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डेली न्यूज़

  • 07 Feb, 2023
  • 37 min read
इन्फोग्राफिक्स

केंद्रीय बजट

Union-Budget


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत का राजकोषीय घाटा लक्ष्य

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट 2023-24, राजकोषीय घाटा, सब्सिडी, पूंजीगत व्यय, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), भुगतान संतुलन, भारत का विदेशी ऋण।

मेन्स के लिये:

आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23, राजकोषीय घाटे के सकारात्मक पहलू, राजकोषीय घाटे के नकारात्मक पहलू।

चर्चा में क्यों?  

केंद्रीय बजट 2023-24 में सरकार ने सापेक्ष राजकोषीय विवेक को अपनाने की घोषणा की और वित्त वर्ष 2024 में राजकोषीय घाटे में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 5.9% तक की गिरावट का अनुमान लगाया, जो वित्त वर्ष 2023 में 6.4% था।

  • सरकार ने राजकोषीय समेकन के व्यापक पथ का अनुसरण जारी रखने और वर्ष 2025-26 तक राजकोषीय घाटे को 4.5% से नीचे लाने की योजना बनाई है।

बजट में घाटे की प्रवृत्तियाँ:

  • राजस्व घाटा वित्त वर्ष 2022-23 के 4.1 प्रतिशत (संशोधित अनुमान) की तुलना में वित्त वर्ष 2023-24 में 2.9 प्रतिशत रहने की उम्मीद है। 
  • यदि ब्याज भुगतान को राजकोषीय घाटे से घटाया जाता है जिसे प्राथमिक घाटा कहा जाता है, तो यह वर्ष 2022-23 (संशोधित अनुमान) में सकल घरेलू उत्पाद का 3% था।
  • केंद्रीय बजट 2023-24 में प्राथमिक घाटा, जो पिछले ब्याज भुगतान देनदारियों से रहित चालू राजकोषीय रुख को दर्शाता है, GDP का 2.3% अनुमानित है।

Trends-in-Deficit

राजकोषीय समेकन की दिशा में सरकार के प्रमुख कदम:

  • कम सब्सिडी: 
    • सरकार ने भोजन, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी हेतु आवंटित राशि को कम कर दिया है।
      • वर्ष 2022-23 (संशोधित अनुमान) में खाद्य सब्सिडी 2,87,194 करोड़ रुपए थी जिसे वित्त वर्ष  2023-24 में घटाकर 1,97,350 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
      • इसी प्रकार वित्त वर्ष 2022-23 में उर्वरक सब्सिडी 2,25,220 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) थी जिसे वित्त वर्ष 2023-24 में घटाकर 1,75,100 करोड़ रुपए  कर दिया गया है।
      • वित्त वर्ष 2022-23 में पेट्रोलियम सब्सिडी 9,171 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) थी जिसे वित्त वर्ष 2023-24 (बजट अनुमान) में घटाकर 2,257 करोड़ रुपए किया गया है।
    • विगत वर्ष की तुलना में सब्सिडी में कमी उतनी तीव्र नहीं है, लेकिन यह अब भी वर्ष 2025-26 तक 4.5% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य तक पहुँचने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
  • पूंजीगत व्यय:  
    • वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 3.3% तक बढ़ाने की योजना बनाई गई है और सरकार ने विकास को बढ़ावा देने के लिये राज्यों को 50 वर्षों के लिये 1.3 लाख करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किया है।
  • ऋण प्रबंधन:  
    • अधिकांश राजकोषीय घाटे को आंतरिक बाज़ार ऋण के माध्यम से वित्तपोषित किया जाता है और एक छोटा हिस्सा बचत, भविष्य निधि तथा बाहरी ऋण के बदले प्रतिभूतियों से आता है।
      • वर्ष 2023 के केंद्रीय बजट में भारत का बाहरी ऋण कुल राजकोषीय घाटे का केवल 1% है, यह अनुमानतः 22,118 करोड़ रुपए है।
    • राज्य अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 3.5% के राजकोषीय घाटे को बनाए रखने के लिये स्वतंत्र हैं, जिसमें 0.5% बिजली क्षेत्र के सुधारों के लिये है।

 उभरती अर्थव्यवस्था के लिये राजकोषीय समेकन का महत्त्व: 

  • राजकोषीय समेकन से तात्पर्य राजकोषीय घाटे को कम करने के तरीकों और साधनों से है। एक सरकार आमतौर पर घाटे को कम करने के लिये कर्ज़ लेती है। इसके बाद उसे कर्ज चुकाने के लिये अपनी कमाई का एक हिस्सा आवंटित करना होता है।
  • कर्ज़ बढ़ने के साथ ब्याज का बोझ बढ़ता है। वित्त वर्ष 2022 के बजट में 34.83 लाख करोड़ रुपए से अधिक के कुल सरकारी व्यय में से 8.09 लाख करोड़ रुपए (लगभग 20%) से अधिक ब्याज के भुगतान में खर्च हो गया।

राजकोषीय घाटा:  

  • परिचय:  
    • राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर है।
      • यह एक संकेतक है जो दर्शाता है कि सरकार को अपने कार्यों को वित्तपोषित करने के लिये किस सीमा तक उधार लेना चाहिये और इसे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
    • ऋण स्तर में वृद्धि, मुद्रा का मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति कर्ज़ के बोझ में वृद्धि का कारण बन सकता है।
      • जबकि कम राजकोषीय घाटा राजकोषीय प्रबंधन और सुचारू अर्थव्यवस्था के सकारात्मक संकेत हैं।
  • राजकोषीय घाटे के सकारात्मक पहलू:  
    • सरकारी खर्च में वृद्धि: राजकोषीय घाटा सरकार को सार्वजनिक सेवाओं, बुनियादी ढाँचे और अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर खर्च बढ़ाने में सक्षम बनाता है जो आर्थिक विकास के लिये काफी सहायक हो सकते हैं।
    • सार्वजनिक वित्त निवेश: सरकार राजकोषीय घाटे के माध्यम से बुनियादी ढाँचागत परियोजनाओं जैसे दीर्घकालिक निवेशों को वित्तपोषित कर सकती है।
    • रोज़गार सृजन: सरकारी व्यय में वृद्धि से रोज़गार सृजन हो सकता है, जो बेरोजगारी को कम करने और जीवन स्तर को ऊँचा करने में मदद कर सकता है।
  • राजकोषीय घाटे के नकारात्मक पहलू: 
    • बढे हुए कर्ज़ का बोझ: लगातार उच्च राजकोषीय घाटा सरकारी ऋण में वृद्धि को दर्शाता है, जो भविष्य की पीढ़ियों पर कर्ज़ चुकाने का दबाव डालता है।
    • मुद्रास्फीति का दबाव: बड़े राजकोषीय घाटे से धन की आपूर्ति में वृद्धि और उच्च मुद्रास्फीति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे आम जनता की क्रय शक्ति कम हो जाती है।
    • निजी निवेश में कमी: सरकार को राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिये भारी उधार लेना पड़ सकता है, जिससे ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है और निजी क्षेत्र के लिये ऋण प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है, इस प्रकार निजी निवेश बाहर हो सकता है।
    • भुगतान संतुलन की समस्या: यदि कोई देश बड़े राजकोषीय घाटे की स्थिति से गुज़र रहा है, तो उसे विदेशी स्रोतों से उधार लेना पड़ सकता है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ सकती है और भुगतान संतुलन पर दबाव पड़ सकता है।

भारत में अन्य प्रकार के घाटे:

  • राजस्व घाटा: यह राजस्व प्राप्तियों पर सरकार के राजस्व व्यय की अधिकता को संदर्भित करता है।
    • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय - राजस्व प्राप्तियाँ
  • प्राथमिक घाटा: प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान को छोड़कर राजकोषीय घाटे के समान होता है। यह सरकार की व्यय आवश्यकताओं और इसकी प्राप्तियों के मध्य अंतर को इंगित करता है तथा  पिछले वर्षों के दौरान लिये गए ऋणों पर ब्याज भुगतान हेतु किये गए व्यय को ध्यान में नहीं रखता है। 
    • प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा - ब्याज भुगतान
  • प्रभावी राजस्व घाटा: यह पूंजीगत परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये राजस्व घाटे और अनुदान के मध्य का अंतर है। 
    • सार्वजनिक व्यय संबंधी रंगराजन समिति द्वारा प्रभावी राजस्व घाटे की अवधारणा का सुझाव दिया गया है। 

निष्कर्ष:

पूंजीगत व्यय के माध्यम से अर्थव्यवस्था को उबारना भारत की प्राथमिकता है। बुनियादी ढाँचे में सरकारी निवेश में वृद्धि के साथ निजी निवेश भी बढ़ेगा, आर्थिक (GDP) विकास को बढ़ावा मिलेगा, परिणामस्वरूप राजकोषीय घाटे के GDP अनुपात में कमी आएगी। 

  UPSC सिविल सेवा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. शासन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010) 

(a) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अंतर्वाह को प्रोत्साहित करना 
(b) उच्च शिक्षण संस्थानों का निजीकरण 
(c) नौकरशाही का आकार कम करना 
(d) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के शेयरों की बिक्री/ऑफलोडिंग


भारत में राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के उपायों के रूप में उपर्युक्त में से किनका उपयोग किया जा सकता है? 

(a) केवल 1, 2 और 3 
(b) केवल 2, 3 और 4 
(c) केवल 1, 2 और 4 
(d) केवल 3 और 4 

उत्तर: (d) 


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा अपने प्रभाव में सबसे अधिक मुद्रास्फीतिकारक हो सकता है? (2021)

(a) सार्वजनिक ऋण की चुकौती
(b) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये जनता से उधार लेना
(c) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये बैंकों से उधार लेना
(d) बजट घाटे के वित्तीयन के लिये नई मुद्रा का सृजन करना

उत्तर: (d)


प्रश्न: निम्नलिखित में से किनको/किसको भारत सरकार के पूंजीगत बजट में शामिल किया जाता है? (2016)

  1. सड़कों, भवनों, मशीनरी आदि जैसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण पर व्यय 
  2. विदेशी सरकारों से प्राप्त ऋण 
  3. राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को अनुदत्त ऋण तथा अग्रिम

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. 2017-18 के संघीय बजट के अभीष्ट उद्देश्यों में से एक 'भारत को रूपांतरित करना, ऊर्जावान बनाना और भारत को स्वच्छ करना' है। इस उद्देश्य प्राप्त करने के लिये बजट 2017-18 सरकार द्वारा प्रस्तावित उपायों का विश्लेषण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017)

प्रश्न. पूंजी बजट और राजस्व बजट के मध्य अंतर स्पष्ट कीजिये। इन दोनों बजटों के संघटकों को समझाइये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजनीति

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

NCST, ST से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

NCST: कार्य, अनुसूचित जनजाति: प्रावधान, पहल।

चर्चा में क्यों? 

जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) द्वारा प्रदान किये गए नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes- NCST) वर्तमान में अधिकृत सदस्यों की संख्या के आधे से भी कम के साथ कार्यरत है।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग: 

  • गठन: NCST की स्थापना  वर्ष 2004 में अनुच्छेद 338 में संशोधन कर और 89वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से संविधान में एक नया अनुच्छेद 338A सम्मिलित कर की गई थी, इसलिये यह एक संवैधानिक निकाय है।
    • इस संशोधन द्वारा पूर्ववर्ती राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग को दो निम्नलिखित अलग-अलग आयोगों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था:
  • उद्देश्य: NCST को संविधान के अनुच्छेद 338A के तहत वर्तमान में प्रभावी किसी कानून या सरकार के किसी अन्य आदेश के अंतर्गत अनुसूचित जनजातियों (ST) को प्रदान किये गए विभिन्न सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन की निगरानी का अधिकार दिया गया है। NCST यह आकलन करने के लिये भी अधिकृत है कि ये सुरक्षा उपाय कितनी अच्छी तरह काम कर रहे हैं।
  • संरचना: इसमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और 3 अन्य सदस्य होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।
    • इसमें एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है।
      • अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्य 3 वर्ष की अवधि के लिये पद धारण करते हैं। 
    • अध्यक्ष को केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के दर्जे के समकक्ष माना गया है, उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त है और अन्य सदस्य भारत सरकार के सचिव दर्जे के होते हैं।
    • सदस्य दो से अधिक कार्यकाल हेतु नियुक्ति के लिये पात्र नहीं हैं।

NCST के कर्त्तव्य और कार्य:

  • संविधान या किसी अन्य कानून या सरकार के किसी आदेश के अधीन अनुसूचित जनजातियों के लिये प्रदत्त सुरक्षा उपायों से संबंधित सभी मामलों की जाँच एवं निगरानी करना। 
  • अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा उपायों से वंचित करने के संबंध में विशिष्ट शिकायतों की जाँच करना।
  • अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग लेना और सलाह देना तथा उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करना।
  • आयोग सुरक्षा उपायों के संचालन के बारे में राष्ट्रपति को प्रतिवर्ष और आवश्यकतानुसार रिपोर्ट प्रदान करेगा। 
  • इन रक्षोपायों के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संघ या किसी राज्य द्वारा किये जाने वाले उपायों के बारे में ऐसी रिपोर्टों में सिफारिशें करना।
  • राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए नियम द्वारा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण, विकास और उन्नति से संबंधित किसी अन्य कृत्य का निर्वहन कर सकेगा। 

भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधान: 

  • परिभाषा: 
    • भारत का संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है। वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को "बहिष्कृत" और "आंशिक रूप से बहिष्कृत" क्षेत्रों में रहने वाली "पिछड़ी जनजातियों" के रूप में जाना जाता है। 
    • वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम ने पहली बार प्रांतीय विधानसभाओं में "पिछड़ी जनजातियों" के प्रतिनिधियों का आह्वान किया। 
  • संवैधानिक प्रावधान:  
    • अनुच्छेद 366(25): यह केवल अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने हेतु प्रक्रिया निर्धारित करता है:
      • इसमें अनुसूचित जनजातियों को “ऐसी आदिवासी जाति या आदिवासी समुदाय या इन आदिवासी जातियों और आदिवासी समुदायों के भाग या उनके समूह के रूप में परिभाषित किया गया है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 में अनुसूचित जनजातियाँ माना गया है”। 
    • अनुच्छेद 342(1): राष्ट्रपति, किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के संबंध में वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात्‌ लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजातीय समुदायों अथवा जनजातियों या जनजातीय समुदायों के भागों या उनके समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा।
    • पाँचवीं अनुसूची: यह छठी अनुसूची में शामिल राज्यों के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन एवं नियंत्रण हेतु प्रावधान निर्धारित करती है।
    • छठी अनुसूची: यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
  • वैधानिक प्रावधान:

निष्कर्ष 

आयोग में रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये अर्थात् इसमें देरी करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि भर्ती नियमों को उपयुक्त रूप से संशोधित किया गया है। इसके अलावा जनशक्ति की कमी कार्यों के संचालन में भी कठिनाइयों का कारण बन रही है, जिससे आयोग के प्रभावी प्रदर्शन हेतु रिक्तियों को तुरंत भरना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्रत्येक वर्ष कतिपय विशिष्ट समुदाय/जनजाति, पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण, मास-भर चलने वाले अभियान/त्योंहार के दौरान फलदार वृक्षों का पौधरोपण करते हैं। निम्नलिखित में से कौन-से ऐसे समुदाय/जनजाति हैं? (2014) 

(a) भूटिया और लेप्चा
(b) गोंड और कोर्कू
(c) इरूला और तोडा
(d) सहरिया और अगरिया

उत्तर: (b) 


प्रश्न. भारत के संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची में किससे संबंधित प्रावधान हैं? (2015)

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा
(b) राज्यों के बीच सीमाओं का निर्धारण
(c) पंचायतों की शक्तियों, अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों की रक्षा

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019)

(A) तीसरी अनुसूची
(B) पाँचवी अनुसूची
(C) नौवीं अनुसूची
(D) बारहवीं अनुसूची

उत्तर: (B)


प्रश्न. यदि किसी विशिष्ट क्षेत्र को भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची के अधीन लाया जाए, तो निम्नलिखित कथनों में कौन-सा एक इसके परिणाम को सर्वोत्तम रूप से दर्शाता है? (2022)

(a) इससे जनजातीय लोगों की ज़मीनें गैर-जनजातीय लोगों को अंतरित करने पर रोक लगेगी।
(b) इससे उस क्षेत्र में एक स्थानीय स्वशासी निकाय का सृजन होगा।
(c) इससे वह क्षेत्र संघ राज्य क्षेत्र में बदल जाएगा।
(d) ऐसे क्षेत्रों वाले राज्य को विशेष श्रेणी का राज्य घोषित किया जाएगा।

उत्तर: (a)


प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (मुख्य परीक्षा- 2017)

स्रोत: द हिंदू


भूगोल

तुर्किये में भूकंप और इसके कारण

प्रिलिम्स के लिये:

टेक्टोनिक प्लेट, भूकंप के प्रकार, भूकंप, इसका वितरण और प्रकार, स्ट्राइक-स्लिप भूकंप।

मेन्स के लिये:

भूकंप, इसके प्रकार और वितरण।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तुर्किये में 7.8 तीव्रता के भूकंप के झटके महसूस किये गए, जिसमें एनातोलिया टेक्टोनिक ब्लॉक के रूप में जानी जाने वाली प्लेट प्रसिद्ध भ्रंश प्लेट सीमा के साथ टकरा गई।

  • यह भूकंप "स्ट्राइक-स्लिप क्वेक" था जो अपेक्षाकृत कम गहराई पर उत्पन्न हुआ था।
  • इसे तुर्किये के संदर्भ में शताब्दी का सबसे शक्तिशाली भूकंप और वर्ष 1939 के बाद से सबसे खराब आपदा के रूप में वर्णित किया जा रहा है। वर्ष 1939 का भूकंप एर्ज़िनकन भूकंप था जिसने "एर्ज़िनकन मैदान और केल्किट नदी घाटी में अत्यधिक क्षति पहुँचाई थी। 

तुर्किये को भूकंप का खतरा:

  • पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र के टेक्टोनिक्स, जिसमें तुर्किये, सीरिया और जॉर्डन शामिल हैं, अफ्रीकी, अरब एवं यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों के साथ-साथ एनातोलिया टेक्टोनिक ब्लॉक के बीच जटिल अंतः क्रिया का प्रभाव है।
  • तुर्किये एनातोलिया टेक्टोनिक प्लेट पर स्थित है, जो दो प्रमुख भ्रंश सीमाएँ बनाती है अर्थात्  उत्तरी एनाटोलियन फॉल्ट (NAF) जो पश्चिम से पूर्व की ओर और ईस्ट एनातोलिया फॉल्ट (EAF) दक्षिण-पूर्व में विस्तृत है।
    • NAF लाइन यूरेशियन और अनातोलियन विवर्तनिक प्लेटों का मिलन बिंदु है जिसे "विशेष रूप से विनाशकारी" के रूप में जाना जाता है।
      • NAF उत्तरी तुर्की में दाएँ-पार्श्व स्ट्राइक-स्लिप संरचना है जो यूरेशिया और अफ्रीका के संबंध में अनातोलिया ब्लॉक की पार्श्वीय गति को पश्चिम की ओर समायोजित करती है। 
      • EAF अनातोलियन प्लेट और उत्तर की ओर बढ़ने वाली अरब प्लेट के बीच विवर्तनिक सीमा है। यह पूर्वी तुर्की से भूमध्य सागर में 650 किलोमीटर तक है।  
  • इसके अलावा दक्षिणी ग्रीस और पश्चिमी तुर्की के तहत पूर्वी भूमध्य सागर में स्थित एज़ियन सी प्लेट भी इस क्षेत्र में भूकंपीय गतिविधि का एक स्रोत है।
  • एक अनुमान के अनुसार, तुर्की के लगभग 95% भूभाग भूकंप के प्रति संवेदनशील है, जबकि देश का लगभग एक-तिहाई हिस्सा उच्च जोखिम में है, जिसमें इस्तांबुल और इज़मिर के प्रमुख शहर और पूर्वी अनातोलिया के आसपास के क्षेत्र शामिल हैं।  

Eurasian-Plate

सामान्य भूकंप एवं स्ट्राइक स्लिप भूकंप में अंतर:

  • प्लेट संचलन: स्ट्राइक-स्लिप भूकंप में दो विवर्तनिक प्लेटें क्षैतिज रूप से एक-दूसरे के पार्श्व में संचलन करती हैं, जबकि एक सामान्य भूकंप में संचलन ऊर्ध्वाधर होता है।
    • फॉल्ट ज़ोन, विवर्तनिक भूकंप, ज्वालामुखीय भूकंप, मानव प्रेरित भूकंप विभिन्न प्रकार के भूकंप हैं। 
  • फाॅल्ट लाइन के प्रकार और स्थान: ट्रांसफॉर्म सीमाओं के आसपास, जैसे कि कैलिफोर्निया के सैन एंड्रियास फॉल्ट में स्ट्राइक-स्लिप भूकंप आते हैं, जबकि नियमित भूकंप अलग-अलग अथवा अभिसरण प्लेट सीमाओं के आसपास आते हैं जहाँ प्लेटों में गतिविधि लंबवत रूप में होती है, जैसे प्रशांत "रिंग ऑफ फायर"
  • आवृत्ति: नियमित भूकंपों की तुलना में स्ट्राइक-स्लिप भूकंप अधिक बार आते हैं, क्योंकि प्लेटें ट्रांसफॉर्म सीमाओं के साथ निरंतर गतिमान होती हैं।
  • भूकंपीय अंतराल: स्ट्राइक-स्लिप भूकंप के कारण "भूकंपीय अंतराल" हो सकता है, जिसमें किसी ट्रांसफॉर्म सीमा के एक हिस्से में लंबे समय तक भूकंप नहीं आता है, इससे भविष्य में उस क्षेत्र में भूकंपीय घटना की संभावना बढ़ जाती है। आमतौर पर नियमित भूकंप के कारण "भूकंपीय अंतराल" नहीं होता है।
  • कारण: एक-दूसरे के विपरीत दो प्लेटों की गति और तनाव से निकलने वाली ऊर्जा स्ट्राइक-स्लिप फॉल्ट भूकंप का कारण है।

earthquakes

शैलो भूकंप के प्रभाव: 

  • शैलो भूकंप एक ऐसा भूकंप है जो सतह के करीब बहुत कम दूरी पर उत्पन्न होता है, आमतौर पर पृथ्वी की भू-पर्पटी के अंदर। सामान्यतः इसकी गहराई 70 किमी. से कम होती है और इसके परिणामस्वरूप सतह पर काफी हलचल होने और सतह के टूटने की घटनाएँ हो सकती हैं।
  • अक्सर गहरे भूकंपों की तुलना में वे अधिक घातक होते हैं क्योंकि भूकंपीय तरंगों से ऊर्जा सतह के करीब निकलती है, जिससे सतह में गति अधिक होती है और अधिक तीव्र कंपन होता है।
    • यह इमारतों और बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा सकता है, साथ ही भूस्खलन, चट्टानों के गिरने और अन्य माध्यमिक स्तर के खतरे उत्पन्न कर सकता है। 
  • हालाँकि भूकंप के कारण होने वाली क्षति कई कारकों पर निर्भर करती है, जिसमें भूकंप का दायरा, उपरिकेंद्र से दूरी, भूकंप की गहराई, मिट्टी का प्रकार और सतह पर भूवैज्ञानिक स्थितियाँ सम्मिलित हैं। 

earthquake

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय उपमहाद्वीप में भूकंपों की आवृत्ति बढ़ती हुई प्रतीत होती है। फिर भी इनके  प्रभाव के न्यूनीकरण हेतु भारत की तैयारी (तत्परता) में महत्त्वपूर्ण कमियाँ है। विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कीजिये । (2015) 

प्रश्न. भूकंप संबंधित संकटों के लिये भारत की भेद्यता की विवेचना कीजिये। पिछले तीन दशकों में भारत के विभिन्न भागों में भूकंप द्वारा उत्पन्न बड़ी आपदाओं के उदाहरण प्रमुख विशेषताओं के साथ दीजिये। (2021) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत में हेट क्राइम

प्रिलिम्स के लिये:

हेट क्राइम, अनुच्छेद 14, IPC की धाराएँ (153A 153B, 295A)।

मेन्स के लिये:

हेट क्राइम के खिलाफ भारतीय कानून, हेट क्राइम के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख कारक, भारत में हेट क्राइम से निपटने के संभावित तरीके।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा कि हेट स्पीच को लेकर आम सहमति बढ़ रही है, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर हेट क्राइम के लिये कोई गुंज़ाइश नहीं है तथा नागरिकों को हेट क्राइम से बचाना राज्य का प्राथमिक कर्त्तव्य है।  

हेट क्राइम (Hate Crimes):  

  • परिचय:  
    • हेट क्राइम व्यक्तियों या समूहों के खिलाफ उनके धर्म, जाति, नस्ल, यौन अभिविन्यास या अन्य पहचान के आधार पर किये गए हिंसक या अपमानजनक कृत्यों को संदर्भित करता है। 
      • इन अपराधों में अक्सर हिंसा, डराना या धमकी देना शामिल होता है और वे उन व्यक्तियों या समूहों को लक्षित करते हैं जिन्हें अलग या हाशिये के रूप में माना जाता है। 
    • भारतीय संविधान समानता की गारंटी प्रदान करता है और धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है (अनुच्छेद 14), लेकिन इसके बावजूद हेट क्राइम देश में एक निरंतर समस्या बनी हुई है। 
  • घृणा अपराधों के खिलाफ भारतीय कानून:  
    • हेट क्राइम के विभिन्न रूपों के कारण इसे न तो भारतीय कानून में पर्याप्त रूप से परिभाषित किया गया है और न ही एक पारंपरिक विवरण तक सीमित किया गया है।
      • हालाँकि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A, 153B, 295A, 298, 505(1), और 505(2) नफरती भाषण के मामलों से निपटती है तथा स्पष्ट करती है कि नस्ल, जाति, जातीयता, संस्कृति, भाषा, क्षेत्र या किसी अन्य कारक के आधार पर घृणा या अपमान जैसी भावना को उकसाने के लिये बोले या लिखे गए शब्दों का उपयोग करना अवैध है। 
  • हेट क्राइम के प्रमुख कारक:  
    • धार्मिक और जातीय तनाव: भारत विभिन्न धार्मिक और जातीय समूहों वाला एक विविधतापूर्ण देश है। इस प्रकार के तनाव अक्सर हिंसा और हेट क्राइम्स को जन्म देते हैं।
    • जाति-आधारित भेदभाव: जाति-आधारित पूर्वाग्रह का भारत में एक लंबा इतिहास रहा है, जिसने कुछ समुदायों को हाशिये पर धकेल दिया है और उनके खिलाफ हेट क्राइम में योगदान दिया है।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: हेट क्राइम्स को नियंत्रित करने के लिये कानूनों और विनियमों के बावजूद उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने ऐसे अपराधों के घटित होने हेतु अनुकूल वातावरण तैयार किया है।
    • सोशल मीडिया एवं भ्रामक सूचना: सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा और भ्रामक सूचना का प्रसार तनाव में वृद्धि के साथ घृणित अपराधों की बारंबारता में वृद्धि कर सकता है। 

भारत में हेट क्राइम से निपटने के संभावित उपाय:

  • जागरूकता अभियान: हेट क्राइम को संबोधित करने में पहला कदम व्यक्तियों और समाज पर इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। 
    • मास मीडिया अभियान और सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों का उपयोग लोगों को हेट क्राइम के परिणामों के बारे में शिक्षित करने और उन्हें ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु किया जा सकता है। 
  • सामुदायिक जुड़ाव: हेट क्राइम को संबोधित करने में समुदाय महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। यह कार्य सामुदायिक जुड़ाव के माध्यम से किया जा सकता है ताकि लोग एक साथ आ सकें और उन विषयों पर खुलकर तथा ईमानदारी से चर्चा कर सकें जो उन्हें विभाजित करती हैं।  
    • यह विभिन्न समुदायों के मध्य सेतु की भाँति कार्य करेगा जो उनकी समझ और सम्मान को बढ़ावा देने में भी मदद कर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: हेट क्राइम्स की रिपोर्टिंग और ट्रैकिंग में सुधार के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। इसमें हेट क्राइम के रुझानों और हॉटस्पॉट की पहचान करने के लिये ऑनलाइन रिपोर्टिंग सिस्टम विकसित करना तथा डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करना शामिल हो सकता है।
  • पुनर्स्थापनात्मक न्याय कार्यक्रम: पुनर्स्थापनात्मक न्याय कार्यक्रम (Restorative Justice Programs) का उद्देश्य क्षतिपूर्ति करना और पीड़ितों, अपराधियों तथा समुदाय के बीच संबंधों को सामान्य बनाना है। 
    • इन कार्यक्रमों का उपयोग हेट क्राइम के मामलों में प्रभावित समुदायों के बीच उपचार और सुलह को बढ़ावा देने हेतु किया जा सकता है। 
  • कड़ी सज़ा: हेट क्राइम से निपटने का एक और तरीका है कि इस तरह के व्यवहार में लिप्त लोगों पर कठोर दंड लगाया जाए। यह उन लोगों के लिये एक निवारक के रूप में काम कर सकता है जो हेट क्राइम में लिप्त हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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