ज़ूनोटिक बीमारियों पर सयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
प्रीलिम्स के लिये:ज़ूनोटिक रोग, COVID-19, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम मेन्स के लिये:ज़ूनोटिक रोगों के कारण एवं इन्हें रोकने हेतु उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (United Nations Environment Programme- UNEP) तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान’ (International Livestock Research Institute- ILRI) द्वारा COVID-19 महामारी के संदर्भ में ‘प्रिवेंटिंग द नेक्स्ट पेंडेमिक: ज़ूनोटिक डिजीज़ एंड हाउ टू ब्रेक द चेन ऑफ ट्रांसमिशन’ (Preventing the Next Pandemic: Zoonotic diseases and how to break the chain of transmission) नामक रिपोर्ट प्रकाशित की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- इस रिपोर्ट में मनुष्यों में होने वाली ज़ूनोटिक बीमारियों ( Zoonotic Diseases) की प्रकृति एवं प्रभाव पर चर्चा की गई है।
- इस रिपोर्ट का प्रकाशन 6 जुलाई को ‘विश्व ज़ूनोसिस दिवस’ (World Zoonoses Day) के अवसर पर किया गया है।
- 6 जुलाई, 1885 को फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर द्वारा सफलतापूर्वक जूनोटिक बीमारी रेबीज़ के खिलाफ पहला टीका विकसित किया था।
- प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, मनुष्यों में 60% ज्ञात ज़ूनॉटिक रोग हैं तथा 70% ज़ूनोटिक रोग ऐसे है जो अभी ज्ञात नहीं हैं।
- विश्व में हर वर्ष निम्न- मध्यम आय वाले देशों में 10 लाख लोग ज़ूनोटिक रोगों के कारण मर जाते हैं।
- पिछले दो दशकों में, ज़ूनोटिक रोगों के कारण COVID-19 महामारी की लागत को शामिल न करते हुए) $ 100 बिलियन से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ है जिसके अगले कुछ वर्षों में $ 9 ट्रिलियन तक पहुँचने की उम्मीद है।
- रिपोर्ट के अनुसार, अगर पशुजनित बीमारियों की रोकथाम के प्रयास नहीं किये गए तो COVID-19 जैसी अन्य महामारियों का आगे भी सामना करना पड़ सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान (ILRI):
- ILRI एक अंतर्राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1994 में की गई।
- यह नैरोबी, केन्या में स्थित है।
- यह विश्व में खाद्य सुरक्षा और गरीबी उन्मूलन में पशुधन की भूमिका के संदर्भ में विश्व स्तर पर भागीदारों के साथ मिलकर कार्य करता है।
ज़ूनोसिस/ज़ूनोटिक रोग:
- ऐसे रोग जो पशुओं के माध्यम से मनुष्यों में फैलते है उन्हें ज़ूनोसिस या ज़ूनोटिक रोग कहा जाता है।
- ज़ूनोटिक संक्रमण प्रकृति या मनुष्यों में जानवरों के अलावा बैक्टीरिया,वायरस या परजीवी के माध्यम से फैलता है।
- एचआईवी-एड्स, इबोला, मलेरिया, रेबीज़ तथा वर्तमान कोरोनावायरस रोग (COVID-19) ज़ूनोटिक संक्रमण के कारण फैलने वाले रोग हैं।
ज़ूनोटिक संक्रमण के कारक:
- रिपोर्ट में ज़ूनॉटिक रोगों में वृद्धि के लिये सात कारकों को चिन्हित किया गया है जो इस प्रकार हैं-
- पशु प्रोटीन की बढ़ती मांग
- गहन और अस्थिर खेती में वृद्धि
- वन्यजीवों का बढ़ता उपयोग और शोषण
- प्राकृतिक संसाधनों का निरंतर उपयोग
- यात्रा और परिवहन
- खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव
- जलवायु परिवर्तन संकट।
ज़ूनोटिक संक्रमण को रोकने के उपाय:
- रिपोर्ट के अनुसार ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) एक अनुकूलतम विधि है जिसके माध्यम से महामारी से निपटने के लिये मानव स्वास्थ्य, पशु एवं पर्यावरण पर एक साथ ध्यान दिया जाता है।
- इस रिपोर्ट में 10 ऐसे तरीकों के बारे में बताया गया है जो भविष्य में ज़ूनोटिक संक्रमण को रोकने में सहायक हो सकते हैं जो इस प्रकार हैं-
- ‘एक स्वास्थ्य पहल’ पर बहुविषयक/अंतर्विषयक (Interdisciplinary) तरीकों से निवेश पर ज़ोर देना।
- ज़ूनोटिक संक्रमण/पशुजनित बीमारियों पर वैज्ञानिक खोज को बढावा देना।
- पशुजनित बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने पर बल।
- बीमारियों के संदर्भ में जवाबी कार्रवाई के लागत-मुनाफा विश्लेषण को बेहतर बनाना और समाज पर बीमारियों के फैलाव का विश्लेषण करना।
- पशुजनित बीमारियों की निगरानी और नियामक तरीकों को मज़बूत बनाना।
- भूमि प्रबंधन की टिकाऊशीलता को प्रोत्साहन देना तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये वैकल्पिक उपायों को विकसित करना ताकि आवास स्थलों एवं जैवविविधिता का संरक्षण किया जा सके।
- जैव सुरक्षा एवं नियंत्रण को बेहतर बनाना, पशुपालन में बीमारियों के होने के कारणों को पहचानना तथा उचित नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देना।
- कृषि और वन्यजीव के सह अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिये भूदृश्य (Landscape) की टिकाऊशीलता को सहारा देना।
- सभी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र में हिस्सेदारों की क्षमताओं को मज़बूत बनाना।
- अन्य क्षेत्रों में भूमि-उपयोग एवं सतत् विकास योजना, कार्यान्वयन तथा निगरानी के लिये एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण (One Health approach) का संचालन करना।
अफ़्रीकी देशों की भूमिका:
- रिपोर्ट के अनुसार, हाल ही में अफ्रीकी महाद्वीप के अधिकांश देश इबोला तथा अन्य पशु-जनित महामारियों से जूझ रहे हैं।
- अफ्रीकी महाद्वीप में बड़े पैमाने पर दुनिया के वर्षावनों के साथ-साथ दुनिया में सबसे तेज़ गति से बढ़ रही जनसंख्या भी विद्यमान है जिसके चलते पशुओं, वन्यजीवन एवं मनुष्यों में संपर्क के कारण संक्रमण के मामले बढ़े हैं।
- इन सबके बावज़ूद अफ्रीकी देश इबोला और अन्य उभरती बीमारियों से निपटने के रास्ते भी सुझा रहे हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार, बीमारियों पर नियंत्रण के लिये अफ्रीकी देश नियम आधारित तरीकों के बजाय जोखिम आधारित तरीके अपना रहे हैं जो उन क्षेत्रों में अधिक कारगर है जहाँ संसाधनों की कमी है।
- इस समस्या के समाधन के तौर पर अफ़्रीकी देशों द्वारा ‘एक स्वास्थ्य पहल’ (One Health Initiative) को अपनाया जा रहा है जिनमें मानव स्वास्थ्य , पशु व पर्यावरण तीनों पर ध्यान दिया जाता है।
निष्कर्ष:
अगर वन्यजीवों के दोहन तथा पारिस्थितिकी तंत्र में समन्वय नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में पशुओं से मनुष्यों को होने वाली बीमारियाँ इसी प्रकार लगातार सामने आती रहेंगी। वैश्विक महामारियाँ मानव जीवन एवं एवं अर्थव्यवस्था दोनों को नष्ट कर रही हैं जैसा कि हमने पिछले कुछ महीनों से COVID-19 महामारी के के संदर्भ में देख रहे हैं। इनका सबसे ज़्यादा असर निर्धन एवं निर्बल समुदायों पर होता हैं अतः हमें भविष्य में महामारियों को रोकने के लिये अपने प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा के लिये विचार करने की और अधिक आवश्यकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
इतालवी मरीन मामला: एक सबक
प्रीलिम्स के लिये:एनरिका लेक्सी मामला, परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, UNCLOS के नियम तथा सामुद्रिक सीमा, UNCLOS-PCA संबंध, सामुद्रिक सीमा, UNCLOS तथा देश का न्याधिकरण, UNCLOS का अनुच्छेद 100, SUA कन्वेंशन मेन्स के लिये:इतालवी मरीन मामला |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (Permanent Court of Arbitration-PCA) ने ‘एनरिका लेक्सी मामला’ (Enrica Lexie Case) मामले में अपना अंतिम निर्णय देते हुए इटली के दो नौसेनिकों पर भारतीय मछुआरों की हत्या का आपराधिक मुकदमा चलाने को लेकर भारत के तर्क को खारिज़ कर दिया है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) ने भारत को इटली के दोनों नौसेनिकों के विरुद्ध सभी प्रकार की आपराधिक कार्यवाहियों को रोकने का आदेश दिया है।
- PCA ने, ‘एनरिका लेक्सी’ नामक तेल टैंकर जहाज़ पर तैनात इटली के दो नौसैनिकों पर दो भारतीय मछुआरों को गोली मार कर हत्या करने के आरोप पर सुनवाई पर करते हुए यह निर्णय दिया है।
PCA का निर्णय:
- PCA ने अपने निर्णय में कहा कि भारत के पास इटली के दोनों नौसेना अधिकारियों पर ‘एनरिका लेक्सी’ मामले में किसी भी प्रकार का आपराधिक मुकदमा चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वे दोनों नौसैनिक एक राष्ट्र की ओर से कार्य कर रहे थे, न कि व्यक्तिगत तौर पर।
- PCA ने माना कि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही ने भारत के नेविगेशन की स्वतंत्रता से संबंधित अधिकार का उल्लंघन किया है, जिसके कारण भारत मुआवज़े का हकदार है, क्योंकि इटली के सैन्य अधिकारियों की कार्यवाही के कारण भारत को जान-माल का नुकसान हुआ है।
‘संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) तथा PCA के बीच संबंध:
- UNCLOS-1982 एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो विश्व के समुद्रों और महासागरों के उपयोग के लिये एक नियामक ढाँचा प्रदान करती है, जिसे 16 नवंबर, 1994 से प्रभावी बनाया गया।
- यह समुद्री संसाधनों और समुद्री पर्यावरण के संरक्षण तथा समान उपयोग को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करता है।
- UNCLOS निम्नलिखित मामलों को भी संबोधित करता है:
- देशों की संप्रभुता से जुड़े मामले;
- विभिन्न सामुद्रिक ज़ोनों में उपयोग के अधिकारों का निर्धारण;
- देशों के नौसैनिक अधिकार;
- UNCLOS का भाग XV, संबंधित देशों के बीच विवादों के समाधान के लिये नियम निर्धारित करता है।
- UNCLOS के अनुच्छेद 287 (1) के अनुसार, संबधित देश ऐसे विवादों को निपटाने के लिये निम्नलिखित में से एक या अधिक साधनों का चयन करने की घोषणा कर सकता है:
- 'समुद्र के कानून के लिये अंतर्राष्ट्रीय अधिकरण' (International Tribunal for the Law of the Sea- ITLOS)- हैम्बर्ग, जर्मनी;
- ‘अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय’ (International Court of Justice-ICJ)- हेग;
- ‘तदर्थ मध्यस्थता’ (UNCLOS के अनुबंध VII के अनुसार);
- मध्यस्थता विवाद निपटान प्रणाली का प्रयोग तब किया जाता है जब विवाद में शामिल देशों द्वारा उपलब्ध विवाद समाधान साधनों के संबंध में कोई वरीयता व्यक्त नहीं की गई है।
- या विवादों की कुछ श्रेणियों के लिये एक 'विशेष मध्यस्थ न्यायाधिकरण' का गठन।
UNCLOS में ‘एनरिका लेक्सी’ विवाद:
- वर्ष 2012 में ‘एनरिका लेक्सी’ घटना के बाद प्रारंभ में दोनों देशों द्वारा घरेलू स्तर पर मामले को निपटाने का प्रयास किया गया।
- इटली द्वारा वर्ष 2015 में ‘इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ द सी’ (International Tribunal for Law of the Sea-ITLOS) के समक्ष याचिका दायर की गई , ITLOS ने वर्ष 2015 में मामले में अपना निर्णय सुनाया।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि ITLOS ने अपने निर्णय में भारत तथा इटली को ‘एनरिका लेक्सी’ मामले के संबंध में घरेलू स्तर पर चल रहे सभी मामलों को निलंबित करने का आदेश दिया था।
- ITLOS के निर्णय के बाद इटली इस मामले को ‘परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन’ (PCA) के समक्ष लेकर गया।
UNCLOS का अनुच्छेद 100:
- यह अनुच्छेद सामुद्रिक पायरेसी के संबंध में देशों पर सहयोग करने का दायित्त्व आरोपित करता है।
- PCA ने इटली के इस तर्क को खारिज कर दिया कि भारत ने इतालवी पोत को अपने क्षेत्राधिकार में ले जाकर नौसैनिकों को गिरफ्तार कर अनुच्छेद- 100 का उल्लंघन किया है। अर्थात मामले को एक पायरेसी की घटना के रूप में नहीं देखा गया है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत में लोगों द्वारा घटना को एक निर्दयी हत्याकांड के रूप में देखा गया था, जबकि इटली द्वारा इसे समुद्री डकैती की घटना के रूप में प्रचारित करने का प्रयास किया गया था।
UNCLOS के नियम तथा सामुद्रिक सीमा:
- UNCLOS के तहत समुद्र के संसाधनों को निम्नलिखित क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है-
आधार रेखा (Baseline)
- यह तट के साथ-साथ तटवर्ती देश द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त निम्न-जल रेखा है।
आंतरिक जल (Internal Waters):
- यह बेसलाइन की भूमि के किनारे पर होता है तथा इसमें खाड़ी और छोटे खंड शामिल हैं।
प्रादेशिक सागर (Territorial Sea):
- यह बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी तक विस्तारित होता होता है।
- प्रादेशिक समुद्र पर तटीय देशों की संप्रभुता और न्यायाधिकार का क्षेत्र है।
- ये अधिकार न केवल समुद्री सतह पर बल्कि समुद्री आधार, हवाई क्षेत्र तक विस्तृत होते हैं।
- लेकिन तटीय देशों के अधिकार प्रादेशिक समुद्र से गुजरने वाले सामुद्रिक मार्गों के मामलों में सीमित होते हैं।
सन्निहित क्षेत्र (Contiguous Zone):
- सन्निहित क्षेत्र का विस्तार बेसलाइन से 24 नॉटिकल मील तक विस्तृत होता है।
- तटीय देशों को अपने क्षेत्र के भीतर राजकोषीय, आव्रजन, स्वच्छता और सीमा शुल्क कानूनों के उल्लंघन को रोकने और दंडित करने का अधिकार होता है।
- इसमें संबंधित देश को अपनी सीमा में न्याधिकारिता का अधिकार होता है। लेकिन यह हवाई और अंतरिक्ष क्षेत्र पर लागू नहीं होता है।
अनन्य आर्थिक क्षेत्र ( Exclusive Economic Zone-EEZ):
- EEZ बेसलाइन से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक फैला होता है। इसमें तटीय देशों को सभी प्राकृतिक संसाधनों की खोज, दोहन, संरक्षण और प्रबंधन का संप्रभु अधिकार प्राप्त होता है।
UNCLOS तथा देश का न्याधिकरण:
- भारतीय नौसेना के अनुसार, जब यह घटना हुई तब इटली का ‘एनरिका लेक्सी’ तेल टैंकर भारत के तट से लगभग 20.5 नॉटिकल माइल (Nautical Miles) दूर था।
- चूंकि यह घटना सन्निहित क्षेत्र ( बेसलाइन से 24 नॉटिकल मील) की सीमा में हुई थी, अत: स्पष्ट था कि घरेलू कानून के तहत अपराधियों की गिरफ्तारी की होती तथा मुकदमा चलाया जाता।
भारत के लिये सीख (Lesson for india):
- मामले की सुनवाई में देरी के कारण प्रारंभ में इतावली नागरिक भारत से बाहर निकलने में सफल रहे । अत: ऐसे मामलों में मुकदमा सीधे केंद्र सरकार के नियंत्रण में चलाना चाहिये और त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करनी चाहिये।
- 'राष्ट्रीय जाँच एजेंसी' (National Investigation Agency- NIA) ने 'सप्रेशन ऑफ अनलॉफुल एक्ट अगेंस्ट सेफ़्टी ऑफ़ मैरीटाइम नेविगेशन एण्ड फिक्स्ड प्लेटफ़ॉर्म ऑन कॉन्टिनेंटल शेल्फ एक्ट’ (Suppression of Unlawful Acts against Safety of Maritime Navigation and Fixed Platforms on Continental Shelf Act)- 2002 को लागू किया। जिससे देशों के मध्य कूटनीतिक रोष पैदा हो गया क्योंकि इसमें मृत्युदंड का प्रावधान शामिल है। अत: इस प्रकार की त्वरित कार्यवाई से बचना चाहिये।
SUA कन्वेंशन:
- ‘कन्वेंशन फॉर द सप्रेशन ऑफ अनलॉफुल एक्ट ऑफ वॉइलेंस अगेंस्ट द सेफ़्टी ऑफ मैरीटाइम नेविगेशन’ (CONVENTION FOR THE SUPPRESSION OF UNLAWFUL ACTS OF VIOLENCE AGAINST THE SAFETY OF MARITIME NAVIGATION) को SUA कन्वेंशन के रूप में भी जाना जाता है।
- इसे 10 मार्च, 1988 को अपनाया गया तथा 1 मार्च 1992 से यह प्रभावी हुआ।
- यह समुद्री नेविगेशन की सुरक्षा को खतरा उत्पन्न करने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने तथा दंडित करने से संबंधित कन्वेंशन है।
निर्णय के निहितार्थ:
- PCA का निर्णय अंतिम है और भारत द्वारा इसे स्वीकार किया गया है। अत: अब दोनों नौसैनिकों को अब भारत में आपराधिक मुकदमे का सामना नहीं करना होगा। अब मामले की सुनवाई इटली में घरेलू कानूनों के तहत की जाएगी।
- विशेषज्ञ का मानना है कि PCA के हालिया निर्णय का प्रभाव आने वाले समय में ऐसे ही किसी अन्य मामले पर देखने को मिल सकता है और अपराधी इसी प्रकार PCA के हालिया निर्णय का सहारा लेकर आसानी से बच सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से संबंधित नए नियम
प्रीलिम्स के लियेअमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों से संबंधित नियम मेन्स के लियेअमेरिकी प्रशासन के हालिया नियम के निहितार्थ और अमेरिका में भारतीय छात्रों से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका ने घोषणा की है कि आगामी समय में यदि अमेरिका के विश्वविद्यालय पूर्ण रूप से ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को अपनाते हैं तो संभवतः अमेरिका में पढाई कर रहे अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका छोड़ना पड़ सकता है।
प्रमुख बिंदु
- US डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (US Department of Homeland Security-DHS) द्वारा घोषित नए नियमों के अनुसार, उन F-1 और M-1 (गैर-शैक्षणिक और व्यावसायिक छात्र) वीज़ा धारकों को अमेरिका में रुकने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जो ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने की योजना बना रहे हैं।
- गौरतलब है कि COVID-19 के कारण अमेरिका के कई विश्वविद्यालय आगामी सेमेस्टर के लिये अपनी सभी कक्षाओं को ऑनलाइन स्थानांतरित करने की योजना बना रहे हैं।
F-1 वीज़ा
- F-1 वीज़ा एक प्रकार का स्टूडेंट वीज़ा है, जो अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज, विश्वविद्यालय, उच्च शैक्षणिक विद्यालय, प्राथमिक विद्यालय अथवा किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान में पूर्णकालिक छात्र के रूप में दाखिला लेने हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश करने की अनुमति देता है।
- F-1 वीज़ा धारकों को पहले शैक्षणिक वर्ष के दौरान कैंपस के बाहर कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाती है, किंतु कुछ शर्तों और प्रतिबंधों के तहत वे कैंपस के अंदर कार्य कर सकते हैं। हालाँकि पहले शैक्षणिक वर्ष के बाद छात्र कैंपस के बाहर भी कार्य कर सकते हैं।
M-1 वीज़ा
- M-1 भी एक प्रकार का स्टूडेंट वीज़ा है, जो मुख्य तौर पर गैर-शैक्षणिक या पेशेवर अध्ययन के लिये जारी किया जाता है। तकनीकी और पेशेवर कार्यक्रमों के लिये M -1 वीज़ा धारकों को अपने अध्ययन के दौरान कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाती है।
भारतीय छात्रों पर इस निर्णय का प्रभाव
- आँकड़ों के अनुसार, वर्तमान समय में अमेरिका में तकरीबन 2 लाख भारतीय छात्र हैं, इस लिहाज़ से भारत अमेरिका में विदेशी छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, जबकि चीन पहले स्थान पर है।
- अमेरिकी प्रशासन के इस निर्णय का स्पष्ट प्रभाव उन भारतीय छात्रों पर देखने को मिलेगा, जिन्होंने अमेरिका के किसी ऐसे विद्यालय अथवा विश्विद्यालय में दाखिला लिया है, जो आगामी सेमेस्टर (सितंबर-दिसंबर) में पूरी तरह से ऑनलाइन शिक्षा अपनाने पर विचार कर रहे हैं।
- ऐसे छात्रों को अमेरिका द्वारा वापस भारत भेजा जा सकता है।
- वहीं अमेरिका में महामारी की शुरुआत के बाद महामारी के बाद मज़बूरन भारत लौटे छात्रों को भी वापस अमेरिका जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- ध्यातव्य है कि अमेरिकी प्रशासन का यही नियम आगामी सेमेस्टर में अमेरिका में पढ़ने पर विचार कर रहे नए छात्रों पर भी लागू होता है।
कुछ छात्रों के लिये नियम में अपवाद
- अमेरिका के इस नियम से उन छात्रों को छूट प्रदान की गई है, जिनके विद्यालय अथवा विश्वविद्यालय ने ‘व्यक्तिगत कक्षाओं’ (In-Person Classes) की घोषणा की है।
- ऐसे विदेशी छात्रों को अमेरिका में रुकने की अनुमति दे जाएगी और साथ ही उन छात्रों को भी वापस अमेरिका आने की अनुमति दी जाएगी, जो महामारी के कारण वापस अपने देश चले गए थे।
- हालाँकि विश्वविद्यालय या कॉलेज को अमेरिकी प्रशासन के समक्ष यह प्रमाणित करना होगा कि इस प्रकार का छात्र पूरी तरह से ऑनलाइन कक्षाएँ नहीं ले रहा है।
- साथ ही विश्वविद्यालय या कॉलेज को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि छात्र अपने डिग्री कार्यक्रम को पूरा करने के लिये आवश्यक न्यूनतम कक्षाएँ ले रहा है।
इस निर्णय के कारण
- नियमों के अनुसार, अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को अपनी अधिकांश शिक्षा ‘व्यक्तिगत कक्षाओं’ के माध्यम से ही पूरी करनी होती हैं। हालाँकि महामारी और उसके बाद लागू किये गए लॉकडाउन को मद्देनज़र रखते हुए अमेरिकी प्रशासन ने विश्वविद्यालयों को अस्थायी तौर पर ऑनलाइन कक्षाएँ आयोजित कराने की छूट प्रदान की थी।
- किंतु यह छूट केवल स्प्रिंग और समर सेमेस्टर (Spring and Summer Semesters) के लिये प्रदान की गई थी।
- इस संबंध में जारी अधिसूचना के अनुसार, ‘अमेरिका में आगामी सेमेस्टर में कई विश्वविद्यालय और कॉलेज अपनी गतिविधियों को पुनः संचालित करने की योजना बना रहे हैं, जिसके कारण इन संस्थाओं में सामाजिक दूरी और अन्य आवश्यक नियमों का पालन सुनिश्चित करना अनिवार्य हो गया।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों पर इस नियम का प्रभाव
- उल्लेखनीय है कि अधिकांश अमेरिकी विश्विद्यालयों ने पहले ही अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के दाखिले से संबंधित प्रस्ताव जारी कर दिया है, ऐसे में अमेरिकी प्रशासन का यह निर्णय अमेरिका के भावी अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को आगामी सेमेस्टर में प्रवेश लेने हेतु हतोत्साहित करेगा।
- वहीं इस नियम से पूर्व ही अमेरिका में दाखिला ले चुके छात्र सेमेस्टर छोड़ने पर भी विचार कर सकते हैं, जिससे अमेरिका में पढ़ रहे अंतर्राष्ट्रीय छात्रों की संख्या में कमी होगी।
- यदि अमेरिका में दाखिला ले चुके छात्र सेमेस्टर छोड़ने के विकल्प का चुनाव करते हैं तो इससे अमेरिकी विश्वविद्यालयों के राजस्व में कमी देखने को मिल सकती है, खासकर उन विश्वविद्यालयों में जिन्होंने आगामी सेमेस्टर के ऑनलाइन होने की घोषणा कर दी है।
स्रोत: द हिंद
हॉन्गकॉन्ग विधायिका द्वारा राष्ट्रगान विधेयक पारित
प्रीलिम्स के लिये:उइगर मुसलमान, शिनजियांग (Xinjiang) क्षेत्र एवं हॉन्गकॉन्ग की अवस्थिति मेन्स के लिये:हॉन्गकॉन्ग पर चीन की अधिनायकवादी नीति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विरोध प्रदर्शन के बीच हॉन्गकॉन्ग विधायिका ने एक राष्ट्रगान विधेयक (National Anthem Bill) पारित किया जो चीन के राष्ट्रगान का अनादर करने वालों को अपराधी घोषित करेगा।
प्रमुख बिंदु:
- इस कदम को आलोचकों द्वारा हॉन्गकॉन्ग पर बीजिंग (चीन) की मज़बूत पकड़ के नवीनतम संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
- इस विधेयक को 41:1 के बहुमत से पारित किया गया।
- यह विधेयक उन लोगों को सजा (3 वर्ष तक की जेल या $ 6450 तक का जुर्माना) देने की अनुमति देता है जो चीन के राष्ट्रगान का अपमान करते हैं।
- इस बिल में कहा गया है कि ‘सभी व्यक्तियों एवं संगठनों’ को चीनी राष्ट्रगान का सम्मान एवं इसकी गरिमा को बनाये रखना चाहिये और इसे "उचित अवसरों" पर बजाना एवं गाना चाहिये।
हॉन्गकॉन्ग में बिल के विरोध में प्रदर्शन:
- पहली बार हॉन्गकॉन्ग पुलिस ने यहाँ के विक्टोरिया पार्क में आमतौर पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम को चिन्हित करते हुए एक वार्षिक जुलूस पर प्रतिबंध लगा दिया।
- राष्ट्रगान विधेयक आने से एक सप्ताह पहले चीन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर पहले से चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान अलगाववाद, तोड़-फोड़ और विदेशी हस्तक्षेप से निपटने का संकेत मिलने के बाद हॉन्गकॉन्ग में तनाव बढ़ गया है।
वैश्विक देशों द्वारा आलोचना:
- चीन के इस कदम की संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों और कुछ व्यावसायिक लॉबी ने भी निंदा की क्योंकि यह नियम वैश्विक वित्तीय हब के रूप में प्रसिद्ध हॉन्गकॉन्ग में स्वतंत्रता को नष्ट कर देगा।
चीन समर्थित हॉन्गकॉन्ग सरकार का मत:
- हॉन्गकॉन्ग में चीनी अधिकारियों एवं चीन समर्थित हॉन्गकॉन्ग सरकार का कहना है कि ये कानून (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एवं राष्ट्रगान विधेयक) हॉन्गकॉन्ग की उच्च स्तर की स्वायत्तता के लिये कोई खतरा उत्पन्न नहीं करेंगे और आने वाले समय में नए सुरक्षा कानून पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- राजनीतिक तटस्थता की अपनी सामान्य नीति को तोड़ते हुए HSBC और स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक (Standard Chartered Bank) ने हॉन्गकॉन्ग में नए कानून को अपना समर्थन दिया।
संयुक्त राज्य अमेरिका का हॉन्गकॉन्ग को लेकर दृष्टिकोण:
- गौरतलब है कि आने वाले कुछ महीनों में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिये चुनाव होना है परिणामतः ‘लोकतांत्रिक मूल्यों एवं मानवाधिकार’ के परिप्रेक्ष्य में हॉन्गकॉन्ग में हो रहा विरोध प्रदर्शन अमेरिका के चुनावी समय में एक अहम मुद्दा बन गया है।
- राष्ट्रपति पद के दावेदार जो बिडेन (Joe Biden) ने हॉन्गकॉन्ग में चीन के दबदबे को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आलोचना करते हुए कहा कि अगर वे आगामी चुनाव जीतते हैं तो मानवाधिकारों को लेकर चीन पर सख्त रुख अपनाएंगे।
- उन्होंने कहा कि बीजिंग का नये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून गुप्त एवं व्यापक रूप से लागू किया गया है। जो चीन के बाकी हिस्सों के अलावा हॉन्गकॉन्ग को पहले से ही मिलने वाली स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता के लिये एक झटका है।
- शिनजियांग (Xinjiang) क्षेत्र में जबरन श्रम से होने वाले उत्पादों के आयात को रोकने के लिये मजबूत कदम उठाए जाने चाहिये।
- गौरतलब है कि शिनजियांग चीन का वह क्षेत्र है जहाँ संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यहाँ के शिविरों में 10 लाख से अधिक उइगर मुसलमानों को हिरासत में रखा गया है।
शिनजियांग (Xinjiang) क्षेत्र:
- शिनजियांग को आधिकारिक तौर पर शिनजियांग उइगर स्वायत्त क्षेत्र (Xinjiang Uyghur Autonomous Region) कहा जाता है।
- यह चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित चीन का एक स्वायत्त क्षेत्र है।
- इसकी सीमा मंगोलिया, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताज़िकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमाओं से मिलती है।
- काराकोरम, कुनलुन और तियान-शान पर्वत शिनजियांग क्षेत्र की सीमाओं के साथ-साथ इसके दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्रों में भी व्याप्त हैं।
- संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधि सभा की अध्यक्ष और चीन में लंबे समय तक मानवाधिकारों के लिये कार्य करने वाली वकील नैन्सी पेलोसी (Nancy Pelosi) ने राष्ट्रपति ट्रंप से आग्रह किया कि वर्ष 2019 के कानून के तहत और अधिक दबाव बनाने की आवश्यकता है जो हॉन्गकॉन्ग की स्वतंत्रता पर उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़े प्रतिबंधों की अनुमति देता है।
- उन्होंने कहा कि यदि हम वाणिज्यिक हितों के कारण चीन में मानवाधिकारों पर बात करने से इनकार करते हैं तो हम दुनिया के किसी भी स्थान पर मानवाधिकारों के लिये बोलने का सारा नैतिक अधिकार खो देते हैं।
- उल्लेखनीय है कि अमेरिकी सीनेट ने हाल ही में एक बिल पारित किया था जिसमें हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता के उल्लंघन पर ‘अनिवार्य प्रतिबंध’ का प्रावधान किया गया है।
- इस बिल के दायरे में चीनी अधिकारियों से सौदा करने वाले बैंक एवं हॉन्गकॉन्ग पुलिस को भी शामिल किया गया है।
- गौरतलब है कि यह राष्ट्रगान विधेयक ऐसे समय आया है जब अमेरिका और चीन के बीच ‘व्यापार तथा COVID-19 की उत्पत्ति’ जैसे मुद्दों पर तनाव की स्थिति बनी हुई है।
नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून को लेकर चीन का मत:
- हॉन्गकॉन्ग को लेकर चीन का नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून 7 जुलाई, 2020 से प्रभावी हो चुका है।
- वहीँ चीन के इस कदम को लेकर हॉन्गकॉन्ग में लोकतंत्र समर्थकों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए हॉन्गकॉन्ग एवं चीनी अधिकारियों का कहना है कि नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून हॉन्गकॉन्ग सरकार और चीन विरोधी प्रदर्शनों की खाई को उजागर करेगा।
नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में प्रमुख प्रावधान:
- आतंकी गतिविधियों एवं विदेशी सुरक्षा बलों के साथ मिलीभगत करने पर आजीवन कारावास की सजा मिलेगी।
- चीनी सरकार के पास हॉन्गकॉन्ग में राष्ट्रीय सुरक्षा मामलों में दखलंदाज़ी करने का अधिकार रहेगा।
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को हॉन्गकॉन्ग का कोई भी चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
- अधिकार एवं स्वतंत्रता जिसमें बोलने की स्वतंत्रता, प्रेस की आज़ादी शामिल हैं, वे नए कानून के अनुसार संरक्षित होंगे।
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने वाली कंपनियों या समूहों पर जुर्माना लगाया जाएगा और उनका संचालन निलंबित किया जा सकता है।
- कुछ विशेष परिवहन वाहनों एवं उपकरणों को नुकसान पहुँचाना आतंकवादी कृत्य माना जाएगा।
- स्थानीय अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने वाले व्यक्तियों की जाँच कर सकते हैं और उनका फोन टेप कर सकते हैं।
- यह कानून हॉन्गकॉन्ग के स्थायी एवं गैर-स्थायी निवासियों पर लागू होगा।
- इस कानून के तहत अपराधों से संबंधित संपत्ति को जब्त किया जा सकता है।
आगे की राह:
- गौरतलब है कि चीन का यह नया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एवं राष्ट्रगान विधेयक चीनी सरकार को लक्षित करने वाली गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाएगा और साथ ही हॉन्गकॉन्ग के मामलों में बाहरी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित अथवा दंडित करेगा।
- विश्लेषकों का मानना है कि चीन द्वारा उठाए गए हालिया कदम हॉन्गकॉन्ग के 'एक देश, दो व्यवस्था' के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं जो हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: द हिंदू
वर्चुअल क्लाइमेट एक्शन मीटिंग
प्रीलिम्स के लिये:पेरिस समझौता, संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने हेतु इस दिशा में भारत के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के खिलाफ एकजुट कार्रवाई करने के लिये विभिन्न देशों के पर्यावरण मंत्रियों के मध्य वर्चुअल क्लाइमेट एक्शन मीटिंग (Virtual Climate Action Meeting) के चौथे संस्करण का आयोजन किया गया।
प्रमुख बिंदु:
- वर्चुअल क्लाइमेट एक्शन मीटिंग का उद्देश्य जलवायु परिर्वतन से निपटने की दिशा में सामूहिक प्रयासों की प्रगति को सुनिश्चित करना था।
- बैठक में शामिल सभी पक्षों द्वारा ‘पेरिस समझौते’ (Paris Agreement) के अनुरूप आर्थिक सुधार योजनाओं को कार्यान्वित करने के तौर तरीकों तथा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ समुचित कार्रवाई सुनिश्चित करने पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
- इस बैठक में ‘संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के तहत पेरिस समझौते को पूरी तरह से लागू करने पर चर्चा को आगे बढ़ाया गया तथा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक स्तर पर राजनीतिक प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
- यूरोपीय संघ, चीन तथा कनाड़ा द्वारा इस बैठक की सह अध्यक्षता की गई।
- भारत द्वारा विकसित देशों से अनुरोध किया गया कि वे UNFCCC तथा पेरिस समझौते के तहत की गई प्रतिबद्धताओं के तहत विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिये वित्तीय एवं तकनीकी सहायता उपलब्ध कराए।
- भारत द्वारा इस और भी ध्यान आकर्षित किया गया कि विकसित देशों द्वारा वर्ष 2020 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की मदद का वादा अभी तक पूरा नहीं किया गया है।
- बैठक में लगभग 30 देशों के मंत्रियों एवं प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- कोरोना महामारी को देखते हुए पहली बार यह बैठक र्चुअल तरीके से आयोजित की गई।
भारत का प्रयास:
- बैठक में भारत द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये अब तक की गई अपनी महत्त्वपूर्ण कार्यवाहियों के बारे में जानकारी साझा की गई है तथा भविष्य में भी इस दिशा में प्रयास जारी रखने की बात कही गई ।
- भारत ने वर्ष 2005 और वर्ष 2014 के बीच अपने सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में उत्सर्जन गहनता में 21% की कमी की है।
- पिछले 5 वर्षों में भारत की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता में 226% की वृद्धि हुई है जो वर्तमान में 87 गीगावॉट से अधिक है।
- बिजली उत्पादन की स्थापित क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी मार्च 2015 के 30.5% से बढ़कर मई 2020 में 37.7% हो गई है।
- वर्तमान सरकार द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता लक्ष्य 450 गीगावॉट तक बढ़ाने की आकांक्षा व्यक्त की गई है।
- सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में 8 करोड़ एलपीजी कनेक्शन वितरित किये गए हैं जो ग्रामीण लोगों को खाना पकाने हेतु स्वच्छ ईंधन तथा स्वस्थ वातावरण प्रदान करते हैं।
- देश का कुल वन और वृक्ष आच्छादन क्षेत्र 8,07,276 वर्ग किलोमीटर है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.56% है।
- उजाला योजना के तहत 36 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब वितरित किये गए हैं, जिसके कारण प्रति वर्ष लगभग 47 अरब यूनिट बिजली की बचत हुई है तथा प्रति वर्ष कार्बन उत्सर्जन में 38 मिलियन टन की कमी आई है।
- बैठक में स्वच्छ ईंधन की दिशा में भारत के प्रयासों का ज़िक्र करते हुए बताया गया कि भारत द्वारा 1 अप्रैल, 2020 तक भारत स्टेज-VI ( Bharat Stage-VI) उत्सर्जन मानकों को पूरे देश में लागू कर लिया गया है जबकि इसके लिये वर्ष 2024 तक की समय सीमा निर्धारित की गई थी।
- देश के हरित पहलों का जिक्र करते हुए कहा गया कि इसके तहत देश में कोयला उपकर लगाया गया है।
- इसमें वस्तु एवं सेवा कर को समाहित किया गया है।
- स्मार्ट सिटी मिशन के तहत ‘क्लाइमेट स्मार्ट सिटीज़ असेसमेंट फ्रेमवर्क’ 2019 शुरू किया गया है।
- यह शहरों तथा शहरी क्षेत्रों के लिये शमन एवं अनुकूलन उपायों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये एक स्पष्ट रोडमैप प्रदान करता है।
स्रोत: पीआईबी
भारत और CAATSA
प्रीलिम्स के लियेCAATSA, भारत-रूस रक्षा खरीद समझौते, मिग 29, SU-30 MKI मेन्स के लियेभारत के लिये CAATSA के निहितार्थ, भारत-रूस रक्षा खरीद समझौतों का महत्त्व |
चर्चा में क्यों
बीते माह वास्तविक नियंत्रण रेखा (Line of Actual Control-LAC) पर भारत और चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प के बाद भू-राजनीतिक वास्तविकताओं में आए बदलाव के बावजूद रूसी हथियारों की खरीद से संबंधित प्रतिबंधों पर अमेरिका के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है।
प्रमुख बिंदु
- इस संबंध में अमेरिका के विदेश विभाग ने कहा कि ‘अमेरिका अपने सभी सहयोगियों और साझेदारों से आग्रह करता है कि वे रूस से किसी भी प्रकार के सैन्य लेन-देन को तत्काल रोक दें, अन्यथा उन्हें अमेरिका द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) का सामना करना पड़ सकता है।
भारत-रूस सैन्य संबंध के हालिया घटनाक्रम
- गौरतलब है कि बीते सप्ताह ‘रक्षा अधिग्रहण परिषद’ (Defence Acquisition Council- DAC) ने रूस से 21 मिग-29 फाइटर जेट विमानों की खरीद और 59 मिग जेट विमानों को अपग्रेड करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी।
- भारत के मौजूदा 59 मिग-29 विमानों को अपग्रेड करने का कार्य भी रूस द्वारा ही किया जाएगा। अनुमान के अनुसार, इस सौदे की कुल लागत 7,418 करोड़ रुपए है।
- वहीं इससे पूर्व रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मास्को (Moscow) की यात्रा के दौरान रूस के साथ रक्षा सहयोग पर चर्चा की थी।
- ध्यातव्य है कि रक्षा सहयोग सदैव ही भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ रहा है।
- मौजूदा समय में भारत और रूस का सैन्य तकनीकी सहयोग एक खरीदार और विक्रेता के फ्रेमवर्क से आगे बढ़ कर एक संयुक्त अनुसंधान, विकास और उन्नत रक्षा प्रौद्योगिकियों और प्रणालियों के उत्पादन के फ्रेमवर्क तक पहुँच गया है।
क्या है CAATSA?
- अमेरिका द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों के विरोध हेतु बनाए गए दंडात्मक अधिनियम CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) को वर्ष 2018 में लागू किया गया था, इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तर कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है।
- हालाँकि विशेषज्ञ मानते हैं कि यह अधिनियम प्राथमिक रूप से रुसी हितों जैसे कि तेल और गैस उद्योग, रक्षा क्षेत्र और वित्तीय संस्थानों पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित है।
- यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों से संबंधित महत्त्वपूर्ण लेन-देनों में शामिल व्यक्तियों पर अधिनियम में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच प्रतिबंध लागू करने का अधिकार देता है।
CAATSA का प्रयोग?
- गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अब तक कुल 2 बार CAATSA प्रतिबंधों का प्रयोग किया है, और संयोगवश दोनों बार इसका प्रयोग उन देशों के विरुद्ध किया गया था, जिन्होंने अमेरिका के साथ रक्षा क्षेत्र से संबंधित कोई समझौता किया था।
- सितंबर, 2018 में अमेरिकी विदेश विभाग और ट्रेज़री विभाग ने एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और सुखोई एस-35 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये चीन के उपकरण विकास विभाग (Equipment Development Department-EDD) पर प्रतिबंधों की घोषणा की थी।
- इन प्रतिबंधों को तब और बढ़ा दिया गया जब चीन की सेना को रूस से रक्षा प्रणाली की डिलीवरी प्राप्त हुई।
- जुलाई 2019 में भी अमेरिका ने तुर्की को S-400 की पहली डिलीवरी के बाद F-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से निष्कासित कर दिया था और साथ ही यह भी कहा था कि प्रतिबंध तब तक विचाराधीन हैं जब तक कि तुर्की रूस के साथ अपने सभी समझौते को समाप्त नहीं कर देता।
भारत के लिये CAATSA के निहितार्थ
- गौरतलब है कि अमेरिका ने जब से यह कानून अधिनियमित किया है, तभी से भारत-रूस रक्षा संबंधों पर इसके संभावित प्रभावों का मुद्दा काफी चर्चा में रहा है, विशेष रूप से S-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद के संदर्भ में।
- इसका मुख्य कारण यह है कि CAATSA को अधिनियमित करने का उद्देश्य ही रूस के रक्षा क्षेत्र के साथ व्यापारिक लेन-देन में संलग्न संगठनों और व्यक्ति विशिष्ट पर प्रतिबंध लागू करके रूस को दंडित करना था।
- CAATSA की धारा 235 में कुल 12 प्रकार के प्रतिबंधों को सूचीबद्ध किया गया है, जानकारों का मानना है कि इनमें से कुल 10 प्रतिबंध ऐसे हैं, जिनका रूस या अमेरिका के साथ भारत के मौजूदा संबंधों पर बहुत कम अथवा कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- इस प्रकार ऐसे केवल 2 ही प्रतिबंध हैं, जिनका रूस या अमेरिका के साथ भारत के मौजूदा संबंधों पर प्रभाव पड़ेगा।
- इनमें से पहला प्रतिबंध बैंकिंग लेन-देन के निषेध से संबंधित है, यदि भारत पर लागू किया जाता है तो भारत को अमेरिकी डॉलर के माध्यम से भुगतान करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
- वहीं दूसरा प्रतिबंध निर्यात से संबंधित है, और इसका अमेरिका तथा भारत के संबंधों पर काफी गहरा प्रभाव हो सकता है। इस प्रतिबंध के माध्यम से अमेरिका स्वयं द्वारा नियंत्रित किसी भी वस्तु के लिये लाइसेंस प्रदान करने और उसके निर्यात को स्वीकार करने से मना कर सकता है।
CAATSA से बचाव का विकल्प
- इस अधिनियम में एक बचाव खंड दिया गया है जिसके अनुसार “यदि अमेरिकी राष्ट्रपति चाहें तो वे CAATSA को रद्द कर प्रतिबंधों से मुक्त कर सकते हैं।”
- अगस्त, 2018 में अमेरिकी काॅॅन्ग्रेस ने इस खंड में संशोधन करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति के लिये यह प्रमाणित करना आवश्यक कर दिया था कि ‘प्रतिबंधित देश अथवा संगठन अमेरिकी सरकार के साथ अन्य मामलों पर सहयोग कर रहा है जो अमेरिका के रणनीतिक राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 08 जुलाई, 2020
WHO से अलग होगा अमेरिका
अमेरिकी प्रशासन ने औपचारिक रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से अपनी सदस्यता वापस लेने के लिये संयुक्त राष्ट्र को अधिसूचित किया है, हालाँकि WHO से अमेरिकी प्रशासन की वापसी अगले वर्ष तक प्रभावी नहीं होगी, जिसका अर्थ है कि परिस्थितियों में बदलाव होने पर इसे रद्द किया जा सकता है। अमेरिका द्वारा इस संबंध में औपचारिक सूचना संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस (Antonio Guterres) को भेजी गई है और यह 06 जुलाई 2021 से प्रभावी होगी। गौरतलब है कि बीते दिनों कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी से निपटने में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) की भूमिका पर प्रश्नचिह्न लगाने के पश्चात् अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने WHO को दी जाने वाली फंडिंग (Funding) पर रोक लगाने की घोषणा की थी। अमेरिकी राष्ट्रपति के मुताबिक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) अपने दायित्त्वों का निर्वाह करने में विफल रहा है और संगठन ने वायरस के बारे में चीन के ‘दुष्प्रचार’ को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण संभवतः वायरस ने और अधिक गंभीर रूप धारण कर लिया है। अमेरिका का मत है कि WHO यथासमय और पारदर्शी तरीके से वायरस से संबंधित सूचना एकत्र करने और उसे साझा करने में पूरी तरह से विफल रहा है। ध्यातव्य है कि अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का सबसे बड़ा दानकर्त्ता है और प्रतिवर्ष उसे 400 मिलियन डॉलर से भी अधिक राशि प्रदान करता है। अमेरिका का यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी का सामना कर रहा है, और अमेरिका इससे सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। ऐसे परिदृश्य में अमेरिका का यह निर्णय महामारी से लड़ने में वैश्विक प्रयासों को कमज़ोर करेगा।
डॉ. बिष्णु प्रसाद नंदा
डॉ. बिष्णु प्रसाद नंदा ने रेलवे बोर्ड में महानिदेशक (रेलवे स्वास्थ्य सेवा) के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। वह रेलवे बोर्ड में स्वास्थ्य विभाग के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए हैं। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व डॉ. बी. पी. नंदा दक्षिणी रेलवे के प्रधान मुख्य चिकित्सा निदेशक के रूप में कार्यरत थे। डॉ. बी. पी. नंदा (B.P. Nanda) 14 नवंबर, 1984 को दक्षिण पूर्व रेलवे के खड़गपुर मंडल अस्पताल में भारतीय रेलवे चिकित्सा सेवा में शामिल हुए। इसके पश्चात् डॉ. नंदा को नागपुर मंडल के अंतर्गत मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा स्वास्थ्य इकाई में सहायक संभागीय चिकित्सा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें रांची के हटिया रेलवे अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्होंने तकरीबन 7 वर्ष तक कार्य किया। इसके बाद उन्हें भुवनेश्वर के मानचेस्वर रेलवे अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्हें वर्ष 2018 में दक्षिण रेलवे के प्रधान मुख्य चिकित्सा निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया था, गौरतलब है कि दक्षिणी रेलवे में कुल छह संभागीय अस्पताल शामिल हैं। रेलवे बोर्ड भारतीय रेलवे का सर्वोच्च निकाय है जो रेलवे मंत्रालय के माध्यम से संसद को रिपोर्ट करता है। ज्ञात हो कि रेलवे बोर्ड का गठन वर्ष 1905 में रेल मंत्रालय की सहायता हेतु प्रमुख प्रशासन एवं कार्यकारी निकाय के रूप में किया गया था। वर्तमान में वी. के यादव रेलवे बोर्ड के रूप में कार्यरत है।
ओफेक-16
हाल ही में इज़राइल ने एक नया उपग्रह लॉन्च किया, जो कि उसे अपने सैन्य उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये उच्च गुणवत्ता वाले निगरानी डेटा प्रदान करेगा। गौरतलब है कि इज़राइल बीते कई वर्षों से अपनी सेना की उन्नति के लिये कार्य कर रहा है और ईरान समेत उन विभिन्न दुश्मन देशों पर अपनी निगरानी बढ़ा रहा है, जिनकी परमाणु क्षमता इज़राइल के लिये एक बड़ा खतरा पैदा कर सकती है। ओफेक-16 (Ofek 16) नामक यह निगरानी उपग्रह इज़राइल के ‘शेविट’ (Shavit ) रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। गौरतलब है कि राज्य के स्वामित्व वाली इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज़ (Israel Aerospace Industries) कंपनी इस परियोजना के लिये मुख्य कांट्रेक्टर थी और इस उपग्रह का पेलोड (Payload) इज़राइल की ही एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी एलबिट सिस्टम (Elbit Systems) द्वारा विकसित किया गया था। इज़राइल भूमध्य सागर के पूर्वी छोर पर स्थित मध्य-पूर्व (Middle East) का एक देश है।
अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण विधेयक
पूर्व IAS अधिकारी इंजेती श्रीनिवास (Injeti Srinivas) को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (International Financial Services Centers Authority- IFSCA) का चेयरमैन नियुक्त किया गया है। इंजेती श्रीनिवास को तीन वर्ष के लिये इस पद पर नियुक्त किया गया है। इंजेती श्रीनिवास ओडिशा कैडर के 1983 बैच के IAS अधिकारी हैं और इससे पूर्व वे कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय मे अपनी सेवा दे चुके हैं, वे कॉर्पोरेट अफेयर्स सेक्रेटर (Corporate Affairs Secretary) के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। गौरतलब है कि अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) का निर्माण इसी वर्ष अप्रैल माह में किया गया था। इसका मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (IFSCs) में वित्तीय उत्पादों, वित्तीय सेवाओं और वित्तीय संस्थानों को विनियमित करना है। इस प्राधिकरण में केंद्र द्वारा नियुक्त कुल नौ सदस्य होते हैं, जिनका कार्यकाल तीन वर्ष का होता है और जिसके बाद इनकी दोबारा नियुक्ति की जा सकती है।