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डेली न्यूज़

  • 08 Nov, 2021
  • 36 min read
सामाजिक न्याय

श्वसन प्रणाली पर पराली जलाने का प्रभाव

प्रिलिम्स के लिये: 

पार्टिकुलेट मैटर-2.5, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

श्वसन प्रणाली पर पराली जलाने का प्रभाव, पराली जलाने के अन्य प्रभाव

चर्चा में क्यों?

पंजाब में किये गए एक हालिया अध्ययन के मुताबिक, पराली जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण ने स्थानीय स्तर पर फेफड़ों की कार्यक्षमता को काफी प्रभावित किया है और यह ग्रामीण पंजाब में महिलाओं के लिये विशेष रूप से हानिकारक साबित हुआ है।

  • यह अध्ययन मुख्यतः दो चरणों में आयोजित किया गया था: पहला अक्तूबर 2018 में और दूसरा मार्च-अप्रैल 2019 में।

प्रमुख बिंदु

  • उच्च PM2.5 स्तर:
    • दोनों चरणों के बीच ‘PM2.5’ (पार्टिकुलेट मैटर-2.5) की सांद्रता 100 ग्राम/घनमीटर से बढ़कर 250 ग्राम/घनमीटर अथवा दोगुनी से अधिक हो गई।
      • PM2.5 उन कणों को संदर्भित करता है, जिनका व्यास 2.5 माइक्रोमीटर से कम होता है (मानव बाल की तुलना में 100 गुना अधिक पतला)।
      • इसके कारण श्वसन संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं और दृश्यता में भी कमी होती है। यह एक अंतःस्रावी विघटनकर्त्ता है, जो इंसुलिन स्राव और इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकता है, इस प्रकार यह मधुमेह में योगदान देता है।
    • अध्ययन के दौरान इसका स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित वायु गुणवत्ता मानकों से लगभग 10-15 गुना अधिक पाया गया, हालाँकि भारत के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा अनुमेय मानक विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों से अधिक हैं।
      • विश्व स्वास्थ्य संगठन: PM2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये, जबकि 24 घंटे का औसत एक्सपोज़र 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिये।
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड: PM2.5 की वार्षिक औसत सांद्रता 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिये, जबकि 24 घंटे का औसत एक्सपोज़र 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिये।
  • प्रभाव:
    • सभी आयु समूहों (10-60 वर्ष) में सांस लेने में तकलीफ, त्वचा पर चकत्ते, आँखों  में खुजली आदि सहित अधिकांश लक्षणों में दो से तीन गुना वृद्धि देखी गई।
      • सबसे अधिक श्वसन संबंधी शिकायतें बुजुर्ग आबादी (>40-60) द्वारा दर्ज की गई थीं।
    • PM2.5 सांद्रता में वृद्धि के साथ फेफड़ों की कार्यक्षमता में गिरावट दर्ज की गई।
      • पुरुषों में फेफड़ों की कार्यक्षमता में 10-14% की गिरावट हुई और सभी आयु वर्ग की महिलाओं में लगभग 15-18% की गिरावट देखी गई।

पराली जलाना: 

  • परिचय:
    • पराली जलाना, अगली फसल बोने के लिये फसल के अवशेषों को खेत में आग लगाने की क्रिया है।
    • इसी क्रम में सर्दियों की फसल (रबी की फसल) की बोआई हरियाणा और पंजाब के किसानों द्वारा कम अंतराल पर की जाती है तथा अगर सर्दी की छोटी अवधि के कारण फसल बोआई में देरी होती है तो उन्हें काफी नुकसान हो सकता है, इसलिये पराली को जलाना पराली की समस्या का सबसे सस्ता और तीव्र तरीका है।
    • पराली जलाने की यह प्रक्रिया अक्तूबर के आसपास शुरू होती है और नवंबर में अपने चरम पर होती है, जो दक्षिण-पश्चिम मानसून की वापसी का समय भी है।
  • पराली जलाने का प्रभाव:
    • प्रदूषण:
      • खुले में पराली जलाने से वातावरण में बड़ी मात्रा में ज़हरीले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं जिनमें मीथेन (CH4), कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) और कार्सिनोजेनिक पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसी हानिकारक गैसें होती हैं।
      • वातावरण में छोड़े जाने के बाद ये प्रदूषक वातावरण में फैल जाते हैं, भौतिक और रासायनिक परिवर्तन से गुज़र सकते हैं तथा अंततः स्मॉग की मोटी चादर बनाकर मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
    • मिट्टी की उर्वरता:
      • भूसी को ज़मीन पर जलाने से मिट्टी के पोषक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं, जिससे यह कम उर्वरक हो जाती है।
    • गर्मी उत्पन्न होना:
      • पराली जलाने से उत्पन्न गर्मी मिट्टी में प्रवेश करती है, जिससे नमी और उपयोगी रोगाणुओं को नुकसान होता है।
  • पराली जलाने के विकल्प:
    • पराली का स्व-स्थाने (In-Situ) प्रबंधन: ज़ीरो-टिलर मशीनों और जैव-अपघटकों के उपयोग द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन।
    • इसी प्रकार, बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) प्रबंधन : जैसे मवेशियों के चारे के रूप में चावल के भूसे का उपयोग करना।
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग- उदाहरण के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) मशीन, जो पराली को जड़ समेत उखाड़ फेंकती है और साफ किये गए क्षेत्र में बीज भी बो सकती है। इसके बाद पराली को खेत के लिये गीली घास के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
    • फसल पैटर्न बदलना: यह गहरा और अधिक मौलिक समाधान है।
    • बायो एंजाइम-पूसा: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Indian Agriculture Research Institute) ने बायो एंजाइम-पूसा (bio enzyme-PUSA) के रूप में एक परिवर्तनकारी समाधान पेश किया है।
      • यह अगले फसल चक्र के लिये उर्वरक के खर्च को कम करते हुए जैविक कार्बन और मृदा स्वास्थ्य में वृद्धि  करता है।
  • अन्य कार्य योजना:
    • पंजाब, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र  (NCR) राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (GNCTD)  ने कृषि पराली जलाने की समस्या से निपटने के लिये वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग द्वारा दी गई रूपरेखा के आधार पर निगरानी के लिये विस्तृत कार्य योजना तैयार की है।

Respiratory-Health

आगे की राह

  • पराली जलाने पर अंकुश लगाने के लिये जुर्माना लगाना भारतीय सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के लिहाज़ से बेहतर विकल्प नहीं है। हमें वैकल्पिक समाधानों पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
  • यद्यपि सरकार मशीनों का वितरण कर रही है, किंतु स्व-स्थानिक प्रबंधन के लिये सभी को मशीनें नहीं मिल पाती हैं। सरकार को उनकी उपलब्धता सभी के लिये सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • इसी तरह  बाह्य-स्थाने (Ex-Situ) उपचार प्रबंधन में कुछ कंपनियों ने अपने उपयोग के लिये पराली इकट्ठा करना शुरू कर दिया है, किंतु इस दृष्टिकोण को और अधिक बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

तेल और खाद्य कीमतें

प्रिलिम्स के लिये: 

संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन, खाद्य मूल्य सूचकांक

मेन्स के लिये: 

तेल और खाद्य कीमतों में वृद्धि का कारण और इसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने विश्व खाद्य मूल्य सूचकांक (FPI) जारी किया है, जो कि जुलाई 2011 के बाद से उच्चतम स्तर पर है।

  • खाद्य आपूर्ति और कीमतें, चरम मौसमी घटनाओं, खराब आपूर्ति शृंखला, श्रमिकों की कमी और बढ़ती लागत के कारण दबाव में है।

FAO

प्रमुख बिंदु

  • खाद्य और ईंधन में एक साथ वृद्धि:
    • जैव-ईंधन संबंध के कारण पेट्रोलियम और कृषि-वस्तुओं की कीमतों में एक साथ बढ़ोतरी हो रही है।
    • जब कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो गन्ने या मक्का से इथेनॉल को पेट्रोल के साथ मिलाना या बायोडीज़ल उत्पादन के लिये ताड़ या सोयाबीन के तेल का अधिक उपयोग किया जाता है।
    • इसी तरह कपास पेट्रोकेमिकल्स-आधारित सिंथेटिक फाइबर की तुलना में अपेक्षाकृत सस्ती हो जाती है।
    • इसके अलावा चूँकि मकई मुख्य रूप से एक पशु चारा है और इथेनॉल के लिये इसके प्रयोग से पशुधन में उपयोग हेतु गेहूँ सहित अन्य अनाजों का प्रतिस्थापन होता है।
      • इसके परिणामस्वरूप खाद्यान्नों की कीमतों में भी वृद्धि होती है।
    • चीनी के साथ भी ऐसा ही होता है, जब चीनी मिलें शराब में किण्वन के लिये गन्ने के अनुपात को बढ़ाती हैं।
    • लेकिन यह केवल जैव-ईंधन का प्रभाव ही नहीं है, बड़ी कीमतों में वृद्धि का सकारात्मक भावना के निर्माण के माध्यम से अन्य कृषि उत्पादों पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • आर्थिक गतिविधि और प्रोत्साहन:
    • बाज़ार की सकारात्मक भावना दो कारकों से जुड़ी है:
      • महामारी के घटते मामलों और बढ़ती टीकाकरण दरों के बीच दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियों के पुनरुद्धार के साथ मांग पूर्ववर्ती स्तर पर लौट रही है।
      • दूसरा कारण, अमेरिकी फेडरल रिज़र्व और अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकों द्वारा उपयोग की जाने वाली तरलता है, जिसने कोविड-19 से हुई आर्थिक क्षति को सीमित किया है।
        • यह सारा पैसा, नीति-प्रेरित अति-निम्न वैश्विक ब्याज़ दरों के साथ, शेयर बाज़ारों और स्टार्टअप निवेश के माध्यम से बाज़ार में पहुँच जाता है।
    • हालाँकि चूँकि आपूर्ति शृंखलाओं की बहाली, मांग की रिकवरी के साथ संतुलित नहीं है- शिपिंग कंटेनरों/जहाज़ों और मज़दूरों की कमी अभी तक पूरी तरह से अपने पूर्वर्ती स्तर पर नहीं लौटी है - कुल मिलाकर इस सब का परिणाम मुद्रास्फीति के रूप में सामने आया है।
  • किसानों पर प्रभाव:
    • कपास और सोयाबीन जैसे कुछ उत्पाद सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से काफी अधिक कीमतों पर बिक रहे हैं।
    • दूसरी ओर किसानों को ईंधन एवं उर्वरकों के लिये अधिक भुगतान करने हेतु मज़बूर किया जा रहा है, क्योंकि उनकी अंतर्राष्ट्रीय  कीमतें बढ़ गई हैं।
  • उर्वरक:
    • उर्वरकों की स्थिति और भी बदतर है, डी-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) वर्तमान में भारत में 800 अमेरिकी डॉलर प्रति टन की दर से आयात किया जा रहा है, जिसमें लागत और समुद्री भाड़ा भी शामिल है। ‘म्यूरेट ऑफ पोटाश’ (MOP) कम-से-कम 450 अमेरिकी डॉलर प्रति टन पर उपलब्ध है।
      • यह वर्ष 2007-08 के विश्व खाद्य संकट के दौरान प्रचलित कीमतों के करीब हैं।
      • DAP और MOP गैर-यूरिया उर्वरक हैं।
    • उर्वरकों के साथ, उनके मध्यवर्ती और कच्चे माल जैसे- रॉक फॉस्फेट, सल्फर, फॉस्फोरिक एसिड तथा अमोनिया की कीमतें भी डिमांड-पुल (उच्च फसल रोपण से) और कॉस्ट-शॉक (तेल और गैस से) के संयोजन के कारण आसमान छू गई हैं।

खाद्य मूल्य सूचकांक:

  • इसे वर्ष 1996 में वैश्विक कृषि वस्तु बाज़ार के विकास की निगरानी में मदद के लिये सार्वजनिक रूप से पेश किया गया था।
  • FAO फूड प्राइस इंडेक्स (FFPI) खाद्य वस्तुओं की टोकरी के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों में मासिक बदलाव का एक मापक है।
  • यह अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और चीनी की टोकरी के मूल्यों में हुए परिवर्तनों को मापता है।
  • इसका आधार वर्ष 2014-16 है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-फ्रांँस रक्षा साझेदारी

प्रिलिम्स के लिये:

आत्मनिर्भर  भारत, यूरोपीय संघ, अभ्यास शक्ति, अभ्यास वरुण, ऑकस' (AUKUS)

मेन्स के लिये:

भारत-फ्राँस रक्षा सहयोग, भारत-फ्राँस सामरिक संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-फ्रांँस रणनीतिक वार्ता के दौरान दोनों देशों ने खुफिया जानकारी साझा करने, क्षमताओं को बढ़ाने, सैन्य अभ्यासों का विस्तार करने और समुद्री, अंतरिक्ष तथा साइबर डोमेन में नई पहल के उद्देश्य से रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी का विस्तार करने का संकल्प लिया।

France

प्रमुख बिंदु

  • वार्ता की मुख्य विशेषताएँ:
    • आत्मनिर्भर भारत' को समर्थन: फ्रांँस ने भारत के "आत्मनिर्भर भारत” (Atmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण तथा भारत में रक्षा औद्योगीकरण, संयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास के लिये उन्नत क्षमताओं की एक विस्तृत शृंखला हेतु अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।
    •  फ्रांँस की इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी: फ्रांँस ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के लिये एक "रेसीडेंस पावर" के तौर पर अपनी निरंतर प्रतिबद्धता और इस क्षेत्र हेतु अपनी रणनीति के ‘प्रमुख स्तंभ’ के रूप में भारत के साथ साझेदारी पर ज़ोर दिया।
      • इसके अलावा वर्ष 2022 की पहली छमाही में यूरोपीय संघ (EU) की फ्राँसीसी प्रेसीडेंसी से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यूरोपीय संघ के जुड़ाव को आकार दिए जाने की उम्मीद है।
      • एक रेसीडेंस पावर वह है जिसके पास दुनिया के किसी विशेष स्थान में क्षेत्र या क्षेत्रीय उपस्थिति नहीं है, लेकिन फिर भी उस क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक शक्ति के रूप में स्थापित है। 
    • बैठक का महत्त्व: भारत के साथ रणनीतिक सहयोग का विस्तार करने के लिये फ्राँस की पुनरावृत्ति ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस द्वारा एक नए सुरक्षा गठबंधन (AUKUS) के समझौते के बाद उजागर हुई है।
      • गठबंधन की अप्रत्याशित घोषणा, जिसमें ऑस्ट्रेलिया के लिये पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है, ने फ्राँस के साथ एक अलग पनडुब्बी समझौते से ऑस्ट्रेलिया के हटने के बाद फ्राँसीसी सरकार ने नाराज़गी व्यक्त की।
      • हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिये ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएसए के बीच एक नई त्रिपक्षीय सुरक्षा साझेदारी 'ऑकस' (AUKUS) की घोषणा की गई है।
  • भारत-फ्राँस सामरिक संबंध:
    • पृष्ठभूमि: 
      • जनवरी 1998 में शीत युद्ध की समाप्ति के बाद फ्राँस उन पहले देशों में से एक था जिसके साथ भारत ने ‘रणनीतिक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर किये थे।
      • वर्ष 1998 में परमाणु हथियारों के परीक्षण के भारत के फैसले का समर्थन करने वाले बहुत कम देशों में से फ्राँस एक था।
    • रक्षा सहयोग: दोनों देशों के बीच मंत्रिस्तरीय रक्षा वार्ता आयोजित की जाती है।
      • तीनों सेनाओं द्वारा नियमित समयांतराल पर रक्षा अभ्यास किया जाता है; अर्थात्
      • हाल ही में भारतीय वायु सेना (IAF) में फ्रेंच राफेल बहुउद्देशीय लड़ाकू विमान को शामिल किया गया है।
      •  भारत ने वर्ष 2005 में एक प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण व्यवस्था के माध्यम से भारत के मझगाँव डॉकयार्ड में छह स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण के लिये एक फ्राँसीसी कंपनी के साथ अनुबंध किया।
      • दोनों देशों ने पारस्परिक ‘लॉजिस्टिक्स सपोर्ट एग्रीमेंट’ (Logistics Support Agreement- LSA)  के प्रावधान के संबंध में समझौते पर भी हस्ताक्षर किये।
        • यह समझौता नियमित पोर्ट कॉल के साथ-साथ मानवीय सहायता और आपदा राहत (HADR) के अंतर्गत अन्य देशों के युद्धपोतों, सैन्य विमानों एवं सैनिकों के लिये ईंधन, राशन, उपकरणों तथा बर्थिंग व रखरखाव की पुनःपूर्ति की सुविधा में मदद करेगा।
    • हिंद महासागर क्षेत्र: साझा सामरिक हित: 
      • फ्राँस को अपनी औपनिवेशिक क्षेत्रीय संपत्ति जैसे- रीयूनियन द्वीप और हिंद महासागर के भारतीय क्षेत्र पर पड़ने वाले इसके प्रभावों की रक्षा करने की आवश्यकता है।
      • हाल ही में फ्राँस हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) का 23वाँ सदस्य बन गया है। 
        • यह पहली बार है कि कोई ऐसा देश जिसकी मुख्य भूमि हिंद महासागर में नहीं है और उसे IORA की सदस्यता प्रदान की गई है। 
    • आतंकवाद विरोधी: फ्राँस ने आतंकवाद पर वैश्विक सम्मेलन के लिये भारत के प्रस्ताव का समर्थन किया। दोनों देश एक नए ‘नो मनी फॉर टेरर’ - फाइटिंग टेररिस्ट फाइनेंसिंग पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन का भी समर्थन करते हैं।
    • फ्राँस द्वारा भारत का समर्थन: फ्राँस भी कश्मीर को लेकर भारत का लगातार समर्थन कर रहा है जबकि पाकिस्तान के साथ उसके संबंधों में हाल के दिनों में कमी देखी गई है और चीन का दृष्टिकोण संदेहास्पद रहा है।

आगे की राह

  • फ्राँस, जिसने अमेरिका के साथ अपने गठबंधन के ढाँचे के भीतर रणनीतिक स्वायत्तता की मांग की थी और भारत, जिसने स्वतंत्र विदेश नीति को महत्त्व दिया है, अनिश्चित काल के लिये नए गठबंधन के निर्माण में स्वाभाविक भागीदार हैं। 
  • फ्राँस वैश्विक मुद्दों पर यूरोप के साथ गहरे जुड़ाव का मार्ग भी खोलता है, विशेषकर ब्रेक्ज़िट (BREXIT) के कारण इस क्षेत्र में अनिश्चितता के बाद यह स्थिति उत्पन्न हुई।
  • यह संभवना व्यक्त की गई कि फ्राँस, जर्मनी और जापान जैसे अन्य समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारी वैश्विक मंच पर भारत के प्रभाव के लिये कहीं अधिक परिणामी साबित होगी। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020

प्रिलिम्स के लिये:

हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020, अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15

मेन्स के लिये:

भारत में स्थानीय संरक्षण एवं इससे संबंधित विभिन्न अधिनियम 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हरियाणा सरकार ने कहा है कि स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 राज्य में 15 जनवरी 2022 से लागू किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • अधिनियम का परिचय:
    • इसके तहत 10 या अधिक कर्मचारियों वाली फर्मों को 30,000 रुपए प्रतिमाह वाली सभी नौकरियों में से 75% राज्य के अधिवासी उम्मीदवारों के लिये आरक्षित करने की आवश्यकता है।
      • राज्य में स्थित विभिन्न कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्टों और सीमित देयता भागीदारी फर्मों में नौकरियाँ प्रदान की जाएंगी।
    • इस कदम का उद्देश्य आईटी और आईटी-सक्षम सेवाओं (ITes) जैसे क्षेत्रों में भी देश के अन्य हिस्सों से प्रतिभाओं के अंतर्वाह को रोकना है, जिनकी राज्य में पर्याप्त आपूर्ति नहीं है।
    • यह कानून 10 वर्ष की अवधि के लिये लागू होगा।
    • राज्य सरकार ने निजी कंपनियों को काम पर रखने में कुछ लचीलापन प्रदान करने के लिये राज्य में एक वास्तविक निवासी प्रमाण पत्र प्राप्त करने हेतु निवास (अधिवास) की आवश्यकता को 15 से 5 वर्ष तक कम कर दिया।
    • इन सभी नियोक्ताओं के लिये श्रम विभाग, हरियाणा की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध नामित पोर्टल पर सकल मासिक वेतन या वेतन 30,000 रुपए से अधिक नहीं पाने वाले अपने सभी कर्मचारियों को पंजीकृत करना अनिवार्य होगा।
    • इस अधिनियम के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन दंडनीय अपराध होगा।
  • चिंताएँ:
    • निवेशकों के पलायन में वृद्धि :
      • यह ऑटो, आईटी जैसे क्षेत्रों में बड़े घरेलू और बहुराष्ट्रीय निवेशकों के पलायन को गति प्रदान कर सकता है जो अत्यधिक कुशल जनशक्ति पर निर्भर हैं।
    • मौजूदा उद्योगों को प्रभावित करना:
      • राज्य के अन्य क्षेत्रों से राज्य में जनशक्ति संसाधनों की मुक्त आवाजाही को रोकने एवं स्थायी निवासियों के मुद्दे को उठाने से राज्य में मौजूदा उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
        • यह तकनीकी दिग्गजों और अन्य उद्योगों को अपना आधार हरियाणा से दूसरे राज्यों में स्थानांतरित करने और राज्य के मौद्रिक संसाधनों को कम करने में भूमिका निभा सकता है।
    • अत्यधिक प्रतिभा की कमी का कारण:
      • इसके अलावा ‘गिग एंड प्लेटफॉर्म’ कंपनियों पर आरक्षण लागू करने से प्रतिभा की कमी हो सकती है।
    • संविधान के विरुद्ध:
      • भारत का संविधान कई प्रावधानों के माध्यम से आवागमन की स्वतंत्रता और इसके परिणामस्वरूप भारत के भीतर रोज़गार की गारंटी देता है।
        • अनुच्छेद 14 जन्म स्थान की शर्त के बिना कानून के समक्ष समानता का प्रावधान करता है।
        • अनुच्छेद 15 जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव से बचाता है।
        • अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोज़गार में जन्म स्थान आधारित भेदभाव की गारंटी नहीं देता है।
        • अनुच्छेद 19 यह सुनिश्चित करता है कि नागरिक भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूम सकें।
  • ऐसे अन्य प्रयास:
    • गोवा में एक राजनीतिक दल ने निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिये 80% आरक्षण का वादा किया है और ऐसा ही वादा उत्तराखंड के संदर्भ में भी किया गया था।
    • यह हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के नक्शेकदम पर चलता है जो पहले से ही समान लोकलुभावन नीतियों को लागू कर चुके हैं या लागू करने की कोशिश कर रहे हैं।
  • ऐसे कानूनों के पीछे कारण:
    • वोट बैंक की राजनीति: अंतर-’राज्यीय प्रवासी श्रमिक (ISMW) एक बड़ा "अंडर-यूज़्ड या अन-यूज़्ड" मतदाताओं का गठन करते हैं क्योंकि वे अक्सर मतदान के अधिकारों का प्रयोग नहीं करते हैं। यदि इन श्रमिकों और संभावित प्रवासियों को ‘जॉब फॉर लोकल लेजिस्लेशन’ (JRFL) के माध्यम से बनाए रखा जाता है और उन्हें नौकरी प्रदान की जाती है, तो पार्टियों के चुनावी हितों को पूरा किया जाएगा।
    • आर्थिक सुस्ती: देश में बेरोज़गारी का मुद्दा प्रासंगिक हो गया है क्योंकि सरकारी रोज़गार कम होने के कारण बेरोज़गारी बढ़ी है।
    • बढ़ी हुई आय और प्रतिभा: स्थानीय कानूनों के लिये नौकरी न केवल प्रतिभा को बनाए रखेगी बल्कि आय भी होगी जो अन्यथा ‘अन्य क्षेत्रों’ में जाएगी।
    • भूमि अधिग्रहण के लिये पूर्व शर्त: उद्योगों के लिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में अपनी ज़मीन गँवाने वाले किसान और ग्रामीण ऐसी पूर्व-शर्त रखते हैं जिसमें उद्योगों को स्थानीय युवाओं को रोज़गार देना होता है।

आगे की राह:

  • हरियाणा सरकार को 30,000 रुपए प्रतिमाह की मूल वेतन सीमा को कंपनी की लागत के आधार पर 15,000 रुपए प्रतिमाह तक कम करने पर विचार करना चाहिये और राज्य में कौशल सुधार के प्रयासों में वृद्धि करनी चाहिये। यदि कोई आरक्षण हो तो उसे 20-25% से शुरू होना चाहिये क्योंकि तकनीकी और विशेष कौशल प्रतिभा को राज्य के युवाओं के बीच विकसित करने में समय लगेगा।
  • विभिन्न राज्य सरकारों के ‘जॉब फॉर लोकल लेजिस्लेशन’ (JRFL) के प्रयासों से बाहर निकलने का सबसे अच्छा तरीका आर्थिक सुधार सुनिश्चित करना और युवाओं के लिये कौशल प्रशिक्षण और उचित शिक्षा के साथ पर्याप्त रोज़गार के अवसर प्रदान करना है, जिससे जनता को मुक्त बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम बनाया जा सकेगा। 

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

सामूहिक विलुप्ति

प्रिलिम्स के लिये:

ऑर्डोविशियन युग

मेन्स के लिये:

लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन के कारण एवं उसके प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अंतराष्ट्रीय पत्रिका ‘नेचर जियोसाइंस’ में प्रकाशित एक पेपर ने पहले सामूहिक विलुप्ति के पीछे एक नया कारण बताया है, जिसे ‘लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ के रूप में भी जाना जाता है।

  • यह बताता है कि ठंडी जलवायु ने संभवतः महासागर परिसंचरण पैटर्न को बदल दिया। इसने उथले समुद्रों से गहरे महासागरों में ऑक्सीजन युक्त पानी के प्रवाह में व्यवधान पैदा किया, जिससे समुद्री जीवों का बड़े पैमाने पर विलोपन हुआ।

प्रमुख बिंदु

  • सामूहिक विलुप्ति:
    • बड़े पैमाने पर विलुप्त होने की घटना तब होती है जब प्रजातियाँ प्रतिस्थापित होने की तुलना में बहुत तेज़ी से विलुप्त होती हैं।
    • इसे आमतौर पर दुनिया की लगभग 75% प्रजातियों के कम भूवैज्ञानिक समय में विलुप्त होने के रूप में परिभाषित किया जाता है- लगभग 2.8 मिलियन वर्ष से कम समय में।
  • बड़े पैमाने पर सामूहिक विलुप्ति की घटनाएँ:
    • पहली सामूहिक विलुप्ति: लगभग 445 मिलियन वर्ष पहले हुए ‘ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ ने सभी प्रजातियों में से लगभग 85% को विलुप्त कर दिया।
    • दूसरी सामूहिक विलुप्ति: ‘डेवोनियन मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 375 मिलियन वर्ष पूर्व) ने दुनिया की लगभग 75% प्रजातियों का विनाश कर दिया।
    • तीसरी सामूहिक विलुप्ति: पर्मियन सामूहिक विलुप्ति (लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व) जिसे ‘ग्रेट डाइंग’ के रूप में भी जाना जाता है, सभी प्रजातियों के 95% से अधिक विलुप्त होने का कारण बना।
    • चौथी सामूहिक विलुप्ति: ‘ट्राइसिक मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 200 मिलियन वर्ष पूर्व) ने कुछ डायनासोर सहित पृथ्वी की लगभग 80% प्रजातियों को समाप्त कर दिया।
    • पाँचवीं सामूहिक विलुप्ति: यह ‘क्रिटेशियस मास एक्सटिंक्शन’ (लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व) गैर-एवियन डायनासोर की विलुप्ति के लिये जाना जाता है।

Earth-mass-extinctions

  • नवीनतम निष्कर्षों के बारे में:
    • नई व्याख्या: प्रत्येक बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के पीछे कई सिद्धांत हैं और नई प्रौद्योगिकियों में प्रगति के साथ शोधकर्त्ता इन घटनाओं के बारे में अधिक जटिल विवरणों को उजागर कर रहे हैं।
    • पारंपरिक विचार: दशकों से प्रचलित विचारधारा यह थी कि ज्वालामुखी-प्रेरित ग्लोबल वार्मिंग के कारण महासागरों में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इस प्रकार समुद्री आवासन की क्षमता प्रभावित होती है एवं यह संभावित रूप से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर कर देती है।
    • न्यू स्कूल ऑफ थॉट: हाल के वर्षों में बढ़ते साक्ष्य पृथ्वी के इतिहास में कई ऐसे प्रकरणों की ओर इशारा करते हैं जब ठंडी जलवायु में ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था।
      • उस अवधि के दौरान ऑर्डोविशियन जलवायु और समुद्री जैव-रासायनिक चक्रों के कारण उत्पन्न वैश्विक शीतलन के प्रत्युत्तर में ‘समुद्री तल और उपरि-महासागरीय ऑक्सीकरण’ की घटना घटित हुई।
        • इससे समुद्र के संचलन को प्रभावित करने वाली ‘डीप सी एनोक्सिया’ की घटना घटित हुई।
      • इस प्रकार इस पेपर में निष्कर्ष निकाला गया है कि जलवायु शीतलन ने पोषक चक्रण में परिवर्तन किया होगा एवं प्राथमिक उत्पादक समुदायों ने अंततः ‘लेट ऑर्डोविशियन मास एक्सटिंक्शन’ को प्रेरित किया होगा।
  • मौजूदा छठा ‘मास एक्सटिंक्शन’ और उसके प्रभाव:
    • छठा ‘मास एक्सटिंक्शन’:
      • कुछ शोधकर्ताओं ने इंगित किया है कि वर्तमान में हम मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप छठे ‘मास एक्सटिंक्शन’ का सामना कर रहे हैं।
        • वर्तमान में सभी प्रजातियों में से केवल अनुमानित 2% जीवित हैं, लेकिन प्रजातियों की पूर्ण संख्या पहले से कहीं अधिक है।
      • इसे सर्वाधिक गंभीर पर्यावरणीय समस्या के रूप में वर्णित किया गया है, क्योंकि प्रजातियों का यह नुकसान स्थायी होगा।
        • प्रजातियों का नुकसान तब हो रहा है जब मानव पूर्वजों ने 11,000 वर्ष पूर्व कृषि विकसित की थी। तब से मानव आबादी लगभग 1 मिलियन से बढ़कर 7.7 बिलियन हो गई है।
    • संभावित प्रभाव:
      • प्रजातियों के विलुप्त होने का प्रभाव फसल पाॅलिनेशन और जल शोधन में नुकसान के रूप में पड़ता है।
      • इसके अलावा यदि किसी प्रजाति का एक पारिस्थितिकी तंत्र में एक विशिष्ट कार्य है, तो नुकसान खाद्य शृंखला को प्रभावित करके अन्य प्रजातियों के लिये गंभीर परिणाम पैदा कर सकता है।
      • विलुप्त होने के प्रभावों से आनुवंशिक और सांस्कृतिक परिवर्तनशीलता के बिगड़ने की आशंका है जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल देगी।
        • जब आनुवंशिक परिवर्तनशीलता और लचीलापन कम हो जाता है, तो मानव कल्याण में इसका योगदान समाप्त हो सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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