डेली न्यूज़ (08 Jan, 2021)



मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन हेतु परामर्श

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अपनी 60वीं बैठक में 'राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड' (National Board of Wildlife- NBWL) की स्थायी समिति ने देश में मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict- HWC) के प्रबंधन हेतु परामर्श को मंज़ूरी दे दी है।

  • बैठक में केंद्र प्रयोजित वन्यजीव आवास एकीकृत विकास योजना में मध्यम आकार की जंगली बिल्ली कैराकल (अति संकटग्रस्त जीवों की श्रेणी में शामिल) को शामिल करने हेतु स्वीकृति दी गई है, जिसके तहत इस मध्यम आकार की जंगली बिल्ली (गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों) के संरक्षण हेतु वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

प्रमुख बिंदु: 

परामर्श:

  • सशक्त ग्राम पंचायत: परामर्श में वन्‍यजीव सुरक्षा अधिनियम, 1972 के अनुसार, संकटग्रस्त वन्‍यजीवों के संरक्षण हेतु ग्राम पंचायतों को मज़बूत बनाने की परिकल्पना की गई है।
  • बीमा राहत: मानव और वन्यजीव संघर्ष के कारण फसलों का नुकसान होने पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojna) के तहत क्षतिपूर्ति का प्रावधान शामिल है। 
  • पशु चारा: इसके तहत वन क्षेत्रों के भीतर चारे और पानी के स्रोतों को बढ़ाने जैसे कुछ महत्वपूर्ण कदम शामिल हैं।
  • अग्रणीय उपाय: परामर्श में स्थानीय/राज्य स्तर पर अंतर-विभागीय समितियों के निर्धारण, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को अपनाने, जंगली पशुओं से बचाव हेतु अवरोधों/घेराबंदी का निर्माण, 24X7 आधार पर संचालित निःशुल्क हॉटलाइन नंबरों के साथ समर्पित क्षेत्रीय नियंत्रण कक्ष, हॉटस्पॉट की पहचान और पशुओं के लिये उन्नत स्टाल-फेड फार्म (Stall-Fed Farm)  आदि हेतु विशेष योजनाएँ बनाने तथा उनके कार्यान्वयन की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
  • त्वरित राहत: संघर्ष की स्थिति में पीड़ित परिवार को अंतरिम राहत के रूप में अनुग्रह राशि के एक हिस्से का भुगतान 24 घंटे की भीतर किया जाए। 

कैराकल बिल्ली के बारे में:

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  • कैराकल जंगली बिल्ली (कैराकल कैराकल ) भारत में पाई जाने वाली बिल्ली की एक दुर्लभ प्रजाति है। यह पतली एवं मध्यम आकार की बिल्ली है जिसके लंबे एवं शक्तिशाली पैर और काले गुच्छेदार कान होते हैं।
    • इस बिल्ली की प्रमुख विशेषताओं में इसके काले गुच्छेदार कान (Black Tufted Ears) शामिल हैं।
    • यह बिल्ली स्वभाव में शर्मीली, निशाचर है और जंगल में मुश्किल से ही देखी जाती है।
  • निवास स्थान: भारत में इन बिल्लियों की उपस्थिति केवल तीन राज्यों में बताई गई है, ये राज्य हैं- मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान।
    • मध्य प्रदेश में इसे स्थानीय रूप से शिया-गोश (Shea-gosh) या सियाह-गश (siyah-gush) कहा जाता है।
    • गुजरात में कैराकल को स्थानीय रूप से हॉर्नट्रो (Hornotro) कहा जाता है जिसका अर्थ है ब्लैकबक का हत्यारा।
    • राजस्थान में इसे जंगली बिलाव (Junglee Bilao) या जंगली (Wildcat) के नाम से जाना जाता है।
  • खतरा: कैराकल को ज़्यादातर पशुधन की सुरक्षा हेतु मारा जाता है लेकिन विश्व के कुछ क्षेत्रों में इसके मांस के लिये भी इसका शिकार किया जाता है।
  • संरक्षण स्थिति:
    • IUCN रेड लिस्ट: कम चिंतनीय 
    • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची- I
    • CITES: परिशिष्ट- I

मानव-वन्यजीव संघर्ष

  • यह जंगली जानवरों और मनुष्यों के बीच परस्पर क्रिया (Interaction) को संदर्भित करता है जिसके कारण लोगों, जानवरों, संसाधनों तथा आवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • कारण:
    • शहरीकरण: आधुनिक समय में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने वन भूमि को गैर-वन भूमि क्षेत्र में तब्दील कर दिया है, परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवास क्षेत्र में कमी आ रही है।
    • परिवहन नेटवर्क: वन परिधि या क्षेत्रों के मध्य सड़क और रेल नेटवर्क के विस्तार के कारण प्रायः जानवर सड़कों या रेलवे पटरियों पर आ जाते हैं और उनकी दुर्घटनाओं में मौत हो जाती है या वे घायल हो जाते हैं।
    • जनसंख्या: बढ़ती आबादी के कारण संरक्षित क्षेत्रों की परिधि के निकट मानव बस्तियों का निर्माण और खेती, भोजन, चारे आदि के संग्रह के लिये लोगों द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण किये जाने से जंगलों में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
  • पहल/विकास:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने हाथियों के गमन मार्ग का अधिकार सुनिश्चित करने के लिये नीलगिरि के हाथी कॉरिडोर में रिसॉर्ट्स (Resorts) को बंद करने का आदेश दिया है। माना जाता है कि "कीस्टोन प्रजातियों" की तरह ही राज्य का कर्तव्य हाथियों की रक्षा करना भी है।
    • ओडिशा सरकार ने विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के भीतर जंगली हाथियों के लिये खाद्य भंडार को समृद्ध करने हेतु उनके भोजन के लिये सीड बॉल्स को डालना शुरू किया गया है।
    • उत्तराखंड सरकार ने मानव-पशु संघर्ष को कम करने, जंगली जानवरों को आवासीय क्षेत्रों में प्रवेश करने से रोकने और जंगलों से सटे क्षेत्रों में कृषि फसलों तथा पशुधन की रक्षा के लिये पौधों की विभिन्न प्रजातियों को विकसित करके जैव-बाड़ लगाने का काम किया।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में ऐसी घटनाओं के दौरान बेहतर समन्वय और राहत सुनिश्चित करने हेतु राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund) में सूचीबद्ध आपदाओं के तहत मानव-पशु संघर्ष को शामिल करने हेतु सैद्धांतिक रूप से मंज़ूरी दे दी है।
    • भारत के पश्चिमी घाट में मानव-हाथी मुठभेड़ों को रोकने हेतु प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में एक नई संरक्षण पहल टेक्सटिंग (Texting) का उपयोग किया गया है। आसपास के निवासियों को हाथी की गतिविधियों के बारे में सूचित करने के लिये हाथी ट्रैकिंग कॉलर को स्वचालित SMS चिप के साथ जोड़ा गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.


भारतीय डिजिटल कर विभेदक: USTR

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (United States Trade Representative- USTR) ने कहा है कि भारत, इटली और तुर्की द्वारा अपनाए गए डिजिटल सेवा कर (Digital services taxes-DSTs) अमेरिकी कंपनियों के साथ भेदभाव करते हैं और अंतर्राष्ट्रीय कर सिद्धांतों के असंगत हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (USTR):

    • यह अमेरिका के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विकास और समन्वय हेतु उत्तरदायी एक संस्था है।
    • यूएस ट्रेड अधिनियम (US Trade Act) की धारा 301, USTR को किसी बाहरी देश द्वारा की गई अनुचित या भेदभावपूर्ण कार्रवाई जो कि अमेरिकी वाणिज्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है, की जाँच करने और उस पर प्रतिक्रिया देने का व्यापक अधिकार प्रदान करती है।
    • वर्ष 1974 के व्यापार अधिनियम के माध्यम से अपनाई गई यह धारा अमेरिकी राष्ट्रपति को विदेशी राष्ट्रों पर टैरिफ या अन्य प्रतिबंध लगाने की अनुमति देती है।
    • हालांँकि कानून व्यापारिक भागीदार देशों के साथ अनिवार्य परामर्श का विकल्प भी प्रस्तुत करता है।
  • डिजिटल सेवा कर (DSTs)

    • यह कर कंपनियों द्वारा डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने के बदले प्राप्त राजस्व पर अधिरोपित किया जाता है। यह कर मुख्य तौर पर गूगल, अमेज़न और एप्पल जैसी डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर लागू होता है।
    • वर्तमान में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) अंतर्राष्ट्रीय कर प्रणाली को अनुकूलित करने के उद्देश्य से 130 से अधिक देशों के साथ वार्ता कर रहा है। इस कार्यवाही का एक लक्ष्य अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण से संबंधित कर चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करना है।
      • कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि किसी एक विशिष्ट क्षेत्र या गतिविधि को लक्षित करने हेतु डिज़ाइन की गई कर नीति अनुचित हो सकती है और इससे जटिल परिणाम उत्पन्न होने की संभावना है।
      • इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था को शेष (गैर डिजिटल) वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है।
  • डिजिटल कंम्पनियों पर भारत का कर:

    • सरकार ने वित्त विधेयक 2020-21 में 2 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार करने वाले गैर-निवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटरों द्वारा किये जाने वाले व्यापार और सेवाओं पर 2 प्रतिशत डिजिटल सेवा कर (DST) लागू करने हेतु एक संशोधन किया था।
      • इसके माध्यम से प्रभावी ढंग से समतुल्य लेवी के दायरे का विस्तार किया गया, जो कि बीते वर्ष तक केवल डिजिटल विज्ञापन सेवाओं पर ही लागू होती थी।
      • वर्ष 2016 में सरकार द्वारा समतुल्य लेवी (6 प्रतिशत) की शुरुआत की गई थी और इसे व्यवसाय-से-व्यवसाय डिजिटल विज्ञापनों तथा निवासी सेवा प्रदाताओं से संबद्ध सेवाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न राजस्व पर अधिरोपित किया जाता था।
    • नया करारोपण 1 अप्रैल, 2020 से लागू किया गया, इसमें ई-कॉमर्स ऑपरेटरों के लिये प्रत्येक तिमाही के अंत में कर का भुगतान करना अनिवार्य है।
  • USTR की जाँच रिपोर्ट:

    • भारत में DST भेदभावपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय कंपनियों को छूट प्रदान करता है और गैर-भारतीय फर्मों को निशाना बनाता है।
      • ये प्रौद्योगिकी उद्योग पर हावी अमेरिकी कंपनियों को प्रभावित करते हैं।
      • डिजिटल सेवा कर के तहत 119 कंपनियाँ की पहचान की गई, जिसमें से 86 (72 प्रतिशत) कंपनियाँ अमेरिकी थीं।
    • USTR का अनुमान है कि अमेरिकी कंपनियों के लिये कुल कर बिल प्रतिवर्ष 30 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो सकता है।
    • USTR ने निर्धारित किया कि भारत का DST अनुचित या भेदभावपूर्ण है और US कॉमर्स को प्रतिबंधित करता है। इस प्रकार यह धारा 301, यूएस ट्रेड अधिनियम के तहत कार्रवाई योग्य है।
  • भारत का पक्ष

    • भारत ने समतुल्य लेवी (Equalisation Levy) को उचित और गैर-भेदभावपूर्ण कर के रूप में वर्णित किया है, जो कि भारत के स्थानीय बाज़ार में कार्य कर रहीं सभी टेक कंपनियों पर समान रूप से लागू होता है। भारत ने स्पष्ट तौर पर इस कर के माध्यम से अमेरिका की कंपनियों को लक्षित करने के आरोप से इनकार किया है।
      • इसका उद्देश्य भारत की कंपनियों के साथ-साथ भारत के बाहर से संचालित कंपनियों के लिये ई-कॉमर्स गतिविधियों के संबंध में एक समान अवसर सुनिश्चित करना है।
    • भारत सरकार इस संबंध में अमेरिका द्वारा अधिसूचित निर्णय की जाँच करेगी और राष्ट्र के समग्र हित को ध्यान में रखते हुए उचित कार्रवाई करेगी।
    • समतुल्य लेवी, जो कि केवल भारतीय क्षेत्र से उत्पन्न राजस्व पर लागू होती है, में कोई पूर्वव्यापी तत्त्व या अतिरिक्त-प्रादेशिक अनुप्रयोग शामिल नहीं है।
      • यह कर इस सिद्धांत पर आधारित है कि डिजिटल दुनिया में एक विक्रेता बिना किसी भौतिक उपस्थिति के व्यापारिक लेन-देन में संलग्न हो सकता है और सरकारों के पास इस तरह के लेन-देन पर कर अधिरोपित करने का वैध अधिकार है।
  • चिंताएँ

    • अमेरिका का यह कदम विशेष तौर पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) की निष्क्रियता को देखते हुए डिजिटल सेवाओं के मोर्चे पर अमेरिका की एकतरफा कार्रवाई की शुरुआत का संकेत दे रहा है।
    • भारत के मामले में यह जाँच संभावित रूप से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार सौदे के को प्रभावित कर सकती है, जिसे लेकर भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से वार्ता की जा रही है।

आगे की राह

  • ज्ञात हो कि भारत तेज़ी से एक विशाल डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की ओर आगे बढ़ रहा है, अतः ऐसे में आवश्यक है कि 2 प्रतिशत डिजिटल सेवा कर (DST) को लेकर भारत द्वारा यथासंभव वार्ता की जाए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में बाधा न बन जाए।
  • इसके अलावा डिजिटल अर्थव्यवस्था पर कराधान से संबंधित मुद्दों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहमति बनाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


स्पेक्ट्रम नीलामी

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंज़ूरी मिलने के बाद देश में 3.92 लाख करोड़ रुपए की लागत की रेडियो तरंगों के स्पेक्ट्रम की नीलामी के छठे दौर के लिये बोली लगाने की प्रक्रिया 1 मार्च, 2020 से शुरू होगी।

  • लंबे समय से प्रतीक्षित यह स्पेक्ट्रम नीलामी चार वर्ष के अंतराल और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा रेडियो तरंगों के लिये आधार/आरक्षित मूल्य की गणना तथा इनकी अनुशंसा किये जाने के दो वर्षों से अधिक समय के बाद आयोजित की जा रही है।

प्रमुख बिंदु:

  • स्पेक्ट्रम नीलामी के बारे में:

    • सेलफोन और वायरलाइन जैसे उपकरणों को एक-दूसरे छोर से जोड़ने के लिये सिग्नल की आवश्यकता होती है। इन सिग्नलों को वायु तरंगों या एयरवेव्स (रेडियो तरंगों का माध्यम) द्वारा प्रेषित किया जाता है, जिन्हें किसी भी तरह के हस्तक्षेप से बचाने के लिये एक निर्दिष्ट आवृत्ति पर भेजा जाना आवश्यक है।
      • कोई भी हस्तक्षेप सिग्नल की प्राप्ति या रिसेप्शन को पूरी तरह से रोक सकता है, या इसकी अस्थायी क्षति का कारण बन सकता है, अथवा यह किसी एक उपकरण द्वारा उत्पादित ध्वनि या तस्वीर की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है।
    • देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सभी संपत्तियों का स्वामित्व केंद्र सरकार के पास है, जिसमें एयरवेव्स भी शामिल हैं।
      • देश में सेलफोन, वायरलाइन टेलीफोन और इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि के साथ समय-समय पर सिग्नलों के लिये अधिक स्थान प्रदान किये जाने की आवश्यकता होती है।
    • साथ ही इन तरंगों को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाने हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचा भी तैयार करना पड़ता है।
    • इस बुनियादी ढाँचे को तैयार करने की इच्छुक कंपनियों को इन संपत्तियों को बेचने के लिये केंद्र सरकार द्वारा दूरसंचार विभाग (संचार मंत्रालय) के माध्यम से समय-समय पर इन एयरवेव्स की नीलामी की जाती है।
    • इन एयरवेव्स को स्पेक्ट्रम कहा जाता है, जिसे अलग-अलग आवृत्ति के बैंडों में विभाजित किया जाता है।
    • इन सभी एयरवेव्स को एक निश्चित अवधि के लिये बेचा जाता है, जिसके बाद उनकी वैधता समाप्त हो जाती है, यह अवधि आमतौर पर 20 वर्षों के लिये निर्धारित की जाती है।
  • नवीनतम नीलामी के बारे में:

    • इससे पहले आखिरी/पिछली स्पेक्ट्रम नीलामी वर्ष 2016 में की गई थी। एक नई स्पेक्ट्रम नीलामी की आवश्यकता इसलिये उत्पन्न हुई क्योंकि कंपनियों द्वारा खरीदी गई एयरवेव्स की वैधता वर्ष 2021 में समाप्त होने वाली है।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर 2020 में 3.92 लाख करोड़ रुपए के आरक्षित मूल्य पर सात आवृत्ति बैंड्स में 2251.25 मेगाहर्ट्ज के स्पेक्ट्रम (4G के लिये) की बिक्री को मंज़ूरी दी थी।
      • इस नीलामी के माध्यम से ऐसे समय में सरकारी राजस्व संग्रह में वृद्धि की संभावना है, जब COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिये लागू प्रतिबंधों के कारण अन्य स्रोतों जैसे कि प्रत्यक्ष कर, वस्तु एवं सेवा कर (GST) आदि अप्रत्यक्ष करों में तीव्र गिरावट आई है।
    • हालाँकि सरकार ने इस चरण में बहु-प्रत्याशित 5G एयरवेव्स की बिक्री को रोक दिया है, जिसकी नीलामी की घोषणा जल्द ही की जा सकती है।
      • 3500 मेगाहर्ट्ज बैंड में शामिल एयरवेव्स को 5G के पहले चरण के लिये आदर्श माना जाता है।
    • विभिन्न कंपनियों की माँग के आधार पर एयरवेव्स का मूल्य अधिक हो सकता है, परंतु यह आरक्षित मूल्य से नीचे नहीं जा सकता।
      • एक आरक्षित मूल्य वह न्यूनतम मूल्य है जिसे एक विक्रेता खरीदारों से स्वीकार करने के लिये तैयार होता है। यदि विक्रेता को आरक्षित मूल्य या उससे अधिक की राशि नहीं प्राप्त होती है, तो वह विक्रय के लिये रखी वस्तु/सेवा को उच्चतम बोली लगाने वाले खरीदार को भी बेचने के लिये विवश नहीं होगा।
      • आरक्षित मूल्य की सिफारिश भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण द्वारा की जाती है।
    • सफल बोलीदाताओं को स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क के रूप में समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue) की 3% राशि देनी होगी।
      • AGR को क्रमशः 3-5% और 8% के बीच स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क और लाइसेंसिंग शुल्क में विभाजित किया जाता है।
      • यह उपयोग और लाइसेंस शुल्क है जिसको दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications) द्वारा दूरसंचार ऑपरेटरों पर लगाया जाता है।
  • संभावित खरीदार:

    • स्पेक्ट्रम के लिये मौजूदा दूरसंचार कंपनियों के अलावा नई कंपनियों सहित विदेशी कंपनियाँ भी बोली लगाने हेतु पात्र हैं।
      • स्पेक्ट्रम की नीलामी के बाद उसे धारण करने के लिये विदेशी कंपनियों को भारत में एक शाखा स्थापित करनी होगी और एक भारतीय कंपनी के रूप में पंजीकरण कराना होगा या एक भारतीय कंपनी के साथ सहभागिता करनी होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास हेतु योजना

चर्चा में क्यों?

आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने जम्मू-कश्मीर के औद्योगिक विकास के लिये उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) की केंद्रीय क्षेत्रक योजना के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है।

  • DPIIT वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत एक विभाग है।
    • केंद्रीय क्षेत्रक योजना
      • ये योजनाएँ 100 प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित होती हैं।
      • इनका क्रियान्वयन केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
      • ये योजनाएँ मुख्यतः संघ सूची के विषय पर बनाई जाती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • लक्ष्य


    • इस योजना का लक्ष्य केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में ब्लॉक स्तर तक औद्योगिक विकास सुनिश्चित करना है। यह भारत सरकार की पहली औद्योगिक प्रोत्साहन योजना है तथा संपूर्ण केंद्रशासित प्रदेश में स्थायी तथा संतुलित औद्योगिक विकास को बढ़ावा देगी।
  • लाभार्थी


    • योजना छोटी और बड़ी दोनों तरह की इकाइयों के लिये आकर्षक बनाई गई है।
  • परिव्यय

    • वर्ष 2020-21 से वर्ष 2036-37 की अवधि (कुल 17 वर्ष) के लिये प्रस्तावित योजना का कुल परिव्यय 28,400 करोड़ रुपए है। अभी तक विभिन्न स्पेशल पैकेज योजनाओं के अंतर्गत 1,123.84 करोड़ रुपए दिये जा चुके हैं।
  • योजना के क्रियान्वयन में जम्मू-कश्मीर की भूमिका


    • योजना हेतु पंजीकरण और क्रियान्वयन के लिये केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की व्यापक भूमिका निर्धारित की गई है। इसके तहत दावे स्वीकृत करने से पूर्व स्वतंत्र ऑडिट एजेंसी द्वारा उचित नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था की जाएगी।
  • योजना के तहत प्रोत्साहन


    • पूँजी निवेश प्रोत्साहन
      • यह संयंत्र और मशीनरी (मैन्युफैक्चरिंग) या भवन निर्माण अथवा अन्य सभी स्थायी भौतिक परिसंपत्तियों के निर्माण (सेवा क्षेत्र) के मामले में निवेश पर जोन-A में 30 प्रतिशत तथा जोन-B में 50 प्रतिशत की दर पर पूंजी निवेश प्रोत्साहन उपलब्ध कराता है।
        • ज़ोन-B: इसमें दूर-दराज़ के क्षेत्रों को शामिल किया जाएगा और उन्हें अधिक प्रोत्साहन प्राप्त होगा ताकि दूर-दराज़ के क्षेत्रों तथा प्रमुख शहरों में विकास के समान अवसर सुनिश्चित किये जा सकें।
        • ज़ोन-A: इसमें वे क्षेत्र शामिल हैं जो ज़ोन-B में शामिल नहीं हैं।
      • एक पूँजीगत निवेश वह धनराशि होती है, जो किसी व्यवसाय को आगे बढ़ाने या व्यवसाय के लिये दीर्घकालिक संपत्ति खरीदने हेतु प्रयोग की जाती है।
    • पूंजीगत ब्याज छूट:
      • यह संयंत्र, मशीनरी, भवन और अन्य सभी टिकाऊ भौतिक परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये 10 वर्षों हेतु 500 करोड़ रुपए तक के ऋण पर अधिकतम सात वर्षों के लिये 6% की पूंजीगत ब्याज छूट प्रदान करती है।
        • पूंजीगत ब्याज दीर्घकालिक संपत्ति का अधिग्रहण या निर्माण हेतु लिये गए ऋण की लागत होती है।
    • GST संबद्ध प्रोत्साहन:
      • यह सकल वस्तु और सेवा कर (Goods and Services Tax) पर आधारित है।
      • यह वास्तविक निवेश भौतिक संपत्ति (संयंत्र, मशीनरी, भवन आदि) के निर्माण को 300 प्रतिशत तक प्रोत्साहित करेगा।
    • कार्यशील पूंजी ब्याज प्रोत्साहन:
      • यह मौजूदा इकाइयों को 5% की वार्षिक दर से अधिकतम 5 वर्षों के लिये प्रोत्साहन प्रदान करेगा। प्रोत्साहन की अधिकतम सीमा 1 करोड़ रुपए है।
        • कार्यशील पूंजी, जिसे निवल कार्यशील पूंजी (Net Working Capital) के रूप में भी जाना जाता है, यह एक कंपनी की मौजूदा परिसंपत्तियों (नकद, प्राप्य खाता- ग्राहकों के अवैतनिक बिल, कच्चा और तैयार माल आदि) और उसकी वर्तमान देनदारियों के बीच का अंतर है।
  • महत्त्व:

    • यह योजना राज्य में नए निवेश को प्रोत्साहित कर उनका पर्याप्त विस्तार करेगी और केंद्रशासित प्रदेश में मौज़ूद उद्योगों का पोषण भी करेगी।
    • साथ ही योजना राज्य के समतामूलक, संतुलित और सतत् सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के अलावा 4.5 लाख लोगों को रोज़गार भी प्रदान करेगी।
  • अन्य पहलें

    • इससे पहले आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) ‘स्वास्थ्य और टेलीमेडिसिन के लिये सामाजिक प्रयास’ (SEHAT) को जम्मू-कश्मीर के सभी निवासियों को स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
    • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्रशासित प्रदेशों में दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) के तहत 520 करोड़ रुपए के विशेष पैकेज की भी मंज़ूरी प्रदान की है।
      • अगस्त 2019 में केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति के मद्देनज़र संचार के सभी तरीकों को निलंबित/निरसन कर दिया गया था। अंततः सेवाओं की आंशिक पुनः बहाली करते हुए इंटरनेट की गति 2जी (2G) तक सीमित की गई थी।

स्रोत: पी.आई.बी.