नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A
प्रिलिम्स के लिये:संविधान पीठ, भारत का मुख्य न्यायाधीश, नागरिकता अधिनियम, 1955, असम समझौता, नागरिकता मेन्स के लिये:भारतीय नागरिकता की प्राप्ति और निर्धारण, नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायधीश के नेतृत्व में एक संविधान पीठ द्वारा नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की गई।
- संविधान पीठ ने स्पष्ट किया है कि वह मात्र धारा 6A की वैधता की जाँच करेगी, न कि असम राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) की।
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6A:
- पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1985 के असम समझौते के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1985 के हिस्से के रूप में धारा 6A को अधिनियमित किया गया था।
- असम समझौता केंद्र सरकार, असम राज्य सरकार और असम आंदोलन के नेताओं के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता था, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की घुसपैठ को रोकना करना था।
- वर्ष 1985 में हस्ताक्षरित असम समझौते द्वारा विशेष रूप से असम के लिये वर्ष 1955 के नागरिकता अधिनियम में धारा 6A को शामिल किया गया था।
- यह प्रावधान वर्ष 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध से पूर्व बड़े पैमाने पर प्रवासन के मुद्दे का समाधान करता है। यह विशेष रूप से 25 मार्च, 1971 (बांग्लादेश का निर्माण) के बाद असम में प्रवेश करने वाले बाहरी लोगों का पता लगाने तथा उनका निर्वासन अनिवार्य करता है।
- धारा 6A इस महत्त्वपूर्ण अवधि के दौरान असम के समक्ष विशिष्ट ऐतिहासिक और जनसांख्यिकीय चुनौतियों को संबोधित करती है।
- वर्ष 1985 के असम समझौते के बाद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1985 के हिस्से के रूप में धारा 6A को अधिनियमित किया गया था।
- प्रावधान एवं निहितार्थ:
- धारा 6A ने असम के लिये एक विशेष प्रावधान किया जिसके द्वारा 1 जनवरी, 1966 से पहले बांग्लादेश से आए भारतीय मूल के व्यक्तियों को उस तिथि के अनुसार भारत का नागरिक माना जाता था।
- भारतीय मूल के व्यक्ति जो 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के मध्य असम आए थे और जिनके विदेशी होने का पता चला था, उन्हें अपना पंजीकरण कराना आवश्यक था तथा कुछ शर्तों के अधीन 10 साल के निवास के बाद उन्हें नागरिकता प्रदान की गई थी।
- 25 मार्च, 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों का पता लगाया जाना था और कानून के अनुसार उन्हें निर्वासित किया जाना था।
- चुनौतियाँ:
- संवैधानिक वैधता:
- अनुच्छेद 6:
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 6 का उल्लंघन है।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 6 विभाजन के दौरान पाकिस्तान से भारत आए लोगों की नागरिकता से संबंधित है।
- इस अनुच्छेद में कहा गया है कि जो कोई भी 19 जुलाई, 1949 से पहले भारत आया, वह स्वतः ही भारतीय नागरिक बन जाएगा यदि उसके माता-पिता या दादा-दादी में से किसी एक का जन्म भारत में हुआ हो।
- इससे प्रावधान की कानूनी और संवैधानिक वैधता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- अनुच्छेद 14:
- आलोचकों का तर्क है कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर सकती है, जो समता के अधिकार की गारंटी देता है।
- इस प्रावधान को भेदभावपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह विशिष्ट नागरिकता मानदंडों के चलते असम को अलग करता है।
- यह प्रावधान केवल असम पर लागू है और यह चयनात्मक आवेदन प्रवासन के समान मुद्दों का सामना करने वाले अन्य राज्यों की तुलना में समान व्यवहार और निष्पक्षता के बारे में चिंता उत्पन्न करता है।
- आलोचकों का तर्क है कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन कर सकती है, जो समता के अधिकार की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 6:
- जनसांख्यिकीय प्रभाव:
- कुछ याचिकाकर्त्ताओं द्वारा कथित तौर पर बांग्लादेश से असम में अवैध प्रवासियों की आमद बढ़ाने में योगदान देने के लिये धारा 6A के तहत नागरिकता देने की आलोचना की गई है।
- चिंताएँ अवैध प्रवासन को प्रोत्साहित करने के अनपेक्षित परिणाम और राज्य की जनसांख्यिकीय संरचना पर इसके परिणामी प्रभाव पर केंद्रित हैं।
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि धारा 6A के तहत असम में प्रवासी आबादी को नागरिकता प्रदान करना "अवैधता को बढ़ावा देना" है।
- उनका दावा है कि इन व्यक्तियों को नागरिक के रूप में मान्यता देने वाले इस प्रावधान का कई गुना प्रभाव देखा गया है, जिससे निरंतर वृद्धि ही हुई है।
- सांस्कृतिक प्रभाव:
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि वर्ष 1966 और वर्ष 1971 के बीच सीमा पार प्रवासियों को दिये गए लाभों से असम की सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित करने वाले आमूल-चूल जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए।
- संवैधानिक वैधता:
नागरिकता क्या है?
- परिचय:.
- नागरिकता एक व्यक्ति और राज्य के बीच की कानूनी स्थिति एवं संबंध है जिसमें विशिष्ट अधिकार तथा कर्तव्य शामिल होते हैं।
- संविधानिक उपबंध:
- भारतीय संविधान के भाग II में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता के पहलुओं से संबंधित हैं, जैसे- जन्म, वंश, समीकरण, रजिस्ट्रीकरण और त्यजन व पर्यवसान द्वारा नागरिकता का अर्जन।
- नागरिकता संविधान के तहत संघ सूची में सूचीबद्ध है तथा इस प्रकार यह संसद की अनन्य विशेष अधिकारिता के अंतर्गत है।
- नागरिकता अधिनियम:
- भारत में नागरिकता के मामलों को विनियमित करने के लिये संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 लागू किया है।
- नागरिकता अधिनियम, 1955 को इसके अधिनियमित होने के बाद से छह बार संशोधित किया गया है। ये संशोधन वर्ष 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में किये गए थे।
- नवीनतम संशोधन वर्ष 2019 में किया गया था, जिसके तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश तथा पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई समुदायों के कुछ अवैध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान की गई, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को अथवा उससे पूर्व भारत में प्रवेश किया था।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) |
विश्व मृदा दिवस 2023
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मृदा दिवस, मृदा स्वास्थ्य में सुधार, खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (IUSS) मेन्स के लिये:विश्व मृदा दिवस, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, मृदा संरक्षण |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र प्रत्येक वर्ष 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस के रूप में मनाता है।
- अगस्त 2023 में अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन तथा प्रस्तुत की गई तकनीकी रिपोर्ट में मृदा में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के स्तर एवं भारत में व्यक्तियों के पोषण संबंधी देखभाल के बीच संबंध को दर्शाया गया है।
विश्व मृदा दिवस:
- यह खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और अन्य मुद्दों के समाधान हेतु सतत् मृदा प्रबंधन एवं पुनर्वास के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रति थाईलैंड के दिवंगत राजा भूमिबोल अदुल्यादेज की आजीवन वचनबद्धता तथा उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ (International Union of Soil Sciences- IUSS) ने वर्ष 2002 में इस दिवस की सिफारिश की थी।
- खाद्य एवं कृषि संगठन मृदा संरक्षण पर वैश्विक भागीदारी के ढाँचे के भीतर थाईलैंड साम्राज्य के नेतृत्त्व में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाले एक मंच के रूप में WSD की औपचारिक स्थापना का समर्थन करता है।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 5 दिसंबर, 2014 को पहले आधिकारिक विश्व मृदा दिवस के रूप में नामित किया था।
- वर्ष 2023 की थीम: मृदा और जल, जीवन का एक स्रोत (Soil and Water, a Source of Life)।
अध्ययन के अनुसार मृदा के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों और व्यक्तियों की पोषण स्थिति के बीच क्या संबंध है?
- मृदा संरचना और सूक्ष्म पोषक तत्त्व का अवशोषण:
- मृदा की संरचना का फसलों में ज़िंक और लौह जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के स्तर पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पौधे इन पोषक तत्त्वों को मृदा से अवशोषित करते हैं तथा मृदा में उनकी उपलब्धता भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा को प्रभावित करती है।
- मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- मृदा में ज़िंक का निम्न स्तर बच्चों में बौनेपन और कम वजन की स्थितियों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है। ज़िंक शारीरिक विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- मृदा में लौह तत्त्व की उपलब्धता एनीमिया की व्यापकता से संबंधित है। आयरन हीमोग्लोबिन उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो शरीर में ऑक्सीजन संवहन के लिये आवश्यक है।
- उन क्षेत्रों में जहाँ मृदा में पर्याप्त ज़िंक, लौह और अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होती है, ऐसी मृदा में उगाई जाने वाली फसलों का उपभोग करने वाली आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी की संभावना अधिक होती है।
- सुझाए गए समाधान :
- ज़िंक की कमी वाली मृदा पर फसलों में ज़िंक के प्रयोग से धान, गेहूँ, मक्का और जई की उपज केवल नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम उर्वरक के प्रयोग की तुलना में 75% अधिक बढ़ जाती है।
- ज़िंक-समृद्ध उर्वरक के प्रयोग के बाद तीन से चार वर्षों तक मृदा में ज़िंक का स्तर बढ़ सकता है, जिसका अर्थ है कि यह एक प्रभावी दीर्घकालिक हस्तक्षेप हो सकता है, जिसमें अन्य समाधानों की तुलना में कम अल्पकालिक रखरखाव की आवश्यकता होती है।
भारत की मृदा में पोषक तत्त्वों की कमी की स्थिति क्या है?
- भारत की मृदा लंबे समय से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की व्यापक कमी का सामना कर रही है। 1990 के दशक में पोटैशियम की कमी अधिक देखी गई और 2000 के दशक में सल्फर की कमी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत मृदा और पौधों में सूक्ष्म एवं माध्यमिक पोषक तत्त्वों व प्रदूषक तत्त्वों (AICRP-MSPE) पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना इससे जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा 28 राज्यों से 0.2 मिलियन मृदा के नमूनों के विश्लेषण को दर्शाती है:
- ज़िंक की कमी: भारत की लगभग 36.5% मृदा में ज़िंक की कमी है।
- आयरन की कमी: देश की लगभग 12.8% मृदा में आयरन की कमी है।
- अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्व: ज़िंक तथा आयरन की कमी के अतिरिक्त शोध अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को भी इंगित करता है:
- 23.4% मृदा में बोरोन की कमी पाई जाती है।
- 4.20% मृदा में तांबे की कमी देखी गई है।
- मैग्नीज़ की कमी 7.10% मृदा को प्रभावित करती है।
नोट:
AICRP-MPSE को संपूर्ण देश की मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी का विश्लेषण करने के लिये वर्ष 1967 में लॉन्च किया गया था। वर्ष 2014 के बाद से उक्त परियोजना में मृदा स्वास्थ्य एवं मानव स्वास्थ्य के बीच अंतर्संबंध का विश्लेषण करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
संधारणीयता के लिये मृदा-केंद्रित कृषि अपनाने हेतु क्या किया जा सकता है?
- संरक्षण कृषि तथा कुशल खेती तकनीकें:
- मृदा के पोषक तत्त्वों और स्वास्थ्य की बहाली के लिये जुताई न करने (No Till) के साथ ही अवशेष गीली घास तथा फसल चक्र जैसी संरक्षण कृषि तकनीकों का उपयोग करना चाहिये।
- जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के लिये पारंपरिक उर्वरक छिड़काव के बजाय बीज-सह-उर्वरक ड्रिल यंत्रों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- विविधता तथा नवीनता को अपनाना:
- आवरण फसलों (Cover Crops), मल्च बनाना/मलचिंग (Mulching), कृषि वानिकी तथा भूमित्र (Bhoomitra) व कृषि-रास्ता (Krishi-RASTAA) जैसे स्मार्ट मृदा समाधानों को प्रोत्साहित करना चाहिये।
- उन प्रथाओं को बढ़ावा देना जो पृथक्करण को बढ़ाती हैं, फसलों में विविधता लाती हैं, अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करती हैं तथा प्रौद्योगिकी व AI के साथ सटीक खेती को अपनाती हैं।
- पुनर्स्थापन और पुनर्ग्रहण विधियाँ:
- कार्बन कृषि का समर्थन करना, लवणीय/क्षारीय मृदा को पुनः प्राप्त करना एवं रासायनिक इनपुट को कम करते हुए सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के उपयोग को नियंत्रित करना।
- कुशल उर्वरक छिड़काव के लिये यांत्रिकीकरण का उपयोग करना तथा बेहतर मृदा स्वास्थ्य के लिये जैविक खादों को एकीकृत करना।
मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिये क्या पहलें हैं?
निष्कर्ष:
स्थायी भूमि प्रबंधन, जैवविविधता और शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा देकर विश्व मृदा दिवस पृथ्वी के अस्तित्व में मृदा की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है। यह आने वाली पीढ़ियों के लिये समृद्ध तथा टिकाऊ भविष्य सुनिश्चित करने एवं मृदा के स्वास्थ्य को संरक्षित व बहाल करने हेतु ठोस प्रयासों का आह्वान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में काली कपास मृदा की रचना निम्नलिखित में से किसके अपक्षयण से हुई है? (2021) (a) भूरी वन मृदा उत्तर: (b) व्याख्या:
अत: विकल्प (b) सही उत्तर है। प्रश्न. भारत की लेटराइट मिट्टियों के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (c) |
प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ
प्रिलिम्स के लिये:प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ, मॉडल उपनियम, सहकारिता मंत्रालय, उचित मूल्य की दुकानें (FPS), आत्मनिर्भर भारत मेन्स के लिये:प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास हेतु हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सहकारिता मंत्रालय ने प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (Primary Agricultural Credit Societies- PACS) की व्यवहार्यता में सुधार लाने के लिये आदर्श उप-नियम तैयार किये हैं।
- आदर्श उप-नियम का आशय ज़मीनी स्तर पर PACS के कामकाज़ एवं संचालन को नियंत्रित करने के लिये सहयोग मंत्रालय द्वारा तैयार किये गए दिशा-निर्देशों अथवा विनियमों के एक समूह से है।
आदर्श उपनियम का उद्देश्य क्या है?
- उपनियमों को PACS की संरचना, गतिविधियों और कामकाज़ की रूपरेखा तैयार करने के लिये अभिकल्पित किया गया है, जिसका उद्देश्य उनकी आर्थिक व्यवहार्यता को बढ़ाना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी भूमिका का विस्तार करना है।
- आदर्श उपनियम PACS को डेयरी, मत्स्यपालन, फूलों की खेती, गोदामों की स्थापना, खाद्यान्न, उर्वरक, बीज की खरीद, LPG/CNG/पेट्रोल/डीज़ल वितरण और दीर्घकालिक ऋण, कस्टम हायरिंग केंद्र, उचित मूल्य की दुकानें, सामुदायिक सिंचाई, व्यवसाय संवाददाता गतिविधियाँ, सामान्य सेवा केंद्र आदि अल्पकालिक सहित 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियों को शुरू करके अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में विविधता लाने में सक्षम बनाएंगे।
- महिलाओं और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान करते हुए PACS की सदस्यता को अधिक समावेशी और व्यापक बनाने के प्रावधान किये गए हैं।
प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ क्या हैं?
- परिचय:
- PACS ग्राम स्तर की सहकारी ऋण समितियाँ हैं जो राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCB) की अध्यक्षता वाली त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती हैं।
- SCB से ऋण का अंतरण ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (District Central Cooperative Banks- DCCB) को किया जाता है, जो ज़िला स्तर पर कार्य करते हैं। ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंक PACS के साथ काम करते हैं, साथ ही ये सीधे किसानों से जुड़े हैं।
- PACS विभिन्न कृषि और कृषि गतिविधियों हेतु किसानों को अल्पकालिक एवं मध्यम अवधि के कृषि ऋण प्रदान करते हैं।
- प्रथम PACS वर्ष 1904 में बनाई गई थी।
- PACS ग्राम स्तर की सहकारी ऋण समितियाँ हैं जो राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंकों (State Cooperative Banks- SCB) की अध्यक्षता वाली त्रि-स्तरीय सहकारी ऋण संरचना में अंतिम कड़ी के रूप में कार्य करती हैं।
- स्थिति:
- भारतीय रिज़र्व बैंक की दिसंबर 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 1.02 लाख PACS थे। हालाँकि उनमें से केवल 47,297 मार्च 2021 के अंत तक लाभ की स्थिति में थे।
- PACS का महत्त्व:
- PACS लघु किसानों को ऋण तक पहुँच प्रदान करती है, जिसका उपयोग वे अपने खेतों के लिये बीज, उर्वरक और अन्य इनपुट खरीदने के लिये कर सकते हैं। इससे उन्हें अपने उत्पादन में सुधार करने एवं अपनी आय बढ़ाने में मदद मिलती है।
- PACS अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित होती हैं, जो किसानों हेतु सेवाओं तक पहुँच को सुविधाजनक बनाती हैं।
- PACS में कम समय में न्यूनतम कागज़ी कार्रवाई के साथ ऋण देने की क्षमता है।
PACS से संबंधित क्या मुद्दे हैं?
- अपर्याप्त कवरेज:
- हालाँकि भौगोलिक रूप से सक्रिय PACS 5.8 लाख गाँवों में से लगभग 90% को कवर करती हैं लेकिन देश के कुछ हिस्से, विशेषकर पूर्वोत्तर में यह कवरेज बहुत कम है।
- इसके अतिरिक्त सदस्यों के रूप में शामिल ग्रामीण आबादी सभी ग्रामीण परिवारों का केवल 50% है।
- अपर्याप्त संसाधन:
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था की अल्पकालिक तथा मध्यम अवधि की ऋण आवश्यकताओं के संबंध में PACS के संसाधन अपर्याप्त हैं।
- इन अपर्याप्त निधियों का बड़ा हिस्सा उच्च वित्तपोषण एजेंसियों से आता है, न कि समितियों के स्वामित्व वाले निधि अथवा उनके द्वारा एकत्रित धन के माध्यम से।
- अतिदेय और NPAs:
- अधिक मात्रा में बकाया राशि (अतिदेय) PACS के लिये एक बड़ी समस्या बन गई है।
- RBI की रिपोर्ट के अनुसार, PACS ने 1,43,044 करोड़ रुपए के ऋण तथा 72,550 करोड़ रुपए के NPA की सूचना दी थी। महाराष्ट्र में PACS की संख्या 20,897 है जिनमें से 11,326 घाटे में हैं।
- वे ऋण योग्य निधियों के संचालन पर अंकुश लगाते हैं, समाजों की उधार लेने के साथ-साथ उधार देने की शक्ति को कम करते हैं तथा ऋण चुकाने में अक्षम लोगों की एक नकारात्मक छवि बनाते हैं ।
- अधिक मात्रा में बकाया राशि (अतिदेय) PACS के लिये एक बड़ी समस्या बन गई है।
आगे की राह
- एक सदी से भी अधिक पुराने इन संस्थानों को नीतिगत प्रोत्साहन मिलना चाहिये और अगर ऐसा हुआ तो ये भारत सरकार के आत्मनिर्भर भारत के साथ-साथ वोकल फॉर लोकल के विज़न में प्रमुख स्थान बना सकते हैं, क्योंकि इनमें एक आत्मनिर्भर गाँव की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता है।
- PACS ने ग्रामीण वित्तीय क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा भविष्य में और भी बड़ी भूमिका निभाने की क्षमता रखती है। इसके लिये PACS को अधिक कुशल, वित्तीय रूप से सतत् और किसानों के लिये सुलभ बनाए जाने की आवश्यकता है।
- साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये नियामक ढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये कि PACS प्रभावी रूप से शासित हों और किसानों की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हों।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में 'शहरी सहकारी बैंकों' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b)
मेन्स:प्रश्न. "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण। भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँच और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है?” (2014) |