ट्रार जनरल के नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System- SRS) पर आधारित संग्रहीत जीवन सारणी (Abridged Life Table), 2014-18 के अनुमानों के अनुसार एक भारतीय बच्चे की जीवन प्रत्याशा वैश्विक औसत से कम है।
- प्रत्येक वर्ष 7 अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
जीवन प्रत्याशा:
- यह एक दी गई आयु के बाद जीवन के शेष बचे वर्षों की औसत संख्या है। यह एक व्यक्ति के औसत जीवनकाल का अनुमान है।
- इसे मापने का सबसे आम उपाय जन्म के समय जीवन प्रत्याशा है।
- भारत की जीवन प्रत्याशा (वर्ष 2021 में पैदा हुए बच्चे के लिये) 69 वर्ष और 4 महीना है जो वैश्विक जीवन प्रत्याशा 72.81 वर्ष से कम है।
शिशु मृत्यु दर:
- यह अतिरिक्त वर्षों की औसत संख्या का अनुमान है यानी इतने वर्ष एक व्यक्ति जीने की उम्मीद कर सकता है।
- भारत की शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate) 33 है।
प्रदूषण के कारण जीवन प्रत्याशा का कम होना:
- देश में बच्चों के जीवन की गुणवत्ता में कमी आएगी और "जहरीली हवा" के लगातार संपर्क में रहने के कारण इनके औसत जीवन काल में दो वर्ष छह महीने की कमी होने का अनुमान है।
- स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (State of Global Air), 2020 के अनुसार, विश्व में वर्ष 2019 के दौरान PM2.5 की सर्वाधिक वार्षिक औसत सांद्रता दर्ज की गई, भारत इस चार्ट में सबसे ऊपर है।
- विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2020 में विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 35 भारत में थे।
- जिसमें गाज़ियाबाद, बुलंदशहर और दिल्ली शीर्ष 10 शहरों में शामिल थे।
- इस प्रकार भारत में बच्चों की जीवन प्रत्याशा केवल 66 वर्ष और 8 महीने तक रहने का अनुमान है।
विश्व स्वास्थ्य दिवस
विश्व स्वास्थ्य दिवस के विषय में:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रथम विश्व स्वास्थ्य सभा वर्ष 1948 में आयोजित हुई थी तथा विश्व स्वास्थ्य दिवस मनाने की शुरुआत वर्ष 1950 में हुई थी।
- इन वर्षों में यह मानसिक स्वास्थ्य, मातृ एवं शिशु देखभाल और जलवायु परिवर्तन जैसे महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य मुद्दों को प्रकाश में लाया है।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य वैश्विक स्वास्थ्य एवं उससे संबंधित समस्याओं पर विचार-विमर्श करना तथा विश्व में समान स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं के बारे में जागरूकता फैलाने के साथ स्वास्थ्य संबंधी अफवाहों एवं मिथकों को दूर करना है।
थीम:
- इस वर्ष की थीम “सभी के लिये एक निष्पक्ष और स्वस्थ दुनिया का निर्माण”।
स्वास्थ्य क्षेत्र में भारत की कुछ पहलें:
- राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019।
- प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना।
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना।
- भारत का स्वास्थ्य सूचकांक।
SRS-आधारित संग्रहीत जीवन सारणी
संग्रहीत जीवन सारणी के विषय में:
- एक जीवन तालिका एक संभावित समूह या अलग-अलग उम्र में जीवित रहने की संभावनाओं को बताती है, जो मृत्यु के कारण धीरे-धीरे कम हो जाते हैं।
- SRS की शुरुआत के साथ जीवन तालिकाओं के निर्माण के लिये डेटा का एक वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हो गया है।
- SRS डेटा के आधार पर जीवन सारणी पाँच साल के अंतराल पर वर्ष 1970-75, 1976-80, 1981-85 और 1986-90 की अवधि के लिये तैयार किये गए हैं। जीवन सारणियों को वर्ष 1986-90 से पाँच वर्ष का औसत निकालकर वार्षिक आधार पर लाया गया है ताकि एक सतत् शृंखला बनाई जा सके।
उपयोग:
- यह मृत्यु की आयु वितरण के विषय में सबसे मौलिक और आवश्यक तथ्यों को व्यक्त करने का एक पारंपरिक तरीका है तथा विभिन्न आयु समूहों के जीवन एवं मृत्यु की संभावना को मापने का एक शक्तिशाली उपकरण है।
- यह औसत जीवन प्रत्याशा के संदर्भ में आयु-विशिष्ट मृत्यु दर के निहितार्थ को समझने में सक्षम बनाता है। इसे भारत की जनसंख्या की आयु सीमा का उपयोग करके तैयार किया जाता है जो क्रमिक रूप से होने वाली जनसंख्या गणनाओं पर आधारित होती है। यह भारत में होने वाली क्रमिक जनगणनाओं से जनसंख्या की आयु संरचना का उपयोग जीवन सरणियों के निर्माण में करता है।