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डेली न्यूज़

  • 07 Feb, 2024
  • 50 min read
शासन व्यवस्था

मेरा गाँव, मेरी धरोहर कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

मेरा गाँव मेरी धरोहर कार्यक्रम, राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (National Mission on Cultural Mapping - NMCM), कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता की योजना, राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव

मेन्स के लिये:

भारत की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने में सरकारी नीतियाँ, मेरा गाँव मेरा धरोहर का महत्त्व, सांस्कृतिक मानचित्रण पर राष्ट्रीय मिशन।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने मेरा गाँव मेरी धरोहर (Mera Gaon, Meri Dharohar - MGMD) कार्यक्रम के तहत सभी गाँवों का मानचित्रण और दस्तावेज़ीकरण करने का निर्णय लिया है।

  • इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य भारतीय गाँवों के जीवन, इतिहास और लोकाचार की विस्तृत जानकारी संकलित करना तथा इसे आभासी तथा वास्तविक समय के आगंतुकों (visitors) के लिये उपलब्ध कराना है।
  • संस्कृति मंत्रालय कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता की एक योजना भी लागू कर रहा है जिसमें 8 घटक शामिल हैं जिसके माध्यम से सांस्कृतिक संगठनों को कला तथा संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता दी जाती है।

मेरा गाँव, मेरी धरोहर (MGMD) कार्यक्रम क्या है?

  • सांस्कृतिक मानचित्रण पर यह राष्ट्रीय मिशन संस्कृति मंत्रालय के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (Indira Gandhi National Centre for the Arts -IGNCA) के समन्वय से संचालित किया जाता है।
    • MGMD पर एक वेब पोर्टल भी लॉन्च किया गया है। MGMD कार्यक्रम भारतीय गाँवों के जीवन, इतिहास तथा लोकाचार की विस्तृत जानकारी संकलित करने एवं इसे आभासी व वास्तविक समय के आगंतुकों के लिये उपलब्ध कराने का प्रयास करता है।
  • MGMD के तहत, सात व्यापक श्रेणियों के तहत जानकारी एकत्र की जाती है:
    • कला एवं शिल्प गाँव
    • पारिस्थितिकीय दृष्टि से उन्मुख गाँव
    • भारत की पाठ्य एवं शास्त्रीय परंपराओं से जुड़ा स्कोलास्टिक गाँव
    • रामायण, महाभारत और/या पौराणिक कथाओं तथा मौखिक महाकाव्यों से जुड़ा महाकाव्य गाँव
    • स्थानीय और राष्ट्रीय इतिहास से जुड़ा ऐतिहासिक गाँव
    • वास्तुकला विरासत गाँव
    • कोई अन्य विशेषता जिसे उजागर करने की आवश्यकता हो जैसे मछली पकड़ने वाला गाँव, बागवानी गाँव, चरवाहा गाँव आदि।
  • MGMD राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (National Mission on Cultural Mapping - NMCM) का एक घटक है, जिसे आजादी का अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में शुरू किया गया है।
  • MGMD के तहत 6.5 लाख गाँवों का सांस्कृतिक मानचित्रण किया जा रहा है और 2 लाख से अधिक गाँवों का मानचित्रण पहले ही किया जा चुका है तथा मिशन पोर्टल पर अपलोड किया जा चुका है जो राष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यस्थल के रूप में कार्य करता है।

राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण मिशन (NMCM) क्या है?

  • परिचय:
    • संस्कृति मंत्रालय ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने एवं ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इसकी रचनात्मक क्षमता की पहचान करने व प्रलेखीकरण करने के लिये NMCM की स्थापना की।
    • सांस्कृतिक मानचित्रण तीन स्तरों पर कार्य करता है:
      • कलाकारों की राष्ट्रीय निर्देशिकाएँ तथा सांस्कृतिक क्षेत्र से संबंधित लोग।
      • कला अभिव्यक्ति तथा कलाकार समुदायों/परंपरा के वाहकों की राष्ट्रीय डिजिटल सूची/रजिस्टर का निर्माण।
      • कला प्रथाओं के संरक्षण के लिये नीतियाँ विकसित करना और साथ ही उनके अभ्यासकर्त्ताओं के लिये कल्याणकारी योजनाओं का कार्यान्वन करना।
  • मिशन अधिदेश:
    • व्यापक थल सर्वेक्षणों तथा प्रलेखीकरण की सहायता से सांस्कृतिक मानचित्रण के माध्यम से एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करना।
    • भावी पीढ़ियों के लिये इस देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित, सुरक्षित, पुनर्जीवित तथा प्रसारित करना।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म तथा लोकसंपर्क गतिविधियों का माध्यम से पूरे देश में एक सुदृढ़ "सांस्कृतिक जीवंतता" का परिवेश विकसित करना।

कला और संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु वित्तीय सहायता की योजना क्या है?

  • यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका उद्देश्य देश में विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों तथा संगठनों का समर्थन करना है। इस योजना में 8 घटक शामिल हैं तथा प्रत्येक का एक अलग उद्देश्य एवं वित्तपोषण आवंटन है।
  • कला और संस्कृति को बढ़ावा देने हेतु वित्तीय सहायता की योजना में निम्नलखित 8 घटक शामिल हैं:
    • राष्ट्रीय उपस्थिति वाले सांस्कृतिक संगठनों को वित्तीय सहायता:
      • कला और संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिये राष्ट्रीय उपस्थिति वाले प्रतिष्ठित सांस्कृतिक संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
      • यह अनुदान ऐसे संगठनों को प्रदान किया जाता है जो अखिल भारतीय गुणों के साथ भारत में पंजीकृत उचित रूप से गठित प्रबंध निकाय हैं तथा जिनके पास पर्याप्त कार्य बल है एवं सांस्कृतिक गतिविधियों हेतु विगत 5 वर्षों में से किन्हीं 3 वर्षों के दौरान 1 करोड़ रुपए अथवा उससे अधिक की राशि का व्यय करने का ट्रैक रिकॉर्ड है।
      • अधिकतम अनुदान: 1 करोड़ रुपए।
    • कल्चरल फंक्शन एंड प्रोडक्शन ग्रांट (CFPG):
      • इसके तहत सेमिनारों, सम्मेलनों, अनुसंधान, कार्यशालाओं, त्योहारों, प्रदर्शनियों तथा प्रस्तुतियों सहित विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
      • अधिकतम अनुदान: 5 लाख से लेकर 20 लाख (विशिष्ट परिस्थितियों में) तक का अनुदान।
    • हिमालय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिये वित्तीय सहायता:
      • अनुसंधान, प्रशिक्षण और प्रसार के माध्यम से हिमालय की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देना तथा उन्हें संरक्षित करना।
      • वित्तीयन: इस दिशा में कार्य करने वाले संगठन को प्रति वर्ष 10 लाख रुपए से लेकर 30 लाख (विशिष्ट परिस्थितियों में) तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।
    • बौद्ध/तिब्बती संगठन के संरक्षण एवं विकास के लिये वित्तीय सहायता:
      • इस योजना के तहत बौद्ध/तिब्बती सांस्कृतिक और परंपरा के प्रचार-प्रसार तथा वैज्ञानिक विकास एवं संबंधित क्षेत्रों में अनुसंधान में लगे मठों सहित स्वैच्छिक बौद्ध/तिब्बती संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 
      • योजना घटक के अंतर्गत वित्त पोषण की मात्रा एक संगठन के लिये प्रति वर्ष 30 लाख रुपए तक है, जिसे असाधारण मामलों में 1 करोड़ रुपए तक बढ़ाया जा सकता है।
    • स्टूडियो थियेटर सहित भवन निर्माण अनुदान हेतु वित्तीय सहायता:
      • स्टूडियो थियेटर, ऑडिटोरियम, रिहर्सल हॉल आदि जैसे सांस्कृतिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना।
      • अधिकतम अनुदान: मेट्रो शहरों में 50 लाख रुपए तक और गैर-मेट्रो शहरों में 25 लाख रुपए तक।
    • संबद्ध सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये वित्तीय सहायता:
      • त्योहारों और प्रमुख आयोजनों के दौरान सांस्कृतिक गतिविधियों के लिये ऑडियो-विजुअल चश्मे (Audio-Visual Spectacles) को बढ़ाने हेतु संपत्ति बनाने में संगठनों का समर्थन करना।
      • अधिकतम अनुदान: ऑडियो:1 करोड़ रुपए, ऑडियो+वीडियो: 1.50 करोड़ रुपए।
    • अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये योजना:
      • यह योजना भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत और विविध सांस्कृतिक परंपराओं को पुनरोद्धार तथा प्रचार के माध्यम से सुरक्षित रखने के लिये वर्ष 2013 में संस्कृति मंत्रालय द्वारा शुरू की गई थी।
    • घरेलू उत्सव और मेले:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारतीय कला विरासत का संरक्षण वर्तमान समय की आवश्यकता है। चर्चा कीजिये। (2018)


प्रारंभिक परीक्षा

ओडिशा में विश्व की पहली मेलानिस्टिक टाइगर सफारी

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

ओडिशा द्वारा सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व (STR) के निकट स्थापित विश्व की पहली मेलानिस्टिक टाइगर सफारी का अनावरण किया जाएगा।

मेलानिस्टिक टाइगर सफारी के लिये ओडिशा का दृष्टिकोण : 

  • मेलानिज़्म तथा मेलानिस्टिक टाइगर: मेलानिज़्म एक आनुवंशिक स्थिति है जिसके परिणामस्वरूप मेलानिन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे जानवरों की त्वचा अथवा बालों का रंग लगभग या पूरी तरह से काला होता है।
    • सिमलीपाल के रॉयल बंगाल टाइगर्स का संबंध एक विशेष वंश से है जिनमें मेलानिन की अत्यधिक मात्रा होती है जिसके परिणामस्वरूप बाघों के शरीर पर काली तथा पीली अंतर-छिद्रित धारियाँ विकसित होती हैं जो उन्हें स्यूडो अथवा छद्म-मेलानिस्टिक बनाते हैं।
  • सफारी की अवस्थिति: धनबाद-बालासोर राष्ट्रीय राजमार्ग-18 के निकट लगभग 200 हेक्टेयर में विस्तरित यह सफारी स्थल STR के समीप स्थित है जिसका परिदृश्य सिमलीपाल के सामान है।
    • प्रारंभ में सफारी के परिबद्ध घेरे में, नंदनकानन चिड़ियाघर के तीन मेलानिस्टिक बाघ के साथ-साथ अन्य बचाए गए अथवा अनाथ बाघों को रखा जाएगा।
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य मेलानिस्टिक बाघों की संरक्षण आवश्यकताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, शोधकर्त्ताओं तथा इच्छुक लोगों को इन दुर्लभ बड़ी बिल्लियों के साथ जुड़ने के लिये एक मंच प्रदान करना है।
  • अनुमोदन: इस परियोजना के लिये केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण तथा देश में वन्यजीव पहल की देखरेख करने वाले अन्य नियामक निकायों से अनुमोदन की आवश्यकता है।

बाघों में अन्य रंग भिन्नताएँ क्या हैं?

  • काली अथवा भूरी धारियों वाला ऑरेंज टाइगर: यह बाघ का सबसे सामान्य तथा व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त प्रकार है। उदाहरणार्थ रॉयल बंगाल टाइगर।
    • प्रत्येक बाघ का धारी पैटर्न अद्वितीय होता है जो प्राकृतिक आवास में छद्मावरण (Camouflage) के रूप में कार्य करता है।
  • व्हाइट टाइगर: उन्हें एक अलग उप-प्रजाति नहीं माना जाता है। व्हाइट टाइगर के फर का रंग ल्यूसिज़्म  नामक आनुवंशिक उत्परिवर्तन का परिणाम है।
    • ल्यूसिज़्म एक आनुवंशिक स्थिति है जिसके परिणामस्वरूप जानवरों में रंजकता कम हो जाती है, जिससे उनकी त्वचा अथवा शल्क सफेद या हल्के रंग के हो जाते हैं।
  • गोल्डन टाइगर: इन्हें बाघों की उप-प्रजाति भी नहीं माना जाता है क्योंकि उनके सुनहरे रंग में भिन्नता "वाइडबैंड" नामक एक अप्रभावी जीन की उपस्थिति के कारण होती है।
    • वाइडबैंड जीन बालों के विकास के चक्र के दौरान मेलेनिन उत्पादन को कम कर देता है।
    • हाल ही में इसे काज़ीरंगा नेशनल पार्क में देखा गया।

सिमलीपाल टाइगर रिज़र्व:

  • अवस्थिति: सिमलीपाल दक्कन प्रायद्वीप जैव-भौगोलिक क्षेत्र में स्थित है।
  • वनस्पतियाँ: इसमें उष्णकटिबंधीय अर्द्ध-सदाबहार वन, उष्णकटिबंधीय नम पर्णपाती वन, शुष्क पर्णपाती पहाड़ी वन और विशाल घास के मैदान मौजूद हैं।
  • फ्लोरा: भारत के 7% फूल वाले पौधे और 8% ऑर्किड प्रजातियाँ यहीं हैं।
  • वनस्पति और जीव: 55 स्तनपायी प्रजातियाँ, 361 पक्षी प्रजातियाँ, 62 सरीसृप प्रजातियाँ, 21 उभयचर प्रजातियाँ और असंख्य कीड़े तथा सूक्ष्म जीवों का घर।
    • बाघों के अलावा प्रमुख प्रजातियों में सांभर, चीतल, भौकने वाला हिरण, गौर और माउस हिरण, तेंदुए, मछली पकड़ने वाली बिल्ली आदि शामिल हैं।
    • प्रबंधन प्रयासों ने खैरी और देव नदियों के किनारे मगरमच्छों की आबादी को पुनर्जीवित कर दिया है।
  • इसे वर्ष 2009 से ग्लोबल नेटवर्क ऑफ़ बायोस्फियर साइट के रूप में भी नामित किया गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013)  

 राष्ट्रीय उद्यान                 -        पार्क से बहने वाली नदी

  1. कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान            -            गंगा 
  2.  काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान        -            मानस 
  3.  साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान    -            कावेरी

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (d)  


प्रश्न. निम्नलिखित बाघ आरक्षित क्षेत्रों में से "क्रांतिक बाघ आवास (Critical Tiger Habitat)" के अंतर्गत सबसे बड़ा क्षेत्र किसके पास है? (2020)

(a) कॉर्बेट
(b) रणथंभौर
(c) नागार्जुनसागर-श्रीशैलम
(d) सुंदरबन

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न. "विभिन्न प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रों और हितधारकों के बीच नीतिगत विरोधाभासों के परिणामस्वरूप पर्यावरण के अपर्याप्त 'संरक्षण एवं गिरावट की रोकथाम' हुई है।" प्रासंगिक दृष्टांतों के साथ टिप्पणी कीजिये। (2018)


भारतीय अर्थव्यवस्था

राजकोषीय घाटा और इसका प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

राजकोषीय घाटा और उसका प्रबंधन, अंतरिम बजट 2024-25, राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP)।

मेन्स के लिये:

राजकोषीय घाटा और उसका प्रबंधन, भारतीय अर्थव्यवस्था पर राजकोषीय घाटे का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत राष्ट्रीय ऋणों से निपटने में वित्तीय चुनौतियों का सामना कर रहा है, इसलिये वित्त मंत्रालय ने अपने अंतरिम बजट 2024-25 में भारत के राजकोषीय घाटे को वित्तीय वर्ष 2024-25 में  सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) के 5.1% तक कम करने का निर्णय लिया है।

राजकोषीय घाटा क्या है?

  • परिचय:
    • राजकोषीय घाटा किसी सरकार के खर्च की तुलना में उसके राजस्व में कमी को संदर्भित करता है।
    • जब किसी सरकार का व्यय उसके राजस्व से अधिक हो जाता है, तो सरकार को घाटे को पूरा करने के लिये धन उधार लेना होगा या संपत्ति बेचनी होगी।
    • कर किसी भी सरकार के लिये राजस्व का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। वर्ष 2024-25 में सरकार की कर प्राप्तियाँ 26.02 लाख करोड़ रुपए जबकि कुल राजस्व 30.8 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है।
    • दूसरी ओर, जब किसी सरकार के पास राजकोषीय अधिशेष होता है, तो उसकी आय उसके खर्चों से अधिक हो जाती है।
      • हालाँकि सरकारें अक्सर अधिशेष में नहीं चलती हैं। इन दिनों, अधिकांश सरकारें राजकोषीय अधिशेष बनाने या बजट को संतुलित करने के बजाय राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने को प्राथमिकता देती हैं।
  • अनुमान:
    • सरकार का अनुमान है कि बजट 2021-22 में घोषित वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 4.5% से कम हो जाएगा।
    • सरकार के संशोधित अनुमानों ने वर्ष 2023-24 के लिये राजकोषीय घाटे के अनुमान को भी घटाकर राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) का 5.8% कर दिया।
  • राजकोषीय घाटा और राष्ट्रीय ऋण:
    • राष्ट्रीय ऋण वह कुल राशि है जो किसी देश की सरकार अपने ऋणदाताओं को एक निश्चित समय पर देना चाहती है।
      • सरकारी ऋण में छोटी बचत, भविष्य निधि और विशेष प्रतिभूतियों जैसी योजनाओं के दायित्वों के साथ-साथ घरेलू तथा बाहरी ऋण सहित विभिन्न देनदारियाँ शामिल हैं।
      • इन देनदारियों में ब्याज भुगतान और मूल राशि का पुनर्भुगतान दोनों शामिल होते हैं, जिससे सरकार के वित्त पर काफी वित्तीय बोझ पड़ता है।
    • यह आम तौर पर ऋण की वह राशि है जो सरकार ने कई वर्षों के राजकोषीय घाटे और घाटे को पाटने के लिये उधार लेने के दौरान जमा की है। 
    • सकल घरेलू उत्पाद के हिस्से के रूप में सरकार का राजकोषीय घाटा जितना अधिक होगा, उसके ऋणदाताओं को बिना किसी परेशानी के भुगतान किये जाने की संभावना उतनी ही कम होगी।
      • बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों का राजकोषीय घाटा अधिक हो सकता है। वर्ष 2022 तक, प्रमुख घाटे वाले धारकों में इटली -7.8%, हंगरी -6.3%, दक्षिण अफ्रीका -4.8%, स्पेन -4.7%, फ्राँस -4.7% शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय ऋण में प्रवृत्तियाँ:
    • वर्ष 2003-04 में ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात अनुपात 84.4% था, जिसमें बाद में विभिन्न प्रशासनों के तहत गिरावट और वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2014 के बाद, सरकार ने ऋण सकल घरेलू उत्पाद अनुपात में वृद्धि देखी, जो वर्ष 2020-21 में 88.5% के शिखर पर पहुँच गया, जो मुख्य रूप से कोविड-19 महामारी के कारण हुए आर्थिक व्यवधानों से प्रेरित था।
    • बाद के वित्तीय वर्षों में मामूली सुधार के बावजूद, अनुपात ऊँचा बना हुआ है, वर्ष 2024-25 के लिये 82.4% का अनुमान है, जो राजकोषीय प्रबंधन के लिये महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करता है।

मुख्य सूत्र:

  • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय- कुल प्राप्तियाँ (उधार को छोड़कर)।
  • राजस्व घाटा: किसी सरकार या व्यवसाय का यह घाटा कुल राजस्व प्राप्तियों को कुल आय व्यय से घटाकर निर्धारित किया जा सकता है।
    • राजस्व घाटा = कुल राजस्व प्राप्तियाँ - कुल राजस्व व्यय।
  • ऋणात्मक  सकल घरेलू उत्पाद अनुपात: यह मापता है कि किसी देश पर उसकी जीडीपी के संबंध में कितना बकाया है।
    • सकल घरेलू उत्पाद पर ऋण = देश का कुल ऋण/देश की कुल सकल घरेलू उत्पाद

सरकार अपने राजकोषीय घाटे का वित्तपोषण कैसे करती है?

  • बांड बाज़ार से उधार लेना:
    • अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये सरकार मुख्य रूप से बंधपत्र बाज़ार से पैसा उधार लेती है, जहाँ ऋणदाता सरकार द्वारा जारी बांड खरीदकर सरकार को ऋण देने हेतु प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
      • वर्ष 2024-25 में केंद्र को बाज़ार से 14.13 लाख करोड़ रुपए की सकल राशि उधार लेने की उम्मीद है, जो वर्ष 2023-24 के लिये उसके उधार लक्ष्य से कम है, क्योंकि उसे वर्ष 2024-25 में अपने खर्च को उच्च GST संग्रह के माध्यम से वित्तपोषित करने की उम्मीद है।
    • जैसे-जैसे सरकार की वित्तीय स्थिति खराब होती है, सरकार के बंधपत्र की मांग कम होने लगती है, जिससे सरकार को उधारदाताओं को उच्च ब्याज दर का भुगतान करने की पेशकश करनी पड़ती है और सरकार के लिये उधार लेने की लागत बढ़ जाती है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका:
    • RBI क्रेडिट बाज़ार में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी ऋण की सुविधा प्रदान करता है। जबकि केंद्रीय बैंक सीधे प्राथमिक बाज़ार से सरकारी बंधपत्र नहीं खरीद सकते हैं, वे द्वितीयक बाज़ार में निजी ऋणदाताओं से बांड हासिल करने के लिये ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) में संलग्न होते हैं।
    • केंद्रीय बैंकों द्वारा तरलता का यह प्रवाह सरकारी उधार प्रयासों को प्रभावी ढंग से समर्थन देता है।
      • OMO के माध्यम से केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप में नए धन का सृजन शामिल है, जिससे संभावित रूप से समय के साथ अर्थव्यवस्था में धन आपूर्ति और मुद्रास्फीति के दबाव में वृद्धि होगी।
  • मौद्रिक नीति:
    • मौद्रिक नीति सरकारों के लिये बाज़ार से पैसा उधार लेने की लागत को कम करने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • केंद्रीय बैंक की ऋण दरें, जो महामारी से पहले कई देशों में शून्य के करीब थीं, महामारी के बाद तेज़ी से बढ़ी हैं।
      • इससे सरकारों के लिये पैसा उधार लेना अधिक महंगा हो जाता है और यही एक कारण हो सकता है कि केंद्र अपने राजकोषीय घाटे को कम करने हेतु उत्सुक है।

भारत में राजकोषीय प्रबंधन से संबंधित कानून क्या है?

  • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) ढाँचा:
    • वर्ष 2003 में स्थापित FRBM अधिनियम ने ऋण कटौती के लिये महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किये, जिसका लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक सामान्य सरकारी ऋण को सकल घरेलू उत्पाद के 60% तक सीमित करना था।
    • हालाँकि बाद के राजकोषीय प्रक्षेप पथ इन लक्ष्यों से भटक गए, केंद्र का बकाया ऋण मूल रूप से कल्पना की गई सीमा से अधिक हो गया।
      • FRBM समीक्षा समिति की रिपोर्ट ने वर्ष 2023 तक सामान्य (संयुक्त) सरकार के लिये ऋण-GDP अनुपात 60% की सिफारिश की है, जिसमें केंद्र सरकार हेतु 40% और राज्य सरकारों के लिये 20% शामिल है।

राजकोषीय घाटे के बारे में चिंता करना क्यों आवश्यक है?

  • मुद्रास्फीति पर प्रभाव:
    • सरकार के राजकोषीय घाटे और देश में मुद्रास्फीति के बीच एक मज़बूत सीधा संबंध है।
    • जब किसी देश की सरकार लगातार उच्च राजकोषीय घाटे को चलाती है, तो इससे अंततः उच्च मुद्रास्फीति हो सकती है क्योंकि सरकार को अपने राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किये गए नए धन का उपयोग करने हेतु मजबूर होना पड़ेगा।
      • महामारी के दौरान वर्ष 2020 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 9.17% के उच्च स्तर पर पहुँच गया। तब से इसमें काफी कमी आई है और वर्ष 2023-24 में 5.8% तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • राजकोषीय अनुशासन से रेटिंग में सुधार:
    • कम राजकोषीय घाटा बेहतर सरकारी राजकोषीय अनुशासन का संकेत देता है। इससे भारत सरकार के बांडों की रेटिंग ऊँची हो सकती है।
    • जब सरकार कर राजस्व पर अधिक निर्भर करती है और कम उधार लेती है, तो इससे ऋणदाता का विश्वास बढ़ता है तथा उधार लेने की लागत कम हो जाती है।
  • सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन:
    • उच्च राजकोषीय घाटा सरकार की समग्र सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • दिसंबर 2023 में, IMF ने चेतावनी दी कि जोखिमों के कारण मध्यम अवधि में भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 100% से अधिक तक बढ़ सकता है।
    • कम राजकोषीय घाटा सरकार को विदेशों में अपने बांड अधिक आसानी से बेचने और अंतर्राष्ट्रीय बांड बाज़ार से सस्ता ऋण प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

भारत में राजकोषीय घाटे तथा राष्ट्रीय ऋण के प्रबंधन हेतु क्या किया जा सकता है?

  • राजकोषीय अनुशासन तथा सुदृढ़ीकरण:
    • FRBM अधिनियम अनुसार राजकोषीय सुदृढ़ीकरण लक्ष्यों का अनुपालन करना महत्त्वपूर्ण है।
    • सरकार को सतत् सार्वजनिक वित्त सुनिश्चित करने के लिये राजकोषीय घाटे और GDP अनुपात को क्रमिक रूप से कम करने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिये।
    • व्यय को युक्तिसंगत बनाने, राजस्व वृद्धि उपायों तथा सहायिकी में सुधारों के साथ-साथ विवेकपूर्ण राजकोषीय नीतियों के कार्यान्वन से ऋण-ग्रहण पर निर्भरता कम होगी तथा राजकोषीय असंतुलन को व्यवस्थित करने में मदद मिल सकती है।
  • राजस्व संग्रहण में वृद्धि:
    • कर आधार को विस्तारित करने तथा राजस्व संग्रह में सुधार के लिये कर प्रशासन एवं अनुपालन को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
    • राजस्व स्रोतों में विविधता लाने हेतु पर्यावरण कर अथवा विलासिता की वस्तुओं, संपत्ति पर नए कर अथवा शुल्क अधिरोपित करना।
  • व्ययों को युक्तिसंगत बनाना:
    • अक्षमताओं की पहचान करने तथा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं बुनियादी ढाँचे जैसे प्रमुख क्षेत्रों में व्यय को प्राथमिकता देने के लिये सरकारी व्यय की व्यापक समीक्षा करना।
    • देश की कमज़ोर आबादी के लिये लक्षित समर्थन सुनिश्चित करने हेतु मौजूदा गैर-आवश्यक व्यव एवं सहायिकी को कम करने के लिये नीतियाँ बनाना।
  • ऋण प्रबंधन रणनीतियाँ:
    • ऋण-ग्रहण की लागत को अनुकूलित करने तथा पुनर्वित्त जोखिमों को कम करने के लिये एक विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन रणनीति विकसित करना।
    • बाज़ार की अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिये घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों सहित निवेशक आधार एवं वित्तपोषण के स्रोतों में विविधता लाना।
  • दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधार:
    • अर्थव्यवस्था की दक्षता तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार लाने के उद्देश्य से संरचनात्मक सुधार करने की आवश्यकता है जिसमें श्रम बाज़ार सुधार, व्यापार सुगमता (ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस) संबंधी पहल एवं शासन व्यवस्था में सुधार करना शामिल हैं।
    • विकास क्षमता में वृद्धि करने तथा राजकोषीय स्थिरता को बनाए रखने के लिये कृषि, विनिर्माण एवं सेवाओं जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक बाधाओं तथा चुनौतियों का समाधान करना।

निष्कर्ष

  • राजकोषीय सुदृढ़ीकरण उपायों के संयोजन को कार्यान्वित कर भारत राजकोषीय स्थिरता, आर्थिक विकास एवं दीर्घकालिक समृद्धि सुनिश्चित करते हुए अपने राष्ट्रीय ऋण तथा राजकोषीय घाटे को प्रभावी ढंग से प्रबंधित कर सकता है।
  • स्थायी राजकोषीय का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये अल्पकालिक स्थिरीकरण प्रयासों तथा दीर्घकालिक संरचनात्मक सुधारों के बीच संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

  1. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहित करना
  2. उच्च शिक्षण संस्थान का निजीकरण 
  3. नौकरशाही का डाउन-साइजिंग 
  4. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों को बेचना/बंद करना

उपर्युक्त में से किसका उपयोग भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में किया जा सकता है? 

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती
(b) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार लेना
(c) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये बैंकों से उधार लेना
(d) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये नई मुद्रा का सृजन करना

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किनको/किसको भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल किया जाता है? (2016)

  1. सड़कों, भवनों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय 
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण 
  3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अनुदत्त ऋण तथा अग्रिम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. वर्ष 2017-18 के संघीय बजट के अभीष्ट उद्देश्यों में से एक 'भारत को रूपांतरित करना, ऊर्जावान बनाना और भारत को स्वच्छ करना' है। इस उद्देश्य प्राप्त करने के लिये बजट 2017-18 सरकार द्वारा प्रस्तावित उपायों का विश्लेषण कीजिये। (2017)

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (2021)

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


भारतीय राजव्यवस्था

लोक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024

प्रिलिम्स के लिये:

सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक, 2024, लोकसभा, ऑप्टिकल मार्क रिकग्निशन (ओएमआर), यूपीएससी सीएसई विगत वर्ष के प्रश्न।

मेन्स के लिये:

लोक परीक्षा (कदाचार रोकथाम) विधेयक-2024 , विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके निर्माण तथा  कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोक परीक्षा (कदाचार रोकथाम) विधेयक-2024 को लोकसभा में पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य लोक परीक्षा प्रणाली में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता लाने के लिये “अनुचित साधनों” को रोकना है।

  • एक बार कानून बन जाने के बाद यह विधेयक "राज्यों के लिये अपने विवेक पर इसे अपनाने के क्रम में एक मॉडल मसौदा" के रूप में कार्य करेगा। 

इस प्रकार के विधेयक की आवश्यकता:

  • प्रश्न पत्र लीक के मामले:
    • हाल के वर्षों में देशभर की भर्ती परीक्षाओं में प्रश्न-पत्र लीक होने के मामले बहुत बड़ी संख्या में सामने आए हैं।
      • पिछले पाँच वर्षों में 16 राज्यों में पेपर लीक की कम-से-कम 48 घटनाएँ हुईं हैं, जिससे सरकारी नौकरियों की भर्ती प्रक्रिया बाधित हुई है।
      • इससे लगभग 1.2 लाख पदों के लिये होने वाली भर्ती से कम-से-कम 1.51 करोड़ आवेदकों का जीवन प्रभावित हुआ है।

  • कदाचार के कारण परीक्षाओं में देरी होना:
    • सार्वजनिक परीक्षाओं में कदाचार के कारण देरी होती है और परीक्षाएँ रद्द हो जाती हैं, जिससे लाखों युवाओं की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • वर्तमान में अपनाए गए अनुचित तरीकों अथवा किये गए अपराधों से निपटने के लिये कोई विशिष्ट ठोस कानून नहीं है।
    • व्यापक केंद्रीय कानून के माध्यम से परीक्षा प्रणाली के भीतर कमज़ोरियों का लाभ उठाने वाले तत्त्वों की पहचान करना और प्रभावी ढंग से उनका समाधान करना भी महत्त्वपूर्ण है।
  • अधिक पारदर्शिता लाने के लिये:
    • विधेयक का उद्देश्य लोक परीक्षा प्रणालियों में अधिक पारदर्शिता, निष्पक्षता और विश्वसनीयता लाना है साथ ही युवाओं को आश्वस्त करना है कि उनके ईमानदारीपूर्ण तथा वास्तविक प्रयासों को उचित पुरस्कार के साथ उनका भविष्य सुरक्षित होगा।
    • विधेयक का उद्देश्य उन व्यक्तियों, संगठित समूहों अथवा संस्थानों को प्रभावी ढंग से और कानूनी रूप से रोकना है जो विभिन्न अनुचित तरीकों में लिप्त हैं साथ ही मौद्रिक या अनुचित लाभ के लिये  लोक परीक्षा प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।

विधेयक के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • लोक परीक्षा को परिभाषित करता है:
    • धारा 2(k) के तहत, लोक परीक्षा को विधेयक की अनुसूची में सूचीबद्ध "लोक परीक्षा प्राधिकरण" या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य प्राधिकरण द्वारा आयोजित किसी भी परीक्षा के रूप में परिभाषित किया गया है।
      • अनुसूची में पाँच लोक परीक्षा प्राधिकरणों, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), कर्मचारी चयन आयोग (SSC), रेलवे भर्ती बोर्ड (RRB), बैंकिंग कार्मिक चयन संस्थान (IBPS), राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (NTA) की सूची है।
        • NTA JEE (मेन),  NEET-UG, UGC-NET, कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET) जैसी परीक्षा आयोजित करता है।
    • इन नामित सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरणों के अलावा “केंद्र सरकार के सभी मंत्रालय या विभाग और कर्मचारियों की भर्ती के लिये उनसे जुड़े तथा अधीनस्थ कार्यालय” भी नए कानून के दायरे में आएँगे।
      • केंद्र सरकार आवश्यकता पड़ने पर एक अधिसूचना के माध्यम से अनुसूची में नए प्राधिकरण जोड़ सकती है।
  • सज़ा:
    • विधेयक की धारा 9 में कहा गया है कि सभी अपराध संज्ञेय, गैर-ज़मानती और गैर-शमनयोग्य होंगे।
      • संज्ञेय अपराधों में मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना मामले की जाँच करना पुलिस का कर्त्तव्य है।
      • एक गैर-शमनयोग्य अपराध वह है जिसमें शिकायतकर्त्ता द्वारा मामला वापस नहीं लिया जा सकता है, भले ही शिकायतकर्त्ता और आरोपी के बीच समझौता हो गया हो तथा मुकदमा आवश्यक रूप से चलना चाहिये।
        • इसका तात्पर्य यह है कि बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है और ज़मानत अधिकार का मामला नहीं होगा, बल्कि एक मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करेगा कि अभियुक्त को ज़मानत पर रिहा किया जा सकता है या नहीं।
    • "अनुचित साधनों और अपराधों का सहारा लेने वाले किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों" के लिये सज़ा तीन से पाँच वर्ष का कारावास और 10 लाख रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
    • यदि दोषी ज़ुर्माना देने में विफल रहता है, तो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रावधानों के अनुसार कारावास की अतिरिक्त सज़ा दी जाएगी।
    • सेवा प्रदाताओं के लिये सज़ा:
      • परीक्षाओं के संचालन के लिये सार्वजनिक परीक्षा प्राधिकरण द्वारा नियुक्त सेवा प्रदाता भी 1 करोड़ रुपए तक के ज़ुर्माने के साथ दंडित किया जा सकता है और यदि सेवा प्रदाता अवैध गतिविधियों में शामिल है, तो परीक्षा की आनुपातिक लागत भी उससे वसूल की जाएगी।
  • अनुचित साधनों की परिभाषा:
    •  विधेयक की धारा 3 में कम-से-कम 15 कार्यों को सूचीबद्ध किया गया है जो मौद्रिक या गलत लाभ के लिये सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों का उपयोग करने के बराबर हैं।
      • इन कृत्यों में शामिल हैं: प्रश्न पत्र या उत्तर कुंजी या उसके हिस्से को लीक करना और प्रश्न पत्र या ऑप्टिकल मार्क रिकॉग्निशन (OMR) रिस्पॉन्स शीट को बिना अधिकार के अपने कब्जे में लेना, सार्वजनिक परीक्षा के दौरान किसी अनधिकृत व्यक्ति द्वारा प्रश्नों का समाधान प्रदान करना।
    • यह अनुभाग उम्मीदवारों की शॉर्ट-लिस्टिंग या किसी उम्मीदवार की योग्यता या रैंक को अंतिम रूप देने हेतु आवश्यक किसी भी दस्तावेज़ के साथ छेड़छाड़ को भी सूचीबद्ध करता है- कंप्यूटर नेटवर्क या कंप्यूटर सिस्टम के साथ छेड़छाड़, धोखाधड़ी या आर्थिक लाभ के लिये फर्जी वेबसाइट बनाना तथा फर्जी प्रवेश पत्र या ऑफर लेटर जारी करना गैरकानूनी कृत्य है।
  • जाँच और प्रवर्तन:
    • विधेयक में कहा गया है कि प्रस्तावित कानून के तहत अपराधों की जाँच पुलिस उपाधीक्षक या सहायक पुलिस आयुक्त स्तर से नीचे के अधिकारियों द्वारा नहीं की जाएगी।
  • राज्यों के लिये मॉडल मसौदा:
    • यह विधेयक राज्यों द्वारा अपने विवेकाधिकार से इसके अंगीकरण हेतु एक मॉडल मसौदे के रूप में भी कार्य करेगा, जिसका उद्देश्य आपराधिक तत्त्वों को उनकी राज्य-स्तरीय सार्वजनिक परीक्षाओं को बाधित करने से रोकने में राज्यों की सहायता करना है।
  • उच्च स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति:
    • सार्वजनिक परीक्षाओं पर एक उच्च स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति का गठन किया जाएगा।
      • यह समिति डिजिटल प्लेटफॉर्म को सुरक्षित करने के लिये प्रोटोकॉल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करेगी। यह सुव्यवस्थित IT सुरक्षा प्रणालियों को कार्यान्वित करने के लिये रणनीति तैयार करेगा।
      • यह समिति  IT तथा भौतिक बुनियादी ढाँचे दोनों के संबंध में राष्ट्रीय सेवा एवं मानक स्तर तैयार करेगी। दक्षता व विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये परीक्षाओं के संचालन हेतु  इन मानकों का कार्यान्वन किया जाएगा।

विधेयक से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?

  • राज्य सरकारों का विवेकाधिकार:
    • हालाँकि विधेयक का उद्देश्य राज्यों के लिये इसे अंगीकरण के लिये एक मॉडल के रूप में प्रदर्शित करना है किंतु राज्य सरकारों को दिए गए विवेकाधिकार से विभिन्न राज्यों में इसके कार्यान्वयन में भिन्नता हो सकती है।
      • इससे सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकने में कानून की प्रभावशीलता संभावित रूप से कमज़ोर हो सकती है।
  • प्रतिबंधों से संबंधित खामियाँ:
    • अपराधियों के लिये दंड के संबंध में विधेयक के प्रावधानों में खामियाँ हो सकती हैं जिनका उपयोग दांडिक प्रतिबंधों से बचने के लिये किया जा सकता है।
      • उदाहरणार्थ यदि सेवा प्रदाता पर लगाया गया जुर्माना अनुचित साधनों से प्राप्त वित्तीय लाभ के अनुरूप नहीं होने की स्थिति में इसका पर्याप्त निवारक के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • राष्ट्रीय तकनीकी समिति पर स्पष्टता का अभाव:
    • हालाँकि विधेयक में सार्वजनिक परीक्षाओं पर एक उच्च-स्तरीय राष्ट्रीय तकनीकी समिति के गठन का प्रस्ताव है किंतु इसकी संरचना, योग्यता तथा अधिदेश के संबंध में स्पष्टता का अभाव है।
    • समिति के सदस्यों की योग्यता और संरचना पर स्पष्ट दिशानिर्देशों के बिना, परीक्षा संचालन के लिये सुव्यवस्थित IT सुरक्षा प्रणालियों तथा राष्ट्रीय मानकों को तैयार करने में उनकी विशेषज्ञता एवं निष्पक्षता के संबंध में चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • विधिक चुनौतियों की संभावना:
    • विधेयक को अपराधों की संज्ञेयता, गैर-ज़मानतीता तथा गैर-शमनक्षमता संबंधी प्रावधानों से संबंधित विधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इस मत पर असहमति हो सकती है कि अपराधों की गंभीरता को देखते हुए ये कठोर दंड उचित हैं अथवा नहीं तथा क्या नैसर्गिक न्याय सिद्धांतों का अनुपालन किया जाता है।

निष्कर्ष

  • विधेयक नामित कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा जाँच तथा प्रवर्तन के उपायों की रूपरेखा तैयार करता है किंतु परीक्षा प्रक्रिया में उत्तरदायित्व एवं पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये व्यापक निरीक्षण तंत्र की आवश्यकता है।
  • इसमें परीक्षाओं के संचालन का अनुवीक्षण करना, शिकायतों का निवारण करना एवं कदाचार का प्रभावी ढंग से पता लगाने और उसकी रोकथाम के लिये परीक्षा प्रक्रियाओं का अंकेक्षण करना शामिल है।


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