डेली न्यूज़ (08 Nov, 2022)



जैव शस्त्र और रासायनिक शस्त्र अभिसमय

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प्रोविज़नल स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, 2022

प्रिलिम्स के लिये:

प्रोविज़नल स्टेट ऑफ ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, विश्व मौसम विज्ञान संगठन, ग्रीनहाउस गैसें

मेन्स के लिये:

बढ़ती आपदा से संबंधित मुद्दे और इस संबंध में कदम उठाने की ज़रूरत।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने प्रोविज़नल स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट, 2022 जारी की।

  • पूर्ण और अंतिम रिपोर्ट अप्रैल 2023 में प्रकाशित होने की उम्मीद है।

WMO स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट:

  • यह रिपोर्ट वार्षिक आधार पर तैयार की जाती है, जो छठी IPCC आकलन रिपोर्ट द्वारा प्रदान किये गए हाल के मूल्यांकन चक्र का पूरक है।
  • रिपोर्ट प्रमुख जलवायु संकेतकों और चरम घटनाओं एवं उनके प्रभावों पर रिपोर्टिंग का उपयोग करके जलवायु की वर्तमान स्थिति पर एक आधिकारिक सहयोग प्रदान करती है।

प्रमुख बिंदु

  • ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता में वृद्धि:
    • तीन मुख्य ग्रीनहाउस गैसों- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4) और नाइट्रस ऑक्साइड (NO2) की सांद्रता वर्ष 2021 में रिकॉर्ड स्तर पर थी।
    • मीथेन, जो कि ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति उत्पन्न करने में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 25 गुना अधिक शक्तिशाली है, के उत्सर्जन में सबसे तेज़ गति से वृद्धि हुई है।
  • तापमान:
    • वर्ष 2022 में वैश्विक औसत तापमान वर्ष 1850-1900 औसत से लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक होने का अनुमान है।
    • वर्ष 2015 से 2022 तक आठ सबसे गर्म वर्ष रहने का अनुमान है।
    • ला नीना (भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के जल का ठंडा होना) की स्थिति वर्ष 2020 के अंत से प्रभावी है और वर्ष 2022 के अंत तक जारी रहने की उम्मीद है।
      • ला नीना ने पिछले दो वर्षों से निरंतर वैश्विक तापमान को अपेक्षाकृत कम किया है, फिर भी वर्ष 2011 में पिछले महत्त्वपूर्ण ला नीना की तुलना में यह अधिक है।
  • ग्लेशियर और बर्फ:
    • वर्ष 2022 में यूरोपीय आल्प्स में ग्लेशियर पिघलने का रिकॉर्ड टूट गया। पूरे आल्प्स में 3 और 4 मीटर से अधिक की औसत मोटाई के ग्लेशियर के नुकसान के साथ वर्ष 2003 के पिछले रिकॉर्ड की तुलना में यह काफी अधिक मापा गया है।
    • प्रारंभिक माप के अनुसार, स्विट्ज़रलैंड में वर्ष 2021 और 2022 के बीच ग्लेशियर की बर्फ 6% पिघल गई।
    • इतिहास में पहली बार उच्चतम माप स्थलों पर भी गर्मी के मौसम में बर्फ नहीं गिरी और इस प्रकार नवीन बर्फ का संचय नहीं हुआ।
  • समुद्र स्तर में वृद्धि:
    • उपग्रह altimeter रिकॉर्ड के 30 वर्षों (1993-2022) के दौरान वैश्विक औसत समुद्र स्तर में अनुमानित 3.4 ± 0.3 मिमी प्रतिवर्ष की वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 1993-2002 और 2013-2022 के बीच यह दर दोगुनी हो गई है तथा जनवरी 2021 एवं अगस्त 2022 के बीच समुद्र के स्तर में लगभग 5 मिमी. की वृद्धि हुई है।
  • महासागरीय ऊष्मा:
    • मानव द्वारा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के परिणामस्वरूप संचित ऊष्मा का लगभग 90% समुद्र में जमा हो जाता है।
    • ऐसा पाया गया कि वर्ष 2021 में समुद्र के ऊपरी सतह से लेकर 2000 मीटर तक अभूतपूर्व स्तर तक गर्म हुआ।
    • कुल मिलाकर, समुद्री सतह के 55% हिस्से ने वर्ष 2022 में कम -से-कम एक समुद्री हीटवेव का अनुभव किया
    • जबकि समुद्र की सतह के केवल 22% हिस्से में ही समुद्री ठंड का अनुभव हुआ। शीत लहरों की तुलना में समुद्री हीटवेव लगातार अधिक होती जा रही है।
  • खराब मौसम:
    • विगत 40 वर्षों की तुलना में पूर्वी अफ्रीका में लगातार चार वर्षों से बारिश औसत से कम रही है जो इस बात का संकेत हो सकती है कि वर्तमान मौसम भी शुष्क हो सकता है।
    • जुलाई और अगस्त, 2022 में रिकॉर्ड तोड़ बारिश के कारण पाकिस्तान में बाढ़ की स्थिति बन गई ।
      • भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में मार्च और अप्रैल में हीटवेव के बाद बाढ़ आई थी।
    • उत्तरी गोलार्द्ध के बड़े हिस्से असाधारण रूप से गर्म और शुष्क रहे थे।
      • राष्ट्रीय रिकॉर्ड दर्ज किये जाने के बाद से चीन में सबसे व्यापक और दीर्घकालिक हीटवेव को दर्ज किया गया और रिकॉर्ड के अनुसार यहाँ दूसरी सबसे शुष्क गर्मी थी।
    • यूरोप के बड़े हिस्से को बार-बार भीषण गर्मी का सामना करना पड़ रहा है।
      • यूनाइटेड किंगडम ने 19 जुलाई, 2022 को रिकॉर्ड गर्मी का अनुभव किया जब वहाँ का तापमान पहली बार 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच गया।

जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये उठाए गए कदम:

  • राष्ट्रीय:
    • NAPCCC:
      • जलवायु परिवर्तन से उभरते खतरों का सामना करने के लिये भारत ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (NAPCC) जारी की। इसमें राष्ट्रीय सौर मिशन, राष्ट्रीय जल मिशन आदि सहित 8 उप मिशन हैं।
    • इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान: यह शीतलक मांग में कमी लाने सहित शीतलक और संबंधित क्षेत्रों के लिये एक एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है। इससे उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी जिससे ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में मदद मिलेगी।
  • वैश्विक:
    • पेरिस समझौता:
      • इसका उद्देश्य वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है, जबकि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये आवश्यक कदम उठाना है।
    • संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य:
      • सतत् विकास को प्राप्त करने के लिये इसके अंतर्गत 17 व्यापक लक्ष्य शामिल हैं। इनमें से लक्ष्य संख्या 13 , विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के समाधान पर केंद्रित है।
    • ग्लासगो संधि:
      • इसे अंततः COP26 वार्ता के दौरान वर्ष 2021 में 197 सदस्यों द्वारा अपनाया गया था।
      • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि 1.5 डिग्री के लक्ष्य को हासिल करने के लिये मौजूदा दशक में इस दिशा में मज़बूत निर्णायक कार्रवाई करना आवश्यक है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):

  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
    • भारत विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
  • इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
  • 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गई है।
  • WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

आगे की राह

  • ऐसी महत्त्वपूर्ण नीतियों और उपायों से संबंधित प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो संसाधनों के उत्पादन और उपभोग के तरीके को तीव्रता से बदल सकते हैं।
  • लोगों के साथ साझेदारियों वाले दृष्टिकोण को प्रमुखता देना चाहिये जिससे न केवल नौकरियाँ सृजित होने के साथ संसाधनों तक सुलभ पहुँच होगी बल्कि स्वच्छ और हरित वातावरण का भी विकास होगा।

  विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न- ‘मोमेंटम फॉर चेंज: क्लाइमेट न्यूट्रल नाउ” किसके द्वारा शुरू की गई एक पहल है? (2018)

(a) जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल
(b) यूएनईपी सचिवालय
(c) यूएनएफसीसीसी सचिवालय
(d) विश्व मौसम विज्ञान संगठन

उत्तर: c


प्रश्न- निम्नलिखित में से कौन संयुक्त राष्ट्र से संबंधित नहीं है? (2010)

(a) बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी
(b) अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम
(c) निवेश विवादों के निपटान हेतु अंतर्राष्ट्रीय केंद्र
(d) बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स

उत्तर: (d)


मेन्स:

Q. वैश्विक तापन का प्रवाल जीवन तंत्र पर प्रभाव का उदाहरणों के साथ आकलन कीजिये। (2019)

Q. ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापन) की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)

स्रोत: इंडियन


EWS आरक्षण को सर्वोच्च न्यायालय ने सही माना

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, सकारात्मक कार्रवाई, मूल संरचना सिद्धांत

मेन्स के लिये:

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) कोटा के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, यह भारत भर में सरकारी नौकरियों और कॉलेजों में सवर्णों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिये 10% आरक्षण प्रदान करता है।

फैसला:

  • बहुमत का नज़रिया:
    • 103वें संविधान संशोधन को संविधान की आधारभूत संरचना को भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता
    • ईडब्ल्यूएस कोटा समानता और संविधान के आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। मौज़ूदा आरक्षण के अलावा यह आरक्षण संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है।
    • यह आरक्षण पिछड़े वर्गों को शामिल करने के लिये राज्य द्वारा सकारात्मक कार्रवाई का एक माध्यम है।
    • राज्य को शिक्षा के क्षेत्र में प्रावधान करने में सक्षम बनाकर आधारभूत संरचना का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।
    • आरक्षण न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिये है बल्कि वंचित वर्ग हेतु भी महत्त्वपूर्ण है।
    • मंडल आयोग द्वारा निर्धारित 50% की अधिकतम सीमा के आधार पर ईडब्ल्यूएस के लिये आरक्षण का प्रावधान आधारभूत संरचना का खंडन नहीं है क्योंकि इसकी उच्चतम सीमा में लचीलापन है
      • वर्ष 1992 में इंदिरा साहनी फैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा का नियम "लचीला" था। इसके अलावा इसे केवल एससी / एसटी / एसईबीसी / ओबीसी समुदायों के लिये लागू किया गया था न कि सामान्य वर्ग के लिये।
    • अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा वर्ग जिनके लिये पहले से ही अनुच्छेद 15(4), 15(5) और 16(4) में विशेष प्रावधान किये गए हैं, सामान्य या अनारक्षित श्रेणी से अलग एक अलग श्रेणी में आते हैं।
  • अल्पमत का नज़रिया:
    • आरक्षण को एक समान पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शक्तिशाली तंत्र के रूप में डिज़ाइन किया गया था। आर्थिक मानदंड को शामिल करना और एससी (अनुसूचित जाति), एसटी (अनुसूचित जनजाति), ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) को इस श्रेणी से बाहर करना तथा यह मानना कि ये लाभ उन्हें पहले से प्राप्त हैं, अन्याय है।
    • ईडब्ल्यूएस कोटे में एक समान अवसर देना एक पुनर्मूल्यांकन तंत्र हो सकता है और एससी, एसटी, ओबीसी का बहिष्कार समानता कोड के खिलाफ भेदभाव करता है तथा आधारभूत संरचना का उल्लंघन करता है।
    • 50% की अधिकतम सीमा के उल्लंघन की अनुमति देना "भविष्य में भी उल्लंघन के लिये एक कारक बन सकता है जिसका परिणाम कंपार्टमेंटलाइज़ेशन (खंडों में विभाजन) होगा।

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये आरक्षण:

  • परिचय:
  • महत्त्व:
    • असमानता को संबोधित करता है:
      • 10% कोटे का विचार प्रगतिशील है और भारत में शैक्षिक तथा आय असमानता के मुद्दों को संबोधित कर सकता है क्योंकि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों एवं सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
    • आर्थिक पिछड़ों को मान्यता:
      • पिछड़े वर्ग के अलावा बहुत से लोग या वर्ग हैं जो भूख और गरीबी की परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
      • संवैधानिक संशोधन के माध्यम से प्रस्तावित आरक्षण उच्च जातियों के गरीबों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करेगा।
    • जाति आधारित भेदभाव में कमी:
      • इसके अलावा यह धीरे-धीरे आरक्षण से जुड़े कलंक को हटा देगा क्योंकि आरक्षण का ऐतिहासिक रूप से जाति से संबंध रहा है और उच्च जाति वाले इन लोगों को हेय दृष्टि से देखते हैं ।
  • चिंताएँ:
    • डेटा की अनुपलब्धता:
      • EWS कोटे में उद्देश्य और कारण के बारे में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि नागरिकों के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आर्थिक रूप से अधिक विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये उनकी वित्तीय अक्षमता के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सार्वजनिक रोज़गार में भाग लेने से बाहर रखा गया है।
      • इस प्रकार के तथ्य संदिग्ध हैं क्योंकि सरकार ने इस बात का समर्थन करने के लिये कोई डेटा तैयार नहीं किया है।
    • मनमाना मानदंड:
      • इस आरक्षण हेतु पात्रता तय करने के लिये सरकार द्वारा उपयोग किये जाने वाले मानदंड अस्पष्ट हैं और यह किसी डेटा या अध्ययन पर आधारित नहीं है।
      • यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार से सवाल किया कि क्या राज्यों ने EWS आरक्षण देने के लिये मौद्रिक सीमा तय करते समय हर राज्य के लिये प्रति व्यक्ति जीडीपी की जाँच की है।
      • आँकड़े बताते हैं कि भारत के राज्यों में प्रति व्यक्ति आय व्यापक रूप से भिन्न है, जैसे गोवा की प्रति व्यक्ति आय 4 लाख है, जो कि सबसे अधिक है, वहीं बिहार की प्रति व्यक्ति आय 40,000 रुपए है।

आगे की राह

  • अब समय आ गया है कि चुनावी लाभ के लिये आरक्षण के दायरे का लगातार विस्तार करने की भारतीय राजनीतिक दलों की प्रवृत्ति को रोका जाए, साथ ही यह महसूस किया जाने लगा है कि आरक्षण सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का रामबाण इलाज़ नहीं है।
  • विभिन्न मानदंडों के आधार पर आरक्षण देने के बजाय सरकार को शिक्षा की गुणवत्ता और अन्य प्रभावी सामाजिक उत्थान के उपायों पर ध्यान देना चाहिये। इससे उद्यमिता की भावना पैदा होगी जो उन्हें नौकरी तलाशने के बजाय नौकरी प्रदाता की स्थिति प्रदान करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. भारत का संविधान संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र के संदर्भ में 'मूल संरचना' को परिभाषित करता है।
  2. भारत का संविधान नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा और उन आदर्शों को संरक्षित करने के लिये 'न्यायिक समीक्षा' का प्रावधान करता है जिन पर संविधान आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • भारत का संविधान बुनियादी ढाँचे को परिभाषित नहीं करता है, यह एक न्यायिक नवाचार है।
  • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (वर्ष 1973) में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि संसद संविधान के किसी भी हिस्से में तब तक संशोधन कर सकती है जब तक कि वह संविधान की मूल संरचना या आवश्यक विशेषताओं में परिवर्तन या संशोधन नहीं करती है।
  • हालाँकि न्यायालय ने 'मूल संरचना' शब्द को परिभाषित नहीं किया, केवल कुछ सिद्धांतों जैसे संघवाद, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र को इसके हिस्से के रूप में सूचीबद्ध किया है।
  • मूल संरचना' सिद्धांत की व्याख्या संविधान की सर्वोच्चता, कानून के शासन, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत, संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य, सरकार की संसदीय प्रणाली, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के सिद्धांत, कल्याणकारी राज्य आदि को शामिल करने के लिये की गई है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • संविधान में कोई प्रत्यक्ष और स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो न्यायालय को कानूनों को अमान्य करने का अधिकार देता है, लेकिन संविधान ने प्रत्येक भाग पर निश्चित सीमाएँ लगाई हैं, जिसके उल्लंघन से कानून शून्य हो जाएगा। न्यायालय को यह तय करने का काम सौंपा गया है कि क्या किसी संवैधानिक सीमा का उल्लंघन किया गया है या नहीं। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: हिंदू


गुरु नानक देव जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

गुरु नानक देव, सिख धर्म,

मेन्स के लिये:

गुरु नानक देव, महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों की शिक्षाएँ

चर्चा में क्यों?

8 नवंबर, 2022 को गुरु नानक देव की 553वीं जयंती मनाई गई।

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गुरु नानक देव

  • जन्म:
    • उनका जन्म वर्ष 1469 में लाहौर के पास तलवंडी राय भोई (Talwandi Rai Bhoe) गाँव में हुआ था जिसे बाद में ननकाना साहिब नाम दिया गया।
    • वह सिख धर्म के 10 गुरुओं में से पहले और सिख धर्म के संस्थापक थे।
  • योगदान:
    • उन्होंने 16वीं शताब्दी में अंतर-धार्मिक संवाद शुरू किया और अपने समय के अधिकांश धार्मिक संप्रदायों के साथ बातचीत की।
    • सिखों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जुन (वर्ष 1563-1606) द्वारा संकलित आदि ग्रंथ में शामिल रचनाएँ लिखीं गईं।
      • 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह (वर्ष 1666-1708) द्वारा किये गए परिवर्द्धन के बाद इसे गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में जाना जाने लगा।
    • उन्होंने भक्ति के 'निर्गुण' (निराकार परमात्मा की भक्ति और पूजा) की वकालत की।
    • त्याग, अनुष्ठान स्नान, छवि पूजा, तपस्या को अस्वीकार कर दिया।
    • सामूहिक जप से जुड़े सामूहिक पूजा (संगत) के लिये नियम निर्धारित किये।
    • अपने अनुयायियों को 'एक ओंकार' का मूल मंत्र दिया और जाति, पंथ एवं लिंग के आधार पर भेदभाव किये बिना सभी मनुष्यों के साथ समान व्यवहार करने पर ज़ोर दिया।
  • मृत्यु:
    • उनकी मृत्यु वर्ष 1539 में करतारपुर, पंजाब में हुई।

आधुनिक भारत में गुरु नानक देव की प्रासंगिकता:

  • एक समतावादी समाज का निर्माण: समानता का उनका विचार निम्नलिखित नवीन सामाजिक संस्थानों के रूप में देखा जा सकता है, जो कि उनके द्वारा शुरू किये गए थे।
    • लंगर: सामूहिक खाना बनाना और भोजन को वितरित करना।
    • पंगत: उच्च एवं निम्न जाति के भेद के बिना भोजन करना।
    • संगत: सामूहिक निर्णय लेना।
  • सामाजिक सद्भाव:
    • उनके अनुसार, पूरी दुनिया ईश्वर की रचना है और सभी एक समान हैं, केवल एक सार्वभौमिक रचनाकार है अर्थात् "एक ओंकार सतनाम" (Ek Onkar Satnam)
    • इसके अलावा क्षमा, धैर्य, संयम और दया उनके उपदेशों के मूल केंद्र में हैं।
  • न्यायपूर्ण समाज का निर्माण:
    • उन्होंने अपने शिष्यों के सम्मुख ‘कीरत करो, नाम जपो और वंड छको’ (काम, पूजा और दान) का आदर्श रखा।
    • उनके धर्म का आधार कर्म के सिद्धांत पर आधारित था और उन्होंने अध्यात्मवाद के विचार को सामाजिक ज़िम्मेदारी एवं सामाजिक परिवर्तन की विचारधारा में परिणत कर दिया।
    • उन्होंने ‘दशवंध’ (Dasvandh) की अवधारणा या अपनी कमाई का दसवाँ हिस्सा ज़रूरतमंद व्यक्तियों को दान करने की वकालत की।
  • लैंगिक समानता:
    • उनके अनुसार, ‘महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी ईश्वर की कृपा को साझा करते हैं और अपने कार्यों के लिये समान रूप से ज़िम्मेदार होते हैं।
    • महिलाओं के लिये सम्मान और लैंगिक समानता शायद उनके जीवन से सीखने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक है।
  • शांति स्थापना:
    • भारतीय दर्शन के अनुसार, गुरु वह है जो रोशनी (अर्थात् ज्ञान) प्रदान करता है, संदेह को दूर करता है और सही रास्ता दिखाता है।
    • इस संदर्भ में गुरु नानक देव के विचार दुनिया भर में शांति, समानता और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत: पी.आई.बी.


राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR)

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर, नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न्स, जनगणना, नागरिकता अधिनियम 1955, CAA

मेन्स के लिये: 

जनसंख्या और संबंधित मुद्दे, एनपीआर को अद्यतन करने की आवश्यकता एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय (MHA) ने हाल ही में देश भर में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) डेटाबेस को अपडेट करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।

  • यह जन्म, मृत्यु और प्रवास के कारण होने वाले परिवर्तनों को दर्ज करने अथवा जानकारी को सामयिक बनाने के लिये है, जिसके लिये प्रत्येक परिवार और व्यक्ति के जनसांख्यिकीय और अन्य विवरण एकत्र किये जाने हैं।

NPR:

  • परिचय:
    • NPR एक डेटाबेस है जिसमें देश के सभी सामान्य निवासियों की सूची होती है।
      • NPR के लिये सामान्य निवासी वह है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में रहता है या अगले छह महीनों के लिये किसी विशेष स्थान पर रहने का इरादा रखता है।
    • इसका उद्देश्य देश में रहने वाले लोगों की पहचान संबंधी एक विस्तृत डेटाबेस बनाना है।
      • यह जनगणना के "हाउस-लिस्टिंग" चरण के दौरान घर-घर गणना के माध्यम से तैयार किया जाता है।
      • NPR पहली बार वर्ष 2010 में तैयार किया गया था और फिर वर्ष 2015 में अपडेट किया गया था।
  • कानूनी आधार:
    • NPR नागरिकता अधिनियम 1955 और नागरिकता (नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना) नियम, 2003 के प्रावधानों के तहत तैयार किया गया है।
    • भारत के प्रत्येक "सामान्य निवासी" के लिये एनपीआर में पंजीकरण करना अनिवार्य है।
  • महत्त्व:
    • यह विभिन्न प्लेटफॉर्म पर निवासियों के डेटा को सुव्यवस्थित करेगा।
      • उदाहरण के लिये विभिन्न सरकारी दस्तावेज़ों में किसी व्यक्ति की अलग-अलग जन्मतिथि पाया जाना एक आम बात है। NPR में ऐसी कोई समस्या नहीं होगी।
    • यह सरकार को अपनी नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार करने में मदद करेगा और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी मदद करेगा।
    • यह सरकारी लाभार्थियों को बेहतर तरीके से लक्षित करने में मदद करेगा और कागज़ी कार्रवाई और आधार की तरह ही लालफीताशाही को भी कम करेगा।
    • यह 'एक पहचान पत्र' (वन आइडेंटिटी कार्ड) के विचार को लागू करने में मदद करेगा जिसे हाल ही में सरकार द्वारा जारी किया गया है।
      • 'वन आइडेंटिटी कार्ड' आधार कार्ड, वोटर आईडी कार्ड, बैंकिंग कार्ड, पासपोर्ट आदि के डुप्लीकेट और छेड़छाड़ किये गए दस्तावेज़ों को बदलने का प्रयास करता है।
  • NPR और NRC:
    • नागरिकता नियम 2003 के अनुसार, NPR राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के संकलन की दिशा में पहला कदम है। निवासियों की एक सूची तैयार होने के बाद उस सूची से नागरिकों के सत्यापन के लिये एक राष्ट्रव्यापी NRC को शुरू किया जा सकता है।
    • हालाँकि NRC के विपरीत NPR नागरिकता की गणना से संबंधित नहीं है क्योंकि इसमें किसी क्षेत्र में छह महीने से अधिक समय तक रहने वाले विदेशी को भी शामिल किया जाता है।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर:

  • ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ (NRC) प्रत्येक गाँव के संबंध में तैयार किया गया एक रजिस्टर होता है, जिसमें घरों या जोतों को क्रमानुसार दिखाया जाता है और इसमें प्रत्येक घर में रहने वाले व्यक्तियों की संख्या एवं नाम का विवरण भी शामिल होता है।
  • यह रजिस्टर पहली बार भारत की वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था और हाल ही में इसे अपडेट भी किया गया है।
    • इसे अभी तक केवल असम में ही अपडेट किया गया है और सरकार इसे राष्ट्रीय स्तर पर भी अपडेट करने की योजना बना रही है।

NPR बनाम जनगणना:

  • उद्देश्य:
    • जनगणना के दौरान जनगणनाकर्मियों द्वारा लोगों से उनका नाम, लिंग, जन्मतिथि, उम्र, वैवाहिक स्थिति, धर्म, मातृभाषा, साक्षरता आदि जैसे मूलभूत प्रश्न (वर्ष 2011 की जनगणना में 29 प्रश्न शामिल थे ) पूछे जाते हैं।
    • दूसरी ओर NPR में बुनियादी जनसांख्यिकीय डेटा और बॉयोमीट्रिक विवरण एकत्र किया जाता है।
  • कानूनी आधार:
    • जनगणना कानूनी रूप से जनगणना अधिनियम, 1948 द्वारा समर्थित है।
    • NPR नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत बनाए गए नियमों के एक समूह में उल्लिखित तंत्र है।

नागरिकता अधिनियम, 1955:

  • परिचय:
    • नागरिकता अधिनियम, 1955 में नागरिकता प्राप्त करने से संबंधित विभिन्न प्रावधान शामिल हैं।
      • इसमें जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और भारत में बाह्य क्षेत्र शामिल होने के आधार पर नागरिकता प्राप्त करने से संबंधित प्रावधान हैं।
    • इसके अलावा यह ओवरसीज़ सिटीज़न ऑफ इंडिया कार्डधारकों (OCIs) के पंजीकरण और उनके अधिकारों को विनियमित करता है।
    • OCI, भारत आने के क्रम में बहु-प्रवेश, बहुउद्देशीय आजीवन वीज़ा जैसे  कुछ लाभों को पाने का हकदार होता है।  
  • CAA 2019: नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) 2019 को नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पेश किया गया था।
    • यह पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के छह गैर-दस्तावेज़ वाले गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश किया था।
    • यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है।
      • दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और समाप्त वीज़ाा एवं परमिट अवधि के बाद यहाँ रहने के लिये दंड निर्दिष्ट करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)

  1. 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत के जनसंख्या घनत्व में तीन गुना से अधिक की वृद्धि हुई है।
  2. 1951 की जनगणना और 2001 की जनगणना के बीच भारत की जनसंख्या की वार्षिक वृद्धि दर (घातीय) तीन गुना हो गई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • जनसंख्या की सघनता के महत्त्वपूर्ण संकेतकों में से एक जनसंख्या का घनत्व है। इसे प्रति वर्ग किलोमीटर पर व्यक्तियों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • वर्ष 2001 में भारत का जनसंख्या घनत्व 324 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था और 1951 में यह 117 था। इस प्रकार घनत्व में दोगुने से अधिक की वृद्धि हुई, न कि तीन गुना। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • बीसवीं सदी की शुरुआत यानी वर्ष 1901 में भारत का जनसंख्या घनत्व 77 था और यह लगातार एक दशक से बढ़कर वर्ष 2001 में 324 तक पहुँच गया।
  • वर्ष 2001 में औसत वार्षिक वृद्धि दर 1.93 थी, जबकि 1951 में यह 1.25 थी। इस प्रकार इसमें वृद्धि तो हुई लेकिन यह वृद्धि दोगुनी नहीं थी। अतः कथन 2 सही नहीं है। 

अतः  विकल्प (d) सही है।


प्रश्न: सरकार की दो समानांतर योजनाएँ, आधार कार्ड और एनपीआर, एक स्वैच्छिक और दूसरी अनिवार्य, ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस एवं मुकदमेबाज़ी की स्थिति भी उत्पन्न की है। गुण-दोष के आधार पर चर्चा कीजिये कि क्या दोनों योजनाओं को एक साथ चलाने की आवश्यकता है। विकासात्मक लाभ और समान विकास हासिल करने के लिये योजनाओं की क्षमता का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014)

स्रोत: द हिंदू


चुनावी बाॅण्ड योजना में संशोधन

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बाॅण्ड, राजनीति का अपराधीकरण, चुनावी बाॅण्ड योजना, पंजीकृत राजनीतिक दल, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

चुनावी बाॅण्ड, इलेक्शन फंडिंग।

चर्चा में क्यों?

कुछ राज्यों में चुनाव से कुछ हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने चुनावी बाॅण्ड योजना में संशोधन किया है।

चुनावी बाॅण्ड योजना:

  • चुनावी बाॅण्ड:
    • चुनावी बाॅण्ड प्रॉमिसरी नोट्स के रुप में मुद्रा उपकरण होते हैं, जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से खरीदा जा सकता है तथा इसे किसी राजनीतिक दल को दान किया जा सकता है, जो बाॅण्ड को भुना सकता है।
    • ये बाॅण्ड केवल एक पंजीकृत राजनीतिक दल के नामित खाते में ही भुनाए जा सकते हैं।
    • कोई व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बाॅण्ड खरीद सकता है।
  • चुनावी बाॅण्ड योजना:
    • भारत में राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिये वर्ष 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की गई थी।
    • चुनावी बाॅण्ड योजना के पीछे केंद्रीय विचार, भारत में चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना है।
    • सरकार ने इस योजना को "कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था" की ओर बढ़ रहे देश में "चुनावी सुधार" के रूप में वर्णित किया था।

lowdown

योजना में किये गए संशोधन:

  • 15 दिनों की अतिरिक्त अवधि:
    • इसमें एक नया प्रावधान शामिल किया गया कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के आम चुनावों वाले वर्ष में इसके लिये पंद्रह दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट की जाएगी।
    • वर्ष 2018 में जब चुनावी बाॅण्ड योजना पेश की गई थी, तो ये बाॅण्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर में 10-10 दिनों की अवधि के लिये उपलब्ध कराए गए थे, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
      • लोकसभा के आम चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट की जानी थी।
  • वैधता:
    • चुनावी बाॅण्ड जारी होने की तारीख से पंद्रह कैलेंडर दिनों के लिये वैध होंगे और वैधता अवधि की समाप्ति के बाद चुनावी बाॅण्ड ज़मा किये जाने पर किसी भी प्राप्तकर्त्ता राजनीतिक दल को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।
    • पात्र राजनीतिक दल द्वारा ज़मा किया गया चुनावी बाॅण्ड उसके खाते में उसी दिन क्रेडिट हो जाएगा।
  • पात्रता:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत केवल पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले आम चुनाव में कम-से-कम 1% वोट हासिल किये हैं, चुनावी बाॅण्ड प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।

चुनावी बॉण्ड के संबंध में चिंताएँ:

  • मूल विचार के विपरीत:
    • चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
    • उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की अज्ञातता केवल जनता और विपक्षी दलों तक ही सीमित होती है।
  • जबरन वसूली की संभावना:
    • चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
    • परिणामस्वरूप यह प्रकिया केवल तत्कालीन सरकार को ही धन उगाही की अनुमति देती है और सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करती है।
  • लोकतंत्र के लिये चुनौती: वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
    • इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
    • हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों के लिये अपना वोट डालते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
  • ‘जानने के अधिकार’ से समझौता: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि ‘जानने का अधिकार’ विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ: चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
    • उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
    • इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकती है।
  • क्रोनी कैपिटलिज़्म: चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अच्छे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • क्रोनी कैपिटलिज़्म एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता की वृद्धि के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
  • संपूर्ण शासनतंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने हेतु मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
  • मतदाता जागरूकता अभियानों की मांग कर पर्याप्त बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन परअधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।

स्रोत: द हिंदू